Author : Jhanvi Tripathi

Published on Sep 10, 2022 Updated 24 Days ago

डिजिटल क्षेत्र व्यापार को बहुत बड़ी शक्ति देता है. सीमा पार सेवाओं की आपूर्ति की गति को बनाए रखने के लिए एक स्थायी नियामक रूप-रेखा ज़रूरी है.

आईपीईएफ और भारत के डिजिटल व्यापार से जुड़ी दुविधा!

भारत समेत 14 देशों के द्वारा अपनाई गई इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) के व्यापार मंत्रियों की पहली आमने-सामने की बैठक सितंबर 2022 में आयोजित हो रही है. उम्मीद लगाई जा रही है कि इस बैठक में औपचारिक बातचीत के दौरान आगे की रूप-रेखा तैयार की जाएगी. आईपीईएफ डिजिटल व्यापार और मानकों के सामंजस्य पर बहुत ज़्यादा ज़ोर देता है. आईपीईएफ के चार खंभों में ‘एक-दूसरे से जुड़ी हुई अर्थव्यवस्था’ का खंभा, जिसे व्यापक तौर पर व्यापार खंभे के रूप में भी देखा जाता है, काफ़ी हद तक डिजिटल अर्थव्यवस्था, एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) और ई-कॉमर्स का संदर्भ देता है. बाज़ार तक पहुंच और व्यापार शुल्क कम करने के मामले में वैसे तो ये बाध्यकारी नहीं है है लेकिन डिजिटल व्यापार के क्षेत्र में सहयोग और ग़ैर व्यापार शुल्क से जुड़ी बाधाओं को कम करने में ये काफ़ी हद तक असर डाल सकता है. लेकिन भारत की उग्र संरक्षणवादी नीतियां शायद इस मंच पर काम नहीं करें. 

जब बात नीति से जुड़े इन पेचीदा सवालों की आती है तो भारत कोई अपवाद नहीं है. देश में निजता से जुड़े नियमन- जहां हम पहले से ही कम-से-कम एक दशक पीछे हैं- को झटका देते हुए सरकार ने डाटा संरक्षण विधेयक के मसौदे को वापस ले लिया. 

सेवाओं का व्यापार बनाम व्यापार नीति 

हाल के समय में डिजिटल क्षेत्र को नियमों के दायरे में लाने की होड़ मची हुई है. उपभोक्ता संरक्षण से लेकर डाटा के स्थानीयकरण तक सभी तरह के आर्थिक, सामरिक और राजनीतिक सवाल उलझे हुए हैं. इससे डिजिटल शासन व्यवस्था नीति निर्माताओं के लिए एक स्थायी कठिनाई का क्षेत्र बन गई है. इनोवेशन और आर्थिक वृद्धि में रुकावट डाले बिना लोगों की भलाई और कल्याण को संतुलित करने का सदियों पुराना तनाव हमारी हर रोज़ की ज़िंदगी में डिजिटल क्षेत्र की पूरी तरह व्यापकता के कारण और भी ज़्यादा परेशान करने वाला है. जब बात नीति से जुड़े इन पेचीदा सवालों की आती है तो भारत कोई अपवाद नहीं है. देश में निजता से जुड़े नियमन- जहां हम पहले से ही कम-से-कम एक दशक पीछे हैं- को झटका देते हुए सरकार ने डाटा संरक्षण विधेयक के मसौदे को वापस ले लिया. वैसे तो इस विधेयक के साथ कई समस्याएं थीं लेकिन निजता की नीति के क्षेत्र को खाली छोड़ना उस वक़्त ठीक नहीं है जब हम अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भविष्य की अपनी हिस्सेदारी की तरफ़ देख रहे हैं. 

अंकटाड के आंकड़ों के मुताबिक़ 2019 में सेवा क्षेत्र का जो व्यापार 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के क़रीब था वो महामारी की वजह से 2020 में 4.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के आस-पास पहुंच गया. लेकिन भारत की सेवाओं का निर्यात 2019 में 200 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2021 में 250 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया. मोड 1 सेवा व्यापार (सीमा पार आपूर्ति), जो कि संचार तकनीक पर निर्भर है, पर महामारी का बेहद मामूली असर पड़ा. लोगों के आवागमन पर निर्भर सेवा व्यापार पर जहां महामारी का नकारात्मक असर पड़ा वहीं मोड 1 सेवा स्थायी स्थिति में बरकरार रही. 

एक ताज़ा अध्ययन से पता चला है कि इंटरनेट बैंडविड्थ में 1 प्रतिशत की बढ़ोतरी से भारत के सामानों के व्यापार में 696.71 मिलियन अमेरिकी डॉलर की बढ़ोतरी होगी.

डिजिटल क्षेत्र न सिर्फ़ सेवा व्यापार बल्कि सामान्य रूप से व्यापार को व्यापक रूप से अधिकार संपन्न बनाता है. एक ताज़ा अध्ययन से पता चला है कि इंटरनेट बैंडविड्थ में 1 प्रतिशत की बढ़ोतरी से भारत के सामानों के व्यापार में 696.71 मिलियन अमेरिकी डॉलर की बढ़ोतरी होगी. ये बढ़ोतरी उस वक़्त और भी ज़्यादा होगी जब मोड 1 सेवा व्यापार का भी हिसाब किया जाए क्योंकि ये काफ़ी हद तक इंटरनेट के ज़रिए होता है. टिसमॉस (ट्रेड इन सर्विसेज़ बाइ मोड ऑफ सप्लाई) के आंकड़ों के मुताबिक़ 2017 में भारत से होने वाले सेवा निर्यात का 60 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा मोड 1 में था. भारत की मोड 1 की सेवा आपूर्ति की गति को बनाए रखने के लिए एक स्थायी रूप-रेखा महत्वपूर्ण है. इसमें आदर्श रूप से कंपनियों की लागत, उपभोक्ताओं की लागत, नियमों के पालन की लागत, बौद्धिक संपदा के नियम और वरीयता प्राप्त व्यापार साझेदारों को ध्यान में रखना होगा. भारत विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में ई-कॉमर्स को लेकर चर्चा का विरोधी है और इसके पीछे उचित कारण भी है. हालांकि भारत डिजिटल व्यापार और शासन व्यवस्था के मुद्दों पर भी बहुपक्षीय स्तर पर बातचीत नहीं कर रहा है जो कि अगले पांच वर्षों की समयावधि में भी तर्कसंगत नहीं है. 

बीच का रास्ता

सामान्य डाटा संरक्षण विनियमन (जीडीपीआर) का उल्लेख अक्सर सर्वश्रेष्ठ कार्य प्रणाली के अंतर्राष्ट्रीय मानक के रूप में किया जाता है. ये 2018 से लागू है. लेकिन तथ्य ये है कि जीडीपीआर का पालन सुनिश्चित करना छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए हमेशा आसान नहीं होता. हालांकि, ये एक स्पष्ट व्यवस्था योग्य मॉडल का निर्माण करता है. भारत के लिए सबसे कम प्रतिरोध का रास्ता होगा ऐसी नीतियों का निर्माण करना जो जीडीपीआर के समतुल्य हों. लेकिन भारत के लिए ये एक व्यावहारिक विकल्प नहीं होने के पीछे विकासात्मक और राजनीतिक कारण हैं. एक और मॉडल संकेंद्रित परिधि का हो सकता है जिसकी सिफ़ारिश सीएसआईएस (सेंटर फॉर स्ट्रैटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़) ने की है. इसके तहत मुख्य साझेदारों को ज़्यादा-से-ज़्यादा बाध्यकारी नियमों के लिए सहमत होना होता है जबकि बाक़ी देश अलग-अलग डिजिटल नियमों पर चर्चा के लिए तैयार होते हैं. वैसे तो अल्पकाल में ये संभव है लेकिन डिजिटल अर्थव्यवस्था में परिवर्तन की गति को देखते हुए दीर्घकाल के लिए इसकी सिफ़ारिश नहीं की जा सकती. 

अगर देश को आईपीईएफ में असरदार ढंग से अपनी बात रखनी है तो एक और विकल्प है डिजिटल इकनॉमी पार्टनरशिप एग्रीमेंट (डीईपीए) की सिफ़ारिश करना और उसका पालन करना. ये बहुपक्षीय समझौता जून 2020 में चिली, सिंगापुर और न्यूज़ीलैंड के बीच हुआ था. ये अपनी तरह का पहला (हालांकि द्विपक्षीय मामलों में इस तरह के समझौते हैं) ग़ैर-बाध्यकारी समझौता है जिसका लक्ष्य डिजिटल व्यापार को आगे बढ़ाना, भरोसेमंद डाटा के प्रवाह को ‘सक्षम’ बनाना और डिजिटल प्रणाली में विश्वास बनाना है. कनाडा के साथ-साथ दक्षिण कोरिया और चीन पहले ही इस साझेदारी में शामिल होने का अनुरोध कर चुके हैं. इसकी वजह से भारत के लिए किसी डिजिटल समझौते का हिस्सा बनना और भी ज़रूरी हो गया है. किसी न किसी तरह से भारत को डिजिटल व्यापार को नियमित करने के मामले में बड़ा क़दम उठाने की ज़रूरत है. ऐसा नहीं होने की वजह से भारत को आगे बढ़ने और अपने डिजिटल वैल्यू चेन को जोड़ने का अवसर गंवाना पड़ रहा है.  

किसी न किसी तरह से भारत को डिजिटल व्यापार को नियमित करने के मामले में बड़ा क़दम उठाने की ज़रूरत है. ऐसा नहीं होने की वजह से भारत को आगे बढ़ने और अपने डिजिटल वैल्यू चेन को जोड़ने का अवसर गंवाना पड़ रहा है.  

वरीयता प्राप्त समझौता नहीं होने का ये भी मतलब है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था में भागीदारी की लागत उन देशों के मुक़ाबले बढ़ जाती है जिन्होंने पहले ही बेहतर व्यापार नेटवर्क तैयार कर लिए हैं. भारत की नीतियों में अनिश्चितता विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) की संभावना को उसकी घोषित नीति, चाहे वो संरक्षणवादी हो या उदारवादी, से ज़्यादा नुक़सान पहुंचाती है. 

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