Published on Jun 21, 2022 Updated 0 Hours ago

यूक्रेन में इस वक़्त चल रहे युद्ध का ख़ात्मा और उसके हिसाब से यूरोप अटलांटिक और हिंद प्रशांत क्षेत्र में होने वाले बदलाव मिलकर अमेरिका और यूरोप के रिश्तों पर इसका प्रभाव तय करेंगे.

यूक्रेन संकट का अटलांटिक के आर-पार के देशों के बीच के आपसी ‘रिश्तों’ पर असर

ये लेख हमारी सीरीज़,  यूक्रेन क्राइसिस: कॉज़ ऐंड कोर्स ऑफ़  कॉन्फ्लिक्ट का एक हिस्सा है.


यूरोप और अमेरिका के रिश्तों में  रहा बुनियादी बदलावइस वक़्त रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के विश्व व्यवस्था पर असर के केंद्र में हैट्रंप प्रशासन के दौर में अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) के रिश्ते अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थेइसकी वजह ट्रंप प्रशासन द्वारा संरक्षणवाद को बढ़ावा देने और विदेश नीति को सिर्फ़ अमेरिका पर केंद्रित रखने को तरज़ीह देने की थीवैसे तोबाइडेन प्रशासन ने अमेरिका और यूरोप के रिश्ते सुधारने को अपनी विदेश नीति के मुख्य एजेंडा का हिस्सा बनाया थालेकिनरूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के बाद अमेरिका और यूरोप के रिश्तों में जितनी तेज़ी से और जितने बड़े पैमाने पर बदलाव आया हैउसकी कल्पना तो ख़ुद राष्ट्रपति जो बाइडेन ने नहीं की होगीआज जब यूरोप में जंग जारी है तो अमेरिका और यूरोप का गठबंधन और भी मज़बूत हो गया हैहालांकिअटलांटिक के आरपार के रिश्तों में आई नई मज़बूती के जोखिम भी हैं. सबसे बड़ा ख़तरा तो रूस के पलटवार का है. अमेरिका और यूरोपीय संघ के रिश्तों में आई मज़बूती का शायद सबसे जोखिम वाला पहलू यही है कि तुलनात्मक रूप से इसका पलड़ा यूरोप की और ख़ास तौर से पूर्वी यूरोप की स्थिरता की तरफ़ कहीं ज़्यादा झुका हुआ है.

सबसे बड़ा ख़तरा तो रूस के पलटवार का है. अमेरिका और यूरोपीय संघ के रिश्तों में आई मज़बूती का शायद सबसे जोखिम वाला पहलू यही है कि तुलनात्मक रूप से इसका पलड़ा यूरोप की और ख़ास तौर से पूर्वी यूरोप की स्थिरता की तरफ़ कहीं ज़्यादा झुका हुआ है.

बदलाव का सामरिक मोर्चे पर असर 

अमेरिका और यूरोपीय संघ के रिश्तों में आए इस बदलाव का यूरोप– अटलांटिक और हिंदप्रशांत क्षेत्रों के सामरिक मोर्चे पर क्या असर देखने को मिल सकता हैइसकी दशा– दिशा का अंदाज़ा मोटे तौर पर तीन तरह से लगाया जा सकता है.

पहलाअपने यूरोपीय साझीदारों के साथ अमेरिका के बेहतर रिश्तेबाइडेन के राजनीतिक एजेंडे और उनके प्रशासन के लक्ष्य और मक़सदों से बख़ूबी मेल खाते हैंहालांकिट्रंप प्रशासन द्वारा जिस तरह से यूरोप ही नहींबल्कि दुनिया के तमाम देशों के साथ अमेरिका के रिश्तों की बुनियाद बदलने की कोशिश की गई थीउसे देखते हुए यूक्रेन को अमेरिका के समर्थन को वहां की दोनों पार्टियों से समर्थन मिल रहा हैदोनों ही दल इसे दुनिया में अमेरिका के प्रभाव को दोबारा स्थापित करने के लिए अहम मानते हैं. अपने अहम साझीदारों के साथ अमेरिका के रिश्ते दोबारा बहाल करने से राष्ट्रपति बाइडेन को घरेलू मोर्चे पर सियासी फ़ायदा मिला है. उन्हें यूक्रेन की मदद के लिए संसद से आर्थिक पैकेज को मंज़ूरी दिलाने में भी मदद मिली है और नवंबर में होने वाले मध्यावधि चुनावों के लिहाज़ से भी ये उनके लिए अच्छा माना जा रहा है. हो सकता है कि ये बात अमेरिका की महाशक्ति वाली राजनीति के लिहाज़ से मुफ़ीद होलेकिनयूरोप की स्थिरता के नज़रिए से इसकी वैसी ही अहमियत शायद  होइसकी वजह ये है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ  ब्रिटेन के रिश्तों में सुधारअसल में रूस के हितों के ख़िलाफ़ जाने वाली बात हैक्योंकि अमेरिका लगातार यूक्रेन की सरकार को राजनीतिककूटनीतिक और सुरक्षा संबंधी मदद दे रहा हैऐसे में अमेरिका और यूरोपीय संघ के बेहतर संबंधपूर्वी यूरोप की स्थिरता के ख़िलाफ़ भी जा सकते हैं.

दूसरायूरोप का संकट और अमेरिका– यूरोपीय संघ के रिश्तों में आए बदलाव ने एक नई ऊर्जा व्यवस्था को जन्म दिया हैजिसमें ऊर्जा की मांग के लिहाज़ से नई साझेदारियां बनाई जा रही हैं और नई आपूर्ति श्रृंखलाएं स्थापित की जा रही हैमिसाल के तौर पर यूरोपीय देशों को रूस से तेल और गैस की आपूर्ति में आई कमी को पूरा करने के लिए अमेरिका जो कोशिशें कर रहा हैउससे अमेरिका को सऊदी अरबसंयुक्त अरब अमीरातवेनेज़ुएला और कोलंबिया से अपने संबंधों के बारे में नए सिरे से विचार करने को मजबूर होना पड़ा है.

अटलांटिक के आर- पार के रिश्ते, यूक्रेन पर रूस के हमले के कारण मज़बूत हो रहे हैं, तो इस बदलाव का असर हम हिंद प्रशांत क्षेत्र में शक्ति के नए बंटवारे के तौर पर देख सकते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र को हाल के दौर में ज़रूरत से ज़्यादा सामरिक तवज्जो दी जाती रही है.

तीसराचूंकि अटलांटिक के आर- पार के रिश्तेयूक्रेन पर रूस के हमले के कारण मज़बूत हो रहे हैंतो इस बदलाव का असर हम हिंद प्रशांत क्षेत्र में शक्ति के नए बंटवारे के तौर पर देख सकते हैंक्योंकि इस क्षेत्र को हाल के दौर में ज़रूरत से ज़्यादा सामरिक तवज्जो दी जाती रही है. अमेरिका के लिए यूरोप में रूस के ख़िलाफ़ एक नया मोर्चा खुलने के चलतेउसे अपने काफ़ी संसाधनों को हिंद प्रशांत से यूरोप की ओर ले जाना होगाअटलांटिक के आरपार के नज़रिए से देखेंतो प्रतिबद्धताओं में आए इस बदलाव का ये मतलब होगा कि हिंद प्रशांत क्षेत्र के मामलों में यूरोपीय देशों की भागीदारी बढ़ेगीजिसका इशारा बाइडेन प्रशासन की हिंद प्रशांत रणनीति में पहले ही मिल चुका है.

एक साथ दो मोर्चों पर अमेरिका की क्षमता

एक साथ दो मोर्चों यानी हिंद– प्रशांत और यूरोप में मुक़ाबला करने की अमेरिका की क्षमता को लेकर चल रही परिचर्चा के दो पहलू हैंपहले तर्क में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि अमेरिका अभी भी ताक़तवर सैन्य शक्ति है और वो यूरेशिया में रूस के साथ साथ हिंद प्रशांत क्षेत्र में बराबरी की ताक़त से चीन का मुक़ाबला कर सकता है. वहीं दूसरा तर्क ये दिया जाता है कि भले ही अमेरिका के पास सैन्य और आर्थिक क्षमता की कमी न हो. लेकिनवो एक साथ दो मोर्चों पर रूस और चीन की ताक़त का मुक़ाबला नहीं कर सकता. इसकी बड़ी वजह ये है कि रूस की तुलना में चीन कहीं अधिक ताक़तवर हैइसके अलावा हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन से होड़ लगाने के लिए अमेरिका को कई ऐसे देशों के साथ तालमेल बिठाने की ज़रूरत होगीजिनके अपने हित और एजेंडा हैंये बात यूरोपीय संघ की स्थिति से ठीक उलट हैक्योंकि दशकों पुराने अटलांटिक गठबंधन ने अपना रुख़ ऐसी दिशा में करने में कामयाबी हासिल की हैजिसमें दोनों पक्षों के हित एक जैसे हों.

इन बड़ी बड़ी बातों के अलावा अटलांटिक गठबंधन के बदलते रिश्तों का यूरोप के भीतर भी गहरा असर पड़ने वाला है. यूक्रेन में संकट के दौरान अटलांटिक गठबंधन को मज़बूती देने का एक अहम पहलू जर्मनी के रुख़ में आया सामरिक और कूटनीतिक बदलाव रहा है

इन बड़ी बड़ी बातों के अलावा अटलांटिक गठबंधन के बदलते रिश्तों का यूरोप के भीतर भी गहरा असर पड़ने वाला हैयूक्रेन में संकट के दौरान अटलांटिक गठबंधन को मज़बूती देने का एक अहम पहलू जर्मनी के रुख़ में आया सामरिक और कूटनीतिक बदलाव रहा है. एंगेला मर्केल और डॉनल्ड ट्रंप के तनातनी भरे रिश्तों के बजाय आज ओलाफ़ शोल्ज़ और जो बाइडेन के रिश्ते बहुत दोस्ताना हो गए हैंइसके अलावा जर्मनी द्वारा अपने सामरिक रुख़ में किया गया बदलाव भी यूरोप और अमेरिका के रिश्तों में आई मज़बूती का एक आश्चर्यजनक नतीजा हैख़ुद को फिर से सामरिक तौर पर ताक़तवर बनाने का जर्मनी का अचानक लिया गए फ़ैसले और उसके रूस के ऊपर अपनी ऊर्जा संबंधी निर्भरता मुश्किलों के बाद भी कम करने के निर्णय को ऐसे क़दम की मिसाल के तौर पर देखा जा रहा हैजिनके तहत यूरोप ने रूस के ख़िलाफ़ मज़बूत एकजुटता दिखाकर उसके साथ अपने रिश्तों में बदलाव लाने की कोशिश की है.

यूरोप की सुरक्षा का सवाल

जहां तक यूरोप की सुरक्षा का सवाल है तो अटलांटिक गठबंधन में आए बदलाव की वजह से कई सवाल खड़े हो गए हैंअटलांटिक गठबंधन का रुख़ किस तरह का रहने वाला हैये बात कई देशों पर सकारात्मक या नकारात्मक असर डाल सकती हैइस परिचर्चा के बीच एक सवाल ये उठ रहा है कि क्या अमेरिका अब भी यूरोप की सुरक्षा की गारंटी देने वाला सबसे बड़ा देश हैअटलांटिक के आर-पार के रिश्ते भविष्य में कैसा रूप लेंगेये बात बहुत हद तक इस पर निर्भर करेगी कि यूक्रेन के संघर्ष का यूरोप में अमेरिका की सैन्य मौजूदगी पर क्या असर पड़ेगाइस बदलाव का दो तरह से अंदाज़ा लगाया जा रहा है: प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष. सीधे तौर पर लिथुआनिया जैसे देशों में अमेरिकी सेना की मौजूदगी में इज़ाफ़ा हो सकता हैहालांकि ये बहुत दूर की कौड़ी है और जोखिम से भरी भी हैलिथुआनिया ने अमेरिका को न्यौता दिया है कि वो रूस के मुक़ाबले में नेटो (NATO) सेनाओं की मौजूदगी बढ़ाने के लिए अपने सैनिक उसके यहां तैनात कर सकेयूरोप में अमेरिका के सीधे तौर पर या फिर नेटो के ज़रिए अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाने का सीधा सा मतलब होगा रूस के पलटवार को न्यौता देनाक्योंकि रूस से इसे पश्चिम के विस्तारवाद के तौर पर देखेगा और इससे यूरोप में सैनिकों की तैनाती बढ़ेगीअप्रत्यक्ष रूप से यूरोप में अटलांटिक गठबंधन की साझा सैन्य ताक़त को संस्थागत रूप यानी नेटो के ज़रिए बढ़ाने से यूरोप और रूस के बीच तनाव बना रहेगाजिससे यूरोप में हमेशा अस्थिरता बनी रहने का डर होगाऐसे हालात के शुरुआती संकेत हम फिनलैंड और स्वीडन के नेटो का सदस्य बनने की कोशिशों के तौर पर देख सकते हैंनेटो में नए सदस्य शामिल होने से यूरोप में संघर्ष को बढ़ावा मिलेगा और यूरोप में परमाणु और पारंपरिक युद्ध का ख़तरा और बढ़ जाएगा.

भविष्य के गर्भ में ज़वाब 

सबसे अहम बात तो ये है कि अमेरिका के साथ रिश्तों में आई मज़बूती से यूरोप के लिए भी एक नई दुविधा पैदा हो गई हैनेटो के यूरोपीय सदस्य देश हमेशा अमेरिका को लेकर सशंकित थेजब अमेरिका ने यूरोपीय देशों से नेटो के बजट और ज़िम्मेदारी का बड़ा बोझ उठाने की बात कही थीआज जबकि यूक्रेन को मदद देने में अमेरिका सबसे आगे है और वो यूरोप में अपनी सेना की तैनाती भी बढ़ा रहा हैतो वो इसके ज़रिए अपने यूरोपीय साझीदारों को ये संदेश दे रहा है कि वो उन्हें मंझधार में नहीं छोड़ने जा रहा है. लेकिनइससे यूरोपीय संघ पर भी सवालिया निशान लगता हैजो ब्रिटेन के अलग होने के बाद सुरक्षा के मोर्चे पर और बड़ी भूमिका निभाने के बारे में विचार कर रहा थाजिससे वो अमेरिका के बग़ैर अपनी हिफ़ाज़त कर सकेनिश्चित रूप से ये दुविधा नेटो समर्थक और यूरोपीय संघ (EU) समर्थकों के बीच टकराव की खाई को और चौड़ा करेगीइन दोनों के बीच तालमेल बिठाना यूरोप के लिए बड़ी चुनौती होगीक्योंकि इसका असर यूरोप महाद्वीप की अन्य अहम मुद्दों जैसे कि चीन के साथ रिश्तोंपूर्वी यूरोप में लोकतंत्र को मज़बूत करने और युद्ध के बाद यूक्रेन के पुनर्निर्माण पर भी पड़ने वाला है.

अटलांटिक के आर-पार के रिश्ते भविष्य में कैसा रूप लेंगे, ये बात बहुत हद तक इस पर निर्भर करेगी कि यूक्रेन के संघर्ष का यूरोप में अमेरिका की सैन्य मौजूदगी पर क्या असर पड़ेगा?

जैसा कि ग्राफ़ से स्पष्ट हैअपने शासनकाल के पहले साल में पश्चिमी यूरोपीय देशों में राष्ट्रपति बाइडेन के प्रति सकारात्मक नज़रिया देखने को मिला हैक्योंकि ट्रंप के शासनकाल में आई उठापटक के बादअटलांटिक गठबंधन को मज़बूती देने से बाइडेन की छवि बेहतर हुई है.

यूक्रेन का युद्ध किस तरह से समाप्त होता हैनेटो ख़ुद को यूरोप में कैसे एक मज़बूत संगठन बनाता है और रूस के ख़िलाफ़ अमेरिका किस तरह यूरोप को मदद देता हैइन सभी सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में हैंजो आने वाले समय में अमेरिका और यूरोप के रिश्तों पर असर डालेंगी.

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Authors

Sameer Patil

Sameer Patil

Dr Sameer Patil is Director, Centre for Security, Strategy and Technology at the Observer Research Foundation.  His work focuses on the intersection of technology and national ...

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Vivek Mishra

Vivek Mishra

Vivek Mishra is Deputy Director – Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. His work focuses on US foreign policy, domestic politics in the US, ...

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