बड़े पैमाने पर महत्वाकांक्षी और अंतर्निहित अर्थव्यवस्था के अनुरूप, भारत की विदेश व्यापार नीति 2023 (एफटीपी 2023) 2030 तक भारत के निर्यात को 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने का एक रास्ता तय करने वाली है. यह लगभग इटली के 2022 के सकल घरेलू उत्पाद या भारत के 2014 के सकल घरेलू उत्पाद के आकार की बराबरी करने वाला महत्वाकांक्षी लक्ष्य है. 2023 और 2030 के बीच निर्यात में 2.6 गुना की वृद्धि हुई है. ऐसे में निर्यात की सालाना वृद्धि की दर 14.8 प्रतिशत होती है. ये अनुमान इस दशक के अंत तक भारत की जीडीपी वृद्धि की उम्मीदों सेट्रिलियन थोड़ा अधिक हैं. इसका कारण यह है कि भारत दो साल में जर्मनी और चार साल में जापान को पार करते हुए दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. यह नीति थोड़ा पीछे हटते हुए निर्यात के माध्यम से भारत के विकास की कहानी की नए सिरे से कल्पना करते हुए यह बताती है कि उद्यमियों और व्यवसायों को भरोसे में लेकर उनके साथ जुड़ाव साधकर इस निर्यात शक्ति का निर्माण किया गया है.
भारत की विदेश व्यापार नीति 2023 (एफटीपी 2023) 2030 तक भारत के निर्यात को 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने का एक रास्ता तय करने वाली है. यह लगभग इटली के 2022 के सकल घरेलू उत्पाद या भारत के 2014 के सकल घरेलू उत्पाद के आकार की बराबरी करने वाला महत्वाकांक्षी लक्ष्य है.
केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने जिस बड़ी तस्वीर की परिकल्पना की थी, वह उतनी ही स्पष्ट है, जिसकी जितनी स्पष्टता के साथ श्री गोयल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि को देखते हैं. यह देखकर भी सुकून मिलता है कि सरकार के कई अंग एक साथ काम करने के लिए एक समान दृष्टिकोण का उपयोग कर रहे हैं—उदाहरण के लिए, वे निर्यातकों के साथ वैसा ही संवाद साध रहे हैं, जैसा कि करदाताओं के साथ साधा जाता हैं. सरकार की नीतिगत कार्रवाइयों के अनुरूप ही अब निर्यात के मसले पर निर्यातकों से बातचीत हो रही है. इस मसले पर अब रिपोर्ट करने वाले नौकरशाहों के साथ बातचीत नहीं की जा रही है. सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करके मैन्युअल इंटरफेस अर्थात मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता को समाप्त करने का जो कार्य आयकर विभाग के साथ शुरू हुआ था वह अभी प्रगति पथ पर है. उम्मीद है कि सभी अनुपालन-प्रबंध मंत्रालयों तक यह बदलाव पहुंचना चाहिए. मसलन, एफटीपी2023 में आयातकों और निर्यातकों की मानवीय जांच को अब अपवादात्मक बना दिया गया है. अर्थात यह जांच अब नियमित नहीं रह जाएगी. इसी तरह, सरकार की ‘‘नामित एजेंसियों’’ द्वारा जारी किए गए मूल प्रमाण पत्र एक स्व-प्रमाणन तंत्र का रास्ता खोल देंगे. नीति में स्पष्ट कर दिया गया है कि इससे ट्रान्सैक्शन अर्थात लेन-देन की लागत कम करने में सहायता मिलेगी.
सरकार की नीतिगत कार्रवाइयों के अनुरूप ही अब निर्यात के मसले पर निर्यातकों से बातचीत हो रही है. इस मसले पर अब रिपोर्ट करने वाले नौकरशाहों के साथ बातचीत नहीं की जा रही है
औद्योगिक नीति 1991 के वक्तव्य से पहले वाले दौर में अनुमति मिलने से पहले तक सब कुछ प्रतिबंधित होता था. ऐसे में अब ‘फ्री अर्थात नि: शुल्क' का नियम आ जाने की वज़ह से जब तक किसी चीज को विनियमित नहीं किया जाता तब तक सब कुछ खुला होने को लेकर स्पष्टता आ गई है. इसकी वज़ह से अब सरकारी व्यापार उद्यमों के लिए यह स्पष्ट हो गया है कि कौन सी चीज निषिद्ध, प्रतिबंधित या सीमित है. हालांकि, नीति को अन्य नीति शाखाओं के साथ संबंधों के संदर्भ में एकीकृत किया गया है लेकिन संचार में कुछ ख़ामिया दिखाई दे रही है. नीति में सरकारी व्यापार उद्यमों तक सीमित वस्तुओं की सूची प्राप्त करने के लिए एक वेब लिंक (‘डाउनलोड’) की ओर इशारा किया गया है, लेकिन एक औसत विश्लेषक इसे ख़ोज नहीं पाता है.
भौगोलिक विशेषज्ञता और ई-कॉमर्स
एफटीपी2023 में एक जिला एक उत्पाद योजना के अनुरूप एक भौगोलिक विशेषज्ञता प्रोत्साहन को अंतर्निहित किया गया है. 750 करोड़ रुपये (91 मिलियन अमेरिकी डॉलर) या उससे अधिक मूल्य के सामान का उत्पादन करने वाले शहरों को निर्यात उत्कृष्टता (टीईई) वाले शहरों के रूप में अधिसूचित करने का फ़ैसला लिया गया है. ऐसे में इन शहरों को निर्यात प्रोत्साहन कोष में प्राथमिकता से राशि हासिल करने का अवसर मिलेगा. इस नीति में हथकरघा, हस्तशिल्प और कालीन के निर्यात को बढ़ावा देने की उम्मीद जताई गई है. पहले से मौजूद 39 टीटीई शहरों में चार नए शहरों (फरीदाबाद, मिजार्पुर, मुरादाबाद, और वाराणसी) को जोड़ने की वज़ह से अब टीईई के रूप में नामित शहरों की कुल संख्या 43 हो गई हैं. इस संख्या में तेजी से इज़ाफ़ा होने की संभावना है. जिलों को उत्पाद-विशिष्ट निर्यात हब बनने के लिए इसमें मौजूद बाधाओं को दूर करके उत्प्रेरित करने का भी उद्देश्य नीति में शामिल किया गया है. इसे जोड़कर देखे जाने पर यह साफ़ हो जाता है कि नई नीति छोटे उद्यमों और किसानों को वैश्विक बाज़ारों से जोड़ने की उम्मीद रखती है. लेकिन हमें यह नहीं पता कि किसानों को वैश्विक बाज़ार तक पहुंचाने के उद्देश्य में सरकार को कितनी सफ़लता मिलेगी. अब देखना यह है कि क्या किसान विकास की गाड़ी में सवार होंगे अथवा अतीत के बंधनों में जकड़े रहेंगे.
2030 तक 200-300 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ई-कॉमर्स निर्यात लक्ष्य को ध्यान में रखा जाए तो लक्ष्य की यह सीमा इतनी बड़ी है कि यह अर्थहीन हो जाती है. ऐसे में एफटीपी2023 ई-कॉमर्स हब और उनकी बैकएंड प्रक्रियाओं अथवा दूरस्थ प्रक्रियाओं को तय करने का एक रोडमैप अर्थात दिशा-निर्देश जारी करने की बात करती है. इसमें भुगतान समाधान, बुक-कीपिंग अर्थात हिसाब-किताब, रिटर्न पॉलिसी और एक्सपोर्ट एंटाइटेलमेंट अर्थात निर्यात अधिकार से जुड़ी प्रक्रियाएं शामिल हैं, जिन्हें लेकर दिशा-निर्देश जारी किये जाएंगे. इन दिशा-निर्देशों को तैयार करने के लिए गहन और अधिक गंभीर विचार की ज़रूरत है. इसे लेकर ही नीति में संभावित ‘‘व्यापक ई-कॉमर्स नीति’’ का संकेत दिया गया है. भविष्य के लिए तैयार ई-कॉमर्स व्यवस्था स्थापित करने के लिए भारत को भविष्य के लिए तैयार एक बेहतर अनुकूल नीति की आवश्यकता है. एफटीपी2023 ने इस आवश्यकता को पहचान लिया है.
अगले सात वर्षों में 12 प्रतिशत नॉमिनल अर्थात नाममात्र जीडीपी वृद्धि (7-8 प्रतिशत वास्तविक विकास और 4-5 प्रतिशत मुद्रास्फीति दर) का अनुमान भी लगाया जाए तो भी भारत की जीडीपी 2030 तक 3.31 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 7.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो जानी जाएगी. एफटीपी 2023 में इस अवधि के दौरान, निर्यात को 760 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर करने की बात की गई है. दूसरे शब्दों में, न केवल निर्यात बढ़ने की उम्मीद है, बल्कि सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में निर्यात का हिस्सा भी 23 प्रतिशत से बढ़कर 27 प्रतिशत होने का अनुमान है. चार परसेंटेज प्वाइंट अर्थात चार प्रतिशत अंक की वृद्धि हासिल करना असंभव नहीं है. लेकिन यह काफ़ी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि कैसे भारत वैश्विक निर्यात का केंद्र बनने के लिए अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक माहौल में बातचीत करेगा. इसी प्रकार यह बात इस पर भी आधारित होगी कि आपूर्ति श्रृंखलाओं में पड़े खलल का भारत कितना लाभ उठा पाता है, क्योंकि कार्पोरेट जगत की बड़ी कंपनियां अब इन आपूर्ति श्रृंखलाओं को चीन की बजाय भारत में स्थानांतरित करने की इच्छुक दिखाई दे रही हैं. दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए, 27 प्रतिशत को एक प्रतिस्पर्धी संख्या कहा जाएगा. इस समय वैश्विक औसत 28.9 प्रतिशत है, जिसमें अमेरिका (यूएस) का हिस्सा 10.9 प्रतिशत, चीन 20.0 प्रतिशत और जापान का योगदान 18.4 प्रतिशत का है. 47.0 प्रतिशत योगदान के साथ जर्मनी इसमें अपवाद कहा जा सकता है.
हालांकि यह तो तय है कि दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की जीडीपी में निर्यात का प्रतिशत बढ़ाने के लिए दो स्तंभों की ज़रूरत होगी. सबसे पहला स्तंभ निर्यात की संरचना से जुड़ा है. भारत के शीर्ष तीन निर्यात-पेट्रोलियम उत्पाद, कीमती पत्थर, और दवा निर्माण उत्पादों को निर्यात सूची में निचले क्रम में शामिल उत्पादों (लोहा और स्टील, या सोना) से चुनौती मिलेगी. इसके अलावा उन्हें ऑटोमोबाइल और मोबाइल जैसे अधिक मूल्यवर्धित विनिर्मित वस्तुओं से भी दबाव झेलना होगा. अत: संरचनात्मक बदलावों में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में ई-कॉमर्स को भी शामिल किया जा सकता है.
अब हम दूसरे स्तंभ अर्थात निर्यात की दिशा की बात करते है. हाल में वैश्विक राजनीति की बिसात से उपजे कारणों की वज़ह से रूस अब भारत का तेल का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है. ऐसे में भविष्य में इसी तरह की स्थिति की कल्पना करना असंभव नहीं होगा. ऐसी स्थिति में अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) के बाद, भारत के लिए निर्यात के नए बाज़ारों का विस्तार हो सकता है. यह विस्तार विशेषत: दक्षिण पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया और अफ्रीका तक हो सकता है. इसी प्रकार छोटे देशों का एक पूरा समूह है, जो सामूहिक रूप से भारत के ई-कॉमर्स निर्यात की दिशा को प्रभावित कर सकता है. मसलन, दक्षिण अमेरिका. 2030 तक 2-ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात लक्ष्य आज दुस्साहसी लग सकता है, लेकिन भारत की विकास आकांक्षाओं और इस वृद्धि को प्रभावित करने वाली अंतर्निहित नीतियों को देखते हुए, यह साफ़ दिखता है कि यह संख्या हासिल करना असंभव नहीं है.
अंत में, वाणिज्य मंत्री के रूप में, श्री गोयल ही उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग का काम भी संभालते हैं. उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग में कुछ उत्कृष्ट पहलों पर काम हो रहा है. उदाहरण के लिए, जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) विधेयक, 2022, में अनेक व्यावसायिक अनुपालनों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है. इसकी वज़ह से भारत में व्यवसाय करना आसान हो गया है. ऐसे में वाणिज्य मंत्रालय आंतरिक और बाह्य दोनों व्यापार में परिवर्तन का उत्प्रेरक है. इन दोनों परिवर्तनों को मिलाकर देखने पर हमें एक अच्छे चक्र के निर्माण की उम्मीद हैं. व्यापार करना आसान बनाए जाने के माहौल से घरेलू और वैश्विक पूंजी आकर्षित होगी. यह पूंजी रोज़गार और विकास सृजन की राह आसान बनाएगी. और इसका एक बड़ा हिस्सा निर्यात के रास्ते से गुजरेगा. ऐसे में निर्यात ही क्षमता वृद्धि या नए संयंत्रों के विस्तार के लिए और अधिक पूंजी को आकर्षित करने वाला साबित होगा. यदि ये अनुमान सफ़ल साबित होते हैं, तो श्री गोयल लड्डू के साथ जश्न मना सकते हैं; यदि निर्यात ने तय लक्ष्य से ज्यादा सफ़लता हासिल कर ली तो श्री गोयल पेड़ा लेकर जश्न मना सकते हैं. क्योंकि दोनों ही स्थिति में निर्यात का दबदबा तो बढ़ने ही वाला है.
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