चुनाव के बाद जुलाई में पूर्ण बजट को देखते हुए अंतरिम बजट 2024 में किसी तरह के बड़े एलान की उम्मीद नहीं की गई थी. फिर भी बजट में स्वास्थ्य सेक्टर को लेकर कुछ नई पहलों की घोषणा की गई. नए बजट दस्तावेज़ हमें महामारी के दौरान और उसके बाद पिछले कुछ वर्षों में स्वास्थ्य आवंटन और खर्च पर नज़र डालने की भी अनुमति देते हैं. महामारी की अनिश्चितताओं को देखते हुए पिछले कुछ वर्षों के बजट में बजट अनुमानों (BE), संशोधित अनुमानों (RE) और वास्तविक खर्च के बीच बहुत ज़्यादा अंतर देखा गया है. अंतरिम बजट में स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों के त्वरित विश्लेषण के साथ-साथ ये लेख पिछले छह वर्षों में बजट अनुमानों, संशोधित अनुमानों और वास्तविक खर्च के डेटा के आधार पर इस अवधि में स्वास्थ्य से जुड़े खर्च में व्यापक रुझानों के बारे में बताने की कोशिश करता है.
अंतरिम बजट में घोषणाएं
चुनावी साल की वजह से अंतरिम बजट होने के बावजूद, जहां बड़ी पहल की उम्मीद नहीं की जाती है, स्वास्थ्य सेक्टर के लिए कई महत्वपूर्ण घोषणाएं की गई. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने अस्पतालों के मौजूदा बुनियादी ढांचे का उपयोग करते हुए अतिरिक्त मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की योजना का एलान किया. इसका लक्ष्य हेल्थकेयर प्रोफेशनल की कमी को दूर करना और भारत में चिकित्सा शिक्षा की बढ़ती मांग को पूरा करना है. अप्रैल 2023 में केंद्रीय कैबिनेट ने 157 नए नर्सिंग कॉलेज खोलने को मंज़ूरी दी. इसके लिए 1,570 करोड़ रु. के बजट का आवंटन किया गया जिसमें केंद्र का हिस्सा 1,016 करोड़ रु. का है. ताज़ा बजट दस्तावेज़ों से संकेत मिलता है कि अभी तक 86 कॉलेज के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) को मंज़ूरी दे दी गई है और 73 कॉलेज की स्थापना के लिए प्रत्येक को 2-2 करोड़ रु. की शुरुआती रकम वितरित की गई है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने अस्पतालों के मौजूदा बुनियादी ढांचे का उपयोग करते हुए अतिरिक्त मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की योजना का एलान किया. इसका लक्ष्य हेल्थकेयर प्रोफेशनल की कमी को दूर करना और भारत में चिकित्सा शिक्षा की बढ़ती मांग को पूरा करना है.
साथ ही 9 से 14 साल की लड़कियों के लिए सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन का प्रावधान सरकार की तरफ से बीमारी की रोक-थाम वाली स्वास्थ्य देखभाल (प्रिवेंटिव हेल्थकेयर) पर ध्यान को उजागर करता है. इसके साथ-साथ मिशन इंद्रधनुष के भाग के रूप में टीकाकरण के प्रबंधन के लिए U-WIN प्लैटफॉर्म की शुरुआत भी की गई है जो पूरे देश में वैक्सीनेशन का दायरा बढ़ाने में मदद कर सकता है और वैक्सीन से ख़त्म होने वाली बीमारियों को कम कर सकता है. इसके अलावा बजट में विभिन्न मातृ और शिशु (मैटरनल एंड चाइल्ड) स्वास्थ्य योजनाओं के एक व्यापक कार्यक्रम में एकीकरण का प्रस्ताव रखा गया है. इसका उद्देश्य मां और बच्चों के लिए स्वास्थ्य देखभाल की सेवाओं को कारगर बनाना और उनके असर को बढ़ाना है. पोषण, शुरुआती वर्षों में बच्चों की देखभाल और बच्चों के समग्र विकास को बेहतर बनाने के लिए ‘सक्षम आंगनवाड़ी’ और “पोषण 2.0” के तहत आंगनवाड़ी केंद्रों को अपग्रेड करने पर ज़ोर दिया गया है. इन तरह इन केंद्रों को प्रमुख सामुदायिक स्वास्थ्य संसाधन के तौर पर स्थापित किया गया है.
आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का विस्तार करते हुए सभी आशा वर्कर, आंगनवाड़ी वर्कर और सहायकों- कुल मिलाकर 15 लाख- को शामिल किया गया है. इस तरह इन अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर) के द्वारा ज़मीनी स्तर पर स्वास्थ्य सेवा पहुंचाने में निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया गया है और उन्हें व्यापक हेल्थकेयर कवरेज मुहैया कराने की कोशिश की गई है. मान लीजिए कि एक परिवार में पांच सदस्य हैं तो लगभग 75 लाख नए सदस्य संभावित तौर पर इस योजना से जुड़ जाएंगे.
स्वास्थ्य को लेकर अंतरिम बजट के आंकड़े
स्वास्थ्य सेक्टर (आयुष और फार्मास्यूटिकल्स समेत) के लिए 86,216 करोड़ रु. के पिछले साल के संशोधित अनुमानों के मुकाबले इस साल का कुल स्वास्थ्य बजट 98,461 करोड़ रुपये का है. इस तरह 12,245 करोड़ रु. यानी 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है. साथ ही अगर 2023 के बजट अनुमानों से तुलना की जाए तो महज़ 2.6 प्रतिशत की मामूली बढ़ोतरी ही की गई है जो शायद महंगाई की भरपाई भी न कर पाए. हालांकि पिछले साल (2023-24) के स्वास्थ्य आवंटन के लिए कुल बजट अनुमानों में गिरावट नई बात नहीं है क्योंकि महामारी के बाद बजट में स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया गया था. ये 2022 में भी हुआ था जब कोविड-19 के ख़िलाफ तैयारी के लिए आवंटित धनराशि ज़रूरत नहीं होने की वजह से खर्च नहीं हो पाई थी. ये एक तथ्य है कि हेल्थ सेक्टर ने अभी तक आवंटन और खर्च में उस तरह की लगातार बढ़ोतरी नहीं देखी है जो पेयजल अब देख रहा है और स्वच्छता में पहले देखी गई थी. साथ ही बुनियादी ढांचे पर केंद्रित योजनाओं जैसे कि प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY) और पीएम- आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन (PM-ABHIM), जिन्होंने महामारी के वर्षों के दौरान फंड का कम इस्तेमाल किया है, पर पिछले साल के बजट अनुमानों की तुलना में ताज़ा आवंटन में मामूली कमी आई है. इन योजनाओं के लिए पिछले वर्ष का संशोधित अनुमान बजट अनुमान से काफी कम था जो इस बात का संकेत है कि फंड का कम इस्तेमाल हो रहा है. इसे ठीक करने की ज़रूरत है.
ये एक तथ्य है कि हेल्थ सेक्टर ने अभी तक आवंटन और खर्च में उस तरह की लगातार बढ़ोतरी नहीं देखी है जो पेयजल अब देख रहा है और स्वच्छता में पहले देखी गई थी.
इससे भी महत्वपूर्ण बात है कि पिछले कई वर्षों के आंकड़ों पर नज़र डालने से साबित होता है कि वास्तविक रूप से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का बजट स्थिर हो गया है. इसमें तब तक सुधार नहीं होगा जब तक स्वास्थ्य के क्षेत्र में मानव संसाधन की कमियों का समाधान नहीं किया जाता है, ख़ास तौर पर ग्रामीण अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में. ऐसा लगता है कि सरकार को इसका एहसास हो गया है क्योंकि इस बजट में भी सार्वजनिक क्षेत्र के नेतृत्व में चिकित्सा शिक्षा पर ध्यान देना जारी रखा गया है. महामारी के दौरान अलग-अलग मंत्रालयों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) के द्वारा लोगों की भलाई के लिए हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर को जोड़ा गया था. इस नज़रिए को अगले स्तर तक ले जाते हुए सीतारमन ने बजट भाषण के दौरान इन अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज में अपग्रेड करने की सरकार की योजना का एलान किया. स्वास्थ्य मंत्रालय और PSU से इतर सरकारी अस्पतालों को बेहतर बनाने के लिए समिति बनाने की योजना शायद इस बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण घोषणा है. इससे सैकड़ों नहीं तो दर्जनों अस्पताल सार्वजनिक क्षेत्र की चिकित्सा शिक्षा के इंफ्रास्ट्रक्चर में जुड़ जाएंगे.
महामारी के वर्ष में बजट: करीब से आकलन
इस विश्लेषण के लिए हम स्वास्थ्य मंत्रालय, आयुष मंत्रालय और औषध विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्यूटिकल्स) को कुल आवंटन पर विचार करेंगे. अतीत में औषध विभाग का बजट काफी कम हुआ करता था लेकिन डॉ. मनसुख मांडविया के द्वारा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के साथ-साथ रसायन एवं उर्वरक मंत्री की दोहरी ज़िम्मेदारी संभालने के साथ इसका बजटीय आवंटन काफी बढ़ गया है. ये स्वास्थ्य देखभाल की नीतियों और दवा उत्पादन के काम को एक साथ रखने में अनूठे मिलन और रणनीतिक लाभ को दिखाता है.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में 2025 तक स्वास्थ्य पर GDP का 2.5 प्रतिशत सरकारी खर्च करने की परिकल्पना की गई थी. लेकिन भारत अभी भी इसके करीब नहीं पहुंच पाया है. हालांकि महामारी की ज़रूरत की वजह से स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च में बढ़ोतरी देखी गई. पहला आंकड़ा दिखाता है कि महामारी से पहले के दोनों वर्षों में बजट अनुमान, संशोधित अनुमान और वास्तविक खर्च एक समान श्रेणी में थे. लेकिन 2020 और 2021 में संशोधित अनुमान में काफी बढ़ोतरी देखी गई. इसका कारण महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई की ज़रूरत का समाधान करना था.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में 2025 तक स्वास्थ्य पर GDP का 2.5 प्रतिशत सरकारी खर्च करने की परिकल्पना की गई थी. लेकिन भारत अभी भी इसके करीब नहीं पहुंच पाया है. हालांकि महामारी की ज़रूरत की वजह से स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च में बढ़ोतरी देखी गई.
हालांकि 2022 के बाद संशोधित अनुमानों में बहुत ज़्यादा गिरावट देखी गई है. इसका मुख्य कारण महामारी के लिए उपाय जैसे कि वैक्सीनेशन की आवश्यकता में कमी है. इसका एक और कारण महामारी के दौरान आई रुकावटों का स्वास्थ्य क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर की क्षमता को बढ़ाने के उद्देश्य से की जा रही कई पहलों को प्रभावित करना भी हो सकता है. हालांकि इन झटकों का नतीजा बजट अनुमानों में किसी कमी के रूप में नहीं निकला है और सरकार ने स्वास्थ्य बजट को महामारी के स्तर पर रखा है. इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने और बुनियाद मज़बूत करने, जिस पर भारत में यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (UHC) बनाया जा सकता है, पर सरकार का ध्यान है. ये बताता है कि स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ा बुनियादी ढांचा, चिकित्सा शिक्षा और दवाई का उत्पादन देश के लक्ष्यों के साथ जुड़ा हुआ है.
स्रोत: https://www.indiabudget.gov.in/ लेखक के द्वारा संकलित अलग-अलग वर्षों के बजट दस्तावेज
रेखा-चित्र 2 और रेखा-चित्र 3 स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW)- जिसके तहत स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के साथ-साथ स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग आते हैं- और आयुष मंत्रालय के लिए बजट में आवंटन के बारे में बताते हैं. MoHFW के लिए कुल स्वास्थ्य बजट का 90 प्रतिशत से ज़्यादा आवंटित होने के बावजूद MoHFW और आयुष मंत्रालय 2021 को छोड़कर बजट के दौरान एक जैसा रुझान साझा करते हैं. महामारी से निपटने के लिए MoHFW और आयुष मंत्रालय के अस्पतालों को समग्र स्वास्थ्य देखभाल की रणनीति में एकीकृत किया गया था. लेकिन महामारी के चरम पर होने के दौरान, जब स्वास्थ्य देखभाल की सेवाओं के साथ-साथ नए इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में बहुत ज़्यादा रुकावट आ गई थी, इलाज की सेवाएं ज़्यादातर MoHFW के द्वारा दी गई थी, वहीं आयुष मंत्रालय ने टेलीमेडिसिन सेवाओं पर ध्यान दिया था जिसके तहत इम्यूनिटी बढ़ाने और गंभीर परिस्थितियों के प्रबंधन पर ज़ोर था. शायद MoHFW की तुलना में 2021 में आयुष मंत्रालय के द्वारा फंड के कम इस्तेमाल की आंशिक वजह यही थी. ख़ास बात ये है कि फंड के कम इस्तेमाल ने संबंधित वर्षों में बजट अनुमानों को प्रभावित नहीं किया है. “स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा के लिए मानव संसाधन” मद में पूंजीगत संपत्ति के निर्माण पर 5,000 करोड़ रु. से ज़्यादा का आवंटन हुआ जबकि 2022 में वास्तविक खर्च और 2023 में संशोधित अनुमान- दोनों 2,000 करोड़ रुपये से कम थे. ये मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में सार्वजनिक संपत्ति के निर्माण के इरादे की तरफ संकेत देता है.
स्रोत: https://www.indiabudget.gov.in/ लेखक के द्वारा संकलित अलग-अलग वर्षों के बजट दस्तावेज
जैसा कि पहले संक्षेप में चर्चा हो चुकी है, महामारी के दौरान एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम था स्वास्थ्य और फार्मास्यूटिकल सेक्टर के बीच नज़दीकी मेलजोल. दोनों मंत्रालय के लिए एक ही मंत्री ने 2021 में काम-काज संभाला था. सरकार के भीतर स्वास्थ्य सेक्टर की आवश्यकताओं और फार्मास्यूटिकल सेक्टर की क्षमताओं के बीच बेहतर संतुलन की ज़रूरत को लेकर एहसास था. इसके नतीजतन फार्मास्यूटिकल सेक्टर, जो कि भारत की UHC योजना का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, के लिए बजट के आवंटन में काफी सुधार हुआ. 2018 और 2024 के बीच फार्मास्यूटिकल सेक्टर के लिए आवंटन में 15 गुना से ज़्यादा की बढ़ोतरी हुई. चौथे रेखा-चित्र से इसका पता चलता है. लेकिन इसको लेकर मीडिया में अभी तक उतनी चर्चा नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी.
स्रोत: https://www.indiabudget.gov.in/ लेखक के द्वारा संकलित अलग-अलग वर्षों के बजट दस्तावेज
इसे तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य में रखें तो 2018 में फार्मास्यूटिकल के लिए बजट का आवंटन आयुष के छठे हिस्से के आसपास था. लेकिन 2024 में फार्मास्यूटिकल ने आवंटन के मामले में आयुष मंत्रालय को पीछे छोड़ दिया है. इसका मुख्य कारण फार्मास्यूटिकल सेक्टर में आत्मनिर्भरता पर नए सिरे से ध्यान देना है. प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना के साथ-साथ जन औषधि योजना- दोनों के लिए इस साल के आवंटन में काफी बढ़ोतरी देखी गई है.
संक्षेप में कहें तो स्वास्थ्य सेक्टर में संतोषजनकर संसाधनों को लगाने की ज़रूरत- जिस तरह स्वच्छता के क्षेत्र और पीने के पानी के क्षेत्र में किया गया था- को पूरा किया जाना बाकी है. ऐसा लगता है कि भारत सरकार बजट के आवंटन में अपनी UHC योजना की अहम बुनियादों पर ध्यान दे रही है यानी हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर, चिकित्सा शिक्षा और दवाइयों का उत्पादन. इसी कारण से इनमें से कुछ बुनियादों पर वास्तविक खर्च खलल की वजह से प्रभावित होने और महामारी के कारण आपात फंडिंग की आवश्यकता में कमी आने के बावजूद महामारी के बाद भी वास्तविक आवंटन में कमी नहीं आई है (रेखा-चित्र 1). ये देखा जाना बाकी है कि स्वास्थ्य सेक्टर आने वाले वर्षों में इन फंड को समेट सकता है या नहीं.
ओमन सी. कुरियन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो और हेल्थ इनिशिएटिव के प्रमुख हैं.
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