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ऐसा लग रहा है कि ट्रंप आर्थिक और सामरिक पहलुओं को अलग-अलग तराजू पर तौल रहे हैं, लेकिन व्यापक संदर्भों में इन्हें अलग करके नहीं देखा जा सकता. अक्सर ये एक-दूसरे के पूरक ही होते हैं. भारत और अमेरिका दोनों को यह समझना होगा कि व्यापार समझौते में देरी न केवल दोनों देशों के हितों को प्रभावित करेगी, बल्कि द्विपक्षीय रिश्तों की दूरगामी दशा-दिशा पर भी असर डालेगी.
डोनाल्ड ट्रंप के एशिया दौरे को लेकर बहुत उत्सुकता थी. इस दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी मुलाकात पर भी नजरें टिकी हुई थीं. यह बहुत स्वाभाविक भी था. ट्रंप का एशिया दौरा एक ऐसे समय में हुआ जब उनकी विदेश नीति और दृष्टिकोण को लेकर कहा जा रहा था कि उसमें अंतर्मुखी भाव बढ़ रहा है. इसी तरह तमाम किंतु-परंतु के बीच जिनपिंग के साथ उनकी मुलाकात ने ट्रेड वार को लेकर छिड़ रहे बादलों को कुछ छांटने का काम किया. इतना ही नहीं, अमेरिका की ओर से इस बैठक को ‘जी-2’ के रूप में प्रचारित करना भी बहुत कुछ कहता है.
मौजूदा वैश्विक ढांचे में दो सबसे शक्तिशाली देशों अमेरिका और चीन को मिलाकर गढ़े गए जी-2 समूह का उपयोग वैसे तो अनौपचारिक रूप से होता रहा है, लेकिन व्हाइट हाउस की ओर से इसका आधिकारिक प्रयोग इसे औपचारिक मान्यता प्रदान करता प्रतीत हो रहा है. हालांकि दक्षिण कोरिया में हुई ट्रंप-जिनपिंग मुलाकात के अभी कोई विशेष निहितार्थ तो नहीं निकाले जा सकते, लेकिन खासतौर से ट्रंप का रवैया इसे लेकर बहुत उत्साहित दिख रहा है.
अमेरिकी खेमा यह दावा भी कर रहा है कि दोनों नेताओं की बातचीत के बाद चीन ने रेयर अर्थ तत्वों के उपयोग से जुड़ी अपनी सख्त नीति में कुछ नरमी के संकेत दिए हैं, लेकिन चीन की ओर से कुछ ठोस नहीं कहा गया है.
वर्ष 2019 के बाद जिनपिंग से पहली बार मिलने के बाद ट्रंप ने न केवल चीन पर लगाए टैरिफ में कुछ कटौती की, बल्कि अपने चीन जाने का एलान भी किया. अमेरिकी खेमा यह दावा भी कर रहा है कि दोनों नेताओं की बातचीत के बाद चीन ने रेयर अर्थ तत्वों के उपयोग से जुड़ी अपनी सख्त नीति में कुछ नरमी के संकेत दिए हैं, लेकिन चीन की ओर से कुछ ठोस नहीं कहा गया है. इससे पहले आसियान सम्मेलन के लिए ट्रंप का मलेशिया दौरा चर्चा में रहा. इससे वे धारणाएं ध्वस्त हुईं कि अमेरिका एशिया में अपनी सक्रियता सीमित करना चाहता है.
आसियान के लिए भी ट्रंप की मेजबानी महत्वपूर्ण हो गई थी, क्योंकि इस साल ईस्ट तिमोर के जुड़ाव के साथ उसके सदस्य देशों की संख्या बढ़कर 11 हो गई है. टैरिफ संबंधी तमाम अनिश्चितताओं के दौर में निर्यात केंद्रित आसियान अर्थव्यवस्थाओं के लिए अपने सबसे बड़े खरीदार अमेरिका के साथ हिसाब-किताब दुरुस्त रखना भी आवश्यक हो गया था. अपने दौरे के साथ ट्रंप ने दोहराया कि आसियान हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के लिए एक अहम धुरी बना रहेगा.
दक्षिण चीन सागर, म्यांमार के घटनाक्रम और हाल में कंबोडिया-थाइलैंड युद्ध जैसे मुद्दे भी समय-समय पर इन देशों को आमने-सामने करते आए हैं. ऐसे में ट्रंप का दौरा उनके बीच कुछ सहमति बनाने का माध्यम भी बना. इस दौरान ट्रंप ने थाइलैंड और कंबोडिया के बीच औपचारिक युद्ध विराम समझौता कराया.
बदली हुई परिस्थितियों में आसियान देशों के लिए भी यह जरूरी हो चला था कि वे अमेरिका को साधे रखने में सफल हों. इस मंशा को समझने के लिए हमें आसियान के मूल उद्देश्य को समझना होगा. वर्ष 1967 में एक तरह से अमेरिकी नेतृत्व में इसके गठन की मंशा साम्यवाद को चुनौती देना था. समय के साथ आसियान देश आर्थिक रूप से मजबूत होते गए. इस दौरान चीन के साथ उनका आर्थिक जुड़ाव बढ़ता गया. हालांकि सामरिक मोर्चे पर अमेरिका के साथ उसकी सक्रियता कायम रही. वैसे तो आसियान देशों की मूल रूप से यही रणनीति रही है कि वे आर्थिक गतिविधियों और समन्वय पर अधिक ध्यान केंद्रित करेंगे और किसी देश के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, लेकिन अमेरिका और चीन के बीच बढ़ रही खेमेबाजी ने आसियान के समक्ष दुविधा बढ़ाई है.
इस दुविधा का कारण यह है कि संगठन में कुछ देशों का झुकाव अगर अमेरिका की तरफ है तो कुछ चीन की ओर झुकाव रखते हैं. दक्षिण चीन सागर, म्यांमार के घटनाक्रम और हाल में कंबोडिया-थाइलैंड युद्ध जैसे मुद्दे भी समय-समय पर इन देशों को आमने-सामने करते आए हैं. ऐसे में ट्रंप का दौरा उनके बीच कुछ सहमति बनाने का माध्यम भी बना. इस दौरान ट्रंप ने थाइलैंड और कंबोडिया के बीच औपचारिक युद्ध विराम समझौता कराया. उन्होंने अमेरिका के लिए आसियान की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा भी कि वह एशिया में अमेरिकी रणनीति का केंद्र बना रहेगा.
आसियान सम्मेलन के बाद ट्रंप जापान पहुंचे और अमेरिका के पारंपरिक सहयोगी इस देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के साथ कई मुद्दों पर चर्चा की. इस दौरान रेयर अर्थ तत्वों के मामले में चीनी वर्चस्व को चुनौती देने के लिए उन्होंने जापान के साथ सहयोग बढ़ाने की बात भी कही. यह किसी से छिपा नहीं है कि रेयर अर्थ तत्वों के मोर्चे पर चीन किस तरह अपना वर्चस्व स्थापित कर चुका है. खासतौर से वह रेयर अर्थ प्रसंस्करण का एक पर्याय बन चुका है. इसी स्थिति का लाभ उठाते हुए कुछ दिन पहले चीनी वाणिज्य मंत्रालय ने रेयर अर्थ बिक्री को लेकर मनमाने नियम-कायदे तय करने की मंशा भी दिखाई है.
भारत और अमेरिका दोनों को यह समझना होगा कि व्यापार समझौते में देरी न केवल दोनों देशों के हितों को प्रभावित करेगी, बल्कि द्विपक्षीय रिश्तों की दूरगामी दशा-दिशा पर भी असर डालेगी.
अगर चीन की यह मंशा सफल हो जाती है तो दुनिया में स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों की आपूर्ति शृंखला और कई अन्य-अनेक कार्यों की नियति चीन ही निर्धारित करने लगेगा. उसकी काट के लिए ही ट्रंप ने जापान को रेयर अर्थ परिदृश्य पर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. हालांकि जापान दौरे के बाद जिनपिंग के साथ मुलाकात में उनकी ओर से संकेत मिले कि चीन रेयर अर्थ के मामले में रियायत की राह पर ही चलेगा. हालांकि ट्रंप के मनमाने दावे और बीजिंग की नपी-तुली रणनीति को देखते हुए इस मामले में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा.
ट्रंप के दौरे से निकले संकेत भारत को भी बखूबी समझने होंगे. उसे वैश्विक परिस्थितियों में हो रहे परिवर्तनों के अनुसार स्वयं को ढालने पर ध्यान देना होगा. उसे अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर जल्द ही सहमति बनाने के प्रयास तेज करने होंगे. यह सही है कि ट्रंप के रवैये से ऐसे किसी समझौते को लेकर संदेह अधिक बढ़ गए हैं, लेकिन कहीं न कहीं कोई मार्ग तलाशना ही होगा. ऐसा लग रहा है कि ट्रंप आर्थिक और सामरिक पहलुओं को अलग-अलग तराजू पर तौल रहे हैं, लेकिन व्यापक संदर्भों में इन्हें अलग करके नहीं देखा जा सकता. अक्सर ये एक-दूसरे के पूरक ही होते हैं. भारत और अमेरिका दोनों को यह समझना होगा कि व्यापार समझौते में देरी न केवल दोनों देशों के हितों को प्रभावित करेगी, बल्कि द्विपक्षीय रिश्तों की दूरगामी दशा-दिशा पर भी असर डालेगी.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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