Author : Shoba Suri

Published on Sep 08, 2022 Updated 0 Hours ago

इस साल के पोषण माह अभियान के तहत महिलाओं और बच्चों में कुपोषण की समस्या का समाधान करने के लिए ज़िले के स्तर पर कई तरह की गतिविधियां चलाने की पहल की गई हैं.

राष्ट्रीय पोषण माह: बच्चों में कुपोषण की समस्या का समाधान ढूंढने का प्रयास

सितंबर के पहले सप्ताह को राष्ट्रीय पोषण सप्ताह के रूप में मनाया जाता है. इसका उद्देश्य अच्छे स्वास्थ्य, वृद्धि और आर्थिक विकास के लिए पोषण के महत्व के बारे में जागरुकता फैलाना है. पहली बार राष्ट्रीय पोषण सप्ताह के विचार की शुरुआत 1973 में अमेरिकन डाइटेटिक (आहार संबंधी) एसोसिएशन के द्वारा की गई थी ताकि लोगों को पोषण के बारे में शिक्षित किया जा सके. भारत में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह के विचार की शुरुआत 1982 में की गई जिससे कि एक स्वस्थ और सतत जीवनचर्या में पोषण के महत्व के बारे में जागरुक किया जा सके. इसके बाद राष्ट्रीय पोषण मिशन या पोषण अभियान शुरू किया गया ताकि 2022 तक ‘कुपोषण मुक्त भारत’ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में उचित शारीरिक विकास में गड़बड़ी एवं जन्म के समय कम वज़न को सालाना 2 प्रतिशत और एनीमिया (खून की कमी) को 3 प्रतिशत कम किया जा सके. पोषण अभियान शुरू होने के बाद सितंबर के महीने को ‘पोषण माह’ के रूप में मनाया जाता है.

ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार भूख के मामले में भारत में स्थिति बिगड़ती जा रही है और 116 देशों में भारत 101वें पायदान पर है. इस तरह भारत भूख के ‘गंभीर’ स्तर का सामना कर रहा है. ताज़ा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (2019-21) पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण के ऊंचे स्तर को दिखाता है. सर्वे के मुताबिक़ 35.5 प्रतिशत से ज़्यादा बच्चों का विकास ठीक ढंग से नहीं हुआ है, 19.3 प्रतिशत बच्चे कमज़ोर हैं और 32.1 प्रतिशत बच्चों का वज़न कम है. पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों और प्रजनन के योग्य महिलाओं के उम्र समूह में एनीमिया काफ़ी ज़्यादा (67.1 प्रतिशत और 57 प्रतिशत क्रमश:) पाई गई. नवजात और छोटे बच्चों के बीच मां के दूध पीने की शुरुआत (41.8 प्रतिशत) और समय पर पूरक आहारों की शुरुआत (45.9 प्रतिशत) में कमी पाई गई. 11.3 प्रतिशत बच्चों को ही न्यूनतम पर्याप्त आहार मिल पाता है.

ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार भूख के मामले में भारत में स्थिति बिगड़ती जा रही है और 116 देशों में भारत 101वें पायदान पर है. इस तरह भारत भूख के ‘गंभीर’ स्तर का सामना कर रहा है.

भारत के लिए ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ अध्ययन से संकेत मिलता है कि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की होने वाली कुल मौतों में 68.2 प्रतिशत का कारण कुपोषण है. प्रमाणों से संकेत मिलता है कि बचपन में किसी बच्चे का उचित शारीरिक विकास नहीं होने का असर आने वाली पीढ़ी पर भी पड़ता है और ये आर्थिक उत्पादकता में नुक़सान से जुड़ा हुआ है. भारत में छोटे पैमाने पर हुए अध्ययन में दो बच्चों के जन्म के बीच की दूरी, जन्म के समय कम वज़न, मां का दूध पिलाने की अवधि, गर्भ धारण के समय मां की उम्र एवं उसकी शिक्षा को पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में उचित शारीरिक विकास नहीं होने के पीछे ज़िम्मेदार पाया गया है.  

राहत के लिए उपाय

1975 में समन्वित बाल विकास योजना और 1995 में मिड-डे मील कार्यक्रम (अब पीएम पोषण योजना) की शुरुआत के साथ भारत ने कुपोषण के ख़िलाफ़ लड़ाई को उच्च प्राथमिकता दी है. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष उपायों के माध्यम से पोषण की कमी की समस्या का मुक़ाबला करने के लिए 1993 में राष्ट्रीय पोषण नीति की भी शुरुआत की गई. इसी तरह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत किफ़ायती दाम पर लोगों तक पर्याप्त मात्रा में अच्छी गुणवत्ता वाले आहार की पहुंच सुनिश्चित करके मानवीय जीवन में खाद्य और पोषण संबंधी सुरक्षा प्रदान की गई. लेकिन इन क़दमों के बावजूद पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के बीच कुपोषण अभी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी एक चिंता बना हुआ है.

इस साल पांचवें ‘राष्ट्रीय पोषण माह’ का उद्देश्य ‘सुपोषित भारत’ के दृष्टिकोण को पूरा करने के लिए ‘जन आंदोलन’ को ‘जन भागीदारी’ में बदलना है. राष्ट्रीय पोषण माह की कोशिश पोषण के बारे में जागरुकता पैदा करना और कुपोषण की चुनौती का सामना करने के लिए समुदाय की भागीदारी का इस्तेमाल करना है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और राज्यों के विभाग स्वस्थ दिनचर्या के उद्देश्य से संपूर्ण पोषण को लेकर जागरुकता फैलाने के लिए कार्यकलाप करते हैं. ये हर साल विषय आधारित गतिविधियों के साथ मनाया जाता है. इस साल जन भागीदारी के तहत संरपच और ग्राम पंचायत को शामिल करके ‘पोषण पंचायत’ को सक्रिय करने पर ज़ोर है. जिन कार्यकलापों की योजना बनाई गई है, उनमें महिला एवं स्वास्थ्य, बच्चा एवं शिक्षा पोषण भी, पढ़ाई भी, लैंगिक दृष्टि से संवेदनशील जल संरक्षण एवं प्रबंधन और आदिवासी क्षेत्रों में महिलाओं एवं बच्चों के लिए परंपरागत आहार जैसे विषय शामिल हैं. इसके ज़रिए पोषण से जुड़े नतीजों को प्रभावित करने वाले अलग-अलग मंत्रालयों एवं विभागों को एक साथ लाने की कोशिश भी की गई है.

राष्ट्रीय पोषण माह की कोशिश पोषण के बारे में जागरुकता पैदा करना और कुपोषण की चुनौती का सामना करने के लिए समुदाय की भागीदारी का इस्तेमाल करना है.

पोषण माह के तहत पंचायत स्तर पर कई तरह की गतिविधियों की शुरुआत की जाएगी. पोषण पंचायत समितियां फ्रंटलाइन कर्मियों- आंगनवाड़ी कर्मी, एक्रेडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट (आशा कर्मी), ऑग्जिलरी नर्स मिडवाइफ (एएनएम)- के साथ मिलकर ग्राम स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस के दौरान आंगनवाड़ी केंद्रों पर मां एवं बच्चों के पोषण को लेकर जागरुकता पैदा करने और समस्याओं के समाधान का काम करेंगी. बच्चों के विकास पर निगरानी रखने का अभियान राज्य एवं ज़िला स्तर के कर्मियों के द्वारा ‘स्वस्थ बालक स्पर्धा’ के तहत चलाया जाएगा. किशोर उम्र की लड़कियों में खून की कमी की जांच के लिए स्वास्थ्य शिविर लगाए जाएंगे. पोषण वाटिका को विकसित करने, वर्षा जल संचयन और स्वस्थ मां एवं बच्चे के लिए आदिवासी क्षेत्रों में परंपरागत आहार पर विशेष ज़ोर के साथ अभियान चलाए जाएंगे. परंपरागत आहार को स्थानीय त्योहारों के साथ जोड़ने की कोशिश होगी जिसके लिए परंपरागत पौष्टिक व्यंजनों से भरपूर ‘अम्मा की रसोई’ का आयोजन किया जाएगा. आंगनवाड़ी कर्मियों के ज़रिए महिला एवं बाल विकास विभाग; आशा कर्मियों, एएनएम, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के ज़रिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग; स्कूलों के ज़रिए स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग; पंचायत के ज़रिए पंचायती राज विभाग; और स्वयं-सहायता समूहों के ज़रिए ग्रामीण विकास विभाग को शामिल करके महिलाओं एवं बच्चों के लिए अच्छे पोषण को लेकर जागरुकता का प्रसार किया जाएगा.

सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं का समाधान करके आदर्श पोषण संबंधी पद्धति हासिल करने के लिए असरदार सामाजिक एवं व्यवहार में बदलाव वाली संचार रणनीति की आवश्यकता है.

असरदार ढंग से कुपोषण का मुक़ाबला करने के लिए ये ज़रूरी है कि गर्भ धारण करने से लेकर बच्चे के पांच वर्ष पूरा करने तक सभी तरह के उपायों में ताल-मेल कायम करना चाहिए. सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं का समाधान करके आदर्श पोषण संबंधी पद्धति हासिल करने के लिए असरदार सामाजिक एवं व्यवहार में बदलाव वाली संचार रणनीति की आवश्यकता है. कुपोषण की समस्या का समाधान करने के लिए राष्ट्रीय विकास के एजेंडे में कार्यक्रमों की प्रभावशाली निगरानी एवं क्रियान्वयन और बच्चों के बीच कुपोषण में कमी को प्राथमिकता के आधार पर शामिल करना होगा. बच्चों, गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली मां के बीच पोषण से जुड़े बेहतर नतीजों के लिए पोषण माह की भावना का पूरे साल पालन करना चाहिए.

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