Author : Manoj Joshi

Originally Published दैनिक भास्कर Published on Nov 30, 2024 Commentaries 0 Hours ago

कोई भी खुफिया जानकारी- चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो- नजरअंदाज नहीं की जानी चाहिए. 26/11 से पहले भी एक दर्जन से अधिक खुफिया चेतावनियां दी गई थीं. लेकिन उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया.

26/11: चेतावनियों की अनदेखी का सबक

महाराष्ट्र चुनाव नतीजों के शोर में 26 नवंबर (26/11) के मुंबई आतंकी हमलों की 16वीं वर्षगांठ को महज औपचारिक तरीके से मनाया गया. जबकि मुंबई अक्सर ही आतंकी हमलों का निशाना रहा है. इसकी शुरुआत मार्च 1993 के घातक धमाकों से हुई थी.

1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में लगातार हमलों का सामना करना पड़ा. 2003 में लगातार कई हमले हुए, जिनमें गेटवे ऑफ इंडिया और झवेरी बाजार पर हुए हमले शामिल हैं. इनमें 52 लोग मारे गए थे. 2006 में अगला बड़ा हमला 7 स्थानों पर सिलसिलेवार विस्फोटों के रूप में हुआ, जिसमें 181 लोग मारे गए.

ऐसे कई सबक हैं जिन्हें हमें नहीं भूलना चाहिए. इनमें से सबसे महत्वपूर्ण यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कोई भी खुफिया जानकारी- चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो- नजरअंदाज न की जाए. 26/11 से पहले भी एक दर्जन से अधिक खुफिया चेतावनियां दी गई थीं.

2008 में 26/11 का हमला- जो कई दिनों तक चला- पूरे शहर में 175 लोगों की मौत का कारण बना. हालांकि इससे पहले हुए लगभग सभी हमलों की योजना पाकिस्तान में बनाई गई थी और भारतीय आतंकवादियों द्वारा पाकिस्तान की ओर से इसे अंजाम दिया गया था, लेकिन 26/11 के हमलों में तो सबसे स्पष्ट रूप से पाकिस्तान का हाथ था.

पाकिस्तानी नागरिक इस कृत्य में बेशर्मी से शामिल थे. ध्यान दें कि मुंबई पर दो सबसे घातक हमले समुद्री मार्ग से हुए हैं. 1993 के हमलों के लिए विस्फोटक और हथियार तस्करी नेटवर्क के माध्यम से आए थे और 2008 के हमलावर नाव में सवार होकर आए थे.

मुंबई पर आखिरी बड़ा हमला जुलाई 2011 में हुआ था, जिसमें सिलसिलेवार बम विस्फोटों में 26 लोग मारे गए थे. लेकिन इस शहर के इतिहास और इसने जो भयानक आतंकवादी त्रासदियां झेली हैं, उन्हें देखते हुए यह हमारा कर्तव्य है कि जो हुआ उसे याद रखें, उचित सबक सीखें और उन्हें जमीन पर लागू करें.

हमारी सुरक्षा व्यवस्था कितनी बदली

यह कुछ ऐसा है जो हम बहुत अच्छी तरह से नहीं करते हैं. एक समाचार रिपोर्ट में कहा गया है कि मुंबई मरीन पुलिस की 23 स्पीड बोट में से 14 काम नहीं कर रही हैं और केवल 9 चालू हैं. रखरखाव ऑपरेटरों को शुल्क का भुगतान न करने के कारण इसकी कुछ नावें सेवा से बाहर हैं.

मुंबई मरीन पुलिस अपने अधिकार क्षेत्र के तहत लगभग 114 किमी समुद्र तट पर गश्त करने के लिए जिम्मेदार है. बेड़े के आधुनिकीकरण के लिए धन आया है, पर पुलिस जोर देकर कहती है कि वे अपने पास जो है उसी से गश्त का प्रबंधन कर रहे हैं. भारतीय तटरक्षक और नौसेना वाले भी पैट्रोलिंग करते हैं.

ऐसे कई सबक हैं जिन्हें हमें नहीं भूलना चाहिए. इनमें से सबसे महत्वपूर्ण यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कोई भी खुफिया जानकारी- चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो- नजरअंदाज न की जाए. 26/11 से पहले भी एक दर्जन से अधिक खुफिया चेतावनियां दी गई थीं.

उनमें से कई झूठी थीं, लेकिन अगस्त और सितंबर में सटीक चेतावनियां भी मिली थीं. उनमें आगाह किया गया था कि शहर के होटलों सहित कई टारगेट्स पर हमला हो सकता है, लेकिन उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया. हमें 26/11 जैसी आपात-स्थिति से निपटने में भी कठोर सबक सीखने की आवश्यकता है.

चूंकि लगभग सब कुछ टीवी पर दिखाया गया था, इसलिए हमने हमले से तेजी से और प्रभावी ढंग से निपटने में अपनी घोर विफलता देखी. हेमंत करकरे और अशोक कामटे जैसे अधिकारियों की बहादुरी के बावजूद उच्च पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों द्वारा वस्तुतः कोई नेतृत्व प्रदान नहीं किया गया. केंद्र ने राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के साथ कदम बढ़ाया, जिसे दिल्ली से उड़ान भरनी पड़ी. नौसेना के मरीन कमांडो का उपयोग करने का प्रयास तो हास्यास्पद था.

जबकि भारत ने 2019 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के माध्यम से यही किया था. पाकिस्तान को संदेश दे दिया गया. तब से, घाटी में पाकिस्तान के एजेंटों ने अपने हमलों को उस स्तर पर सीमित रखा है, जो भारतीय जवाबी कार्रवाई को उकसाता नहीं है.

हमें पाकिस्तान को उसके व्यवहार के लिए दंडित करने की भी आवश्यकता थी. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भारतीय वायु सेना का उपयोग करने पर विचार करना चाहिए था, जिसने आदेश मिलने पर हमले शुरू करने की इच्छा व्यक्त की थी. लेकिन नई दिल्ली ने हिचकिचाहट दिखाई, क्योंकि उसे लगा कि स्थिति एक बड़े युद्ध की ओर ले जा सकती है जिसके लिए सेना ने कहा कि वह पूरी तरह से तैयार नहीं है.

जबकि भारत ने 2019 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के माध्यम से यही किया था. पाकिस्तान को संदेश दे दिया गया. तब से, घाटी में पाकिस्तान के एजेंटों ने अपने हमलों को उस स्तर पर सीमित रखा है, जो भारतीय जवाबी कार्रवाई को उकसाता नहीं है.

26/11 के मास्टरमाइंड आज़ाद

भारत ने अजमल कसाब को फांसी पर लटका दिया, लेकिन पाकिस्तान ने अभी तक 26/11 के अपराधियों को सजा नहीं दी है. डेविड कोलमैन हेडली और तवाहुर राना को अमेरिका में जेल में डाल दिया गया है. पाकिस्तान ने भी साजिद मीर और हैज़ सईद को सजा दी है, लेकिन आतंकी फंडिंग के लिए, आतंकवाद के लिए नहीं.

कोई भी खुफिया जानकारी- चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो- नजरअंदाज नहीं की जानी चाहिए. 26/11 से पहले भी एक दर्जन से अधिक खुफिया चेतावनियां दी गई थीं. लेकिन उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया.

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