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दिल्ली में अमीर ख़ान मुत्तक़ी और एस. जयशंकर की मुलाक़ात सिर्फ़ एक कूटनीतिक घटना नहीं थी, बल्कि बदलती क्षेत्रीय राजनीति का संकेत भी थी.
बिना झंडों और औपचारिक मान्यता के यह बातचीत भारत की यथार्थवादी अफ़ग़ान नीति की नई दिशा दिखाती है.
अब भारत वैचारिक दूरी से आगे बढ़कर व्यावहारिक सहयोग की ज़मीन तलाश रहा है — जहाँ संवाद ही रणनीति बन गया है.
अफ़ग़ानिस्तान इस्लामिक अमीरात के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी ने जब दिल्ली में 10 अक्टूबर को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर से भेंट की तो तालिबान के साथ भारत के संबंधों की नाज़ुक रूप-रेखा पूरी तरह से सामने आ गई. भारतीय पक्ष की तरफ से सभी आधिकारिक उल्लेखों में मुत्तक़ी का हवाला केवल “अफ़ग़ान विदेश मंत्री” के रूप में दिया गया. बैठक के दौरान न तो अतीत के अफ़ग़ान गणराज्य का तीन रंगों का झंडा, न ही इस्लामिक अमीरात का सफेद झंडा मौजूद था. दूसरी तरफ अफ़ग़ान दूतावास के बाहर गणराज्य का झंडा लगा था. वहीं मुत्तक़ी और उनके साथ मौजूद लोगों ने दूतावास के भीतर इस्लामिक अमीरात का सफेद झंडा लगा रखा था. उन्होंने इस जगह और यहां काम करने वालों पर तालिबान का मालिकाना हक होने का दावा किया.
बैठक के दौरान न तो अतीत के अफ़ग़ान गणराज्य का तीन रंगों का झंडा, न ही इस्लामिक अमीरात का सफेद झंडा मौजूद था. दूसरी तरफ अफ़ग़ान दूतावास के बाहर गणराज्य का झंडा लगा था. वहीं मुत्तक़ी और उनके साथ मौजूद लोगों ने दूतावास के भीतर इस्लामिक अमीरात का सफेद झंडा लगा रखा था.
9 अक्टूबर से शुरू हुई मुत्तक़ी की हफ्ते भर की भारत यात्रा ने गहन जांच-पड़ताल और दिलचस्पी का सामना किया. इसका कारण ये है कि भारत के द्वारा आधिकारिक स्तर पर तालिबान के किसी नेता की मेज़बानी करना बहुत दुर्लभ घटना है. अगस्त 2021 में जब इस विद्रोही संगठन ने सत्ता पर फिर से कब्ज़ा किया था, उस समय शायद ही किसी ने इस तरह के दौरे की कल्पना की होगी लेकिन वास्तविक राजनीति और व्यावहारिकता से प्रेरित होकर भारत ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान तालिबान हुकूमत को औपचारिक रूप से मान्यता देने से परहेज़ करते हुए उसके साथ अपनी बातचीत लगातार बढ़ाई है.
जनवरी में मुत्तक़ी ने दुबई में भारत के विदेश सचिव से मुलाकात की थी. अप्रैल में पहलगाम आतंकी हमले के बाद उन्होंने भारत के विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और ईरान डिवीज़न के संयुक्त सचिव से भेंट की. मई में मुत्तक़ी और जयशंकर ने फ़ोन पर बातचीत की.
भारत के द्वारा ऑपरेशन सिंदूर शुरू करने और पाकिस्तान से निपटने के अपने दृष्टिकोण को काफी हद तक फिर से परिभाषित करने के बाद से तालिबान के साथ भारत की बातचीत में और तेज़ी आई है. सत्ता में तालिबान की वापसी के बाद अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच बिगड़ते संबंधों ने भी भारत को अपने रणनीतिक हितों की सुरक्षा के लिए तालिबान हुकूमत के साथ रिश्ते बनाने के लिए अधिक गुंजाइश दी है. इसके अलावा क्षेत्रीय समीकरण भारत के लिए एक अतिरिक्त कारण है क्योंकि इस क्षेत्र के दूसरे देश धीरे-धीरे अपना दायरा बढ़ा रहे हैं और तालिबान के साथ संबंध मज़बूत कर रहे हैं. रूस पहला देश बन गया जिसने जून में तालिबान को विधिवत मान्यता दी. चीन और मध्य एशिया के दूसरे गणराज्यों ने अफ़ग़ानिस्तान के साथ राजदूतों का आदान-प्रदान किया है.
तालिबान शासन की बात करें तो उसने अपने कूटनीतिक संबंधों में विविधता लाने के लिए भारत से जुड़ने का फैसला किया है. ये तालिबान की इस रणनीति में फिट बैठता है जिसके तहत वो ख़ुद को एक व्यावहारिक किरदार के रूप में स्थापित करना चाहता है- चाहे संबंध कितने भी औपचारिक क्यों न हो लेकिन वो आपसी हितों के आधार पर दूसरे देशों के साथ काम करना चाहता है. ये “दुश्मनी किसी से नहीं और दोस्त सबसे” वाला नज़रिया ख़ुद को एक गैर-वैचारिक और आर्थिक रूप से केंद्रित सरकार के रूप में पेश करके तालिबान शासन के लिए वैधता हासिल करने के मक़सद से है.
10 अक्टूबर की बैठक के बाद दोनों पक्षों की तरफ से जारी साझा बयान में जयशंकर ने अफ़ग़ानिस्तान के साथ भारत के पुराने सभ्यतागत एवं सांस्कृतिक संबंधों और वहां के विकास में समर्थन की भारत की प्रतिबद्धता दोहराई. उन्होंने पहलगाम में हुए हमले को लेकर तालिबान की तरफ से “कड़ी निंदा”, भारत की सुरक्षा चिंताओं को लेकर इस संगठन की समझ और “इस क्षेत्र में शांति, स्थिरता और आपसी भरोसा” को बढ़ावा देने के लिए दोनों पक्षों की प्रतिबद्धता की भी तारीफ की. दोनों पक्षों ने नियमित रूप से अपनी बातचीत जारी रखने की प्रतिबद्धता दोहराई.
इस बैठक से भारत-अफ़ग़ानिस्तान संबंधों के लिए अधिक ठोस नतीजे भी सामने आए. राजनीतिक मोर्चे पर भारत ने काबुल में अपने दूतावास को फिर से पूरी तरह खोलने का फैसला लिया जो जून 2022 से टेक्निकल मिशन के रूप में काम कर रहा था. साथ ही भारत ने इस्लामिक अमीरात के राजनयिकों को औपचारिक रूप से मान्यता देने का भी निर्णय लिया.
इस बैठक से भारत-अफ़ग़ानिस्तान संबंधों के लिए अधिक ठोस नतीजे भी सामने आए. राजनीतिक मोर्चे पर भारत ने काबुल में अपने दूतावास को फिर से पूरी तरह खोलने का फैसला लिया जो जून 2022 से टेक्निकल मिशन के रूप में काम कर रहा था. साथ ही भारत ने इस्लामिक अमीरात के राजनयिकों को औपचारिक रूप से मान्यता देने का भी निर्णय लिया. (किसी भी पक्ष ने राजदूत की नियुक्ति का ज़िक्र नहीं किया.)
भारत ने मानवीय प्रतिबद्धताएं भी जताईं. भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में अपनी रुकी हुई बुनियादी ढांचे एवं विकास की परियोजनाओं को फिर से शुरू करने, पिछले दिनों आए भूकंप में ध्वस्त घरों को फिर से बनाने में मदद करने और अफ़ग़ान छात्रों को भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की स्कॉलरशिप प्रदान करने को जारी रखने का वादा किया. जयशंकर ने पूरे देश में नए स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों के लिए मदद और काबुल में इंदिरा गांधी बाल अस्पताल को अपग्रेड करने की भी घोषणा की. बैठक के बाद उन्होंने मुत्तक़ी को 20 एंबुलेंस उपहार के रूप में दी.
इसके जवाब में मुत्तक़ी ने भारत को अफ़ग़ानिस्तान के खनन क्षेत्र में निवेश करने का न्योता दिया. ये ऐसी पेशकश है जिसका इस्तेमाल तालिबान शासन ने दूसरे देशों के साथ भागीदारी बढ़ाने में किया है. उन्होंने जलविद्युत परियोजनाओं के लिए भी मदद मांगी और अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद ईरान में चाबाहार पोर्ट के प्रभावी ढंग से उपयोग को लेकर चर्चा की. उन्होंने वीज़ा और निवेश के मुद्दे उठाए और भारत एवं पाकिस्तान के बीच अटारी-वाघा सीमा को फिर से खोलने की अपील भी की जिसे मई में बंद कर दिया गया था. इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान और भारत एक हवाई कॉरिडोर खोलने और दोनों देशों के बीच हवाई उड़ानों की संख्या बढ़ाने पर भी सहमत हुए.
भारत यात्रा में तालिबान के नेता ने उत्तर प्रदेश में दारुल उलूम मदरसे का भी दौरा किया जो सुन्नी मुसलमानों के बीच धार्मिक रूप से काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है. उन्होंने भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) में कारोबारियों एवं उद्योगपतियों से भी मुलाकात की, अफ़ग़ान शरणार्थियों से बातचीत की और दो प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की. पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस से महिला पत्रकारों को रोक दिया गया. लेकिन तीन दिन बाद दूसरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकार काफी संख्या में आईं. अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं की स्थिति को लेकर महिला पत्रकारों के तीखे सवालों ने साफ कर दिया कि भारत में ये चिंता अब भी बहुत ज़्यादा है. हालांकि ये कहना अभी जल्दबाज़ी होगी कि ये चिंताएं आधिकारिक नीति में दिखेंगी या नहीं और भारत को तालिबान हुकूमत के साथ बातचीत करने और अनजाने में इसको मान्यता देने के बीच कठिन संतुलन बनाना होगा.
अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं की स्थिति को लेकर महिला पत्रकारों के तीखे सवालों ने साफ कर दिया कि भारत में ये चिंता अब भी बहुत ज़्यादा है. हालांकि ये कहना अभी जल्दबाज़ी होगी कि ये चिंताएं आधिकारिक नीति में दिखेंगी या नहीं और भारत को तालिबान हुकूमत के साथ बातचीत करने और अनजाने में इसको मान्यता देने के बीच कठिन संतुलन बनाना होगा.
भारत की दांव पर लगी इस कूटनीति को नज़रअंदाज़ नहीं किया गया है. जब मुत्तक़ी की मुलाकात जयशंकर से हो रही थी, उसी समय पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी पर हवाई हमले किए जिसका निशाना तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) का नेता था. तालिबान ने पाकिस्तान की सीमा चौकियों को निशाना बनाकर हमले का जवाब दिया. रविवार को युद्धविराम होने से पहले संघर्ष में दर्जनों लोगों की मौत हुई. जब पाकिस्तान TTP को समर्थन देने से रोकने के लिए तालिबान को मनाने में जूझ रहा है, उसी समय पाकिस्तान के हमले बताते हैं कि वो भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच संबंधों में सुधार से बेचैन है.
अफ़ग़ानिस्तान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने की भारत की प्रतिबद्धता भी पाकिस्तान की बेचैनी बढ़ा सकती है. भारत ने तालिबान के साथ बातचीत इस भरोसे पर बढ़ाई कि अफ़ग़ानिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत के हितों के ख़िलाफ़ नहीं होने दिया जाएगा. मुत्तक़ी ने पहले की तरह इस वादे को दोहराया लेकिन ऐसा करने की तालिबान की क्षमता और इच्छा पर अभी भी संदेह है. इसके विपरीत स्पष्ट सबूतों के बावजूद तालिबान अफ़ग़ानिस्तान के भीतर किसी भी तरह की सुरक्षा चुनौती या बाहरी संगठनों की मौजूदगी से इनकार करता है.
कम समय के लिए कहें तो पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच बिगड़ते रिश्तों ने भारत के पक्ष में काम किया है लेकिन दोनों देशों के बीच गहरे संबंधों को अनदेखा नहीं किया जा सकता. जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया था तो तालिबान ने तनाव बढ़ने की निंदा की और दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की थी. मई में अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान ने भी अपने संबंधों को बढ़ाकर राजदूत स्तर का किया था और सहयोग बढ़ाने के लिए नियमित रूप से द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय (चीन को शामिल करके) बैठक भी कर रहे हैं. इस महीने हुई झड़प के बाद भी मुत्तक़ी ने पाकिस्तान से बातचीत का अनुरोध किया और अफ़ग़ानिस्तान के साथ संबंध ख़राब करने के लिए पाकिस्तान के एक छोटे तबके पर ही आरोप लगाए.
इन सभी बातों का ये मतलब है कि मुत्तक़ी के दौरे के बाद भारत को तालिबान हुकूमत के साथ अपने संबंधों के बारे में वास्तविक उम्मीद रखने की ज़रूरत है. फिर भी, बातचीत एक रणनीतिक आवश्यकता बनी हुई है. तालिबान हुकूमत को लेकर भारत की नई रणनीति उथल-पुथल के समय में क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता देने की भारत की प्रतिबद्धता के बारे में बताती है.
ये लेख मूल रूप से फॉरेन पॉलिसी में प्रकाशित हुई थी.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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Shivam Shekhawat is a Junior Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses primarily on India’s neighbourhood- particularly tracking the security, political and economic ...
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