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तालिबान के चीन और पाकिस्तान से बढ़ते रिश्ते और उनकी आपसी साझेदारी भारत की रणनीति के लिए बड़ा जोखिम भी बन सकती है.
भारत का प्रयास है कि तालिबान उसकी सुरक्षा चिंताओं को समझे. वह अफगानिस्तान में मानवीय मदद और विकास कार्यों में सहयोग भी बढ़ा रहा है. इससे पहले इसी साल जनवरी में विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने दुबई में आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की थी.
जयशंकर ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले की निंदा करने के लिए मुत्ताकी का धन्यवाद किया. उन्होंने यह भी कहा कि तालिबान ने ऐसे झूठे दावों पर ध्यान नहीं दिया, जो भारत और अफगानिस्तान के बीच गलतफहमी फैलाने की कोशिश कर रहे थे. उनका इशारा पाकिस्तान के झूठे आरोपों की तरफ था.
पिछले कुछ बरसों में भारत ने अपनी नीति में बदलाव किया है. भारत का प्रयास है कि तालिबान उसकी सुरक्षा चिंताओं को समझे. वह अफगानिस्तान में मानवीय मदद और विकास कार्यों में सहयोग भी बढ़ा रहा है. इससे पहले इसी साल जनवरी में विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने दुबई में आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की थी. यह बैठक ऐसे वक्त हुई थी, जब अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रिश्ते काफी बिगड़ गए थे. दिसंबर 2024 में दोनों देशों ने एक-दूसरे पर हवाई हमले किए थे.
काबुल में पाकिस्तान का दबदबा कम हो रहा है और यह स्थिति भारत के लिए फायदेमंद है. इससे उसे अफगानिस्तान के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने और क्षेत्र में अपने रणनीतिक व सुरक्षा हितों को सुरक्षित रखने का मौका मिला है. चाबहार बंदरगाह इस मामले में बेहद अहम हो जाता है. इसका महत्व केवल व्यापार के लिए ही नहीं है, इसके जरिये अफगानिस्तान तक भारत मदद पहुंचा सकता है और पाकिस्तान पर काबुल की हद से ज्यादा निर्भरता भी कम की जा सकती है.
भारत ने हालांकि तालिबान के साथ रिश्ते बढ़ाए हैं, लेकिन इलाके के दूसरे मुल्क इस मामले में और भी आगे निकल चुके हैं. रूस ने हाल ही में तालिबान को अपनी आतंकी संगठनों की लिस्ट से अस्थायी रूप से हटा दिया. ईरान और मध्य एशिया के देशों - कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और ताजिकिस्तान ने भी तालिबान से संपर्क बढ़ाया है. तालिबान भी इस बदलाव का फायदा उठा रहा है. वह बार-बार कहता रहा है कि उसकी विदेश नीति न्यूट्रल और आपसी फायदे व लेन-देन पर आधारित है. हाल में जब भारत और पाकिस्तान के बीच टकराव हुआ, तब तालिबान ने दोनों देशों के साथ अपने अच्छे रिश्ते होने की बात कहते हुए बातचीत के माध्यम से मामला सुलझाने की अपील की थी.
तालिबान के विदेश मंत्री मुत्ताकी लगातार पाकिस्तान और चीन के भी संपर्क में हैं. 10 मई को काबुल में पाकिस्तान और चीन के अधिकारियों ने मुत्ताकी से मुलाकात की थी. इसके बाद 20-21 मई को चीन में एक बड़ी बैठक हुई, जिसमें पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री मोहम्मद इशाक डार, तालिबान के विदेश मंत्री मुत्ताकी और चीन के विदेश मंत्री वांग यी शामिल हुए. तीनों देशों ने आर्थिक व व्यापारिक सहयोग बढ़ाने और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को अफगानिस्तान तक ले जाने की बात कही.
चीन के विदेश मंत्रालय ने इस बैठक को लेकर एक बयान जारी किया. इसमें कहा गया कि वह अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक संबंध मजबूत करने में मदद करना चाहता है. बताया गया कि काबुल और इस्लामाबाद ने एक-दूसरे के यहां राजदूत भेजने पर सहमति जताई है और पेइचिंग दोनों के रिश्तों में सुधार लाने के लिए हरसंभव मदद करेगा.
बयान में किए गए आर्थिक वादों को पूरा होने में अभी समय लगेगा. CPEC पर भी काम शुरू नहीं हुआ है और भविष्य में भी उम्मीद नहीं है. लेकिन, भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव के बाद, चीन अगर इस्लामाबाद और काबुल को अपने साथ जोड़ने की कोशिश करता है, तो यह नई दिल्ली के लिए चिंता की बात होगी. तालिबान के लिए भारत से अच्छे संबंध रखना इसलिए फायदेमंद है, क्योंकि इससे उसकी पाकिस्तान पर निर्भरता खत्म हो जाती है. अब यह भारत पर है कि तालिबान के साथ संबंधों का वह कितना फायदा उठा पाता है.
तालिबान के लिए भारत से अच्छे संबंध रखना इसलिए फायदेमंद है, क्योंकि इससे उसकी पाकिस्तान पर निर्भरता खत्म हो जाती है. अब यह भारत पर है कि तालिबान के साथ संबंधों का वह कितना फायदा उठा पाता है.
पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर भारत की सैन्य कार्रवाई के बाद अफगानिस्तान में मौजूद कुछ आतंकी संगठनों - खासतौर पर AQIS ने जिहाद की धमकी दी थी. तालिबान सरकार से संपर्क बढ़ाते हुए नई दिल्ली को इन आतंकी संगठनों के खतरों के प्रति सतर्क रहना चाहिए. तालिबान कितना भी इनकार करे, पर हकीकत में अफगानिस्तान में आज भी कई आतंकवादी संगठन मौजूद हैं. तालिबान इनके खिलाफ कदम उठाने का कितना इच्छुक या सक्षम है, इस पर संदेह बना हुआ है.
मौजूदा हालात में भारत को काबुल से बात करने और सहयोग बढ़ाने का मौका जरूर मिला है, लेकिन तालिबान के चीन और पाकिस्तान से बढ़ते रिश्ते और उनकी आपसी साझेदारी भारत की रणनीति के लिए बड़ा जोखिम भी बन सकती है.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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