हालांकि भारत और अफ्रीका के बीच लंबे समय से करीबी संबंध रहे हैं, लेकिन दोनों क्षेत्रों के बीच साझेदारी अभी भी अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच सकी है. वैश्विक स्तर पर हरित संक्रमण और ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के प्रयासों को देखते हुए, हरित हाइड्रोजन (जिसे तेज़ी से 'भविष्य के ईंधन' के रूप में देखा जा रहा है) दोनों क्षेत्रों को आपसी सहयोग का एक नया अवसर प्रदान कर सकता है. इस तरह की साझेदारी, जो बड़े पैमाने पर हरित हाइड्रोजन को अपनाने के लिए एक वैश्विक मूल्य शृंखला के निर्माण पर केंद्रित है, भारत और अफ्रीकी देशों के लिए दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक लाभ का सौदा साबित होगी.
एट्रिब्यूशन: अपूर्वा लालवानी, "ग्रीन हाइड्रोजन: भारत और अफ्रीका के बीच साझेदारी का नया अवसर है हरित हाइड्रोजन!," ओआरएफ़ ओकेज़नल पेपर नं. 388, जनवरी 2023, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन
प्रस्तावना
भारत और अफ्रीका के बीच व्यापारिक संबंध कई सौ साल पुराने हैं, जब व्यापारी धातु और क़ीमती पत्थरों की ख़ोज में समुद्री यात्राएं करते थे. साझे औपनिवेशिक इतिहास के कारण कई अफ्रीकी देशों में भारतीय मज़दूरों का प्रवास हुआ, जिसमें विशेष रूप से मॉरीशस और मैडागास्कर का नाम उल्लेखनीय है. समय के साथ, दोनों क्षेत्रों के बीच व्यापारिक संबंधों में विस्तार हुआ, और अब भारत अफ्रीका का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है (अफ्रीका के साथ भारत का कुल व्यापार 2019-2020 में 68.33 अरब अमेरिकी डॉलर था).[1] 2008 में भारत अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन की स्थापना के साथ भारत और अफ्रीकी देशों के संबंध काफ़ी मज़बूत हुए. शुरुआत में मंच ने तेल और खाद्य की बढ़ती क़ीमतों पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन बाद की बैठकों में अन्य साझी चुनौतियों जैसे स्वास्थ्य, तक़नीकी सहायता और जलवायु परिवर्तन पर काम करते हुए इस मंच ने अपने प्रभाव का विस्तार किया.[a]
अफ्रीका के साथ जुड़ाव भारत सरकार के लिए बेहद अहम है. इस क्षेत्र में अपनी कूटनीतिक पहुंच का विस्तार करने के लिए, नई दिल्ली ने 2019 में अफ्रीका में 18 नए मिशन स्थापित किए और भारतीय विकास और आर्थिक सहायता योजना (IDEAS) के पुनर्गठन की घोषणा की, जिसके तहत भारत अन्य देशों को रियायती दरों पर ऋण प्रदान करता है.[2] पिछले साल युगांडा की संसद के एक भाषण में, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन 10 सिद्धांतों का उल्लेख किया था, जिसकी मदद से भारत और अफ्रीका व्यापार, निवेश, जलवायु परिवर्तन, विकास के लिए सहायता, डिजिटलीकरण, कृषि और सुरक्षा/आतंकवाद जैसे क्षेत्रों में सार्थक भागीदारी कर सकते हैं.[3]
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और उसका समाधान ढूंढ़ने के लिए वैश्विक स्तर पर स्थायी और हरित उपायों को अपनाया जा रहा है, ऐसे में भारत और अफ्रीका उभरते हुए संबंधित मुद्दों, विशेष रूप से ऊर्जा सुरक्षा के मसले पर साझेदारी के लिए विचार कर सकते हैं.
हालांकि, चीन की अफ्रीका में मौजूदगी ने भारत की कुछ योजनाओं पर पानी फेर दिया है. जबकि अफ्रीका के प्रति बीजिंग का दृष्टिकोण बुनियादी अवसंरचना के विकास के लिए संसाधनों के दोहन और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर आधारित है, वहीं नई दिल्ली की नीतियां आपसी साझीदारी पर ज़्यादा से ज़्यादा केंद्रित हैं.[4] फिर भी, चीन ने क्षेत्र में 41 अरब अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष निवेश[5] किया है और 126 अरब अमेरिकी डॉलर की ऋण सहायता प्रदान की है, जो भारत द्वारा क्षेत्र को दी गई 11 अरब डॉलर की ऋण सहायता[6] से कहीं अधिक प्रभावी प्रतीत होता है. चीन की बेल्ट एंड रोड पहल और अफ्रीका में उसकी पहुंच को संतुलित करने के लिए, भारत और जापान ने 2017 में कई अफ्रीकी देशों के साथ एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर[b]समझौते पर हस्ताक्षर किए.[7]
फिर भी, भारत को अफ्रीका के साथ अपने संबंध को मज़बूत करने के लिए और रास्तों को ढूंढ़ने की ज़रूरत है. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और उसका समाधान ढूंढ़ने के लिए वैश्विक स्तर पर स्थायी और हरित उपायों को अपनाया जा रहा है, ऐसे में भारत और अफ्रीका उभरते हुए संबंधित मुद्दों, विशेष रूप से ऊर्जा सुरक्षा के मसले पर साझेदारी के लिए विचार कर सकते हैं. वास्तव में, भारत सरकार की रूचि अफ्रीकी देशों में हरित संक्रमण की तरफ़ है.[8] यह देखते हुए कि अफ्रीका प्राकृतिक संसाधनों के मामले में बेहद धनी है और भारत किफायती दरों पर फोटोवोल्टिक प्रौद्योगिकी के उपयोग में महारथ रखता है, ऐसे में "भविष्य के ईंधन"[9] के रूप में हरित हाइड्रोज को अपनाने और उसके विस्तार के मसले पर दोनों क्षेत्र आपसी सहयोग को और बढ़ावा दे सकते हैं. यह लेख हरित हाइड्रोजन के ज़रिए भारत और अफ्रीका के लिए संभावित अवसरों और लाभों का आकलन करता है.
हरित हाइड्रोजन की संभावना की तलाश
हरित हाइड्रोजन का उत्पादन जल के विद्युत अपघटन (बिजली के ज़रिए पानी के अणु को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन अणुओं में विभाजित करने की प्रक्रिया) प्रक्रिया द्वारा किया जाता है, जिसके लिए नवीकरणीय ऊर्जा आधारित बिजली का उपयोग किया जाता है.[10] वर्तमान में, उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले लगभग 96 प्रतिशत हाइड्रोजन का उत्पादन कार्बन-गहन तरीके से यानी या तो प्राकृतिक गैस (ग्रे हाइड्रोजन) या कोयले (ब्राउन हाइड्रोजन) के ज़रिए किया जाता है.[11] जल का विद्युत अपघटन हाइड्रोजन उत्पादन का स्थायी साधन है, और भविष्य में यह एक ऊर्जा वाहक के रूप में काम कर सकता है क्योंकि यह बहुउद्देशीय और ऊर्जा सघन है और इसे कृत्रिम ईंधन के रूप में संग्रहित किया जा सकता है और लंबी दूरी तक पहुंचाया जा सकता है.[12] वर्तमान में रासायनिक उद्योग क्षेत्र में ईंधन के डीसल्फराइजेशन (ईंधन में सल्फर की मात्रा को कम करना), हाइड्रोक्रैकिंग (उच्च दबाव पर हाइड्रोजन को उत्प्रेरक के तौर पर इस्तेमाल करके हाइड्रोकार्बन का भंजन करना), मेथेनॉल उत्पादन, इस्पात निर्माण और रासायनिक उत्पादनों के लिए कच्चे माल के रूप में और उर्वरकों के लिए अमोनिया उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले हाइड्रोजन को प्रतिस्थापित करके हरित हाइड्रोजन का उपयोग किया सकता है.[13] ऐसे क्षेत्रों जहां कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी का अभाव है या फिर उसकी लागत बहुत ज़्यादा है, वहां भी हरित हाइड्रोजन के उपयोग से उत्सर्जन दर में कमी लाई जा सकती है. उदाहरण के लिए, रेजिडेंशियल हीटिंग, सीमेंट, रसायन और लौह-इस्पात क्षेत्र.[14] आगे चलकर, आधुनिक प्रौद्योगिकी और लागत दक्षता जैसे कारकों की मदद से हरित हाइड्रोजन को कारों, हैवी ड्यूटी वाहनों, जलयानों और वायुयानों में ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है.[15]
2050 तक, अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर कुल अंतिम ऊर्जा खपत में हाइड्रोजन का हिस्सा 10 प्रतिशत होगा,[16] जो वर्तमान में लगभग 4 प्रतिशत के अंतिम ऊर्जा और गैर-ऊर्जा खपत के आंकड़े से काफ़ी ज़्यादा है.[17] इस बदलाव के लिए नवीकरणीय स्रोतों (सौर, पवन और पानी) से बिजली उत्पादन की मात्रा में वृद्धि करनी होगी ताकि विद्युत अपघटन के माध्यम से ईंधन के रूप में हाइड्रोजन का उत्पादन किया जा सके. इस प्रक्रिया को पॉवर-टू-एक्स (P2X) के रूप में जाना जाता है.[c] जैसे-जैसे नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की लागत कम होगी और इलेक्ट्रोलाइजर (जो हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में एक महत्त्वपूर्ण घटक है) की क्षमता बढ़ेगी, वैसे-वैसे बड़े पैमाने पर पॉवर-टू-एक्स प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जा सकेगा, जिससे अधिशेष विद्युत ऊर्जा को ईंधन या रसायन उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले कच्चे माल के रूप में संग्रहित करने में मदद मिलेगी. हरित हाइड्रोजन में निवेश से देशों को सतत विकास लक्ष्यों, विशेष रूप से सातवें लक्ष्य (सस्ती, भरोसेमंद, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक सभी की पहुंच सुनिश्चित करना) को हासिल करने और अर्थपूर्ण रोजगार के अवसरों को पैदा करने में मदद मिल सकती है (प्रति 1 गीगावाट विद्युत ऊर्जा के रूपांतरण के लिए 300 से 700 नौकरियां पैदा किए जाने का अनुमान है).[18]
हालांकि, हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में दो बड़ी समस्याएं आड़े आती हैं. पहला, उसकी लागत काफ़ी ज़्यादा है. वर्तमान में, ग्रे हाइड्रोजन की उत्पादन लागत प्रति एक किलोग्राम 1.5 अमेरिकी डॉलर से 2.5 अमेरिकी डॉलर है, जबकि प्रति किलोग्राम हरित हाइड्रोजन की उत्पादन लागत लगभग तीन गुना अधिक 2.5 अमेरिकी डॉलर से 7 अमेरिकी डॉलर के बीच है.[19] हालांकि, जिस तरह से नवीकरणीय ऊर्जा की लागत लगातार कम हो रही है, इलेक्ट्रोलाइजर की क्षमता बढ़ती जा रही है और उत्पादन के स्तर में बढ़ोतरी हुई है, भविष्य में हरित हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत कम होने की उम्मीद है. 2019 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि अगले साढ़े तीन सालों में नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग से उत्पादित हरित हाइड्रोजन की उत्पादन लागत 1-2 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम तक होगी.[20]
हाइड्रोजन के परिवहन के लिए मौजूदा प्राकृतिक गैस पाइपलाइनों को फिर से तैयार किया जा सकता है, जहां प्राकृतिक गैस पाइपलाइन नेटवर्क के भीतर हाइड्रोजन का प्राकृतिक गैस के साथ सम्मिश्रण किया जा सकता है. हालांकि, हाइड्रोजन की सांद्रता 5 प्रतिशत से ज़्यादा होने पर पाइपलाइन के जीवनकाल पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. ऐसे में, सरकारों और कंपनियों को हाइड्रोजन के अनुकूल पाइपलाइनों को तैयार करने में निवेश करना चाहिए.
दूसरा, P2X प्रक्रिया के विस्तार में सबसे बड़ी बाधा पानी की उपलब्धता है. विद्युत अपघटन में पानी एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है. एक लीटर पानी से एक घन मीटर हाइड्रोजन का उत्पादन होता है. यह देखते हुए कि ताजे पानी की उपलब्धता काफ़ी कम मात्रा में है, हाइड्रोजन संयंत्रों को ऐसी प्रक्रियाओं को अपनाने पर विचार करना होगा जिससे समुद्री जल को अलवणीकृत किया जा सके.[21]
विशेष रूप से, हाइड्रोजन एक अच्छी तरह से स्थापित औद्योगिक गैस है, जिसकी जटिल मूल्य शृंखला काफ़ी जटिल है, जिसमें उत्पादन, भंडारण, परिवहन, वितरण और अंतिम उपयोग आदि चरण शामिल हैं (चित्र संख्या 1 देखें). ऐसी कई चुनौतियां हैं, जो इसके विभिन्न चरणों में संचालन को बाधित कर सकती हैं.
चित्र संख्या 1: हाइड्रोजन मूल्य शृंखला
[caption id="attachment_116136" align="aligncenter" width="660"] Source:KPMG[22][/caption]
हाइड्रोजन मूल्य शृंखला और उससे जुड़ी चुनौतियां
हाइड्रोजन एक गैस है और उसके गैसीय गुणों (उच्च ज्वलनशीलता, कम घनत्व, आसान प्रसार, और भंगुरता) के कारण उसकी मूल्य शृंखला काफ़ी जटिल और नाजुक है, जिनके कारण बहुत सी चुनौतियां पैदा होती हैं. हरित हाइड्रोजन के मामले में यह मूल्य शृंखला और जटिल हो जाती है क्योंकि उसकी उत्पादन लागत काफ़ी ज़्यादा है. हाइड्रोजन (विशेष रूप से हरित हाइड्रोजन) की पूर्ण क्षमता के दोहन के लिए ज़रूरी है कि मूल्य शृंखला के विभिन्न चरणों के दौरान पैदा होने वाली समस्याओं को दूर किया जाए. पहला, उत्पादन के स्तर पर हरित हाइड्रोजन के निर्माण में विद्युत अपघटन की प्रक्रिया शामिल है. इलेक्ट्रोलाइज़रों की जीवनकाल दक्षता के निम्न होने और लागत के काफ़ी ज़्यादा होने के कारण बड़े पैमाने पर हरित हाइड्रोजन संयंत्रों की स्थापना और उसके व्यवसायीकरण में बहुत सी बाधाएं खड़ी होती हैं. दूसरा, हाइड्रोजन के बड़े पैमाने पर अनुप्रयोग से जुड़ी एक बहुत बड़ी बाधा उसका भंडारण है क्योंकि वायुमंडलीय दबाव पर उसका ऊर्जा घनत्व काफ़ी निम्न होता है. हाइड्रोजन भंडारण के आमतौर पर तीन तरीके हैं: संपीड़न के द्वारा, तरलीकरण प्रक्रिया द्वारा और रासायनिक पद्धति द्वारा. संपीड़न के ज़रिए टैंकों में हाइड्रोजन को संग्रहित करना इसके भंडारण और परिवहन का सबसे आसान और सस्ता तरीका है. लेकिन यह देखते हुए कि यह एक कम घनत्व वाली विधि है, इसके लिए बड़े कंटेनरों की ज़रूरत पड़ती है, जिससे लागत बढ़ जाती है. दूसरी तरफ़, हाइड्रोजन के द्रवीकरण से उसके ऊर्जा घनत्व में तो वृद्धि होती है लेकिन ऊर्जा लागत में भी बढ़ोतरी होती है. और अंत में, लिक्विफाइड ऑर्गेनिक हाइड्रोजन कैरियर (LOHCs, जैसे मेथनॉल और टोल्यूनि) और हाइड्राइड्स (जैसे अमोनिया) के रूप में हाइड्रोजन के रासायनिक भंडारण की विधि उच्च ऊर्जा घनत्व के चलते एक तेज़ी से उभरती हुई विधि है. हालांकि, द्रवीकरण और पुनःरूपांतरण के कारण इसकी लागत काफ़ी बढ़ जाती है, और साथ ही संपीड़न के लिए भौतिक क्षमताओं में कमी जैसी बाधा का सामना भी करना पड़ता है.[23]
ग्रीनहाउस गैसों के वर्तमान उत्सर्जन स्तर और जलवायु कार्रवाई की तत्काल ज़रूरत को देखते हुए देशों को हरित और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए मज़बूर होना पड़ा है. चीन, जापान और भारत जैसे देश और यूरोपीय संघ हरित हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा तंत्र को अपनाना चाहते हैं ताकि उन क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन की दर को नियंत्रित किया जा सके.
इसके अलावा, हाइड्रोजन का उपयोग उत्पादन स्थलों पर किया जा सकता है या पाइपलाइनों, ट्रकों और तरलीकृत हाइड्रोजन टैंकरों के माध्यम से अंतिम-उपयोगकर्ता स्थानों पर पहुँचाया और वितरित किया जा सकता है. इनमें से पाइपलाइनें परिवहन का सबसे सस्ता तरीका हैं. हाइड्रोजन के परिवहन के लिए मौजूदा प्राकृतिक गैस पाइपलाइनों को फिर से तैयार किया जा सकता है, जहां प्राकृतिक गैस पाइपलाइन नेटवर्क के भीतर हाइड्रोजन का प्राकृतिक गैस के साथ सम्मिश्रण किया जा सकता है. हालांकि, हाइड्रोजन की सांद्रता 5 प्रतिशत से ज़्यादा होने पर पाइपलाइन के जीवनकाल पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. ऐसे में, सरकारों और कंपनियों को हाइड्रोजन के अनुकूल पाइपलाइनों को तैयार करने में निवेश करना चाहिए. बड़ी मात्रा मे द्रवीकृत हाइड्रोजन के परिवहन के लिए टैंकर शिपों का प्रयोग किया जाता है और लंबी दूरी के परिवहन के लिए लिक्विफाइड ऑर्गेनिक हाइड्रोजन कैरियर और अमोनिया जैसी रासायनिक पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि इस प्रक्रिया में रूपांतरण से जुड़ी लागत (द्रवीकृत या रासायनिक परिवर्द्धन) शामिल होती है.[24] 2016 के एक आकलन के अनुसार, हाइड्रोजन के संपीड़न, संचालन और वितरण प्रक्रिया पर होने वाले खर्च के कारण एक हाइड्रोजन रिफ्यूलिंग स्टेशन की कुल लागत में प्रति किलोग्राम 6-10 अमेरिकी डॉलर का इज़ाफ़ा हो सकता है.[25] लेकिन हाइड्रोजन रिफ्यूलिंग स्टेशनों के प्रसार के साथ इन लागतों में कमी लाई जा सकती है. हाइड्रोजन कई अंतिम उपयोग सुविधाएं प्रदान कर सकता है: उदाहरण के लिए, विद्युत और ऊष्मा की सह-उत्पादन इकाइयों के माध्यम से बिजली और ताप की आपूर्ति और दूरस्थ या ऑफ-ग्रिड (जैसे दूरसंचार टावरों) इकाइयों के लिए बिजली आपूर्ति. फिर भी, अंतिम उपयोग के लिए बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन के उत्पादन और उसके व्यावसायीकरण से पहले कई बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता होगी, जिसमें उच्च समग्र लागत (पूंजी, संचालन, रखरखाव और चालू लागत), उपयोगकर्ताओं के बीच सीमित जागरूकता और स्वीकृति से जुड़ी समस्याएं प्रमुख हैं.
वर्तमान समय में हरित हाइड्रोजन को तरजीह़ ज़रूरी क्यों?
लंबे समय से हाइड्रोजन को एक वैकल्पिक ऊर्जा ईंधन के रूप में देखा जाता रहा है. जिन देशों की कोयले और प्राकृतिक गैस तक पहुंच नहीं है, वे अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अक्सर क्षारीय विद्युत अपघट्यों का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, बाजार में मांग के सीमित होने, कम लागत वाली प्रतिस्पर्धी ईंधनों की मौजूदगी, ईंधन सेल प्रौद्योगिकी के अभाव और सहयोगी प्रौद्योगिकियों के अस्तित्व में न होने के कारण हरित हाइड्रोजन के व्यावसायीकरण के प्रति उत्सुकता कम रही है. हालांकि, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी और जापान जैसे देशों ने हरित हाइड्रोजन इकाइयों की स्थापना, विकास और अनुसंधान में निवेश किया है.[26]
जैसे-जैसे नवीकरणीय ऊर्जा की लागत लगातार घटती जा रही है, वैसे-वैसे हरित हाइड्रोजन का उत्पादन व्यावसायिक रूप से व्यावहारिक होता जा रहा है. अधिशेष ऊर्जा के भंडारण के लिए ईंधन सेलों की तैनाती के अलावा आधुनिक इलेक्ट्रोलाइजर प्रौद्योगिकी ऐसे अतिरिक्त कारक हैं, जो हरित हाइड्रोजन के प्रसार को बढ़ावा देते हैं. इसके अलावा, सहयोगी प्रौद्योगिकियों (जैसे ड्राइव ट्रेनों और इलेक्ट्रिक वाहनों) के उभार ने हरित हाइड्रोजन की मांग में बढ़ोतरी के ज़रिए उसके प्रसार को बढ़ावा दिया है. परिणामस्वरूप, बड़े पैमाने पर व्यावसायिक तौर पर हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के सामने केवल उसकी उच्च लागत ही इकलौती बाधा बनकर खड़ी है.[27]
बड़े पैमाने पर परिवर्तनीय नवीकरणीय ऊर्जा को स्थानीय बिजली इकाइयों के साथ एकीकृत करना एक तक़नीकी रूप से जटिल प्रक्रिया है. इसके अलावा, बढ़ती बिजली ज़रूरतों के साथ, कई विकासशील देशों में स्थानीय बिजली इकाइयों के अंदर चरम मांग की स्थिति से निपटने की क्षमता नहीं है. हरित हाइड्रोजन अधिशेष बिजली के संग्रहण के लिए बेहतर भंडारण तंत्र उपलब्ध कराता है और बिजली में अचानक उतार-चढ़ाव और परिवर्तनशीलता को बनाए रखने में मदद करता है, जिससे ग्रिड सिस्टम को और अधिक स्थिरता मिलती है.[28]
ग्रीनहाउस गैसों के वर्तमान उत्सर्जन स्तर और जलवायु कार्रवाई की तत्काल ज़रूरत को देखते हुए देशों को हरित और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए मज़बूर होना पड़ा है. चीन, जापान और भारत जैसे देश और यूरोपीय संघ हरित हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा तंत्र को अपनाना चाहते हैं ताकि उन क्षेत्रों[29] में कार्बन उत्सर्जन की दर को नियंत्रित किया जा सके, जो या तो ऊंची लागत या आधुनिक प्रौद्योगिकी के अभाव में फिलहाल हरित हाइड्रोजन के प्रति संक्रमण के लिए तैयार नहीं हैं (उदाहरण के लिए, बिजली उत्पादन, रासायनिक उद्योग, सीमेंट, इस्पात और परिवहन क्षेत्र) और नेट जीरो के लक्ष्य को हासिल किया जा सके. इसके अतिरिक्त, स्वच्छ ईंधन होने के कारण हरित हाइड्रोजन ऊर्जा के भंडारण के रूप में भी उपयुक्त है और अगर किसी कारण से सौर और पवन ऊर्जा स्रोत आपूर्ति मांगों को पूरा करने में अक्षम सिद्ध होते हैं, ऐसे में आपूर्ति अंतराल को पाटने में भी हरित हाइड्रोजन मददगार साबित हो सकता है.[30] इसका ऊर्जा घनत्व (जो डीजल की तुलना में 3 गुना और भारी ईंधन तेल से 3.5 गुना ज़्यादा है)[31] भी काफ़ी अधिक है, जो इसे जीवाश्म ईंधन का उपयुक्त विकल्प बनाता है. इसके अतिरिक्त, भू-राजनीतिक अस्थिरता और ईंधन की क़ीमतों में मौजूदा उतार-चढ़ाव की स्थिति ने देशों को अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए हरित हाइड्रोजन समेत वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की तरफ़ ध्यान केंद्रित करने के लिए बाध्य किया है.[32]
भारत और अफ्रीका के लिए हरित हाइड्रोजन
हालिया वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद में लगातार 7 प्रतिशत की वृद्धि दर, राजनीतिक स्थिरता और बड़े बाजार की मौजूदगी के साथ भारत कई देशों के लिए एक भरोसेमंद साझीदार साबित हुआ है. भारत 2026 तक 50 खरब अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है.[33] ठीक उसी समय, अफ्रीका (जहां मध्य वर्ग का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है, तीव्र शहरीकरण हो रहा है और जो प्राकृतिक संसाधनों के मामले में काफ़ी धनी क्षेत्र है) वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकास की अगली सबसे बड़ी कहानी साबित होने जा रहा है. इसलिए, भारत और अफ्रीका आपसी सहयोग और साझे विकास की अपार संभावनाओं से भरपूर हैं और वैश्विक स्तर पर विकास के गलियारे के तौर पर उभर सकते हैं.
औद्योगीकरण, बढ़ते विनिर्माण आधार और निर्यात के कारण पर्यावरण और जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस उत्सर्जक देश है,[34] और कई अफ्रीकी देशों (जैसे सेशेल्स और दक्षिण अफ्रीका) में प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की मात्रा[35] प्रति व्यक्ति 4.69 टन के वैश्विक औसत से काफ़ी ज़्यादा है.[36] यह दोनों क्षेत्रों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिहाज़ से काफ़ी संवेदनशील बनाता है और सतत ऊर्जा संक्रमण की आवश्यकता को रेखांकित करता है.
इन साझी प्राथमिकताओं को देखते हुए, भारत और अफ्रीका ने स्थायी और हरित उद्देश्यों को लेकर साझेदारी के प्रति दिलचस्पी दिखाई है. उदाहरण के लिए, भारत और आठ अफ्रीकी देश[d] अंतर्राष्ट्रीय सौर समझौते (ISA)[e] में मूल रूप से शामिल हस्ताक्षरकर्ता देश थे, जो उनके पेरिस समझौते के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है.
महत्त्वपूर्ण बात ये ही कि प्राकृतिक गैस की कीमतें बढ़ने के साथ प्राकृतिक गैस आधारित अमोनिया के दामों में भी बढ़ोतरी होगी, जिसे खाद के रूप में उपयोग में लाया जाता है. यह खाद्य सुरक्षा के लिए, ख़ासकर भारत और अफ्रीकी देशों जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए नुकसानदायक स्थिति होगी. हालांकि, हरित अमोनिया (पूरी तरह से नवीकरणीय और कार्बन मुक्त) को सस्ते विकल्प के रूप में देखा जा सकता है.
भारत को 2030 तक अपने नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए 500 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता है, जबकि अर्थव्यवस्था अभी भी कोयले और तेल पर निर्भर है. 2030 तक भारत की तेल खपत 2019 में 48 लाख बैरल प्रति दिन से बढ़कर 72 लाख बैरल प्रति दिन हो जाएगी.
हरित हाइड्रोजन को मानवता की बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों के मद्देनजर "भविष्य के ईंधन" के रूप में देखा जा रहा है.[37] जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने में इसकी भूमिका के अतिरिक्त, हरित हाइड्रोजन कोरोना महामारी के बाद आवश्यक आधारभूत संरचना और मूल्य शृंखला में निवेश के ज़रिए वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार लाने में भी मददगार सिद्ध हो सकता है, जिससे रोज़गार सृजन के अलावा लैंगिक समावेशिता (महिलाओं की श्रम बाजार में भागीदारी को बढ़ाकर) और स्वच्छ शहरी गतिशीलता जैसे अन्य सामाजिक-आर्थिक लक्ष्य भी हासिल किए जा सकते हैं.
भारत के हरित संक्रमण से जुड़े प्रयास
हालिया वर्षों में भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है, इसकी स्थापित क्षमता 17.33 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रही है.[38] वर्तमान में भारत की गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षमता 157.33 गीगावाट यानी देश में कुल बिजली उत्पादन क्षमता का 40 प्रतिशत है.[39] सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और पनबिजली क्षमता क्रमशः 48.55 गीगावाट, 50 गीगावाट और 51 गीगावाट है. इसके अलावा, भारत 6.78 गीगावाट ऊर्जा का उत्पादन परमाणु आधारित परियोजनाओं के माध्यम से करता है.[40] 2021 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में, भारत ने 2030 तक अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 50 प्रतिशत तक बढ़ाने और उसी दौरान अपनी गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट के स्तर तक पहुंचाने का संकल्प लिया था. इसके अलावा, उसने 2030 अपने कार्बन डाई ऑक्साइड की उत्सर्जन मात्रा में 1 अरब टन की कमी लाने, और कार्बन तीव्रता को 45 प्रतिशत के दायरे के भीतर लाने और 2070 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने का संकल्प लिया है.[41]
2018 में, सौर ऊर्जा में भारत का निवेश कोयले में निवेश से अधिक था, लेकिन अभी भी कोयला आधारित संयंत्र देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं.[42] नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण की तरफ़ भारत के प्रयासों के बावजूद, उसे अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अभी एक लंबा सफ़र तय करना है. भारत को 2030 तक अपने नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए 500 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता है, जबकि अर्थव्यवस्था अभी भी कोयले और तेल पर निर्भर है.[43] 2030 तक भारत की तेल खपत 2019 में 48 लाख बैरल प्रति दिन से बढ़कर 72 लाख बैरल प्रति दिन हो जाएगी.[44] अनुमान है कि प्राकृतिक गैस की मांग भी 2019 में 64 बीसीएम (बिलियन क्यूबिक मीटर) की तुलना में 2030 तक 133 बीसीएम हो जायेगी.[45] 2040 तक भारत में 30 करोड़ नए वाहन देश के परिवहन तंत्र से जुड़ जाएंगे.[46] बिजली उत्पादन के लिए भारत कोयले और गैस पर अत्यधिक निर्भर देश है, जहां उसकी स्थापित क्षमता 60 प्रतिशत है और देश में 80 प्रतिशत बिजली का उत्पादन कोयले और गैस द्वारा होता है.[47] अपने महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों को देखते हुए, भारत को वैकल्पिक ईंधन या प्रौद्योगिकी को अपनाना होगा.
सतत् विकास के लिए विद्युतीकरण दक्षता में वृद्धि और ईंधन के परिवर्तन के माध्यम से तेल की मांग में होने वाली वृद्धि को 10 लाख बैरल/प्रति दिन से भी नीचे लाया जा सकता है.[48] इसके लिए, भारत ने अगस्त 2021 में 'ग्रीन हाइड्रोजन मिशन' की घोषणा की और 2022 की शुरुआत में उसने इस संबंध में एक नीति जारी की.[49] इस मिशन का उद्देश्य 2030 तक 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करना है और नवीकरणीय ऊर्जा विकास को बढ़ावा देना है. इस नीति के तहत, भारत ने हरित हाइड्रोजन के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कुछ छूटों की घोषणा की है, जहां उत्पादकों को आने वाले 25 सालों तक अंतर्राज्यीय उत्सर्जन शुक्ल से राहत दी जाएगी और आवेदन के 15 दिनों के भीतर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत तक पहुंच की सुविधा दी जाएगी. हरित हाइड्रोजन के उत्पादनकर्ताओं को किसी पॉवर एक्सचेंज प्लेटफॉर्म या फिर किसी दूसरे उत्पादनकर्ता से नवीकरणीय ऊर्जा खरीदने या स्वयं नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता विकसित करने की सुविधा होगी. इसके अतिरिक्त, हरित हाइड्रोजन या अमोनिया उत्पादकों को हरित अमोनिया के निर्यात या परिवहन के लिए बंदरगाहों के पास बंकरों के निर्माण की अनुमति होगी ताकि उसका भंडारण किया जा सके.[50]
भारत घरेलू स्तर पर ही नहीं अफ्रीका में भी एक मूल्य शृंखला के निर्माण के साथ और हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में नेतृत्वकर्ता बनने के अपने दृष्टिकोण को साकार कर सकता है. भारत इस मोर्चे पर अफ्रीका के साथ कई स्तरों पर साझीदारी कर सकता है. उदाहरण के लिए भारत सौर बिजली संयंत्र के विकास में भागीदारी कर सकता है.
व्यावसायिक रूप से प्रतिस्पर्धी हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए लागत-कुशल इलेक्ट्रोलाइज़र (हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में एक प्रमुख घटक) के निर्माण के लिए भारत में कई पहलें चलाई जा रही हैं.[51][52] फिर भी, भारत को अपने इलेक्ट्रोलाइजर उत्पादन क्षमता को बढ़ाने की ज़रूरत है ताकि वह अन्य देशों की तुलना में कम लागत में हरित हाइड्रोजन का उत्पादन कर सके और इलेक्ट्रोलाइज़र के निर्यात को बढ़ावा दे सके.[53] फिर भी, इन नीतियों और औद्योगिक प्रयासों से बड़े पैमाने पर हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और उसकी लागत को कम करने और इस तरह से उसे प्रतिस्पर्धी बनाने की उम्मीद है. इसके अलावा, वैश्विक स्तर पर भारत को हरित हाइड्रोजन की प्रमुख उत्पादन इकाई के तौर पर स्थापित करने के लिए इस क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ावा देना बहुत ज़रूरी है.
हरित संक्रमण की दिशा में अफ्रीका के प्रयास
अफ्रीकी क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में कच्चे तेल के भंडार और अन्य प्राकृतिक संसाधन हैं, और अफ्रीकी देश राजस्व के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं.[54] 2019 में, अफ्रीका में प्रति दिन 84 लाख बैरल तेल[55] और 257.5 क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस[56] का उत्पादन किया जा रहा था, जो 1998 के उत्पादन स्तर से 57 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है. 2020 में, नाइजीरिया अफ्रीकी महाद्वीप का सबसे बड़ा तेल उत्पादक और निर्यातक देश था, और उसके बाद अंगोला और अल्जीरिया का स्थान था.[57] 2021 तक, अल्जीरिया अफ्रीका का सबसे बड़ा गैस उत्पादक और निर्यातक देश था, और उसके बाद मिश्र और नाइजीरिया दूसरे और तीसरे सबसे बड़े गैस उत्पादक देश थे.[58]
अफ्रीका की बढ़ती हुई आबादी का बड़ा हिस्सा युवाओं का है, जिसकी औसत आयु 19.7 साल है.[59] महाद्वीप की आबादी का 43 फीसदी हिस्सा शहरी आबादी का है, जिसके 2050 तक बढ़कर 60 फीसदी हो जाने की संभावना है.[60] मध्य वर्ग के विस्तार, बढ़ते शहरीकरण और क्षेत्र की विकासशील अर्थव्यवस्था के कारण खाद्य उत्पादन, परिवहरण और अन्य आवश्यकताओं के लिए ऊर्जा मांग में बढ़ोतरी होगी. परिणामस्वरूप, वैश्विक औसत की तुलना में अफ्रीका में ऊर्जा की मांग दोगुनी तेज़ी से बढ़ रही है.[61]
2015 में, अफ्रीका ने "एजेंडा 2063" की घोषणा की, जिसके तहत क्षेत्र में समावेशी और सतत विकास को केंद्र में रखते हुए अफ्रीकी देश अपनी बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए वैकल्पिक तकनीकों को अपनाने पर ज़ोर देंगे.[62] 2018 में, अफ्रीकन हाइड्रोजन पार्टनरशिप की स्थापना की गई, जो हरित हाइड्रोजन, हाइड्रोजन आधारित रसायनों और ईंधन सेल प्रौद्योगिकी के उत्पादन के लिए पूरे महाद्वीप को एकजुट करने वाला एक मंच है.[63]
अफ्रीका में प्रचुर मात्रा में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा भंडार के होने से हरित हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ाने में मदद मिल सकती है. यूरोप अफ्रीका के साथ मिलकर हरित हाइड्रोजन का एक मज़बूत बाजार स्थापित करने के लिए साझेदारी की संभावनाएं तलाश रहा है ताकि अफ्रीका की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता और दोनों महाद्वीपों के बीच गैस पाइपलाइन और बिजली तंत्र जैसी बुनियादी अवसंरचना का लाभ उठाया जा सके.[f] यह साझेदारी यूरोप की ऊर्जा सुरक्षा के लिए हितकारी होने साथ-साथ अफ्रीका में रोज़गार सृजन और अन्य सामाजिक-आर्थिक लाभों को बढ़ावा दे सकती है. हरित हाइड्रोजन के लिए एक साझे बाजार की स्थापना से भी दोनों महाद्वीपों को दूर भविष्य में ऊर्जा संक्रमण के अपने लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी.[64] मई 2022 में, हाइड्रोजन यूरोप (यह यूरोप आधारित कंपनियों के लिए एक अग्रणी हाइड्रोजन और ईंधन सेल संस्था है) अफ्रीकन हाइड्रोजन पार्टनरशिप से जुड़ने वाला पहला संगठन था.[65]
कई अफ्रीकी देशों ने पहले ही हरित हाइड्रोजन परियोजनाएँ शुरू कर दी हैं[66]:
- दक्षिण अफ्रीका ने 2021 में एंग्लो अमेरिकन प्लेटिनम (दक्षिण अफ्रीका की एक खनन कंपनी), बम्बिली ऊर्जा (एक दक्षिण अफ्रीकी कंपनी, जो हाइड्रोजन की सहायता से स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन करती है) और एंजी एसए (एक फ्रांसीसी कंपनी, जो हरित संक्रमण के लिए समाधान और उपयोगिता सुविधाएं प्रदान करती है) के साथ मिलकर एक व्यवहार्यता अध्ययन किया ताकि एक हाइड्रोजन इकोसिस्टम की स्थापना की जा सके. इस अध्ययन के अनुसार, विभिन्न क्षेत्रों (जैसे उद्योग, निर्माण और परिवहन) में हाइड्रोजन ईंधन आधारित प्रौद्योगिक समाधानों को लागू किए जाने की आवश्यकता है. इसने देश भर में तीन केंद्रों और नौ संभावित हाइड्रोजन परियोजनाओं की पहचान की है. सौर एवं पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों और इलेक्ट्रोलाइज़र में प्रयुक्त प्लेटिनम धातु तक पहुंच की मदद से दक्षिण अफ्रीका हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और निर्यात से जुड़ी लागत दक्षता को हासिल कर सकता है.[67]
- मॉरीटानिया विश्व के उन देशों में से एक है, जो एक निश्चित अवधि में सर्वाधिक सौर विकिरण प्राप्त करते हैं.[g] इसमें सबसे अधिक लागत दक्षता वाले हरित हाइड्रोजन के उत्पादनकर्ता और आपूर्तिकर्ता देशों में से एक बनने की क्षमता है, और इसने काफ़ी मात्रा में विदेश निवेश को आकर्षित किया है. सीडब्लूपी ग्लोबल एक नवीकरणीय ऊर्जा विकास कंपनी है, जिसने मॉरीटानिया के उत्तरी मरुस्थल में 30 गीगावाट की क्षमता वाले एक पवन, सौर और हरित हाइड्रोजन संयंत्र की स्थापना का प्रस्ताव रखा है. चैरियट लिमिटेड ऊर्जा संक्रमण पर केंद्रित एक व्यापार समूह है, जो 10 मेगावाट की एक हरित हाइड्रोजन परियोजना (प्रोजेक्ट नूर) का विकास कर रहा है.
- 2021 में, मोरक्को ने रबात में हेवो अमोनिया मोरक्को प्रोजेक्ट की स्थापना की घोषणा की, जिसके भीतर 3 लाख टन अमोनिया के उत्पादन की क्षमता होगी, और जो लगभग 2.8 लाख टन तक कार्बन उत्सर्जन कम करेगा. इसके अतिरिक्त, हाइड्रोजन के घरेलू उत्पादन से फॉस्फेट उत्पादन के लिए ग्रे अमोनिया के आयात में कमी आएगी. यूरोप के साथ इसकी विशेष भौगोलिक अवस्थिति को देखते हुए यह परियोजना बेहद महत्त्वपूर्ण है.
- 2021 में, नामीबिया ने दक्षिणी कॉरिडोर डेवलपमेंट इनिशिएटिव के तहत बड़े पैमाने पर एक हरित हाइड्रोजन परियोजना का विचार प्रस्तुत किया, जो उत्पादन के हर चरण को नियंत्रित करेगा. यह परियोजना पूर्ण रूप से स्थापित होने के बाद, पांच से छह गीगावाट की नवीकरणीय उत्पादन क्षमता और तीन गीगावाट की क्षमता वाले इलेक्ट्रोलाइज़र से 3 लाख टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करेगी, जिससे अंततः प्रति वर्ष 60 लाख टन कार्बन डाई ऑक्सीजन उत्सर्जन की कटौती होगी. हाइफ़न हाइड्रोजन एनर्जी, एक हरित हाइड्रोजन के उत्पादन से जुड़ी कंपनी है, जो 2025 में निर्माण कार्य शुरू करेगी और जिसका पहला चरण 2026 के अंत तक चालू हो जाएगा.[68]
- मिस्र एक संयंत्र की स्थापना की योजना बना रहा है, जिसके लिए वह अपने सौर और पवन ऊर्जा भंडार का पर्याप्त दोहन करना चाहता है, जहां हरित अमोनिया के उत्पादन में कच्चे माल के तौर पर हरित गहाइड्रोजन का इस्तेमाल किया जाएगा. इस परियोजना की 100 मेगावाट इलेक्ट्रोलाइजर क्षमता होगी, जो प्रति वर्ष 90 हजार टन हरित अमोनिया का उत्पादन करेगा.
इतने स्तर तक प्रगति के बावजूद, कुछ विशिष्ट क़िस्म की बाधाओं (जैसे मानव, संस्थागत और सार्वजनिक पूंजी की अपर्याप्तता) को दूर करने की आवश्यकता है ताकि अफ्रीका में निवेश के लिए बेहतर माहौल तैयार किया जा सके.[69] अफ्रीका वर्तमान में एक अजीब से विरोधाभास का सामना कर रहा है, जहां एक तरफ़ इस क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश न्यूनतम है, लेकिन फिर भी यह सबसे ज़्यादा लाभ देने वाला क्षेत्र है.[70] वैश्विक स्तर पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का केवल 5.2 प्रतिशत हिस्सा अफ्रीका को मिलता है[71] और पिछले दो दशकों में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में केवल दो प्रतिशत का निवेश किया गया है.[72]
फिर भी, इस क्षेत्र ने हरित विकास के लिए कई कदम उठाए हैं. उदाहरण के लिए, 2022 में अफ्रीकी विकास बैंक ने क्षेत्र में सुयोग्य परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए हरित बॉन्ड जारी किए.[73] इसके अलावा, टोगो, रवांडा, नाइजीरिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश अपने अधिकार क्षेत्र में व्यापार करने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए सुधारों को लागू कर रहे हैं.[74]
साझेदारी की संभावना
भारत और अफ्रीका, दोनों क्षेत्रों में हरित हाइड्रोजन के उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं. भारत घरेलू स्तर पर ही नहीं अफ्रीका में भी एक मूल्य शृंखला के निर्माण के साथ और हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में नेतृत्वकर्ता बनने के अपने दृष्टिकोण को साकार कर सकता है. भारत इस मोर्चे पर अफ्रीका के साथ कई स्तरों पर साझीदारी कर सकता है. उदाहरण के लिए भारत सौर बिजली संयंत्र के विकास में भागीदारी कर सकता है. हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में कच्चे माल के तौर पर विद्युत आपूर्ति बेहद महत्त्वपूर्ण है, जो कुल उत्पादन लागत का लगभग 50 प्रतिशत है.[75] इस संबंध में, भारत अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) के माध्यम से अफ्रीका के साथ अपनी साझेदारी का लाभ उठा सकता है. 44 अफ्रीकी देश अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के सदस्य हैं, और भारत ने अफ्रीका में सौर ऊर्जा परियोजनाओं को लागू करने के लिए 2 अरब अमेरिकी डॉलर के रियायती कर्ज देने की घोषणा की है.[76]
भारत और अफ्रीका के बीच इस तरह की साझेदारी से बेहतर रोज़गार के अवसर, वायु गुणवत्ता में सुधार, कार्बन तीव्रता में कमी, और कोयले और गैस पर कम निर्भरता जैसे सामाजिक आर्थिक लाभ प्राप्त होंगे.
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के तहत माली में 500 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र एनटीपीसी लिमिटेड (पूर्व में नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन) अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के तहत माली में 500 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र के निर्माण की देखरेख संभालेगा.[77] भारत अपनी कम लागत वाली फोटोवोल्टिक तकनीक के माध्यम से अफ्रीकी देशों को नवीकरणीय ऊर्जा पर आधारित बिजली के उत्पादन में मदद कर सकता है और उनकी पूर्ण क्षमता का दोहन कर सकता है. सार्वजनिक-निजी भागीदारी, निविदा पर जारी अनुबंध, या इसी तरह के दूसरे उपकरणों के माध्यम से निजी पूंजी की उगाही की जा सकती है और अफ्रीका की नवीकरणीय क्षमता का पर्याप्त दोहन किया जा सकता है.
वर्तमान में, हाइड्रोजन की सबसे ज़्यादा मांग तटीय औद्योगिक समूहों द्वारा की जा रही है. जैसा कि मानचित्र एक में दिखाया गया है, अधिकांश शोधन इकाइयां, इस्पात संयंत्र और रासायनिक क्रैकिंग प्लांट (हाइड्रोजन की मांग पैदा करने वाले प्राथमिक उपभोक्ता समूह) तटों पर स्थित हैं.
मानचित्र एक: वर्तमान में शोधन इकाइयों, इस्पात संयंत्रों और केमिकल क्रैकिंग प्लांटों का वैश्विक वितरण
स्रोत: फ्यूचर ऑफ हाइड्रोजन, इंटरनेशनल एनर्जी एसोसिएशन[78]
नोट: ये छोटे-छोटे वृत्त औद्योगिक क्षेत्र में हाइड्रोजन की मांग के लिए महत्त्वपूर्ण तटीय इलाकों को दर्शाते हैं
इन क्षेत्रों में हरित हाइड्रोजन के लिए पॉवर टू एक्स संयंत्रों के निर्माण से दो कारणों से आर्थिक लाभ प्राप्त होंगे: यह प्रसार और वितरण की निवेश लागत को कम करता है और इन क्षेत्रों में हाइड्रोजन की मांग पहले से काफ़ी ज़्यादा है. हरित हाइड्रोजन संयंत्रों से लैस औद्योगिक तटीय केंद्र परिवहन क्षेत्र में हरित हाइड्रोजन अपनाने के लिए टेक-ऑफ़ स्टेशनों के रूप में कार्य कर सकते हैं. रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण ऐसे स्थलों पर हरित हाइड्रोजन संयंत्रों की स्थापना और व्यावसायीकरण से ईंधन सेल प्रौद्योगिकी आधारित ट्रकों, बसों, जहाजों और विमानों जैसे वाहनों के निर्माण में तेज़ी आएगी और ऊर्जा संक्रमण को भी बढ़ावा मिलेगा. पर्याप्त मात्रा में लागत प्रभावी हरित हाइड्रोजन की उपलब्धता से सहयोगी प्रौद्योगिकी के विकास को बढ़ावा मिलेगा, जिससे ईंधन सेल आधारित इलेक्ट्रिक वाहनों के परिचालन की लागत में कमी आएगी और ग्रिड और वितरण प्रणाली के स्तर पर संक्रमण को सुनिश्चित किया जा सकेगा और ईंधन भरवाने से जुड़ी बुनियादी अवसंरचना के विकास को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी.
अनुमान है कि यूरोप में हरित हाइड्रोजन के उत्पादन की दीर्घकालिक लागत एक किलोग्राम हाइड्रोजन के लिए ~3-4 अमेरिकी डॉलर है, जबकि अफ्रीका में यही लागत प्रति किलोग्राम 1.6 अमेरिकी डॉलर से 2.8 अमेरिकी डॉलर के बीच है.[79]
इसीलिए कई यूरोपीय देश हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए अफ्रीका के साथ साझेदारी करना चाहते हैं, जहां परिवहन के लिए उत्तर अफ्रीका और यूरोप के बीच मौजूदा पाइपलाइन नेटवर्क का इस्तेमाल किया जाएगा. यूरोप की हरित हाइड्रोजन की मांग को पूरा करने के लिए भारत आवश्यक बुनियादी अवसंरचना के विकास के लिए अफ्रीकी देशों के साथ साझेदारी कर सकता है. उदाहरण के लिए, भारत और मिस्र, दोनों ने स्वेज नहर आर्थिक क्षेत्र में 20 हजार टन की वार्षिक क्षमता वाले एक हरित हाइड्रोजन संयंत्र (8 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश के साथ) की स्थापना के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं.[80]
इसके अलावा, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और तैल एवं प्राकृतिक गैस निगम जैसी भारतीय कंपनियां भारत में हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में अग्रणी हैं, वे अफ्रीका में अपनी मौजूदा अवस्थिति का फ़ायदा उठाते हुए क्षेत्र में, विशेष रूप से दक्षिण अफ्रीका, मोरक्को, इथियोपिया, जिबूती, नाइजीरिया, घाना, तंजानिया, रवांडा, केन्या और मिस्र में पॉवर टू एक्स संयंत्रों की स्थापना में सहयोग कर सकते हैं.[81][82][83]
इसके अलावा, भारत सरकार और अफ्रीकी देशों को इलेक्ट्रोलाइजर, ईंधन सेल और इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर अनुसंधान और विकास में साझीदरी करने का प्रयास करना चाहिए ताकि हरित हाइड्रोजन आपूर्ति शृंखला के विभिन्न चरणों में अधिक कुशल और लागत प्रभावी प्रौद्योगिकियां विकसित की जा सकें. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, हरित हाइड्रोजन बाजार के विकास में जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम अग्रणी देश हैं. अपनी हरित हाइड्रोजन रणनीति के तहत, जर्मनी ने घरेलू स्तर पर हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए 7 अरब यूरो (7.52 अरब अमेरिकी डॉलर) और मोरक्को जैसे साझेदार देशों में इलेक्ट्रोलिसिस सुविधाओं को बढ़ाने के लिए दो अरब यूरो (2.15 अमेरिकी डॉलर) के निवेश की घोषणा की है.[84] इसके अलावा, भारतीय कंपनियों के पास उत्तरी अफ्रीकी देशों में हरित हाइड्रोज मूल्य शृंखला के विकास का अवसर है, जो इंडो-जर्मन हाइड्रोजन टास्कफोर्स (के लक्ष्यों के साथ संरेखित है. साथ ही भारत के पास हरित हाइड्रोजन मूल्य शृंखला की स्थापना के लिए साझेदारी को मजबूत करने, और जर्मनी के वित्तीय सहयोग से संयुक्त अनुसंधान और विकास परियोजनाओं को विकसित करने के अवसर भी हैं.[85] इसके अतिरिक्त, प्लेटिनम (इलेक्ट्रोलाइज़र में प्रयुक्त तत्व) जैसी दुर्लभ धातुओं की खरीद के लिए अफ्रीकी देशों (जहां भरपूर मात्रा में प्लेटिनम उपलब्ध है) के साथ एक समझौता ज्ञापन तैयार किया जा सकता है, जिस पर व्यापक सहमति जुटाकर भी समग्र लागत में कमी लाई जा सकती है.
लंबे समय में, दोनों क्षेत्र हरित हाइड्रोजन के व्यापार के लिए नौवहन मार्गों की स्थापना से जुड़ी संभावनाएं तलाश कर सकते हैं, जिसमें भारी निवेश की आवश्यकता होती है. इसे एक व्यवस्थित सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से पूरा किया जा सकता है, जहां प्रत्यक्ष सरकारी निवेश के अतिरिक्त बहुस्तरीय प्रतियोगिताओं के बाद ठेके के ज़रिए धन की उगाही की जाती है.[86]
निष्कर्ष
हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए भारत और अफ्रीका के बीच बढ़ती साझेदारी से दोनों क्षेत्रों को अपनी भागीदारी क्षमता की पहचान करने का अवसर प्राप्त हुआ है. हरित हाइड्रोजन और संबंधित प्रौद्योगिकियों में सहयोग से उन्हें इस क्षेत्र में एक वैश्विक मूल्य शृंखला विकसित करने में मदद मिलेगी. यह यूरोप और फारस की खाड़ी में स्थित देशों को ऊर्जा संक्रमण के लिए हरित हाइड्रोजन अपनाने के लिए प्रेरित करेगा. हाइड्रोजन गैस के कई अनुप्रयोग हैं, और इसके हरित उत्पादन से कई उद्योगों में कार्बन उत्सर्जन की दर को कम किया जा सकता है. इसके अलावा, ऊर्जा के एक अच्छे भंडार के रूप में, हाइड्रोजन को (नवीकरणीय) ऊर्जा समृद्ध देशों से ऊर्जा की कमी वाले देशों तक पहुंचाया जा सकता है ताकि उनकी ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके.
चूंकि, अफ्रीका प्राकृतिक संसाधनों के मामले में बेहद समृद्ध है और भारत कम लागत में हरित प्रौद्योगिकी के निर्माण में सक्षम है, ऐसे में दोनों क्षेत्र हरित हाइड्रोजन के वैश्विक उत्पादक और निर्यातक बन सकते हैं. भारत और अफ्रीका के बीच इस तरह की साझेदारी से बेहतर रोज़गार के अवसर, वायु गुणवत्ता में सुधार, कार्बन तीव्रता में कमी, और कोयले और गैस पर कम निर्भरता जैसे सामाजिक आर्थिक लाभ प्राप्त होंगे.
[a] The last India-Africa Forum Summit was held in New Delhi in October 2015.
[b] The Asia-Africa Growth Corridor (AAGC) was conceived by India and Japan to counterbalance China’s Belt and Road Initiative. The AAGC is based on four pillars: development and cooperation projects; quality infrastructure and institutional connectivity; enhancing capacities and skills; and people-to-people partnership.
[c] Power-to-X, or P2X, refers to technologies that convert electricity into carbon-neutral energy carriers such as hydrogen, synthetic natural gas, and liquid fuels.
[d] The Democratic Republic of Congo, the Republic of Guinea, Mali, Niger, Tanzania, Ethiopia, Burkina Faso, and Madagascar.
[e] Forty-four of Africa’s 54 countries are currently members of the International Solar Alliance.
[f] Aimed at reducing the dependence on Russian gas, Europe is accelerating and relying on intercontinental projects with Africa with the help of the existing gas pipelines between the two regions (such as the Maghreb-Europe Gas pipeline that links the Hassi R’mel field in Algeria through Morocco with Spain, and the Medgaz pipeline that links Algeria to Spain). Additionally, the upcoming Morocco-Nigeria Trans-African Gas Pipeline project, will stretch over 6,000 km and export natural gas from Nigeria to multiple landlocked West African nations and via Morocco to Europe. These existing natural gas pipelines can be made compatible to transport green hydrogen from North Africa to Europe at little cost.
[g] Solar insolation is the amount of solar radiation received by a planet.
[1] “African Union is India’s Fourth Largest Trading Partner”, The Siasat Daily, June 11, 2022.
[2] Dipanjan Roy Chaudhury, “Budget 2019: India to Open 18 New Diplomatic Missions Across Africa,” The Economics Times, July 05, 2019.
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[45] Choudhary, “India’s Oil Demand to Rise by 50% by 2030 Against Global Expansion of 7%”
[46] International Energy Agency, India Energy Outlook, 2021, Paris, IEA, 2021.
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[60] Joseph Teye, “Urbanisation and Migration in Africa” (paper presented at Expert Group Meeting, United Nations Headquarters, New York, November 1-2, 2018).
[61] International Energy Agency, Africa Energy Outlook, 2019, Paris, IEA, 2019.
[62] Africa Union, “Agenda 2063: The Africa We Want,” Africa Union.
[63] African Hydrogen Partnership, “The AHP,” African Hydrogen Partnership
[64] Bhagwat and Olczak, “Green Hydrogen: Bridging the Energy Transition in Africa and Europe
[65] “Hydrogen Europe Joins African Hydrogen Partnership as Europe Looks to African Energy-Hydrogen Europe”, Euractiv Press Release, May 4, 2022.
[66] Grace Goodrich, “Top 5 Hydrogen Projects in Africa,” Energy Capital & Power, March 1, 2022.
[67] Engie Impact, “South Africa Hydrogen Valley Final Report”, Department of Science and Innovation, Republic of South Africa, 2021.
[68] Hyphen Africa, “Namibia Announces Progress with Hyphen Hydrogen Energy to Unlock US$10bn Investment for First Green Hydrogen Project to Help Power the Energy Transition”, Hyphen Energy, June 1, 2021.
[69] Ayudele Odusola, “Addressing the Foreign Direct Investment Paradox in Africa”, Africa Renewal, United Nations.
[70] Odusola, “Addressing the Foreign Direct Investment Paradox in Africa.
[71] UNCTAD, “Investment Flows to Africa Reached a Record $83 Billion in 2021”, UNCTAD, June 9, 2022.
[72] Rabia Ferroukhi, “Renewables Could do Much More than Just Transform Africa’s Energy Sectors. Here's how”, World Economic Forum, September 9, 2022.
[73] African Development Bank, “The African Development Bank Issues Inaugural Green Bond in South African Rand Market”, African Development Bank Group, September 13, 2022
[74] World Bank, “Doing Business 2020: Two Sub-Saharan African Countries among Most Improved in Ease of Doing Business” World Bank, October 24, 2019.
[75] Apoorva Lalwani, “India’s Leadership in Green Hydrogen will be Decided by its Leadership in the Electrolyser”, Observer Research Foundation, May 24 ,2022.
[76] Smart Power India, “Multi-billion Dollar Africa-India Partnership Aims to Eradicate Energy Poverty”, Powered by Rockefeller Foundation, July 10, 2021.
[77] NTPC, Government of India.
[78] International Energy Agency, The Future of Hydrogen, June 2019, Japan, IEA,2019
[79] KPMG, “Geographic hydrogen hotspots”
[80] “Egypt and India Sign MoU to Build a Green Hydrogen Factory Worth $8bn,” Arab News, June 28, 2022,
[81] “The Future of Hydrogen, June 2019”
[82] “The Future of Hydrogen, June 2019”
[83] “Green Hydrogen: Bridging the Energy Transition in Africa and Europe
[84] “Green Hydrogen: Bridging the Energy Transition in Africa and Europe
[85] “Green Hydrogen: Bridging the Energy Transition in Africa and Europe”
[86] “The Future of Hydrogen, June 2019”
[a] The last India-Africa Forum Summit was held in New Delhi in October 2015.
[b] The Asia-Africa Growth Corridor (AAGC) was conceived by India and Japan to counterbalance China’s Belt and Road Initiative. The AAGC is based on four pillars: development and cooperation projects; quality infrastructure and institutional connectivity; enhancing capacities and skills; and people-to-people partnership.
[c] Power-to-X, or P2X, refers to technologies that convert electricity into carbon-neutral energy carriers such as hydrogen, synthetic natural gas, and liquid fuels.
[d] The Democratic Republic of Congo, the Republic of Guinea, Mali, Niger, Tanzania, Ethiopia, Burkina Faso, and Madagascar.
[e] Forty-four of Africa’s 54 countries are currently members of the International Solar Alliance.
[f] Aimed at reducing the dependence on Russian gas, Europe is accelerating and relying on intercontinental projects with Africa with the help of the existing gas pipelines between the two regions (such as the Maghreb-Europe Gas pipeline that links the Hassi R’mel field in Algeria through Morocco with Spain, and the Medgaz pipeline that links Algeria to Spain). Additionally, the upcoming Morocco-Nigeria Trans-African Gas Pipeline project, will stretch over 6,000 km and export natural gas from Nigeria to multiple landlocked West African nations and via Morocco to Europe. These existing natural gas pipelines can be made compatible to transport green hydrogen from North Africa to Europe at little cost
[g] Solar insolation is the amount of solar radiation received by a planet.
[1] “African Union is India’s Fourth Largest Trading Partner”, The Siasat Daily, June 11, 2022.
[2] Dipanjan Roy Chaudhury, “Budget 2019: India to Open 18 New Diplomatic Missions Across Africa,” The Economics Times, July 05, 2019.
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[12] Bhagwat and Olczak, “Green Hydrogen: Bridging the Energy Transition in Africa and Europe”
[13] International Energy Agency, The Future of Hydrogen, June 2019, Japan, International Energy Agency, 2019.
[14] Bhagwat and Olczak, “Green Hydrogen: Bridging the Energy Transition in Africa and Europe”
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[16] International Renewable Energy Agency, “Energy Transition Outlook”, International Renewable Energy Agency.
[17] Bhagwat and Olczak, “Green Hydrogen: Bridging the Energy Transition in Africa and Europe”
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[19] Bhagwat and Olczak, “Green Hydrogen: Bridging the Energy Transition in Africa and Europe”
[20] Bhagwat and Olczak, “Green Hydrogen: Bridging the Energy Transition in Africa and Europe”
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[22] KPMG, “Geographic Hydrogen Hotspots,” KPMG, 2022.
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[24] NITI Aayog and RMI, “Harnessing Green Hydrogen: Opportunities for Deep Carbonisation in India”
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[26] “Green Hydrogen in Developing Countries, 2020”
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[44] Sanjeev Choudhary, “India’s Oil Demand to Rise by 50% by 2030 Against Global Expansion of 7%,” The Economics Times, October 13, 2021.
[45] Choudhary, “India’s Oil Demand to Rise by 50% by 2030 Against Global Expansion of 7%”
[46] International Energy Agency, India Energy Outlook, 2021, Paris, IEA, 2021.
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[66] Grace Goodrich, “Top 5 Hydrogen Projects in Africa,” Energy Capital & Power, March 1, 2022.
[67] Engie Impact, “South Africa Hydrogen Valley Final Report”, Department of Science and Innovation, Republic of South Africa, 2021.
[68] Hyphen Africa, “Namibia Announces Progress with Hyphen Hydrogen Energy to Unlock US$10bn Investment for First Green Hydrogen Project to Help Power the Energy Transition”, Hyphen Energy, June 1, 2021.
[69] Ayudele Odusola, “Addressing the Foreign Direct Investment Paradox in Africa”, Africa Renewal, United Nations.
[70] Odusola, “Addressing the Foreign Direct Investment Paradox in Africa”
[71] UNCTAD, “Investment Flows to Africa Reached a Record $83 Billion in 2021”, UNCTAD, June 9, 2022.
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[74] World Bank, “Doing Business 2020: Two Sub-Saharan African Countries among Most Improved in Ease of Doing Business” World Bank, October 24, 2019.
[75] Apoorva Lalwani, “India’s Leadership in Green Hydrogen will be Decided by its Leadership in the Electrolyser”, Observer Research Foundation, May 24 ,2022.
[76] Smart Power India, “Multi-billion Dollar Africa-India Partnership Aims to Eradicate Energy Poverty”, Powered by Rockefeller Foundation, July 10, 2021.
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[85] “Green Hydrogen: Bridging the Energy Transition in Africa and Europe”
[86] “The Future of Hydrogen, June 2019”
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