Author : Vikrom Mathur

Expert Speak India Matters
Published on Mar 27, 2024 Updated 2 Days ago

जल संसाधनों की बहाली, प्रबंधन और संरक्षण से शांति और दूरगामी समय तक स्थिरता बनाए रखने में योगदान दिया जा सकता है.

शांति के लिए जल: अमन क़ायम करने और उसे बनाए रखने में पानी का टिकाऊ प्रबंधन अहम भूमिका निभा सकता है

ये लेख निबंध श्रृंखला विश्व जल दिवस 2024: शांति के लिए जल, जीवन के लिए जल का हिस्सा है. 


आबादी में बढ़ोत्तरी, औद्योगिक विकास और जलवायु परिवर्तन की वजह से जल संसाधनों की बढ़ती मांग ने दुनिया भर के समुदायों के लिए नाज़ुक स्थिति को और बढ़ा दिया है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान पानी की क़िल्लत एक बड़ी चिंता का विषय बनती जा रही है. क्योंकि, इंसान की सुरक्षा और टिकाऊ विकास पर पानी के प्रभाव बड़े स्तर पर ज़ाहिर हो रहे हैं. आने वाले समय में पानी के, भू-राजनीति के संवाद का एक प्रमुख बिंदु बनने की अपेक्षा की जा रही है.

हालांकि, पानी को लेकर आज के दौर की परिचर्चाओं को अक्सर संघर्ष के उग्र नज़रिए से देखा जाता है, और ये आशंका बार बार जताई जाती है कि पानी के संकट की वजह से देशों के बीच युद्ध भी छिड़ सकते हैं. 22 मार्च को हमने संयुक्त राष्ट्र के विश्व जल दिवस को मनाया. इस साल इसकी थीम बिल्कुल सटीक यानीशांति के लिए पानीथी. ऐसे में इस बात पर ज़ोर दिए जाने की ज़रूरत है कि पानी ने जितना गंभीर संघर्षों को जन्म दिया है, उससे कहीं ज़्यादा ये शांति और सहयोग का बिंदु बना है. हो सकता है कि जल संकट की वजह से गंभीर संघर्ष छिड़ने का अंदेशा बड़ा हो. लेकिन, पानी देशों और समूहों के बीच सहयोग का एक मज़बूत प्रेरक भी बन सकता है. पानी के मामले में सहयोग ने कई स्थानीय और देशों के बीच सफल समझौतों, नीतिगत दिशा-निर्देशों और ऐसे बर्तावों की स्थापना में योगदान दिया है, जो पानी के साझा संसाधनों का टिकाऊ और न्यायसंगत प्रबंधन करने में मददगार साबित हुए हैं.

22 मार्च को हमने संयुक्त राष्ट्र के विश्व जल दिवस को मनाया. इस साल इसकी थीम बिल्कुल सटीक यानी ‘शांति के लिए पानी’ थी. ऐसे में इस बात पर ज़ोर दिए जाने की ज़रूरत है कि पानी ने जितना गंभीर संघर्षों को जन्म दिया है, उससे कहीं ज़्यादा ये शांति और सहयोग का बिंदु बना है.

भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौते पर 1960 में दस्तख़त किए गए थे. इसे दुनिया की सबसे कामयाब अंतरराष्ट्रीय संधियों में से एक माना जाता है. इस समझौते ने पिछले छह दशकों से सिंचाई और पनबिजली के विकास की रूपरेखा मुहैया कराई है.दोनों देशों के बीच कई दशकों तक सैन्य संघर्षों, सीमा पर झड़पों और ज़मीन के विवादों के बावजूद, सिंधु जल समझौता वक़्त के थपेड़ों की मार के आगे डटकर खड़ा रहा है. यहां तक कि इज़राइल और फिलिस्तीन के बेहद मुश्किल संघर्ष के बीच भी जॉर्डन नदी का पानी साझा करना हमेशा देशों के बीच संपर्क का एक बिंदु साबित हुआ है, और इसमें शांति की दिशा में आगे बढ़ने का एक रास्ता उपलब्ध कराने की संभावनाएं भी हैं. इन उदाहरणों से साफ़ है किजल युद्धजैसे विचार बेबुनियाद हैं, और ये बात भी साबित होती है कि पानी के मुद्दे पर युद्ध लड़ने की कोई साफ़ मिसाल हमें दिखाई नहीं देती. यही नहीं, नदियों की घाटी के जल संसाधनों को संवाद, सहयोग और भागीदारी वाले प्रबंधन के ज़रिए आपस में साझा करने के नियमित वैश्विक प्रयासों की तमाम मज़बूत रूप-रेखाएं भी हमारे सामने हैं.

हाल के दिनों में पर्यावरण से शांति स्थापना के उभरते क्षेत्र के ज़रिए रिसर्चर और नीति निर्माता, संघर्ष के बाद के समाजों में शांति की बहाली में पानी के प्रबंधन की अहम भूमिका को तवज्जो और इस पर ज़ोर दे रहे हैं. शांति और संघर्ष पर रिसर्च से अनुभव हासिल करते हुए, ये उभरता हुआ क्षेत्र ये समझने का प्रयास कर रहा है कि किस तरह जल संसाधनों की बहाली, उनका प्रबंधन और हिफ़ाज़त शांति और दूरगामी स्थिरता में योगदान दे सकते हैं.

दुनिया भर में नदियों के 276 ऐसे बेसिन हैं, जो कई देशों से होकर गुज़रते हैं और इनसे होकर दुनिया का 60 प्रतिशत ताज़ा पानी बहता है, जिसे 148 देश आपस में साझा करते हैं. इसके अलावा, दुनिया में पानी की 300 ऐसे भूगर्भीय स्रोत वाली व्यवस्थाएं हैं, जो सीमाओं के आर-पार स्थित हैं. वहीं, दुनिया की लगभग 2.5 अरब आबादी भूगर्भ जल पर निर्भर है. पानी की इस तरह से सुरक्षा करना जो बढ़ती हुई मांग को पूरा कर सके, इसके लिए ऐसी रूप-रेखाओं की आवश्यकता है जो भरोसे को मज़बूत और आपसी सहयोग को विकसित कर सकें.

हाल के दौर में पानी की सुरक्षा के सामने जो एक बड़ी चुनौती उठ खड़ी हुई है, वो क़ुदरती संसाधनों का राजनीतिकरण है. इसकी सबसे बड़ी मिसाल, भारत के दो राज्यों कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच लंबे समय से चला आ रहा कावेरी जल विवाद है.

हाल के दौर में पानी की सुरक्षा के सामने जो एक बड़ी चुनौती उठ खड़ी हुई है, वो क़ुदरती संसाधनों का राजनीतिकरण है. इसकी सबसे बड़ी मिसाल, भारत के दो राज्यों कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच लंबे समय से चला रहा कावेरी जल विवाद है. इस विवाद का इतिहास 1800 के दौर में जाता है, जब मैसूर की रियासत (जो अब कर्नाटक का हिस्सा है) ने मद्रास प्रेसीडेंसी (अब तमिलनाडु) ने आपस में समझौते किए थे. कावेरी नदी को दक्षिणी भारत के बीचो-बीच से गुज़रने वाली जीवन रेखा कहा जाता है. इसके पानी का विवाद, क़िल्लत के समय में जल संसाधनों के आवंटन के इर्द गिर्द घूमता है. वैसे तो इस विवाद को शांतिपूर्ण तरीक़े से हल करने के लिए कई कोशिशें की गईं. लेकिन, सियासी दल इसे अक्सर चुनावी मुद्दे के तौर पर इस्तेमाल करते हैं, जिससे जज़्बात भड़काए जाते हैं. अब ये बात खुलकर साफ़ हो गई है कि संसाधन को साझा करने से आगे बढ़कर संरक्षण की एक ऐसी प्रभावी रणनीति अपनानी होगी, जो कावेरी के पानी का असरदार तरीक़े से प्रबंधन कर सके. यही इस जल विवाद का एक संभावित समाधान हो सकता है.

पानी के संसाधनों के ख़राब प्रबंधन ने इन गर्मियों में कर्नाटक को भयंकर संकट में डाल दिया है. 2023 में कम बारिश की वजह से कर्नाटक इस वक़्त पानी के भयंकर संकट का मुक़ाबला कर रहा है. इसके प्रभाव पूरे बैंगलुरू शहर में महसूस किए जा रहे हैं. क्योंकि बेंगलुरु अपनी पीने के पानी की ज़रूरतों के लिए कावेरी नदी के पानी और भूगर्भ जल पर बहुत अधिक निर्भर है. कावेरी के पानी पर इस अत्यधिक निर्भरता और पानी के संसाधनों के ख़राब प्रबंधन की वजह से ही मौजूदा संकट पैदा हुआ है. भयंकर गर्मी के दिनों में पानी के टैंकरों की क़ीमत आसमान छूने लगती है, और ये बात ग़रीब समुदायों को बुरी तरह प्रभावित करती है. आपातकालीन क़दम के तहत पीने के पानी की इस कमी से निपटने के लिए आस-पास के इलाक़ों से पानी, टैंकर के ज़रिए बेंगलुरु लाया जाता है. सरकार ने पानी की कमी से निपटने के लिए जो तमाम क़दम उठाए हैं, उनमें गाड़ी साफ करने और निर्माण कार्यों और लॉन में पीने के पानी का इस्तेमाल प्रबंधित करना भी शामिल है. कर्नाटक की 2022 की जल नीति के ज़रिए कई रणनीतिक उपाय तो पहले भी लागू किए जाने थे. इनमें पानी की रीसाइक्लिंग, ख़राब पानी को साफ़ करके दोबारा इस्तेमाल करना और बारिश के पानी को जमा करना शामिल है. लेकिन इन क़दमों को बड़े स्तर पर लागू नहीं किया गया

संसाधनों का प्रबंधन ही अहम है

रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए पानी उपलब्ध कराना सुनिश्चित करने के लिए जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है. इसमें संस्थागत मज़बूती लाना, सूचना का प्रबंधन और साझा पानी के कुशल प्रशासन के लिए ज़रूरी मूलभूत ढांचे का विकास शामिल है. शहर के स्तर पर विकसित किए जाने वाले मूलभूत ढांचे में तूफ़ान और ख़राब पानी की रीसाइक्लिंग, पानी के गैर परंपरागत संसाधनों जैसे कि कोहरे से पानी निकालने और क्लाउड सीडिंग से बारिश को बढ़ाने जैसे उपाय करने की ज़रूरत है.

शहर के स्तर पर विकसित किए जाने वाले मूलभूत ढांचे में तूफ़ान और ख़राब पानी की रीसाइक्लिंग, पानी के गैर परंपरागत संसाधनों जैसे कि कोहरे से पानी निकालने और क्लाउड सीडिंग से बारिश को बढ़ाने जैसे उपाय करने की ज़रूरत है.

इसमें कोई शक नहीं है कि जलवायु परिवर्तन और ज़मीन के इस्तेमाल का बदलता तरीक़ा आने वाले वर्षों में पानी समेत हमारे तमाम क़ुदरती संसाधनों पर दबाव बढ़ाएगा. इसीलिए, पानी की क़िल्लत को आने वाले दौर में संघर्ष की जड़ के तौर पर देखने के बजाय, इसे शांति स्थापना के अवसर के रूप में देखने से टिकाऊ भविष्य के लिए अधिक व्यावहारिक परिवर्तन वाला रास्ता खुल सकेगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.