प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका दौरा 'ट्रंप-2.0' के दौरान दोनों देशों के आपसी रिश्तों का रोडमैप तैयार करता दिखा. इस यात्रा में उन तमाम मुद्दों पर सार्थक बातें हुईं, जिनसे द्विपक्षीय रिश्तों को गति मिलेगी. चाहे सबसे अहम आर्थिक मसला हो या रक्षा व तकनीक से जुड़े मुद्दे या फिर ऊर्जा सुरक्षा. दोनों नेताओं ने लोगों के बीच आपसी संपर्क बढ़ाने व बहुपक्षीय सहयोग पर भी जोर दिया. साझा बयान में आतंकवाद की निंदा करते हुए बाकायदा पाकिस्तान का नाम लेते हुए कहा गया कि मुंबई व पठानकोट हमलों के गुनहगारों को न्याय के कठघरे में खड़ा करने के साथ-साथ इस्लामाबाद को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी जमीन का इस्तेमाल किसी आतंकी गतिविधि के लिए नहीं हो. स्पष्ट है, प्रधानमंत्री मोदी का यह सफल दौरा रहा है. इसका संकेत मोदी-ट्रंप प्रेस वार्ता से भी मिला, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने 2020 में ट्रंप की भारत यात्रा का जिक्र करते हुए 1.4 अरब भारतीयों की तरफ से अमेरिकी राष्ट्रपति को फिर भारत आने का न्योता दिया, जिसे डोनाल्ड ट्रंप ने भी खुले दिल से स्वीकार किया.
साझा बयान में आतंकवाद की निंदा करते हुए बाकायदा पाकिस्तान का नाम लेते हुए कहा गया कि मुंबई व पठानकोट हमलों के गुनहगारों को न्याय के कठघरे में खड़ा करने के साथ-साथ इस्लामाबाद को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी जमीन का इस्तेमाल किसी आतंकी गतिविधि के लिए नहीं हो.
मोदी-ट्रंप की "मिशन-500" डील
ट्रंप ने इस बात पर खुशी जताई है कि भारत ने आम बजट में उन कुछ क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया है, जिसको लेकर अमेरिका की चिंता रही है. पिछले दिनों टैरिफ बढ़ाने की कवायद इसलिए भी की गई थी, क्योंकि व्यापार घाटा भारत की तरफ झुका हुआ है. माना जा रहा है कि मोदी-ट्रंप मुलाकात के बाद दोनों देश एक नई आर्थिक संरचना की तरफ आगे बढ़ सकते हैं, जिसमें दोनों के हितों की पूर्ति हो सकेगी. हालांकि, ऐसा करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि यदि ट्रंप प्रशासन अमेरिकी हितों को लेकर गंभीर है, तो भारतीय हितों की रक्षा को लेकर वह भी प्रतिबद्ध हैं. इसका मतलब है कि मोल-भाव की जो प्रक्रिया आगे शुरू होने वाली है, वह दिलचस्प रहेगी. अच्छी बात यह भी है कि दोनों देशों ने 'मिशन-500' का लक्ष्य बनाया है, जिसका अर्थ है- 2030 तक द्विपक्षीय कारोबार को 500 अरब डॉलर तक ले जाना. यह बताता है कि दोनों पक्ष आर्थिक रिश्ते को मजबूती देने को लेकर संकल्पित हैं. ट्रंप प्रशासन द्वारा यह सोचने के बावजूद कि भारत में सीमा शुल्क ज्यादा है, वाशिंगटन आशान्वित है कि भारत के साथ रिश्ते और प्रगाढ़ बनने चाहिए.
रक्षा व तकनीक के क्षेत्र में हुई चर्चा के भी काफी गहरे निहितार्थ हैं. द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में दूरगामी बदलाव लाने के लिए एक नई पहल '21वीं सदी के लिए अमेरिका-इंडिया कॉम्पैक्ट (सैन्य साझेदारी, वाणिज्यिक और तकनीकी सहयोग के लिए नए अवसरों को आगे बढ़ाना)' की शुरुआत जहां काफी महत्वपूर्ण है, वहीं भारत का यह नजरिया भी अहम है कि भारत-अमेरिका रक्षा संबंध को क्रेता-विक्रेता के रूप में आगे बढ़ाने के बजाय साझा-निर्माण की दिशा में बढ़ाना चाहिए. 'जेवलिन' और 'स्ट्राइकर' की खरीद पर सहमति तो बनी ही, सह-उत्पादन पर भी दोनों देश राजी हुए. यह उस तथ्य की पुष्टि है, जिसमें कहा जाता था कि भारत और अमेरिका अत्याधुनिक तकनीक और रक्षा के मोर्चे पर आपसी संबंध को नई ऊंचाई पर ले जाना चाहते हैं. अमेरिका इस बात से भी खुश दिखा कि भारत ने ऊर्जा सुरक्षा जरूरतों में उसकी अहमियत समझी है. शेल गैस, एलएनजी में अमेरिका हमारा अहम सहयोगी बन सकता है.
'जेवलिन' और 'स्ट्राइकर' की खरीद पर सहमति तो बनी ही, सह-उत्पादन पर भी दोनों देश राजी हुए. यह उस तथ्य की पुष्टि है, जिसमें कहा जाता था कि भारत और अमेरिका अत्याधुनिक तकनीक और रक्षा के मोर्चे पर आपसी संबंध को नई ऊंचाई पर ले जाना चाहते हैं. अमेरिका इस बात से भी खुश दिखा कि भारत ने ऊर्जा सुरक्षा जरूरतों में उसकी अहमियत समझी है.
सामरिक मुद्दों की बात करें, तो दोनों ही पक्ष पश्चिम एशिया और हिंद-प्रशांत में नए फ्रेमवर्क की तलाश करते दिखे. इस बात पर भी सहमति बनी कि वैश्विक सहयोग के रूप में इस ढांचे को आगे बढ़ाना चाहिए. उल्लेखनीय है कि अमेरिका हिंद-प्रशांत में भारत की भूमिका बखूबी समझता है. क्वाड को पुनर्जीवित इसलिए भी किया गया है, ताकि हिंद-प्रशांत में चीन की दखलंदाजी से पार पाया जा सके. पश्चिम एशिया में भी कुछ मामलों में भारत का पलड़ा भारी है, इसलिए अमेरिका वैश्विक व्यवस्था को नया रूप देने में इस स्थिति का लाभ उठाना चाहता है.
मजबूत साझेदारी
साफ है, इस मुलाकात में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप, दोनों शासनाध्यक्षों ने नए मानक तय किए हैं, जिन पर भारतीय और अमेरिकी नौकरशाहों को अब आगे बढ़ना होगा. वे किस तरह से एक-दूसरे को समझौतों के लिए तैयार कर पाते हैं, इसका पता तो बाद में चलेगा, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा ने स्पष्ट कर दिया है कि ट्रंप प्रशासन के अगले चार वर्षों में भारत-अमेरिका संबंधों में काफी स्थिरता देखने को मिल सकती है.
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