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तकनीक ने युद्ध को इतना तेज कर दिया है कि एस्केलेशन का टाइम कम हो गया है. इसे समझना और कंट्रोल करना अब पहले से ज्यादा जरूरी है.
यह लेख "ऑपरेशन सिंदूर - अनावृत" नामक सीरीज़ का हिस्सा है.
पिछले हफ्ते भारत और पाकिस्तान के बीच जो तनाव चला, वह 10 मई को समझौते के साथ थम गया. लेकिन इस पूरे प्रकरण में कई ऐसी बातें हैं, जिन पर गौर करना चाहिए. पहलगाम हमले से शुरू हुआ यह संघर्ष भारत-पाक रिश्तों, पाकिस्तानी सेना की रणनीति और भारत-अमेरिका संबंधों के लिए एक बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है.
इससे पहले हम भले ही चीन की बात करते रहें, लेकिन इस बार साफ हो गया कि अगर कोई पाकिस्तान पर प्रेशर डाल सकता है, तो वह अमेरिका है.
पहली बात यह है कि इस सीजफायर में अमेरिका की भूमिका बड़ी थी. अमेरिका ही वह इकलौता देश था, जो पाकिस्तान पर दबाव डाल सकता था. इससे पहले हम भले ही चीन की बात करते रहें, लेकिन इस बार साफ हो गया कि अगर कोई पाकिस्तान पर प्रेशर डाल सकता है, तो वह अमेरिका है. अमेरिका ने वह प्रेशर डाला भी- भारत के पक्ष में. भारत ने बिल्कुल साफ कर दिया था कि इस बार वह पीछे नहीं हटेगा.
पहलगाम हमले और पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर के बयानों ने भारत को चैलेंज दिया था. भारत ने कहा, अब स्ट्रैटिजिक रेस्ट्रेंट नहीं दिखाएंगे. हम जवाब देंगे, और जमकर देंगे. अमेरिका ने भारत का यह मैसेज समझा और पाकिस्तान पर दबाव डाला कि ‘सीजफायर करो, वरना यह तनाव और बढ़ेगा.’ आखिरकार, पाकिस्तान को झुकना पड़ा.
भारत ने साफ कर दिया कि अब हर टेरर अटैक को एक्ट ऑफ वॉर मानेगा. इस रुख ने पाकिस्तानी सेना को बैकफुट पर ला दिया.
पाकिस्तानी सेना के लिए यह समझौता बड़ा झटका है. उसने भारत के खिलाफ जोखिम भरी रणनीति अपनाई, जो पूरी तरह फेल हो गई. पहलगाम हमले के बाद भारत ने आतंकी ठिकानों पर टारगेटेड हमले किए. भारतीय सेना ने इसे कैलिब्रेटेड, नॉन-एस्केलेटरी रिस्पॉन्स बताया, लेकिन पाकिस्तान ने भारत के सिविलियन और सैन्य ठिकानों पर ड्रोन और मिसाइल हमले शुरू कर दिए. जवाब में भारत ने भी कार्रवाई तेज की. भारत ने साफ कर दिया कि अब हर टेरर अटैक को एक्ट ऑफ वॉर मानेगा. इस रुख ने पाकिस्तानी सेना को बैकफुट पर ला दिया. पहले से ही अपनी विश्वसनीयता खो चुकी पाकिस्तानी सेना अब अपने देश में सवालों के घेरे में है. लोग पूछ रहे हैं- आखिर ये जोखिम क्यों लिया गया? इस सीजफायर के बाद पाकिस्तानी सेना को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.
इस कॉन्फ्लिक्ट में एक और बड़ी बात सामने आई- भारत की स्वदेशी तकनीक की ताकत. भारत ने अपने डिफेंस सिस्टम की जो क्षमता दिखाई, वह कमाल की थी. पाकिस्तान ने ड्रोन स्वार्म, बैलिस्टिक मिसाइल और फाइटर जेट्स का इस्तेमाल किया, लेकिन भारत ने सबको रोक लिया. भारत ने न सिर्फ हमले रोके, बल्कि पाकिस्तानी इलाके में जाकर टारगेटेड हमले किए और एक नया मानक तय किया. दूसरी तरफ, इस कॉन्फ्लिक्ट ने युद्ध का बदलता चेहरा भी दिखाया. ड्रोन और मिसाइल टेक्नॉलजी की वजह से तनाव बहुत जल्दी बढ़ा. रूस-यूक्रेन और मध्य-पूर्व के युद्धों की तरह यहां भी एस्केलेशन का टाइम बहुत कम रहा. यह चिंता की बात है. इससे साउथ एशिया में रणनीतिक स्थिरता के लिए खतरा बढ़ गया है.
पाकिस्तान की अंदरूनी हालत भी इस संघर्ष में साफ दिखी. वहां सेना कुछ कर रही थी, सिविलियन गवर्नमेंट कुछ बोल रही थी, और राजनेता कुछ और. जॉइंट अप्रोच का नामोनिशान नहीं था. यह पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीतिक विफलता को दिखाता है. शहबाज शरीफ ने समझौते को ‘विक्ट्री’ बताया, लेकिन समझ नहीं आता कि वह किस जीत की बात कर रहे हैं. जनरल मुनीर ने इस क्राइसिस को बिना सोचे-समझे शुरू किया और अब उन पर पाकिस्तान में सवाल उठ रहे हैं.
ड्रोन और मिसाइल टेक्नॉलजी की वजह से तनाव बहुत जल्दी बढ़ा. रूस-यूक्रेन और मध्य-पूर्व के युद्धों की तरह यहां भी एस्केलेशन का टाइम बहुत कम रहा. यह चिंता की बात है. इससे साउथ एशिया में रणनीतिक स्थिरता के लिए खतरा बढ़ गया है.
भारत ने इस बार न सिर्फ अपनी ताकत दिखाई, बल्कि पाकिस्तान के साथ नए टर्म्स ऑफ इंगेजमेंट सेट किए. भारत ने एक नई लकीर खींच दी- हर टेरर अटैक को अब युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा. इस रणनीति ने पाकिस्तान को हाशिए पर धकेल दिया. भारत ने चारों तरफ से उसकी कमजोरियों को एक्सपोज कर दिया, और अब उसके पास मुंह छुपाने का भी रास्ता नहीं बचा. दूसरी तरफ, ट्रंप इस समझौते का क्रेडिट लेने की कोशिश कर रहे हैं. मध्य-पूर्व और यूक्रेन में वह युद्ध रोकने में नाकाम रहे, तो अब भारत-पाक समझौते को अपनी जीत बता रहे हैं. ट्रंप ने कश्मीर मसले को हल करने की बात भी कही, लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि वह पाकिस्तान के साथ किसी डायरेक्ट डायलॉग में नहीं जाएगा. वह अपनी शर्तों पर पाकिस्तान से डील करेगा.
इस सीजफायर से साफ है कि भारत ने अपनी रणनीति से पाकिस्तान के रणनीतिक समीकरण को बदल दिया. साउथ एशिया में स्थिरता बनाए रखने के लिए पाकिस्तान को अब जिम्मेदारी से सोचना होगा. उसकी सेना को समझना होगा कि जोखिम भरी रणनीति अब काम नहीं करेगी. और हां, तकनीक ने युद्ध को इतना तेज कर दिया है कि एस्केलेशन का टाइम कम हो गया है. इसे समझना और कंट्रोल करना अब पहले से ज्यादा जरूरी है.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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