चीन और Covid-19 का कष्ट!
कोविड को लेकर चीन की दुविधा दिन पर दिन गहराती जा रही है. यह दुविधा उसकी अपनी ही नीति की सफलता की देन मानी जा रही है: बीजिंग ने मूल कोविड संक्रमण को रोकने के लिए कठोर रणनीति अपनाई थी, जो उल्लेखनीय रूप से सफल भी रही. इस रणनीति के कारण ही वह 2020 और 2021 में अपनी अर्थव्यवस्था को संक्रमण के प्रभाव से बचाए रखने में भी सफल रहा था. लेकिन आज, ओमिक्रॉन वेरिएंट चीनी नियंत्रणों को धता बता रहा है. चीन की 1.4 बिलियन की आबादी में से अधिकांश के पास प्राकृतिक प्रतिरक्षा नहीं है और वह कभी भी वायरस के संपर्क में नहीं आई हैं. नया संकट खड़ा होने के बाद अब जाकर चीनी अधिकारी‘‘प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने और अस्पताल की क्षमता का विस्तार करने के लिए एक अधिक आक्रामक अभियान’’ शुरू करने के लिए हाथ-पांव मारने में जुटे हैं.
महामारी के प्रकोप के बाद से 24 नवंबर को चीन ने फिर से अपने दैनिक कोविड मामलों की उच्चतम संख्या रिकार्ड की. झेंगझोऊ आईफोन कारखाने में हैझमैट सूट पहने पुलिस के साथ प्रदर्शनकारियों की झड़प का फुटेज चीनी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. पहले कोविड संक्रमण शंघाई केंद्रित था, लेकिन अब की बार चीन के सभी प्रांतों और क्षेत्रों से कोविड के बढ़ते मामलों की खबरें आ रही हैं.
चीन की 1.4 बिलियन की आबादी में से अधिकांश के पास प्राकृतिक प्रतिरक्षा नहीं है और वह कभी भी वायरस के संपर्क में नहीं आई हैं. नया संकट खड़ा होने के बाद अब जाकर चीनी अधिकारी‘‘प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने और अस्पताल की क्षमता का विस्तार करने के लिए एक अधिक आक्रामक अभियान’’ शुरू करने के लिए हाथ-पांव मारने में जुटे हैं.
इसी दिन द ग्लोबल टाइम्स ने ख़बर दी कि बीजिंग की कोविड रोधी लड़ाई अब उसके ‘‘सबसे क्रिटिकल अर्थात नाजुक मोड़’’ पर पहुंच गई हैं जब शहर में रोजाना 1,000 लोग कोविड से संक़्रमित हो रहे है. 24 नवंबर से, शहर के सभी निवासियों को सार्वजनिक स्थानों में प्रवेश करने के लिए 48 घंटे के भीतर एक निगेटिव परीक्षण प्रमाणपत्र प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया गया है.
एक रिपोर्ट के अनुसार इस वक्त चीन के 80 से ज्यादा शहर उच्च स्तर पर संक्रमण का मुकाबला कर रहे है. यह 60 दिनों तक चले शंघाई शटडाउन के दौरान प्रभावित होने वाले 50 शहरों के मुकाबले कहीं ज्यादा बड़ा संक्रमण का संकट है. इन शहरों का चीन के सकल घरेलू उत्पाद में 50 प्रतिशत का योगदान है, जबकि यहां से ही उसके निर्यात का 90 प्रतिशत माल उत्पादित होता है.
हाल में लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से बड़े औद्योगिक इवेंट्स भी बाधित हुए हैं. शांघाई में होने वाले चाइना ऑटोमोटिव ओवरसीज़ डेवलपमेंट समिट के आयोजकों को इसके उद्घाटन के आधे दिन बाद ही इसे रद्द करना पड़ा. इसी माह पहले ग्वांगझोउ इंटरनेशनल मोटर शो को कोविड प्रतिबंधों के चलते स्थगित कर देना पड़ा था. अप्रैल में स्थगित किया गया, द बीजिंग शो भी अब 2022 में आयोजित नहीं किया जाएगा.
इसमें कोई शक नहीं है कि चीन के जीरो-कोविड अर्थात शून्य कोविड दृष्टिकोण ने लाखों लोगों की जान बचाई हैं. इसकी वजह से ही जब 2020 और 2021 में दुनिया की अर्थव्यवस्था कोविड संक्रमण की वजह से लड़खड़ा रही थी तो चीन के आर्थिक विकास की रफ्तार बदस्तूर चल रही थी. चीन के लोगों ने भारत, अमेरिका, ब्राजील अथवा रूस जैसे विनाशकारी नुकसान का अनुभव नहीं किया था. ऐसे में अब चीनी नेतृत्व को यह चिंता सता रही है कि अगर प्रतिबंधों को शिथिल किया गया तो लोगों की मौत की दर में इजाफ़ा होने की संभावना है. लेकिन कड़े प्रतिबंधों ने ही यह सुनिश्चित किया है कि चीन की आबादी के पास बेहद कम प्रतिरोधक क्षमता मौजूद है, जिसकी वजह से वे अब नए और अधिक संक्रामक वेटिएंट्स का मुकाबला करने में सक्षम नहीं है.
चीन के लोगों ने भारत, अमेरिका, ब्राजील अथवा रूस जैसे विनाशकारी नुकसान का अनुभव नहीं किया था. ऐसे में अब चीनी नेतृत्व को यह चिंता सता रही है कि अगर प्रतिबंधों को शिथिल किया गया तो लोगों की मौत की दर में इजाफ़ा होने की संभावना है.
यह हकीकत है कि टीकाकरण को लेकर चीन का रिकार्ड धब्बेदार है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 80 वर्ष आयु से अधिक के 66 प्रतिशत लोगों में शत प्रतिशत टीकाकरण हो चुका हैं. लेकिन केवल 40 प्रतिशत को ही बुस्टर डोज दिया गया है. पता नहीं क्यों, लेकिन चीन ने ओमिक्रॉन वेरिएंट का मुकाबला करने के लिए अपडेट अर्थात उन्नत किए गए विदेशी टीकों को भी आयात करने को लेकर प्रतिबंधित दृष्टिकोण अपनाया है.
रिपोर्ट दर रिपोर्ट
एक ब्लूमबर्ग इंटेलिजेंस रिपोर्ट के अनुसार यदि इस वक्त सारे प्रतिबंध हटाकर सब कुछ खोल दिया गया तो 363 मिलियन लोग संक्रमित हो जाएंगे, जिसमें से 5.8 मिलियन लोगों को आईसीयू में दाखिल करना होगा तथा लगभग 620,000 लोगों की मौत होने की आशंका है. अत: रिपोर्ट के अनुसार चीन अपनी जीरो-कोविड नीति से धीरे-धीरे बाहर निकलेगा और संभवत: इसे 2023 के आगे भी जारी रख सकता है.
इस रिपोर्ट में अमेरिका और यूरोप के अनुभव और डेटा को आधार बनाकर अनुमान लगाया गया है, जहां एक पूर्ण विकसित ओमिक्रॉन प्रकोप की वजह से एक चौथाई लोग संक्रमित हो गए थे.
फिलहाल, चीनी अधिकारी कोविड संक्रमणों को लेकर अपनी शून्य-सहिष्णुता नीति पर ही चलने को लेकर दृढ़ दिखाई दे रहे हैं. हालांकि इसमें कुछ बदलाव किए गए हैं. मसलन व्यापक लॉकडाउन और बार-बार बड़े पैमाने पर परीक्षण जैसे कठिन उपायों को आसान बनाया गया है.
ब्लूमबर्ग इंटेलिजेंस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन को अपने वैक्सीन बूस्टर डोज देने के अभियान को तेज करने जरूरत है, क्योंकि वह बुजुर्गों के लिए पर्याप्त टीकाकरण कवरेज की कमी की समस्या का सामना कर रहा है.
नवंबर की शुरुआत में चीनी नेतृत्व ने घोषणा की थी कि वह अपने जीरो-कोविड दृष्टिकोण पर कायम रहेंगे, लेकिन अब अधिक लक्षित दृष्टिकोण अपनाया जाएगा. शी जिनपिंग की अध्यक्षता वाली पोलित ब्यूरो स्थायी समिति ने कहा है कि उन्हें सर्दियों में संक्रमण की एक बड़ी लहर आने की उम्मीद है. ऐसे में उसे 2023 के वसंत तक कड़े उपायों के बने रहने की उम्मीद दिखाई दे रही है.
चीन की डायनैमिक अर्थात गतिशील जीरो कोविड नीति में बार-बार बड़े पैमाने पर परीक्षण, यात्रा प्रतिबंध और औचक लॉकडाउन शामिल हैं. यह लॉकडाउन सप्ताह या महीनों तक चल सकता है. शिंजियांग की राजधानी उरुमकी में तीन महीने से लॉकडाउन चल रहा है.
लेकिन समिति की बैठक ने लोगों के जीवन और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को कम करने के लिए नीति को ‘‘अनुकूलित और समायोजित’’ करने के लिए नए नियमों को अपनाने का फैसला किया. एक सरकारी परिपत्र ने विदेश से आने वाले मामलों को रोकने और घरेलू मामलों में दोबारा संक्रमण रोकने की अहमियत पर बल दिया. अब पूरे शहरों के बजाय इमारतों और आस-पड़ोस पर लॉकडाउन लगाए गए हैं, जैसा कि इस साल की शुरुआत में शंघाई के मामले में देखा गया था. इसके अलावा प्रतिबंधों को शिथिल करते हुए करीबी संपर्को और बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए कोविड क्वॉरंटीन अवधि में कटौती करने का आह्वान किया गया. इसके साथ ही अब क्षेत्रों का वर्गीकरण ‘‘उच्च, मध्यम और निम्न’’ से घटाकर केवल ‘‘उच्च और निम्न’’ करने का फैसला लिया गया.
परिपत्र में अनावश्यक व्यवधान से निजात पाने के लिए ‘‘सभी के लिए एक समान व्यवस्था के दृष्टिकोण और अत्यधिक नीतिगत कदमों को सुधारने के लिए’’ प्रयासों को पुन: बढ़ाने के कदम उठाने का भी आह्वान किया गया. सबसे बड़ी समस्या यह है कि स्थानीय अधिकारी इन नीतियों को लागू करने में अत्याधिक उत्साह दिखा रहे हैं. इसका कारण यह है कि अक्सर यह देखा गया है कि यदि संक्रमण के मामले बढ़ते है तो इसके लिए सीधे उन्हें ही दोषी मानकर दंडित किया जाता है.
16-24 आयु वर्ग के युवा बेरोज़गारी की संख्या दर्शाती है कि इन लोगों में से पांचवां हिस्सा नौकरियों से बाहर है. यह स्थिति भयावह है. यह संख्या अमेरिका, यूरोप और जापान की तुलना में अधिक है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि नौकरी की तलाश करने वालों में से अनेक युवा विश्वविद्यालय के स्नातक हैं.
स्थानीय अधिकारियों ने लक्षित उपायों पर अमल की कोशिश की है, लेकिन यह पाया कि ओमिक्रॉन का प्रभाव ज़बर्दस्त अर्थात उनके काबू से बाहर जा सकता है, अत: उन्हें बड़े लॉकडाउन लगाने पर मजबूर होना पड़ा. चीन को अपनी नीति को सुरक्षित रूप से बदलने के पहले अपने टीकाकरण कार्यक्रम और अस्पतालों की क्षमता को बढ़ाने पर विचार करना चाहिए.
ज़ीरो-कोविड नीति के दीर्घकालीन प्रभाव
चीन में कोविड संक्रमण जारी रहने के घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह के परिणाम होंगे. घरेलू स्तर पर, यह वहां के नागरिकों के जीवन को बाधित करेगा जो पहले से ही प्रतिबंधों से तंग आ चुके हैं और कुछ मामलों में अब विरोध कर रहे हैं. ब्लूमबर्ग ने नोमुरा होल्डिंग्स इंक. की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि चीन को वापस खोलना ‘‘लंबा और महंगा’’ रहने वाला है. एक अर्थशास्त्री हाओ हैंग ने कहा है कि चीन में धीरे-धीरे फिर से बाजार खोलने की नीति के कारण लोग थक गए हैं. इससे उत्पादकता को भी नुकसान पहुंचा है, क्योंकि लोगों को नियमित रूप से कोविड परीक्षण करने पर मजबूर किया जा रहा है. कुछ नौकरियों में तो रोज़ाना ही परीक्षण पर बल दिया जा रहा है. मसलन, चेंगदू में स्थानीय अधिकारियों ने 23 नवंबर से लगातार पांच दिनों तक सामूहिक परीक्षण अभियान चलाया था.
कोविड से जूझ रही सरकार अब चीनी अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखने में संघर्ष का सामना कर रही हैं. नवंबर में संघर्षरत रियल एस्टेट कारोबारियों की सहायता करने के लिए 16 सूत्रीय पैकेज की घोषणा की गई थी. अब सरकारी बैंकों ने संयुक्त रूप से प्रॉपर्टी सेक्टर को 30.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर्स का क़र्ज़ देने के लिए आपस में हाथ मिलाया है, ताकि इस क्षेत्र के सामने खड़े वित्तीय संकट से निपटा जा सके. लेकिन यह सारे उपाय उस वक़्त तक काम नहीं करेंगे, जब तक बाज़ार को दोबारा खोलने को लेकर उत्साहपूर्ण माहौल नहीं बनता और अर्थव्यवस्था को चला रही नीति की दिशा को लेकर लोग आश्वस्त नहीं होते. लेकिन यह चीन की एकमात्र समस्या नहीं है. 16-24 आयु वर्ग के युवा बेरोज़गारी की संख्या दर्शाती है कि इन लोगों में से पांचवां हिस्सा नौकरियों से बाहर है. यह स्थिति भयावह है. यह संख्या अमेरिका, यूरोप और जापान की तुलना में अधिक है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि नौकरी की तलाश करने वालों में से अनेक युवा विश्वविद्यालय के स्नातक हैं.
विश्व के लिए, यूक्रेन में चल रहे युद्ध और चीन में उत्पादन में आए व्यवधान के परिणामस्वरूप वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अनिश्चितता के कारण विश्व के आर्थिक विकास का दृष्टिकोण और कम हो सकता है. बीजिंग वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के विकास के पांचवें हिस्से से अधिक का संचालन करता है. इसके बावजूद वह 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट की तरह इस बार विकास को चलाने वाला इंजन बनकर उसे मंदी से बाहर निकालने में मदद नहीं कर सकता.
इस सप्ताह ही जारी की गई अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने महामारी के आरंभिक प्रभाव से उबरने में शानदार वापसी की है, लेकिन उसका विकास अब ‘‘धीमा है और दबाव को महसूस कर रहा है.’’ इसमें कहा गया है कि निकट अवधि में ‘‘टीकाकरण में तेजी लाने और संपत्ति क्षेत्र के संकट को समाप्त करने के लिए आगे की कार्रवाई सहित कोविड रणनीति का पुर्नमूल्यांकन, विकास का समर्थन करने वाला होगा.’’
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