भारत की छवि दुनिया में हथियारों के सबसे बड़े ख़रीदार देश की रही है. लेकिन, पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत धीरे धीरे हथियारों की ख़रीद के मामले में आगे बढ़ रहा है. अपने घरेलू रक्षा निर्माण की क्षमता विकसित करने को प्राथमिकता देकर, निर्यात से जुड़े नियमों के ढांचे में उदारीकरण लाकर और पूरी सरकार के रुख़ को इस दिशा में केंद्रित करके भारत, धीरे धीरे अपने रक्षा निर्यात में इज़ाफ़ा कर रहा है.
2023 में भारत ने अपने रक्षा निर्यात का सबसे ऊंचा मकाम हासिल किया था, जब उसने 15 हज़ार 930 करोड़ रुपये मूल्य या फिर लगभग 5 अरब डॉलर का निर्यात किया था. ये 2016-17 में उसके 1521 करोड़ रुपए के रक्षा निर्यात से दस गुना अधिक था. भारत के लगातार विकसित होते सैन्य औद्योगिक ढांचे के लिए ये एक मील का पत्थर था. 2013-14 में भारत केवल 686 करोड़ रुपए का मामूली सा रक्षा निर्यात करता था.
रक्षा निर्यात बढ़ाने के लिए उठाए गए क़दम
बदलाव का सबसे बुनियादी पहलू तो रक्षा निर्यात का लाभ उठाने और हथियारों के आयात पर भारत की चुनौती से निपटने के लिए किया जा रहा संस्थागत प्रयास है. पहले की यथास्थिति वाली नीति में सैन्य संसाधनों के निर्माण के बजाय उनको ख़रीदने को प्राथमिकता दी जाती थी. अब सरकार रक्षा निर्माण का मज़बूत स्वदेशी ढांचा खड़ा करने और इसके ज़रिए लंबी अवधि में निर्यात को बढ़ावा देने की दोहरी नीति पर ज़ोर देकर, उस पुरानी सोच को चुनौती दे रही है.
भारत के लगातार विकसित होते सैन्य औद्योगिक ढांचे के लिए ये एक मील का पत्थर था. 2013-14 में भारत केवल 686 करोड़ रुपए का मामूली सा रक्षा निर्यात करता था.
धीरे धीरे बढ़ रहे रक्षा निर्यात के केंद्र में रक्षा उत्पादन एवं निर्यात प्रोत्साहन रणनीति (DPEP) 2020 है. DPEP ने इस एजेंडे पर सरकार के ध्यान केंद्रित करने का रुख़ और रणनीति तय की है. इसके लिए रक्षा निर्माण को बढ़ावा देने और निर्यात के ठोस लक्ष्य तय करने के लिए DPEP ने स्पष्ट रूप-रेखा तैयार की है. ख़ास तौर से सरकार का इरादा ये है कि 2025 तक देश के रक्षा निर्यात को 5 अरब डॉलर तक पहुंचाया जाए.
DPEP के साथ स्वदेशीकरण की कई सकारात्मक सूचियां भी तैयार की गई हैं, जिनके तहत कुछ ख़ास तरह के रक्षा उपकरणों को केवल स्वदेशी निर्माताओं से ख़रीदने की शर्त रखी गई है. इसे मुख्य रूप से घरेलू निर्माताओं के लिए अवसर बढ़ाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. घरेलू सैन्य निर्माण क्षमता को बढ़ाने के लिए एक और क़दम के तहत रक्षा क्षेत्र की पूंजीगत ख़रीद के बजट का 75 प्रतिशत हिस्सा घरेलू उद्योगों के लिए आरक्षित किया गया है.
वैसे तो ये उपाय घरेलू रक्षा उद्योग की क्षमता और दायरे को बढ़ाने के लिए लागू किए गए हैं. मगर सरकार ने रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने और सरकारी व्यवस्था की लालफीताशाही द्वारा उनको रोकने की कोशिशें नाकाम करने के लिए लाइसेंस और प्रमाणित करने के नियमों में भी काफ़ी रियायतें दी हैं.
इसके अलावा, रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार के सभी अंगों द्वारा प्रयास करने के तरीक़े को भी विकसित किया जा रहा है. दूतावासों के ज़रिए भारत के रक्षा उपकरणों की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए विदेश मंत्रालय को भी तालमेल का हिस्सा बनाया गया है. सरकार ने भारत से अफ्रीका को रक्षा निर्यात बढ़ाने के लिए कई अफ्रीकी देशों को रियायती दरों पर क़र्ज़ देना भी शुरू किया है.
इन उपायों की वजह से रक्षा निर्यात का ग्राफ लगातार ऊपर चढ़ रहा है. सरकार के आंकड़े दिखाते हैं कि 2014-15 में भारत का कुल रक्षा निर्यात 1910 करोड़ रुपए का था. 2015-16 में ये रक़म बढ़कर 2059.18 करोड़ पहुंच गई. लेकिन उसके बाद के वित्त वर्ष में भारत का रक्षा निर्यात गिरकर 1521 करोड़ रुपए ही रह गया.
घरेलू सैन्य निर्माण क्षमता को बढ़ाने के लिए एक और क़दम के तहत रक्षा क्षेत्र की पूंजीगत ख़रीद के बजट का 75 प्रतिशत हिस्सा घरेलू उद्योगों के लिए आरक्षित किया गया है.
इसके नतीजे में निर्यात से राजस्व आमदनी का ग्राफ 2017-18 में बढ़कर 4,682 करोड़ रुपए पहुंच गया और 2018 में इसमें ज़बरदस्त उछाल आया और ये रक़म 10 हज़ार 745 करोड़ रुपए पहुंच गई. कोविड-19 की वजह से अगले दो वर्षों के दौरान रक्षा निर्यात में कमी देखी गई. 2019-20 में रक्षा निर्यात का राजस्व 9,115 करोड़, और 2020-21 में 8,434 करोड़ रह गया.
Figure 1: 2014 से 2023 के बीच भारत का रक्षा निर्यात
हालांकि, इन उपायों के चलते रक्षा निर्यात बढ़ा भले हो, मगर अभी भी भारत हथियारों के आयात में दुनिया में सबसे आगे है. भारत अभी भी दुनिया के 20 सबसे बड़े हथियार निर्यातक देशों की लिस्ट से बाहर है. स्टॉकहोम पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के आंकड़ों के मुताबिक़, 2013 से 2017 के बीच दुनिया के कुल हथियार आयात में भारत का हिस्सा 12 प्रतिशत था. उसके बाद के वर्षों के दौरान यानी 2018-22 के बीच, दुनिया के कुल हथियार आयात में भारत की हिस्सेदारी मामूली रूप से कम होकर 11 प्रतिशत रह गई. इससे पता चलता है कि भारत भले ही हथियारों के निर्यात के मामले में सही दिशा में बढ़ रहा है. लेकिन, आयात पर निर्भरता कम करने के लिए उसे अभी बहुत लंबा सफ़र तय करना है.
निर्यात में बढ़ोत्तरी की रफ़्तार बनाए रखना
निर्यात में बढ़ोतरी को सही दिशा में आगे बढ़ाने के लिए कुछ मसलों से निपटने की ज़रूरत है. रक्षा निर्यात के मामले में रक्षा मंत्रालय, तीनों सेनाओं, निजी निर्माताओं और रक्षा निर्माण में लगी सरकारी कंपनियों के बीच तालमेल और बढ़ाने की ज़रूरत है. ख़ास तौर से हथियारों के निर्यात की प्रक्रियाओं और उन घरेलू रक्षा उत्पादों की पहचान करने में जिनको बाहर के बाज़ार में प्रभावी ढंग से प्रचारित किए जा सके.
कई समितियों और रिपोर्टों ने पहले इस मामले में सुझाव प्रकाशित किए हैं, जिन पर बहुत कम काम किया गया है. ऐसा लग रहा है कि मौजूदा ढांचे में उन सुझावों को लागू करने पर ज़ोर दिया जा रहा है.
इसके अलावा, रक्षा निर्यात को लेकर संस्थागत और नीतिगत रूप से पारंपरिक चलताऊ नज़रिया बना हुआ है. कई समितियों और रिपोर्टों ने पहले इस मामले में सुझाव प्रकाशित किए हैं, जिन पर बहुत कम काम किया गया है. ऐसा लग रहा है कि मौजूदा ढांचे में उन सुझावों को लागू करने पर ज़ोर दिया जा रहा है. हालांकि, नीतिगत स्तर पर तवज्जो देने का सिलसिला कम न हो, इसे जारी रखना चाहिए.
वैसे तो भारत ने अपने रक्षा निर्यात के सफ़र में धीरे धीरे काफी सफलताएं अर्जित की हैं. लेकिन, दुनिया के बड़े हथियार निर्यातक देशों की क़तार में शामिल होने के लिए भारत को अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है. इस समय भारत के रक्षा निर्यात के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एक प्रोत्साहन देने वाला संस्थागत ढांचा खड़ा कर लिया है. हालांकि, भारत को रक्षा निर्यात को 5 अरब डॉलर तक पहुंचाने के लिए नए नए विचारों पर काम करने के साथ साथ सुधारों का सिलसिला भी जारी रखना होगा, तभी वो दुनिया के बीस सबसे बड़े हथियार निर्यातक देशों में से एक बन सकेगा, जो उसकी अर्थव्यवस्था के साथ साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी बहुत अहम है.
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