Author : Harsh V. Pant

Published on Oct 06, 2025 Commentaries 6 Days ago

भारतीय प्रवासियों के आगे ऐसे मुद्दे उभर रहे हैं, जो उन्हें नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहे हैं. एक तरफ अमेरिका में ट्रंप प्रशासन अपनी प्रवासी विरोधी नीतियों को और कसता जा रहा है. दूसरी ओर, इंग्लैंड जैसे पश्चिमी देश हैं, वहां भी एक प्रवासी विरोधी, विशेष रूप से भारतीयों के खिलाफ एक भावना भड़क रही है.

वैश्विक रिश्तों में प्रवासी भारतीयों की अहम भूमिका

Image Source: Getty Images

दुनियाभर में 3.21 करोड़ भारतवंशी विभिन्न देशों में रहते हैं. अकेले अमेरिका में ही 50 लाख से अधिक भारतवंशी हैं. मगर इस समय प्रवासी लोगों के बारे में नजरिया बदल रहा है. इसका मुख्य कारण प्रवासियों की गतिविधियां और उनके विकास के साथ ही संबंधित देशों में हो रहे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक बदलाव हैं. दुनिया में, खासकर विकसित देशों में जिस तरह के आर्थिक बदलाव हमें नजर आ रहे हैं या उनके यहां राजनीतिक, सामाजिक बदलाव नजर आ रहे, उसके कारण एक हद तक प्रवासी विरोधी भावनाएं भी बढ़ती नजर आ रही हैं.

अगर हम प्रवासी भारतीयों वाले प्रमुख देशों का जिक्र करें, तो इनमें अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा के अलावा खाड़ी के देशों का नाम मुख्य रूप से आता है. इनमें बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासियों की उपस्थिति है.

इसको थोड़ा और विस्तृत करके देखें, तो उन देशों में अब तक प्रवासी भारतीयों को लेकर जो कहानियां कही जाती थीं, वे सकारात्मक होती थीं. गौर करने वाली बात यह है कि इन देशों में अभी तक जो प्रवासी भारतीय थे, जो भारतीय समुदाय था, उनके बारे में वहां पर जो धारणा बनी हुई थी, वह यही थी कि भारत से एक ऐसा डायस्पोरा है, जो परिश्रमी, अनुशासित, कानून मानने वाले लोगों का है और वहन सिर्फ यहां की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान करता है, बल्कि वह उच्च कोटि का है, उच्च शिक्षित है और वह भारत व दूसरे देशों के बीच सेतु का काम भी करता है.

 

भारतीय प्रवासियों की मौजूदगी 

अगर हम प्रवासी भारतीयों वाले प्रमुख देशों का जिक्र करें, तो इनमें अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा के अलावा खाड़ी के देशों का नाम मुख्य रूप से आता है. इनमें बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासियों की उपस्थिति है. और यह उपस्थिति अब कई देशों में अपना राजनीतिक प्रभाव दर्ज कराने लगी है. खासकर, अमेरिका में हमने देखा है कि कैसे परमाणु समझौते के समय से ही वहां मौजूद भारतीय प्रवासियों ने प्रखर तौर पर भारत के हितों को बढ़ाने का काम किया. कनाडा में भी हमने देखा है कि किस तरह से वहां जो खालिस्तानी उपद्रवी हैं, उनके खिलाफ भारतीय प्रवासियों ने बहुत सख्त आवाज उठाई और उनके खिलाफ कनाडा में माहौल तैयार किया. प्रवासी भारतीय दुनिया भर में हमारे राजनयिक और सांस्कृतिक पक्ष को मजबूत करने में जो योगदान कर रहे हैं, उसकी प्रशंसा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की है. जहां कहीं भी वह जाते हैं, वहां के भारतीय प्रवासियों को 'लिविंग ब्रिज' का नाम देते हैं.

 

हमने यह भी देखा है कि प्रवासी भारतीयों का उन देशों की आर्थिक नीतियों, सफलता में भी बड़ा योगदान है, चाहे वह अमेरिका की सिलिकॉन वैली हो या अमेरिका व यूरोपीय देशों का आईटी सेक्टर. खाड़ी के देशों में हमने देखा कि प्रवासी भारतीय पहले वहां श्रमिक बनकर गए और बाद में पेशेवर तबके के तौर पर उनकी अर्थव्यवस्था का उत्थान किया. इसके अलावा, उनकी कमाई का जो हिस्सा भारत आता है, वह भारतीय अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाता है. इसीलिए पिछले कुछ सालों से भारत सरकार की लगातार कोशिश रही है कि प्रवासियों को भारत के आर्थिक विकास के साथ जोड़ा जाए. उनके साथ भारत सरकार सीधे संवाद करे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां कहीं भी जाते हैं, वहां के भारतीय समुदाय के साथ जुड़ते हैं, उनसे सीधा संवाद करते हैं. पिछले कुछ सालों में या कहें, तो पिछले दशक में यह प्रवृत्ति हमें उभरती हुई नजर आई है. इसका उपयोग भारत ने भी अपनी विकास-यात्रा को गति देने के लिए किया है.

इस समय जरूरत है कि भारत और भारतीय उनकी परेशानियों को समझें, उन गए प्रवासियों की भावनाओं को समझें और अब जो लोग वापस आना चाहते हैं, उनका स्वागत करें. ऐसा करना भारत की प्रगति के हित में है.

मगर आज स्थिति कुछ बदली बदली नजर आ रही है. आज उनके बारे में वही कहानियां थोड़ी समस्याओं से घिरी हुई नजर आ रही हैं. भारतीय प्रवासियों के आगे ऐसे मुद्दे उभर रहे हैं, जो उन्हें नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहे हैं. एक तरफ अमेरिका में ट्रंप प्रशासन अपनी प्रवासी विरोधी नीतियों को और कसता जा रहा है. पहले उसने भारतीय उत्पादों के अमेरिका में आयात पर 50 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाया, अब एच1 बी वीजा की फीस अप्रत्याशित रूप से एक लाख डॉलर (लगभग 90 लाख रुपये) कर दी है. दूसरी ओर, इंग्लैंड जैसे पश्चिमी देश हैं, वहां भी एक प्रवासी विरोधी, विशेष रूप से भारतीयों के खिलाफ एक भावना भड़क रही है. इसकी एक झलक पिछले महीने वहां 'इंग्लिश डिफेंस लीग' के बैनर तले ब्रिटेन के दक्षिणपंथी एक्टिविस्ट टॉमी रॉबिन्सन द्वारा आयोजित रैली में देख सकते हैं. ' यूनाइटेड किंगडम' नाम से आयोजित इस रैली में करीब डेढ़ लाख ब्रिटिश नागरिक जुट गए और उन्होंने प्रवासियों के खिलाफ अपनी भावनाएं व्यक्त की. इस हुजूम को न केवल ब्रिटेन के दक्षिणपंथियों ने, बल्कि अमेरिका से एलन मस्क और जर्मनी की धुर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी के नेता ने भी ऑनलाइन संबोधित किया. इससे पश्चिम के विकसित देशों में भारतीय प्रवासियों के खिलाफ भड़क रही भावनाओं का पता चलता है. इस रैली में अनेक लोगों ने 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' की टोपी पहन रखी थी. ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार के खिलाफ 'रिफॉर्म यूके पार्टी' नामक दल भी खड़ा हो गया है, जो लगातार मुख्यधारा के दलों के लिए चुनौती बनता जा रहा है. इन घटनाओं से पूरे यूरोप और अमेरिका में भारतीय प्रवासी विरोधी भावनाओं का भी पता चलता है.

 

आगे की राह 

दुनिया के देशों में जो भारतीय समुदाय है, वह अपने आप को एक चौराहे पर खड़ा पा रहा है. क्योंकि जिन देशों को उसने अपनाया है और आज वहां जिस तरह से व्यापक स्तर पर प्रवासी विरोधी भावनाएं उभर रही हैं, उससे यह समुदाय कुछ परेशान है. इस समय जरूरत है कि भारत और भारतीय उनकी परेशानियों को समझें, उन गए प्रवासियों की भावनाओं को समझें और अब जो लोग वापस आना चाहते हैं, उनका स्वागत करें. ऐसा करना भारत की प्रगति के हित में है.

भारत से जो 'ब्रेन ड्रेन' (प्रतिभा का पलायन) हुआ है, वह अगर वापस आना चाहता है, तो भारत के नव-उत्थान में उन प्रतिभाओं के सकारात्मक योगदान की संभावना को देखते हुए दिल खोलकर अपनाएं और आगे बढ़ें. क्योंकि समस्याएं भारतीय प्रवासियों के कुछ करने या न करने से नहीं आ रही हैं, बल्कि वहां सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बदलाव के कारण उपस्थित हुई हैं, जिससे उन पर भारी दबाव पड़ रहा है. इसलिए वे खामोश दिख रहे हैं. 


यह लेख मूल रूप से हिन्दुस्तान में प्रकाशित हो चुका है. 

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.