आज जब पूरी दुनिया में क़र्ज़ लेने का चलन बढ़ रहा है, तो G20 की अध्यक्षता संभालने के बाद भारत, क़र्ज़ के इस वैश्विक संकट के समाधान के लिए विशाल दूरगामी बदलाव ला सकता है.
अब जबकि भारत ने G20 की अध्यक्षता संभाल ली है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके अन्य सदस्य देशों से अपील की कि वो भारत की अध्यक्षता के कार्यकाल को ‘स्वास्थ्यप्रद, सौहार्दपूर्ण और उम्मीद भरा’ बनाने में मदद करें. प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की अध्यक्षता की थीम ‘एक पृथ्वी, एक कुटुंब, एक भविष्य’ तय की. आज जब दुनिया की अर्थव्यवस्था, महामारी के दौरान गिरावट से उबरने का प्रयास कर रही है, तो पूरी धरती को एक मानकर वैश्विक सहयोग की इस अपील की महत्ता और भी बढ़ जाती है.
आज जब रूस और यूक्रेन का युद्ध बहुत से देशों के सरकारी ख़ज़ाने पर दबाव बढ़ा रहा है, तो इसके साथ साथ महामारी के दौरान दिए गए असाधारण वित्तीय सहयोग के बाद का असर भी पूरे विश्व पर बना हुआ है.
आज जब रूस और यूक्रेन का युद्ध बहुत से देशों के सरकारी ख़ज़ाने पर दबाव बढ़ा रहा है, तो इसके साथ साथ महामारी के दौरान दिए गए असाधारण वित्तीय सहयोग के बाद का असर भी पूरे विश्व पर बना हुआ है. तमाम देशों का घाटा लगातार बढ़ रहा है औरृ महंगाई की दर उफान मार रही है, तो देशों पर क़र्ज़ का बोझ आर्थिक मंदी के पिछले दौरों से कहीं तीव्र गति से बढ़ा है और आज जब बेलगाम महंगाई से निपटने के लिए ब्याज दरें बढ़ाई जा रही हैं, तो क़र्ज़ लौटाने की लागत में भी बढ़ोत्तरी होती जा रही है.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के वैश्विक ऋण डेटाबेस के मुताबिक़, 2020 में दुनिया में क़र्ज़ लेने में 28 प्रतिशत का ज़बरदस्त उछाल आया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में GDP का 256 प्रतिशत हो गया है. विभिन्न देशों की सरकारों ने इसमें से आधी रक़म उधार ली है. इस वक़्त पूरे विश्व का सार्वजनिक क्षेत्र का ऋण, दुनिया के कुल क़र्ज़ का लगभग 40 प्रतिशत है और ये पिछले छह दशकों के सबसे उच्चतम स्तर पर है.
निम्न एवं मध्यम आमदनी वाले देशों का बाहरी ऋण का खाता (ख़रब डॉलर में)
विश्व बैंक द्वारा लगाए गए प्राथमिक अनुमान दिखाते हैं कि निम्न एवं मध्यम आमदनी वाले देशों पर बाहरी क़र्ज़ का बोझ 2021 में औसतन 6.9 प्रतिशत बढ़ गया, जिससे कुल क़र्ज़ की रक़म 9.3 ख़रब डॉलर पहुंच गई. 2021 में ऋण में ये अनुमानित 6.9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी, 2019 और 2020 के दौरान दर्ज की गई 5.3 प्रतिशत की वृद्धि से भी कहीं ज़्यादा है. क़र्ज़ लेने की दर में इस बढ़ोत्तरी की आंशिक वजह कम अवधि के लिए ऋण लेने की दर में वृद्धि का होना है, जो विशेष रूप से 2021 की आख़िरी तिमाही में काफ़ी तेज़ रही थी. ये वही समय था जब अंतरराष्ट्रीय व्यापार, महामारी के असर से उबरकर गति पकड़ रहा था. हालांकि, दूरगामी अवधि के लिए क़र्ज़ लेने की गति भी तेज़ ही रही है. इसमें निजी क्षेत्र की संस्थाओं का बड़ा योगदान रहा है – संदर्भ चित्र-1
2021 में बाहरी ऋण का ये बोझ दुनिया के अलग अलग भौगोलिक क्षेत्र पर असमान रूप से पड़ रहा था. 2021 में बाहरी क़र्ज़ के बोझ में सबसे अधिक बढ़ोत्तरी दक्षिणी एशिया में देखी गई. ये क़र्ज़ 10.2 प्रतिशत तक इकट्ठा हो गया- जो लगभग 900 अरब डॉलर है. श्रीलंका पहले ही बाहरी क़र्ज़ के भारी दबाव में था. लेकिन, 2021 में बांग्लादेश और पाकिस्तान के ऊपर भी बाहरी ऋण के बोझ में काफ़ी वृद्धि हो गई और इन देशों में बाहरी ऋण का बोझ क्रमश: 23 और 12 प्रतिशत बढ़ गया. हालांकि दक्षिण एशिया के बाहरी क़र्ज़ की बढ़ोत्तरी में सबसे ज़्यादा योगदान भारत के वाह्य ऋण में 9 प्रतिशत के इज़ाफ़े का रहा. दक्षिण एशियाई देशों पर बाहरी क़र्ज़ की सामूहिक रक़म में अकेले भारत की हिस्सेदारी लगभग 70 प्रतिशत है. चीन के बाहरी क़र्ज़ में आया तेज़ उछाल दिखाता है कि चीन ने महामारी के बाद आर्थिक विकास की दर हासिल करने के लिए काफ़ी रियायती आर्थिक नीतियां अपनाई हैं. वित्तीय बाज़ारों को पहले खोलने के निर्णय ने भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान दिया है (Figure 2)
अलग-अलग क्षेत्रों पर बाहरी क़र्ज़ में आया बदलाव प्रतिशत में, 2019-2021
2021 में सहारा क्षेत्र के अफ्रीकी देशों के ऊपर बाहरी ऋण का बोझ 6 प्रतिशत तक बढ़ गया, जो 2020 की तुलना में थोड़ा ही अधिक है. ये तो तब हुआ है जब दक्षिण अफ्रीका के बाहरी क़र्ज़ में 5.6 प्रतिशत की गिरावट आई है. सहारा क्षेत्र के देशों पर सार्वजनिक और सरकार की गारंटी वाला बाहरी क़र्ज़, दोहरे अंकों में बढ़ा. इसमें घाना और नाइजीरिया के क़र्ज़ में 15 प्रतिशत की वृद्धि शामिल है. वहीं मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीकी (MENA) देशों पर क़र्ज़ का बोझ बढ़ने की रफ़्तार 2020 में 8.5 प्रतिशत थी, जो 2021 में कम होकर 5.5 प्रतिशत रह गई. मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में सबसे ज़्यादा क़र्ज़ लेने वाले देश मिस्र के बाहरी क़र्ज में अनुमानित 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है (चित्र2).
कर्ज़ के बोझ तले
जिन तीन क्षेत्रों में दुनिया के निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों पर सबसे अधिक बाहरी क़र्ज़ का बोझ है, वो लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई देश (LAC), यूरोप और मध्य एशिया (ECA) और पूर्वी एशिया व प्रशांत (EAP) के देश हैं. लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई (LAC) देशों पर बाहरी क़र्ज़ का बोझ 2021 में 3.4 प्रतिशत बढ़ गया, जो 2020 के 0.3 फ़ीसद की तुलना में बहुत बड़ा इज़ाफ़ा है. इसमें ब्राज़ील के बाहरी क़र्ज़ में 4.8 प्रतिशत की अनुमाति वृद्धि का योगदान सबसे अधिक रहा है. यूरोप और मध्य एशियाई देशों पर क़र्ज़ बढ़ने की दर 2021 में 1.3 फ़ीसद बढ़ गई, जो 2020 के 3.1 प्रतिशत की तुलना में धीमी है. पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र के देशों (चीन को छोड़कर) पर 2021 में क़र्ज़ का बोझ 3.5 प्रतिशत बढ़ गया, जो 2020 में हुई 7.8 प्रतिशत की वृद्धि से काफ़ी कम है (चित्र2).
मई 2020 में G20 ने विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की सक्रिय मदद से डेट सर्विस सस्पेंशन की पहल (DSSI) शुरू की थी. इसके ज़रिए क़र्ज़ के बोझ तले देशों को महामारी से लड़ने और करोड़ों की कमज़ोर आबादी की रोज़ी-रोटी को बचाना था. हालांकि इसके लिए योग्य 73 में से केवल 48 देश ही इस पहल में शामिल हुए और DSSI ने दिसंबर 2021 में ये योजना ख़त्म होने तक, 12.9 अरब डॉलर का क़र्ज़ चुकता करने की मियाद टाली थी. वैसे तो G20 ने निजी क़र्ज़दाताओं से भी DSSI का हिस्सा बनने की अपील की थी. लेकिन, आख़िर में केवल एक निजी क़र्ज़दाता ही इसमें शामिल हुआ. भागीदार देशों को क़र्ज़ के बोझ से राहत देने में DSSI को बहुत सीमित सफलता ही मिल पाई.
ऋण के इस बुनियादी संकट से संकेत मिलता है कि निम्न और मध्यम आमदनी वाले रिकॉर्ड देशों की मुद्राओं में गिरावट आ रही है, और उनके विदेशी मुद्रा भंडार तेज़ी से घट रहे हैं. लेबनान, श्रीलंका, रूस, सूरीनाम और ज़ांबिया पहले ही 2022 में समय पर क़र्ज़ चुका पाने में नाकाम रहे हैं और बेलारूस भी इस मकाम पर पहुंचने के कगार पर है. हालांकि कई देश ऐसे भी हैं, जहां बेतहाशा महंगाई बढ़ने क़र्ज़ लेने की लागत में वृद्धि और क़र्ज़ चुकाने की क्षमता में कमी के चलते, उन पर क़र्ज़ का बोझ बढ़ रहा है और उनके क़र्ज़ चुका पाने में नाकाम रहने का जोखिम भी बढ़ गया है. इस सूची में अर्जेंटीना, एल साल्वाडोर, इक्वेडोर, यूक्रेन, ट्यूनिशिया, घाना, मिस्र, कीनिया, इथियोपिया, नाइजीरिया और पाकिस्तान शामिल हैं.
G20 की बाली घोषणा में सदस्य देशों ने ‘क़र्ज़ की अदायगी के साझा ढांचे (CF) को लागू करने के प्रयास बढ़ाने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी. G20 देशों की ये पहल, DSSI से आगे का क़दम है, जिसमें तयशुदा समयसीमा के भीतर, सही वक़्त पर, व्यवस्थित और आपसी तालमेल वाले तरीक़े से क़र्ज़ चुकाने की साझा व्यवस्था खड़ी करने का लक्ष्य रखा गया है. इस साझा रूप-रेखा में क़र्ज़ को चुकाने की व्यवस्था में हर देश की अपनी ज़रूरत के हिसाब से बदलाव लाने की बात कही गई है, न कि सभी देशों के लिए एक समान व्यवस्था लागू करने की. ये अधिक असरदार है और वैश्विक क़र्ज़ से निपटने की अधिक सही राह दिखाता है. अगर कॉमन फ्रेमवर्क (CF) को कामयाबी से लागू कर लिया गया, तो इससे देशों के बीच असमानता कम करने में मदद मिलेगी (SDG 10) और टिकाऊ विकास के लिए वैश्विक साझेदारियों को भी मज़बूत किया जा सकेगा (SDG 17).
अगर कॉमन फ्रेमवर्क (CF) को कामयाबी से लागू कर लिया गया, तो इससे देशों के बीच असमानता कम करने में मदद मिलेगी (SDG 10) और टिकाऊ विकास के लिए वैश्विक साझेदारियों को भी मज़बूत किया जा सकेगा (SDG 17).
आज जब G20 के नेतृत्व की कमान, बारी बारी से तीन विकासशील देशों- भारत, इंडोनेशिया और ब्राज़ील के हाथ में है, तो उम्मीदें भी उफान पर हैं. एक निर्णायक नेतृत्व देकर भारत, वैश्विक ऋण संकट का कामयाबी से समाधान करे बड़ा दूरगामी बदलाव ला सकता है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Abhijit was Senior Fellow with ORFs Economy and Growth Programme. His main areas of research include macroeconomics and public policy with core research areas in ...