Author : Harsh V. Pant

Originally Published नव भारतटाइम्स Published on Dec 31, 2024 Commentaries 0 Hours ago

भारत के सुरक्षा तकाजों के लिहाज से 2024 में, चीन के साथ सीमा तनाव कम हुआ, लेकिन जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हिंसा बढ़ी. इसके साथ ही, वैश्विक मंच पर इस्राइल और रूस ने अपनी स्थिति मजबूत की, जबकि भारतीय सुरक्षा नीति इन घटनाओं से जुड़े महत्वपूर्ण सबक ले रही है.

नए साल में भारत के लिए रक्षा सुधार क्यों है जरूरी?

भारत के सुरक्षा तकाजों के लिहाज से देखा जाए तो यह साल उथल-पुथल भरा रहा. चीन के साथ रिश्तों में तनाव कम हुआ, जम्मू-कश्मीर में हिंसक घटनाएं बढ़ीं और यूक्रेन-रूस व इस्राइल-हमास-हिजबुल्लाह युद्धों के कुछ ऐसे नए पहलू उभरे, जो भारत के लिए खास अहमियत रखते हैं.

सीमा विवाद पर भारत और चीन के बीच सहमति बनने के बाद दोनों पक्षों में समझौते हुए. खासकर अक्टूबर 2024 में हुआ समझौता सबसे महत्वपूर्ण है, जिसमें डेमचोक और देपसांग में आपसी गश्त और पशुओं के चरने के अधिकारों की बहाली शामिल रही. दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों (SR) के बीच मुलाकात हुई, जो पिछले पांच साल में हुई पहली मुलाकात है. हालांकि इस बैठक के बाद जारी किए गए रीडआउट एक-दूसरे से अलग हैं, जो इस बात का सबूत हैं कि दोनों मुल्कों के बीच खाई अभी पूरी तरह पाटी नहीं जा सकी है.

नजरिये का फर्क

चीन के अपने स्टैंड से पीछे हटने के बावजूद ढांचागत समस्याएं संबंधों को सामान्य बनाने में आड़े आ रही हैं. इनमें हिंद प्रशांत क्षेत्र पर दोनों देशों के नजरिये का फर्क भी शामिल है. पेइचिंग इस क्षेत्र को अपने वर्चस्व के नजरिये से देखता है, जबकि नई दिल्ली का झुकाव यहां बहुध्रुवीयता बनाए रखने की ओर है. यदि भारत चाहता है कि इस क्षेत्र में चीन का मौजूदा अपेक्षाकृत लचीला रुख कायम रहे, तो उसे चीन पर दबाव बनाए रखना होगा.

 साफ है कि चीन और पाकिस्तान अपने साझा दुश्मन - भारत के खिलाफ आपसी तालमेल बनाकर चल रहे हैं. आतंकवादी कार्रवाइयों में पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रशिक्षित विशेष अभियान बलों के हमले भी शामिल हैं, जो भारतीय सेना की गश्ती इकाइयों को निशाना बनाकर अंजाम दिए गए थे. 

दूसरी ओर, जम्मू और कश्मीर में आतंकवादी हिंसा में वृद्धि देखी गई. वह भी ठीक उसी समय जब भारत और चीन के बीच तनाव कम हो रहा था. यह कोई संयोग नहीं है. साफ है कि चीन और पाकिस्तान अपने साझा दुश्मन - भारत के खिलाफ आपसी तालमेल बनाकर चल रहे हैं. आतंकवादी कार्रवाइयों में पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रशिक्षित विशेष अभियान बलों के हमले भी शामिल हैं, जो भारतीय सेना की गश्ती इकाइयों को निशाना बनाकर अंजाम दिए गए थे. कुछ हमलों का टारगेट जम्मू में इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट पर काम कर रहे गैर-कश्मीरी नागरिक थे.

राहत के आसार नहीं

भारत के लिए मुश्किल यह है कि उसे इन दोनों ही मोर्चों पर कोई बड़ी राहत मिलने के आसार लंबे समय तक नहीं दिख रहे. यदि एक मोर्चे पर तनाव किसी वजह से कम होता है तो लगभग तय माना जा सकता है कि दूसरे मोर्चे पर अस्थिरता और तनाव में बढ़ोतरी हो जाएगी. यह स्थिति भारत को सतर्कता बनाए रखने को मजबूर करती है और बताती है कि उसे दो सक्रिय सैन्य मोर्चों पर लगातार डटे रहना है भले ही वहां तनाव समय-समय पर कम-ज्यादा होता रहे.

इनसे अलग एक बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत के लिए इस्राइल और ईरान व उसके प्रॉक्सी के बीच चल रहे युद्ध में भी कोई बड़ा सबक है? ईरान के सबसे दमदार क्षेत्रीय प्रॉक्सी हिजबुल्लाह के नेतृत्व का सफाया करके और बड़ी संख्या में उसके लड़ाकों को जख्मी करके इस्राइल ने दिखा दिया है कि उसे क्यों अजेय शक्ति माना जाता है. उसकी इस कामयाबी के पीछे साम, दाम, दंड, भेद- हर तरह के तरीके इस्तेमाल करके दुश्मन को ठिकाने लगाने की उसकी क्षमता है. उसकी तैयारी किस हद तक होती है, इसका अंदाजा इस बात से लगता है कि उसकी खुफिया एजेंसी ने मौजूदा युद्ध में एक दशक पहले मिले उस मौके का इस्तेमाल किया जब सीरियाई गृहयुद्ध के दौरान बशर अल-असद के शासन की रक्षा करने के लिए लड़ाके भेजते हुए हिजबुल्लाह ने अपने कमांड, कंट्रोल और कम्युनिकेशन (C3) को उजागर होने दिया था. जाहिर है, मामला सिर्फ छल छद्मों के चालाकी भरे इस्तेमाल का नहीं, धैर्यपूर्वक सही मौके का इंतजार करने का भी है.

इन सबका मिला-जुला नतीजा है कि इस्राइल मजबूत होकर उभरा और हिजबुल्लाह पर अपनी श्रेष्ठता स्थापित करते हुए इस क्षेत्र में ईरान का दबदबा कमजोर करने में सफल रहा है. हालांकि इसके बावजूद अभी तक इस युद्ध में उसकी जीत नहीं हुई है, लेकिन फिर भी उसने अपना सिक्का जरूर जमा लिया है जो कुछ महीने पहले तक सोचना भी मुश्किल था.

 रूसियों ने अपने C3 की गोपनीयता बनाए रखना और रसद भंडार तथा आपूर्ति को एक जगह इकट्ठा करने से बचते हुए इन्हें निगाहों में आने से रोकना सीखा है तो यूक्रेन ने कम क्षमता के बावजूद यह दिखा दिया है कि छोटी-छोटी यूनिट एक्शन के जरिए भी वह युद्ध में प्रभावी साबित हो सकता है. 

रूस-यूक्रेन युद्ध में भी यह देखने लायक है कि कैसे दोनों ही पक्ष अपने हालात और संसाधनों का अपने पक्ष में बेहतरीन इस्तेमाल कर रहे हैं. रूसियों ने अपने C3 की गोपनीयता बनाए रखना और रसद भंडार तथा आपूर्ति को एक जगह इकट्ठा करने से बचते हुए इन्हें निगाहों में आने से रोकना सीखा है तो यूक्रेन ने कम क्षमता के बावजूद यह दिखा दिया है कि छोटी-छोटी यूनिट एक्शन के जरिए भी वह युद्ध में प्रभावी साबित हो सकता है. यह अलग बात है कि इन सबके बावजूद संसाधन और क्षमता में अंतर की बदौलत रूस भारी पड़ रहा है.

रक्षा सुधारों पर हो जोर

कुल मिलाकर स्थिति यह है कि 2025 में प्रवेश करते हुए रूस और इस्राइल पहले के मुकाबले ज्यादा मजबूत दिख रहे हैं. भारत के लिए इसमें सबक है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपना दखल रखने की अनिवार्य शर्त है सैन्य क्षमता. और इसलिए, महत्वपूर्ण रक्षा सुधारों को ज्यादा जोश के साथ आगे बढ़ाना होगा. इसका कोई विकल्प नहीं है.

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