Published on Apr 04, 2023 Updated 0 Hours ago

यूक्रेन संघर्ष को लेकर चीन दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है. एक तरफ वह रूस का सहयोगी बना रहना चाहता है तो दूसरी ओर पश्चिमी देशों की नाराज़गी से भी बचना चाहता है. 

दुनिया में एशिया को फिर से असरदार बनाने में भारत और इज़रायल की केंद्रीय भूमिका

वैसे तो भारत और इज़रायल के बीच संबंध को कई बार “स्वर्ग में बनी जोड़ी” के तौर पर बताया जाता है लेकिन इस रिश्ते ने राजनीतिक-वैचारिक कारणों से एक-दूसरे से अलग साझेदार होने से लेकर हाल के समय में आर्थिक, राजनीतिक, वैचारिक एवं सुरक्षा जैसे मुद्दों की वजह से सामरिक तौर पर अभिन्न साझेदारी तक की दूरी को तय किया है. 

ये संबंध उम्मीद से भरा है क्योंकि दीर्घकालिक स्तर पर दोनों देश तेज़ी से एक-दूसरे से दूर होते वैश्विक परिदृश्य में अपने-अपने हिसाब से सामरिक किरदार हैं. अल्पकालिक स्तर पर दोनों देश बदलते एशियाई एवं पश्चिम एशियाई क्षेत्रों, जो कि व्यापक बदलाव से गुज़र रहे हैं, का हिस्सा हैं. रूस-यूक्रेन संघर्ष के आर्थिक परिणामों और पश्चिम एशिया में परंपरागत प्रतिद्वंदियों के बीच सुलह के क़दमों की एक श्रृंखला ने ऊर्जा से समृद्ध पश्चिम एशिया में दिलचस्पी को फिर से ज़िंदा कर दिया है. 

दुनिया की नज़रें भारत पर केवल वर्तमान के कारण नहीं है बल्कि भविष्य के लिए उसकी क्षमताओं की वजह से भी है. इस संदर्भ में द्विपक्षीय व्यापार को प्रोत्साहन देने का एक महत्वपूर्ण तरीक़ा भारत-इज़रायल मुक्त व्यापार समझौते के लिए बातचीत की तरफ़ तेज़ी से बढ़ना हो सकता है.

आर्थिक क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का विश्व आर्थिक दृष्टिकोण पश्चिम एशिया एवं उत्तर अफ्रीका के लिए 2023 में 3.2 प्रतिशत और 2024 में 3.7 प्रतिशत GDP विकास का अनुमान लगाता है. उभरते और विकासशील एशिया के लिए क्रमश: 5.3 प्रतिशत और 5.2 प्रतिशत विकास का अनुमान है. अगर एशिया की तुलना विकसित देशों की अर्थव्यवस्था से की जाए, जहां क्रमश 1.2 प्रतिशत और 1.4 प्रतिशत विकास का अनुमान है, तो ये काफ़ी आगे है. 

इस संदर्भ में भारत, क्रमश: 6.1 प्रतिशत एवं 6.8 प्रतिशत विकास का अनुमान, और इज़रायल, क्रमश: 3 प्रतिशत एवं 3.1 प्रतिशत विकास का अनुमान, भरपूर तालमेल की संभावना का निर्माण करते हैं, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि भारत-इज़रायल के बीच व्यापार की मात्रा संभावना के नीचे रही है. दुनिया की नज़रें भारत पर केवल वर्तमान के कारण नहीं है बल्कि भविष्य के लिए उसकी क्षमताओं की वजह से भी है. इस संदर्भ में द्विपक्षीय व्यापार को प्रोत्साहन देने का एक महत्वपूर्ण तरीक़ा भारत-इज़रायल मुक्त व्यापार समझौते के लिए बातचीत की तरफ़ तेज़ी से बढ़ना हो सकता है. भारत-संयुक्त अरब अमीरात (UAE) व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता, जिसमें सेवा क्षेत्र शामिल है और जिस पर बातचीत की शुरुआत होने के 90 दिन से कम में हस्ताक्षर किए गए, एक उपयोगी रूप-रेखा के तौर पर काम कर सकता है. 

अमेरिका-चीन प्रतिद्वंदिता और पश्चिम एशिया एवं इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में उसके बढ़ते असर ने भारत की भूमिका को उजागर किया है जो संभवत: दोनों महाशक्तियों के बीच संतुलन को बिगाड़ सकता है. हाल के वर्षों में भारत इस क्षेत्र में ज़्यादा सक्रिय बन गया है तथा उसने अपना क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाया है और अलग-अलग रूपों में अमेरिका के साथ अपने सहयोग को मज़बूत किया है. इनमें इज़रायल और UAE के साथ I2U2 के रूप में एक छोटे बहुपक्षीय समूह का गठन शामिल है. कुछ के द्वारा ‘भविष्य की साझेदारी’ के रूप में पेश किए गए I2U2 का लक्ष्य क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में इसके सदस्यों के बीच आर्थिक सहयोग में जोश भरना है जैसे कि खाद्य सुरक्षा, तकनीक, नई ऊर्जा, बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य, अंतरिक्ष एवं इनोवेशन. 

लीक से हटकर सोच 

वैसे तो भारत-इज़रायल द्विपक्षीय संबंधों में सुधार क्रमिक है लेकिन रिश्तों में एक क्षेत्रीय एवं छोटे बहुपक्षीय दृष्टिकोण को अपनाकर इसमें गतिशीलता के भाव को जोड़ा जा सकता है. लीक से हटकर दृष्टिकोण अपनाते हुए और भारत-UAE एवं इज़रायल-UAE आर्थिक समझौते को आगे बढ़ाते हुए भारत-इज़रायल-UAE त्रिपक्षीय व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किया जा सकता है. ऐसे क़दम आवश्यकता से ज़्यादा विनियमन के कारण पैदा मौजूदा अवरोधों को दूर कर सकते हैं और तीनों देशों के बीच व्यापार की मात्रा में महत्वपूर्ण रूप से बढ़ोतरी कर सकते हैं. अलग-अलग क्षेत्रों में UAE की पूंजी, इज़रायल की तकनीक और भारतीय बाज़ार का मिश्रण तीनों देशों के लिए फ़ायदेमंद नतीजे ला सकता है.

UAE ने 2020 में ‘अफ्रीका के साथ UAE और इज़रायल की एकजुटता’ आयोजन की मेज़बानी की जिसमें भारत भी एक त्रिपक्षीय स्वरूप में आसानी से शामिल हो सकता है क्योंकि अफ्रीका में भारत की विश्वसनीय और असरदार भूमिका रही है.

इस भावना के साथ भारत-इज़रायल वाणिज्य मंडल के अंतर्राष्ट्रीय महासंघ ने 2021 में एक साझेदारी की शुरुआत की जिसमें इज़रायल की एक कंपनी- इक्कोपिया- ने UAE में एक परियोजना के लिए भारत में बिना पानी की रोबोटिक सोलर क्लीनिंग टेक्नोलॉजी का निर्माण किया. दूसरे क्षेत्रों में इस तरह की साझेदारी को दोहराने के लिए आश्वस्त तीनों देशों का आकलन है कि 2030 तक इनोवेशन और उनके बीच सहयोग की अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय संभावना 110 अरब अमेरिकी डॉलर है. 

इस तरह की त्रिपक्षीय साझेदारी का एक और उदाहरण 2022 में हस्ताक्षरित भारत-इज़रायल-UAE संयुक्त उपक्रम समझौता ज्ञापन (MoU) है. ये समझौता ज्ञापन इज़रायल की टावर सेमीकंडक्टर और UAE की नेक्स्ट ऑर्बिट वेंचर को 3 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश के साथ कर्नाटक राज्य में भारत के पहले सेमीकंडक्टर उत्पादन प्लांट की स्थापना की सुविधा प्रदान करता है. इसके अलावा UAE ने 2020 में ‘अफ्रीका के साथ UAE और इज़रायल की एकजुटता’ आयोजन की मेज़बानी की जिसमें भारत भी एक त्रिपक्षीय स्वरूप में आसानी से शामिल हो सकता है क्योंकि अफ्रीका में भारत की विश्वसनीय और असरदार भूमिका रही है. 

एक और नये प्रकार की, छोटे स्तर की, बहुपक्षीय मिल कर काम करने की व्यवस्था जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत है, वो है दूसरे समान विचार वाले साझेदारों जैसे कि जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर को शामिल करने के लिए I2U2 के विस्तार की संभावना का पता लगाना. ट्रैक 2 स्तर पर इस संभावना का पता लगाने की कोशिशें पहले से ही चल रही हैं. ये तथ्य कि जापान और दक्षिण कोरिया ने कुछ हफ़्ते पहले ही नई कूटनीतिक पहल की है, उससे इस तरह के सहयोग की संभावना बनती है. इस प्रकार भारत-इज़रायल के बीच संबंधों को मदद मिलेगी. 

इस तरह की छोटे स्तर की नई बहुपक्षीय व्यवस्था को प्रेरित करने वाले कुछ भरोसा देने वाले विचारों में से एक है भारत-इज़रायल की अगुवाई में ‘ब्लू इकोनॉमी फंड’ की स्थापना करना जिसमें अन्य साझेदारों को भी शामिल किया जा सकता है. ब्लू इकोनॉमी समुद्री शासन व्यवस्था की एक उभरती धारणा है जो पर्यावरण की दृष्टि से सतत तरीक़े से समुद्रों की आर्थिक क्षमता का उपयोग करती है. ये सकारात्मक ढंग से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के समाधानों का उपयोग कर वैश्विक मुद्दों जैसे कि कार्बन तटस्थता, हरित ऊर्जा एवं ऊर्जा सुरक्षा पर असर डालती है. ये वो मुद्दे हैं जो कि भारत के सागर (SAGAR यानी सिक्युरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन) दृष्टिकोण के साथ अच्छी तरह से मेल खाते हैं जिसकी प्रस्तावना सबसे पहले 2015 में रखी गई थी. 

इस तरह का सहयोग एक बंटी हुई दुनिया में बीच की शक्तियों की भूमिका को सामने लाता है. वर्तमान परिदृश्य में भारत और इज़रायल जैसे देश केवल राजनीति एवं सुरक्षा के मुद्दों पर ज़ोर देने के बदले अर्थव्यवस्था पर केंद्रित पांच C यानी कैपिटल (पूंजी), कनेक्टिविटी (संपर्क), कॉमर्स (वाणिज्य), कोलेबोरेशन (सहयोग) और क्लाइमेट (जलवायु) को प्रोत्साहन देने पर ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं. 

इनोवेशन एवं तकनीक 

चूंकि आधुनिक तकनीकों की तलाश में महाशक्तियों के बीच प्रतिद्वंदिता में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, ऐसे में भारत एवं इज़रायल के पास इस क्षेत्र में ज़्यादा सहयोग के ज़रिए काफ़ी कुछ हासिल करने का अवसर है. दोनों देश तकनीक और इनोवेशन के मामले में अग्रणी हैं और उच्च तकनीक के क्षेत्र में सहयोग की संभावना महत्वपूर्ण है. 

भारत पहले ही स्वदेशी 5G तकनीक की शुरुआत कर चुका है जबकि 6G के लिए टेस्ट बेड को मार्च 2023 में लॉन्च किया गया था. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बिग डेटा और सेमीकंडक्टर से लेकर नवीकरणीय ऊर्जा, स्वास्थ्य देखभाल और कृषि के क्षेत्र में साथ काम करने से दोनों देशों को काफ़ी फ़ायदा हो सकता है, इससे वो इन क्षेत्रों में सबसे आगे आ सकते हैं. 

भारत की विशेषज्ञता और उसकी विशाल एवं बढ़ती अर्थव्यवस्था इज़रायल की रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) और इनोवेशन की क्षमता के अनुकूल है. इस तरह दोनों देश R&D और इनोवेशन में साझा प्रगति के लिए एक शानदार मौक़ा प्रदान करते हैं. इस तरह के सहयोग दोनों देशों के लिए इस क्षेत्र में अपनी साझेदारी का अन्य देशों तक विस्तार करने में अतिरिक्त अवसर का निर्माण कर सकते हैं जिसमें विशेष तौर पर जल प्रबंधन, आतंकवाद निरोध और उभरती तकनीकों पर ध्यान हो. 

दोनों देशों के टेक स्टार्ट-अप इकोसिस्टम के बीच भागीदारी का विस्तार भी एक प्राथमिकता होनी चाहिए. भारत ने सिर्फ़ 2021 में 46 यूनिकॉर्न (ऐसे स्टार्ट-अप जिनकी वैल्यूएशन कम-से-कम 1 अरब अमेरिकी डॉलर हो) को बनते देखा है और स्टार्ट-अप ने 42 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा का फंड इकट्ठा किया है. इसी तरह इज़रायल ने 33 यूनिकॉर्न के उदय को देखा है और इनकी मदद के लिए 25 अरब अमेरिकी डॉलर फंड के तौर पर मिले हैं. एक साथ मिलकर दोनों देशों के स्टार्ट-अप इकोसिस्टम महत्वपूर्ण लाभ हासिल कर सकते हैं. इसमें अगर UAE को भी जोड़ दिया जाए तो काफ़ी अवसरों का निर्माण हो सकता है. 

उच्च तकनीक की सघनता के युग में ये याद रखना महत्वपूर्ण है कि कम तकनीक वाले इनोवेशन का ज़्यादा मोल है. भारत और इज़रायल इस क्षेत्र में सहयोग के माध्यम से विकासशील देशों की कई समस्याओं का समाधान प्रदान कर सकते हैं. G20 की भारत की अध्यक्षता के दौरान इस पर उसका ध्यान है. मिसाल के तौर पर भारत की सस्ती डिजिटल भुगतान प्रणाली को अन्य विकासशील देशों में काफ़ी आसानी से दोहराया और बढ़ाया जा सकता है. 

भारत के अदाणी समूह के द्वारा 2002 में हाइफ़ा बंदरगाह के अधिग्रहण ने भारत में 2.3 अरब अमेरिकी डॉलर के I2U2 के एकीकृत फूड पार्क और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के अलावा भारत और इज़रायल के बीच क्षेत्रीय और स्थानीय बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को लेकर अधिक सहयोग का मार्ग प्रशस्त किया. एक और बुनियादी ढांचे की परियोजना जिसने भारत और इज़रायल को आकर्षित किया वो है यूरोप तक ‘भारत-अरब-भूमध्य कॉरिडोर’ जो भारत, UAE, सऊदी अरब, जॉर्डन, इज़रायल और ग्रीस के बंदरगाहों को जोड़ता है. इस तरह की परियोजनाएं दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय और उसके आगे नए तालमेल का पता लगाने के लिए और ज़्यादा अवसर प्रदान कर सकती हैं. 

सामरिक महत्व में बढ़ोतरी

राजनीतिक तौर पर वैसे तो कई लोग भारत-इज़रायल के संबंधों में हाल के समय में आई घनिष्ठता के पीछे घरेलू-वैचारिक कारण बताते हैं लेकिन ये रिश्ता परिपक्वता की उस स्थिति में पहुंच गया है जहां विदेश नीति की निरंतरता, चाहे सत्ता में मौजूद सरकारों की राजनीतिक दिशा कुछ भी हो, दोनों देशों के मुख्य आधारों में से एक है. 

ये कई मोर्चों पर दिखता है. पहला, अलग-अलग राजनीतिक धाराओं की एक-के-बाद-एक भारत की सरकारें अपनी इज़रायल नीति के साथ आगे बढ़ी हैं और इसके विपरीत मौजूदा सरकार को विदेश नीति से जुड़ी प्रमुख सफलताओं में से एक पश्चिम एशिया में मिली है. दूसरा, यही चीज़ इज़रायल की भारत नीति में भी दिखती है जिसको कि व्यापक द्विदलीय समर्थन हासिल है. इस विचार का एक और संकेत ये है कि अरब पड़ोसियों के साथ इज़रायल के अब्राहम अकॉर्ड ने अभी तक कम-से-कम चार सरकारों का सक्रिय समर्थन प्राप्त किया है. 

वैसे तो पिछले दिनों सऊदी अरब और ईरान के बीच कूटनीतिक संबंधों की बहाली इज़रायल की विदेश नीति की और परीक्षा लेगी लेकिन ये दिलचस्प है कि भारत-इज़रायल के बीच संबंध फिलिस्तीन और ईरान- दोनों मुद्दों से अलग बना हुआ है. ये संबंध इस बात का प्रमाण है कि दूसरे देशों की सामरिक स्वायत्तता का ये कितना सम्मान करते हैं, जो उनकी व्यावहारिक विदेश नीतियों के साथ अच्छी तरह से मेल खाता है. 

आगे की तरफ़ देखें तो बढ़ती क्षेत्रीय अनिश्चितता और वैश्विक अस्थिरता के सामने रक्षा और सुरक्षा संबंध महत्वपूर्ण बने रहेंगे. तेज़ी से बदलते एक वैश्विक परिदृश्य, जिसका प्रमाण पश्चिम एशिया में महाशक्तियों की कार्रवाई और सोच है, में भरोसा बनाना और स्थायी संबंध आवश्यक हैं. दूसरे साझेदारों के साथ भारत और इज़रायल को न केवल पश्चिम एशिया के विकास को आकार देने में सहायता देने के लिए बहुपक्षीय क्षेत्रों में मज़बूत सहयोग का पता लगाना और उसे विकसित करना चाहिए बल्कि तेज़ गति से फिर से वैश्वीकरण, बहुध्रुवीय और कई नेटवर्क के ज़रिए आपस में जुड़ी दुनिया के भविष्य को आकार देने के लिए भी. 

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