Published on Mar 31, 2023 Updated 0 Hours ago

अब जबकि श्रीलंका क़र्ज़ लौटाने की मियाद फिर तय करने के अहम दौर में प्रवेश कर रहा है, तो उसे अपने घरेलू और बाहरी दबावों के बीच संतुलन बैठाना होगा.

श्रीलंका: आर्थिक बहाली से दोबारा संकट में पड़ने के बीच

20 मार्च 2023 को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के कार्यकारी बोर्ड ने श्रीलंका की मदद के लिए चार साल के 2.9 अरब डॉलर के राहत पैकेज का एलान किया. इस मंज़ूरी से श्रीलंका को IMF से फ़ौरी तौर पर 33.3 करोड़ डॉलर की रक़म मिल जाएगी. इस फ़ैसले से श्रीलंका को अन्य देशों और संस्थानों से भी 7 अरब डॉलर की आर्थिक मदद मिलने की राह खुल गई है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का पैकेज प्राप्त करने के लिए श्रीलंका को मुश्किल वित्तीय सुधार आगे बढ़ाने होंगे और अपने मुख्य क़र्ज़दाताओं जैसे कि भारत, जापान और चीन के साथ क़र्ज़ अदायगी में और रियायतों की गारंटी हासिल करनी होगी. इन देशों से गारंटी हासिल करने के बाद श्रीलंका को अब IMF के नीतिगत सुझावों का पालन करते हुए क़र्ज़ वापसी की अपनी योजनाएं नए सिरे से बनाते हुए आर्थिक स्थिरता को भी क़ायम रखना होगा. श्रीलंका की आर्थिक स्थिति सुधरेगी या वो दोबारा पतन के गर्त में चला जाएगा, ये दोनों ही सूरतें इस बात पर निर्भर करेंगी कि वो आने वाले समय में घरेलू और बाहरी दबावों का सामना किस तरह करता है.

श्रीलंका में भारत एक फ्री फ्लोटिंग डॉक सुविधा का निर्माण करने जा रहा है; वो एक समुद्री बचाव समन्वय केंद्र भी बना रहा है, जिसकी एक उप इकाई चीन द्वारा संचालित हंबनटोटा बंदरगाह में भी स्थापित की जाएगी; और, भारत ने श्रीलंका को एक डोर्नियर विमान भी दिया है.

श्रीलंका को दलदल से निकालना: अब तक का सफ़र

भारत, श्रीलंका को जो मदद दे रहा है, वो उसकी मानवीय चिंताओं और राष्ट्रीय हितों पर आधारित है. ये सहायता व्यापक दृष्टिकोण पर आधारित रही है और अब तक भारत 3.9 अरब डॉलर की मदद दे चुका है. इसमें मुद्रा के विनिमय, सहायता, रियायती क़र्ज़, मूलभूत ढांचे के विकास में मदद और मानवीय आपूर्ति शामिल हैं. इस सहायता के साथ साथ भारत ने श्रीलंका और हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति भी बढ़ा दी है. श्रीलंका में भारत एक फ्री फ्लोटिंग डॉक सुविधा का निर्माण करने जा रहा है; वो एक समुद्री बचाव समन्वय केंद्र भी बना रहा है, जिसकी एक उप इकाई चीन द्वारा संचालित हंबनटोटा बंदरगाह में भी स्थापित की जाएगी; और, भारत ने श्रीलंका को एक डोर्नियर विमान भी दिया है. भारत ने सामरिक रूप से अहम ठिकाने में स्थित त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म के विकास में 7.5 करोड़ डॉलर की रक़म ख़र्च करने का वादा भी किया है. बहुपक्षीय स्तर पर भारत ने अपने क्वाड साझीदारों (अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) से भी श्रीलंका की मदद के लिए संपर्क किया है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में भी श्रीलंका के पक्ष में बात रखी है और उसको दिए गए क़र्ज़ की मियाद में रियायत देने वाला पहला देश भी बन गया है.

जापान, लंबे समय से श्रीलंका का दानदाता और विकास में साझीदार रहा है. श्रीलंका के बाहरी क़र्ज़ में जापान की हिस्सेदारी सन् 2000 में 32 प्रतिशत थी, जो 2022 में घटकर केवल 8 प्रतिशत (लगभग 2.7 अरब डॉलर) रह गई थी. जापान ने श्रीलंका को ये ऋण बहुत कम ब्याज दर और चुकाने की लंबी मियाद के साथ दिए थे. भारत के उलट, संकट के शिकार श्रीलंका को जापान की मदद, मानवीय आधार पर की गई है. संकट की शुरुआत से ही जापान ने अपनी परियोजनाओं और निवेश को रोक दिया था और क़र्ज़ के दलदल में फंसे श्रीलंका को 10.4 करोड़ डॉलर की आर्थिक सहायता प्रदान की थी, जो जापान द्वारा श्रीलंका को दी गई सबसे बड़ी मानवीय मदद थी. जापान ने पेरिस क्लब और अन्य द्विपक्षीय क़र्ज़दाताओं के साथ श्रीलंका के आर्थिक संकट पर वार्ता में काफ़ी सक्रियता से भाग लिया है इस साल जनवरी में ही जापान और श्रीलंका ने क़र्ज़ अदायगी की मियाद में रियायत की वार्ताएं पूरी कर ली थीं, और फ़रवरी में पेरिस क्लब- जिसमें 21 अन्य सदस्य शामिल हैं- ने आम सहमति से IMF को भरोसा दिया था कि वो श्रीलंका को दिए गए क़र्ज़ को लौटाने में रियायतें देंगे.

श्रीलंका पर चीन का क़र्ज़ 1990 के दशक में उसके कुल बाहरी ऋण के 0.3 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में लगभग 20 फ़ीसद (7.4 अरब डॉलर) पहुंच गया था. इससे चीन, श्रीलंका को क़र्ज़ देने वाला सबसे बड़ा द्विपक्षीय लेनदार बन गया था.

श्रीलंका पर चीन का क़र्ज़ 1990 के दशक में उसके कुल बाहरी ऋण के 0.3 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में लगभग 20 फ़ीसद (7.4 अरब डॉलर) पहुंच गया था. इससे चीन, श्रीलंका को क़र्ज़ देने वाला सबसे बड़ा द्विपक्षीय लेनदार बन गया था. लगभग 4.3 अरब डॉलर के ऋण चीन के आयात निर्यात बैंक (EXIM Bank) के हैं और लगभग तीन अरब डॉलर का लोन चाइना डेवेलपमेंट बैंक का है. इन दोनों ही बैंक का प्रबंधन चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के हाथ में है. लंबे समय से चीन ने श्रीलंका को IMF के पास मदद के लिए जाने से रोक रखा था और पुराने क़र्ज़ वापस करने के लिए उसे नए ऋण देने का प्रस्ताव दिया था. जैसे जैसे श्रीलंका का आर्थिक संकट गहरा होता गया, चीन ने उसकी 4 अरब डॉलर की नई सहायता की गुज़ारिश की अनदेखी करनी शुरू कर दी. क़र्ज़ अदायगी की समय सीमा में रियायत देने की चीन की अनिच्छा के कारण श्रीलंका, IMF की दिसंबर और जनवरी की समय सीमा पूरी नहीं कर सका. जब भारत ने श्रीलंका को क़र्ज़ देने का वादा किया, तब जाकर चीन और उसका आयात निर्यात बैंक, क़र्ज़ अदा करने में दो साल की रियायत देने पर राज़ी हुआ. मार्च की शुरुआत में जाकर आख़िरकार चीन के Exim Bank ने श्रीलंका के क़र्ज़ वापस करने की मियाद बढ़ाने पर सहमति जताई, क्योंकि उससे पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पहले प्रस्तावित की गई समय सीमा पर सहमति नहीं जताई थी. अब तक चाइना डेवलपमेंट बैंक ने ऐसी कोई रियायत देने का वादा नहीं किया है.

क़र्ज़ और रियायतों का नया दौर?

IMF के बोर्ड द्वारा श्रीलंका के राहत पैकेज को मंज़ूरी दिए जाने के बाद, अब श्रीलंका को आर्थिक स्थिरता को प्राथमिकता देनी होगी और अपने ऋणदाताओं के साथ क़र्ज़ लौटाने की मियाद में रियायतों की योजनाएं तैयार करनी होंगी. लेकिन जैसा कि कहा जाता है कि मुफ़्त में कुछ नहीं मिलता. तो, अब श्रीलंका को लोन देने वाले देश दबाव या तर्क वितर्क का इस्तेमाल करके श्रीलंका को दिए गए क़र्ज़ की वापसी में रियायतों के ज़रिए अपने हितों को आगे बढ़ाएंगे.

जहां तक भारत का मामला है तो श्रीलंका ने आर्थिक और तकनीकी सहयोग के समझौते (ETCA) को दोबारा जारी करने में अधिक दिलचस्पी दिखाई है. दोनों देशों के बीच ये समझौता 2019 से ही अटका हुआ है. श्रीलंका, भारत के साथ अपने असंतुलित व्यापार को भी संतुलित बनाने पर ध्यान देगा और इसके लिए वो भारत से श्रीलंका के आयातों की हिस्सेदारी और बढ़ाने की गुज़ारिश करेगा. वहीं दूसरी तरफ़, भारत अपेक्षा कर रहा है कि वो श्रीलंका के पर्यटन, ऊर्जा और मूलभूत ढांचे के उद्योगों में अपना निवेश और बढ़ाएगा. भारत ने श्रीलंका से ये अपील भी की है कि वो तमिलों के साथ मेल-जोल करे और संविधान के 13वें संशोधन को लागू करे.

जापान के साथ श्रीलंका, नवीनीकरण योग्य ऊर्जा क्षेत्र, रेलवे, सार्वजनिक परिवहन, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों और जल आपूर्ति में निवेश को लेकर उत्सुक है. IMF द्वारा राहत पैकेज को मंज़ूरी देने से जापान को श्रीलंका में अपनी परियोजनाएं दोबारा शुरू करने की राह मिल गई है. ये परियोजनाएं 1.6 से 2.5 अरब डॉलर के बीच की है. श्रीलंका ने जापान को ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल देने का प्रस्ताव भी दोबारा दिया है और जापान ने त्रिंकोमाली बंदरगाह

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