Author : Soumya Bhowmick

Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 02, 2023 Updated 0 Hours ago

यूक्रेन संकट ने दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक संकट और बढ़ा दिया है.

यूक्रेन और रूस का युद्ध: दक्षिण एशिया पर इसका असर

दक्षिण एशिया में हमारे सारे पड़ोसी देश इस वक़्त मुश्किल में हैं. श्रीलंका और पाकिस्तान बेहद बुरे आर्थिक दौर से गुज़र रहे हैं. श्रीलंका की अर्थव्यवस्था तो पूरी तरह तबाह हो गई है. वहीं, पाकिस्तान विदेशी क़र्ज़ के भारी बोझ, बिजली की किल्लत और भयंकर महंगाई से जूझ रहा है. दोनों ही देशों को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मदद मिलने का इंतज़ार है. IMF ने बांग्लादेश को भी 4.7 अरब डॉलर का एहतियाती क़र्ज़ देने को मंज़ूरी दे दी है, क्योंकि वहां के आर्थिक संकेत भी अच्छे नहीं हैं और बांग्लादेश भी महंगाई और अपनी मुद्रा टका में भारी उतार-चढ़ाव का सामना कर रहा है. तख़्तापलट के बाद म्यांमार में कारोबार ठप हो गया है और बेरोज़गारी में ज़बरदस्त वृद्धि हुई है; और नेपाल  भी व्यापार घाटे में भारी बढ़ोत्तरी और अपने विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की चुनौतियों से दो-चार है.

ये सच है कि यूक्रेन और रूस के युद्ध ने कई विकासशील देशों के ऊर्जा बाज़ार को संकट में धकेल दिया है इसके अलावा, खाने के तेल के निर्यातक देशों द्वारा आपूर्ति में कटौती के साथ ईंधन की क़ीमतों में बढ़ोत्तरी से खाने पीने के सामान के दामों में उछाल आ गया है, जिससे खाद्य सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती बन गई है, ख़ास तौर से समाज के कमज़ोर तबक़ों के लिए.

ये सच है कि यूक्रेन और रूस के युद्ध ने कई विकासशील देशों के ऊर्जा बाज़ार को संकट में धकेल दिया है इसके अलावा, खाने के तेल के निर्यातक देशों द्वारा आपूर्ति में कटौती के साथ ईंधन की क़ीमतों में बढ़ोत्तरी से खाने पीने के सामान के दामों में उछाल आ गया है, जिससे खाद्य सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती बन गई है, ख़ास तौर से समाज के कमज़ोर तबक़ों के लिए.

Figure 1: मार्च 2022 में कुछ चुनिंदा देशों में खाद्य महंगाई दर में वार्षिक वृद्धि (प्रतिशत में)

आज जब दुनिया कोविड-19 महामारी के साथ जीने के तीन साल पूरे करने जा रही है, तो ये वायरस आज भी अस्पतालों, हवाई अड्डों, बाज़ारों, दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं और लोगों के ज़हन को भयभीत कर रहा है. इससे भी बड़ी बात, 2022 के आख़िरी महीनों में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन- जो दुनिया की कुल GDP में 18 प्रतिशत का हिस्सेदार है- में अचानक कोविड-19 की बड़ी लहर आ गई. चूंकि चीन, वैश्विक मूल्य वर्धित श्रृंखलाओं (GVC) से अटूट रूप से जुड़ा है, तो वहां कोरोना की नई लहर ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ़्तार और धीमी कर दी. बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के देशों पर तो इसका ख़ास तौर से असर पड़ा है.

खाद्य सुरक्षा

खाद्य सुरक्षा एक ऐसा मुद्दा है, जो रूस और यूक्रेन के युद्ध और उसके बाद पैदा हुए खाद्य संकट से और अहम हो गया है. दुनिया की खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में रूस और यूक्रेन एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. इसलिए युद्ध से निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों पर इसका भी असर पड़ा. महामारी के बाद के दौर में समाज के कमज़ोर वर्ग के लोग पहले ही भुखमरी से जूझ रहे थे. इस युद्ध से उनकी मुश्किलें और भी बढ़ गईं.

इस युद्ध और इसके चलते खाने पीने के सामान के दाम में बढ़ोत्तरी और उपलब्धता में कमी के संकट से दुनिया में कुपोषण के शिकार लोगों की तादाद 76 लाख से बढ़कर 1 करोड़ 31 लाख हो जाएगी.

चूंकि रूस और यूक्रेन मिलकर दुनिया के एक तिहाई गेहूं और जौ और 70 प्रतिशत सूरजमुखी के तेल का निर्यात करते हैं, तो दुनिया भर की सरकारों पर बहुत बुरा असर पड़ा है. क्योंकि, इस युद्ध से यूक्रेन के क़रीब 2 करोड़ टन अनाज का निर्यात रुक गया है. इसमें से क़रीब 60 लाख टन कृषि उत्पाद हर महीने एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व के देशों को निर्यात किए जाते थे. जून 2022 तक ये तादाद कम होकर अपने पांचवें हिस्से तक सिमट गई है. संयुक्त राष्ट्र (UN) के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, युद्ध के बाद से खाने पीने के सामान दुनिया में 20 प्रतिशत तक बढ़ चुके हैं. इस संगठन ने भविष्यवाणी की है कि इस युद्ध और इसके चलते खाने पीने के सामान के दाम में बढ़ोत्तरी और उपलब्धता में कमी के संकट से दुनिया में कुपोषण के शिकार लोगों की तादाद 76 लाख से बढ़कर 1 करोड़ 31 लाख हो जाएगी.

Figure 2: बंगाल की खाड़ी स्थित चुनिंदा देशों में खाद्य असुरक्षा की स्थिति (आबादी के प्रतिशत में)

Source: Authors’ own, data from World Bank

इसके अतिरिक्त, श्रीलंका में आर्थिक तबाही ने वहां की जनता की खाद्य सुरक्षा पर बिजली गिरा दी; हो सकता है कि बहुत जल्द बांग्लादेश भी इसी तरह के खाद्य सुरक्षा संकट के कगार पर पहुंच जाए. श्रीलंका के लिए 2021 में अचानक ऑर्गेनिक खेती अपनाने के फ़ैसले ने उसके कृषि क्षेत्र के व्यापारिक प्रदर्शन को बहुत ख़राब कर दिया. इसके कारण, श्रीलंका को चीनी, चावल और खाने पीने के दूसरे सामानों को दूसरे देशों से ख़रीदना पड़ा. इनमें खाद्य पदार्थ तैयार करने वाले सामान भी शामिल थे. जबकि पहले श्रीलंका यही उत्पाद अपनी ज़रूरत से ज़्यादा पैदा करता था. 2022 तक श्रीलंका के चाय उद्योग को 42.5 करोड़ डॉलर का नुक़सान उठाना पड़ा था. जबकि पहले श्रीलंका का चाय उद्योग उसकी विदेशी मुद्रा की आमदनी का बड़ा स्रोत था. इससे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा की कमी का संकट और बढ़ गया. इस संदर्भ में क्षेत्रीय संगठनों के लिए ये ज़रूरी हो जाता है कि वो ऐसे संकटों से निपटने के लिए सुरक्षा के उपाय करें, जिससे भू-राजनीतिक घटनाओं और घरेलू व्यापक आर्थिक चुनौतियों से उनकी खाद्य सुरक्षा प्रभावित न हो.

आसियान देशों के खाद्य बैंक की तर्ज पर बे ऑफ़ बेंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल ऐंड इकॉनमिक को-ऑपरेशन (BIMSTEC) देशों के लिए भी एक खाद्य बैंक बनाने का क़दम एक अच्छी शुरुआत हो सकती है. क्योंकि इससे क़ीमतें स्थिर करने में मदद मिलेगी. हाल ही में, नवंबर 2022 में भारत ने बिमस्टेक देशों के कृषि मंत्री स्तर की बैठक की मेज़बानी की थी. इस बैठक में भारत ने सदस्य देशों से अपील की कि वो कृषि क्षेत्र में बदलाव और खाद्य व्यवस्था में मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए एक क्षेत्रीय रणनीति विकसित करें. मोटे अनाज जैसे खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देने और इस क्षेत्र के जिन देशों में अनाज का ज़रूरत से ज़्यादा उत्पादन होता है, उनके बीच व्यापार को बढ़ाने से खाद्य सुरक्षा को काफ़ी हद तक कम करने में मदद मिल सकती है.

ऊर्जा संकट

ऊर्जा के आयात के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि बिमस्टेक (BIMSTEC) के सभी सदस्य देश और ख़ास तौर से भारत, म्यांमार और भूटान अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए आयात पर बहुत निर्भर हैं. ईंधन के व्यापार पर निर्भरता इस क्षेत्र के लिए बड़ा अभिशाप है और इस वजह से पूरा क्षेत्र बाहरी बड़ी आर्थिक घटनाओं के झटके झेल पाने में कमज़ोर साबित होता है. रूस और यूक्रेन का युद्ध देशों के ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर होने की अहमियत को साबित करता है.

Table 1: बिमस्टेक देशों द्वारा ईंधन का आयात (कुल आयात में प्रतिशत हिस्सेदारी)

Country Most Recent Year Import Percentage
Bangladesh 2015 11
Bhutan 2012 18
India 2021 30
Myanmar 2021 20
Nepal 2021 15
Sri Lanka 2021 16
Thailand 2021 16

स्रोत: लेखक के अपने और विश्व बैंक के आंकड़े

नवीनीकरण योग्य ऊर्जा की ओर परिवर्तन की शुरुआत करने में नाकाम रहने के साथ ईंधन के आयात पर बहुत अधिक निर्भरता के कारण, ऊर्जा सुरक्षा के मामले में बांग्लादेश तो विशेष रूप से मुश्किल स्थिति में है. रूस और यूक्रेन के युद्ध ने इस आग में घी डालने का काम किया है. चूंकि ऊर्जा संसाधनों के दाम बढ़ रहे हैं और उसी अनुपात में सब्सिडी भी बढ़ती जा रही है, तो बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था का वित्तीय संतुलन और चालू खाते का घाटा भी बेहद चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया है. हालात पर क़ाबू पाने के लिए आख़िरकार बांग्लादेश की सरकार ने बचत करने वाले कुछ क़दम उठाए हैं. डीज़ल, केरोसिन, ऑक्टेन और पेट्रोल के दाम क्रमश:  42.5, 42.5, 51.6 और 51.1 प्रतिशत बढ़ा दिए गए. अगस्त महीने में डीज़ल और केरोसिन 114 टका प्रति लीटर, ऑक्टेन 135 और पेट्रोल 130 टका प्रति लीटर हो गया था. ये पिछले 20 वर्षों में ईंधन की क़ीमतों में की गई सबसे बड़ी बढ़ोत्तरी थी, जिसके बाद बांग्लादेश में भी तेल के दाम, भारत, चीन और नेपाल जैसे पड़ोसियों के बराबर पहुंच गए.

बिमस्टेक ग्रिड इंटरकनेक्शन स्थापित करने के लिए अगस्त 2018 में एक सहमति पत्र (MoU) पर हस्ताक्षर भी कर लिए थे. लेकिन, इसके लिए आवश्यक मूलभूत ढांचे की कमी और ख़ुद को ढालने में सक्षम बाज़ार के अभाव, ग्रिड सिस्टम में तालमेल की कमी, वित्तीय नीतियों के अभाव और इससे जुड़े दूसरे मसलों के चलते, इस क्षेत्र के देशों के बीच ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाने में प्रगति की रफ़्तार धीमी कर दी है.

बिमस्टेक देशों ने अक्टूबर 2005 में ही संगठन के बीच ‘ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग की कार्य योजना’ विकसित कर ली थी और बिमस्टेक ग्रिड इंटरकनेक्शन स्थापित करने के लिए अगस्त 2018 में एक सहमति पत्र (MoU) पर हस्ताक्षर भी कर लिए थे. लेकिन, इसके लिए आवश्यक मूलभूत ढांचे की कमी और ख़ुद को ढालने में सक्षम बाज़ार के अभाव, ग्रिड सिस्टम में तालमेल की कमी, वित्तीय नीतियों के अभाव और इससे जुड़े दूसरे मसलों के चलते, इस क्षेत्र के देशों के बीच ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाने में प्रगति की रफ़्तार धीमी कर दी है.

क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं में हरित परिवर्तन वाली तकनीकों पर अनुसंधान के क्षेत्र में निवेश की काफ़ी संभावनाएं हैं. इससे उन्हें ऊर्जा बाज़ार में आत्मनिर्भर होने में भी मदद मिलेगी. उदाहरण के तौर पर जापानी कंपनियों से आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का भारतीय अर्थव्यवस्था में लगातार गहरा और दूसरे क्षेत्रों में भी असर होता है. अगर जापानी कंपनियों के बड़े अर्थव्यवस्था वाले निवेश और उनकी अलग अलग हरित तकनीकें विकसित करने की संभावनाओं को पूरी तरह इस्तेमाल किया जाए, तो इससे पूरे क्षेत्र की चीन पर निर्भरता कम होगी, जो इस समय सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा खिलाड़ी है. 2022 में 27वें जलवायु सम्मेलन (COP27) में भारत ने कोयले और तेल समेत सभी तरह के जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल 2070 तक ख़त्म करने के लिए अपनी दूरगामी रणनीति और प्रतिबद्धता को सामने रखा था. भारत की अगुवाई में बंगाल की खाड़ी का क्षेत्र नवीनीकरण योग्य ऊर्जा जैसे कि सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में आविष्कारों के माध्यम से आगे की राह दिखा सकता है.

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