Author : Harsh V. Pant

Originally Published दैनिक जागरण Published on Jun 18, 2025 Commentaries 0 Hours ago

देखना होगा कि अरब देश संघर्ष लंबा खींचने पर क्या रूख अख्तियार करते हैं.

लंबा खिंचेगा इजरायल का सैन्य अभियान

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दुनिया में पहले से ही काफी उथल पुथल मची हुई है. इजरायल ने पहले ईरान के प्राक्सी समूहों हमास और हिजबुल्लाह के खिलाफ सैन्य अभियान चला कर उनको काफी कमजोर कर दिया है. इसके बाद उसने ईरान पर हमला किया है. उसके हमले से ऐसा लगता है कि वह ईरान के खिलाफ हमले की काफी समय से तैयारी कर रहा था. इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने जिस तरह ईरान में घुस कर सटीक हमले किए हैं और उनके शीर्ष सैन्य कमांडरों और परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बनाया है, वह एक बड़ी प्लानिंग का नतीजा है. इजरायल ईरान को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है. खासकर उसे लगता है कि अगर ईरान ने परमाणु बम बना लिया तो उसके लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा. इसीलिए इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू कह रहे हैं कि हम ईरान को परमाणु बम नहीं बनाने देंगे. इसी समय अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप का आना भी इजरायल के लिए बेहतर मौका लेकर आया. इजरायल ने इस मौके का इस्तेमाल किया. वैसे तो अमेरिका कह रहा है कि इजरायल के हमले में वह शामिल नहीं है,

अगर ईरान ने परमाणु बम बना लिया तो उसके लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा. इसीलिए इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू कह रहे हैं कि हम ईरान को परमाणु बम नहीं बनाने देंगे.

राजनीतिक नेतृत्व को खत्म करना आसान नहीं

लेकिन सैन्य मामलों के जानकारों का मानना है कि अमेरिका की मदद के बिना इजरायल के लिए ईरान पर इतना घातक हमला करना संभव नहीं है. अब सवाल यह है कि इजरायल का रणनीतिक लक्ष्य क्या है. क्या इजरायल अमेरिका के साथ मिल कर ईरान में सत्ता में बदलाव करने का प्रयास करेगा या उसका लक्ष्य ईरान की परमाणु बम बनाने की क्षमता को खत्म करना है. ईरान में सत्ता में बदलाव के लिए जरूरी है कि ईरान के लोग सड़कों पर उतरें और सत्ता के खिलाफ खड़े हों. अभी तक ईरान से इस तरह के कोई संकेत नहीं मिल रहा है. वहीं एक रणनीति यह हो सकती है कि जैसे इजरायल ने ईरान के शीर्ष सैन्य नेतृत्व और शीर्ष परमाणु वैज्ञानिकों को खत्म किया है उसी तरह से शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व को खत्म कर दे. हालांकि राजनीतिक नेतृत्व को खत्म करना आसान नहीं होगा. देखना होगा कि इसमें अमेरिका इजरायल का साथ देगा या नहीं. इसके अलावा खाड़ी क्षेत्र न के दूसरे देश कैसे प्रतिक्रिया देंगे, व यह भी सोचना होगा. अभी तक खाड़ी देशों ने दोनों देशों से संयम बरतने की ही अपील की है. यह . बात भी सही है कि खाड़ी क्षेत्र में कोई भी देश नहीं चाहता है कि ईरान परमाणु बम बनाए, लेकिन अगर राजनीतिक नेतृत्व को खत्म करने की बात आती है तो मुस्लिम देशों की सरकारों को भी अपनी जनता के बारे में सोचना होगा. मुस्लिम देशों की जनता में यह सोच पहले से है कि यहूदी सरकार मुस्लिमों पर अत्याचार कर रही है. ऐसे में उनके लिए भी अपनी जनता की भावनाओं को नियंत्रित करना आसान नहीं होगा. वहीं इजरायल के सामने भी एक बड़ी चुनौती है कि अगर उसने संघर्ष शुरू किया है तो वह ईरान के खतरे को हमेशा के लिए खत्म करें. ऐसे में इजरायल का सैन्य अभियान लंबा चल सकता है. ईरान के प्राक्सी जैसे हमास और हिजबुल्ला पहले ही कमजोर हो चुके हैं, अब उनमें पहले जैसी ताकत नहीं है कि वह ईरान और इजरायल के बीच चल रहे संघर्ष में निर्णायक हस्तक्षेप कर सकें.

एक रणनीति यह हो सकती है कि जैसे इजरायल ने ईरान के शीर्ष सैन्य नेतृत्व और शीर्ष परमाणु वैज्ञानिकों को खत्म किया है उसी तरह से शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व को खत्म कर दे. हालांकि राजनीतिक नेतृत्व को खत्म करना आसान नहीं होगा.

अरब देशों का रुख 

यह देखना अभी अहम होगा कि अमेरिका इजरायल को किस हद तक समर्थन देता है. क्या अमेरिका का समर्थन ईरान की मौजूदा इस्लामी सत्ता को हटाने या उसे खत्म करने तक जाएगा. इसके अलावा, यह भी देखना होगा कि अरब देश संघर्ष लंबा खींचने पर क्या रूख अख्तियार करते हैं. कूटनीतिक प्रयासों से जल्द ही संघर्ष विराम हो जाता है और ईरान का मौजूदा नेतृत्व बचा रहता है तो संभव है कि वह परमाणु बम बनाने के प्रयासों को और तेज कर दे. ईरान के मौजूदा नेतृत्व को पता है कि इराक और लीबिया के साथ क्या हुआ और उत्तर कोरिया पर कोई हमला करने की हिम्मत क्यों नहीं करता है.

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