आगामी 30 मार्च को बंगाल की खाड़ी की बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) शिखर सम्मेलन की मेज़बानी श्रीलंका द्वारा की गई. यह 2018 में काठमांडू में हुए अंतिम शिखर सम्मेलन के बाद से आयोजित होने वाली पहली व्यक्तिगत बैठक थी. इसके गठन के बाद से पिछले 25 वर्षों में इसने अपने पांचवें शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की. शिखर सम्मेलन में बिम्सटेक चार्टर, ट्रांसपोर्ट कनेक्टिविटी के लिए बिम्सटेक मास्टर प्लान और आपराधिक मामलों में पारस्परिक कानूनी सहायता पर बिम्सटेक कन्वेंशन की मज़ूरी को देखा गया. बिम्सटेक, तटीय नौवहन समझौते और मोटर वाहन समझौते को अंतिम रूप दिए जाने पर भी चर्चा हुई. साल 1997 में गठित इस उप-क्षेत्रीय समूह में अब तक न्यूनतम बातचीत हुई है और उपलब्धियां मामूली रही हैं.
इस समूह के गठन के पीछे का विचार दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच जुड़ाव की कमी को दूर करना है. बिम्सटेक क्षेत्र का कुल सकल घरेलू उत्पाद 2.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है और इस की कुल जनसंख्या वैश्विक जनसंख्या का लगभग 22 प्रतिशत है. बिम्सटेक के भीतर सहयोग के दायरे में 14 क्षेत्र शामिल हैं- कृषि, पर्यटन, परिवहन और संचार, आतंकवाद और अंतरराष्ट्रीय अपराध, पर्यावरण और आपदा प्रबंधन, व्यापार और निवेश, सांस्कृतिक सहयोग, ऊर्जा, गरीबी उन्मूलन, प्रौद्योगिकी, सार्वजनिक स्वास्थ्य, मत्स्य पालन, लोगों से लोगों के बीच संपर्क और जलवायु परिवर्तन. भारतीय विदेश मंत्रालय और बिम्सटेक की ब्रीफ के अनुसार, भारत परिवहन और संचार, पर्यटन, पर्यावरण और आपदा प्रबंधन, और काउंटर टेररिज्म और ट्रांसनेशनल क्राइम के मुद्दों में अग्रणी है.
सार्क शिखर सम्मेलन को रद्द करने के बाद आयोजित 2016 ब्रिक्स-बिम्सटेक आउटरीच शिखर सम्मेलन (BRICS-BIMSTEC Outreach Summit) नई दिल्ली द्वारा इस समूह को प्रोत्साहित करने और सार्क द्वारा छोड़े गए शून्य को भरने के इरादे का एक संकेत था.
बिम्सटेक में भारत की नए सिरे से दिलचस्पी
भारत के लिए, बिम्सटेक अपने एक्ट ईस्ट और नेबरहुड पॉलिसी यानी पड़ोसी देशों को ध्यान में रखकर काम करने की अनुमति देता है. यह एक ओर जहां अपने आप में एक लाभ है वहीं इस के ज़रिए भारत को इंडो-पैसिफिक में हो रहे घटनाक्रम को अपने रणनीतिक दृष्टिकोण के साथ ढालने की अनुमति भी देता है. बिम्सटेक में भारत की नए सिरे से दिलचस्पी ने कई मायनों में इस समूह का कायाकल्प किया है. सार्क शिखर सम्मेलन को रद्द करने के बाद आयोजित 2016 ब्रिक्स-बिम्सटेक आउटरीच शिखर सम्मेलन (BRICS-BIMSTEC Outreach Summit) नई दिल्ली द्वारा इस समूह को प्रोत्साहित करने और सार्क द्वारा छोड़े गए शून्य को भरने के इरादे का एक संकेत था. साल 2019 में प्रधानमंत्री पद के शपथ समारोह के लिए भारत ने बिम्सटेक नेताओं को आमंत्रित करना चुना.
इसके अलावा, भारत ने बिम्सटेक के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने में अपनी रुचि का संकेत दिया जब तत्कालीन नव नियुक्त विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने बिम्सटेक देशों के बीच “ऊर्जा, मानसिकता और संभावना” के बारे में बात की. सार्क की विफलता के कारण, भारत-पाक शत्रुता को देखते हुए, भारत ने भारत-प्रशांत क्षेत्र में अपनी पहुंच और उपस्थिति बढ़ाने के लिए बिम्सटेक देशों की ओर रुख किया है. भारत की विदेश नीति की इस बात को लेकर आलोचना की जाती है कि वह दुनिया में जारी सत्ता की प्रतिद्वंद्विता में घुलमिल जाती है. इसने भारत को एक वैश्विक रूप से अपनी पहचान साबित करने और वैश्विक नेता बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को साकार करने से रोका है. शीत युद्ध के दौरान, भारत की विदेश नीति पूरी तरह से दो शक्ति गुटों के बीच प्रतिद्वंद्विता से निपटने पर टिकी रही.
शीत युद्ध की समाप्ति ने भारत को अपनी विदेश नीति को फिर से जांचने के लिए मजबूर किया और अमेरिका ने इसमें केंद्र की स्थिति ग्रहण की. आज, भारत की विदेश नीति मुख्य रूप से अमेरिका और चीन के शक्ति गठजोड़ से संबंधित है. हालांकि, यह चीन से जुड़ी चिंता भी है जिसने भारत को अपना ध्यान मुख्य रूप से अमेरिका से हटाकर छोटे और मध्यम शक्ति वाले देशों पर केंद्रित करने को मजबूर किया है. इस ज़रूरत ने भारत को अन्य इंडो-पैसिफिक देशों, विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशिया की ओर रुख करने प्रेरित किया है.
बिम्सटेक हिंद-प्रशांत में भारत की सुरक्षा चिंताओं के संबंध में क़दम उठाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो गया. इसने भारत को आसियान के साथ अपने जुड़ाव के बाहर दक्षिणपूर्व में अपना आधार बनाने के लिए उपयुक्त मौका और समय दिया है.
इस तरह बिम्सटेक हिंद-प्रशांत में भारत की सुरक्षा चिंताओं के संबंध में क़दम उठाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो गया. इसने भारत को आसियान के साथ अपने जुड़ाव के बाहर दक्षिणपूर्व में अपना आधार बनाने के लिए उपयुक्त मौका और समय दिया है. इस समूह के लिए, भारत अनौपचारिक रूप से एक नेता है क्योंकि इस समूह को सक्रिय बनाने के लिए ज़रूरी क़दम बहुत हज तक भारत की इच्छा पर निर्भर करते हैं. यह भारत के लिए अपने पड़ोसियों के साथ फिर से जुड़ने और इस क्षेत्र में ‘बड़े भाई’ यानी ‘बिग ब्रदर’ होने की अपनी छवि को सुधारने का भी अवसर है. अपने पड़ोस और विस्तारित पड़ोस में भारत की छवि का अधिकांश हिस्सा महत्वपूर्ण मुद्दों और वर्चस्ववादी कार्रवाइयों से ग्रस्त है. बिम्सटेक की क्षमता भारत को आसियान के साथ संबंधों को मज़बूत करने की संभावना प्रदान करती है और इसका उलट भी उतना ही सच है.
जहां एक ओर बिम्सटेक उल्लेखनीय रूप से विकास के लिए असंख्य अवसरों और स्थितियों को प्रोत्साहित करता है, वहीं सदस्य देशों के बीच के अलग-अलग द्विपक्षीय संबंधों ने भी संगठन के कामकाज में बाधा डाली है. रोहिंग्या संकट पर बांग्लादेश-म्यांमार विवाद, भारत-नेपाल सीमा मुद्दे, और भारत-श्रीलंका में मछली पकड़ने और मछुआरों को हिरासत में लेने पर मतभेद ने संगठन के कामकाज को ढीला और विलंबित बनाया है. राष्ट्रों के बीच अपने-अपने स्तर पर बढ़ते द्विपक्षीय संबंधों ने भी इस संगठन के लिए एकजुट होकर महत्वपूर्ण योगदान देने की उनकी रुचि को कम कर दिया है.
आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से जूझते देश
पिछले सालों में, अलग-अलग देशों ने द्विपक्षीय या बहुपक्षीय पहलों (भारत-म्यांमार-थाईलैंड राजमार्ग परियोजना, कलादान नदी परियोजना, और भूटान बांग्लादेश भारत नेपाल पहल) की सफलता सुनिश्चित करने के लिए अपनी ऊर्जा का निर्देशन किया है, और इस के चलते इस समूह के भागीदार देशों के बीच ठोस भागीदारी नहीं बन पाई है. इन देशों की घरेलू स्थिति भी महत्वपूर्ण ख़तरा साबित हो सकती है. बिम्सटेक क्षेत्र हथियारों और नशीले पदार्थों की तस्करी से ग्रस्त है जो भारत के पूर्वोत्तर में अस्थिर स्थिति को और बढ़ा देता है.
रोहिंग्या संकट पर बांग्लादेश-म्यांमार विवाद, भारत-नेपाल सीमा मुद्दे, और भारत-श्रीलंका में मछली पकड़ने और मछुआरों को हिरासत में लेने पर मतभेद ने संगठन के कामकाज को ढीला और विलंबित बनाया है.
वर्तमान श्रीलंकाई आर्थिक संकट, म्यांमार में विद्रोही समूह, और म्यांमार और थाईलैंड में ट्रेड यूनियनों के मुद्दे का इस समूह के तौर तरीकों पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है और यह इसकी पहल व वास्तविकताओं पर रोक लगा सकता है. भारत के लिए, पूर्वोत्तर में उग्रवादी गतिविधियां इस समूह से जुड़ी उस पहल व सफलता के लिए ख़तरा हैं. सदस्य देशों की भागीदारी भी चीन के साथ उनके संबंधों से बंधी हुई है. केवल भूटान और भारत किसी भी रूप में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का हिस्सा नहीं हैं. रूस-यूक्रेन संकट के साथ, चीन एशिया में बीआरआई परियोजना पर अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए बाध्य है. यह भारत के लिए चीन द्वारा अपने पड़ोसी देशों पर नए सिरे से और ठोस तरीके से ध्यान देने की स्थिति पैदा करता है.
बिम्सटेक को और अधिक प्रासंगिक की बनाने ज़रूरत
बिम्सटेक को और अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए यह ज़रूरी है कि वह इस क्षेत्र में निवेश करने के इच्छुक क्षेत्रीय स्तर पर समान विचारधारा वाले भागीदारों को शामिल करे. यहां तक कि मलेशिया, सिंगापुर, फिलीपींस और कंबोडिया जैसे आकर्षक देशों से भी इसकी गतिविधियों का विस्तार हो सकता है. इसके साथ ही, बिम्सटेक को क्षेत्र के बाहर अन्य समूहों में ले जाना भी महत्वपूर्ण है. ऐसी ही एक अनुकूल साझेदारी क्वाड के साथ हो सकती है.
इससे उन्हें भारत और चीन दोनों के साथ-साथ अमेरिका के खिलाफ संतुलन बनाने का मौका भी मिलता है. जबकि बिम्सटेक गतिविधियों का ध्यान आमतौर पर पर्यावरण और आपदा प्रबंधन पर रहा है, अन्य क्षेत्रों में पहल को अंतिम रूप देना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. ऐसा ही एक क्षेत्र वित्तीय और आर्थिक विनिमय है, जिसके लिए मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देना आवश्यक है. भारतीय व्यापारिक समूहों ने इस क्षेत्र में व्यवहार करने में स्पष्ट रुचि दिखाई है, जिनमें से 94 प्रतिशत ने फिक्की सर्वेक्षण में इसके पक्ष में मतदान किया है. इसके अलावा, समूह को अपनी गतिविधियों को समुद्र स्थल तक विस्तारित करने और ‘नीली अर्थव्यवस्था’ के विकास पर नीतियां बनाने पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ इस क्षेत्र के संबंध को देखते हुए, समुद्री सुरक्षा पर संवाद बढ़ाना और भविष्य में जुड़ाव के लिए कोड स्थापित करना समुद्र में चीन की रणनीतिक यात्राओं का मुकाबला करने में मददगार हो सकता है.
भारतीय व्यापारिक समूहों ने इस क्षेत्र में व्यवहार करने में स्पष्ट रुचि दिखाई है, जिनमें से 94 प्रतिशत ने फिक्की सर्वेक्षण में इसके पक्ष में मतदान किया है. इसके अलावा, समूह को अपनी गतिविधियों को समुद्र स्थल तक विस्तारित करने और ‘नीली अर्थव्यवस्था’ के विकास पर नीतियां बनाने पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है.
इसके कामकाज के संदर्भ में, एक प्रमुख चुनौती उपर्युक्त उपायों को करने के लिए अपेक्षित आर्थिक संबल हासिल करना है. संगठन को अपनी आंतरिक संरचना में सुधार करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि वह निर्णय लेने और लागू करने में सक्षम हो सके. इसके अभाव में, बिम्सटेक काम में देरी और और निष्क्रियता का शिकार होता रहेगा. आगामी शिखर सम्मेलन से इस समूह को और गति मिलने की उम्मीद है, खासतौर पर महामारी के कारण पैदा हुई शिथिलता के बाद. हालांकि, यह एशिया में शक्ति संतुलन में बदलाव, यूक्रेन में रूसी आक्रमण के लिए दुनिया की प्रतिक्रिया और तेज़ी से विकासशील दुनिया के मद्देनज़र विकसित होते राष्ट्रीय हितों को देखते हुए इस समूह की ताकत का परीक्षण भी करेगा.
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