Published on Nov 01, 2025 Commentaries 3 Days ago

कभी समंदर किनारे खड़े बंदरगाहों से सिर्फ दुनिया आती-जाती थी लेकिन ठहरती नहीं थी. अब वही बंदरगाह विचारों, तकनीक और नवाचार के ठिकाने बन रहे हैं. जहाज़ों के साथ अब यहां डेटा बहता है,  पूंजी उतरती है और प्रतिभा रवाना होती है. यही हैं नई पीढ़ी के “ब्लू सिटीज़” — जहाँ लहरें भी अर्थव्यवस्था की भाषा बोलती हैं.

ब्लू सिटीज़: विकास की अगली लहर

कभी सिर्फ़ जहाज़ों के ठहरने की जगह माने जाने वाले बंदरगाह अब औद्योगिक और आर्थिक विकास के नए केंद्र बन रहे हैं. पहले इनकी अहमियत सिर्फ़ "कितना माल आया-जाया" तक सीमित थी यानी टन में मापी जाती थी, विचारों में नहीं लेकिन अब तस्वीर बदल रही है.
दुनियाभर में बंदरगाह शहर “ब्लू सिटीज़” यानी नीले शहरों में बदल रहे हैं — ऐसे शहर जो समंदर से जुड़ी अर्थव्यवस्था और आधुनिक शहरी विकास का संगम हैं.
यहाँ लॉजिस्टिक्स, वित्त, तकनीक और मानव प्रतिभा — सब मिलकर एक नया इकोसिस्टम बना रहे हैं. जैसे-जैसे हरित (ग्रीन) और डिजिटल शिपिंग का दौर आगे बढ़ेगा, बंदरगाह शहरों की प्रतिस्पर्धा इस बात पर तय होगी कि वे कितनी तकनीकी समझ, पूंजी और कुशल लोग अपने साथ जोड़ पाते हैं.

  • ये एक ऐसी व्यवस्था है, जहां लॉजिस्टिक्स का मिलन फिनटेक (फाइनेंस और टेक) से होता है, जहां स्थिरता का मिलन रणनीति से होता है.

  • जिस तरह चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना हिंद महासागर को नया आकार दे रही है, भारत को भी आत्मनिर्भर, नवाचार-संचालित समुद्री केंद्रों के साथ इसका जवाब देना चाहिए.

शहरी विकास इंजन के रूप में बंदरगाह

वैश्विक स्तर पर, बंदरगाह अब सिर्फ माल ढुलाई के प्रवेश द्वार नहीं रह गए हैं. वे "ब्लू सिटीज़" या एकीकृत शहरी-समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र है, जहां रसद, वित्त और नवाचार एक साथ विकसित हो रहे हैं. उनकी विकास की महत्वाकांक्षा अब डेटा वैज्ञानिकों और फंडिंग करने वालों पर उतनी ही निर्भर करती है, जितनी कि बंदरगाह के कर्मचारियों पर.

ब्लू सिटीज़ के विकास का सबसे बड़ा उदाहरण सिंगापुर है. 2024 में, सिंगापुर ने 41.1 मिलियन कंटेनर (टीईयू यानी ट्वेंटी फीट इक्विलेंट यूनिट) संभाले. ये क्षमता सभी भारतीय बंदरगाहों के संयुक्त संचालन से भी ज़्यादा है.

ब्लू सिटीज़ के विकास का सबसे बड़ा उदाहरण सिंगापुर है. 2024 में, सिंगापुर ने 41.1 मिलियन कंटेनर (टीईयू यानी ट्वेंटी फीट इक्विलेंट यूनिट) संभाले. ये क्षमता सभी भारतीय बंदरगाहों के संयुक्त संचालन से भी ज़्यादा है. सिंगापुर की समुद्री अर्थव्यवस्था ने लगभग 90 अरब डॉलर, या सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 7% पैदा किया. फिर भी, इसका असली फ़ायदा क्रेन या कार्गो में नहीं, बल्कि इस बात में निहित है कि इसने लॉजिस्टिक्स, वित्त, तकनीक और प्रतिभा को एक सहज इकोसिस्टम में कैसे एकीकृत किया है.

सिंगापुर में एक ऐसा समुद्री इकोसिस्टम विकसित हो गया है, जो समुद्री और बंदरगाह प्राधिकरण, जहाज मालिकों, बैंकों और अनुसंधान केंद्रों को एक साथ स्थापित करता है. अर्थशास्त्रियों द्वारा इसे ही संबंधपरक निकटता कहा गया है, जहां किसी खास उद्योग से जुड़ी सारी चीजें पास-पास होती हैं. इसका फायदा ये होता है कि शिपिंग और फाइनेंसिंग के जो जटिल सौदे पहले कई हफ्तों में पूरे होते थे, अब वो कुछ ही दिनों में पूरे हो जाते हैं. सिंगापुर का मैरीटाइम हाउस, वित्त और बीमा से लेकर मध्यस्थता और प्रशिक्षण तक, हर समुद्री सेवा को कुछ ही ब्लॉकों में यानी आसपास की इमारतों में केंद्रित करता है.

नीदरलैंड का रॉटरडैम बंदरगाह एक और रास्ता दिखाता है. ये निगमित बंदरगाह प्राधिकरण 70 प्रतिशत नगरपालिका और 30 प्रतिशत सरकार के स्वामित्व के साथ संचालित होता है. ये प्रणाली कई दशकों में विकसित हुई है और ये किसी भी तरह के राजनीतिक जंजाल से मुक्त होती है. पोर्टएक्सएल और एक रीयल-टाइम डिजिटल ट्विन जैसी पहलों के माध्यम से, रॉटरडैम बंदरगाह लॉजिस्टिक्स कंपनियों, एआई फर्मों और क्लीन-टेक स्टार्ट-अप्स को जोड़ता है. इसने रॉटरडैम बंदरगाह को एक जीवंत नवाचार प्रयोगशाला में बदल दिया है.

यहां पर ये बात भी ध्यान रखने योग्य है कि ब्लू सिटीज़ सिर्फ व्यापार और वित्त तक ही सीमित नहीं हैं. सफल ब्लू सिटीज़ औद्योगिक गतिविधियों और शहरी जीवन-क्षमता के बीच संतुलन बनाते हैं. बंदरगाहों को टर्मिनलों के विकास के लिए क्षैतिज (हॉरिजेंटल) स्थान की ज़रूरत होती है, वहीं शहरों को ऊर्ध्वाधर (वर्टिकल)घनत्व और मिश्रित उपयोग की जीवंतता की आवश्यकता होती है. जब इन दोनों ही चीजों की अच्छी तरह से व्यवस्था की जाती है, तो ये तनाव एक ताकत बन जाता है.

स्पेन का वेलेंसिया बंदरगाह इसका एक सटीक उदाहरण है. वेलेंसिया बंदरगाह पर भारी सामान लेकर आने वाले कंटेनरों को परिधीय टर्मिनलों पर स्थानांतरित किया जाता है. लेकिन बंदरगाह से होने वाली कमाई से पर्यटन, शिक्षा और समुद्री स्टार्टअप के लिए अपने पुराने तट का पुनर्विकास करके, वालेंसिया ने एक औद्योगिक तट को एक आकर्षक शहरी जिले में बदल दिया है. संपत्ति की कीमतें 2023 में 2,217 रुपये से बढ़कर 2025 में 3,183/m² रुपये हो गई. ये शहर के नए आर्थिक आत्मविश्वास को दर्शाता है.

भारत के पास 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा, 12 प्रमुख बंदरगाह और 200 से ज़्यादा छोटे बंदरगाह हैं. बड़ी तादाद में प्रबंधकीय और इंजीनियरिंग प्रतिभाओं का भंडार, आईआईटी, आईआईएम जैसे विश्वस्तरीय संस्थान और गिफ्ट सिटी में नया वित्तीय बुनियादी ढांचा इसे और भी समृद्ध बनाता है.

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि ब्लू-सिटीज़ में होने वाले बदलाव लोगों के बारे में है, बंदरगाहों के बारे में नहीं. भविष्य के समुद्री कार्यबल में कोडर, पर्यावरण इंजीनियर और वित्तीय विश्लेषक शामिल होंगे. ऐसी प्रतिभाओं की लगातार आपूर्ति के लिए शिक्षा जगत, उद्योग और सरकार के बीच सहयोग ज़रूरी है.

सिंगापुर का मैरीटाइम क्लस्टर फंड संयुक्त अनुसंधान एवं विकास और कौशल विकास को बढ़ावा देता है. रॉटरडैम की मैरीटाइम बाय नेचर पहल सामान्य शिक्षा में समुद्री जागरूकता को शामिल करती है. भारत अपने आईआईटी, आईआईएम और तकनीकी विश्वविद्यालयों के नेटवर्क के माध्यम से इन मॉडलों को अपनाकर कुशल पेशेवरों का एक सतत प्रवाह बना सकता है.

बुनियादी सिद्धांत सरल है. एकीकरण, विस्तार को मात देता है. बंदरगाह तब फलते-फूलते हैं, जब वो उन शहरों से जुड़े होते हैं, जो प्रतिभा, वित्त और अनुसंधान को बढ़ावा देते हैं.

भारत के लिए अवसर

ब्लू सिटीज़ में हो रहा ये बदलाव एक महत्वपूर्ण सवाल पेश करता है: क्या भारत के बंदरगाह अलग-थलग औद्योगिक क्षेत्रों के बजाए शहरी नवाचार के इंजन बन सकते हैं?

अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) ने 2050 तक कार्बन-मुक्ति का लक्ष्य रखा है. ये वैश्विक नौवहन उद्योग के एक ट्रिलियन डॉलर के पुनर्निर्माण का अवसर पेश कर रहा है. ऐसे में भारत का लंबा समुद्र तट एक अद्वितीय अवसर प्रस्तुत करता है. जो देश अपने बंदरगाहों को वित्त, डिजिटल नवाचार और कुशल मानव पूंजी से जोड़ सकते हैं, वही समुद्री शक्ति के अगले अध्याय को परिभाषित करेंगे.

21वीं सदी के मध्य यानी 2050 तक शिपिंग सेक्टर के डीकार्बोनाइजेशन के लिए हाइड्रोजन और अमोनिया ईंधन, जहाजों के नवीनीकरण और विद्युतीकृत बंदरगाहों के लिए 1-3 ट्रिलियन डॉलर के नए निवेश की ज़रूरत होगी. इस वित्तीय आवश्यकता को पूरा करने के लिए शहरों में ठोस कानूनी, नियामक और वित्तीय क्षमता ज़रूरी होगी. अपने बीमा नेटवर्क और मध्यस्थता विशेषज्ञता की वजह से फिलहाल लंदन समुद्री वित्त के क्षेत्र में दुनिया का अग्रणी शहर बना हुआ है. सिंगापुर ने भी एशिया में इसी तरह की संस्थागत प्रणाली विकसित करने में काफ़ी हद तक कामयाबी पाई है.

भारत भी गिफ्ट सिटी (गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक सिटी) के वित्तीय साधनों को तटीय बुनियादी ढांचे से जोड़कर ऐसा ही कर सकता है. ऐसा होने पर घरेलू निवेशकों को ग्रीन-शिपिंग बूम में शामिल होने का मौका मिल सकता है. अगर भारत अपने बंदरगाहों को स्थायी वित्त के केंद्र के रूप में स्थापित करता है, तो वो डीकार्बोनाइजेशन को नियामक बोझ से नवाचार और वैश्विक नेतृत्व के अवसर में बदल सकता है.

भारत का समुद्री भूगोल बहुत विशाल है. भारत के पास 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा, 12 प्रमुख बंदरगाह और 200 से ज़्यादा छोटे बंदरगाह हैं. बड़ी तादाद में प्रबंधकीय और इंजीनियरिंग प्रतिभाओं का भंडार, आईआईटी, आईआईएम जैसे विश्वस्तरीय संस्थान और गिफ्ट सिटी में नया वित्तीय बुनियादी ढांचा इसे और भी समृद्ध बनाता है.

अगर भारत अपनी संस्थाओं, प्रतिभा और वित्त के बीच सही सामंजस्य बिठा सके, तो वो ना सिर्फ समुद्री जहाजों को आगे बढ़ा सकेगा, बल्कि विश्व के समुद्री गुरुत्वाकर्षण के केंद्र को पूर्व की ओर, यानी भारतीय तटों की तरफ ला सकेगा.

मुंबई, चेन्नई, कोच्चि से लेकर विशाखापत्तनम तक, भारत के बंदरगाह शहरों की औद्योगिक दक्षता को तटीय पुनर्विकास से जोड़ा जा सकता है. इसके लिए वैश्विक शहरों द्वारा अपनाई गई सफल ब्लू सिटी रणनीतियों को अपनाया जाना चाहिए. इसका नतीजा ये होगा कि इन शहरों में रहने वाले लोगों को ज़्यादा रोज़गार मिलेगा. सम्पत्ति के मूल्य में बढ़ोत्तरी होगी और जीवन स्तर बेहतर होगा.

क्या योजना होनी चाहिए?

पांच तटीय महानगर, मुंबई, विशाखापत्तनम, चेन्नई, मुंद्रा और कोच्चि, भारत के पायलट ब्लू सिटी के रूप में काम कर सकते हैं. इनमें से हर एक शहर अपनी अनूठी विशेषताओं का लाभ उठाकर ये दिखा सकते हैं कि बंदरगाह किस प्रकार एकीकृत शहरी-समुद्री इकोसिस्टम बन सकते हैं.

 मुंबई एक गहरे बंदरगाह, वित्तीय पूंजी और शैक्षणिक संस्थानों का संगम है, जो बंदरगाह के लॉजिस्टिक को टिकाऊ वित्त और नवाचार से जोड़ सकता है. विशाखापत्तनम की विशेषता नौसेना और जहाज निर्माण में है. चेन्नई उन्नत विनिर्माण और प्रौद्योगिकी को एकीकृत करता है. मुंद्रा निजी निवेश और स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी है, जबकि कोच्चि भारत की समुद्री सेवाओं और अपतटीय अक्षय ऊर्जा का केंद्र है.

ये सभी शहर साथ मिलकर एक राष्ट्रीय नेटवर्क बना सकते हैं. ऐसा होने पर ये दिखाया जा सकेगा कि समन्वित शासन, वित्तीय नवाचार और शहरी उत्थान भारत के समुद्र तट को किस तरह विकास के इंजन में बदल सकते हैं.

महाराष्ट्र इस मामले में अपने प्रभावी राज्य-स्तरीय शासन की कुशलता दिखाता है. महाराष्ट्र समुद्री बोर्ड (एमएमबी) 48 छोटे बंदरगाहों की देखरेख करता है, जिन्होंने 2022-23 में 71 मिलियन टन कार्गो का संचालन किया. ये भारत के गैर-प्रमुख बंदरगाहों में सबसे ज़्यादा है. एमएमबी एक अर्ध-स्वायत्त एजेंसी के रूप में काम करता है, जो सार्वजनिक निगरानी और निजी निवेश के बीच संतुलन बनाता है. दिघी, जयगढ़ और धरमतर बंदरगाह अब राजमार्गों, रिफाइनरियों और औद्योगिक गलियारों को जोड़ने वाले बहुउद्देश्यीय लॉजिस्टिक्स केंद्रों के रूप में विकसित हो रहे हैं. 

सफलता का कारक सिर्फ पैमाने या संख्या को नहीं माना जा सकता. इसमें संस्थागत सुसंगतता थी, जिसमें पूर्वानुमानित रियायत ढांचे, कुशल पर्यावरणीय मंज़ूरियाँ और स्थानीय निकायों के बीच समन्वय शामिल था. सबक स्पष्ट है. भौगोलिक स्थिति नहीं, बल्कि शासन की गुणवत्ता ही परिणाम निर्धारित करती है.

आज भारत में संस्थागत एकीकरण का अभाव है. बंदरगाहों के विकास का काम कई मंत्रालयों, राज्य बोर्डों और स्थानीय एजेंसियों के बीच बंटा हुआ है. ये सभी विभाग अक्सर अलग-थलग होकर काम करते हैं. इसका नतीजा काम में दोहराव, देरी और अवसरों की चूक के रूप में सामने आता है.

इन असली मूल्य को समझने के लिए, भारत को अपने बंदरगाहों को औद्योगिक पिछड़े क्षेत्रों के बजाए शहरी-आर्थिक इंजन के रूप में देखना होगा. समुद्री विकास को वित्तीय मध्यस्थता, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और नवाचार समूहों से जोड़ने की ज़रूरत है, जिससे भारत की तटरेखाओं को उत्पादकता के गलियारों में बदला जा सके.

बंदरगाह शहरों के विकास की रणनीतिक आवश्यकताएं

ब्लू-सिटी विज़न भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का आधार है. जिस तरह चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना हिंद महासागर को नया आकार दे रही है, भारत को भी आत्मनिर्भर, नवाचार-संचालित समुद्री केंद्रों के साथ इसका जवाब देना चाहिए. एक ऐसी रणनीति, जो आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करें और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मज़बूत करें. बंदरगाहों को डिजिटल, वित्तीय और अनुसंधान नेटवर्क के साथ एकीकृत करके, ब्लू सिटीज़ समुद्री क्षेत्र जागरूकता और राष्ट्रीय लचीलेपन को मज़बूत कर सकते हैं. बंदरगाह और शहरों एकीकरण सिर्फ विकास के नज़रिए से ही नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी ज़रूरी है.
मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 और ब्लू इकोनॉमी पॉलिसी फ्रेमवर्क के साथ, भारत को अब गति और समन्वय की आवश्यकता है. ब्लू सिटीज़ के निर्माण से उच्च-कौशल वाली नौकरियां पैदा हो सकती हैं, तटीय नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है और भारत की वैश्विक समुद्री हिस्सेदारी का विस्तार हो सकता है. 2047 तक, फलते-फूलते तटीय शहरों का एक नेटवर्क ना सिर्फ वस्तुओं, बल्कि विचारों, तकनीक और प्रभाव का भी प्रचार और प्रसार कर सकता है.

दुनिया का समुद्री नक्शा नए सिरे से तैयार किया जा रहा है. जो बंदरगाह अलग-थलग रहेंगे, वो लुप्त हो जाएंगे. जो एकीकृत होंगे, वो आगे बढ़ेंगे. ब्लू-सिटी का विचार को अपने समुद्र तट को अवसरों में बदलने का एक ढांचा प्रदान करता है. ये एक ऐसी व्यवस्था है, जहां लॉजिस्टिक्स का मिलन फिनटेक (फाइनेंस और टेक) से होता है, जहां स्थिरता का मिलन रणनीति से होता है.

अगर भारत अपनी संस्थाओं, प्रतिभा और वित्त के बीच सही सामंजस्य बिठा सके, तो वो ना सिर्फ समुद्री जहाजों को आगे बढ़ा सकेगा, बल्कि विश्व के समुद्री गुरुत्वाकर्षण के केंद्र को पूर्व की ओर, यानी भारतीय तटों की तरफ ला सकेगा.


ये लेख आउटलुक बिज़नेस में प्रकाशित हो चुका है.

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Author

Ashish Kumar Singh

Ashish Kumar Singh

Ashish Kumar Singh is a Former Additional Chief Secretary, Transport & Ports, Government of Maharashtra; Distinguished Fellow, Observer Research Foundation ...

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