Published on Jul 31, 2023 Commentaries 0 Hours ago

भारत यह बताने में भी सफल रहा कि भले हमारे मतभेद बने रहें, लेकिन इनका हमारी रणनीति पर असर नहीं पड़ना चाहिए.

दुनिया को आज क्यों है भारत की ज़रूरत?
दुनिया को आज क्यों है भारत की ज़रूरत?

कुछ दिनों से भारत एक तरह से अंतरराष्ट्रीय रणनीति के केंद्र में है. इस बीच, हमने इस मामले में कुछ बहुत महत्वपूर्ण दौरे देखे हैं. एक तरफ यूरोपीय देशों के नेता भारत आए. चाहे ब्रिटिश फॉरेन सेक्रेट्री हों, जर्मन नैशनल सिक्यॉरिटी अडवाइजर हों, नीदरलैंड के फॉरेन मिनिस्टर हों या अमेरिका के डेप्युटी एनएसए या फिर रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव. यही नहीं, उससे पहले एक बड़ा ही अप्रत्याशित और खास दौरा चीनी विदेश मंत्री का भी हुआ. दो साल बाद चीन से कोई नेता भारत आया. यह दिखाता है कि यूक्रेन युद्ध को लेकर अंतरराष्ट्रीय पटल पर जो उथल-पुथल मची हुई है, उसमें भारत का रुख़ क्या रहता है, इसे लेकर काफी दिलचस्पी बनी हुई है.

दो साल बाद चीन से कोई नेता भारत आया. यह दिखाता है कि यूक्रेन युद्ध को लेकर अंतरराष्ट्रीय पटल पर जो उथल-पुथल मची हुई है, उसमें भारत का रुख़ क्या रहता है, इसे लेकर काफी दिलचस्पी बनी हुई है.

रूसी तेल पर छूट

दुनिया भर के देशों की इस बात में काफी रुचि है और भारत पर अलग-अलग देशों की ओर से दबाव भी डाला जा रहा है. हमने देखा कि अमेरिकन डेप्युटी नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर का कहना था कि भारत अगर अपनी इकोनॉमिक रिलेशनशिप रूस के साथ बढ़ाता रहता है तो उसे दिक़्क़तों का सामना करना पड़ेगा. दूसरी तरफ हमने रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव का बयान भी देखा, जिसमें उन्होंने कहा कि भारत को वह न सिर्फ़ तकनीक मुहैया कराना चाहते हैं, बल्कि जो डिस्काउंटेड ऑयल है, वह भी देने पर विचार कर रहे हैं. उसके बाद हमारी वित्त मंत्री ने कहा कि छूट वाला तेल भारत के हित में है, तो हम उसको खरीदने के लिए तैयार हैं.

भारत की विदेश नीति अभी तक अपना हित साधने में सफल हुई है क्योंकि भारत के लिए दोनों ही पलड़े महत्वपूर्ण हैं. वह किसी भी कैंप के साथ नहीं है. भारत ने यूक्रेन युद्ध को लेकर इस बात पर बार-बार जोर दिया है कि यूएन चार्टर और इंटरनेशनल लॉ को फॉलो करना चाहिए. यह भारत ने रूस से भी कहा. दूसरी तरफ भारत ने इस बात से भी दूरी बनाए रखी कि रूस को अलग-थलग किया जाए या उस पर प्रतिबंध लगाए जाएं. भारत एक बैलेंस बनाकर चल रहा है. इसमें सबसे ऊपर है यह सावधानी कि उसके अपने हितों से कोई समझौता ना हो.

भारत की विदेश नीति अभी तक अपना हित साधने में सफल हुई है क्योंकि भारत के लिए दोनों ही पलड़े महत्वपूर्ण हैं. वह किसी भी कैंप के साथ नहीं है. भारत ने यूक्रेन युद्ध को लेकर इस बात पर बार-बार जोर दिया है कि यूएन चार्टर और इंटरनेशनल लॉ को फॉलो करना चाहिए.

जहां तक रूस का सवाल है, तो वह भारत का एक ऐतिहासिक पार्टनर रहा है. इस समय रूस पर भारत की हथियारों की निर्भरता 55 फीसदी के आसपास है. तो भारत के लिए जरूरी है कि रूस के साथ स्थिर संबंध रहें. इन संबंधों की स्थिरता पर ही भारत चीन के खिलाफ अपनी रणनीति भी बना सकता है. दूसरी तरफ भारत पश्चिमी देशों के साथ भी पिछले कुछ दशकों से लगातार घनिष्ठता बढ़ा रहा है. ख़ासकर, हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत समान सोच वाले देशों को एक साथ लाना चाहता है. इसमें यूरोपीय देश और अमेरिका शामिल हैं. अमेरिका के साथ भारत क्वॉड का भी मेंबर है.

यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद अभी तक भारत ने जिस तरह का संतुलन बनाया है, वह उसकी डिप्लोमैसी की कामयाबी है. आपको यह जानकार ताज्जुब होगा कि भारत में एक दिन ऐसा भी था, जब अमेरिकी डेप्युटी एनएसए, ब्रिटिश फॉरेन सेक्रेट्री और रूसी विदेश मंत्री मौजूद थे. भारत के अलावा दुनिया में ऐसे ज्यादा देश नहीं हैं. ऐसे में भारत की बहुध्रुवीय दुनिया की जो कल्पना है, उसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी संभावनाएं खुली हैं. इतना ही नहीं, इंटरनेशनल डिप्लोमैसी में भारत अपनी खास जगह भी बनाने में सफल हुआ है. रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भी कहा कि अगर भारत यूक्रेन क्राइसिस में किसी तरह के मध्यस्थ की भूमिका निभाता है तो उससे रूस को कोई ऐतराज नहीं होगा.

भारत का ज़वाब 

इस समय भारत का पक्ष इतना प्रबल है कि उसे एक जिम्मेदार ग्लोबल प्लेयर के रूप में देखा जा रहा है. अगर भारत के ऊपर किसी तरह के प्रश्नचिह्न उठ भी रहे हैं तो वो ऐसे संदर्भ में उठ रहे हैं, जहां भारत के अपने हित हैं, और उन्हें वह जैसे साध रहा है, उसे लेकर चर्चा या बहस हो रही है. मसलन, यह कहा जा रहा है कि भारत रूस से क्यों तेल ले रहा है. भारत ने इसका जवाब दो तरीके से दिया. एक तो यह कहा कि यह हमारे हित में जरूरी है. ऐसे समय में जब महंगाई बढ़ रही है, कच्चे तेल की कीमत में ज़बरदस्त तेजी आई है तो भारत को इसकी ख़रीद सस्ते में क्यों नहीं करनी चाहिए. दूसरे, हमारे विदेश मंत्री ने पिछले दिनों बिल्कुल साफ तरीके से यह बात रखी कि यूरोपीय देश खुद भी रूस के साथ व्यापार कर रहे हैं. उन्होंने रूस से तेल और गैस की ख़रीददारी जारी रखी है.

इंटरनेशनल डिप्लोमैसी में भारत अपनी खास जगह भी बनाने में सफल हुआ है. रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भी कहा कि अगर भारत यूक्रेन क्राइसिस में किसी तरह के मध्यस्थ की भूमिका निभाता है तो उससे रूस को कोई ऐतराज नहीं होगा.

जिस तरह से भारत अंतरराष्ट्रीय पटल पर लीड रोल प्ले करना चाहता है, उसका एक प्रभाव हमको यूक्रेन युद्ध के दौरान देखने को मिल रहा है. भारत के सभी मित्र देश हैं और अपने मित्र देशों के साथ भारत के जो मतभेद हैं भी, वह उन्हें मज़बूती के साथ रख पा रहा है. रूस से भारत कह रहा है कि उसे यूएन चार्टर फॉलो करना चाहिए. पश्चिमी देशों से कह रहा है कि हम पर दबाव ना डाला जाए, हम अपने तरीके से इस बात को हैंडल करेंगे और यूक्रेन को भी भारत मदद दे रहा है.

ऐसे समय में जब महंगाई बढ़ रही है, कच्चे तेल की कीमत में ज़बरदस्त तेजी आई है तो भारत को इसकी ख़रीद सस्ते में क्यों नहीं करनी चाहिए. दूसरे, हमारे विदेश मंत्री ने पिछले दिनों बिल्कुल साफ तरीके से यह बात रखी कि यूरोपीय देश खुद भी रूस के साथ व्यापार कर रहे हैं. उन्होंने रूस से तेल और गैस की ख़रीददारी जारी रखी है.

हरेक रिश्ते की कद्र

इसीलिए भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसके ऊपर न सिर्फ सबकी निगाहें बनी हुई हैं. जिस तरफ भी भारत मुड़ेगा, इस क्राइसिस में उस साइड को काफी फायदा होगा. यही पिछले दिनों हुए इतने सारे दौरों में देखने को मिला. अब इनके जो भी परिणाम सामने आएं, भारत मतभेदों के बावजूद अपने संबंधों को और प्रगाढ़ करने में सफल रहा. चाहे वह ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका के साथ हो या रूस के. भारत यह बताने में भी सफल रहा कि भले हमारे मतभेद बने रहें, लेकिन इनका हमारी रणनीति पर असर नहीं पड़ना चाहिए. मुझे लगता है कि हमारी डिप्लोमेसी कितनी सफल है या कितनी असफल, इसे जांचने का यह बहुत बड़ा मापदंड है.


यह लेख मूल रूप से नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.

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