Published on Sep 29, 2022 Updated 0 Hours ago

रूसी और चीनी आक्रामकता के बीच, अमेरिका ने विश्व व्यवस्था पर अपनी पकड़ की पुन: दावेदारी के लिए अलक़ायदा पर फिर से ध्यान केंद्रित किया है.

अमेरिका अलक़ायदा पर क्यों नये सिरे से ध्यान केंद्रित कर रहा है?

न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकारों एरिक श्मिट और हेलेन कूपर ने 2 अगस्त को लिखा कि निशाना साधकर किये गये एक अमेरिकी ड्रोन हमले में अयमान अल-ज़वाहिरी की मौत ‘अलक़ायदा पर फोकस को वापस लाती है.’ इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र (यूएन) सुरक्षा परिषद की एक रिपोर्ट ने कहा कि अलक़ायदा अफ़ग़ानिस्तान में अपने सुरक्षित ठिकानों से अभी ‘एक तात्कालिक अंतरराष्ट्रीय ख़तरा’ पेश नहीं करता, लेकिन लंबी अवधि में यह एक ‘ख़तरनाक गुट’ है.

न्यूयॉर्क टाइम्स के दोनों लेखकों और यूएन रिपोर्ट ने इस कुख्यात गुट, इससे जुड़े व्यक्तियों व संगठनों तथा ज़वाहिरी पर, दुनिया भर में उनकी भावी आतंकी योजनाओं के चलते, ठीक ही फोकस किया हो सकता है. लेकिन, ज़वाहिरी के मारे जाने को, वैश्विक और घरेलू व्यवस्था (ऑर्डर) बनाये रखने के अमेरिकी प्रयासों के संदर्भ में भी देखना अहम है. 9/11 के बाद, अग्र हमले (प्री-एम्प्टिव स्ट्राइक) का सिद्धांत, सैन्य हस्तक्षेप, और ड्रोन अभियानों द्वारा राज्य या गैर-राज्य कर्ताओं को निशाना बनाकर मारना इस तरह की व्यवस्था की निशानियां रही हैं.

अमेरिका ने अग्र हमले के सिद्धांत को पहली बार 1998 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के अधीन अपनाया. इसे ‘ऑपरेशन इनफिनिट रीच’ कोडनेम दिया और अफ़ग़ानिस्तान के ख़ोस्त प्रांत में छिपे अलकायदा आतंकवादियों को मार गिराने के लिए क्रूज मिसाइलें बरसायीं.

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा उस रूसी आक्रमण को भी अग्र कार्रवाई क़रार दिया गया है, जो अब तक हज़ारों लोगों की जान ले चुका है और पूर्वी यूक्रेन के कई शहरों को बर्बाद कर चुका है. मॉस्को का कहना है कि उसका लक्ष्य यूक्रेन की धरती से रूस पर नेटो के कथित हमले को रोकना या निष्प्रभावी बनाना है. इस घटना, और अमेरिकी हाउस स्पीकर नैंसी पेलोसी की यात्रा के बाद ताइवान  जापान में चीनी आक्रामकता और उससे बनने वाली धारणाओं के साथ वॉशिंगटन-नियंत्रित व्यवस्था आज़माइश से गुज़र रही है.

अग्र हमले का सिद्धांत

2011 में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एलान किया, ‘इंसाफ़ हो गया है’. इसी तरह, राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी ज़वाहिरी के मारे जाने के बाद कहा, ‘इंसाफ़ कर दिया गया है’. अमेरिका ने अग्र हमले के सिद्धांत को पहली बार 1998 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के अधीन अपनाया. इसे ‘ऑपरेशन इनफिनिट रीच’ कोडनेम दिया और अफ़ग़ानिस्तान के ख़ोस्त प्रांत में छिपे अलकायदा आतंकवादियों को मार गिराने के लिए क्रूज मिसाइलें बरसायीं. तंज़ानिया और कीनिया में अमेरिकी दूतावासों पर कई बम हमलों, जिनमें 12 अमेरिकी नागरिकों समेत 224 लोग मारे गये, के बाद यह कार्रवाई की गयी.

उसके बाद से, अमेरिका ने जब चाहा जैसा चाहा हमला किया और इस सिद्धांत को लागू किया. जब भी उसने महसूस किया कि उसके राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हितों को चुनौती दी जा रही है, इस सिद्धांत ने उसे एक प्रमुख सैन्य ताक़त के रूप में अपना वैश्विक दबदबा बनाये रखने में मदद की.

शीतयुद्ध के बाद की गतिकी

1998 में बिल क्लिंटन युग (1993-2001) में जब इस तरह के पहले सैन्य हमले का आदेश दिया गया, तब अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अमेरिका बिना किसी वैश्विक प्रतिस्पर्धी के, अकेली सैन्य और आर्थिक शक्ति था. 1991 में भूतपूर्व सोवियत संघ के विखंडन के साथ शीतयुद्ध हाल ही में ख़त्म हुआ था.

(रूसी फेडरेशन की जीडीपी वृद्धि दर; स्रोत : वर्ल्ड बैंक)

शीतयुद्ध के बाद के शुरुआती दशक में, बोरिस येल्तसिन (1991-1999) के अधीन, रूसी अर्थव्यवस्था ने नकारात्मक जीडीपी वृद्धि देखी. वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 1999 में उछलकर 6.4 फ़ीसद पर पहुंचने से पहले, 1991 में यह -5 फ़ीसद, 1992 में -14.5 फ़ीसद, 1994 में -12.5 फ़ीसद और 1998 में -5.3 फ़ीसद रही. उसका सैन्य ख़र्च 1992 में जीडीपी के 4.4 फ़ीसद से 1998 के 2.7 फ़ीसद के बीच रहा. इस तरह, मॉस्को का प्रभाव सोवियत यूनियन की एक ज़र्द छाया भर था.

(रूसी फेडरेशन का सैन्य ख़र्च; स्रोत : वर्ल्ड बैंक, सिपरी)

चीन उस वक़्त तक ख़ुद को आर्थिक और सैन्य रूप से तैयार कर रहा था और उसे डब्ल्यूटीओ में प्रवेश (जो 2001 में हुआ) के लिए अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों का समर्थन चाहिए था, ताकि आगे चलकर अमेरिका की प्रतिद्वंद्विता करते हुए आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर सके. वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के मुताबिक़, 2001 में चीन की जीडीपी 1.34 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर थी और अमेरिका की 10.58 ट्रिलियन. 2021 में, यह एशियाई महाशक्ति 17.73 ट्रिलियन डॉलर पर थी, और अमेरिका 23 ट्रिलियन डॉलर पर.

चीन का आर्थिक वृद्धि पथ; स्रोत : वर्ल्ड बैंक

2030 तक, या 2028 तक ही, चीन की जीडीपी के अमेरिका से आगे निकल जाने का अनुमान है. अमेरिकी आर्थिक इतिहासकार इमैनुएल वालरस्टीन और इटैलियन अर्थशास्त्री Giovanni Arrighi (दोनों ही वर्ल्ड-सिस्टम्स के सिद्धांतकार हैं) ने प्रदर्शित किया है कि नयी विश्व व्यवस्था केवल टिकाऊ आर्थिक विस्तार के बूते ही उभर सकती है. 5 फरवरी 2016 को ब्रुकिंग्स में प्रकाशित एक लेख में स्टीवन पिफ़र ने अमेरिका को ‘ध्यान देने’ के लिए आगाह किया क्योंकि 2004-2014 के दौरान तेल की उछाल मारती क़ीमतों से आये पैसे से ‘रूस अपनी सेना को उन्नत बना रहा है’. 1991 और 2005 के बीच ‘कमज़ोर बजट’ ने रूसी सेना को आधुनिकीकरण करने से रोक रखा था.

इराक़ पर आक्रमण

यहां तक कि 2003 में भी, अमेरिका दुनिया में सैन्य, आर्थिक तथा राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से मुक्त था. इसलिए, वह अग्र हमले के अपने सिद्धांत को जॉर्ज बुश के राष्ट्रपतित्व में एक नये स्तर पर ले गया. राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के पास ‘सामूहिक विनाश के हथियार’ (डब्ल्यूएमडी) होने के अप्रमाणित व झूठे ‘डर’ तथा 9/11 हमलों में उनकी संलिप्तता के आरोपों के बीच, बुश ने मार्च महीने में इराक़ पर हमला किया. यूएन की असहमतियों के बावजूद, अमेरिका ने एकतरफ़ा ढंग से हमला किया और अपने सहयोगियों के साथ मिलकर, राजनीतिक रूप से ठीक-ठाक स्थिर एक देश को तबाह कर डाला. इसके बाद से यह देश आईएसआईएस के आतंकवाद से जूझ रहा है. 17 सितंबर 2021 को, ब्रुकिंग्स में ब्रूस रिडेल के एक पुन: प्रकाशित लेख में कहा गया कि राष्ट्रपति बुश पर इराक़ी नेता सद्दाम हुसैन का ‘भूत सवार’ हो गया था. अमेरिकी बलों ने बाद में 2019 में सीरिया में ख़ौफ़नाक आतंकवादी अबू बकर बगदादी को मारा. वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, सीआईए ने अपने ड्रोन कार्यक्रम के ज़रिये 2001 और 2011 के बीच 2000 से ज़्यादा आतंकवादियों और नागरिकों को मारा. ‘ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म’ का एक अध्ययन कहता है कि 2010 और 2020 के बीच, वैश्विक रूप से, 14,000 से अधिक ड्रोन हमलों में लगभग 8,000-16,000 आतंकवादी, नागरिक तथा बच्चे मारे गये.

पेंटागन ने ड्रोन हमलों के ज़रिये कई शीर्ष तालिबान चरमपंथियों का ख़ात्मा किया, और दुनिया इन सटीक हमलों को लेकर हैरत में थी. चरमपंथियों की हत्याओं ने दोहरे उद्देश्य को साधा : उन्होंने अमेरिकी हितों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित की, लेकिन सबसे ज़्यादा अहम यह है कि उन्होंने एक विश्व व्यवस्था क़ायम की जहां अमेरिकी दबदबा बना रहना था.

एकतरफ़ा सैन्य हस्तक्षेप की नीति ने न सिर्फ़ व्यक्तिगत आतंकवादियों को निशाना बनाया, बल्कि इसने सीरिया, इराक़ और ईरान जैसे संयुक्त राष्ट्र के कई सदस्य देशों की संप्रभुता का भी उल्लंघन कर डाला. अमेरिका ने फरवरी 2021 में, सीरिया में ईरान-समर्थित मिलिशिया पर हमला किया, जिसने असद को महाशक्ति से यह कहने के लिए मजबूर किया कि वह ‘जंगल का क़ानून’ नहीं चलाए. ईरान के शीर्ष सैन्य कमांडर क़ासिम सुलेमानी की हत्या बगदाद में अमेरिका द्वारा बिना किसी उकसावे के की गयी, जो कि अंतरराष्ट्रीय क़ानून का साफ़ उल्लंघन था.

शीत युद्ध के बाद के दशकों में, अमेरिकियों ने जब चाहा जैसा चाहा हमला किया. उन्होंने अपने निशाने चुने, अपने दुश्मन तय किये, और क्रूज मिसाइलें बरसायीं या ड्रोन हमले किये.  रिपब्लिकन और डेमोक्रेट, दोनों व्यवस्थाओं ने एक जैसी नीतियों को अपनाया.

हर हमले में अमेरिकी नागरिकों और अंतरराष्ट्रीय नागरिकों के लिए एक जैसा संदेश था – कि अगर अमेरिका के हितों को नुक़सान पहुंचाया जाता है, तो उसके पास किसी भी राष्ट्र-राज्य की संप्रभुता का उल्लंघन करने का अधिकार सुरक्षित है. रूस भी नेटो के अनाधिकारिक सहयोगी यूक्रेन पर हमला कर अब इसी राह पर चल रहा है, और चीन ताइवान को तबाह करने की धमकी दे रहा है.

इन सारे कृत्यों और कार्रवाइयों ने एक वैश्विक व्यवस्था निर्मित की है, जो यूएन को कमज़ोर करता है. यूएन के किसी आदेश के मुताबिक़ ओसामा, बगदादी और ज़वाहिरी पर अगर मुकदमा चलता और उन्हें मृत्युदंड दिया जाता, तो अंतरराष्ट्रीय क़ानून मज़बूत होने के साथ-साथ, महाशक्तियों के बारे में असहज करने वाले कुछ सच भी सामने आ सकते थे. और इन चरमपंथियों में से कुछ के शीत युद्ध में उनके सहयोगी होने के पुराने जुड़ाव का भी कच्चा चिट्ठा खुल सकता था.

अमेरिका में नयी घरेलू व्यवस्था का निर्माण

अग्र हमले के सिद्धांत, सैन्य हस्तक्षेपों, और निशाना बनाकर की गयी हत्याओं ने दुनिया के साथ-साथ अपने देश में भी एक नयी घरेलू व्यवस्था स्थापित की. कुछ सैन्य कार्रवाइयों के बूते इन्होंने यह सुनिश्चित किया कि अमेरिकी सरकार या राज्य का घर में अपने नागरिकों द्वारा सम्मान किया जाए और इसकी सीमाओं से परे इससे डरा जाए. बुश प्रशासन ने 69 फ़ीसद अमेरिकियों को यह यकीन करने के लिए ‘गुमराह’ किया कि राष्ट्रपति सद्दाम ट्विन टॉवर पर आतंकी हमलों के लिए ज़िम्मेदार थे, और 82 फ़ीसद ने यह यकीन किया कि सद्दाम ने आतंकवादी बिन लादेन की मदद की.

अमेरिकी दृष्टिकोण को और व्याख्यायित करें तो मतलब यह निकलेगा कि अग्र हमले के इस सिद्धांत के दो टार्गेट ऑडीयन्स थे : अमेरिकी नागरिक, जिनमें स्थानीय चुनावों के दौरान राष्ट्रवादी भावना जगानी थी, और ख़ास तौर पर, उन राष्ट्र-राज्यों या अमेरिकी विरोधी व्यक्तियों के समक्ष यह साबित करना कि अमेरिका वैश्विक अधिपति है. 2015 का एक प्यू राष्ट्रीय सर्वेक्षण कहता है कि 58 फ़ीसद अमेरिकी नागरिक, चरमपंथियों को निशाना बनाने के लिए अमेरिका द्वारा संचालित ड्रोन हमलों से सहमति जताते हैं. 5 मई 2022 को प्रकाशित, कॉरनेल यूनिवर्सिटी के पॉल लुशेंको और ब्रुकिंग्स में टालबॉट सेंटर की सारा क्रेप्स द्वारा किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि 73 फ़ीसद अमेरिकियों ने ड्रोन हमलों को राष्ट्रीय श्रेष्ठता की भावना से जोड़कर देखा. शीत युद्ध के बाद के दशकों में, अमेरिकियों ने जब चाहा जैसा चाहा हमला किया. उन्होंने अपने निशाने चुने, अपने दुश्मन तय किये, और क्रूज मिसाइलें बरसायीं या ड्रोन हमले किये (संयुक्त राष्ट्र की मंज़ूरी के साथ या उसके बग़ैर). रिपब्लिकन और डेमोक्रेट, दोनों व्यवस्थाओं ने एक जैसी नीतियों को अपनाया.

एक शीर्ष अमेरिकी अधिकारी की यात्रा की ‘जवाबी कार्रवाई’ में चीन द्वारा ताइवान की संप्रभुता का उल्लंघन करना और जापानी क्षेत्र में मिसाइल दागना, वॉशिंगटन-नियंत्रित वैश्विक व्यवस्था का सचमुच इम्तिहान ले रहे हैं.

संशोधनवादी राज्यों का उदय

रूस और चीन बीते दो दशकों में सैन्य, कूटनीतिक तथा आर्थिक रूप से काफ़ी आगे बढ़े हैं. दोनों ने 2003 से 2008 के दौरान कूटनीति के ज़रिये सीमा विवादों को द्विपक्षीय ढंग से सुलझाया. उन्होंने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की स्थापना और विस्तार में संयुक्त रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. 4 फरवरी को, यूक्रेन पर आक्रमण से तीन हफ़्ते से भी कम समय पहले, मॉस्को और बीजिंग दोनों ने, राष्ट्रपति पुतिन की चीन यात्रा के दौरान, एक ‘बहुकेंद्रित वैश्विक व्यवस्था’ के लिए और काम करने का संकल्प लिया. बीते दो दशकों के दौरान, अमेरिका के हवाई और ज़मीनी बलों को अफ़ग़ानिस्तान, इराक़, सीरिया और लीबिया समेत कई देशों में ले जाने वाले ‘आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध’ ने अमेरिका की वैश्विक व्यवस्था तथा भूराजनीति व ऊर्जा संसाधनों पर उसके नियंत्रण को भी बनाये रखा. हालांकि, अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका के पीछे हटने (जिसने तालिबान को काबुल पर नियंत्रण करने दिया) से उस व्यवस्था के कमज़ोर पड़ने की धारणा निर्मित हुई. इससे पहले, सीरिया में रूसी हस्तक्षेप ने दमिश्क में सत्ता बदलने की वॉशिंगटन की योजना को गड़बड़ा दिया, जिससे क्षेत्र पर अमेरिकी पकड़ कमज़ोर हुई. अब, यूक्रेन पर रूसी आक्रमण, और भारत समेत बहुत से एशियाई और अफ्रीकी राष्ट्रों की तटस्थता ने अमेरिका को लेकर प्रतिकूल वैश्विक धारणा में योगदान दिया. इसके अलावा, एक शीर्ष अमेरिकी अधिकारी की यात्रा की ‘जवाबी कार्रवाई’ में चीन द्वारा ताइवान की संप्रभुता का उल्लंघन करना और जापानी क्षेत्र में मिसाइल दागना, वॉशिंगटन-नियंत्रित वैश्विक व्यवस्था का सचमुच इम्तिहान ले रहे हैं.

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Contributor

Shakeb Ayaz

Shakeb Ayaz

Shakeb Ayaz is a New Delhi based researcher and communication professional. He has previously worked for national wire services UNI PTI at their foreign desks ...

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