-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
एट्रीब्यूशन: मोंटी खन्ना, “भारत के समुद्री केबल्स को सुरक्षित करने की रूपरेखा ,” ORF स्पेशल रिपोर्ट नं 226, जून 2025, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन.
Image Source: Getty
दुनिया के आर्थिक इंजन को गतिवान बनाए रखने में अंडरसी केबल्स यानी समुद्री केबल्स एक अहम भूमिका अदा करते हैं. ग्लोबल डाटा का 97 फीसदी ट्रैफिक इन्हीं अंडरसी केबल्स के माध्यम से संचालित होता है. एक अनुमान है कि ये केबल्स रोज़ाना होने वाले 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के अंतरराष्ट्रीय फाइनेंशियल फाइनांशियल ट्रांजेक्शंस की ज़िम्मेदारी भी उठाते हैं. 2023-24 में भारत की ओर से किए गए सर्विस एक्सपोर्ट का मूल्य 341.11 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. इसमें से बहुसंख्य निर्यात की डिलीवरी डिलिवरी के लिए अंडरसी केबल्स को ही माध्यम बनाया गया था. यह निर्भरता आगे और बढ़ने का अनुमान है, क्योंकि भारत का सर्विस एक्सपोर्ट 2030 तक बढ़कर 618 बिलियन होने का अनुमान है. ऐसे में इन सेवाओं का निर्यात माल के निर्यात से अधिक हो जाएगा. इसके बावजूद भारत के पास फिलहाल 17 ट्रांस-ओशिएनिक केबल्स अर्थात महासागर केबल्स हैं. इसमें से भी अधिकांश वर्सोवा बीच के पास छह किलोमीटर के दायरे में फ़ैले हुए हैं. यह स्थान मुंबई के उत्तरी दिशा में है और रणनीतिक रूप से बेहद कमज़ोर स्थान पर है.
अंडरसी केबल्स का जाल बिछाने के लिए फाइबर ऑप्टिक (FO) केबल्स का उपयोग किया जाता है. इसे बिछाना और इसका रखरखाव करना एक जटिल प्रक्रिया है. ये केबल्स समुद्र से गुजरते हुए धरती पर मौजूद एक केबल लैंडिंग स्टेशन (CLS) को दूसरे से जोड़ने का काम करते हैं. इन केबल्स को बिछाने के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए केबल-लेइंग शिप्स यानी केबल-बिछाने वाले जहाजों का उपयोग किया जाता है. बड़े टर्नटेबल वाले इन जहाजों पर हजारों टन केबल लपेटकर रखी जाती है. एक मर्तबा जब केबल का एक छोर छोटे जहाज (चूंकि केबल-बिछाने वाले बड़े जहाज का विस्थापन 10,000 टन से अधिक होता है, अत: यह शैलो-वॉटर यानी उथले पानी में नहीं जा सकता) का उपयोग करते हुए CLS से जोड़ा जाता है, तब केबल वाला जहाज एक पूर्व निर्धारित मार्ग पर आगे बढ़ता जाता है. आगे बढ़ते हुए जहाज एक निश्चित तनाव के साथ केबल छोड़ते हुए जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जाए कि केबल एक सीधी लाइन में बिछ रही है. शैलोवर-वॉटर यानी उथले पानी में समुद्रतल पर मौजूद ट्रेंचिंग डिवाइस यानी खंदक खोदने वाले उपकरण से केबल डाली जाती है. यह उपकरण स्किड्स यानी फिसलने वाली मशीन अथवा ट्रैक पर मौजूद होता है. यह एक खंदक, जो आमतौर पर आधा या एक मीटर गहरी होती है, खोदती है. खंदक खोदने के लिए हल या वॉटर जेट का उपयोग किया जाता है. जैसे-जैसे उपकरण आगे बढ़ता जाता है वैसे-वैसे खंदक में केबल बिछती रहती है और यह साथ-साथ ढंकती भी जाती है. इस तरीके का उपयोग उन गहरे क्षेत्रों में किया जाता है जहां केबल को किसी जहाज के एंकर यानी लंगर या फिर मछुआरों की नाव के ट्राउल यानी महाजाल (वर्तमान में डीप-वॉटर सीबेड ट्राउल्स 1,000 मीटर्स की गहराई तक की पहुंच रखते हैं) की वजह से ख़राब होने का ख़तरा होता है. इस तरह के ख़तरे से होने वाली घटना और केबल की 30-वर्ष के जीवनचक्र के दौरान होने वाले परिवर्तनों को ध्यान में रखकर 2,000 मीटर्स की गहराई तक ट्रेंचिंग यानी खंदक की खुदाई की जाती है. इस बिंदु से आगे केबल को समुद्रतल पर बिछा दिया जाता है.
अंडरसी केबल्स का जाल बिछाने के लिए फाइबर ऑप्टिक (FO) केबल्स का उपयोग किया जाता है. इसे बिछाना और इसका रखरखाव करना एक जटिल प्रक्रिया है.
केबल की बात करें तो आधुनिक दौर में अंडरसी FO केबल्स की डिजाइन बेहद जटिल होती है. इसमें ऑप्टिकल फाइबल के अनेक स्ट्रैंड्स यानी किस्में होती हैं. अनेक मामलों में यह अलग-अलग समूह में बंधे होते हैं और प्रत्येक समूह को PVC आवरण में लपेट दिया जाता है. इसके बाद इन्हें और मजबूती प्रदान करने के लिए मेटालिक वायर्स यानी धातु के वायर का उपयोग करते हुए फ्लेक्सीबल मेटल जैकेट्स के भीतर गूंथ दिया जाता है. लागत को कम करने के लिए केबल को केवल उन्हें क्षेत्रों में मजबूती प्रदान की जाती है, जहां केबल को क्षति पहुंचने का ख़तरा अधिक होने की आशंका होती है. केबल की लंबाई में एक निश्चित अंतराल पर रिपीटर यूनिट्स भी लगे होते है. इसका कारण यह है कि इन केबल के माध्यम से फ्लो यानी बहने वाला डाटा लंबी दूरी तय करते हुए कमज़ोर या कम प्रभावी हो जाता है. ऐसे में उस डाटा को समय-समय पर एमप्लीफाई एम्लीफाई करना होता है ताकि डाटा की उच्च गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जा सके. इन रिपीटर्स के लिए पॉवर की ज़रूरत होती हैं. इसके लिए केबल में ही एक स्वतंत्र कोर चलाया जाता है.
पिछले कुछ वर्षों में केबल की गुणवत्ता में काफ़ी सुधार हुआ है. इसके बावजूद इसमें ख़राबी आ सकती है. यह ख़राबी बाहरी कारक जैसे किसी एंकर केबल या मछुआरों के महाजाल या रिपीटर यूनिट्स के फेल होने की वजह से पेश आने वाली तकनीकी समस्या के कारण देखी जा सकती है. अधिकांश मामलों में स्पेशलाइज्ड केबल-रिपेयर शिप्स का उपयोग करके इन दोषों को सुधारा जाता है. अधिकांशत: इस ख़राबी को सुधारने के लिए केबल को पानी से निकालकर जहाज के डेक पर लाना होता है. केबल को पानी से निकालने, विशेषत: गहरे पानी में, के लिए आमतौर पर पर्याप्त ढिलाई उपलब्ध नहीं होती. अत: स्पेशलाइज्ड इक्विपमेंट इक्वीपमेंट का उपयोग करके केबल को काटा जाता है. केबल को काटने के बाद केबल के दोनों छोरों को जहाजतल पर लाकर बारी-बारी से ख़राबी का पता लगाकर उसमें सुधार किया जाता है. यह प्रक्रिया होने के बाद सुधारे गए केबल के साथ एक छोटा सा नया FO केबल जोड़ा जाता है और एक बार कंटीन्यूटी यानी निरंतरता स्थापित होने और उसकी जांच होने के बाद केबल को पुन: समुद्रतल में उतार दिया जाता है.
22 मार्च 2025 को द साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट (SCMP) ने एक कॉम्पैक्ट, डीप-सी, केबल-कटिंग डिवाइस को लेकर खबर प्रकाशित की. यह डिवाइस दुनिया के सबसे मजबूत या किलाबंद अंडरवॉटर कम्युनिकेशन या पॉवर लाइंस को तोड़ने में सक्षम है. यह डिवाइस चीन की चालक दल सहित या चालक दल रहित पनडुब्बियों जैसे कि फेंडोजे या स्ट्राइवर और हैदोऊ सीरिज के साथ संचालित होने के लिए डिजाइन किया गया है. ऐसे में इस विषय के अनेक टिप्पणीकारों की ओर से चिंता और गुस्से का इजहार किया जाना स्वाभाविक था.
इसके बावजूद अंडरसी केबल्स की वर्किंग यानी कार्यशैली को देखते हुए इस तरह के डिवाइस की मौजूदगी का स्वीकार्य कारण यह है कि यह एक ऐसा वैध डिवाइस है जो केबल में आने वाली ख़राबी को सुधारने के काम आ सकता है. विभिन्न डिजाइन वाले डीप-सी केबल कटर्स का दशकों से उपयोग किया जा रहा है. ऐसे में इस तरह के डिवाइस या उपकरण को विकसित करने अथवा उसमें सुधार करने का निश्चित ही वैध कारण हो सकता है.
इन सारी बातों के बावजूद इस तरह के गैजेट्स की ड्यूल-यूज यानी दोहरे उपयोग प्रकृति का भी विचार किया जाना चाहिए. यह बात विगत 18 माह के दौरान बाल्टिक सी में ताइवान के निकट केबल में व्यवधान डालने की घटनाओं में हो रही वृद्धि को देखते हुए और ज़रूरी हो जाती है. विगत 15 माह में अकेले बाल्टिक में 11 ऐसी घटनाएं देखने को मिली हैं. इन सारी घटनाओं को दुर्घटना से जोड़कर देखना प्रोबेबिलिटी के नियमों का उल्लंघन करना होगा.
इस रिपोर्ट में अंडरसी केबल्स में व्यवधान डाले जाने के ख़तरों को कम करने को लेकर सिफ़ारिशों की एक रूपरेखा दी गई है.
सिफ़ारिशें
गोल्डमैन सैक्स के अनुसार विश्व में होने वाले डाटा मूवमेंट में 90 फीसदी से ज़्यादा मूवमेंट के लिए समुद्री सतह की 570 सबसी केबल्स ज़िम्मेदार हैं. इसमें से 16 लैंडिंग स्टेशंस के माध्यम से भारत केवल 17 इंटरनेशनल सबसी केबल्स की मेज़बानी करता है. इसमें से भी 11 अब अपनी इकोनॉमिक लाइफ की समाप्ति के करीब पहुंच गए हैं. 2024 के अंत तक इन केबल्स की कुल क्षमता 193 TBPS और एक्टिवेटेड कैपेसिटी 148 TBPS है. इस वर्ष तीन नए केबल्स- 2अफ्रीका पर्ल्स, इंडिया-एशिया एक्सप्रेस और इंडिया-यूरोप- एक्सप्रेस को कमीशन किए जाने की संभावना है. ऐसे में भारत की इंटरनेट क्षमता में कई गुणा इज़ाफ़ा होने की उम्मीद है. इसके चलते डिजिटल कनेक्टिविटी की रफ्तार और विश्वसनीयता में काफ़ी सुधार होगा. हालांकि क्षमता में होने वाला यह विस्तार भी पर्याप्त साबित नहीं होगा.
मार्च 2025 में नई दिल्ली में हुई फर्स्ट इंटरनेशनल सबसी केबल्स सिस्टम कांफ्रेंस में टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के चेयरमैन अनिल कुमार लाहोटी ने देश की बढ़ती मांग को देखते हुए भारत के सबसी केबल इंफ्रास्ट्रक्चर में 10x विस्तार की वकालत की थी. 20 प्रतिशत ग्लोबल इंटरनेट ट्रैफिक की ख़पत करने वाले भारत का वैश्विक सबसी ट्रैफिक निर्माण में योगदान केवल 2 फीसदी है. वैश्विक सबसी केबल में भारत की हिस्सेदारी महज 3 प्रतिशत है. इसके विपरीत सिंगापुर के पास 26 सबसी केबल्स है जो तीन लैंडिंग साइट्स से जुड़ते हैं.
इस विषमता के लिए भौगोलिक स्थिति भले ही ज़िम्मेदार है, लेकिन भारत में CLSs की स्थापना करने की राह में यहां का जटिल नियामक ढांचा एक बहुत बड़ी बाधा है. इस बाधा की वजह से भारत CLSs की स्थापना के लिए पसंदीदा गंतव्य नहीं बन पा रहा है. इस असंतुलन के रणनीतिक प्रभावों का विचार करते हुए इसे नीतिगत गति देकर इसमें सुधार किया जाना आवश्यक है ताकि बड़ी संख्या में लंबी-दूरी के अंडरसी केबल्स को भारत में स्थापित करने का मौका दिया जा सके.
CLSs का व्यापक भौगोलिक विस्तार:
भारत के बहुतायत सबसी केबल्स महाराष्ट्र के वर्सोवा के आसपास मौजूद CLSs में ही लैंड करते हैं या इससे ही जुड़े हैं. इतनी अहम बुनियादी सुविधा का एक ही क्षेत्र में जमावड़ा एक ऐसी कमज़ोरी है जिसे दूर किया जाना आवश्यक है. इसमें सुधार करने के लिए केबल-ओनिंग एंड ऑपरेटिंग यानी केबल मालिक और संचालनकर्ता कंपनियों को नीति के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. ऐसा होने पर ही नए केबल को बिछाया जाना और इन केबल्स के लैंडिंग स्टेशंस को प्रायद्वीपीय भारत में विभिन्न ठिकानों पर स्थापित करना सुनिश्चित किया जा सकता है.
केवल 2023 में ही वैश्विक स्तर पर 200 सबमरीन केबल रिपेयर्स किए जाने की जानकारी है. भारत के पास फिलहाल अपनी केबल रिपेयर शिप नहीं है. ऐसे में केबल ऑपरेटर्स को किसी मामले में केबल सुधार की ज़रूरत होने पर विदेशी कंपनियों को ठेका देने पर मजबूर होना पड़ता है. खबरों के अनुसार ऐसी सेवाएं देने वाले दो कंसोर्टियम कॉन्सॉर्टियम है, जिसमें से एक दुबई तथा दूसरी सिंगापुर में स्थित है. अधिकांश भारतीय ऑपरेटर्स ने इनमें से एक के साथ बहुवर्षीय अनुबंध कर रखे हैं. इस तरह की व्यवस्था के साथ दिक्कत यह है कि केबल में सुधार की गुज़ारिश के अनुसार सेवा देना अक्सर सुधार करने वाले जहाज की उपलब्धता पर निर्भर करती है. इसके साथ ही भौगोलिक दुश्वारियां भी इसमें परेशानी का कारण बनती है, क्योंकि सुधार करने वाले जहाज को विश्व के एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेकर जाना मुश्किल भरा काम होता है. और अंत में भारत के जटिल नियामक ढांचे से निपटने का काम भी होता है. इस ढांचे में विभिन्न सरकारी एजेंसियों से क्लीयरेंस लेना होता है. इतना ही नहीं सुधार कार्य करने वाले जहाज पर सुधार कार्य के दौरान विभिन्न सरकारी अधिकारियों की मौजूदगी भी अनिवार्य होती है. उपरोक्त सारी बातों को देखकर यह साफ़ है कि जिस काम को चंद दिनों में पूरा कर लिया जाना है उसे शुरू करने में ही महीनों का वक़्त लग जाता है.
एक घरेलू स्वामित्व और संचालित केबल रिपेयर शिप की मौजूदगी इस समयावधि को कम करने में अहम भूमिका अदा कर सकती है. इस तरह की क्षमता वाली शिप की आवश्यकता बार-बार पड़ती रहती है. ऐसे में अगर सरकार और निजी उद्योग मिलकर एक संयुक्त कंसोर्टियम कॉन्सॉर्टियम स्थापित करे तो बेहतर होगा. यह कंसोर्टियम कॉन्सॉर्टियम ऐसा एक जहाज खरीदकर उसे पब्लिक-प्राइवेट प्रायवेट पार्टनरशिप मॉडल के तहत संचालित कर सकता है. इस बात की जानकारी है कि डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशंस इस दिशा में प्रयास कर रहा है, लेकिन इस प्रयास को गति दिए जाने की आवश्यकता है. अंतरिम अवधि में विदेशी जहाजों को समयबद्ध अंदाज में यह भूमिका अदा करने में सहायता करने के लिए नियामक बोझ को घटाने की दिशा में ठोस प्रयास किए जाने आवश्यक हैं.
भारतीय नौसेना दो लार्ज डाइविंग सपोर्ट वेसल्स यानी बड़े गोताखोर सहायक जहाज को कमीशन करने वाली है. इनमें से प्रत्येक जहाज की डिस्प्लेस यानी विस्थापन क्षमता 9,350 टन है. इन जहाजों में रोबस्ट सैचुरेशन सैच्युरेशन डाइविंग सुविधाएं, डायनैमिक पोजिशनिंग सिस्टम्स और रिमोटली ऑपरेटेड सबमर्सिबल्स क्षमताओं के साथ-साथ मून पूल और हाई-कैपेसिटी A-फ्रेम मौजूद हैं, जो हॉइस्टिंग/लोवरिंग अर्थात उठाने और उतारने से जुड़ी सारी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हैं. इसके अलावा इन जहाजों की डेक पर विभिन्न किस्मों के कंटेनराइज्ड मॉड्यूल्स को इंस्टॉल करने के लिए पर्याप्त खाली जगह भी मौजूद होगी. संक्षिप्त में इन जहाजों के पास केबल रिपेयर करने के लिए आवश्यक अधिकांश क्षमताएं मौजूद होंगी. अगर नौसेना केबल रिपेयर करने और अपने कुछ कोर कर्मियों को कंटेनराइज्ड किट्स का उपयोग करने में प्रशिक्षित करने के लिए निवेश करती है तो घरेलू सुधार क्षमता को जल्दी कार्यान्वित किया जा सकेगा. ऐसी क्षमता का संघर्ष के दौरान उपयोग किया जा सकता है, क्योंकि संघर्ष के दौरान व्यावसायिक जहाजों को यह काम सौंपना चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है. इसी तरह का समानांतर प्रयास नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) तथा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी (NIO) द्वारा भी किया जा सकता है. इसका कारण यह है ये दोनों ही सबमर्सिबल्स यानी पनडुब्बियों के संचालन की क्षमता वाले अनुसंधान जहाजों को ख़रीदने का प्रयास कर रहे हैं.
वर्तमान दिनों में हुए तकनीकी विकास की वजह से FO केबल्स में यह क्षमता है कि वे अपने आसपास मौजूद जहाजों का पता लगा सकते हैं. ऐसा करने के लिए जो श्रेष्ठ तकनीक उपलब्ध है उसे डिस्ट्रिब्यूटेड अकाउस्टिक सेंसिंग (DAS) कहा जाता है. यह FO केबल में मौजूद एक फाइबर के माध्यम से लेजर लाइट पल्स (स्पंदन) भेजकर काम करती है.
जब इन पल्सेस यानी स्पंदन को पास में मौजूद जहाज से होने वाले शोर की वजह से फाइबर में होने वाले वाइब्रेशंस महसूस होता है तो वे यानी पल्सेस, लेजर लाइट सोर्स की ओर प्रतिबिंबित होने वाले बिखरे हुए प्रकाश में माइन्यूट अर्थात छोटे परिवर्तन कर देते है. इस बैकस्कैटर्ड लाइट यानी प्रतिबिंबित बिखरे प्रकाश में होने वाले परिवर्तनों का विश्लेषण कर DAS सिस्टम्स साउंड या वाइब्रेशन अथवा कंपन की लोकेशन, इंटेंसिटी और फ्रीक्वेंसी का पता लगा सकता है. इस तरह की तकनीक का उपयोग करके केबल को क्षति पहुंचने या उसे टूटने से तो नहीं रोका जा सकता. लेकिन इस तकनीक का उपयोग करके व्यावसायिक और सरकारी अधिकारियों को इस तरह की कार्रवाई की पूर्वसूचना ऐसी सटीकता के साथ दी जा सकती है जो केबल को क्षति पहुंचाने वाले जहाज की शिनाख़्त करने में सहायक होगी. आवश्यकता पड़ने पर इस कार्य में मौजूदा समुद्री क्षेत्र जागरूकता जागरुकता क्षमता तथा समर्पित सर्विलांस प्रयासों का भी उपयोग किया जा सकता है. इसके बाद संबंधित जहाज के फ्लैग स्टेट यानी देश के ख़िलाफ़ अधिकृत कार्रवाई की जा सकती है. इसमें भी व्यापक ‘नेम एंड शेम’ मीडिया कैंपेन की सहायता ली जा सकती है. इस तरह की क्षमताओं की तैनाती से इस तरह क्षति पहुंचाने अथवा केबल तोड़ने में जुटी इकाइयों के ख़िलाफ़ मजबूत प्रतिरोधी कदम उठाया जा सकता है.
भारतीय जलक्षेत्र में सबमरीन अर्थात पानी के नीचे मौजूद ख़तरों का मुकाबला का एक तरीका अंडरवॉटर डोमेन अवेयरनेस यानी जल के नीचे वाले क्षेत्र में जागरूकता जागरुकता (UDA) पर जोर देना होगा. इसके लिए हमारे आसपास के जलक्षेत्र में आने वाले विभिन्न इलाकों में मोबाइल और स्टैटिक स्टैटिट सेंसर्स का नेटवर्क आवश्यक है. इन सेंसर्स का खाका तैयार करते समय इन सेंसर्स की स्थापना के स्थानों का चयन करते वक़्त ध्यान में रखे जाने वाले अन्य कारणों के साथ-साथ अंडरसी केबल्स पर मंडरा रहे ख़तरों पर भी विचार किया जाना चाहिए.
केबल रिपेयर के साथ ही भारत को एक घरेलू केबल-लेइंग यानी केबल-बिछाने की क्षमता स्थापित करने पर भी समय रहते विचार करना चाहिए. हालांकि इसके लिए काफ़ी बड़ा निवेश ज़रूरी होगा. क्योंकि केबल बिछाने वाले बड़े जहाज अक्सर 10,000 टन विस्थापन की क्षमता वाले होते हैं और इन पर लगने वाले कस्टमाइज्ड इक्विपमेंट्स इक्वीपमेंट्स भी महंगे होते हैं. लेकिन केबल में व्यवधान पैदा करने वाली गतिविधियों में हो रहे इज़ाफ़े को देखते हुए इस मामले से जुड़ा आर्थिक पहलू वक़्त के साथ मजबूत होता चला जाएगा. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि ऐसे जहाजों में अंडरसी पॉवर केबल्स बिछाने की भी क्षमता होती है. इस तरह की क्षमता से जुड़ी मांग तेजी से बढ़ेगी, क्योंकि हम ऑफशोर विंड फार्म्स को स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. व्यावसायिक आवश्यकताओं के साथ-साथ रणनीतिक विचारों की ज़रूरतों को पूरा किया जा सकता है. क्योंकि इन केबल का उपयोग करके ही UDA सेंसर्स को पॉवर देकर उनमें मौजूद डाटा को एक्सट्रैक्ट किया जा सकता है. इनकी स्थापना से जुड़ी गोपनीयता की प्रकृति को देखते हुए यह आवश्यक है कि इस काम के लिए एक भारतीय ध्वज वाले जहाज का ही उपयोग किया जाए.
स्पेस-बेस्ड इंटरनेट सर्विसेस के माध्यम से विविधीकरण:
ग्लोबल इंटरनेट ट्रैफिक इस वक़्त अंडरसी FO केबल्स पर निर्भर दिखाई देता है, लेकिन आउटर स्पेस-बेस्ड अर्थात बाह्य अंतरिक्ष-आधारित इंटरनेट सर्विसेस इस एकाधिकार को भंग करने की आरंभिक क्षमता दिखा रहे हैं. मार्च 2025 में आयी एक रिपोर्ट के अनुसार 30 वर्ष की अवधि में ग्राहकों के लिए सैटेलाइट-बेस्ड इंटरनेट सर्विसेस केवल 53-फीसदी महंगी साबित होगी. एक बार जब रियूजेबल स्पेसक्राफ्ट यानी दोबारा उपयोग में आने वाले अंतरिक्ष यान जैसे कि SpaceX’s की ‘स्टारशिप’ व्यावसायिक ऑपरेशंस आरंभ करेगी तब लांच की कीमत में कमी आएगी और ग्राहकों के लिए कीमत का यह फ़र्क भी ख़त्म हो जाएगा. इसके अलावा ऐसी तमाम क्षमताओं में लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट्स के अल्ट्रा-लार्ज यानी विशाल समूहों का उपयोग किया जाता है, अत: लेटेंसी यानी विलंबता और डाउनलोड स्पीड का अंतर भी घटता जा रहा है. इस तरह की क्षमता में निवेश करना भारत के लिए विवेकपूर्ण साबित होगा. यदि यह निवेश किसी और कारण से विवेकपूर्ण साबित नहीं हुआ तो अपनी कनेक्टिविटी में वहनीयता हासिल करने के लिए ही यह निवेश किया जाना चाहिए. उपग्रहों के ऐसे समूहों को स्थापित करने और उनके संचालन पर होने वाले भारी ख़र्च को देखते हुए वर्तमान में घरेलू ऑपरेटर्स को स्टारलिंक एवं वनवेब जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी करने की अनुमति देने वाले वर्तमान दृष्टिकोण को बढ़ावा देकर सुगम बनाया जाना चाहिए.
एक ओर जहां भारत वैश्विक कनेक्टिविटी के साथ रिडंडेंसी रिडंडंसी या दोहराव को विकसित कर रहा है, वहीं देश को अल्पअवधि में ही अनेक FO केबल्स के विफ़ल होने से पड़ने वाले क्रमिक प्रभाव जैसी असाधारण घटनाओं से निपटने के लिए भी तैयार रहना चाहिए. वर्तमान क्षमताओं के साथ भारत एक ऐसी बिंदु पर पहुंच जाएगा जहां उसके बचे हुए केबल्स उसकी मांग को पूरा करने में अपर्याप्त साबित होंगे. ऐसी स्थिति में भारत को क्रिटिकल और नॉन-क्रिटिकल ट्रैफिक के बीच अंतर को समझने की क्षमता विकसित करनी होगी. इसी संदर्भ में यह खबर है कि वर्तमान में सबसी केबल्स में ट्रांसमिट होने वाला 50 से 60 फीसदी ट्रैफिक OTT प्लेटफॉर्म्स और हाइपरस्केलर्स से आता है, जबकि शेष ट्रैफिक कॉरपोरेट कार्पोरेट एवं इंटरनेट का है. ऐसे में नॉन-क्रिटिकल ट्रैफिक की शिनाख़्त कर उसे चरणबद्ध अंदाज में सीमित करने वाला सिस्टम लागू करना होगा. ऐसा होने पर ही यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि क्रिटिकल ट्रैफिक सुचारू सुचारु रूप से संचालित हो और ऐसी स्थिति में होने वाला आर्थिक तथा रणनीतिक नुक़सान न्यूनतम रहे.
विकसित अंतरराष्ट्रीय नियामक ढांचा:
अंडरसी केबल्स की सुरक्षा के लिए मौजूदा अंतरराष्ट्रीय नियामक ढांचा कमज़ोर है.1984 में हस्ताक्षरित द कन्वेंशन कंवेंशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सबमरीन टेलीग्राफ केबल्स विभिन्न देशों के जलक्षेत्रों से बाहर मौजूद तमाम केबल्स पर लागू होता है. सभी देशों से यह उम्मीद थी कि वे इसके तहत मिली सुरक्षा को अपने घरेलू कानून में शामिल करेंगे. लेकिन इसमें याद रखने वाली बात यह है कि यह सुरक्षा युद्ध के दौरान की गई आक्रामक कार्रवाईयों पर लागू नहीं होती. इस संधि के प्रावधानों को यूनाइटेड नेशंस कंवेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी (संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन) के तहत आर्टिकल्स 112 से 115 में किसी विशेष बदलाव के बगैर शामिल किया गया है.
अंतरराष्ट्रीय डाटा प्रवाह की सभी जगह पर मौजूदगी तथा अहमियत को देखते हुए इसकी निरंतर उपलब्धता को ‘पब्लिक गुड’ यानी सार्वजनिक हित के रूप में देखा जाना चाहिए. इसी आशय को ध्यान में रखते हुए एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय नियामक व्यवस्था की रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए. इंटरनेट उपयोगकर्ता के रूप में अग्रणी देश होने के नाते भारत इस सम्मेलन की रूपरेखा तय करने में अहम भूमिका अदा कर सकता है.
निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि शांति और संघर्ष दोनों ही स्थितियों में सुनिश्चित डाटा कनेक्टिविटी की अहमियत को देखते हुए हमारे अंडरसी केबल नेटवर्क के रेजिलियंस यानी लचीलेपन को बढ़ाने के लिए पहल की जानी चाहिए. यह चरणबद्ध तरीके से होना चाहिए और इस कार्य पर निरंतर निगरानी रखे जाने की आवश्यकता है. इसके साथ ही इस कार्य को नीति हस्तक्षेप और सरलीकरण का सहारा भी मिलना चाहिए. अत: चीन के पास अपने नए केबल-कटिंग डिवाइस को तैनात करने की जानकारी विश्व को देने के पीछे कोई और मंशा या प्रोत्साहन क्यों न हो, इसने भारत को कनेक्टिविटी में मौजूद अपनी कमज़ोरियों का गहराई से परीक्षण करने का अवसर प्रदान किया है. यह रिपोर्ट इन कमज़ोरियों से निपटने की रूपरेखा तय करने वाली प्रक्रिया को तेज करने के उद्देश्य से ही तैयार की गई है.
Endnotes
[1] Yoni Tobin and VADM Michael J. Connor, USN (ret.), “To Protect Undersea Cables in the Middle East, US Needs a New Hub,” JINSA, April 23, 2025, https://jinsa.org/protect-undersea-cables-in-the-middle-east/
[2] BW Online Bureau, “India’s Exports Hit $778.21 Bn In 2023-24, Up 67% In Decade,” BusinessWorld, February 3, 2025, https://www.businessworld.in/article/indias-exports-hit-77821-bn-in-2023-24-up-67-in-decade-546818
[3] “India’s Services Sector May Outpace Merchandise Exports by 2030, Touch USD 618 Billion: GTRI,” The Economic Times, November 20, 2024,
[4] Stephen Chen, “China Unveils a Powerful Deep-sea Cable Cutter that Could Reset the World Order,” South China Morning Post, March 22, 2025,
[5] There have been several incidents of cables getting severed under questionable circumstances in the recent past. On 22 October 2023, the Chinese-owned container ship Newnew Polar Bear became the focus of the investigation after allegedly damaging an undersea natural gas pipeline and two telecommunications in the Gulf of Finland. On 17 November 2024, underwater internet cables connecting Sweden–Lithuania and Germany–Finland were damaged allegedly by the Chinese-owned bulk carrier Yi Peng 3. On 25 December 2024, Finnish authorities boarded and took control of the Russian oil tanker Eagle S, registered in the Cook Islands, on suspicion of damaging an undersea power cable and three internet lines connecting Finland and Estonia. On 03 Jan 2025, an undersea cable off the north-east coast of Taiwan was damaged, with authorities blaming a Cameroonian-registered cargo ship, the Shunxin-39, as the likely culprit.
[6] Shamim Chowdhury, “At Least 11 Baltic Cables Sabotaged in 15 Months: What to Know,” Newsweek, January 28, 2025, https://www.newsweek.com/least-11-baltic-cables-sabotaged-15-months-what-know-2021972
[7] Karan Mahadik, “TRAI Chief Calls for 10x Expansion of India’s Subsea Cable Infra to Meet Surging Data Demand,” The Indian Express, March 28, 2025,
[8] Kashish Saxena, “Submarine Cables Are Backbone of India’s Digital Future: Trai Chief,” BusinessWorld, March 26, 2025,
[9] Mahadik, “TRAI Chief Calls for 10x Expansion of India’s Subsea Cable Infra to Meet Surging Data Demand”
[10] Aroon Deep, “India Needs More Undersea Cables for Telecom, Internet Traffic, Experts Say,” The Hindu, March 26, 2025,
[11] Kashish Saxena, “Submarine Cables Are Backbone of India’s Digital Future: Trai Chief,” BusinessWorld, March 26, 2025,
[12] This information is based on discussions held by the author with cable operators.
[13] “Indian Navy Launches Two Diving Support Vessels Nistar and Nipun,” Naval Technology, September 22, 2022,
https://www.naval-technology.com/news/indian-navy-diving-support-vessels/?cf-view
[14] A moon pool is an opening in the centre of a ship (so designed) through which remotely operated vessels can be launched and recovered. It can also be used for diving operations. An A-frame is a gantry-like crane at the stern of a ship designed for lowering or hoisting heavy loads over the stern into the water.
[15] Daniel Pyke, “What is Distributed Acoustic Sensing - How Does it Work?,” Sensonic, January 29, 2025, https://www.sensonic.com/en/blog/what-is-distributed-acoustic-sensing-how-does-it-work--3274/
[16] Kelcee Griffis, Bloomberg, “Musk’s Starlink Satellite Internet Costs 53% More Over 30 Years, Maintenance Twice as Expensive,” The Economic Times, March 26, 2025, https://economictimes.indiatimes.com/industry/telecom/telecom-news/musks-starlink-satellite-internet-costs-53-more-over-30-years-maintenance-twice-as-expensive/articleshow/119495914.cms
[17] Mahadik, “TRAI Chief Calls for 10x Expansion of India’s Subsea Cable Infra to Meet Surging Data Demand”
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Rear Admiral Monty Khanna was commissioned into the Indian Navy in Jan 83. He won the `Best Naval Cadet’ award and Midshipman `Sword of Honor’ ...
Read More +