प्रस्तावना
1999 की कल्ट क्लासिक फिल्म, द मेट्रिक्स, के अंत में सर्वशक्तिमान द वन के रूप में परिवर्तित होने के बाद नियो कहता है, “मैं अब सब कुछ साफ़ देख सकता हूं.” इसके बाद कैमरा नियो की दृष्टि के केंद्रबिंदु पर आता है और वहां से ग्रीन स्क्रीन पर एक से लेकर शुन्य के आंकड़ों का एक कास्केड यानी झालर चलती दिखाई देती है. फिल्मनिर्माता दर्शकों को यह दिखाना चाहता है कि नियो अब मेट्रिक्स के पीछे के द्वंद्व तक भी पहुंच सकता है. मेट्रिक्स यानी मशीन की ओर से बनाया गया एक सिमुलेशन यानी स्वांग, जिसमें मानवों को मुर्छित अवस्था में रखा जाता है, जबकि मशीन सिविलाइजेशन यानी मशीनी सभ्यता उनके शरीर का बायो-इलेक्ट्रिक फ्यूल के रूप में उपयोग करती है. यह सिमुलेशन (स्वांग) मानवों को 1999 में जैसी दुनिया थी वैसी दुनिया में भेजता है. वहां मेट्रिक्स के भीतर के जीवन को जहां तक संभव हो सामान्य बनाए रखने की कोशिश की जाती है. इसका उद्देश्य उपयोग करने वालों को मेट्रिक्स में ख़ुद की मौजूदगी का अहसास करवाना होता है. लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि वे स्वांग के आगे या बाद के बड़े यर्थाथ यानी वास्तविकता के बारे में सोचना ही बंद कर दें.
वर्चुअल रियलिटी (VR) आधारित एप्लीकेशंस और हार्डवेयर का उद्देश्य इस तरह के ही सिंथेटिक यानी कृत्रिम परिवेश या परिस्थिति के भीतर उपयोग करने वाले को तल्लीन करवाना है. हालांकि, उन्हें इस तल्लीनता में रखने का उद्देश्य अच्छा और शैक्षणिक है. पर हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर की वर्तमान विशेषताएं तथा उपयोग करने वालों की आवश्यकताओं की वजह से ऐसे अनेक डिवाइस यानी उपकरण और प्रोग्राम्स तैयार हो चुके हैं, जिसमें भौतिक तथा वर्चुअल रियलिटी के कुछ सिद्धांतों के मिश्रण का समावेश है. इस मिक्सड् रियलिटी (MR) को रियलिटी-वर्चुअलिटी के कन्टिन्युअम अर्थात आगे का ही हिस्सा माना जा सकता है. इसमें भौतिक और आभासी परिस्थिति (VE) चरम सीमा की भूमिका अदा करती है. ऑग्मेंटेड रियलिटी यानी बढ़ती हुई वास्ताविकता (AR) की दो इंटरमीडियेट
स्टेट्स यानी मध्यवर्ती अवस्थाएं होती हैं. पहली अवस्था में भौतिक दुनिया के बारे में उपयोग करने वाले के अनुभव को बढ़ाने के लिए चुनिंदा उपकरण एवं डाटा का उपयोग किया जाता है. दूसरी अवस्था ऑग्मेंटेड वर्चुअलिटी (AV) की है, जिसमें VE को वास्तविक अथवा अन्मॉडल्ड इमेजिंग डाटा के साथ बढ़ाया जाता है. AR की दो इंटरमीडियेट स्टेट्स यानी मध्यवर्ती अवस्थाएं इसी सीमा के भीतर आती हैं.[1]
VR तथा AR ने वॉरफाइटिंग की प्रासंगिकता में इज़ाफ़ा किया है. इसका कारण यह है VR ऐसी दुनिया और स्थितियों के मॉडल का निर्माण करता है, जो किसी प्रयोगशाला या प्रशिक्षण मैदान में सुरक्षा कारणों से तैयार नहीं किया जा सकता.
VR तथा AR ने वॉरफाइटिंग की प्रासंगिकता में इज़ाफ़ा किया है. इसका कारण यह है VR ऐसी दुनिया और स्थितियों के मॉडल का निर्माण करता है, जो किसी प्रयोगशाला या प्रशिक्षण मैदान में सुरक्षा कारणों से तैयार नहीं किया जा सकता. इसके अलावा VR प्रशिक्षण को लेकर नापने योग्य और सुव्यवस्थित दृष्टिकोण में इज़ाफ़ा करता है. दूसरी ओर AR सैनिक तथा उनकी भौतिक दुनिया के बीच अतिरिक्त जानकारी (ऑडियो, विज्युअल, हेप्टिक) की एक परत जोड़ते हुए युद्ध मैदान के लिए आवश्यक चुनिंदा सेंसरी परर्फॉर्मेंस को बढ़ा देता है. अब ये लागत-कुशल और पर्याप्त रूप से युद्ध में उपयोगी है कि नहीं इसका गंभीरतापूर्वक अध्ययन करना होगा.
खेल के रूप में – युद्ध
1977 में बॉलीवुड में एक फिल्म शतरंज के खिलाड़ी आयी थी. इस फिल्म में दो राजाओं के बीच युद्ध का चित्रण शतरंज के खेल तथा युद्ध के मिश्रण रूप में किया गया है. लेकिन खेल के विपरीत युद्ध के मैदान में न तो कोई दोबारा जिंदा होता है और न ही दूसरा मौका ही मिलता है. सैनिकों अथवा ‘खिलाड़ियों’ को एक ही लोकेशन पर दोबारा रखकर युद्ध को आगे बढ़ाने को नहीं कहा जा सकता. वीडियो गेम की तरह युद्ध के मैदान में खड़ा सैनिक सर्वज्ञानी नहीं होता. न ही उसे एयरस्ट्राइक्स अथवा अतिरिक्त सहायता पलक झपकते ही मिल पाती है. युद्ध के मैदान से जुड़ी अतिरिक्त चुनौतियों में पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिस्ऑर्डर (PTSD) यानी युद्ध पश्चात तनाव विकार, युद्ध में वीरगति को प्राप्त होने वाले सैनिक के परिजनों को उसकी मौत की सूचना देना (NoK) तथा युद्धबंदियों के उपचार का समावेश होता है. ये सारी बातें गेम्स यानी खेल में नहीं पाई जाती. लेकिन क्या इसका यह मतलब है कि खेल का युद्ध से कोई संबंध ही नहीं होता?
यह विडंबना ही है कि खेल भी वॉरफाइटिंग यानी युद्ध में न केवल महत्वपूर्ण बल्कि अहम भूमिका अदा करते हैं. लेकिन ये आमतौर पर वैसी भूमिका नहीं निभाते जैसा इसके बारे में सोचा जाता है. गेमिफिकेशन का अर्थ गेम-स्टाइल इंसेंटिव यानी प्रोत्साहन है. इसमें उपयोग करने वालों को उपलब्धि, बैज हासिल करने तथा ‘लेवलिंग-अप’ करने पर पुरस्कृत किया जाता है. इन पुरस्कारों का उद्देश्य उपयोग करने वालों को गेम-बेस्ड लर्निंग यानी खेल-आधारित शिक्षा को वास्तविक जीवन में उतारने के लिए प्रोत्साहित करना है.[2]
जोहान हुइज़िंगा ने 1938 में कहा था कि मानवजाति की सबसे महत्वपूर्ण गतिविधि फैंटसी यानी कल्पना की दुनिया से संबंधित है. उन्होंने यह भी कहा कि खेल ही सभी संस्कृतियों को आकार देने वाला तत्व है और खेल का उपयोग करके ही मनुष्य ने सब्जेक्टिविटी, यानी भौतिक दुनिया की बजाय किसी के मन मस्तिष्क में मौजूद होना, का निर्माण किया था.[3] क्वांटिफाएबल इंडिकेटर्स, जैसे प्रदर्शन सुधारने और ‘व्हॉट-इफ’ जैसे थॉट एक्सपेरिमेंट्स अर्थात गेम्स का उपयोग करके मानवीय बर्ताव से छेड़खानी करना या उसका विश्लेषण करने का उपयोग अंक अर्जित करने के लिए करने किया जाता है. क्वांटिफाएबल इंडिकेटर्स का उपयोग करने को प्रिंसटन के इन्स्टीट्यूट फॉर एडवांस्ड स्टडीज् तथा कैलिफोर्निया के RAND कार्पोरेशन जैसे संस्थानों में होने वाले क्वांटिटेटिव मूवमेंट से प्रेरणा मिलती है.[4]
यूनाइटेड स्टेट्स (US) में ‘रैशनल’ यानी तर्कसंगत मनुष्य, एक ऐसा मनुष्य है जो केवल अपने हितों का ध्यान रखकर सर्वाधिक लाभ अर्जित करने पर ध्यान केंद्रित करता है, को ध्यान में रखकर खेल के सिद्धांत का निर्माण किया गया था. इन ‘गेम्स’ के आधार पर ही शीत युद्ध के संपूर्ण युद्ध नीति विषयक सिद्धांत को तैयार किया गया था.
यूनाइटेड स्टेट्स (US) में ‘रैशनल’ यानी तर्कसंगत मनुष्य, एक ऐसा मनुष्य है जो केवल अपने हितों का ध्यान रखकर सर्वाधिक लाभ अर्जित करने पर ध्यान केंद्रित करता है, को ध्यान में रखकर खेल के सिद्धांत का निर्माण किया गया था.[5] इन ‘गेम्स’ के आधार पर ही शीत युद्ध के संपूर्ण युद्ध नीति विषयक सिद्धांत को तैयार किया गया था. इस सिद्धांत में ‘ब्रिंकमैनशिप’ यानी जहां तक संभव हो वहां तक विवाद को खींचना, ‘डेटरंस’ यानी अवरोध और ‘कंपेलेंस’ यानी धमकाकर आगे वाले को झुकाना जैसी शब्दावली को शामिल किया गया था.[6] परमाणु हथियारों के शहर और सेनाओं पर उपयोग के बाद होने वाले प्रभाव का अध्ययन करने के लिए सिमुलेशन यानी स्वांग रचा गया. इस स्वांग पर आधारित गणना, लक्षित रणनीति में सुधार कर सिद्धांतों को तैयार किया गया.[7] अत: गेम्स ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद US की युद्ध नीति विषयक दशा में अहम भूमिका अदा की है.
थियोरॉटिकल फिजिक्स यानी सैद्धांतिक भौतिकी तथा कॉस्मोलॉजी यानी ब्रह्रांड विज्ञान का क्षेत्र एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसमें सिमुलेशंस ने अहम किरदार निभाया है और अभी भी निभा रहा है. इन क्षेत्रों में ब्रह्रांड की उत्पत्ति से जुड़ी अवधारणा को साबित करने का विचार या फिर तारों के बीच होने वाले न्यूक्लियर रिएक्शंस का सीधे निरीक्षण करना संभव नहीं होता.[8] ‘गेमिफिकेशन’ शब्द को समकालीन शब्दकोश में 1978 में एंट्री मिली थी जब रिचर्ड बार्टले ने एक गेम मल्टी यूजर डंजन (MUD) के संदर्भ में इसको गढ़ा था. 1980 के आरंभ में ऐसे अनेक गेम्स को डिजाइन किया गया, जिनका उपयोग गेम्स के तीन प्रमुख लक्षणों, गोल्स यानी लक्ष्य, कम्पिटिशन यानी स्पर्धा और नैरेटिव यानी आख्यान, का उपयोग करते हुए सीखने की कला में इज़ाफ़ा किया गया.[9]
VR और सेना
VR को मुख़्य धारा में शामिल करने की शुरुआत US मनोरंजन उद्योग ने की थी. उसका उद्देश्य उपयोग करने वाले की पांचों इंद्रियों का उपयोग करते हुए उसे फिल्म के भीतर ही तल्लीन कर देना था. एक पेशेवर सिनेमैटोग्राफर मॉर्टन हेलिग ने 1962 में एक प्राथमिक VR डिवाइस यानी उपकरण “सेंसोरामा” को विकसित किया था.[10] इवान सदरलैंड ने 1965 में एक ऐसे ‘अल्टीमेट डिस्प्ले’ के बारे में लिखा, जिसमें इंटरएक्टिव ग्राफिक्स, फोर्स-फीडबैक डिवाइस, ऑडियो, स्मेल और टेस्ट शामिल होगा.[11] एक कंप्यूटर वैज्ञानिक और VPL रिसर्च के संस्थापक जैरोन लानियर ने ‘वर्चुअल रियलिटी’ शब्द को 1987 में गढ़ा था.[12]
सेना के संदर्भ में VR का सबसे पहले इस्तेमाल पायलट्स को प्रशिक्षण देने के लिए फ्लाइट सिम्युलेटर्स के रूप में किया गया.[13] उसके बाद से ही VR की उपयोगिता के साथ ही VE का उपयोग, यानी वास्तविक-दुनिया से इनपुट लेकर डिजिटली दुनिया या फिर वास्तविक दुनिया से पूर्णत: असंबंधित दुनिया का निर्माण, भी बढ़ता गया है. मिलिट्री यूटिलिटी के रूप में VR में वृद्धि हुई है और इसमें कंप्यूटर सिमुलेशंस, कंप्यूटर गेम्स, फ्लाइट सिमुलेटर्स, छोटी टीमों के लिए नेटवर्क्ड सिमुलेटर्स, फार्मेशन सिमुलेटर्स, ज्वाइंट सिमुलेटर्स और कॉम्बैट टास्क यानी युद्ध कार्यों के लिए मल्टी डोमेन सिमुलेटर्स का समावेश हुआ है. एक और क्षेत्र है, विशेषत: US में, जहां VR का उपयोग किया जा रहा है. वहां युद्ध क्षेत्र से लौटने के बाद PTSD से जूझ रहे सैनिकों का उपचार करने के लिए मिलिट्री मेडिसिन में VR का उपयोग हो रहा है. जटिल और चीरफाड़ वाली सर्जिकल प्रक्रियाओं का भी VR सिमुलेशन किया जा रहा है. फिर इसे प्रशिक्षण हस्तांतरण के माध्यम से सैन्य चिकित्सकों को बता दिया जाता है. इसका कारण यह है कि VR का उपयोग सैन्यकर्मियों को कुछ चुनिंदा फ़ायदा पहुंचाता है. किसी भी उद्योग में VR के मूल सेट-अप में एक इनपुट डिवाइस (जिसमें हैप्टिस ग्लव्स, माइक्रोफोन, जॉयस्टीक और मोशन सेंसर्स शामिल है), एक प्रोसेसर तथा आउटपुट डिवाइसों का समावेश है.[14] अध्ययनों में पाए गए तथ्यों का अन्वेषण करने से पहले यह ज़रूरी है कि AR तथा VR क्षेत्रों से जुड़ी कुछ चुनिंदा शब्दावली की व्याख्या कर ली जाए.
(a) इमर्शन यानी तल्लीनता: इसका मतलब VR/AR सिस्टम के सहयोग से उपयोग करने वाले तक पहुंचने वाली ट्रैकिंग और डिस्प्ले. इसकी ऑब्जेक्टिवली यानी वस्तुनिष्ठ रूप से गणना की जा सकती है. मेल स्लेटर के अनुसार सिस्टम जितना ज़्यादा डिस्पले और ट्रैकिंग डिलीवर करेगा और साथ में फिडिलिटी यानी अपनी निष्ठा को वास्तविक दुनिया से ग्रहणशील बनाए रखेगा, यह उतना ही ज्य़ादा इमर्सिव यानी तल्लीन होगा.[15]
(b) प्रेजेंस: प्रेजेंस यानी उपस्थिति, जिसकी अभी गणना नहीं की जा सकती, VR की दुनिया के भीतर उपयोग करने वाले का व्यक्तिपरक अनुभव है. दूसरे शब्दो में प्रेजेंस को इमर्शन को लेकर मानवीय प्रतिक्रिया कहा जा सकता है. एक ही स्तर के इमर्शन में अलग-अलग मनुष्यों को उपस्थिति के विभिन्न स्तर का अनुभव होता है. VR सिस्टम के माध्यम से उपस्थिति को हासिल करने का प्राथमिक कारण वास्तविक दुनिया के साथ मेल खाने वाली मानवीय शारीरिक प्रतिक्रिया को पाना होता है. प्रेजेंस हासिल करने के दो तरीके होते हैं. एक होता है VR के भीतर ऐसी मिरर रियलिटी यानी सदृष्य वास्तविकता उस फिडेलिटी यानी निष्ठा तक पा लेना कि वर्चुअल और फिज़िकल अर्थात भौतिक दुनिया में कोई अंतर ही न किया जा सके.[16] दूसरा होता है परसेप्टुअल सिस्टम यानी अवधारणात्मक व्यवस्था के ज्ञान के माध्यम से रिलेवेंट सेंसरी स्टीमूली यानी प्रासंगिक ग्रहणशील उत्तेजनाओं को बाहर निकालना. अर्थात, यह पता लगाना कि रियलिटी में ह्यूमन रिप्रेजेंटेशन यानी मानवीय प्रतिनिधित्व के लिए क्या अहम है और उच्च स्तर के इमर्शन के बगैर प्रेजेंस डिलीवर करना.
(c) ट्रैकिंग: VR सिस्टम में ट्रैकिंग सेंसर्स और डिवाइसेज़ ही प्रमुख कंपोनेंट्स यानी घटक होते है. वे सिस्टम के प्रोसेसिंग यूनिट के साथ इंटरैक्ट करते हुए उपयोग करने वाले के ओरियंटेशन यानी दिशा निर्देश को रिले करता है यानी पहुंचता है. इसमें इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक, एकॉस्टिक, मैकेनिकल तथा आप्टिकल ट्रैकिंग सिस्टम्स का समावेश होता है.[17]
(d) रजिस्ट्रेशन: इस शब्द का उपयोग AR सिस्टम्स के लिए किया जाता है. इसकी व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है. रजिस्ट्रेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कंप्यूटर से जनरेट यानी बनाई गई वर्चुअल ऑब्जेक्ट्स अर्थात आभासी वस्तुओं को वास्तविक दुनिया में कैमरे से खींची गई इमेजेस के साथ मिलाया जाता है ताकि दोनों का सटीक अलाइनमेंट तैयार किया जा सके. सटीक रजिस्ट्रेशन के बिना वर्चुअल ऑब्जेक्ट के ओवरलेड यानी आच्छादित ग्राफिक पर संदर्भ के बगैर 'डैंगलिंग' अर्थात झूलता हुआ होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. ऐसा होने पर AR का उपयोग करने का उद्देश्य ही बेकार हो जाएगा.
नीचे के हिस्सों में VR के सैन्य पहलूओं को लेकर हुए विभिन्न अध्ययनों की खोज और निष्कर्षों की जानकारी दी गई है. [a]
पहले से गेमिंग का अनुभव रखने वाले ताइवान की हाईस्कूल के 160 विद्यार्थियों के लिए राइफल फायरिंग की ट्रेनिंग देकर उनके रिजल्ट्स को सुधारने के लिए एक गेम-आधारित शैक्षणिक माहौल तैयार किया गया. इस स्टडी के परिणामों से पता चला कि रियल-वर्ल्ड ट्रेनिंग तथा राइफल सिमुलेटर और 3D VR ट्रेनिंग के कॉम्बिनेशन यानी मिश्रण की वजह से इन विद्यार्थियों के शूटिंग स्कोर्स में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया.[18] मनोरंजन के संदर्भ से बाहर इन ‘गेम्स’ में स्टोरीटेलिंग को लागू किया जाता है. ऐसे ‘गेम्स’ को ‘सीरियस गेम्स’ कहा जाता है.[19] इनका उद्देश्य प्रशिक्षण में सीखे गए सबक को वर्चुअल दुनिया से फिजिकल वर्ल्ड में ट्रांसफर करना होता है. इस तरीके के समर्थक और आलोचक दोनों ही है. 1990s के आरंभ में, यह वह दौर था जब इमेज, ऑडियो तथा हेप्टिक प्रोसेसिंग वर्तमान के इमर्सिव स्तर तक नहीं पहुंचा था, हुए अकादमिक लेखन ने VR-आधारित प्रशिक्षण और उसके माध्यम से हासिल कौशल को भौतिक दुनिया यानी यर्थाथ में लेकर जाने के महत्व को ख़ारिज़ कर दिया गया था.[20] लेकिन वर्तमान दौर में मौजूद चुनौती अलग है. अब चुनौती यह है कि युद्ध क्षेत्र से लौटे सैनिक वहां मिले सैन्य अनुभव और ज्ञान को किस प्रकार एक 18 वर्षीय सैनिक को ट्रांसफर करेंगे? क्या इसका जवाब इमर्सिव माहौल है?
बॉयस et al. की ओर से 2022 में किए गए एक अध्ययन ने पाया था कि सिमुलेटेड मिशन प्लानिंग माहौल में टेरैन रिप्रेजेंटेशन यानी इलाके की प्रतिनिधिक फिडेलिटी यानी विश्वसनीयता को बढ़ाने या सिमुलेशन की ‘इर्मसिविटी’ यानी तल्लीनता को बढ़ाने से इलाके की संपूर्ण समझ में इज़ाफ़ा नहीं होता.
बॉयस et al. की ओर से 2022 में किए गए एक अध्ययन ने पाया था कि सिमुलेटेड मिशन प्लानिंग माहौल में टेरैन रिप्रेजेंटेशन यानी इलाके की प्रतिनिधिक फिडेलिटी यानी विश्वसनीयता को बढ़ाने या सिमुलेशन की ‘इर्मसिविटी’ यानी तल्लीनता को बढ़ाने से इलाके की संपूर्ण समझ में इज़ाफ़ा नहीं होता.[21] एक बात याद रखी जानी चाहिए कि इस तरह के सिमुलेशंस में पहली मर्तबा हिस्सा ले रहे युवाओं के लिए उनके पहले युद्ध के क्षेत्र में अनुभव लेने वाले सैनिकों के पास मौजूद बेसिक स्कील्स यानी कौशल जैसे, फायर एंड मूव, हैंड-टू-हंड कॉम्बैट, आर्टिलरी बैराज यानी हमले के दौरान कवर लेना, को देखने और समझने का यह पहला अवसर होगा. ऐसे में इन युवाओं को यह कौशल हासिल करने के लिए लंबे समय तक ट्रायल एंड एरर के रास्ते पर चलना होगा. इसके बाद भी इस बात की गारंटी नहीं होगी कि ये युवा सैनिक सही अथवा सटीक कौशल ग्रहण कर पाएंगे. इसके लिए VR के भीतर ही एक नॉलेज रिप्रेजेंटेशन सिस्टम की ज़रूरत होगी जो कॉम्बैट सिचुएशंस यानी युद्ध स्थितियों से निपटने के लिए आवश्यक स्टीम्यूलाई यानी उत्तेजनाओं को क्वांटिफाई यानी उसकी मात्रा निर्धारित करें, गणना करें और बाद में इन्हीं उत्तेजनाओं को निष्ठापूर्वक दोबारा पैदा करे.
इसके साथ ही इस सिस्टम को प्रशिक्षुओं की ओर से की गई कार्रवाई के बारे में विस्तृत फीडबैक भी मुहैया करवाने वाला होना चाहिए. वर्तमान में VR को लेकर चल रही सैन्य प्रशिक्षण प्रक्रिया की आलोचना करने वालों का कहना है कि यह ट्रेनिंग डिवाइस होने की बजाय केवल अभ्यास मंच के रूप में ही काम आ रहा है.[22] अन्य शब्दों में कहा जाए तो यह माना जा रहा है कि कुछ कौशल पहले से ही मौजूद है, जिसे निखारने की आवश्यकता है. ऐसे में शून्य से शुरुआत करना बेमानी है. इसी के परिणामस्वरूप ये VR और सिमुलेशन-आधारित परिदृश्य प्रशिक्षुओं में पहले से मौजूद ज्ञान संबंधी क्षमताओं को ध्यान में रखकर डिज़ाइन नहीं किया गया है. ये VR और सिमुलेशन-आधारित परिदृश्य केवल न्यूनतम रूप से निर्देशित किए गए हैं.
US सेना के लिए एक एविएशन कम्बाइंड आर्म्स ट्रेनर डिज़ाइन किया गया है. यह ट्रेनर आर्म्ड फार्मेशंस यानी बख्तरबंद संरचनाओं और कॉम्बैट एविएशन एसेट्स यानी हवाई युद्ध उपकरणों पर आधारित हेट्रोजिनियस मोबाइल युनिट्स को प्रशिक्षण देता है. इसमें ऐसी मॉड्यूलर डिजाइन है, जो मिशन में बदलाव करने की अनुमति भी देता है.
US सेना के लिए एक एविएशन कम्बाइंड आर्म्स ट्रेनर डिज़ाइन किया गया है. यह ट्रेनर आर्म्ड फार्मेशंस यानी बख्तरबंद संरचनाओं और कॉम्बैट एविएशन एसेट्स यानी हवाई युद्ध उपकरणों पर आधारित हेट्रोजिनियस मोबाइल युनिट्स को प्रशिक्षण देता है. इसमें ऐसी मॉड्यूलर डिजाइन है, जो मिशन में बदलाव करने की अनुमति भी देता है. भौगोलिक रूप से तितर-बितर यूनिट्स के बीच संयुक्त प्रशिक्षण के लिए स्टैंर्डडाइज्ड डिस्ट्रिब्यूटेड इंटरएक्टिव सिमुलेशन प्रोटोकॉल्स का उपयोग करते हुए मल्टीपल सिमुलेटर्स को नेटवर्क्ड किया जाता है.[23] ताइवानी मिलिट्री ने बॉडी एरिया नेटवर्क्स के साथ एक प्रयोग किया है. इसमें VR मिलिट्री सिमुलेटर में प्रवेश करने वाले सैनिकों के निजी ट्रेनिंग डाटा को संग्रहित किया जाता है. इसकी वजह से अनुसंधानकर्ता को सैनिक की ओर से रियल-टाइम ट्रेनिंग के दौरान किए गए फिजिकल एक्शन यानी शारीरिक कार्यवाही और पोश्चर यानी मुद्रा तक व्यापक पहुंच मिल जाती है.[24] ये जानकारी भौतिक तथा वर्चुअल माहौल के बीच सेतु बनने का काम कर सकती है. इसका उपयोग करते हुए सैनिकों के दिमागी रुख़ को ध्यान में रखकर भविष्य के सिमुलेशंस को डिजाइन किया जा सकता है. जब VR-आधारित ट्रेनिंग परिदृश्यों को ऐक्सेलरामिटर के साथ मिश्रित किया जाएगा तब इसका उपयोग करते हुए रियल टाइम में सैनिक पर पड़ने वाले तनाव की निगरानी भी की जा सकेगी.[25]
VEs की विश्वसनीयता का शूट करें या ना करें (सैनिक कार्य में यह फ़ैसला मुख़्य होता है) वाले परिदृश्यों के दौरान किए गए आकलन को लेकर हुए अध्ययन [b] ने पाया कि लाइव-फायर तथा VR के परिणाम एक समान थे, जबकि 2D वीडियो ने सैनिकों के समक्ष निर्णय लेने की चुनौती कम मात्रा में पेश की. इन निष्कर्षों ने संकेत दिया कि निर्णय को लेकर दुविधा पैदा करने के संदर्भ में VR अथवा लाइव-फायर के मुकाबले 2D वीडियो फिसड्डी साबित हुआ था. इसी वजह से प्रशिक्षण के दौरान सीखे गए सबक याद रह गए थे.
दबाव की स्थितियों में सीखे गए सबक आसानी से याद आ जाते हैं. मनोविज्ञान में इसे “स्टेट-डिपेंडेंट लर्निंग” यानी दशा आश्रित शिक्षा करार दिया गया है.[26] जो कौशल हासिल करना है उसकी कार्यक्षमता को सिमुलेशंस डिजाइन करते वक़्त ध्यान में रखा जाना चाहिए, ताकि ये कंस्ट्रक्ट वैलिडिटी[27] या ट्रेनिंग सिमुलेशन के प्रभाव का पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व कर सकें. इंडियन एयर फोर्स (IAF) के इन्स्टीट्यूट फॉर एयरोस्पेस मेडिसिन की ओर भारतीय तथा US एयर फोर्सेस की ओर से स्पेशल डिसओरिएंटेशन (SD) का मुकाबला करने के लिए सिमुलेटर्स और स्टैंडर्ड प्रोसीजर अर्थात मानक प्रक्रियाओं के पालन को लेकर एक तुलनात्मक अध्ययन किया गया था. इसमें पाया गया कि IAF ट्रेनी के साथ-साथ ऑपरेशनल पायलट्स के लिए एक कस्टमाइज़्ड SD सिमुलेटर का उपयोग करता है.
इसकी वजह से SD-संबंधित विमान आपदाओं की स्थिति में काफ़ी बेहतर प्रतिक्रिया देखने को मिली है.[28] यह वर्चुअल से भौतिक दुनिया में कौशल के हस्तांतरण का एक और उदाहरण है. इतना ही नहीं हाई-टेक एम्युनिशन जैसे रॉकेट्स और मिसाइल्स की ट्रैजेक्टरी और इंपैक्ट यानी प्रक्षेपवक्र और प्रभाव को देखने और उसका विश्लेषण करने में भी VR का उपयोग किया जा रहा है.[29] कॉम्बैट यानी युद्ध तथा तैनाती-संबंधी प्रशिक्षण के अलावा VRs का सेना से संबंधित दो बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्रों-मेडिसिन तथा कल्चरल कम्युनिकेशन यानी सांस्कृतिक संचार में भी उपयोग किया जा रहा है.
ऑफिस ऑफ नेवल रिसर्च ने उपयोगकर्ताओं की ओर से मिले फीडबैक के आधार पर वर्चुअल ईराक एप्लीकेशन को डेवलप किया. इसमें पहले ओपन क्लीनिकल ट्रायल में 20 सैनिकों के साथ ‘वर्चुअल अफगानिस्तान’ परिदृश्य भी जोड़ के रूप में शामिल था. इसमें पॉजिटिव क्लीनिकल आउटकम यानी सकारात्मक लाक्षणिक परिणाम, जैसे न्यूरो-काग्निटिव फंक्शनिंग, मेमोरी एंड लर्निंग, स्पेशल कॉग्निशन तथा एक्जीक्यूटिव फंक्शनिंग मिले.[30] US के रक्षा मंत्रालय ने अपने कॉम्प्रिहेंसिव सोल्जर फिटनेस प्रोग्राम में स्ट्रेस रेजिलियंस टेस्टिंग में भी VR का उपयोग किया है. यह VR का एक और अधिक प्रैक्टिकल यूज यानी व्यवहारिक उपयोग है. [c],[31] VR एक्सपोजर थेरेपी में कॉग्निटिव बिहेव्यरल ट्रीटमेंट (CBT) यानी ज्ञान संबंधी व्यहारवादी उपचार और प्रोलॉन्गड एक्सपोज़र (PE) यानी दीर्घकालीन अनावरण के मिश्रण का उपयोग किया जाता है. यह थेरेपी ट्रॉमा यानी गहरा आघात देने वाले मल्टी-सेंसरी यानी बहु ग्रहणशील और कंटेक्स्ट-रिलेवंट क्यूस अर्थात संदर्भ-संबंधित संकेतों के माध्यम से डिलीवर की जाती है. इसकी तीव्रता को क्लीनिशियन कैलिब्रेट यानी अंशांकित कर सकता है. मनोचिकित्सा संबंधी साधन के रूप में PE का उपयोग इमोशनल प्रोसेसिंग थिअरी अर्थात भावनात्मक प्रसंस्करण सिद्धांत पर आधारित है. यह सिद्धांत कहता है कि जब संरचनाओं में मौजूद जानकारी उजागर होती है तब PTSD में “पैथोलॉजिकल फियर स्ट्रक्चर्स” अर्थात रोगविज्ञान संबंधी भय संरचनाएं शामिल होती है. इस सिद्धांत का उपयोग करके होने वाले उपचार में भय संरचनाओं के भावनात्मक प्रसंस्करण की आवश्यकता होती है, ताकि उसमें मौजूद रोगविज्ञान संबंधी तत्वों को मॉडिफाई यानी संशोधित किया जा सकें, जिससे स्टीमुली यानी उत्तेजनाओं के कारण भय को उकसाने या भड़काने से रोका जा सकें.[32]
VR को एक इनोवेटिव और इफेक्टिव स्ट्रेस ट्रेनिंग प्रोग्राम यानी नये और प्रभावी तनाव प्रशिक्षण कार्यक्रम के रूप में भी देखा जा सकता है. क्योंकि यह किसी व्यक्ति के तनाव को लेकर उसके लचीलेपन का आकलन करने और फ़िजियोलॉजिकल रिएक्टिविटी और परफॉर्मेंस में स्ट्रेस की अहमियत का पता लगाने में सहायक होता है.
VR को एक इनोवेटिव और इफेक्टिव स्ट्रेस ट्रेनिंग प्रोग्राम यानी नये और प्रभावी तनाव प्रशिक्षण कार्यक्रम के रूप में भी देखा जा सकता है. क्योंकि यह किसी व्यक्ति के तनाव को लेकर उसके लचीलेपन का आकलन करने और फ़िजियोलॉजिकल रिएक्टिविटी और परफॉर्मेंस में स्ट्रेस की अहमियत का पता लगाने में सहायक होता है. मिलिट्री मेडिसिन में स्ट्रेस मैनेजमेंट ट्रेनिंग यानी तनाव प्रबंधन एक होलिस्टिक कंसेप्ट यानी संपूर्ण अवधारणा है, जो स्ट्रेस इनोक्यूलेशन ट्रेनिंग और रिज़िलीअन्स ट्रेनिंग पर ध्यान देता है. ऊपर में पहली प्रक्रिया जहां एक्सपोज़र के माध्यम से स्ट्रेस टॉलरेंस बढ़ाती है, वहीं दूसरी व्यवस्था में तनाव प्रबंधन पर ध्यान दिया जाता है.[33] VR फोबिया थेरेपी में VR का उपयोग करते हुए मरीज़ की भय संरचनाओं को सक्रिय किया जाता है. इसके लिए VE को पर्याप्त यर्थाथवादी सेंसरी स्टीमुलाई का निर्माण करना होगा, ताकि भय को ट्रिगर किया जा सके. इसके लिए रियल-वर्ल्ड स्ट्रक्चर्स को लेकर बड़ी मात्रा में फिडेलिटी यानी विश्वसनीयता की आवश्यकता होती है.[34] इमर्शन के संदर्भ में सिविल इंजीनियर्स की ओर से सुरंग बनाने के पहलूओं का अध्ययन करने के लिए AMADEUS VR सिस्टम के मूल्यांकन ने पाया कि VR में इमर्शन के स्तर को बढ़ाने से स्पेशल अंडरस्टैंडिंग यानी स्थानीय समझ में भी इज़ाफ़ा होता है.[35] पत्थरों के बीच से सड़क और पाइपलाइन निकालने के लिए सुरंग बनाने का काम बेहद जटिल होता है. ऐसे में स्टीरियोस्कोपी के संदर्भ में इमर्शन के उच्च स्तर से कार्य संपन्न करने में सुधार देखा जा सकता है.
कल्चरल कम्युनिकेशन के संदर्भ में VR के अनेक उपयोग हैं. इसमें से कुछ का पहले से ही अपरोक्ष रूप से कर्मशियल यानी वाणिज्यिक वीडियो गेम्स में उपयोग किया जा रहा है. वीडियो गेम्स,[36] विशेषत: लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स, में रोल प्लेइंग गेम्स के लिए कैरेक्टर डेवलपमेंट में जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का एकीकरण किए जाने से गेम्स के भीतर ही नैरेटिव्स और कैरेक्टर्स के व्यष्टिकरण के चलन में तेज़ी आ गई है. VR एप्लीकेशंस में इंटेलिजेंट वर्चुअल एजेंट्स (IVAs) की मौजूदगी अनजान टैरेन यानी इलाके में तैनात की जाने वाली सेना के लिए उपयोग साबित हो सकती है. [d] इंटेलिजेंट वर्चुअल एजेंट्स स्थानीय बोल-चाल में निपुण होते हैं. इसके साथ ही वे अनजान इलाकों में मौजूद स्थानीय परंपराओं और बर्ताव का मॉडल बनकर सेना के काम आ सकते हैं.
टैरेन फैमिलराइजेशन यानी इलाके से परिचित होना एक और क्षेत्र है, जिसे VR का उपयोग करके मॉडल्ड या ढाला जा सकता है. इन मॉडल्स का अभ्यास करके सेना टैरेन फैमिलराइजेशन कर सकती है. वैश्विक स्तर पर चलने वाले संयुक्त राष्ट्र (UN) के कई अभियानों में भारतीय सैनिक बड़ी मात्रा में शामिल होते हैं. ऐसे में भारत को इन तकनीकों का लाभ मिल सकता है. इसमें सेंटर फॉर UN पीसकीपिंग को भारतीय सेना के लिए VR प्रौद्योगिकियों का प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करने की दिशा में पहल करनी चाहिए. विदेशों में तैनात होने वाली अपनी सेनाओं को प्रशिक्षण देने के लिए US सेना ने VR-आधारित एप्लीकेशंस का सफलतापूर्वक उपयोग किया है. 2003 की एक रिपोर्ट में नॉर्थ अटलांटिक ऑर्गनाइज़ेशन के रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी ऑर्गनाइज़ेशन ने युद्ध के अलावा मिलिट्री ऑपरेशंस में VR का उपयोग करने का सुझाव और सूची दी गई है. इसमें IVAs के सहयोग से स्वदेशी लोगों के अनुरूप बनकर नॉन-वर्बल यानी अशाब्दिक संकेतों से बातचीत करने और प्रशिक्षुओं के लिए कोच तथा मार्गदर्शक के रूप में काम लिया जा सकता है.[37]
ऑग्मेंटेड रियलिटी
ऑग्मेंटेड रियलिटी (AR) वर्चुअल और भौतिक दुनिया को मिला देती है. हालांकि अब यह हेल्मेट माउंडेट डिस्प्ले (HMD) या सी-थ्रु ग्लासेस की पर्यायवाची हो गई है. AR का अब पोकेमान गो जैसी मोबाइल एप्लीकेशंस में उपयोग कर इसे उपभोक्ताकृत किया जा चुका है.[38] यह फिज़िकल रियलिटी को लेकर उपयोगकर्ता की धारणा को अधिक स्पष्ट करने वाली तकनीक का मिश्रण है. AR का एक और प्रमुख उदाहरण US नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) की ओर से लांच की गई स्पेस टेलिस्कोप की सीरीज़ के रूप में दिया जा सकता है. इसमें सबसे ताज़ा नाम जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप (JWST) का माना जाता है. हालांकि JWST इंफ्रारेड रेंज से ‘देखता’ है, लेकिन उसकी इमेजेस् को एक ऐसे रूप में पेश किया जाता है कि यह मानवीय उपयोगकर्ता को दिखाई देती है.[39] AR को ऑडिटरी यानी श्रवण-संबंधी तथा हैप्टिक क्षेत्र में भी डिवाइसेस, प्रौद्योगिकियों तथा प्रक्रियाओं का उपयोग करके विस्तारित किया जा सकता है. ऐसा करके फिज़िकल रियलिटी के किसी विशेष गुण को लेकर मानवीय परसेप्टिविटी यानी अनुभूति क्षमता को बढ़ावा दिया जा सकता है.[40] सेना के लिए AR का उपयोग स्थिति को लेकर जागृति बढ़ाने के लिए किया जा सकता है. इसके लिए ख़ुफ़िया, निगरानी तथा टोही धाराओं का मिश्रण कर एक समान ऑपरेशनल पिक्चर तैयार करके HMD के जरिए इसे मोर्चे पर मौजूद सैनिक तक पहुंचाया जा सकता है. हालांकि इसके लिए एक इंटेलिजेंट और संदर्भ जागरूक AR एप्लीकेशन की ज़रूरत होगी, क्योंकि युद्ध भूमि काफ़ी अराजक तथा डायनैमिक यानी गतिशील होती है. काफ़ी कड़े मुकाबले वाले क्षेत्र में जहां मल्टीपल एजेंट्स और इंस्टालेशंस होते हैं वहां सैनिक पर इन्फोर्मेशन का ओवरलोड होने का ख़तरा मंडराता है. ऐसा होने पर युद्ध क्षेत्र को लेकर उस सैनिक की समझ बढ़ने की बजाय धीमी हो जाएगी.
अर्बन टेरेन यानी शहरी इलाके को AR आधारित डिवाइस के लिए आदर्श सेटिंग माना जाता है. इसके दो कारण होते हैं. मैकेनाइज्ड वारफेयर के लिए पहले उपयुक्त माने गए क्षेत्रों में तेजी से हुआ शहरीकरण तथा AR का उपयोग करने को बाध्य करने वाला अव्यवस्था या हलचल से जुड़ा मुद्दा. अर्बन वारफेयर AR के तीन उद्देश्य होते हैं : पारदर्शी युद्ध क्षेत्र, इन्ट्यूशनल परसेप्शन अंतर्दृष्टि धारणा और नेचुरल इंटरेक्शन.[41] इसके लिए बेहतर हार्डवेयर, पावरफुल सॉफ्टवेयर और जियोग्राफिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम्स को वर्चुअल जियोग्राफिक एनवायरमेंट के साथ मिलाने वाली एक बहुत ज़्यादा एकीकृत प्रक्रिया ज़रूरी है. शांति काल में भी AR के अनेक उपयोग हैं. इसमें टेबल टॉप में डिटेल्स के स्तर को बढ़ाना और सैंड-मॉडल वॉर गेम्स,[42] मिलिट्री उपकरणों के लिए रखरखाव प्रशिक्षण,[43] तथा AR का वेब के साथ विलय (Web AR)[44] शामिल हैं. यह एक ऐसा बेहतरीन ओपन-सोर्स इटेलिजेंस डाटा है, जिसका उपयोग दुष्प्रचार ऑपरेशंस का प्रभावी रूप से पर्दाफाश करने के लिए किया जा सकता है.
भारतीय सशस्त्र बलों के लिए AR और VR का उपयोग
भारतीय सशस्त्र बलों ने धीरे-धीरे सैनिकों को वर्चुअल ट्रेनिंग मैदानों में सिमुलेट और इमर्स करने के लिए VR का उपयोग करना शुरू कर दिया है. इसके साथ-साथ ऑपरेशनल स्ट्रैटेजिस् का अभ्यास करने के लिए भी VR-आधारित वॉर गेम्स का उपयोग किया जा रहा है. वैसे तो सेना के भंडार में सिमुलेटर्स 1970s के दौर से ही शामिल रहे हैं. लेकिन VR-आधारित सिस्टम्स को पिछले कुछ वर्षों में ही शामिल किया गया है. निश्चित ही अप्रैल 2023 में हुई आर्मी कमांडर्स कांफ्रेंस में रक्षा मंत्री ने एक उपकरण प्रदर्शनी की समीक्षा की थी, जिसमें VR-आधारित सिस्टम्स भी शामिल थे.[45] भारतीय सेना के पास एक वॉर गेमिंग सेंटर है, जहां VR तथा AR प्रौद्योगिकियों को AI और डाटा एनालिटिक्स के सहयोग से लागू किया जा रहा है. इसका उद्देश्य एक मेटावर्स-इनेबल्ड गेमप्ले तैयार करना है.[46] प्रसंगवश, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने वर्ष 2023 में “मेटावर्स फॉर मेंटल हेल्थ” को टॉप टेन उभरती प्रौद्योगिकियों में से एक घोषित किया है.[47] एक कस्टम-बिल्ट CBT टूल का उपयोग करके छात्र अफसरों को स्ट्रैटेजी पढ़ाई जाएगी, जिसमें बाहरी तत्वों को भी शामिल और/या संशोधित किया जाएगा.[48]
AR को मशीनीकृत संचालन के लिए महत्वपूर्ण खोज माना जा रहा है. इस बात को फ्यूचर रेडी कॉम्बैट व्हीकल (FRCV) के लिए आवश्यक पारदर्शी बख्तर/कवच के लिए जारी किए गए रिक्वेस्ट फॉर इंर्फोमेशन (RFI) के अपडेट में भी स्वीकार किया गया है. भविष्य के होने वाले संघर्षों के लिए तैयार FRCV का घरेलू उत्पादन 2030 में शुरू होना है.
कुछ भारतीय डिफेंस र्स्टाट-अप्स ने भी VR-एप्लीकेशंस विकसित की है. HoloSuit/होलोसूट, एक मोशन कैप्चर हेप्टिक सूट, में नौ हेप्टिक फीडबैक डिवाइस कई जगहों पर लगे होते हैं. जब इसे किसी भी मोबाइल अथवा डेस्क टॉप ऑपरेटिंग सिस्टम में होलोसूट इंजन के साथ कनेक्ट किया जाता है तब यह एप्लीकेशन तत्काल एक 3D avatar/अवतार तैयार कर देता है. यह 3D अवतार उपयोगकर्ता के मूवमेंट्स की प्रतिलिपि उपलब्ध करवाता है, जिसमें उसकी मुद्रा, आसन और प्रतिक्रिया देने में लिए जाने वाले वक़्त संबंधी डाटा को शामिल किया जाता है. इस डाटा का उपयोग इन-डेप्ट यानी सघन ट्रेनिंग के लिए किया जाता है.[49] कहा जाता है कि इस सूट का उपयोग भारतीय सेना द्वारा किया जा रहा है. एक अन्य मुंबई स्थित र्स्टाट-अप पैरालैक्स लैब्स ने एक VR-आधारित पर्सनल फाइट सिमुलेटर विकसित किया है. इसका पहला प्रोटोटाइप गोवा के एक नेवल एविएशन यूनिट में स्थापित किया गया है, जबकि दूसरे को नासिक में स्थापित करने को लेकर बात हो रही है.[50] सेना के कुछ यूनिट्स भी VR सिस्टम्स का उपयोग कर रहे हैं. ये यूनिट्स VR सिस्टम्स से लाइन ऑफ कंट्रोल से सटे इलाके के साथ परिचित होना सीख रहे हैं.[51] कोर ऑफ आर्मी एयर डिफेंसकर्मियों द्वारा भी मिसाइल सिमुलेटर्स[52] का उपयोग किया जा रहा है. वहां इसका उपयोग करके रियलिस्टिक यानी यर्थाथवादी निशाना लगाने का अभ्यास किया जा रहा है. इसका उद्देश्य भूमि-से-हवा में प्रहार करने वाली मिसाइल पर होने वाले ख़र्च को रोकना अथवा कम करना है.
इसी बीच AR को मशीनीकृत संचालन के लिए महत्वपूर्ण खोज माना जा रहा है. इस बात को फ्यूचर रेडी कॉम्बैट व्हीकल (FRCV) के लिए आवश्यक पारदर्शी बख्तर/कवच के लिए जारी किए गए रिक्वेस्ट फॉर इंर्फोमेशन (RFI) के अपडेट में भी स्वीकार किया गया है.[53] भविष्य के होने वाले संघर्षों के लिए तैयार FRCV का घरेलू उत्पादन 2030 में शुरू होना है.[54] पारदर्शी बख्तर, ड्रोन और नज़दीकी वाहनों जैसे विभिन्न स्रोतों से डाटा और फुटेज को मिलाकर टैंक के गनर के दृष्टिपथ में डालता है. ऐसा होने पर गनर को अपने आसपास के इलाके को बेहतर तरीके से देखने में सहायता मिलती है. वह इस पारदर्शी बख्त़र की वजह से अपने टैंक की सुरक्षा में रहकर बेहतर तरीके से आसपास की गतिविधियों को नियंत्रित कर सकता है. FRCV को अब भूमि तथा वायु में मौजूद ऐसेट्स यानी सेना के उपकरणों के साथ भी एकीकृत किए जाने का विचार है. ऐसा होने से लंबी दूरी से डिटेक्शन यानी पता लगाना और सिचुएशनल अवेयरनेस यानी स्थिति को लेकर जागरुक रहना सुनिश्चित हो सकेगा. एक और कारण यह है कि एक टीथर्ड ड्रोन सिस्टम को भी FRCV RFI में शामिल किया गया.[55] भारतीय सशस्त्र बलों में AR तथा VR सिस्टम्स की बढ़ती अहमियत भारत के डेफ एक्सपो के विभिन्न संस्करणों में भी दिखाई देती है. इन एक्सपो यानी प्रदर्शनियों में आने वाले गणमान्यों को AR तथा VR सिस्टम्स दिखाए जा रहे हैं.[56]
निष्कर्ष
VR तथा AR सिस्टम्स अब वैश्विक स्तर पर बड़ी संख्या में सैन्य और नागरिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे हैं. लेकिर भारतीय सेना के लिए इन्हें सुरक्षित और उपयोग योग्य समझे जाने से पहले इन नई तकनीकों को लेकर कुछ चुनौतियां मौजूद हैं, जिनसे निपटा जाना आवश्यक है. उदाहरण के लिए इस बात को लेकर कोई जानकारी मौजूद नहीं है कि सैनिकों पर लंबी अवधि तक VR एप्लीकेशंस का उपयोग करने का मनोवैज्ञानिक प्रभाव क्या होता है. (वर्ष 2020 में भारतीय छात्रों और किशोरों पर वीडियो गेम्स के पड़ने वाले प्रभाव को लेकर एक अध्ययन हुआ था. इसमें पाया गया कि ऑनलाइन गेमिंग ने युवा वयस्कों के भावनात्मक और व्यवहार संबंधी विकास पर विपरीत असर डाला है.[57] ऐसी भी खबरें हैं कि ऑनलाइन गेमिंग का उपयोग करने वाले 12 से 25 के बीच के ऐसे युवाओं में भौतिक दुनिया में हिंसा करने की अधिक प्रवृत्ति होती है.)[58]
सेना में आवेदन करने वाले नये रंगरूट/सैनिक अक्सर 17-19 वर्ष आयु वर्ग में से आते हैं. ऐसे में उनके VR-आधारित गेम्स का आदी होने की संभावना अधिक है. कुछ लोगों ने चुनिंदा सेनाओं द्वारा प्रोमोश्नल वीडियो गेम्स तथा VR सिमुलेशंस के उपयोग को ‘मिलिटेनमेंट’ शब्द देकर पुकारना शुरू किया है.[59] यह विडंबना ही है कि VR के भीतर जिस इमर्शन यानी तल्लीनता की आवश्यकता महसूस की जा रही है उसे भी भौतिक दुनिया की एक निश्चित स्टीमुलाई-आधारित पहलू यानी उत्तेजनाओं-संबंधी पहलूओं के अनुरूप होना चाहिए, ताकि वह उपयोग करने वाले के “सेंस ऑफ प्रेजेंस” में इज़ाफ़ा करने में सफ़ल हो सके. इसे रंगरुटों यानी नए सैनिकों की नियमित निगरानी और सलाह देकर संतुलित करना ज़रूरी है.
एक और पहलू है जिस पर विचार किया जाना आवश्यक है. इसमें गोला-बारुद की बचत, प्रशिक्षण पर लगने वाले समय और प्रदूषण को लेकर लागत-लाभ विश्लेषण शामिल हैं. यह देखना होगा कि ऊपर दिए गए मुद्दों पर होने वाली बचत के मुकाबले सिमुलेटर्स की स्थापना पर अपेक्षाकृत ज़्यादा पैसा लगाना होगा. इस ख़र्चे के अलावा इन अत्याधुनिक उपकरणों को सीमलेस यानी अबाधित कनेक्टिविटी, हाई-डेफिनेशन सॉफ्टवेयर, स्पेशलाइज्ड स्क्रींस और मोशन सेंसर्स का ख़र्च भी होगा. इन सारी बातों की गणना और विश्लेषण को तात्कालिक नहीं, बल्कि लंबी-अवधि को ध्यान में रखकर करना होगा. पहनने योग्य तकनीक की घटती कीमतों और चीप उत्पादन क्षमता के स्वदेशीकरण को देखते हुए VR तथा AR क्षेत्रों के लिए एक अवसर उपलब्ध हो रहा है. यह अवसर है सशस्त्र बलों के साथ मजबूती से मिलकर काम करने का. हां, शर्त यह है कि इसमें आवश्यक सारे सुरक्षा कवच मुहैया करवाएं जाएं.
Endnotes
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[46] Vaibhav Jha, “Explained: Project WARDEC – India’s Upcoming AI-Powered Wargame Centre,” The Indian Express, May 21, 2022, https://indianexpress.com/article/explained/explained-project-wardec-india-ai-powered-wargame-centre-7928387/.
[47] Centre for the Fourth Industrial Revolution, & Frontiers Media, “Top 10 Emerging Technologies of 2023,” World Economic Forum, https://www3.weforum.org/docs/WEF_Top_10_Emerging_Technologies_of_2023.pdf?_gl=1*xhg1kg*_up*MQ..&gclid=Cj0KCQjw7uSkBhDGARIsAMCZNJuUACSApsUoc1trCFBGB2W0L2_mtHLhcTVqV8ZpohbK45PYHPYPPMkaAjiQEALw_wcB.
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[49] Bharat Sharma, “Armies Around the World are Training in Virtual Reality with India’s “HoloSuit”,” India Times, July 5, 2022, https://www.indiatimes.com/technology/news/armies-around-the-world-are-training-in-virtual-reality-with-indias-holosuit-573912.html.
[50] Abhijit Ahaskar, “Military Turns to AR/VR for Combat and Training Pilots,” LiveMint, March 9, 2022, https://www.livemint.com/technology/military-turns-to-ar-vr-for-combat-and-training-pilots-11646847576618.html.
[51] Yuvraj Tyagi, “Indian Army Adopts Virtual Reality to Secure the LOC Amid Modernisation Bid,” Republic World, January 25, 2023, https://www.republicworld.com/india-news/general-news/indian-army-adopts-virtual-reality-to-secure-the-loc-amid-modernisation-bid-articleshow.html.
[52] Indian Defence News, “Indian Army's Orders for RPAV, VR-Based Missile Simulator, MQ-9B Contract Ending,” YouTube video, July 25, 2023, https://www.youtube.com/watch?v=l5kAbEwdJ-s#:~:text=Today's%20Latest%20Indian%20Defence%20News/Indian%20defence%20Updates,Army's%20Orders%20for%20RPAV%20%2CVR%2DBased%20Missile%20Simulator%2CMQ%2D9B.
[53] “Why Indian Army is Seeking “Future Tanks” Amid Tensions with China,” WION News, June 4, 2021, https://www.wionews.com/india-news/why-indian-army-is-seeking-future-tanks-amid-tensions-with-china-389540.
[54] Dinakar Peri, “Army Pushes New Tank and Armoured Carrier Projects,” The Hindu, August 27, 2022, https://www.thehindu.com/news/national/army-pushes-new-tank-and-armoured-carrier-projects/article65818881.ece.
[55] Ajay Banerjee, “The Tank, Mechanised Makeover: Armoured Corps and Mechanised Infantry are Undergoing their Biggest Transformation,” The Tribune, October 9, 2022, https://www.tribuneindia.com/news/features/the-tank-mechanised-makeover-armoured-corps-and-mechanised-infantry-are-undergoing-their-biggest-transformation-439548.
[56] Ministry of Defence, Government of India, https://www.pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1602542.
[57] A. Singh et al., “Online Gaming and its Association with Emotional and Behavioral Problems Among Adolescents – A Study from Northeast India,” Archives of Mental Health 21, no. 2 (2020), https://doi.org/10.4103/AMH.AMH_20_20.
[58] Sheezan Nezami, “Online Gaming Takes a Toll on Mental Health of Teenagers,” The Times of India, May 30, 2022, https://timesofindia.indiatimes.com/city/patna/online-gaming-takes-a-toll-on-mental-health-of-teenagers/articleshow/91877043.cms.
[59] Peter Singer, “War Games,” Brookings, February 22, 2010, https://www.brookings.edu/articles/war-games.
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