Issue BriefsPublished on Apr 27, 2023
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Towards The Integration Of Emerging Technologies In Indias Armed Forces

“भारतीय सशस्त्र बलों में उभरती टेक्नोलॉजी को एक करने की दिशा में बढ़ने वाले कदम!”

  • Harsh V. Pant
  • Kartik Bommakanti

    भारत इन उभरती प्रौद्योगिकियों के विकास और उपयोग में जरा देर से ही शामिल हुआ है. लेकिन इनके उपयोग और विकास में लगी देरी के बावजूद वह इन उभरती प्रौद्योगिकियों को अपनाने की तेज़ी से कोशिश कर रहा है.

भारत के सशस्त्र बलों के प्रदर्शन में उभरती प्रौद्योगिकियों का उपयोग अहम भूमिका अदा करेगा. आधुनिक युद्ध में इन तक़नीकी नवाचारों के महत्व को सेना की तीनों शाखाएं समझती हैं. हालांकि सभी शाखाओं में इन प्रौद्योगिकियों का विकास एक समान नहीं हुआ है. यह विश्लेषण इस बात का अवलोकन मुहैया करवाता है कि भारतीय सशस्त्र बलों की तीनों शाखाओं ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), साइबर टेक्नोलॉजी और क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी या टेक्नोलॉजी को अपने इकोसिस्टम अर्थात पारिस्थितिक तंत्र में किस हद तक एकीकृत करने में सफ़लता हासिल कर ली है. यह विश्लेषण उनके दृष्टिकोण में मौजूद भिन्नता का मूल्यांकन करते हुए उन विनियामक, संस्थागत और कानूनी मुद्दों की पड़ताल करता है, जो सीमांत प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने में सशस्त्र सेवाओं के प्रयासों की राह में बाधा बने हुए हैं.


एट्रीब्यूशन:  हर्ष वी. पंत और कार्तिक बोम्मकांती, भारतीय सशस्त्र बलों में उभरती टेक्नोलॉजी के एकीकरण की दिशा में बढ़ने वाले कदम!,ओआरएफ़ ओकेशनल पेपर नंबर 392, फरवरी 2023, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन.


परिचय

उभरती प्रौद्योगिकियों की विस्तृत श्रृंखला में से अनेक का सेना उपयोग कर सकती हैं. यह आलेख तीन-साइबर टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी (QT) - और भारतीय सशस्त्र सेनाओं में इन तक़नीकों के उपयोग किस हद तक किया जा रहा है इसकी पड़ताल करता है. सेना की सभी शाखाओं ने उभरती प्रौद्योगिकियों की अहमियत को समझ लिया है, लेकिन वे अभी अपने लाभ के लिए इनका उपयोग नहीं कर रही है.

उभरती प्रौद्योगिकियों में से जिन टेक्नोलॉजी का सैन्य उपयोग किया जा सकता है उसमें साइबर टेक्नोलॉजी सर्वाधिक विकसित है. एक दशक पहले की तुलना में वर्तमान में इस उभरती हुई तक़नीक के बारे में सेना की तीनों शाखाओं के भीतर अधिक जागरूकता देखी जाती है. भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा कुछ समय से AI का अलग-अलग उपयोग किया जा रहा है. इसके उपयोग में ऑटोनॉमस वेपन्स सिस्टम्स अर्थात स्वायत्त हथियार प्रणाली (AWS) और लीथल ऑटोनॉमस वेपन्स सिस्टम्स अर्थात घातक स्वायत्त हथियार प्रणाली (LAWS) शामिल हैं. सेना की तीनों शाखाओं में क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी का उपयोग अभी-अभी शुरू किया गया है. अत: यदि अभी भारतीय सेना पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन किया गया तो यह पर्याप्त उपयोग से पहले कर लिया गया मूल्यांकन साबित होगा.

उभरती प्रौद्योगिकियों में से जिन टेक्नोलॉजी का सैन्य उपयोग किया जा सकता है उसमें साइबर टेक्नोलॉजी सर्वाधिक विकसित है. एक दशक पहले की तुलना में वर्तमान में इस उभरती हुई तक़नीक के बारे में सेना की तीनों शाखाओं के भीतर अधिक जागरूकता देखी जाती है.

भारत इन उभरती प्रौद्योगिकियों के विकास और उपयोग में जरा देर से ही शामिल हुआ है. लेकिन इनके उपयोग और विकास में लगी देरी के बावजूद वह इन उभरती प्रौद्योगिकियों को अपनाने की तेज़ी से कोशिश कर रहा है. यहां किया जा रहा वर्तमान विश्लेषण आक्रामक मिशनों और संचालन में साइबर, AI और क्वॉन्टम प्रौद्योगिकियों के विकास और उपयोग पर ज़्यादा रौशनी नहीं डालता है. बल्कि यह विश्लेषण सशस्त्र सेना की प्रत्येक शाखा में इन तक़नीकी नवाचारों को एकीकृत करने के लिए भारत सरकार (GOI) की क्षमता, संस्थागत संरचना और ताजा निवेश पर नज़र डालता है.

इस आलेख के पहले तीन खंडों में भारतीय सेना की तीन शाखाओं में साइबर टेक्नोलॉजी, AI और क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी के एकीकरण की स्थिति को रेखांकित किया गया हैं. चौथे खंड में इन उभरती प्रौद्योगिकियों के इर्द-गिर्द मौजूदा कानूनों और नियमों की पड़ताल की गई है, जिनकी वज़ह से सशस्त्र बलों के लिए इन प्रौद्योगिकियों का विकास प्रभावित हो सकता है. इसके पश्चात इस आलेख में अन्य देशों की सेनाओं के अनुभवों पर नज़र डाली गई हैं. और अंतत: इस आलेख में भारतीय सशस्त्र सेनाओं के समक्ष इन तकनीकों को एकीकृत करने में भारत को लेकर पेश आने वाली चुनौतियों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई हैं.

टेबल 1. भारतीय सेना में उभरती प्रौद्योगिकियों के उपयोग के लिए प्रासंगिक संरचना.

Towards The Integration Of Emerging Technologies In Indias Armed Forces

स्त्रोत: पीसी कटोच, ‘‘इंर्फोमेशनाइजिंग ऑफ द इंडियन आर्मी : नीड फॉर इंटरल रिफॉर्म,’’ सीएलAWS जर्नल, विंटर 2010, PP. 9-18.

चित्र1. भारतीय वायु सेना के लिए उभरती प्रौद्योगिकियों के उपयोग की प्रासंगिक संरचना

Towards The Integration Of Emerging Technologies In Indias Armed Forces

स्त्रोत: ‘‘इंडियाज् इंटीग्रेटेड एयर कमांड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (IACCS), इंद्रास्त्र, 28 सितंबर, 2015.

सशस्त्र सेवाओं में वर्तमान इस्तेमाल किये जाने वाले ऐप्लीकेशंस

साइबर टेक्नोलॉजी

AI और क्वॉन्टम की तुलना में सर्वाधिक उन्नत साइबर तक़नीक का उपयोग अभी भी विकसित हो रहा है. लेकिन इसने सेना की तीनों शाखाओं का ध्यान सबसे ज़्यादा आकर्षित किया है. साइबर तक़नीक का उपयोग साइबरस्पेस के माध्यम से संचार के लिए किया जा रहा है. इसी प्रकार साइबर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल रक्षात्मक सुरक्षा के लिए भी हो रहा है.

  1. नौसेना

भारतीय नौसेना ने सरकार के स्वदेशीकरण अभियान के तहत सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो (SDR) को एकीकृत करना शुरू कर दिया है. डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन अर्थात रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (DRDO), सेंटर फॉर द डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कम्युटिंग एंड वेपन्स एंड इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम्स इंजीनियरिंग इस्टैब्लिशनमेंट (WESEE) तथा भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) मिलकर नौसेना के लिए SDR को विकसित करने में जुटे हुए हैं. फिक्स्ड अर्थात स्थिर और मोबाइल अर्थात घुमंतू नौसेना बलों के लिए सुरक्षित वायरलेस संचार के लिए इसका उपयोग SDR नेवल कॉम्बैट (NC), SDR टैक्टिकल (टीएसी), SDR मैनपैक (एमपी), और SDR हैंड हेल्ड (HH) में किया जाएगा.[1] सरकारी स्वामित्व वाली BEL ने नौसेना को SDR देने के लिए 2019 में एक बड़ा अनुबंध भी हासिल किया. यह नौसेना को सूचना-साझाकरण और स्थितिजन्य जागरूकता बढ़ाने में सहायक साबित होगा.[2],[3] नौसेना के WESEE ने सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (C-DAC) के साथ मिलकर काम करते हुए SDR का सह-विकास किया है. इसमें WESEE ने BEL को उत्पादन भागीदार के रूप में सूचीबद्ध किया है.[4] इसके अलावा, पुराने सिस्टम अर्थात प्रणाली पर चलने वाले हार्डवेयर आधारित संचार को अब सॉफ्टवेयर आधारित मल्टी-बैंड, मल्टी-फंक्शनल और मल्टी-मिशन प्लेटफॉर्म में बदला जा रहा है.[5]

WESEE ने सॉफ्टवेयर विकास और रखरखाव परियोजनाओं[6] के लिए ‘‘केपेबिलिटी मैच्युरिटी मॉडल इंटीग्रेशन (CMMI) अर्थात क्षमता परिपक्वता मॉडल एकीकरण’’ लेवल 3 की रेटिंग हासिल कर ली है. CMMI सॉफ्टवेयर, उत्पाद और सेवा विकास में जोख़िमों को कम करके उत्पादकता और दक्षता बढ़ाने में संगठनों की सहायता करने वाली प्रक्रिया और व्यवहारिक आचरण में सुधार के लिए एक प्रक्रिया विकास साधन के रूप में उभरा है.[7]

CMMI के विकास में अमेरिकी रक्षा विभाग (DOD) ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आमतौर पर अमेरिका के सभी DOD और अमेरिकी सरकार के सॉफ्टवेयर विकास अनुबंधों में CMMI आवश्यक है.[8] WESEE ऐसा एकमात्र भारतीय रक्षा संगठन है जो ‘‘विकास और आपूर्तिकर्ता अनुबंध प्रबंधन के लिए CMMI 2.0 लेवल 3’’ का मूल्यांकन हासिल करने में सफ़ल रहा है.[9]

भारतीय नौसेना का अपना इंट्रानेट या इन्क्रिप्टेड साइबर संचार नेटवर्क है, जिसे नेवल यूनिफाइड डोमेन (NUD) के रूप में पहचाना जाता है.[10] NUD मुख्य रूप से नौसेना का आंतरिक साइबर नेटवर्क है, जो केवल अत्यधिक विनियमित या नियंत्रित डेटा का संचालन करता है, जिसकी वज़ह से आसान सेग्रीगेशन अर्थात अलगाव और एनलिसिस अर्थात विश्लेषण करना संभव हो पाता है.[11]  NCO मिशनों और शांतिकाल के सामान्य मिशनों के लिए एक साइबर नेटवर्क बनाए रखने के लिए नौसेना के पास लगभग 400 सुविधाएं हैं. इनमें अंडरवॉटर अर्थात पानी के नीचे, सतह, हवा और तट पर कई सहायक संयंत्र स्थापित हैं, जो स्थानीय क्षेत्र नेटवर्क (LNN), वाइड एरिया नेटवर्क (WAN) और मेट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क (MAN) के माध्यम से जुड़े हुए हैं.[12] ये नेटवर्क नेवी एंटरप्राइज़ वाइड नेटवर्क (NEWN) द्वारा लचीले ढंग से समर्थित होते हैं, जिसमें 30 नौसैनिक ठिकानों पर फाइबर ऑप्टिक केबल का एक सघन सेट शामिल है.[13]  इसके अतिरिक्त, नौसेना का संचार ऑटोमैटिक मैसेज स्विचिंग सिस्टम अर्थात स्वचालित संदेश स्विचिंग सिस्टम (SAMSS) सामरिक जानकारी के निर्माण की सुविधा प्रदान करते हुए नई दिल्ली स्थित युद्ध कक्ष को सभी संचार केंद्रों और सभी समुद्री संचालन केंद्रों में प्रोजेक्ट ओडीओसी से जोड़ता है.[14]

कई अन्य प्रणालियां भी कार्यरत हैं. इसमें कम्प्यूटरीकृत एक्शन इंफॉर्मेशन सिस्टम (CAIS), सारांश सबमरीन कॉम्बैट सिस्टम (SSCS), सामरिक उन्नत हल्के हेलीकाप्टरों के लिए सामरिक संचार प्रणाली (ALH) तथा त्रिनेत्र स्टैंड अलोन एंड नेटवर्क सिक्योरिटी सिस्टम (TSANSS) शामिल हैं. इसके अलावा ओडीओसी और टीएमएस जैसी टेक्टीकल डिसिजन सपोर्ट सिस्टम अर्थात सामरिक निर्णय सहायक प्रणाली वेपन इक्विपमेंट डिपो (WED), कम्प्यूटराइजेशन एंड नेटवर्किन्ग ऑफ डॉकयार्ड्स (C&ND) तथा इंटीग्रेटेड लॉजिस्टिक्स मैनेजमेंट सिस्टम (ILMS) भी उपलब्ध हैं.[15]

SDR विकास, ज़िम्मेदारी वाले क्षेत्र में इष्टतम या पर्याप्त उपग्रह कवरेज, विश्व व्यापी वेब से कहीं बेहतर इंक्रिप्शन सिस्टम में नौसेना सबसे अग्रणी है.[16] इसके साथ ही नौसेना क्वॉन्टम नेटवर्क, क्वॉन्टम क्रिप्टोग्राफी, लेजर संचार, और अति-उच्च क्षमता वाले वायरलेस नेटवर्क के विकास में भी तेज़ी से काम कर रहा है. लेकिन उसे इन कार्यों में सफ़लता मिलने में अभी एक दशक का वक़्त लगने की संभावना है.[17] इन सब प्रयासों की वज़ह से ही नौसेना एक नेटवर्क-केंद्रित बल या नेटवर्क सेंट्रिक वारफेयर (NCW) विकसित करने के लिए तैयार होने वाली पहली सैन्य शाखा बन सकती है.

जैसा कि पूर्व चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत ने एक बार कहा था, नौसेना साइबर युद्ध क्षमताओं में वायु सेना और थल सेना से काफ़ी आगे निकल गई है.[18] नौसेना ने अपनी संचार और निर्णय समर्थन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए साइबर टेक्नोलॉजी का उपयोग करने को प्राथमिकता देने में तेज़ी दिखाई है. नौसेना ने अपने साइबर नेटवर्क की सुरक्षा में सुधार करने के लिए भी निवेश किया है, ताकि कमांड के स्तर पर, एक्रॉस प्लेटफॉर्म्स अर्थात विभिन्न शाखाओं के बीच होने वाली बातचीत, कमांड मुख्यालय और बेस इंस्टॉलेशन के बीच होने वाले संचार में शत्रुतापूर्ण साइबर घुसपैठ को रोका जा सके.[19]

 

  1. वायुसेना

वायु सेना के पास भी नौसेना और थल सेना की तरह ही एक आंतरिक साइबर सिक्यूरिटी एंड साइबर वॉरफेयर ग्रुप अर्थात साइबर सुरक्षा और साइबर युद्ध समूह मौजूद है. वायु सेना ने शांति और युद्ध दोनों ही वक़्त की आवश्यकताओं को डिजिटाइज़ करने के उपायों को संग्रहित और स्थापित करना शुरू कर दिया है. नवाचारों की वज़ह से उत्पन्न होने वाली सुरक्षा आवश्यकताओं को वायु सेना ने पहचान लिया है.[20] उसने इसे ध्यान में रखकर डिजिटल तकनीकों को अपनाना शुरू कर दिया है. वायु सेना के इन-हाउस डेवलपमेंट इन्स्टीट्यूट, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (SDI), कंप्यूटर सॉफ्टवेयर से संबंधित आवश्यकताओं की एक विस्तृत श्रृंखला को उपलब्ध करवाने में सक्षम है. 1980 के दशक की शुरूआत से ही, कर्नाटक के बेंगलुरु में स्थित, SDI का ध्यान सॉफ्टवेयर ड्रिवन इंटीग्रेशन अर्थात सॉफ्टवेयर संचालित एकीकरण और सॉफ्टवेयर को विमान में एम्बेड करने अथवा स्थापित करने पर रहा है.[21]  SDI की ओर से होने वाली पहल के चलते आधुनिक सैन्य उड्डयन के लिए विभिन्न प्रकार की मांगों और आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती हैं, जिसमें एवियोनिक्स अर्थात वैमानिकी, नैविगेशन अर्थात जहाज़ी विद्या से जुड़े सॉफ्टवेयर, हथियार प्रणाली और सेंसर शामिल हैं. SDI के माध्यम से, वायु सेना एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स कोर्स (SEC) चलाती है. SEC की भूमिका एवियोनिक्स और विभिन्न प्लेटफार्मों में सॉफ्टवेयर-संचालित हथियारों का एकीकरण करने वाले सॉफ्टवेयर को विकसित और उन्नत करना है.[22]

वायु सेना की पुरानी निगरानी, सर्वेलन्स अर्थात चौकसी और संचार की जगह अधिक उन्नत डिजीटल संचार नेटवर्क स्थापित किया जा रहा है. BEL द्वारा विकसित वायु सेना नेटवर्क (AFNET) वायु सेना के साइबर सिस्टम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. 2010 में जब इसे लॉन्च किया गया तो यह वायु सेना का एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (IACCS) में पहला सेगमेन्ट अर्थात हिस्सा बन गया था. वायु सेना की पुरानी ट्रोपोस्कैटर संचार टेक्नोलॉजी का स्थान लेने वाला AFNET एक उच्च-बैंडविड्थ 500-एमबीपीएस डिजिटाइज्ड इन्क्रिपटेड संचार नेटवर्क है. वायु सेना का IACCS, AFNET का आधार लेकर ही काम करता है. यह अब वायु सेना की NCW रणनीति का अभिन्न अंग बन गया है.[23] वायु सेना का डिजीटल संचार और डेटा स्थानांतरण, सैटेलाइट कम्युनिकेशंस (SATCOM), वाइड एरिया नेटवर्क (WAN) और इंटरनेट प्रोटोकॉल (IP) को एकीकृत करने वाले एएनएनईटी पर निर्भर है. वायु सेना का स्टैटिक अर्थात स्थिर और मोबाइल ऐसेट्स और इंस्टॉलेशन अर्थात स्थापित संयंत्र, एक सुरक्षित संचार नेटवर्क, WAN के माध्यम से जुड़े हुए हैं.

नौसेना की तरह ही वायु सेना ने भी सुरक्षित टू-वे संचार को इन्क्रिपटेड अर्थात गोपनीय जानकारी को सुरक्षा कवच उपलब्ध करवाने के लिए SDR में निवेश किया है. SDR का कुछ हिस्सा आयात किया गया है. लेकिन अब वायु सेना घरेलू स्रोतों से SDR प्राप्त करने लगी है.

AFNET के ओपन आर्किटेक्चर अर्थात खुली संरचना को अत्याधुनिक ह्यूमन मशीन इंटरफेस (HMI) के साथ एकीकृत भी किया गया है. इसका उपयोग करते हुए निर्णयकर्ता मानव रहित हवाई वाहन (UAV) और इमेजरी इंटेलिजेंस अर्थात दृश्य आधारित गोपनीय जानकारी (आईएमआईएनटी) के माध्यम से केंद्रीकृत सुविधाओं या पर्याप्त दूरी पर स्थित प्रतिष्ठानों से लाइव विजुअल्स अर्थात दृश्यों को तुरंत पहुंचाया जा सकता है.[24] AFNET के माध्यम से IACCS ग्राउंड-बेस्ड अर्थात भूमि स्थित और एयर-बॉर्न अर्थात वायुवाहित सेंसर, कमांड एंड कंट्रोल (C&सC) नोड्स और एयर डिफेंस (AD) वेपन सिस्टम को एकीकृत करने वाले सभी ऑपरेशनों को अंजाम देने में सक्षम होता है.[25]

नौसेना की तरह ही वायु सेना ने भी सुरक्षित टू-वे संचार को इन्क्रिपटेड अर्थात गोपनीय जानकारी को सुरक्षा कवच उपलब्ध करवाने के लिए SDR में निवेश किया है. SDR का कुछ हिस्सा आयात किया गया है. लेकिन अब वायु सेना घरेलू स्रोतों से SDR प्राप्त करने लगी है. 2015 में स्वदेशी घरेलू उद्योग को प्रोत्साहित करने का रोडमैप अर्थात दिशा-निर्देश जारी किए गए. इस रोडमैप को अब 2025 तक विस्तारित कर दिया गया है. इस रोडमैप के हिस्से के रूप में वायुसेना भी स्वदेशी घरेलू उद्योग को प्रोत्साहित कर रही है.[26] वायु सेना ने बैटलस्पेस अर्थात युद्धक्षेत्र में विमान संचार और नेटवर्क को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए प्रौद्योगिकियों, विशेष रूप से साइबर को हासिल करने की इच्छा प्रकट की है. लेकिन वायु सेना की प्रौद्योगिकियों से जुड़ी यह मांग केवल साइबर क्षेत्र तक सीमित नहीं है.

रोडमैप के अनुसार, वायु सेना की संचार ज़रूरतों को महत्वपूर्ण बैंडविड्थ आवश्यकताओं को पूरा करने वाला होना चाहिए. इसके साथ ही इसे हाई डेटा रेट्स अर्थात तीव्र गति से डेटा/जानकारी का आदान-प्रदान करने वाला होना चाहिए, जो वॉयस डेटा, इमेजरी और वीडियो ट्रांसमिशन को कवर करने में सक्षम साबित होगा. रोडमैप के तहत ही वायु सेना का इरादा उच्च-सुरक्षा नेटवर्क को हासिल करने का है. ऐसा होने पर वायु सेना को शक्तिशाली इंक्रिप्शन और डिक्रिप्शन क्षमता हासिल हो सकेगी.[27] वायु सेना के वर्तमान प्रमुख वी.आर. चौधरी ने 2022 में कहा था कि वायु सेना DRDO, शिक्षा जगत और उद्योग के साथ साइबर और AI डोमेन में विशिष्ट क्षमताओं को विकसित करने के लिए सहयोग कर रही थी.[28]

  1. c. थलसेना

अन्य दो सेनाओं के मुकाबले थल सेना नई प्रौद्योगिकियों को अपनी योजना में शामिल करने में भले ही पीछे छूट गई है, लेकिन उसने साइबर टेक्नोलॉजी और अपनी साइबर युद्ध क्षमताओं को विकसित करने के लिए विभिन्न पहल आरंभ करते हुए इस काम को गति प्रदान कर दी है. कोर ऑफ सिग्नल (CoS) और सूचना प्रणाली महानिदेशालय (DGIS) थल सेना की साइबर क्षमताओं का संस्थागत आधार हैं. वे नेटवर्क सेंट्रिक वारफेयर अर्थात नेटवर्क आधारित युद्ध (NCW) और किसी भी अन्य प्रासंगिक सैन्य मिशनों और संचालन के लिए सामरिक और परिचालन स्तर के संसाधन उपलब्ध कराने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं. दरअसल, NCW एक ऐसा अतिव्यापी कार्य है, जिसमें COS तथा DGIS दोनों ही काम करते हैं. लेकिन, बुनियादी और उन्नत प्रशिक्षण के लिए COS ही मुख्य रूप से ज़िम्मेदार होता है (टेबल 2 देखें). COS तथा DGIS दोनों ही सेना के विभिन्न कमांड सेंटरों के बीच संपर्क सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाते हैं. मिलिट्री कॉलेज ऑफ टेलीकम्युनिकेशंस इंजीनियरिंग (MCTI) अपनी अत्याधुनिक साइबर रेंज और साइबर लैब के माध्यम से साइबर युद्ध में प्रशिक्षण का आयोजन करता रहता है.[29]

थल सेना के अनेक साइबर-संबंधित संचार और सूचना प्रणालियों को एकीकृत किया जा रहा है. शीर्ष स्तर पर, सेना के सर्विस हेडक्वॉर्टर (HQ) अर्थात सेना मुख्यालय और थल सेना के कमांड HQ अर्थात मुख्यालय को अभी डिजिटल रूप से जोड़ा जा रहा है या पहले से ही जोड़ा जा चुका है. जिन अप्पर कमांड सेंटर्स अर्थात उच्च  कमांड केंद्रों को एकीकृत किया जा रहा है, उनमें टैक्टिकल कम्युनिकेशंस सिस्टम (TCS), कमांड इंफॉर्मेशन एंड डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (CIDSS), बैटलफील्ड सर्विलांस सिस्टम (BSS) और बैटल मैनेजमेंट सिस्टम (BMS) शामिल हैं. व्यापक यूजर ट्रायल्स अर्थात उपयोगकर्ता परीक्षणों के बाद पहली बार 2011 में CIDSS को चालू किया गया था. थल सेना की संपूर्ण साइबर प्रणाली को जोड़ने वाले 58 नोड्स हैं, जिसमें एप्लिकेशन सॉफ्टेयर, प्राइम मूवर, आवश्यक हार्डवेयर और शेल्टर्स शामिल हैं.[30] हालांकि, सामरिक और परिचालन स्तर पर, साइबर-आधारित या डिजिटाइज्ड कनेक्टिविटी का लक्ष्य अभी तक हासिल नहीं हो सका है.

इस सहयोग को मोदी सरकार की फ्लैगशिप अर्थात प्रमुख आत्मनिर्भर पहल के तहत आगे बढ़ाया जा रहा है. इस पहल का उद्देश्य स्वदेशी निजी उद्यम, स्टार्टअप और शिक्षाविदों के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास को बढ़ावा देना है.

डिफेंस प्रोडक्शन बोर्ड अर्थात रक्षा उत्पादन बोर्ड (DPB) को साइबर कनेक्टिविटी और एप्लिकेशन के BMS वाले हिस्से को आगे बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अत: BMS को 2018 में बंद कर दिया गया. वॉरफेयर अर्थात युद्ध और सेना के मिशनों पर लागू सभी तक़नीकी नवाचारों की संकल्पना करने और उसका विकास करने की ज़िम्मेदारी DPB की होती है.[31] BMS के बंद होने की वज़ह से डिजिटाइज्ड फाइटिंग फोर्स अर्थात डिजिटल रूप से सक्षम सशस्त्र बलों की वकालत करने वाले लोगों के प्रयासों को तगड़ा झटका लगा था.[32] BMS के तहत थल सेना की बटालियन और कॉम्बैट अर्थात लड़ाकू समूह-स्तरीय इकाइयों को एकीकृत किया जाना था. लेकिन थल सेना के नेतृत्व ने BMS का परीक्षण और उसे मोर्चे पर लगाना आवश्यक नहीं समझा. उनकी नज़रों में यह हतोत्साहजनक रूप से ख़र्चीला साबित हो रहा था.

BMS की कुल लागत 30 बिलियन रुपए आंकी गई है. इस आलेख के लिखे जाने तक तो इसके आसार नहीं दिखाई दे रहे थे कि थल सेना यह ख़र्च करने वाली है.[33] सेना के आकलन के अनुसार BMS की अत्यधिक लागत के अलावा BMS के तहत प्रत्येक सैनिक को एक हैंडहेल्ड कंप्यूटर से लैस किया जाना था. इसके अलावा एक मिनिएचराइज्ड टेक्टिकल कम्प्यूटर्स अर्थात लघु सामरिक कंप्यूटरों को प्रत्येक युद्ध समूह, इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल्स (IFVs) और युद्धक टैंकों के मुख्यालय से एकीकृत किया जाना था.[34] इसका उद्देश्य भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) जैसे अन्य सूचना स्रोतों को एकीकृत करके एक कॉमन ऑपरेशनल पिक्चर अर्थात सामान्य परिचालन चित्र तैयार करने का था.[35]

प्रारंभिक चरण में 2012 की समय सीमा को चूकने वाले BMS की विशेषता लाइटवेट इक्वीपमेंट अर्थात हल्के उपकरण, लॉन्ग रेंज कम्युनिकेशन्स अर्थात लंबी दूरी के संचार को पोर्टेबल उपग्रह संचार के माध्यम से एकीकृत करते हुए प्लाटून स्तर को प्रेषित करना होता है. इसके साथ ही BMS एर्गोनॉमिक्स अर्थात कर्मचारी परिस्थिति विज्ञान पर भी ध्यान देता है. BMS की प्राप्ति के लिए सेंसर एकीकरण बेहद अहम होता है. BMS का सामान्य उद्देश्य एक चुस्त सेंसर-टू-शूटर क्षमता का निर्माण करना है. BMS को बटालियन और लड़ाकू समूहों के स्तर पर निर्णय समर्थन कार्यों और परिचालन स्थितिजन्य जागरूकता को कवर करने वाले कार्यों की एक श्रृंखला को सक्षम करने के लिए भी संकल्पित किया गया है.

हालांकि, BMS हर एक सैनिक और लड़ाकू मंच को भी जोड़ता है. इसके साथ ही BMS CIDSS के माध्यम से सामरिक कमांड, नियंत्रण, संचार और सूचना (TAC3I) प्रणाली के लिए बटालियन और रेजिमेंटल कमांडर के ऊपरी विभागों से जुड़ा हुआ होता है, जिसकी वज़ह से यह एक आम और केंद्रीकृत परिचालन चित्र प्रदान करने में सहायक साबित होता है. (टेबल 1 देखें) TAC3I को सेना की सामरिक कमांड प्रणाली को एकीकृत करने का काम सौंपा गया था. उसे यह ज़िम्मेदारी अभी दी जा सकती है. सेना के निम्नतम से उच्चतम विभागों को जोड़ने वाला BMS सेना को गतिशीलता और हाई डेटा रेट्स अर्थात उच्च डेटा गति के हस्तांतरण की सुविधा उपलब्ध करवाता है.[36] लेकिन थल सेना अब भी पारंपरिक और विरासती संचार के युग में फंसी हुई है. सेना आज भी डेटा-केंद्रित होने के बजाय आवाज-केंद्रित संचार केंद्रित व्यवस्था पर भरोसा करती है. BMS को यदि और जब भी मोर्चे पर लगाया जाएगा, तो यह सेना के उच्च-बैंडविड्थ, लंबी दूरी के संचार में उल्लेखनीय सुधार करने में सफ़ल होगा. इसका नेटवर्क तेज़ी से परिनियोजन के लिए अनुकूल होगा, जो निरंतर रोलिंग कवरेज और इंटरऑपरेबिलिटी के संयोजन के साथ सेल्फ-कॉन्फिगरिंग और कस्टमाइजेबल अर्थात अनुकूलन योग्य भी है.[37] BMS, जब साकार होगा तो उसको ऑल-पॉइंट या नेटवर्क टोपोलॉजी की आवश्यकता होगी.[38]

सेना ने क्लाउड नेटवर्क के माध्यम से ऑटोमेशन अर्थात स्वचालन को अपनाने में तेज़ी दिखाई है. अन्य दो सेनाओं की तरह ही थल सेना भी सुरक्षित द्वि-दिशात्मक संचार के लिए SDR प्राप्त कर रही है. थल सेना ने SDR की खरीद कर उसका उपयोग करने के लिए निविदाएं जारी की हैं. लेकिन SDR को एकीकृत करने के थल सेना के प्रयासों को 'मैन-पोर्टेबिलिटी' की ज़रूरतों को ध्यान में रखना होगा. अत: थल सेना के लिए उपयोगी SDR को पर्याप्त रूप से छोटा किया जाना चाहिए, ताकि इसकी वज़ह से पैदल सेना कर्मियों की गतिशीलता प्रभावित न हो.[39]

टेबल 2. उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए भारतीय सेना का प्रमुख प्रशिक्षण और आरएंडडी अर्थात अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान.

Towards The Integration Of Emerging Technologies In Indias Armed Forces

स्त्रोत: ‘‘सिग्नल कोर’’, भारतीय सेना, भारत सरकार; शिल्पी चक्रवर्ती, ‘‘जियोस्पैटियल ए क्रुशियल कम्पोनेंट ऑफ द इंडियन आर्मी - लेफ्टिनेंट जनरल अनिल कपूर वीएसएम, महानिदेशक सूचना प्रणाली,’’ जियोस्पैटियल वर्ल्ड, 19 अप्रैल, 2018.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

AI का उपयोग करने के मामले में सेना की तीनों शाखाएं अभी भी शुरूआती चरण में ही हैं. तीनों शाखाओं के समक्ष साइबर टेक्नोलॉजी के इष्टतम उपयोग को प्रभावित करने वाली समस्याएं ही AI के मामले में भी दिखाई देती हैं.

  1. नौसेना

नौसेना का पहले से ही अर्ध-स्वायत्त रूप में हथियारों का उपयोग करने का इतिहास रहा है. मसलन, नौसेना 2020 से ख़ुफ़िया निगरानी और टोही (ISR) मिशन के लिए मुख्यत: ड्रोन या मानव रहित हवाई वाहन (UAV) का उपयोग करती आ रही है.[40] नौसेना सर्चर II UAV का उपयोग तो करती है, लेकिन उसने अभी तक कॉम्बैट अर्थात लड़ाकू UAV को हासिल नहीं किया है. वर्तमान में, नौसेना को AI का अनेक क्षेत्रों में उपयोग करने पर विचार करना चाहिए, जिनमें नौसेना की टैक्टिकल अर्थात सामरिक डेटा लिंक (TDL) प्रणाली, मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस अर्थात समुद्री क्षेत्र जागरूकता (एमडीए) और कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम अर्थात मुकाबला प्रबंधन प्रणाली (CMS) का समावेश हैं.[41]  ब्लू वाटर फोर्स बनने की इच्छुक भारतीय नौसेना के लिए TDL बेहद अहम है. इसके अलावा TDL, 2015-2030 तक भारतीय नौसेना स्वदेशीकरण योजना (INIP) का अभिन्न हिस्सा भी है.[42]

संचार टेक्नोलॉजी में बड़े पैमाने पर हुई प्रगति का लाभ उठाने के अलावा भी एक विश्वसनीय TDL प्रणाली स्थापित करने के लिए AI में निवेश आवश्यक होगा. यह निवेश इसलिए भी ज़रूरी है ताकि TDL प्रणाली, व्यापक रूप से समुद्र में बिखरे हुए सभी नौसेना जहाजों के बीच इंटरऑपरेबिलिटी अर्थात पारस्परिकता या अंतरसक्रियता स्थापित कर उन्हें सिस्टम से जोड़ने का काम कर सकें.[43] इसका उद्देश्य कम से कम नौसेना में AI के माध्यम से अधिक से अधिक स्थितिजन्य जागरूकता पैदा करना है. नौसेना इस बात से अवगत है कि फ्यूजिंग सेंसर डेटा अर्थात विभिन्न स्त्रोतों से उपलब्ध जानकारी को एकत्रित करने से नौसेना के लिए युद्ध के माहौल में नौसेना अधिक सटीकता से काम करने में सक्षम बन सकेगी.[44] ऑन-शोर अर्थात तटवर्ती इकाइयां भी AI का उपयोग कर सकती हैं. नौसेना जिन क्षेत्रों में इनका उपयोग करने का विचार कर रहा है उसमें लॉजिस्टिक्स अर्थात सैन्य तंत्र, मानव संसाधन (HR), डॉकयार्ड प्रबंधन और प्रशिक्षण के क्षेत्र शामिल है.[45] वर्तमान में उपरोक्त क्षेत्र पर्सनेल-इंटेंसिव अर्थात कार्मिक-गहन बने हुए हैं. इन क्षेत्रों में AI का उपयोग होने पर इन क्षेत्रों में अधिक दक्षता लाने में सफ़लता मिलेगी.[46]  इंडियन नेवल सर्विस (INS) वलसुरा, अनेक टेक्नोलॉजी कंपनियों जैसे इंटरनेशनल बिजनेस मशीन (IBM), गुगल, इंफोसिस और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) के साथ परामर्श कर रही है, ताकि वह AI का लाभ उठाने में सफ़ल हो सकें.[47]

नौसेना अपनी नई पीढ़ी के युद्धपोतों के लिए ऑटेमेटेड टेक्नोलॉजी अर्थात स्वचालित टेक्नोलॉजी जैसे इंटीग्रेटेड प्लेटफॉर्म मैनेजमेंट सिस्टम अर्थात एकीकृत प्लेटफार्म प्रबंधन प्रणाली (IPMS) के उपयोग को भी एकीकृत कर रही है.[48] नौसेना की नई पीढ़ी के प्लेटफार्मों में IPMS का उपयोग प्रपल्शन अर्थात संचालक शक्ति, बिजली निर्माण और वितरण, ऑक्जीलरिज् अर्थात सहायक सेना, डैमेज कंट्रोल अर्थात क्षति नियंत्रण, स्टीयरिंग और स्थिरीकरण के नियंत्रण और निगरानी के लिए किया जाएगा.[49] नौसेना के जहाजों में ऑटोमेटेड ‘‘इंटेलिजेंस’’ अर्थात स्वचालित ‘‘बुद्धिमत्ता’’ न केवल केंद्रीय प्रोसेसर में, बल्कि उपकरणों में भी सन्निहित है.[50] नौसेना के पूर्व अधिकारी स्वीकार करते हैं कि AI और मशीन लर्निंग (ML) मनुष्यों की जगह तो नहीं ले सकते, लेकिन इनकी सहायता से कर्मचारियों के प्रदर्शन में सुधार देखा जा सकता है.[51] ऐसे में AI और ML की ताकत और उसकी कमज़ोरियों दोनों की ही सराहना की जाती है.  AI और ML टेक्नोलॉजी को प्रशिक्षण और आत्मसात करने के क्षेत्र में, नौसेना INS वलसुरा में एक सेंटर ऑफ एक्सलेंस अर्थात एक उत्कृष्टता केंद्र (COE) को स्थापित करने की दिशा में काम कर रही है. इसी वज़ह से 2020 में एक AI और बिग डेटा एनालिसिस (BDA) प्रयोगशाला वलसुरा में ही निर्धारित स्थान पर स्थापित की गई थी.[52]  ऐसे में AI और ML की ताकत और उसकी कमज़ोरियों दोनों की ही सराहना की जाती है.  AI और ML टेक्नोलॉजी को प्रशिक्षण और आत्मसात करने के क्षेत्र में, नौसेना INS वलसुरा में एक सेंटर ऑफ एक्सलेंस अर्थात एक उत्कृष्टता केंद्र (COE) को स्थापित करने की दिशा में काम कर रही है. इसी वज़ह से 2020 में एक AI और बिग डेटा एनालिसिस (BDA) प्रयोगशाला वलसुरा में ही निर्धारित स्थान पर स्थापित की गई थी.[53]

इन पहलों से परे भी, नौसेना ने BEL के साथ एक मेमोरैंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MoU) अर्थात समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं. MoU की शर्तों के तहत, नौसेना और BEL मिलकर AI, क्वॉन्टम कंप्यूटिंग, और रोबोटिक्स जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए एक टेक्नोलॉजी इन्क्यूबेशन फोरम अर्थात टेक्नोलॉजी इनक्यूबेशन फोरम (TIF) की स्थापना करेंगे.[54] रक्षा मंत्रालय (MoD) के अनुसार इस फोरम को व्यापक आदेश दिया गया है: ‘‘TIF के व्यापक चार्टर में हथियार और सेंसर, सूचना टेक्नोलॉजी और उभरती प्रौद्योगिकियों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड मशीन लर्निंग, क्वॉन्टम कंप्यूटिंग, स्वायत्त प्लेटफार्मों/ रोबोटिक्स, इमेज प्रोसेसिंग और संज्ञानात्मक रेडियो के क्षेत्र में टेक्नोलॉजी विकास शामिल है.’’[55]

इस सहयोग को मोदी सरकार की फ्लैगशिप अर्थात प्रमुख आत्मनिर्भर पहल के तहत आगे बढ़ाया जा रहा है. इस पहल का उद्देश्य स्वदेशी निजी उद्यम, स्टार्टअप और शिक्षाविदों के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास को बढ़ावा देना है.[56] इस पहल के फलस्वरूप ही भारत सरकार ने अमेरिकी निर्माता जनरल एटॉमिक्स से 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कीमत पर मिलने वाले 30 प्रीडेटर ड्रोन (जो LAWS हैं) की ख़रीद नहीं करने का फ़ैसला लिया है. इन एलएडब्ल्यू को ख़रीदने के बजाय भारत सरकार ने अब घरेलू स्तर पर इन्हें विकसित करने की क्षमता हासिल करने का फ़ैसला किया है.[57] भारत और अमेरिका अभी भी 30 प्रीडेटर ड्रोन की खरीद के सौदे को पुनर्जीवित कर सकते हैं. इन 30 ड्रोन में तीनों भारतीय सशस्त्र सेनाओं को 10-10 ड्रोन मिलेंगे.[58]  स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर (IAC) के परफॉर्मेन्स कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम (CMS) को बढ़ाने के लिए ख़तरों का पता लगाने और उनसे निपटने में सहायक AI को भी विकसित किया जा रहा है.[59]  यह IAC के सेंसर-टू-शूटर लूप में काफ़ी सुधार करने में सक्षम साबित होगा.[60]

  1. एयर फोर्स

वायु सेना का पहले से ही AI का अर्ध-स्वायत्त रूप में उपयोग करने का इतिहास रहा है. एक अनुमान है कि भारतीय वायु सेना के अंतर्गत UAV के पांच स्क्वाड्रन कार्यरत हैं,[61]  हालांकि इनकी सटीक संख्या क्लासीफाइड अर्थात गोपनीय हैं.[62]  इन UAV में हेरॉन और सर्चर II UAV का कॉम्बीनेशन अर्थात मिश्रण शामिल है और नौसेना की तरह, इनको मुख्य रूप से ISR मिशनों के लिए समर्पित रखा गया हैं.[63]  वायु सेना की इजरायली हार्पी और हारोप जैसे मानव रहित लड़ाकू हवाई वाहन (UCAV) प्राप्त करने में भी रुचि है. यह UCAV, सप्रेशन ऑफ एनिमी एयर डिफेंसेस् (SEAD) अर्थात शत्रु की वायु सुरक्षा का दमन करने अथवा उन्हें दबाने के लिए अमल में लाए जाने वाले मिशन में शामिल होकर लक्ष्यों को ट्रैक करने, पहचानने और नष्ट करने के साथ ही रडार उत्सर्जकों को नष्ट करने में सक्षम होते हैं.[64] वायु सेना ने अभी तक इन LAWS को तैनात नहीं किया है.

हालांकि AI का अधिक समकालीन और उन्नत उपयोग अब भी प्रारंभिक अवस्था में ही हैं. लेकिन वायु सेना अनेक क्षेत्रों में इसके उपयोग की अहमियत को समझने की दिशा में आगे बढ़ रही है. पूर्व वायु सेना प्रमुख (CAS) राकेश कुमार सिंह भदौरिया कहते हैं कि वायु सेना AI का उपयोग ख़तरे की निगरानी, प्रशिक्षण, डेटा और इंटेलिजेंस फ्यूजन के साथ-साथ डिसिजन सपोर्ट अर्थात निर्णय का समर्थन करने वाले क्षेत्रों में करने को उत्सुक है.[65]ऑटोमेशन अर्थात स्वचालन को अपनाने पर भी विचार किया जा रहा है. लेकिन एल्गोरिदम्स् वास्तव में क्या कर सकते है इसे लेकर पुख़्ता सबूत न होने की वज़ह से ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है. भदौरिया कहते हैं कि जटिल मिशनों को निष्पादित करने में AI की क्षमता को एल्गोरिदम कैसे रेखांकित करता है, यह देखते हुए, सवाल यह है कि क्या वे अनप्रेडिक्टेबल कॉम्बैट एनवार्यमेंट अर्थात अप्रत्याशित युद्ध माहौल वातावरण का जवाब कैसे देंगे, इसे लेकर अब भी काफ़ी कुछ जानना बचा है. ऐसे में भदौरिया ने बात को देखते हुए कहा कि हवाई युद्ध रणनीतियों को लागू करने का काम मशीनों को ‘‘सिखाया’’ जा सकता है, इस बात को लेकर वे अब भी अनिश्चितता वाली स्थिति में ही है.[66]

 

  1. थल सेना

थल सेना अब भी AI को अंगीकृत करने में पिछड़ी हुई ही है. आंतरिक रूप से, थल सेना ने सेना टेक्नोलॉजी बोर्ड (ATB) की स्थापना की है. ATB पहले सेना प्रशिक्षण कमान (ARTRC) के मुख्यालय के अधीन था, लेकिन अब ATB नई दिल्ली स्थित आईए मुख्यालय में पर्सपेक्टिव प्लानिंग अर्थात परिप्रेक्ष्य योजना (PP) निदेशालय के तहत आता है.[67] ATB का भारतीय टेक्नोलॉजी संस्थानों (IITs) और भारतीय विज्ञान संस्थानों (IIScs) के साथ करीबी संबंध है. इसके अलावा ATB, सेना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए AI समेत नई तकनीकों को सेना तक पहुंचाने के लिए कई अन्य अनुसंधान और विकास (R&D) संगठनों से भी जुड़ा हुआ है.[68] आर्मी मिलिट्री कॉलेज ऑफ टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग (MCTI) का मध्य प्रदेश के महू में एक AI सेंटर फॉर एक्सीलेंस (COE) है.[69] AI का थल सेना में उपयोग करने को लेकर विशेष पहल की जा रही है. हाल ही में सेवानिवृत्त थल सेनाध्यक्ष (COAS) एम.एम. नरवणे ने कहा था कि थल सेना के लिए AI विकास और उसका उपयोग निम्नलिखित क्षेत्रों में किए जाने पर जोर दिया जा रह है. यह क्षेत्र हैं: सिच्युएशनल अवेयरनेस अर्थात स्थितिजन्य जागरूकता; फ्यूजन ऑफ सेंसर्स; तेज़ी से निर्णय लेने और स्वायत्त हथियार प्रणाली के क्षेत्र. उन्होंने कहा था कि AI का प्रभावी ढंग से लाभ उठाने के लिए सेना के युद्ध सिद्धांत, संगठन और संरचना में बदलाव किया जाना बेहद आवश्यक हो गया है.[70]

टेबल 3. DRDO द्वारा भारतीय सेना के लिए विकसित AI-सक्षम सिस्टम

Towards The Integration Of Emerging Technologies In Indias Armed Forces

स्त्रोत: रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO)

क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी

भारतीय सशस्त्र बलों में सबसे आखिर में जिस टेक्नोलॉजी में निवेश और उसका सबसे कम उपयोग किया जा रहा है वह क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी का क्षेत्र है. इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है, क्योंकि तक़नीकी रूप से उन्नत देशों में भी युद्ध के क्षेत्र में इस टेक्नोलॉजी का  का उपयोग हाल में उभरता देखा गया है. भारत सरकार (GOI) ने 2020-21 के अपने बजट में पहली बार क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी में अनुसंधान एवं विकास के लिए पांच साल की अवधि में 8,000 करोड़ रुपये ख़र्च करने के लिए राशि का आवंटन किया है.[71] क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी में निवेश और इसके उपयोग के क्षेत्र हैं: ‘‘क्वॉन्टम कंप्यूटर और कंप्यूटिंग, क्वॉन्टम कम्युनिकेशन्स अर्थात संचार, क्वॉन्टम की डिस्ट्रीब्यूशन, इंक्रिप्शन, क्रिप्ट एनालिसिस, क्वॉन्टम डिवाइसेस्, क्वॉन्टम सेंसिंग, क्वॉन्टम मटेरियल्स तथा क्वॉन्टम क्लॉक.’’[72] भारत सरकार की ओर से क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी मिशन के तहत होने वाले आरएंडडी निवेश की वज़ह से मिलने वाले स्पीन-ऑफ्स्, अर्थात किसी स्थिति का अन्य स्थिति पर अप्रत्याशित अथवा अनुकूल परिणाम भी, सशस्त्र सेवाओं के काम का साबित हो सकता है. सशस्त्र बलों को जिन क्षेत्रों में ठोस लाभ मिल सकता हैं उसमें: साइबर सुरक्षा, क्वॉन्टम सेंसिंग और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग शामिल हैं. DRDO ने दिल्ली में भारतीय टेक्नोलॉजी संस्थान (IIT) के सहयोग से उत्तर प्रदेश (UP) में प्रयागराज और विंध्याचल के बीच एक वाणिज्यिक फाइबर ऑप्टिक लाइन का उपयोग करते हुए 100 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली पहली क्वॉन्टम की डिस्ट्रीब्यूशन (QKD) लिंक का डेमो अर्थात प्रदर्शन करने में सफ़लता हासिल की है.[73]

डेटा और कोड को डिक्रिप्शन से संरिक्षत करने के लिए आज उपलब्ध सबसे सुरक्षित तरीका QKD है. जैसा कि फरवरी 2022 के परीक्षण में देखा गया था, इसमें सुरक्षित सैन्य ग्रेड संचार भी शामिल है.[74] यह पारंपरिक संचार साधनों जैसा नहीं होता, जिसमें कोई चोरी-छुपे बात सुन सकता था.[75] क्वॉन्टम इंक्रिप्शन में पूर्विनर्धारित सिम्बॉल्स अर्थात प्रतीक या बिट्स शामिल होते हैं, जिन्हें केवल दो अधिकृत संचारक जानते हैं और इन सिम्बॉल्स अथवा बिट्स का वे अपने संचार में उपयोग करते हैं. यदि कोई इस संचार को चोरी-छुपे सुन भी लेता है तो संचार की इस व्यवस्था में सिम्बॉल्स अथवा बिट्स होने की वज़ह से संचारकों को यह पता चल जाता है कि कुल संचार अथवा संवाद में से कितनी जानकारी किसी ऐसे व्यक्ति ने सुन ली है, जो यह जानकारी सुनने के लिए अधिकृत नहीं था.[76] यदि संचार में घुसपैठ होती है अथवा कोई इसे चोरी-छुपे सुन भी लेता है तो इसका पता लगाकर कोड को बदला जा सकता है.[77] यदि डिजिटल या साइबर माध्यम से भेजे गए संदेश की इंटेग्रिटी अर्थात अखंडता और गोपनीयता को बनाए रखना है तो इसके लिए क्रिप्टोग्राफी के अहम अंश QKD की भूमिका अहम हो जाती है.[78]

  1. a. नौसेना

आंतरिक रूप से नौसेना क्वॉन्टम सेंसर विकसित करने के काम में जुटी हुई है. क्वॉन्टम सेंसर, पनडुब्बियों का पता लगाने में अहम साबित होते है. अत: यह स्पष्ट दिखता है कि नौसेना इन्हें हासिल करने को लेकर उत्सुक है.[79] इस खास तक़नीक को विकसित करने की दिशा में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में काम चल रहा है.[80]

  1. वायु सेना

वायु सेना भी क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी के महत्व को स्वीकार करती है. पूर्व चीफ ऑफ एयर स्टाफ (CAS) भदौरिया ने 2020 में कहा था: ‘‘निकट भविष्य में हमें बिग डेटा एनालिटिक्स, AI और क्वॉन्टम कंप्यूटिंग जैसी तक़नीक के रणनीतिक युद्धक्षेत्र में इनेब्लर्स अर्थात सहायक और डिस्रप्टर्स अर्थात उपद्रवी क्षमता जल्द ही देखने को मिल सकती है. यह क्षमता इन तकनीकों में मौजूद हैं.’’[81] लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि वायु सेना इसे लेकर कोई पहल कर रही है.

  1. थल सेना

थल सेना भी टेक्नोलॉजी के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में अनुसंधान कर रही है. थल सेना के AI सीओई की मेज़बानी करने वाले मध्य प्रदेश के महू में MCTI भी है. वहां पर थल सेना ने नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) के समर्थन से एक क्वॉन्टम प्रयोगशाला स्थापित की है.[82]यह लैब क्वॉन्टम की डिस्ट्रीब्यूशन, क्वॉन्टम कम्युनिकेशन, क्वॉन्टम कंप्यूटिंग और पोस्ट-क्वॉन्टम क्रिप्टोग्राफी पर ध्यान केंद्रित करेगी.[83] MCTI के रूप में एक ही संगठन में एक ही स्थान पर थल सेना साइबर, AI और क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी से संबंधित आरएंडडी कर रही है. दरअसल यह नौसेना के WESEE के प्रयास के समानांतर है, जो नौसेना के मिशनों के लिए नौसेना का प्रमुख टेक्नोलॉजी विकासकर्ता है.

यह देखा जाना अभी बाकी है कि भारतीय सशस्त्र सेना किस तरह विशिष्ट मिशनों के लिए क्वॉन्टम तक़नीक को लेवरेज अर्थात लाभ उठाना और टेलर अर्थात अपनी ज़रूरतों के अनुरुप ढालने में सफ़ल होकर इसका उपयोग कर पाती है अथवा नहीं. इस आलेख को लिखे जाने तक तीनों सेनाएं क्वॉन्टम तक़नीक के विकास के शुरूआती चरण में थीं. क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी की क्षमता और साइबर सुरक्षा के साथ इसके इंटर-सेक्शन अर्थात प्रतिच्छेदन या उपयोगिता को देखते हुए, AI और साइबर टेक्नोलॉजी की तरह ही भविष्य में क्वॉन्टम तक़नीक में महत्वपूर्ण रूप से केंद्रित निवेश होने की संभावना है.

नियामक ढांचे की भूमिका

साइबर सुरक्षा और टेक्नोलॉजी

इंर्फोमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट अर्थात सूचना टेक्नोलॉजी कानून, 2000 में पारित किया कर उसमें 2008 में संशोधन किया गया था. यह कानून साइबर इंटरवेन्शन्स से संबंधित है. कुछ वर्षों पश्चात 2012 में राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति और 2013 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति (NCSP) को जारी किया गया. इसके बावजूद कुछ वर्षों पहले तक कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम-इंडिया (CERT-IN) और राज्य स्तर पर इसी तरह के संगठनों और रक्षा बलों की स्थापना को छोड़कर, साइबर सुरक्षा के लिए अच्छी तरह से समन्वित और केंद्रित प्रयास नहीं किए गए थे. आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 1(2) और धारा 75 में कहा गया है कि यदि आईटी से जुड़ी किसी घटना अथवा काम का कारण और कार्य देश के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में आते हैं तो सूचना टेक्नोलॉजी से संबंधित भारतीय कानून भारत के भीतर और बाहर लागू होते हैं.[84] सूचना टेक्नोलॉजी अधिनियम 2000 साइबर वाणिज्य को सशक्त बनाने और साइबर गतिविधियों को बढ़ाने पर केंद्रित है. इस अधिनियम में साइबर अपराध के कुछ सीमित पहलू ही शामिल हैं.[85]  इस अधिनियम को सशस्त्र बलों और साइबर युद्ध के लिए नियम या विनियम तैयार करने के लिए जनादेश नहीं दिया गया है.

ऐसे में यह ज़रूरी हो गया है कि एक साइबर सुरक्षा से जुड़ा अधिनियम बनाने का प्रस्ताव पेश किया जाए. इसमें साइबर से संबंधित अपराधों, साइबर कानून का उल्लंघन, फोरेंसिक और पुलिसिंग के विभिन्न पहलुओं को शामिल किया जाए. इसी प्रकार साइबर युद्ध के संचालन के लिए और साइबर हमला होने की स्थिति में उससे बचाव के लिए भी सक्षम प्रावधान इस अधिनियम में शामिल किए जाने चाहिए. साइबर युद्ध के मामले में उचित कार्रवाई करने के लिए साइबर सुरक्षा अधिनियम को कार्यपालिका को मज़बूती से कार्रवाई का अधिकार देना चाहिए. इस अधिनियम में साइबर हमले के प्रणेता और पूर्व-आवश्यक आईटी अवसंरचना को हमलों से बचाने के साथ ही साइबर हमलों को लेकर निवारक क्षमता विकसित करना भी शामिल होना चाहिए. भारत के विरोधियों के ख़िलाफ़ प्रतिरोधी अभियान चलाने की क्षमता के लिए भी भारत को एक 'एकीकृत राष्ट्रीय साइबर रणनीति' बनाने की ज़रूरत है.

यह देखा जाना अभी बाकी है कि भारतीय सशस्त्र सेना किस तरह विशिष्ट मिशनों के लिए क्वॉन्टम तक़नीक को लेवरेज अर्थात लाभ उठाना और टेलर अर्थात अपनी ज़रूरतों के अनुरुप ढालने में सफ़ल होकर इसका उपयोग कर पाती है अथवा नहीं.

2013 में जारी राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति (NCSP) में साइबर शक्ति हासिल करने और उसके उपयोग करने की बात को शामिल नहीं किया गया है. यह नीति भारतीय सशस्त्र बलों को साइबर-सक्षम ऑपरेशन्स और साइबर युद्ध को अंजाम देने के लिए सशस्त्र बलों की भूमिका, संगठन, उपकरण और प्रशिक्षण को लेकर भी मौन है. ऐसे में नीति की यह ख़ामी राष्ट्रीय सुरक्षा में एक शून्य पैदा करती है. नई साइबर सुरक्षा नीति/रणनीति में साइबर युद्ध की प्रारंभिक अवधारणाओं को लागू करने के लिए एक तेज मार्ग अपनाया जा सकता है. यह मार्ग 2013 की नीति अथवा रणनीति से आगे अर्थात उससे बेहतर हो सकता है.

साइबर कूटनीति सहित साइबर सुरक्षा मुद्दों का समन्वय और देखरेख करने की ज़िम्मेदारी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) को सौंपी गई है. NCSC में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक को साइबर सुरक्षा प्रयासों के समन्वय और तालमेल की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है. 2019 में एक रक्षा साइबर एजेंसी (DCyA) की स्थापना की गई थी. इसे साइबर सुरक्षा और साइबर युद्ध के लिए सशस्त्र बलों को प्रशिक्षित और सुसज्जित करने का काम सौंपा गया था.[86] DCyA काफ़ी हद तक सुरक्षा, प्रतिरोधी और रक्षात्मक मिशनों के लिए भारतीय सशस्त्र बलों की साइबर आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बनाया गया था.[87] हालांकि यह पूरे देश के लिए साइबर सुरक्षा और रणनीति से संबंधित सभी कार्यों को निष्पादित करने वाला एकमात्र अंब्रेला ऑर्गनाइजेशन नहीं है. भारत में अनेक एजेंसियां साइबर से संबंधित कार्य और मिशन देखती हैं. (टेबल 4 देखें).

टेबल 4. भारत के विभिन्न साइबर संगठन

Towards The Integration Of Emerging Technologies In Indias Armed Forces

स्त्रोत: विभिन्न स्त्रोतों का उपयोग करते हुए लेखक का निजी

विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (VIF) की ओर से 2019 में किए गए एक विश्लेषण के अनुसार, नागरी अधिकारियों तथा सशस्त्र बलों को मिलकर एक 'साइबर सिद्धांत' बनाना चाहिए, जो साइबर सुरक्षा चुनौतियों से निपटने और अपने सशस्त्र बलों के नेटवर्क में जासूसी को रोकने वाला साबित हो सके.[88] सशस्त्र बलों के पास साइबर फोरेंसिक और साइबर अपराधों की जांच के लिए संसाधन होने चाहिए. ये तीन सेनाओं के मौजूदा कानूनी विभाग में ऐड-ऑन अर्थात सहायक संसाधन हो सकते हैं. नेताओं को आईटी अधिनियम 2000 (2008 और 2011 में संशोधित) की समझ होनी चाहिए.[89]और उन्हें मौजूदा नियमों से अवगत होना चाहिए. जैसे कि इंटरनेट गवर्नेंस के लिए इंटरनेट कॉपोर्रेशन फॉर असाइन्ड नेम्स एंड नंबर्स (ICANN) द्वारा विकसित संगठन, या फिर तेलिन मैन्यूअल अर्थात नियमावली और संयुक्त राष्ट्र (UN) के संकल्प और साइबर युद्ध और साइबर इंटरवेन्शन से जुड़े विचार-विमर्श की भी जानकारी रखनी आवश्यक है. सूचना टेक्नोलॉजी अधिनियम की धारा 69 सरकारी अधिकारियों को कंप्यूटर संसाधनों में किसी भी जानकारी के अवरोधन, निगरानी और डिक्रिप्शन करने का अधिकार देती है.[90] इस धारा के तहत नियम 27 अक्टूबर 2009 को जारी किए गए थे. ये नियम साइबर युद्ध और रक्षा या साइबर युद्ध के अभियोजन से संबंधित किसी भी स्थिति को लेकर मौन है. ऐसे में इनमें संशोधन किया जाना आवश्यक हो गया है.[91]

डेटा सुरक्षा के पहलू पर, किसी भी प्रकार की डेटा चोरी करने वाले साइबर हमले की स्थिति में साइबर डोमेन में सैन्य कार्रवाई के लिए किसी भी सरकार के लिए संविधान [a] के अनुच्छेद 352 का उपयोग करना एक चुनौती होगी.[92] ख़राब साइबर सुरक्षा की वज़ह से ही साइबर हमले हाई फ्रीक्वेन्सी अर्थात उच्च आवृत्ति के साथ होते हैं. ऐसे में दुश्मनों के लिए भारत में डेटा चोरी करने के लिए लक्ष्य-समृद्ध वातावरण मौजूद है.[93] इसके बावजूद मौजूदा संवैधानिक प्रावधानों के तहत विशेष रूप से ऐसा कुछ भी नहीं है जो भारत को उपरोक्त स्थिति में जवाबी कार्रवाई करने का अधिकार प्रदान करता है. अनुच्छेद 352 के तहत कोई विशेष प्रावधान नहीं है, जिसमें साइबर युद्ध शामिल है. इसी प्रकार न ही अनुच्छेद 352 में ऐसा कोई प्रावधान है, जिसमें सरकार को संविधान शारीरिक युद्ध के साथ मिलकर साइबर युद्ध लागू करने की अनुमति देता हो.

अत: यह राष्ट्र के सर्वोत्तम हित में ही होगा कि अनुच्छेद 352 को लागू किए बगैर ही आपातकाल की स्थिति की घोषणा के बिना सीमित साइबर युद्ध और साइबर रक्षा सहित सभी उचित उपायों को अपनाया जाए. हालांकि, एक ऐसा स्थिति आ सकती है जहां सरकार अनुच्छेद 352 के उपयोग के साथ या उसके बिना किसी भी साइबर हमले की औपचारिक प्रतिक्रिया देने के बारे में विचार कर सकती है.[94] साइबर युद्ध या साइबर हमलों शुरू होने से उत्पन्न होने वाली आपात स्थिति के मामले में, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A को लागू किया जा सकता है. इसकी धारा सी के तहत स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि : ‘‘भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखने और उसकी रक्षा करने के लिए’’ और धारा D में कहा गया है कि : ‘‘देश की रक्षा करने और ऐसा करने के लिए आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रीय सेवा प्रदान करने के लिए,’’[95] तक़नीकी कार्यबल की भर्ती करने और भारत की साइबर संप्रभुता की रक्षा के लिए देश की साइबर क्षमता को बढ़ावा देने के कदम उठाए जाएंगे.

2001 में साइबर अपराध का मुकाबला करने के लिए बुडापेस्ट कन्वेंशन की स्थापना की गई थी. एक ओर जहां कुछ देशों, जैसे कि दक्षिण अफ्रीका और इक्वाडोर ने बुडापेस्ट कन्वेंशन के मानकों और आवश्यकताओं को पूरा करने वाले अपने घरेलू कानूनों को संरेखित किया है, लेकिन वहीं दूसरी ओर भारत जैसे अन्य देशों ने ऐसा करने से इंकार कर दिया है.

अनुच्छेद 51A कहता है: भारत को प्रस्तावित साइबर सुरक्षा अधिनियम, साइबर-अपराध के सम्मेलन या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साइबर-अपराध को रोकने के लिए बुडापेस्ट सम्मेलन पर हस्ताक्षर करने में सहायक होना चाहिए. 2001 में साइबर अपराध का मुकाबला करने के लिए बुडापेस्ट कन्वेंशन की स्थापना की गई थी. एक ओर जहां कुछ देशों, जैसे कि दक्षिण अफ्रीका और इक्वाडोर ने बुडापेस्ट कन्वेंशन के मानकों और आवश्यकताओं को पूरा करने वाले अपने घरेलू कानूनों को संरेखित किया है,[96] लेकिन वहीं दूसरी ओर भारत जैसे अन्य देशों ने ऐसा करने से इंकार कर दिया है. भारत पर पहले से ही बुडापेस्ट कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने के लिए काफ़ी दबाव है. लेकिन भारत उसका विरोध करता आया है.[97]  भारत ने ज़्यादा से ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, साइबर अपराधों से लड़ने के लिए संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाले दृष्टिकोण पर सहमति जताई है.[98]

अब हम आ पहुंचे हैं साइबर हथियारों के विकास के मुद्दे पर. इस मुद्दे पर तत्कालीन राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक (NCSC) लेफ्टिनेंट जनरल राजेश पंत ने पहले ही साफ़ कर दिया था कि वे साइबर हथियारों के निर्यात और आयात करने को लेकर सहमत नहीं है. उन्होंने अपने तर्क के लिए संयुक्त राष्ट्र के साथ भारत के समझौते ‘‘अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में साइबर स्पेस में ज़िम्मेदार देश के व्यवहार को आगे बढ़ाने पर सरकारी विशेषज्ञों का समूह (UNGGE)[99] की ओर ध्यान आकर्षित करवाया था. यह समूह साइबर हथियारों के निर्यात और आयात के लिए मानदंड निर्धारित करता है.[100]

‘‘सॉफ़्टवेयर’’ को भारत के विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) द्वारा विनियमित विशेष रसायन, जीवों, सामग्री, उपकरण और प्रौद्योगिकियों (SCOMET) की युद्ध सामग्री सूची की श्रेणी 6A021B, श्रेणी 6 के तहत निम्नानुसार परिभाषित और विनियमित किया गया है: (1) विशेष रूप से सैन्य उपयोग के लिए डिजाइन किया गया ‘‘सॉफ्टवेयर’. इसी प्रकार विशेष रूप से सैन्य हथियार प्रणालियों के मॉडलिंग, सिम्युलेटिंग अर्थात अनुकरण या मूल्यांकन के लिए डिजाइन किया गया ‘‘सॉफ्टवेयर’; (2) ‘‘सॉफ्टवेयर’’ विशेष रूप से सैन्य उपयोग के लिए डिजाइन किया गया ‘‘सॉफ्टवेयर’’ और विशेष रूप से सैन्य परिचालन परिदृश्यों के मॉडलिंग या अनुकरण करने के लिए डिजाइन किया गया      ‘‘सॉफ्टवेयर’’; (3) पारंपरिक, परमाणु, रासायनिक या जैविक हथियारों के प्रभावों को निर्धारित वाला ‘‘सॉफ्टवेयर’’; (4) विशेष रूप से सैन्य उपयोग के लिए डिजाइन किया गया ‘‘सॉफ्टवेयर’’ और विशेष रूप से कमांड, संचार, नियंत्रण, कंप्यूटर और इंटेलिजेंस (C4I) उपयोगों के लिए डिजाइन किया गया ‘‘सॉफ्टवेयर’’.[101]

हालांकि, UNGGE 2015 में साइबर स्पेस में अच्छे और ज़िम्मेदार व्यवहार के मानदंडों का एक सबसेट विकसित करने के बावजूद अटक गया है अथवा अपने उद्देश्य में सफ़ल नहीं हो सका है. इसका कारण यह है कि चीन और रूस ने 2017 में इससे पीछे हटने का निर्णय लिया था. उनके पीछे हटने की वज़ह से यह अब प्रभावी रूप में निष्क्रिय हो गया था. भारत भले ही साइबर हथियारों का निर्यात या आयात नहीं करता है, लेकिन फिर भी ऐसा कुछ भी नहीं है जो भारत को अपने साइबर हथियार विकसित करने से रोकने वाला साबित हो रहा है. ऐसे में यह भी आवश्यक है कि सरकार को सार्वजनिक डोमेन में किसी को कोई स्पष्टीकरण दिए बिना साइबर हथियारों के उपयोग में शामिल होने वाले साइबर कर्मियों या बलों की रक्षा करने का अधिकार अपने पास रखना चाहिए. दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 197 को मज़बूत करने की आवश्यकता है, जिसमें कहा गया है कि सरकार के कर्मचारी पर भारतीय संघ की रक्षा के लिए एक आधिकारिक क्षमता में अपने [या उसके] कर्तव्यों का निर्वहन करने का आरोप नहीं लगाया जा सकता है, जब तक कि सरकार की पूर्व सहमति न हो.[102]

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

AI, बिग डेटा (BD) और ML के लिए कोई विशेष कानून मौजूद नहीं हैं. भारत में तो 'AI' की कानूनी परिभाषा ही नहीं की गई है. 2018 में, सरकार ने AI को लेकर दो रोडमैप अर्थात दिशा-निर्देश जारी किए थे. इसमें वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की ओर से गठित AI टास्क फोर्स की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर रिपोर्ट और नीति आयोग की ओर से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए तैयार की गई राष्ट्रीय रणनीति शामिल हैं.[103] 2022 ग्लोबल लीगल इनसाइट्स (GLI) की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार की प्राथमिकता स्वास्थ्य सेवा, ई-कॉमर्स और रक्षा को कवर करने वाले विभिन्न क्षेत्रों में AI और इसके उपयोग को बढ़ावा देने की है.[104] हालांकि, सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी (CIS) के अनुसार AI पर नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि : इस रिपोर्ट को जारी करने से पहले, इसकी सिफारिशों की पर्याप्त सार्वजनिक जांच अर्थात विचार-विमर्श नहीं किया गया था. इसी तरह इस रिपोर्ट की सिफारिशें इस बात को समझे बिना की गईं कि AI का सभी क्षेत्रों में कैसे और किस हद तक उपयोग किया जा सकता है. इसी प्रकार इस बात को भी नहीं समझा गया था कि विभिन्न क्षेत्रों में इनका उपयोग कैसे एक-दूसरे से भिन्न होता है.[105]

नीति आयोग की रिपोर्ट ने सार्वजनिक नीति में AI के महत्व को प्रोत्साहित करने के बावजूद ऐसा करने में भारत की विशिष्ट सामाजिक और क्षेत्रीय चुनौतियों पर विचार नहीं किया था.[106]  इसके अलावा, भारत में बिग डेटा की उपलब्ध मात्रा को देखते हुए इसके बाज़ार की प्रतिस्पर्धा पर गंभीर निहितार्थ होने संभव हैं. अमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स क्षेत्र की बड़ी कंपनियों के पास उपभोक्ता वरीयताओं तक असाधारण पहुंच है. इसी प्रकार कॉम्पलेक्स सेल्फ-लर्निंग अर्थात जटिल स्व-शिक्षण कंप्यूटर एल्गोरिदम विकसित करने की उच्च लागत के कारण इस क्षेत्र में उनका एकाधिकार होने की संभावना भी है.[107]

कानून से परे जाकर भारत सरकार को उभरती हुई टेक्नोलॉजी के उन रुझानों को समझना होगा जिनका दीर्घकालिक रणनीतिक प्रभाव होने वाला है. इस बात को लेकर सरकार को एक राष्ट्रीय रणनीति भी विकसित करनी चाहिए.

एकाधिकार को दोहराने के लिए प्रतिस्पर्धियों के बीच AI के उपयोग को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) नहीं रोकता है. ऐसे में वे उत्पादन बढ़ाने या घटाने और बाज़ार की कीमतों को निर्धारित करने के लिए आपस में सांठगांठ करते हुए अपने सामूहिक मुनाफे में वृद्धि हासिल कर सकते है.[108]   AI के उपयोग को भारतीय कानून, बाज़ार लाभ और एकाधिकार के स्रोत के रूप में प्रतिस्पर्धियों के बीच मिलीभगत में सहायक नहीं मानते हैं.[109] अत: फिलहाल भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो नागरिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों में AI के उपयोग को नियंत्रित करता हो. ऐसे में भारतीय रक्षा बलों में AI के उपयोग को ध्यान में रखकर बनाए गए कानून की बात तो छोड़ ही दीजिए.

भारत में AI क्रांति पर अपने 2016 के पेपर में, शशि शेखर वेम्पति ने तर्क दिया था कि भारत को मशीन इंटेलिजेंस को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में देखना चाहिए.[110] मसलन, AI को अमेरिका और जापान अपने द्विपक्षीय संबंधों का एक अहम हिस्सा मानते हैं.[111]अमेरिका और भारत के बीच AI के क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग बनाने की दिशा में क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (iCET) पर नवीनतम पहल को एक महत्वपूर्ण कदम समझा जा रहा है.[112] लेकिन बिग डेटा और डेटा सुरक्षा को लेकर भारत और अमेरिका के बीच काफ़ी मतभेद हैं. पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल अर्थात व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक (PDPB) 2019 से लोकसभा (संसद के निचले सदन) में लंबित है.[113] यह बिल ‘‘व्यक्तिगत डेटा और संवेदनशील डेटा के सभी पहलुओं’’ को संबोधित करता है. यह बिल इस बात पर भी विचार करता है कि क्या व्यक्तिगत और संवेदनशील डेटा भारत के भीतर रहना चाहिए और क्या इसमें से कुछ डेटा कहीं और संग्रहीत किया जा सकता है.[114] बिल इस बात पर भी विचार करेगा कि भले ही डेटा देश से बाहर चला जाए, लेकिन क्या निर्यात किए गए डेटा की एक प्रति देश के भीतर भी रखी जानी चाहिए.[115]

कानून से परे जाकर भारत सरकार को उभरती हुई टेक्नोलॉजी के उन रुझानों को समझना होगा जिनका दीर्घकालिक रणनीतिक प्रभाव होने वाला है. इस बात को लेकर सरकार को एक राष्ट्रीय रणनीति भी विकसित करनी चाहिए. भारत को रक्षा अनुसंधान के लिए निजी क्षेत्र और शिक्षाविदों के सहयोग से तैयार रक्षा उन्नत अनुसंधान परियोजना एजेंसी (DARPA) मॉडल का ईमानदारी से मूल्यांकन करने की कोशिश करनी होगी. ताकि पर्याप्त रूप से बड़े पैमानों पर दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों का निर्माण किया जा सके जो नागरिक टेक्नोलॉजी के ऐप्लीकेशंस के विकास को सक्षम बनाती हैं.[116] विशेष रूप से, डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी अर्थात रक्षा उन्नत अनुसंधान परियोजना एजेंसी (DARPA) के साइबर ग्रैंड चैलेंज मॉडल की जांच किए जाने की आवश्यकता है, ताकि अकादमिक और निजी क्षेत्र के लिए सक्सेसफुल इंसेन्टिव्स अर्थात सफ़ल प्रोत्साहनों को सृजित किया जा सकें.[117]  फेशियल रेकिग्निशन अर्थात चेहरे की पहचान, मानव रहित हवाई निगरानी (UAS) और स्व-ड्राइविंग अर्थात स्वचलित कारों जैसी AI-संचालित तकनीकों के आगमन के साथ ही भारत में निगरानी कानूनों पर नए सिरे से विचार किए जाने की आवश्यकता है. इसका कारण यह है कि यह नई तक़नीक सरकार को निगरानी के नए रास्ते मुहैया करवाते हुए नागरिक के अधिकारों, जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और एकत्रित होने के अधिकार को प्रभावित करती है.[118] क्षेत्र वार सुरक्षा, राष्ट्रीय गोपनीयता कानून में व्यक्त और निर्धारित आधारभूत सुरक्षा के हिसाब से पूरक और विस्तारित हो सकती है.[119]

नीति आयोग के पेपर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए राष्ट्रीय रणनीति,[120] पर टिप्पणी करते हुए सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी (CIS) ने पाया था कि भारत की वर्तमान बौद्धिक संपदा (IP) व्यवस्था AI को अपनाने और इसके अनुसंधान को पर्याप्त रूप से प्रोत्साहन नहीं देती है.[121] पेटेंट अधिनियम की धारा 3(k) एल्गोरिदम के लिए पेटेंटिंग से छूट प्रदान करती है.  इसी प्रकार कम्प्यूटर रिलेटेड इन्वेंशन्स अर्थात कम्प्यूटर संबंधित आविष्कार (CRI) के दिशानिदेर्शों ने इस बात को लेकर बहस छेड़ दी है कि हार्डवेयर घटक की अनुपस्थिति में किस हद तक केवल सॉफ्टवेयर को पेटेंट देना संभव है.[122] कुछ महत्वपूर्ण सवाल जैसे एल्गोरिदम के पेटेंट की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं, और यदि दी जानी चाहिए तो किस हद तक, पर नीति आयोग का पेपर भी इस विषय पर मौन है.[123]

AI एल्गोरिदम और गैर-AI एल्गोरिदम के बीच अंतर करने के लिए सीआरआई दिशानिदेर्शों या पेटेंट अधिनियम में मानकीकरण की भी ज़रूरत है.[124]भारत सरकार को AI नवाचार को प्रोत्साहित और बढ़ावा देने वाले बौद्धिक संपदा ढांचे के विकास को भी प्राथमिकता देनी चाहिए. भारत में कॉपीराइट कानून, मनुष्यों के रचनात्मक कार्य को पढ़ने, देखने और सुनने के लिए बनाए गए अथवा प्रशिक्षित किए गए AI सिस्टम से सहमत नहीं है अथवा उसके ख़िलाफ़ है. दरअसल, आईटी 2000 की धारा 66 के संयोजन में पढ़े जाने वाली धारा 43 (a), मौजूदा AI एल्गोरिदम को रचनात्मक कार्यों की नकल करने पर उसे कानून का उल्लंघन करने के लिए ज़िम्मेदार मानती है.[125]

अन्य देशों से सबक

चीन

चीनी सेना AI के अनुसंधान और विकास पर ध्यान दे रही है, ताकि सैन्य उद्देश्यों के लिए AI का उपयोग अथवा संचालन किया जा सके. चीनी सेना की इन कोशिशों को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (2015) और राष्ट्रीय ख़ुफ़िया कानून (2017) जैसे कानूनों का समर्थन और सहयोग हासिल है. इसके साथ-साथ नई पीढ़ी के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस डेवलपमेंट प्लान जैसी पहलों पर भी काम हो रहा है. इसके अलावा सरकारी और निजी क्षेत्रों के तहत AI के विकास में शामिल सभी चीनी संस्थाओं में तालमेल स्थापित करने की कोशिश हो रही है, ताकि नागरी और सैन्य प्रयासों के मिश्रण से इसे बढ़ावा दिया जा सकें. पूर्व में, चीन ने तथाकथित ग्रेट फायरवॉल के माध्यम से घरेलू स्तर पर इंटरनेट तक पहुंच को नियंत्रित करने की कोशिशों पर अपना ध्यान केंद्रित किया था.

[126] जुलाई 2015 से, बीजिंग ने इंटरनेट नियंत्रण और निजी डेटा तक सरकार की पहुंच पर कानूनों की एक श्रृंखला का मसौदा तैयार करते हुए इन्हें लागू किया है. साइबर सुरक्षा कानून के अनुच्छेद 37 में नेटवर्क ऑपरेटरों को प्रमुख क्षेत्रों में उत्पादित डेटा को देश के भीतर जमा या संग्रहीत करना अनिवार्य किया गया है.[127]

इसके अतिरिक्त, कानून के तहत चीन के भीतर एकत्रित की गई चीनी नागरिकों के कारोबार से जुड़ी जानकारी और डेटा को चीन के घरेलू सर्वर पर ही संग्रहीत करना अनिवार्य किया गया है. इस जानकारी को बगैर अनुमति विदेश में स्थानांतरित नहीं करने का प्रावधान भी है.[128] कानून में ऐसे किसी भी प्रकार के आर्थिक, तक़नीकी, या वैज्ञानिक डेटा के निर्यात पर प्रतिबंध शामिल है जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा कर सकता है या सार्वजनिक हित को प्रभावित करने की क्षमता रखता है.[129] चीन के साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (CAC) ने दिसंबर 2016 में पहली राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति जारी करते हुए साइबरस्पेस विकास और सुरक्षा से संबंधित चीन की स्थिति और उससे जुड़े प्रस्तावों की पुष्टि की. इस रणनीति में साइबर सुरक्षा पर चीन की ओर से किए जा रहे काम को लेकर मार्गदर्शन प्रदान किया गया है.[130] इस रणनीति का उद्देश्य चीन को एक साइबर शक्ति बनाना है. इसके साथ ही यह चीन में एक सुरक्षित, खुले और सुव्यवस्थित साइबर स्पेस और उसकी राष्ट्रीय संप्रभुता की सुरक्षा को बढ़ावा भी देती है.[131] लेकिन इस रणनीति के माध्यम से चीन साइबर सुरक्षा को ‘‘संप्रभुता के लिए देश का नया क्षेत्र’’ बनाने की कोशिश कर रहा है. ऐसे में यह रणनीति साइबर नियंत्रण लागू करते हुए इस क्षेत्र के व्यवस्थित प्रबंधन के आधार के रूप में काम करती है.[132] 

रूस

रूस ने मुख्यत: रूसी क्वॉन्टम सेंटर में, क्वॉन्टम कंप्यूटिंग में निवेश किया है. लेकिन संसाधनों के प्रति रूस की प्रतिबद्धता कमोबेश चीन और अमेरिका जैसे देशों की तरह नहीं है.[133] यह आंशिक रूप से 1990 के दशक के बाद से रूस की वैज्ञानिक-अनुसंधान क्षमता में समग्र कमी से संबंधित मामला है.[134] माना जाता है कि 2018 में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रूस में आवश्यक वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास के लिए रुबल 187 बिलियन (लगभग 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का ही आवंटन किया है. यह आरएंडडी में रूस के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के अनुपात में केवल एक प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है.[135]

क्वॉन्टम इंर्फोमेशन साइन्स में नवीनतम वैश्विक सफ़लता रूसी शोधकतार्ओं द्वारा किए गए कार्य की वज़ह से नहीं आयी है. रूस को लेकर अमेरिका चिंतित नहीं है, बल्कि अमेरिका को चीन के साथ उसकी ‘क्वॉन्टम गैप’ परेशान कर रही है.[136] रूसी राष्ट्रपति ने रूस में AI के विकास को लेकर एक डिक्री अर्थात फरमान जारी किया था. रूस की राष्ट्रीय रणनीति में देश की AI विशेषज्ञता, शैक्षिक कार्यक्रमों, डेटासेट, बुनियादी ढांचे और कानूनी नियामक प्रणाली को बढ़ाने के लिए पांच और 10 साल के मानक निर्धारित किए गए हैं.[137] जो इस बात के सबूत हैं कि रूस 2008 के अपने रक्षा आधुनिकीकरण एजेंडे पर आगे बढ़ना जारी रखेगा. इसके अनुसार 2025 तक देश के 30 प्रतिशत सैन्य उपकरणों का रोबोटीकरण किया जाना है.[138]दिसंबर 2019 में मास्को ने घोषणा की कि वह पांच वर्षों में क्वॉन्टम अनुसंधान में 790 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने जा रहा है. यही बात रूसी क्वॉन्टम टेक्नोलॉजीज रोडमैप में भी दिखाई देती है.[139] ये सभी सभी की हुई पहलें सेना से संबंधित नहीं हैं. इसी तरह खुले स्रोतों अर्थात सार्वजनिक जानकारी में भी इस बात को लेकर ज़्यादा सुगबुगाहट नहीं है कि आखिर रूस का इन तकनीकों को कैसे अपनी सेना में लागू करने का इरादा है.[140] वर्तमान रूस-यूक्रेन युद्ध की वज़ह से नागरिक और सैन्य दोनों क्षेत्रों में क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी क्षेत्र में किया जा रहा निवेश और उसका उपयोग बाधित होने की आशंका दिखाई दे रही है.

ब्राज़ील

ब्राज़ील की पहली राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति, जिसे 'E-Ciber' भी कहा जाता है को 2018 में जारी किया गया. यह विभिन्न क्षेत्रों और समग्र रूप से ब्राज़ील के समाज को शामिल करते हुए साइबर सुरक्षा का एक समग्र दृष्टिकोण विकसित करने का ब्राज़ील का पहला व्यवस्थित प्रयास है.[141] इस रणनीति के माध्यम से साइबर सुरक्षा की संस्कृति का निर्माण करने का प्रयास किया गया है. इसमें इस बात को लेकर भी स्पष्ट जानकारी दी गई है कि साइबर सुरक्षा को लेकर सरकार की आने वाले वर्षों में भूमिका और अधिकार क्या होंगे.[142] अब जल्द ही एक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा कानून बनाए जाने की संभावना है. ब्राज़ील सरकार साइबर सुरक्षा को अंब्रेला ऑफ़ इंर्फोमेशन एंड कम्युनिकेशन्स अर्थात सूचना और संचार सुरक्षा की एक ऐसी छतरी मानती है, जिसमें साइबर सुरक्षा, भौतिक सुरक्षा और संगठनात्मक डेटा सुरक्षा जैसी अवधारणाएं शामिल हैं.[143]

राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए रणनीतिक क्षेत्र के रूप में साइबर स्पेस का पहला उल्लेख 2005 की राष्ट्रीय रक्षा नीति में किया गया था. यह उल्लेख 2008 की राष्ट्रीय रक्षा रणनीति में और भी स्पष्ट हो गया था. इसकी वज़ह से ही आने वाले दशक के दौरान साइबर सुरक्षा और रक्षा के तीव्र सैन्यीकरण की शुरूआत हुई थी.[144]  उसी वक़्त से साइबर रक्षा के लिए एक सैन्य प्रणाली की स्थापना के लिए रक्षा मंत्रालय (MoD) को वार्षिक बजट के तहत पर्याप्त धनराशि आवंटित की गई है. जिसमें सेंटर फॉर साइबर डिफेंस (CDCiber) और ब्राजीलियाई साइबर डिफेंस कमांड (ComDCiber) भी शामिल हैं. लेकिन यह सैन्य प्रणाली यहीं तक सीमित नहीं है.[145] उदाहरण के लिए 2014 के साइबर रक्षा सैन्य सिद्धांत में साइबर रक्षा को इस तरह परिभाषित किया गया है : ‘‘राष्ट्रीय सूचना प्रणाली की रक्षा के लिए साइबर रक्षा प्रतिरोधी, रक्षात्मक और ख़ोजपूर्ण कार्यों का समाहरण है. राष्ट्रीय ख़ुफ़िया उद्देश्यों के लिए डेटा इकट्ठा करना और विरोधियों की सूचना प्रणाली को संकट में डालना भी इसके उद्धेश्य है. ’’[146]  साइबर सुरक्षा के साथ सामग्री विनियमन का सम्मिश्रण संभावित रूप से ऐसे परिणाम उत्पन्न कर सकता है जो ‘‘GSI (साइबर सुरक्षा), सशस्त्र बलों (साइबर सुरक्षा) और संघीय पुलिस (साइबर-अपराध) की भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों के बारे में अधिक भ्रम पैदा करते हैं.’’[147] भले ही तीनों को किसी घटना का जवाब देने के लिए बेहतर समन्वय सुनिश्चित करना जारी रखना चाहिए. लेकिन अधिक भ्रम न केवल ई-साइबर द्वारा उजागर किए गए तीन दरारों को बढ़ाएगा, बल्कि राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा कानून को तय करने वाला अथवा उसके विकास के संदर्भ में जोखिम भरा भी साबित होगा.

ब्राज़ील की ओर से अपनाई गई नई AI रणनीति का उद्देश्य क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देते हुए उभरती हुई टेक्नोलॉजी के एथिकल अर्थात नैतिक उपयोग को संतुलित करना है.[148] दिसंबर 2019 और मार्च 2020 के बीच सार्वजनिक विचार-विमर्श और संवाद के बाद, रणनीति ने छह उद्देश्य निर्धारित किए: ‘‘AI के ज़िम्मेदार उपयोग को निर्देशित करने वाले एथिकल प्रिंसिपल्स अर्थात नैतिक सिद्धांत को विकसित करें, नवाचार की बाधाओं को दूर करें; सरकार, निजी क्षेत्र और शोधकतार्ओं के बीच सहयोग में सुधार; AI कौशल का विकास; प्रौद्योगिकियों में निवेश को बढ़ावा देना; और विदेशों में ब्राज़ील की तक़नीक को आगे बढ़ाना.’’[149]

निष्कर्ष

भारतीय सशस्त्र बलों ने उभरती प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने के लिए कमर कस ली है. लेकिन नौसेना के सामने विशेषत: आर्गेनिक टैलेंट की कमी को लेकर चुनौतियां हैं, जो विश्वसनीय रूप से इनका उपयोग किए जाने वाले क्षेत्रों की पहचान कर सके.[150] नौसेना में अभी भी डेटा विज्ञान से जुड़े प्रतिभा और कौशल की कमी है. यही बात वायुसेना और थल सेना पर भी लागू होती है. सशस्त्र सेनाओं के पास प्रतिरोधी और रक्षात्मक साइबर ऑपरेशन्स का संचालन करने के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित कर्मियों की कमी है.[151] नौसेना द्वारा इस कमी को धीरे-धीरे डेटा विज्ञान में मास्टर स्तर के पाठ्यक्रम शुरू करने वाले इंद्रप्रस्थ टेक्नोलॉजी संस्थान जैसे नागरिक संस्थानों के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके दूर किया जा रहा है.[152] हालांकि, नौसेना की आवश्यकताओं के लिए लागू AI-संबंधित पहलों को बाहरी पेशेवरों के बजाय सेवा के भीतर से उभरना ज़्यादा सुविधाजनक रहेगा.[153] नौसेना इस समस्या से जुड़े कुछ हिस्से का फिलहाल हल निकालने की कोशिश कर रही है.

भारत के तक़नीकी संस्थानों जैसे IIT और IISc में रक्षा-संबंधी अनुसंधान में योगदान देने के लिए शिक्षाविदों द्वारा काफी रुचि और उत्साह व्यक्त किए जाने के बावजूद, थल सेना को AI-आधारित अनुसंधान को विकसित करने में बेहद कम सफ़लता मिली है.

साइबर और आईटी डोमेन अर्थात क्षेत्र में भारतीय कानूनों को बेहतर करने की आवश्यकता होगी, ताकि यह AI और क्वॉन्टम प्रौद्योगिकियों के उद्भव को पूरा करने के लिए प्रावधानों से लैस किए जा सकें.

[154] हालांकि, थल सेना को उसके MCTI के तहत AI, साइबर और क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी में एकीकृत आरएंडडी से अच्छे परिणाम मिलने की उम्मीद की जा सकती है. सेना के कोर ऑफ़ सिग्नल (CoS) को आम तौर पर कंप्यूटर विज्ञान में विशेषज्ञता का प्राथमिक भंडार माना जाता है. कुछ लोगों का कहना है कि चूंकि यह AI के क्षेत्र से निकटता से जुड़ा हुआ है, अत: CoS को AI से संबंधित अनुसंधान पर काम करने वाली प्रमुख इकाई के रूप में ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए.[155] सेना के सूचना प्रणाली महानिदेशालय (DGIS) जैसे अन्य संगठनों के पास गैर-विशेषज्ञ अधिकारियों का एक बड़ा समूह है, जिन्हें DGIS में कम या बिना किसी विशेषज्ञता के सीमित कार्यकाल के लिए प्रतिनियुक्त किया जाता है. तीनों भारतीय सशस्त्र सेनाओं के आंतरिक अनुसंधान एवं विकास केंद्र जैसे कि वायु सेना का सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (SDI), INS वलसुरा में नौसेना का CoE या सेना का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस केंद्र (CAI) या महू में MCTI में स्थित क्वॉन्टम लैब.

नौसेना अपनी युद्ध संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उभरती प्रौद्योगिकियों को लागू करने में सबसे आगे और उन्नत रही है. आर एंड डी में न तो थल सेना और न ही वायु सेना, नौसेना के WESEE की बराबरी करने के करीब पहुंच पाई है. इसी प्रकार व्यापक रूप से, साइबर और आईटी डोमेन अर्थात क्षेत्र में भारतीय कानूनों को बेहतर करने की आवश्यकता होगी, ताकि यह AI और क्वॉन्टम प्रौद्योगिकियों के उद्भव को पूरा करने के लिए प्रावधानों से लैस किए जा सकें. नियामक ढांचे में सुधार और क्षमताओं के पोषण के लिए भारत अन्य देशों की ओर से उठाए गए कदमों से सबक सीख सकता है.


हर्ष वी. पंत, ओआरएफ़ के अध्ययन और विदेश नीति के उपाध्यक्ष हैं.

कार्तिक बोम्मकांती, ओआरएफ़ में सीनियर फेलो हैं.


Endnote

[1] Annual Report 2017-18, Ministry of Defence, New Delhi, 2018, p. 87, https://www.mod.gov.in/sites/default/files/AR1718.pdf

[2] “Software Defined Radios”, Press Information Bureau, Ministry of Defence, New Delhi, July 2019.

[3] Huma Siddiqui, “Make in India Software Defined Radio: ‘Mother’ of all Solutions for Tactical Communications of Armed Forces”, Financial Express, August 20, 2019.

[4] Annual Report 2019-20, Ministry of Defence, New Delhi, 2019, https://www.mod.gov.in/sites/default/files/Annual-Report-2019-20-final-web-version_compressed.pdf, p. 154

[5] Siddiqui, “Make in India Software Defined Radio: ‘Mother’ of all Solutions for Tactical Communications of Armed Forces”

[6] “WESEE achieves CMMI Maturity Level 3 Rating”, Indian Navy, https://www.indiannavy.nic.in/content/wesee-achieves-cmmi-maturity-level-3-rating

[7]  Sarah K. White, “What is CMMI? A model for optimizing development processes”, CIO, June 1, 2021, https://www.cio.com/article/274530/process-improvement-capability-maturity-model-integration-cmmi-definition-and-solutions.html

[8] White, “What is CMMI? A model for optimizing development processes”.

[9] “WESEE Became the First Defence Organisation to be Appraised for CMI V2.0 Lvl 3.” Indian Navy, https://indiannavy.nic.in/content/wesee-became-first-defence-organisation-be-appraised-cmmi-v20-lvl-3

[10]  Sanatan Kulshrestha, “Big Data Analytics in Indian Navy”, IndraStra Global, 8 2017, pp. 1-4, https://www.ssoar.info/ssoar/bitstream/handle/document/53090/ssoar-indrastraglobal-2017-8-kulshrestha-Big_Data_Analytics_in_Indian.pdf;jsessionid=24674DF548B285768459889C7ADD6EB8?sequence=1

[11] Kulshrestha, “Big Data Analytics in Indian Navy”.

[12] Vijay Sakhuja, Asian Maritime Power in the 21st Century: Strategic Transactions, China India and Southeast Asia, (Singapore: Institute for Southeast Asian Countries, 2011), pp. 238-239.

[13] Sakhuja, Asian Maritime Power in the 21st Century: Strategic Transactions, China India and Southeast Asia.

[14] Sakhuja, Asian Maritime Power in the 21st Century: Strategic Transactions, China India and Southeast Asia.

[15] Sakhuja, Asian Maritime Power in the 21st Century: Strategic Transactions, China India and Southeast Asia.

[16] LB Chand, “A Network Centric Force First off the Shelf”, Aviation & Defence Universe, December 3, 2020, https://www.aviation-defence-universe.com/indian-navy-a-network-centric-force-first-off-the-block/

[17] Chand, “A Network Centric Force First off the Shelf”.

[18]  Ayush Jain, “Indian Navy Better Equipped Than Army & The Air Force to Tackle Cyber Threats”, Eurasian Times, April 8, 2021, https://eurasiantimes.com/indian-navy-better-equipped-than-army-and-air-force-to-tackle-cyber-threats-cds-rawat/

[19] Jain, “Indian Navy Better Equipped Than Army & The Air Force to Tackle Cyber Threats”.

[20] See comments of Chief of Air Staff V.R. Chaudhri in, “IAF Views Cyber Operations as and Integral Part of all Military Operations. We Are Continuously Working to Upgrade these Capabilities at All Times”, SP Aviation, Issue: 2, 2022,  https://www.sps-aviation.com/story/?id=3076&h=IAF-Views-Cyber-Operations-as-an-Integral-Part-of-all-Military-Operations-We-are-Continuously-Working-to-Upgrade-these-Capabilities-at-all-times

[21] Software Development Institute, Indian Air Force (IAF), Bengaluru, https://indianairforce.nic.in/software-development-institute

[22] Software Development Institute, Indian Air Force (IAF).

[23] “India’s Integrated Air Command & Control System (IACCS): A NCW Milestone”, IndraStra Global, September 28, 2015, https://www.indrastra.com/2015/09/ANALYSIS-IACCS-257.html

[24]  “Integrated Air Command and Control System (IACSS): A NCW Milestone”, IndraStra Global, September 28, 2015.

[25] V.K. Saxena, Ground-Based Air Defence in India, (New Delhi: Pentagon Press, 2018).

[26] “Indigenisation Roadmap: Indian Air Force 2016-2025”, Indian Air Force and Confederation of Indian Industry, New Delhi, April 2016, p. 21

[27]  “Indigenisation Roadmap: Indian Air Force 2016-2025”, Indian Air Force and Confederation of Indian Industry, New Delhi, April 2016, p. 21.

[28] Comments V.R. Chaudhri in “IAF Views Cyber Operations as an Integral Part of all Military Operations. We Are Continuously Working to Upgrade these Capabilities at All Times”, SP Aviation.

[29]  “India Army establishes quantum laboratory at Mhow, offers training in cyber warfare”, Economic Times, December 29, 2021,  https://government.economictimes.indiatimes.com/news/governance/indian-army-establishes-quantum-laboratory-at-mhow-offers-training-in-cyber-warfare/88566099  

[30] Annual Report 2011-12, Ministry of Defence, 2012, p. 102

[31] Ajai Shukla, “Revealed: Why the Army Shut Down Important Project”, Rediff.com, July 30, 2018.

[32] Shukla, “Revealed: Why the Army Shut Down Important Project”.

[33] Shukla, “Revealed: Why the Army Shut Down Important Project”.

[34] Prakash Katoch, “Battle Management System – Where Are We?”, Indian Defence Review, January 31, 2017, http://www.indiandefencereview.com/news/battlefield-management-system-for-indian-army-where-are-we/

[35] Katoch, “Battle Management System – Where Are We?”.

[36]  Katoch, “Battle Management System – Where Are We?”.

[37] Katoch, “Battle Management System – Where Are We?”.

[38]  Katoch, “Battle Management System – Where Are We?”, Also see Martin C. Libicki, “Military Cyberpower”, in Cyber Power and National Security, eds. Franklin D. Kramer, Stuart H. Starr and Larry K. Wentz (New Delhi, Vij Books, 2009), p. 278.

[39] Sandeep Dighe, “Army to Buy Software Defined Radios for Better Communications”, The Times of India, march 21, 2017, https://timesofindia.indiatimes.com/city/pune/army-to-buy-software-defined-radio-system-for-better-communication/articleshow/57747772.cms

[40]  Aditi Malhotra and Rammohan Vishvesh, “Taking to the Skies- China and India’s Quest for UAVs”, Journal of the Indian Ocean Region, Vol. 10, No. 3, 2014, p. 176.

[41]  Huma Siddiqui, “Artificial Intelligence to help Indian Navy develop deal with different threats”, Financial Express, April 16, 2019,  https://www.financialexpress.com/defence/artificial-intelligence-to-help-indian-navy-to-deal-with-different-threats/1549959/

[42]  Indian Naval Indigenisation Plan (INIP) 2015-2030, Directorate of Indigenisation, Integrated Headquarters (IHQ), Ministry of Defence (MoD), Navy, New Delhi,  https://www.indiannavy.nic.in/sites/default/themes/indiannavy/images/pdf/naval_initiatives/INIP_2015-2030.pdf,  Amrut Godbole, “AI and Machine Learning for the India Navy”, Gateway HousePaper No. 21, April 2020, p. 10, https://www.gatewayhouse.in/wp-content/uploads/2020/04/AI-Machine-Learning-paper-for-the-Indian-Navy_Cdr-Godbole_Final-Version_GH-1.pdf

[43] Siddiqui, “Artificial Intelligence to help Indian Navy develop deal with different threats”.

[44] Siddiqui, “Artificial Intelligence to help Indian Navy develop deal with different threats”.

[45] Godbole, “AI and Machine Learning for the India Navy”, p. 10.

[46]  Siddiqui, “Artificial Intelligence to help Indian Navy develop deal with different threats”.

[47] “Indian Navy conducts workshop on artificial intelligence in Jamnagar”, Business Standard, January 28, 2022, https://www.business-standard.com/article/current-affairs/indian-navy-conducts-workshop-on-artificial-intelligence-in-jamnagar-122012800022_1.html

[48]  Indian Naval Indigenisation Plan (INIP) 2015-2030, p. 42

[49]  Indian Naval Indigenisation Plan (INIP) 2015-2030, p. 42

[50]  Indian Naval Indigenisation Plan (INIP) 2015-2030, p. 42

[51] Subhash Dutta, “Artificial Intelligence and Machine Learning for the Indian Navy”, National Maritime Foundation, New Delhi, May 20, 2020, https://maritimeindia.org/artificial-intelligence-and-machine-learning-for-the-indian-navy/

[52]  “Leveraging Artificial Intelligence (AI) for Indian Navy” Workshop at INS Valsura, Ministry of Defence, New Delhi, January 27, 2022, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1792935

[53]  “Leveraging Artificial Intelligence (AI) for Indian Navy.

[54] “India Navy, Bharat Electronics Ltd sign MoU for development of emerging technologies”, ThePrint, June 30, 2021, https://theprint.in/india/indian-navy-bharat-electronics-ltd-sign-mou-for-development-of-emerging-technologies/687078/

[55]  India Navy, Bharat Electronics Ltd sign MoU for development of emerging technologies”.

[56]  India Navy, Bharat Electronics Ltd sign MoU for development of emerging technologies”.

[57] Shishir Gupta, ‘Plan to buy predator drones put on hold”, Hindustan Times, February 23, 2022, https://www.hindustantimes.com/india-news/plan-to-buy-predator-drones-put-on-hold-101645565612604.html

[58] “India, US Keen To Fast Track $3 Billion Predator Drone Deal”, NDTV, February 2, 2023, https://www.ndtv.com/india-news/india-us-keen-to-sign-usd-3-billion-mq-9b-predator-drone-deal-report-3745567

[59] Huma Siddiqi, “Artificial Intelligence to power Indian Navy’s Combat Management System in its Indigenous Aircraft Carrier”, Financial Express, April 4, 2019, https://www.financialexpress.com/defence/artificial-intelligence-to-power-indian-navys-combat-management-system-in-its-indigenous-aircraft-carrier/1538247/

[60] Siddiqi, “Artificial Intelligence to power Indian Navy’s Combat Management System in its Indigenous Aircraft Carrier”.

[61] Malhotra and Vishvesh, “Taking to the Skies- China and India’s Quest for UAVs”, p. 175.

[62]  A.K. Sachdev, “Unmanned Platforms in the IAF: Need to Bolster”, Indian Defence Review, Vol. 34, October 30, 2019,  http://www.indiandefencereview.com/news/unmanned-platforms-in-the-iaf-the-need-to-bolster/

[63] Malhotra and Vishvesh, “Taking to the Skies- China and India’s Quest for UAVs”, p. 175.

[64] Malhotra and Vishvesh, “Taking to the Skies- China and India’s Quest for UAVs”, p. 175.

[65]  “AI can bring enormous changes in way wars are fought: IAF Bhadauria”, Business Standard, April 5, 2021, https://www.business-standard.com/article/current-affairs/ai-can-bring-enormous-changes-in-way-wars-are-fought-iaf-chief-bhadauria-121040500984_1.html

[66] AI can bring enormous changes in way wars are fought: IAF Bhadauria”.

[67]  R.S. Panwar, “Artificial Intelligence in Military Operations: A Raging Debate, and Way Forward for the Indian Armed Forces”, USI Monograph, No. 2, 2018, p. 46.

[68] Panwar, “Artificial Intelligence in Military Operations: A Raging Debate, and Way Forward for the Indian Armed Forces”.

[69]  Rajat Pandit, “India finally taking some steps to leverage AI for military applications”, The Times of India, February 14, 2022,  https://timesofindia.indiatimes.com/india/india-finally-taking-some-steps-to-leverage-ai-for-military-applications/articleshow/89559262.cms

[70]  Pandit, “India finally taking some steps to leverage AI for military applications”.

[71]  “Budget 2020 announces Rs 8,000 cr National Mission on Quantum Technologies and Applications”, Department of Science & Technology, Government of India, New Delhi,  https://dst.gov.in/budget-2020-announces-rs-8000-cr-national-mission-quantum-technologies-applications#:~:text=The%20government%20in%20its%20budget,Science%20%26%20Technology%20(DST).

[72]  “Budget 2020 announces Rs 8,000 cr National Mission on Quantum Technologies and Applications”.

[73]  “In a first, DRDO demonstrates quantum communication over a distance of 100 km”, The Times of India, 23 February, 2023, https://timesofindia.indiatimes.com/home/science/in-a-first-drdo-demonstrates-quantum-communication-over-distance-of-100km/articleshow/89775251.cms

[74]  “In a first, DRDO demonstrates quantum communication over a distance of 100 km”.

[75] Valerio Scarani, Helle Bechmann-Pasquinucci, Nicholas J. Cerf, Miloslav Dusek, Norbert Lutkenhaus and Momtchil Peev”, “The Security of Quantum Key Distribution”, Research Paper, September 30, 2009, p. 3, https://arxiv.org/pdf/0802.4155.pdf

[76]  Scarani et al.

[77]  “In a first, DRDO demonstrates quantum communication over a distance of 100 km”.

[78] Scarani et al, “In a first, DRDO demonstrates quantum communication over a distance of 100 km”.

[79]  “India’s Navy on big hunt for quantum sensors”, ETVBharat, December 4, 2021, https://www.etvbharat.com/english/national/city/delhi/indias-navy-on-big-hunt-for-quantum-sensors/na20211203192316065

[80]  “India’s Navy on big hunt for quantum sensors”.

[81]  “Air Staff chief address webinar on Domination of Aerospace Domain-Indian context”, psuconnect.in, 23 November, 2020, https://www.psuconnect.in/news/air-staff-chief-address-webinar-on-domination-of-aerospace-domain–indian-context/25615/, CAS R.K.S. Bhadauria’s comments, “Domination of Aerospace Domain: Indian Context”, Center for Joint Warfare Studies (CENJOWs) webinar, November 23, 2020, https://twitter.com/IAF_MCC/status/1330894491742466051

[82]  “Indian Army establishes quantum laboratory, offers training in cyber warfare”, Economic Times, December 29, 2021, https://government.economictimes.indiatimes.com/news/governance/indian-army-establishes-quantum-laboratory-at-mhow-offers-training-in-cyber-warfare/88566099

[83] “Indian Army establishes quantum laboratory, offers training in cyber warfare”.

[84] Section 75 in The Information Technology Act, 2000, https://indiankanoon.org/doc/576992/

[85] Information Technology Act 2000, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/13116/1/it_act_2000_updated.pdf

[86] P.C. Katoch, “Defence Cyber Command”, SP’s Aviation, 6 July, 2021, https://www.sps-aviation.com/experts-speak/?id=554&h=Defence-Cyber-Command

[87] Katoch, “Defence Cyber Command”.

[88] Credible Cyber Deterrence in Armed Forces, Vivekananda International Foundation, March 2019, p. 25, https://www.vifindia.org/sites/default/files/Credible-Cyber-Deterrence-in-Armed-Forces-of-India_0.pdf

[89] “The Information Technology ACT, 2008”, Ministry of Law, Justice and Company Affairs, 23 December, 2008, https://police.py.gov.in/Information%20Technology%20Act%202000%20-%202008%20(amendment).pdf, “Information Technology (Reasonable security practices and procedures and sensitive personal data or information) Rules, 2011, https://www.meity.gov.in/writereaddata/files/GSR313E_10511%281%29_0.pdf

[90]  Section 69 in the Information Technology Act, 2000, https://indiankanoon.org/doc/1439440/

[91] Credible Cyber Deterrence in Armed Forces, Vivekananda International Foundation, March 2019, https://www.vifindia.org/sites/default/files/Credible-Cyber-Deterrence-in-Armed-Forces-of-India_0.pdf

[92]  Article 352 in the Constitution of India 1949, https://indiankanoon.org/doc/1018568/

[93] Stas Protassov, “The rise of cyber wars in India”, The Economic Times CIO.com, 28 July, 2022,  https://cio.economictimes.indiatimes.com/news/digital-security/the-rise-of-cyber-wars-in-india/93175956

[94]  Article 51A in the Constitution of India, 1949, https://indiankanoon.org/doc/867010/

[95] Article 51A in the Constitution of India, 1949.

[96]  “Convention on Cyber Crime: Special Edition Dedicated to the Drafters of the Convention”, Council of Europe, 2021, p. 5, https://rm.coe.int/special-edition-budapest-convention-en-2022/1680a6992e

[97] See interview National Cyber Security Coordinator (NCSC). “Lt. Gen. (Dr) Rajesh Pant On India’s National Cyber Security Strategy, Indo-US Cooperation, End-to-End Encryption And More”, Medianama, 2 June, 2020, https://www.medianama.com/2020/06/223-rajesh-pant-interview-national-cyber-security-coordinator/

[98]  “Lt. Gen. (Dr) Rajesh Pant On India’s National Cyber Security Strategy, Indo-US Cooperation, End-to-End Encryption And More”.

[99] “Advancing responsible State behaviour in cyberspace in the context of international security”, A/RES/73/266, United Nations General Assembly (UNGA), 22 December, 2018, https://documents-dds-ny.un.org/doc/UNDOC/GEN/N18/465/01/PDF/N1846501.pdf?OpenElement, see also “Lt. Gen. (Dr) Rajesh Pant On India’s National Cyber Security Strategy, Indo-US Cooperation, End-to-End Encryption And More”.

[100]  United Nations Group of Governmental Experts, Office of Disarmament Affairs, United Nations, https://www.un.org/disarmament/group-of-governmental-experts/

[101]  “Amendment of Standard Operating Procedure (SOP) for issue of Authorization by Ministry of Defence, Department of Defence Production for Export of Munitions List Items by both Private as well as Public Sector Units as Notified under Category 6 of SCOMET”, Ministry of Defence, Department of Defence Production, New Delhi, November 1, 2018, p. 34, https://www.ddpmod.gov.in/sites/default/files/New%20SOP0001_2.pdf

[102] Central Government Act, Section 197 (1) in The Code of Criminal Procedure, 1973, https://indiankanoon.org/doc/810164/

[103] Report of Task Force on Artificial Intelligence, Department of Promotion of Industry and Internal Trade, Ministry of Commerce and Industry, March 20, 2018  https://dpiit.gov.in/whats-new/report-task-force-artificial-intelligence

[104] “AI, Machine Learning & Big Data Laws and Regulations 2022, Global Legal Insight (GLI), India, 2022, https://www.globallegalinsights.com/practice-areas/ai-machine-learning-and-big-data-laws-and-regulations/india#chaptercontent1

[105]  Sunil Abraham, Elonnai Hickok, Amber Sinha, Swaraj Barooah, Shweta Mohandas, Pranav M Bidare, Swagam Dasgupta, Vishnu Ramachandran and Senthil Kumar, “NITI Aayog Discussion Paper: An aspirational step towards India’s AI policy”, Center for Internet and Society, 2019, New Delhi,  https://cis-india.org/internet-governance/files/niti-aayog-discussion-paper

[106] Sunil Abraham, et al., NITI Aayog Discussion Paper: An aspirational step towards India’s AI policy”.

[107]  “AI, Machine Learning & Big Data Laws and Regulations 2022.

[108] “AI, Machine Learning & Big Data Laws and Regulations 2022.

[109]  “AI, Machine Learning & Big Data Laws and Regulations 2022.

[110] Shashi Shekhar Vempati, “India and the Artificial Intelligence Revolution”, Carnegie India, August 2016, pp. 1-18, https://carnegieendowment.org/files/CP283_Vempati_final.pdf

[111]  Vempati, “India and the Artificial Intelligence Revolution”.

[112] “Factsheet: United States and India Elevate Strategic Partnership with the initiative on Critical Emerging Technology (iCET)”, The White House, Washington D.C. 31 January, 2023, https://www.whitehouse.gov/briefing-room/statements-releases/2023/01/31/fact-sheet-united-states-and-india-elevate-strategic-partnership-with-the-initiative-on-critical-and-emerging-technology-icet/

[113]  The Personal Data Protection Bill, 2019, Ministry of Law and Justice, New Delhi, https://prsindia.org/billtrack/the-personal-data-protection-bill-2019

[114]  “Lt. Gen. (Dr) Rajesh Pant On India’s National Cyber Security Strategy, Indo-US Cooperation, End-to-End Encryption And More”.

[115] “Lt. Gen. (Dr) Rajesh Pant On India’s National Cyber Security Strategy, Indo-US Cooperation, End-to-End Encryption And More”.

[116] Vempati, “India and the Artificial Intelligence Revolution”.

[117] Dustin Fraze, “Cyber Grand Challenge (CGC) (Archived), Defense Advanced Research Project Agency (DARPA), https://www.darpa.mil/program/cyber-grand-challenge

[118] Vempati, “India and the Artificial Intelligence Revolution”.

[119]  Amber Sinha, Elonnai Hickok and Arindrajit Basu, “AI in India: A Policy Agenda”, The Center for Internet and Society, https://cis-india.org/internet-governance/files/ai-in-india-a-policy-agenda

[120] National Strategy for Artificial Intelligence#AIforall, Discussion Paper, National Strategy for Artificial Intelligence, Niti Aayog, June 2018, https://indiaai.gov.in/documents/pdf/NationalStrategy-for-AI-Discussion-Paper.pdf

[121]  Sunil Abraham et al., “NITI Aayog Discussion Paper: An aspirational step towards India’s AI policy”, The Center for Internet and Society, June 13, 2019, https://cis-india.org/internet-governance/blog/niti-aayog-discussion-paper-an-aspirational-step-towards-india2019s-ai-policy

[122]  Abraham et al., “NITI Aayog Discussion Paper: An aspirational step towards India’s AI policy”.

[123] Abraham et al., “NITI Aayog Discussion Paper: An aspirational step towards India’s AI policy”.

[124] Abraham et al., “NITI Aayog Discussion Paper: An aspirational step towards India’s AI policy”.

[125] Prashant Mali, “Artificial Intelligence and Legal Framework for India”, VARINDIA, December 12, 2019, https://varindia.com/news/artificial-intelligence-and-legal-framework-in-india

[126] Jack Wagner, “China’s Cybersecurity Law: What You Need to Know”, The Diplomat, June 1, 2017, https://thediplomat.com/2017/06/chinas-cybersecurity-law-what-you-need-to-know/

[127]  Wagner, “China’s Cybersecurity Law: What You Need to Know”.

[128]  Wagner, “China’s Cybersecurity Law: What You Need to Know”.

[129]  Wagner, “China’s Cybersecurity Law: What You Need to Know”.

[130]  “China – Cyber Policy Portal”, UNIDIR, September 2018, https://cyberpolicyportal.org/en/state-pdf-export/eyJjb3VudHJ5X2dyb3VwX2lkIjoiNTkifQ

[131] “China Publishes First National Security Strategy”, United States Information Technology Office, http://www.usito.org/news/china-publishes-first-national-cybersecurity-strategy

[132]  “China Publishes First National Security Strategy”.

[133] “Quantum computing and defence”, The Military Balance, International Institute of Strategic Studies, London, UK, February 2019, https://www.iiss.org/publications/the-military-balance/the-military-balance-2019/quantum-computing-and-defence

[134]  “Quantum computing and defence”, The Military Balance.

[135]  “Quantum computing and defence”, The Military Balance.

[136]  “Quantum computing and defence”, The Military Balance.

[137] Decree of the President of the Russian Federation on the Development of Artificial Intelligence in the Russian Federation, October 28, 2019, Center for Security and Emerging Technology, Georgetown University, Washington D.C., https://cset.georgetown.edu/publication/decree-of-the-president-of-the-russian-federation-on-the-development-of-artificial-intelligence-in-the-russian-federation/

[138]  Kelley M. Sayler, “Emerging Military Technologies: Background and Issues for Congress”, Congressional Research Service (CRS), Washington D.C., April 6, 2022.

[139] Sayler, “Emerging Military Technologies: Background and Issues for Congress”.

[140] Sayler, “Emerging Military Technologies: Background and Issues for Congress”.

[141] Louise Marie Hurel, “Brazil’s First National Cybersecurity Strategy: An Analysis of its Past, Present and Future”, Internet Governance Project, Georgia Tech School of Public, April 5, 2020, https://www.internetgovernance.org/2020/04/05/brazils-first-national-cybersecurity-strategy-an-analysis-of-its-past-present-and-future/

[142] Hurel, “Brazil’s First National Cybersecurity Strategy: An Analysis of its Past, Present and Future”.

[143] Hurel, “Brazil’s First National Cybersecurity Strategy: An Analysis of its Past, Present and Future”.

[144] Hurel, “Brazil’s First National Cybersecurity Strategy: An Analysis of its Past, Present and Future”.

[145] Hurel, “Brazil’s First National Cybersecurity Strategy: An Analysis of its Past, Present and Future”.

[146] Hurel, “Brazil’s First National Cybersecurity Strategy: An Analysis of its Past, Present and Future”.

[147] Hurel, “Brazil’s First National Cybersecurity Strategy: An Analysis of its Past, Present and Future”.

[148] Josh Lowe, “Brazil launches national AI strategy”, globalgovernmentforum, April 13, 2021, https://www.globalgovernmentforum.com/brazil-launches-national-ai-strategy/

[149] Lowe, “Brazil launches national AI strategy”.

[150] Siddiqui, “Artificial Intelligence to help Indian Navy develop deal with different threats”.

[151] Author interview with serving and former Indian army personnel

[152] Cdr. Amrut Godbole, “AI and Machine Learning for the India Navy”, p. 27

[153] Siddiqui, “Artificial Intelligence to help Indian Navy develop deal with different threats”.

[154] Panwar, “Artificial Intelligence in Military Operations: A Raging Debate, and Way Forward for the Indian Armed Forces”, p. 46.

[155] Panwar, “Artificial Intelligence in Military Operations: A Raging Debate, and Way Forward for the Indian Armed Forces”, p. 53.

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