Author : Rumi Aijaz

Published on Mar 30, 2023 Updated 0 Hours ago

कई भारतीय शहरों में "सभी के लिए जल" अभी भी एक दूर का सपना है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकारी संस्थाओं और नागरिकों को कड़े प्रयास करने होंगे. 

भारतीय शहरों में जल-आपूर्ति सुधार की आवश्यकता

पानी के महत्व को लेकर जागरूकता बढ़ाने, उससे जुड़े संकटों का सामना करने के लिए विचारों के आदान-प्रदान के लिए और उसके सतत उपयोग, खपत और प्रबंधन के लिए 1993 से हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र संघ के नेतृत्व वाली यह पहल सतत विकास लक्ष्य-6 (यानी 2030 तक सभी के लिए साफ़ पानी और स्वच्छता सुविधाएं उपलब्ध कराना) के संदर्भ में महत्वपूर्ण है.

कई वैश्विक और स्थानीय पहलों के बावजूद, दुनिया की एक बड़ी आबादी साफ़ पेयजल की सुविधा से महरूम है. साफ़ पेयजल की कमी उनके स्वास्थ्य और शिक्षा, रोज़गार और परिवहन जैसी दैनिक गतिविधियों को गंभीर रूप से प्रभावित करती है.

भारत में सरकार जल आपूर्ति से जुड़ी समस्याओं के हल ढूंढने और समूची आबादी को पाइप के ज़रिए पेयजल उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है. राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही पहलों के अतिरिक्त, केंद्र सरकार कई योजनाओं और कार्यक्रमों जैसे जल जीवन मिशन, कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन और जल शक्ति अभियान के ज़रिए सहायता प्रदान कर रही है.

उदाहरण के लिए, भारत में सरकार जल आपूर्ति से जुड़ी समस्याओं के हल ढूंढने और समूची आबादी को पाइप के ज़रिए पेयजल उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है. राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही पहलों के अतिरिक्त, केंद्र सरकार कई योजनाओं और कार्यक्रमों जैसे जल जीवन मिशन (2024 तक ग्रामीण भारत के सभी घरों में नल कनेक्शन पहुंचाना), कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (सभी कस्बों के शहरी घरों को नल कनेक्शन से जोड़ने के लिए), और जल शक्ति अभियान (वर्षा जल के संग्रहण और संरक्षण के लिए) के ज़रिए सहायता प्रदान कर रही है.

मार्च 2023 तक, देश के कुल ~19 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से लगभग 60 प्रतिशत घरों तक नल कनेक्शन की सुविधा पहुंच चुकी थी. राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के स्तर पर अंतरालों को चिन्हित किया गया है. एक तरफ़, गोआ, अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों, दादरा और नागर हवेली, दमन और दीव, हरियाणा, गुजरात, पुडुचेरी, पंजाब और तेलंगाना के सभी (100 प्रतिशत) ग्रामीण परिवारों को नल कनेक्शन की सुविधा से जोड़ दिया गया है. वहीं दूसरी ओर, नौ ऐसे राज्य हैं, जहां 50 प्रतिशत से भी कम ग्रामीण परिवारों तक नल कनेक्शन की सुविधा पहुंची है. इनमें मध्य प्रदेश, केरल, मेघालय, असम, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल शामिल है.

भू-जल की स्थिति

संख्या के स्तर पर देखें तो भारत के शहरी क्षेत्रों में स्थिति कुछ बेहतर नज़र आती है, जहां 80 फ़ीसदी से ज्यादा शहरी घरों में जल आपूर्ति सुविधाएं मौजूद हैं. ज़मीनी तौर पर, शहरों के स्तर पर देखें या फिर एक ही शहर के विभिन्न इलाकों की तुलना करें तो पाएंगे कि जल-आपूर्ति को लेकर भयानक असमानता है. सामान्यतः, भारतीय शहरों का विकास योजनाबद्ध और ग़ैर-योजनाबद्ध दोनों तरह से हुआ है, और एक बहुत बड़ी आबादी ग़ैर-योजनाबद्ध ढंग (या अनौपचारिक) से बसाए गए इलाकों जैसे मालिन बस्तियों (स्लमों) और अनाधिकृत कॉलोनियों में रहती है, और वे नल कनेक्शन सुविधाओं से वंचित हैं. 

आखिरकार, शेष ग्रामीण घरों तक नल कनेक्शन की सुविधाओं को पहुंचाने के लिए इसके नेटवर्क का विस्तार किया जाएगा. हालांकि, घनी आबादी वाले भारतीय शहरों और मेगा-अर्बन क्षेत्रों में जल संकट गहराता जा रहा है. देश में तेज़ी से शहरीकरण हो रहा है, और बढ़ती आबादी की पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए जल-आपूर्ति निकायों को लगातार मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

फरवरी 2023 में, भारत की राजधानी दिल्ली में पानी की मांग 126 करोड़ गैलन प्रति दिन थी, वहीं जल-आपूर्ति निकाय महज़ 99 करोड़ गैलन पानी का उत्पादन कर रहे थे. हालांकि, लगभग 93 फ़ीसदी शहरी आबादी पाइप नेटवर्क से जुड़ी हुई है लेकिन पानी की आपूर्ति कम होती है, और गर्मी के महीनों में स्थिति और भी खराब हो जाती है. जल-आपूर्ति को बढ़ाने और शहरों में मौजूदा जल समस्याओं को हल करने के लिए कई पहलें चलाई जा रही हैं.

भारत की राजधानी दिल्ली में पानी की मांग 126 करोड़ गैलन प्रति दिन थी, वहीं जल-आपूर्ति निकाय महज़ 99 करोड़ गैलन पानी का उत्पादन कर रहे थे. हालांकि, लगभग 93 फ़ीसदी शहरी आबादी पाइप नेटवर्क से जुड़ी हुई है लेकिन पानी की आपूर्ति कम होती है, और गर्मी के महीनों में स्थिति और भी खराब हो जाती है.

भूजल के उपयोग को विनियमित करके और अनधिकृत उपभोक्ताओं पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क लगाकर गैर-कानूनी ढंग से भूजल निष्कर्षण रोका जा रहा है. यह प्रयास भूजल के स्तर में गिरावट की समस्या को नियंत्रित करने के लिए है.

इमारतों के लिए वर्षा जल संग्रहण संरचनाओं की स्थापना को अनिवार्य कर दिया गया है, और नियम का पालन करने वाले अपने पानी के बिल में छूट के हकदार हैं. भूजल के स्तर को बढ़ाने और पेयजल जल के अतिरिक्त दूसरी आवश्यकताओं के लिए वर्षा जल के इस्तेमाल के लिए इस उपाय का सहारा लिया गया है.

उपेक्षित जल निकायों (जैसे झीलों, बावड़ियों और तालाबों) का जीर्णोद्धार किया जा रहा है, और वर्षा जल के संग्रहण के लिए नए जल निकायों का निर्माण किया जा रहा है. इससे भूजल के स्तर को बढ़ाने में भी मदद मिलती है.

पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सरकार और स्वतंत्र संस्थाएं दोनों ही प्रयोगशालाओं में उपचारित पानी के नमूनों की नियमित रूप से जांच करते हैं. सतही जल निकायों में गिरने वाले औद्योगिक कचरे के निपटान के लिए इंटरसेप्टर सीवर का सहारा लिया जा रहा है.

उत्पादन और आपूर्ति प्रक्रिया के दौरान जल की हानि की समस्या से निपटने के लिए जांच तकनीकों को मज़बूत किया जा रहा है, जहां जल रिसाव का पता लगाने के लिए सेंसर आधारित प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा रहा है और पुरानी पाइपलाइनों को बदला जा रहा है. पानी की बर्बादी रोकने के लिए मीटर कनेक्शन लगाए जा रहे हैं और "अधिक उपयोग, अधिक भुगतान" के सिद्धांत के आधार पर पानी पर लगने वाले शुल्कों को तर्कसंगत बनाया जा रहा है. जल संरक्षण के प्रति जनता में जागरूकता बढ़ाना रणनीति का अहम हिस्सा है.

निष्कर्ष

पूरे शहर में सीवर नेटवर्कों का जाल बिछाया जा रहा है, और विकेंद्रीकृत जल उपचार संयंत्रों के विकास पर काम शुरू कर दिया गया है. 

जो नए इलाके अभी निर्माणाधीन हैं, वहां पानी, सीवर और जल निकासी से जुड़ी बुनियादी अवसंरचना के एकीकृत विकास पर जोर दिया जा रहा है. इसके अलावा, निर्माण चरण के दौरान जल संरक्षण सुविधाओं को शामिल किया जा रहा है.

संक्षेप में कहें तो भारतीय शहरों में पानी की स्थिति को सुधारने के लिए समस्याओं के विभिन्न पहलुओं पर काम किया जा रहा है. इन प्रयासों का सकारात्मक प्रभाव ये है कि ज्यादा से ज्यादा जनसंख्या की पहुंच जल कनेक्शन सुविधाओं तक बढ़ गई है और पानी की गुणवत्ता में भी सुधार आया है. "सभी के लिए जल" के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकारी संस्थाओं और नागरिकों को कड़े प्रयास करने होंगे. पानी से जुड़ी चिंताओं को समझने और उसके समाधान के लिए सरकार को विभिन्न उपभोक्ताओं और अभिकर्ताओं के साथ मिलकर काम करना ज़रूरी है. जल-आपूर्ति संबंधी कुछ गतिविधियों (जैसे संचालन एवं रखरखाव, शुल्क के आरोपण और संग्रहण) को निजी क्षेत्र के हवाले किया जा सकता है. सरकारों को अपने वित्तीय, विनियामक, योजना और सेवा वितरण तंत्र को भी मजबूत करना होगा.

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