Author : Gurjit Singh

Published on Apr 15, 2022 Updated 1 Days ago

यूक्रेन संकट को लेकर जर्मनी ने एक नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति पेश की है जो इसकी दीर्घकालीन नीतियों से अलग है. 

जर्मनी की नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति

यूक्रेन पर रूस के हमले से पूरे यूरोप में एक तरह की अवांछित और अप्रत्याशित स्थिति उत्पन्न हो गई है. इस बदलाव का सबसे ज़्यादा असर जर्मनी पर हुआ है. जर्मनी और यूरोप इस बात को बेहतर जानते थे कि रूस यूक्रेन को धमका रहा है लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि उनका सहकारी ताना-बाना, जो सस्ते रूसी ऊर्जा पर निर्भर है, वो क़ायम रहेगा. अपनी ऊर्जा के लिए एक बाज़ार उपलब्ध कराकर और एक सुरक्षा साझेदार की तलाश में रूस को उलझाना अब जर्मनी और यूरोप के लिए एक रूसी जाल की तरह लगने लगा है.

जर्मनी की नीतियां

15 दिसंबर 2021 को एसपीडी नेता ओलाफ़ स्कोल्ज़ ने जर्मनी में एक नए तीन-पक्षीय गठबंधन का नेतृत्व किया, जिससे एंजेला मर्केल युग का जर्मनी में अंत हो गया. ओलाफ़ स्कोल्ज़ जर्मनी में एक आधुनिक सुधार प्रक्रिया शुरू करना चाहते थे जो अगली पीढ़ी के लिए जर्मनी का निर्माण करेगी. इसमें रूस से लगातार ऊर्जा आपूर्ति करना एक अभिन्न हिस्सा था.

चांसलर ने इसे साफ कर दिया कि नियम आधारित व्यवस्था जिस पर यूरोप आधारित था वो ख़तरे में है और उन्होंने स्वीकार किया कि रूसी कार्रवाई से यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था अब धाराशायी हो रही है, जो हेलसिंकी कानून बनने के आधी शताब्दी से ज़्यादा समय से लागू है.

इस गठबंधन ने मर्केल युग की जर्मनी से बदलाव की शुरुआत की थी. एक स्थिर और आर्थिक रूप से कामयाब जर्मनी अपने लोगों के लिए बेहतर जीवन की मांग कर रहा था और यूरोपीय भरोसे, एक सामान्य विदेश और सुरक्षा नीति (सीएफएसपी) और समृद्धि में अधिक योगदान देने का लक्ष्य रखा था. यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने जर्मनी की कुछ मूल नीतियों को बेहद तेज़ी से बदल दिया. 15 दिसंबर 2021 के चांसलर के स्वीकृति भाषण और 27 फरवरी, 2022 को बुंडेस्टाग को दिए गए उनके नीतिगत वक्तव्य के बीच वास्तव में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला.

चांसलर ने इसे साफ कर दिया कि नियम आधारित व्यवस्था जिस पर यूरोप आधारित था वो ख़तरे में है और उन्होंने स्वीकार किया कि रूसी कार्रवाई से यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था अब धाराशायी हो रही है, जो हेलसिंकी कानून बनने के आधी शताब्दी से ज़्यादा समय से लागू है. उन्होंने फ्रांस के साथ रूसी आक्रामकता पर ध्यान देने की बात कही लेकिन उन्होंने ब्रिटेन और अमेरिका को इसमें शामिल करने को लेकर कुछ नहीं कहा. यूरोप इस कार्रवाई का फ़्रेमवर्क बना रहेगा. रूस के साथ बातचीत को ख़ारिज़ नहीं किया जाएगा, और संवाद के लिए सभी शीर्ष कूटनीतिक दरवाजे खुले रहेंगे क्योंकि यूरोप में शांति की स्थापना करना इसका मुख्य उद्देश्य है.
हालांकि ओलाफ़ स्कोल्ज़ ने कहा कि पुतिन सुरक्षा हालात को ख़तरे में डाल रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि “लंबे समय के लिए रूस का विरोध करते हुए यूरोप में सुरक्षा प्राप्त नहीं किया जा सकता”. इस विरोधाभास को देखते हुए उन्होंने पांच प्वाइंट एक्शन का ऐलान किया. सबसे पहले यूक्रेन को उसकी स्वतंत्रता और लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए दृढ़ समर्थन देना है. इसके तहत यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति करना शामिल है, जो जर्मनी के लिए एक बड़ा नीतिगत बदलाव है. दूसरा, रूस को उसके युद्ध के रास्ते से हटाने की कोशिशों को बढ़ावा देना है. इसका मतलब है कि ज़बर्दस्त प्रतिबंधों के ज़रिए रूस को वित्तीय चोट देना, नई तक़नीक़ से रूस को अलग-थलग करना और यूरोपीय संघ में उनके कुलीन वर्गों और उनके निवेशों को लक्षित करना है. हालांकि इसमें ऊर्जा का उल्लेख नहीं किया गया था लेकिन जर्मनी को स्विफ्ट (एसडब्ल्यूआईटी) सेवाओं के विस्थापन से काफी नुक़सान होगा.

जर्मनी, यूरोपीय संघ के साथ, वैकल्पिक स्रोतों की तलाश कर रहा है. दो एलएनजी टर्मिनल, जिन्हें पहले अस्वीकार कर दिया गया था, अब ब्रंसबुटल और विल्हेल्म्सहेवन में बनाए जाने की योजना है.

तीसरा, इस जंग को यूरोप की धरती पर फैलने होने से रोकना है. दिलचस्प बात यह है कि यह वही बातें हैं जो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यूरोपियन यूनियन के नेताओं से अप्रैल में हुए सम्मेलन के दौरान कही थी.

स्कोल्ज़ ने नेटो को एकजुट रखने और लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और बाल्टिक देशों सहित पूर्वी सहयोगियों के समर्थन से कैसे बुंडेसवेहर अधिक शक्तिशाली हो सकता है उस बारे में बात की. उन्होंने जर्मनी को पूरी ताक़त से नेटो के प्रयासों में योगदान करने के लिए प्रतिबद्ध किया, जो उनके चुनाव पूर्व वादे और गठबंधन की हिस्सेदारी को लेकर एक बड़ा बदलाव था.

ऊर्जा आपूर्ति के लिए रूस पर निर्भरता कम करने के लिए कोयले और गैस के भंडार का निर्माण करना ज़रूरी है. जर्मनी, यूरोपीय संघ के साथ, वैकल्पिक स्रोतों की तलाश कर रहा है. दो एलएनजी टर्मिनल, जिन्हें पहले अस्वीकार कर दिया गया था, अब ब्रंसबुटल और विल्हेल्म्सहेवन में बनाए जाने की योजना है. नवीकरणीय ऊर्जा पर ज़ोर देने के साथ ही एलएनजी टर्मिनल हरे हाइड्रोजन को स्टोर करने के लिए परिवर्तनीय बनाया जा रहा है.

राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति


एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (एनएसएस) के विकास का भी खुलासा हुआ है. जर्मनी अब अपनी मौज़ूदा नीतियों से बहुत तेज़ी से और गठबंधन द्वारा पहले से कहीं अधिक तेज़ी से विचलित होने के लिए क़दम उठा रहा है.

प्रस्तावित एनएसएस में तीन पहलुओं की स्पष्ट रूप से कल्पना की जा सकती है. पहला यह है कि जर्मनी की रक्षा क्षमताओं को उसके आर्थिक कद के हिसाब से बढ़ाया जाएगा. जर्मनी के रक्षा बलों के आधुनिकीकरण के लिए 100 अरब यूरो (लगभग 110 अरब अमेरिकी डॉलर) के फ़ंड की भी घोषणा की गई है. दूसरा है, जर्मन रक्षा ख़र्च जीडीपी का 2 प्रतिशत हो, इसे लेकर चांसलर के कानून में बदलाव लाने का वादा. नेटो इसे लेकर मुखर है लेकिन जर्मनी ने इसका विरोध किया है और इसे गठबंधन समझौते में शामिल नहीं किया. यूक्रेन की घटनाओं ने उन्हें इस निर्णय को लेने के लिए तैयार किया है. ये दोनों ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ एक नए एनएसएस का आधार बनते हैं.

एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (एनएसएस) के विकास का भी खुलासा हुआ है. जर्मनी अब अपनी मौज़ूदा नीतियों से बहुत तेज़ी से और गठबंधन द्वारा पहले से कहीं अधिक तेज़ी से विचलित होने के लिए क़दम उठा रहा है.

लंबे समय से जर्मनी एक नागरिक समाज रहा है जो द्वितीय विश्व युद्ध के अपराध बोध को झेल रहा है. इसने रक्षा तैयारियों को कम रखा है और जलवायु परिवर्तन और यूरोपीय मूल्यों जैसे व्यापक मुद्दों को उठाया है. यह यूरोप में अग्रणी अर्थव्यवस्था है लेकिन नेटो के लिए एक प्रभावी सैन्य भागीदार नहीं है. जर्मनी का एनएसएस अब नेटो के साथ सामूहिक रक्षा प्रयासों और उनके बीच बढ़ी हुई अनुपूरकता पर आधारित होगा. जर्मनी का मानना ​​​​है कि पूर्वी यूरोप में नेटो की उपस्थिति अपर्याप्त है और उसे इसके विकल्प के लिए और अधिक प्रयास करना होगा. एनएसएस न केवल एक तरह से रक्षा तैयारी होगी बल्कि इसमें कूटनीतिक पहल, एक बड़ा विकास की रूपरेखा और जलवायु एजेंडे को लगातार समर्थन देना भी शामिल होगा. ये सारी बातें जर्मनी का उद्देश्य बनी रहेंगी लेकिन इसे लेकर रक्षा ख़र्च के लिए अब अधिक फ़ंड आवंटन की ज़रूरत होगी. हालांकि इस बात की चुनौती होगी कि अन्य उद्देश्यों के लिए फ़ंड कैसे मुहैया कराया जाएगा. राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अगर आवंटन में बढ़ोतरी की जाएगी तो जलवायु, विकास के लिए सहयोग और घरेलू बुनियादी ढांचे, रोज़गार और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मौज़ूदा फ़ंड को लेकर असर देखने को मिलेगा. इसके साथ ही ऊर्जा की बढ़ी बुई क़ीमतों की संभावना के चलते ख़ासकर अगर रूस की आपूर्ति बाधित होती है, तो इसका भी प्रभाव पड़ेगा.

बढ़ी हुई सुरक्षा


यूक्रेन संकट को लेकर जर्मनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता रखता है इसकी कई वज़हें हैं. यूक्रेन की क्षमताएं बहुत तौर पर सीमित हैं और यूक्रेन को आधुनिक हथियार और सिस्टम की ज़रूरत है. जर्मनी ने वादा किया है कि वह नेटो सदस्य देशों में उसके पड़े हुए हथियारों के ज़ख़ीरे को यूक्रेन को उपलब्ध कराएगा. हालांकि यूक्रेन की तात्कालिक ज़रूरतों के लिए बुंडेसवेहर से और अधिक हथियार उपलब्ध कराना अब जर्मनी के लिए मुश्किल हो रहा है. जर्मन रक्षा मंत्री क्रिस्टीन लैंब्रेच ने ये स्पष्ट कर दिया है कि जर्मनी अपनी सुरक्षा हितों की अनदेखी कर यूक्रेन को हथियारों और उपकरणों की सप्लाई नहीं कर सकता है.

जर्मनी में रक्षा उत्पादन प्रणालियां एक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए फिलहाल तैयार नहीं हैं और फ़ंडिंग की नई प्रतिबद्धताओं को पूरा करने और क्या ऑर्डर करना है, इसके लिए योजना बनाने में समय लगेगा. रक्षा के लिए चालू वर्ष के बज़ट से 100 बिलियन यूरो के फ़ंड और साल 2021 में 47 बिलियन यूरो के रक्षा बज़ट के बीच तुलना है. रक्षा बज़ट में जीडीपी के 2 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी का मतलब यह है कि साल 2021 में आवंटित बज़ट में 1.53 प्रतिशत की वृद्धि होगी. नेटो को 2 प्रतिशत बढ़ोतरी के अनुरोध को नहीं मानने वाला जर्मनी अकेला यूरोपीयन देश नहीं है. नेटो के 27 सदस्य देशों में से केवल 9 यूरोपीय देशों ने ही 2021 में 2 प्रतिशत लक्ष्य को पूरा किया. सैन्य क्षमता का निर्माण पूरी तरह से बज़ट या फिर आर्थिक मापदंडों पर निर्धारित नहीं है. इसमें संदेह नहीं कि रक्षा बज़ट में इस तरह की बढ़ोतरी जर्मनी को अमेरिका और चीन के बाद रक्षा बज़ट के मामले में तीसरी सबसे बड़ी ताक़त के रूप में जगह दिलाएगा; लेकिन यह भी तय है कि इस तरह के निवेश, ख़रीद व्यवस्था को शुरू करने, ज़रूरी चीज़ों के लिए योजना बनाने और सेना द्वारा नई व्यवस्थाओं का इस्तेमाल करने में अभी वक़्त लगेगा.

जर्मनी का मानना ​​​​है कि पूर्वी यूरोप में नेटो की उपस्थिति अपर्याप्त है और उसे इसके विकल्प के लिए और अधिक प्रयास करना होगा. एनएसएस न केवल एक तरह से रक्षा तैयारी होगी बल्कि इसमें कूटनीतिक पहल, एक बड़ा विकास की रूपरेखा और जलवायु एजेंडे को लगातार समर्थन देना भी शामिल होगा.

जर्मनी का बढ़ा हुआ रक्षा बज़ट आख़िर कहां जाएगा? विश्लेषकों की मानें तो शुरू में सैन्य तैयारी, सैन्य गोला-बारूद की आवश्यक आपूर्ति, हथियार, समर्थन और रसद जैसे जिन मुद्दों को कई वर्षों तक नज़रअंदाज़ किया गया था, शायद उन्हें कम समय में पूरा करने की कोशिश की जा सकती है. यह इस बात पर निर्भर करेगा कि इसके लिए बुंदेसवेहर की योजनाएं कितनी तैयार हैं और कई वर्षों से उन्हें जितनी ज़रूरत थी, उससे बहुत कम किया जाता रहा है.

प्रमुख ख़रीद में अभी ज़्यादा समय लगेगा और नए हथियार प्रणालियों को शामिल करने, पुराने को बदलने और नए के विकास के लिए योजना बनाने की आवश्यकता होगी और यह या तो आयातित या यूरोपीय विकल्प के रूप में हो सकता है. यह दिलचस्प है कि जर्मनी, जो हमेशा यूरोपीय विकल्प का समर्थक था, उसने टॉरनेडो लड़ाकू विमान ख़रीदे थे और अब उसने अमेरिका से 35 एफ-35 जंगी लड़ाकू विमान ख़रीदने का फैसला किया है. इस तरह जर्मनी के बढ़े हुए ख़र्च का तत्काल लाभ अमेरिका को होगा. जर्मनी को यूक्रेन संकट से पहले टाइफ़ून का ऑर्डर देना था और उसने साल 2018 और 2020 में F-35 जंगी विमान को ख़ारिज़ कर दिया था. फ़्यूचर कॉम्बैट एयर सिस्टम (एफसीएएस) जेट प्रोग्राम जिसे जर्मनी स्पेन और फ्रांस के साथ विकसित कर रहा है, अब इसमें देरी हो सकती है. जिन अन्य उपकरणों के ऑर्डर दिए जाने की उम्मीद है उनमें भारी लिफ़्ट हेलीकॉप्टर, वायु रक्षा प्रणाली, पनडुब्बी, फ्रिगेट और माइनस्वीपर शामिल हैं. इनमें से कई, जैसा कि जापान के मामले में है, संयुक्त राज्य अमेरिका से इसे पूरा करने का आदेश दिया जाएगा.

इसमें संदेह नहीं कि रक्षा बज़ट में इस तरह की बढ़ोतरी जर्मनी को अमेरिका और चीन के बाद रक्षा बज़ट के मामले में तीसरी सबसे बड़ी ताक़त के रूप में जगह दिलाएगा; लेकिन यह भी तय है कि इस तरह के निवेश, ख़रीद व्यवस्था को शुरू करने, ज़रूरी चीज़ों के लिए योजना बनाने और सेना द्वारा नई व्यवस्थाओं का इस्तेमाल करने में अभी वक़्त लगेगा

यूक्रेन विभिन्न स्तरों पर जर्मनी से सीधे तौर पर अधिक की मांग करता रहा है, लेकिन जर्मनी की स्थिति यह है कि वह यूक्रेन की मांग को पूरा करने में अभी सक्षम नहीं है. समय के साथ लोकप्रिय मिजाज़ में भी बदलाव आया  है. एक महीने पहले, जर्मनों के एक संकीर्ण बहुमत ने इस ओर इशारा किया कि सरकार की प्रतिक्रिया उचित थी लेकिन अब केवल 37 प्रतिशत लोग ही इससे सहमत हैं. इसके विपरीत अब 45 प्रतिशत लोग मानते हैं कि सरकार को जितना करना चाहिए वह पर्याप्त नहीं है. ‘यूक्रेनीकरण’ का विचार जर्मन गठबंधन के लिए समस्याएं पैदा कर रहा है लेकिन रूस के साथ जर्मनी की साझेदारी दशकों से उसकी नीति का हिस्सा रही है. उन्हें जल्दी से अपना एनएसएस बनाने की ज़रूरत है और पहले नीतिगत क़दमों की अधिक सख़्ती से घोषणा करने की ज़रूरत है.

यूक्रेन संकट की त्वरित प्रतिक्रिया ने जर्मनी को एक नए एनएसएस की ओर पहल करने को मज़बूर किया है. इसमें ऊर्जा आपूर्ति का प्रबंधन, गठबंधन भागीदारों की अलग-अलग प्राथमिकताओं को समायोजित करना और बुंडेसवेहर की क्षमता अब जर्मनी की सियासत और नीति में महत्वपूर्ण क़दम है. जर्मनी को इसकी आदत नहीं रही है लेकिन अब वह घरेलू स्तर पर और यूरोप की मौज़ूदा स्थिति का सामना करने को तैयार है.

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Gurjit Singh

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Gurjit Singh has served as Indias ambassador to Germany Indonesia Ethiopia ASEAN and the African Union. He is the Chair of CII Task Force on ...

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