Author : Manoj Joshi

Originally Published दैनिक भास्कर Published on Jun 20, 2025 Commentaries 0 Hours ago

रेयर अर्थ के लिए चीन पर निर्भर होना सही नहीं होगा, क्योंकि इससे उसे हम पर प्रभावी होने का मौका मिलता है.

'रेयर अर्थ' पर बढ़ती वैश्विक होड़

लंदन में दो दिन की बातचीत के बाद अमेरिका और चीन पिछले महीने जेनेवा में हुए व्यापार सौदे के स्थान पर एक नए सौदे पर सहमत हो गए. जिनपिंग और ट्रम्प की फोन पर बातचीत के बाद जेनेवा समझौता हुआ था. लेकिन अमेरिका ने हुआवे कंपनी की कुछ एसेन्ड चिप्स का उपयोग निलंबित कर दिया था, जिसके कारण जेनेवा सौदा रद्द कर दिया गया.

प्रतिक्रिया में चीन ने दुनियाभर में हाईटेक उत्पादों में काम आने वाले रेयर अर्थ पदार्थों का निर्यात सीमित कर दिया. अमेरिका ने भी जवाबी कार्रवाई में चीनी विद्यार्थियों के वीजा वापस ले लिए थे. तब जाकर ट्रम्प और जिनपिंग ने बीते सप्ताह 90 मिनट बात की और फिर लंदन समझौता हुआ.

अब, ट्रम्प के एक ट्वीट के अनुसार दोनों पक्षों के बीच जिन बातों पर सहमति बनी है, उनमें टैरिफ घटा कर चीन पर 55 प्रतिशत और अमेरिका पर 10 प्रतिशत किया जाएगा. अमेरिका चीन को कॉरमेक एयरलाइनर के पुर्जों की सप्लाई समेत कुछ तकनीकी प्रतिबंधों को हटा सकता है.दोनों पक्षों को आशा है कि इससे उनके बीच चल रहे ट्रेड वॉर में शांति आएगी और कई मुसीबतों से जूझ रही उनकी अर्थव्यवस्थाओं को बल मिलेगा. लेकिन इससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि अमेरिका और चीन के बीच मौजूदा समस्या की जड़ में रेयर अर्थ और मैग्नेट का मसला है.

अमेरिका और चीन के बीच मौजूदा समस्या की जड़ में रेयर अर्थ और मैग्नेट का मसला है.

रेयर अर्थ का बढ़ता महत्त्व 

रेयर अर्थ मैग्नेट सामान्य आयरन मैग्नेट से 20 गुना अधिक ताकतवर होता है और कारों तथा कई अन्य उपकरणों में लगने वाली इलेक्ट्रिक मोटरों को बनाने के लिए जरूरी है. 17 प्रकार की धातुओं को रेयर अर्थ के नाम से जाना जाता है. ऐसा नहीं कि ये दुर्लभ हैं. ये पूरी दुनिया में पाए जाते हैं. लेकिन सिर्फ चीन में ही ऐसे भंडार हैं, जहां आसानी से इनका खनन किया जा सकता है.

रेयर अर्थ मैग्नेट सामान्य आयरन मैग्नेट से 20 गुना अधिक ताकतवर होता है और कारों तथा कई अन्य उपकरणों में लगने वाली इलेक्ट्रिक मोटरों को बनाने के लिए जरूरी है. 17 प्रकार की धातुओं को रेयर अर्थ के नाम से जाना जाता है.

चीन के पास ही इनकी प्रोसेसिंग की क्षमता है. चूंकि इन तत्वों को एक-दूसरे से अलग करना मुश्किल है, इसीलिए इन्हें रेयर कहा जाता है. इनको अलग करने की जटिल प्रक्रिया में भारी मात्रा में एसिड की जरूरत होती है. रेयर अर्थ की वैश्विक सप्लाई चेन में चीन का दबदबा है. इनका 70 प्रतिशत खनन और 90 प्रतिशत प्रोसेसिंग अकेला चीन करता है. ये विंड टर्बाइन, रक्षा उपकरणों और इले​क्ट्रिक वाहनों से लेकर हर चीज में काम आते हैं.

आधुनिक इंडस्ट्री में इनका महत्व यों समझा जा सकता है कि जैसे ही चीन ने रेयर अर्थ और मैग्नेट के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए, भारत में सुजूकी कंपनी को अपनी लोकप्रिय स्विफ्ट कार का निर्माण टालने के लिए मजबूर होना पड़ा. विश्व की अन्य कार कंपनियों को भी परेशानी झेलनी पड़ी.अप्रेल में जब ट्रम्प ने अपने लिबरेशन डे टैरिफ की घोषणा की तो चीन ने सात प्रकार की रेयर अर्थ धातुओं तथा इनसे बनने वाली सुपर पॉवरफुल मैग्नेट का निर्यात रोक दिया, क्योंकि ये चीजें सैन्य और नागरिक, दोनों प्रकार के उपयोग में आती हैं.

2010 में जापान से सीमा विवाद के बाद भी चीन ने इनका निर्यात रोका था. रेयर ​अर्थ की आपूर्ति बहाल करने में चीन की धीमी गति के कारण ही जेनेवा समझौता टूट गया था. अधिकतर रेयर अर्थ मैग्नेट नियोडिमियम और प्रेसियोडीमियम से बनी होती हैं. इसमें डायस्प्रोसियम और टर्बियम मिलाएं तो यह मैग्नेट ताप के प्रति और अधिक प्रतिरोधी बन जाता है.

जिन रेयर अर्थ का निर्यात चीन ने रोका, उनमें सैमेरियम का उपयोग इंटर कॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइलों के गाइडेंस-सिस्टम में होता है. लड़ाकू विमान एफ-35 में कई किलोग्राम सैमेरियम काम आता है. यट्रियम का उपयोग लेजर बनाने और स्कैंडियम का उपयोग हल्के विमानों के पुर्जे बनाने में होता है. लेकिन इन तत्वों का सैन्य उपयोग महज 5 प्रतिशत ही है.भारत को भी क्लीन एनर्जी, विंड टर्बाइन, मिसाइल गाइडेंस और सेमी कंडक्टर के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए रेयर अर्थ तत्वों की जरूरत है. 2023-24 में हमने 2270 टन रेयर अर्थ आयात किया था. इसमें अधिकतर हिस्सा चीन से आया था.

भारत में भी रेयर अर्थ के भंडार हैं, जो वैश्विक भंडारों के लगभग 6 प्रतिशत हैं. केरल में थोरियम सैंड के अलावा आंध्रप्रदेश, ओडिशा, राजस्थान में भी इसके भंडार हैं. लेकिन दुनियाभर की आपूर्ति का महज एक प्रतिशत हिस्सा ही भारत में उत्पादित होता है. रेयर अर्थ के लिए चीन पर निर्भर होना सही नहीं होगा, क्योंकि इससे उसे हम पर प्रभावी होने का मौका मिलता है. अब यह जरूरी है कि भारत अपने स्तर पर इनका उत्पादन शुरू करे और अन्य देशों में भी खनन की संभावनाएं देखे. 

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