एक विकास साझेदार के रूप में चीन का उदय और अंतरराष्ट्रीय विकास पर उसका प्रभाव बीते एक दशक में अंतरराष्ट्रीय संबंधों में चर्चा का बिंदु रहा है. हालांकि, विद्वान और टिप्पणीकार इस विषय पर हमेशा बंटे हुए थे. कइयों ने चीन को एक ‘नव-उपनिवेशवादी’ बताया, जबकि दूसरों ने तर्क दिया कि चीनी विकास सहयोग उसके साझेदार देशों, ख़ासकर अफ्रीकी देशों, के लिए फ़ायदेमंद था, क्योंकि चीन पश्चिमी दाताओं द्वारा अभी तक उपेक्षित इलाक़े की उन विशाल बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को धन मुहैया कराने को तैयार था, जो वृद्धि और विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. चीनी परियोजनाओं में पर्यावरणीय व श्रम मानकों के उल्लंघन, भ्रष्टाचार, और रोजगार सृजन के अभाव को लेकर चिंताएं भी खड़ी की गयीं.
चीन पश्चिमी दाताओं द्वारा अभी तक उपेक्षित इलाक़े की उन विशाल बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को धन मुहैया कराने को तैयार था, जो वृद्धि और विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.
चीन से भारी वित्तीय प्रवाह और उसकी विकास साझेदारियों की प्रकृति (जो कोई राजनीतिक शर्त नहीं होने और परस्पर लाभ या ‘विन-विन पार्टनरशिप’ के सिद्धांतों पर थी) ने अंतरराष्ट्रीय विकास परिदृश्य में पश्चिमी दबदबे के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की. 2000 और 2019 के बीच, चीन ने चाइना एक्जिम बैंक और चाइना डेवलपमेंट बैंक के ज़रिये अफ्रीकी देशों के लिए 153 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के रियायती क़र्ज़ों की प्रतिबद्धता जतायी. कई साझेदार देशों ने, ख़ासकर जो अफ्रीका में हैं, चीनी विकास सहयोग का स्वागत किया, क्योंकि उन्होंने विकास सहयोग के पश्चिमी मॉडल (जिसकी ख़ासियत नीतिगत नुस्ख़े थोपना और बाप जैसा रवैया थी) के उलट उस गैर-हस्तक्षेपकारी और मांग-चालित विकास को तरजीह दी जो परस्पर लाभ के लिए उपयुक्त था. मेलेस ज़ेनावी जैसे अफ्रीकी नेताओं ने चीनी विकास साझेदारी का स्वागत विकास के एक नये दृष्टिकोण और ज़्यादा सार्थक दक्षिण-दक्षिण सहयोग के रूप में किया. इस तरह, चीनी वित्तीय प्रवाहों ने, एकतरफा ढंग से अंतरराष्ट्रीय विकास नैरेटिव गढ़ने की ब्रेटन वुड्स् संस्थाओं [आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक] और पश्चिमी दाताओं की क्षमताओं में कटौती की.
चीनी क़र्ज़ हमेशा से विवादास्पद थे क्योंकि कई विशेषज्ञों ने विकासशील देशों में ऋण संवहनीयता, गैर-रियायती शर्तों, और ऋण समझौतों को लेकर अपारदर्शिता पर चिंता खड़ी की.
हालांकि, चीनी क़र्ज़ हमेशा से विवादास्पद थे क्योंकि कई विशेषज्ञों ने विकासशील देशों में ऋण संवहनीयता (डेट सस्टेनबिलिटी), गैर-रियायती शर्तों, और ऋण समझौतों को लेकर अपारदर्शिता पर चिंता खड़ी की. उदाहरण के लिए, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य की ऋण संवहनीयता को लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की चिंताओं की वजह से 2009 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य सरकार और चीनी कंपनियों के कंसोर्टियम के बीच सिकोमाइन्स समझौते की शर्तों पर दोबारा बातचीत हुई. हाल के वर्षों में ऋण संवहनीयता को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए चीनी क़र्ज़ को अक्सर ‘क़र्ज़ के जाल की कूटनीति’ कहा गया है. कुछ विद्वानों का यह भी तर्क है कि दूसरे विकासशील देशों को दिये गये चीनी क़र्ज़ों का वास्तविक मूल्य कहीं ज़्यादा है, क्योंकि ज़्यादातर क़र्ज़ राज्य-स्वामित्व वाले बैंकों, राज्य-स्वामित्व वाली कंपनियों, विशेष उद्देश्य वाहकों, संयुक्त उपक्रमों और निजी क्षेत्र के संस्थानों को दिया गया है जो सरकारी बैलेंस शीट में दिखायी नहीं पड़ता. कई विकासशील देश चीनी क़र्ज़ों को लेकर अब अधिक संशय में हैं. केन्या, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और तंज़ानिया ने चीनी परियोजनाओं को रद्द कर दिया है या चीनी ऋण समझौतों की शर्तों पर दोबारा बातचीत की है. 10 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य की एक चीनी क्रेडिट लाइन को रद्द करते हुए, तंज़ानियाई राष्ट्रपति, जॉन मगुफुली ने इस क़र्ज़ को एक ‘हत्यारा चीनी क़र्ज़’ क़रार दिया जिसे ‘कोई शराबी ही स्वीकार करेगा’. हाल में, बांग्लादेश के वित्त मंत्री मुस्तफ़ा कमाल ने भी, बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) के तहत, चीन से क़र्ज़ लेने पर विकासशील देशों को आगाह किया. उनका तर्क था कि चीन का क़र्ज़ देने का ख़राब तौर-तरीक़ा कई विकासशील देशों को ऋण संकट में धकेल रहा है.
चीनी बैंकों ने क़दम पीछे खींचें
क़र्ज़ देने के चीनी तौर-तरीक़ों पर विकासशील देशों द्वारा अब लगातार सवाल उठाये जा रहे हैं तथा कई देश चीन से और क़र्ज़ लेने के अनिच्छुक हैं. दूसरी तरफ़, हाल के वर्षों में चीन की रणनीति भी क्रमिक रूप से विकसित हुई है. क़रीब दो दशकों के बाद, चीन आख़िरकार अपनी ग़लतियों को दुरुस्त करता लग रहा है. वह क़र्ज़ देने को सीमित कर रहा है, अपनी विकास साझेदारियों की निगरानी के लिए एक विकास सहयोग एजेंसी स्थापित कर रहा है, और चीनी परियोजनाओं की कुछ मुख्य आलोचनाओं का जवाब देने के लिए एक श्वेतपत्र जारी कर रहा है. 2019 में, अफ्रीका को चीनी क़र्ज़ मुहैया कराने की प्रतिबद्धताओं में 30 फ़ीसद की कमी आयी और यह 9.9 अरब अमेरिकी डॉलर से घटकर 7 अरब अमेरिकी डॉलर पर आ गया. इतना ही नहीं, चीनी वित्त-प्रदाताओं ने ज़ांबिया, अंगोला, कीनिया और इथोपिया जैसे ऋण संकट में फंसे देशों को क़र्ज़ देना रोक दिया है और ज़्यादातर क़र्ज़ दिये जाने को मिस्र और दक्षिण अफ्रीका जैसे दूसरे देशों की ओर मोड़ दिया गया है. केविन ऐकर (Kevin Acker) और डेबरा ब्रॉटिगम (Deborah Brautigam) का तर्क तो यहां तक है कि ऋण संवहनीयता को लेकर चीन की अपनी चिंताओं और विदेशी क़र्ज़ देने में शामिल चीनी कर्ताओं (ऐक्टर्स) के संघटन में बदलाव के चलते अफ्रीका को चीनी क़र्ज़ दिये जाने में 2013 से ही धीमापन आ गया था.
चीन आख़िरकार अपनी ग़लतियों को दुरुस्त करता लग रहा है. वह क़र्ज़ देने को सीमित कर रहा है, अपनी विकास साझेदारियों की निगरानी के लिए एक विकास सहयोग एजेंसी स्थापित कर रहा है, और चीनी परियोजनाओं की कुछ मुख्य आलोचनाओं का जवाब देने के लिए एक श्वेतपत्र जारी कर रहा है.
चाइना एक्जिम बैंक – एकमात्र बैंक जो रियायती क़र्ज़ मुहैया कराता है – ने बीते सालों में विदेशी क़र्ज़ दिये जाने में कमी की है और चीनी वाणिज्यिक बैंकों, जिन्हें मुनाफ़े की चिंता अधिक रहती है, की विदेशी क़र्ज़ मुहैया कराने में हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है. 2018 में, चाइना इंटरनेशनल डेवलपमेंट कोऑपरेशन एजेंसी (सीआईडीसीए) की स्थापना की गयी. यह चीनी विकास सहयोग के संस्थानिक ढांचे में मूलभूत बदलाव था. सीआईडीसीए का मुख्य उद्देश्य चीनी विकास सहायता परियोजनाओं में शामिल कई सरकारी विभागों के बीच समन्वय बेहतर करना तथा भ्रष्टाचार, परियोजना के ख़राब क्रियान्वयन और फिजूलखर्ची से जुड़ी चिंताओं का निवारण करना है. जनवरी 2019 में, चीन ने विदेशी सहायता पर अपना तीसरा श्वेतपत्र जारी किया, जो अंतरराष्ट्रीय विकास सहयोग में गवर्नेंस सुधारने, परियोजनाओं के व्यवहार्यता अध्ययनों में ज़्यादा निवेश करने, परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभावों का विश्लेषण करने, और परियोजना पूरी होने के बाद उसके संचालन व प्रबंधन का मूल्यांकन करने में चीन की प्रतिबद्धता को ख़ास तौर पर सामने रखता है. इसके अलावा, चीन एक नये मॉडल की दिशा में काम करेगा जहां प्राप्तकर्ता देश, चीन से वित्तपोषण और तकनीकी सहयोग के साथ, परियोजनाओं का ख़ुद क्रियान्वयन करेगा, ताकि स्थानीय रोज़गार का सृजन हो सके. इस तरह, चीन अपनी विकास परियोजनाओं से जुड़े, लंबे समय से मौजूद कुछ मसलों के हल के लिए आवश्यक संशोधन की कोशिश साफ़ तौर पर कर रहा है.
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