Author : Amit Kumar

Published on Oct 21, 2022 Updated 24 Days ago

अब जबकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने तीसरे कार्यकाल की शुरुआत कर रहे हैं, तो लोग ये उम्मीद लगा रहे हैं कि चीन की नीतियों में ऐसे बदलाव देखने को मिलेंगे, जो ‘नए युग’ के लक्ष्यों को पूरे करने वाले हो.

‘नए युग’ में शी जिनपिंग की विरासत

ये लेख हमारी- द चाइना क्रॉनिकल्स– सीरीज़ की 134वीं कड़ी है.


चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं पार्टी कांग्रेस से पहले, उसके कई सचिवों ने अपनी अपनी प्रांतीय पार्टी शाखाओं की कांग्रेस (2021-2022 के चक्र) में महासचिव शी जिनपिंग पर इस बात का भरोसा जताया कि वो अपनी अगुवाई में चीन को एक ‘नए युग’ की तरफ़ ले जाएंगे. ‘नया युग’ का विचार, शी जिनपिंग ने 2017 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) की 19वीं पार्टी कांग्रेस के दौरान पेश किया था. उस समय शी जिनपिंग ने कहा था कि चीन राष्ट्र और चीन की ख़ूबियों वाला समाजवाद, 2012 में हुई 18वीं पार्टी कांग्रेस के बाद एक ‘नए युग’ में प्रवेश कर चुका है. ये वही साल था, जब शी जिनपिंग, कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) के महासचिव बने थे.

राष्ट्रीय नवजागरण यानी चीन का खोया हुआ पुराना गौरव फिर से हासिल करना. पहले चरण को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने ‘अपने पैरों पर खड़े होने’ का नाम दिया, जो चीन की साम्राज्यवादी, सामंतवादी और पूंजीवादी शिकंजे से आज़ादी का दौर था.

अपने आग़ाज़ के साथ ही ‘नया युग’ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के तमाम संदेशों में बार-बार नज़र आने लगा था. ये इस बात का संकेत देता था जिसे शी जिनपिंग चीन के ‘राष्ट्रीय नवजागरण’ के सफ़र का तीसरा पड़ाव कहते हैं. राष्ट्रीय नवजागरण यानी चीन का खोया हुआ पुराना गौरव फिर से हासिल करना. पहले चरण को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने ‘अपने पैरों पर खड़े होने’ का नाम दिया, जो चीन की साम्राज्यवादी, सामंतवादी और पूंजीवादी शिकंजे से आज़ादी का दौर था. दूसरा दौर ‘समृद्ध होने का’ है, जब चीन एक पिछड़े हुए देश के दर्ज़े से तरक़्क़ी करके दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में तब्दील हुआ.

‘नए युग’ का मतलब क्या है?

जैसा कि शी जिनपिंग स्पष्ट करते हैं, चीन के इस सफ़र के तीसरे चरण का मक़सद ‘मज़बूत बनना’ है. इस सफ़र के दौरान शी जिनपिंग ने देश के सामने खड़े नए विरोधाभासों की पहचान की है, जिनसे निपटने के लिए नए लक्ष्य निर्धारित करने और आगे बढ़ने के लिए नए विचार अपनाने की ज़रूरत, वो जताते हैं.

अपनी मार्क्सवादी सोच से प्रेरित होकर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इतिहास के चक्र को लगातार बने रहने वाले विरोधाभासों और उनका समाधान तलाशने के सतत संघर्ष के रूप में देखती है. शी जिनपिंग का कहना है कि चीन के समाज में बदलाव तो आया है. इस बदलाव के साथ साथ, चीन के सामने खड़े विरोधाभास भी बदल गए हैं. इसी हिसाब से असंतुलित और अपर्याप्त विकास और लोगों की बेहतर ज़िंदगी की लगातार बढ़ती ज़रूरतें ही ‘आज के दौर के विरोधाभास’ को दर्शाती हैं.

इस मुख्य विरोधाभास के अनुसार जो ‘दोहरे लक्ष्य’ निर्धारित किए गए हैं, वो नए युग की एक और ख़ूबी दर्शाते हैं. 2019 की पार्टी कांग्रेस रिपोर्ट में नए युग के जिन दो लक्ष्यों की पहचान की गई थी उनमें एक औसत दर्जे के समृद्ध समाज और एक आधुनिक समाजवादी राष्ट्र का निर्माण करना शामिल है. ये लक्ष्य कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के 100 साल पूरे होने (2021) और कम्युनिस्ट चीन राष्ट्र (PRC) की स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने (2049) तक हासिल किए जाने हैं. शी जिनपिंग ने जुलाई 2021 में पार्टी के शताब्दी समारोह में दिए गए अपने भाषण में ये बातें कही थीं. उस भाषण में शी जिनपिंग ने बताया था कि कम्युनिस्ट पार्टी ने देश से ग़रीबी ख़त्म करने में कामयाबी हासिल कर ली है. वहीं एक और शताब्दी का लक्ष्य हासिल करना अभी बाक़ी है.

शी जिनपिंग का कहना है कि चीन के समाज में बदलाव तो आया है. इस बदलाव के साथ साथ, चीन के सामने खड़े विरोधाभास भी बदल गए हैं. इसी हिसाब से असंतुलित और अपर्याप्त विकास और लोगों की बेहतर ज़िंदगी की लगातार बढ़ती ज़रूरतें ही ‘आज के दौर के विरोधाभास’ को दर्शाती हैं.

दूसरी शताब्दी का लक्ष्य जिसके तहत चीन को अपनी मिली-जुली ताक़त के दम पर एक वैश्विक नेता बनाने, अंतरराष्ट्रीय दबदबा क़ायम करने और देश के सभी नागरिकों को समृद्ध बनाने का लक्ष्य रखा गया है, उसे वर्ष 2049 तक हासिल करना है. इस मंज़िल तक पहुंचने से पहले 2035 में एक पड़ाव भी आएगा, जब चीन को ये उम्मीद है कि वो समाजवादी आधुनिकीकरण कर लेगा. मतलब ये कि वो आविष्कारों के मामले में दुनिया में अव्वल बन जाएगा. मध्यम दर्जे की आमदनी वाली बड़ी आबादी और शहरी व ग्रामीण जनता के बीच का फ़ासला काफ़ी हद तक कम करने के साथ साथ वो अपनी संस्कृति की सॉफ्ट पावर के बूते दुनिया पर अपना दबदबा क़ायम कर लेगा.

अंदरूनी विरोधाभासों के अलावा शी जिनपिंग एक अनिश्चित बाहरी माहौल की बात भी करते हैं. जिसके तहत अंतरराष्ट्रीय शक्ति संतुलन में व्यापक बदलाव आ रहा है. इकतरफ़ा क़दम उठाने, दबदबा क़ायम करने, बड़ी ताक़तों के बीच संघर्ष बढ़ने और भूमंडलीकरण के ख़िलाफ़ मुहिम तेज़ होने का सिलसिला बढ़ने की संभावना है. कुल मिलाकर इन बदलावों ने ‘दुनिया को एक उठा-पटक और बदलाव के दौर’ में धकेल दिया है. इसीलिए, चीन को एक बड़े देश के तौर पर अपनी कूटनीति में भी बदलाव लाने होंगे और बड़ी अंतरराष्ट्रीय ताक़तों के साथ उसी हिसाब से राजयनिक संवाद करने होंगे.

इन चुनौतियों के बारे में विस्तार से बातें करके शी जिनपिंग चीन के लिए एक नए निर्देशक सिद्धांत की ज़रूरत साबित करते हैं, जिनके आधार पर ऊपर बताए गए लक्ष्य हासिल करने की रणनीति बनाई जाएगी. इसी कड़ी में शी जिनपिंग ने, नए युग के लिए चीन की ख़ूबियों वाले समाजवाद पर शी जिनपिंग के विचार सामने रखे हैं. जिनके आधार पर चीन ख़ुद को इस नए दौर में आगे बढ़ाएगा.

शी जिनपिंग एक अनिश्चित बाहरी माहौल की बात भी करते हैं. जिसके तहत अंतरराष्ट्रीय शक्ति संतुलन में व्यापक बदलाव आ रहा है. इकतरफ़ा क़दम उठाने, दबदबा क़ायम करने, बड़ी ताक़तों के बीच संघर्ष बढ़ने और भूमंडलीकरण के ख़िलाफ़ मुहिम तेज़ होने का सिलसिला बढ़ने की संभावना है. 

शी जिनपिंग के विचारों का सख़्ती से पालन हो, इसके लिए कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा राजनीतिक, वैचारिक और संगठन के स्तर पर नव निर्माण को ‘नए युग’ की एक और ख़ूबी के तौर पर पेश किया जाता रहा है. सबसे अहम बात तो ये है कि इन विचारों के तहत पार्टी को ये ज़िम्मेदारी दी गई है कि उसके सदस्य जनता के कल्याण के लिए आगे भी काम करते रहें.

‘नए युग’ के विचार के पीछे की राजनीति

बेहद आदर्शवादी और ऊंचे लक्ष्यों की घोषणा करने के पीछे असल मक़सद तो शी जिनपिंग के शासनकाल को उनके पहले के नेताओं से न केवल बिल्कुल अलग रूप में पेश करना, बल्कि चीन के हालिया इतिहास में एक बड़े बदलाव के रूप में सामने रखना है. ये कोशिश, जिनपिंग द्वारा 1921 से चीन के सफ़र को तीन हिस्सों में बांटने के रूप में भी उजागर हो जाती है. जिनके तहत उन्होंने चीन के सौ साल के सफर को ‘अपने पैरों पर खड़े होने’, ‘समृद्ध बनने’ और ‘मज़बूत बनने’ के तीन हिस्सों में बांटा है. चीन को मज़बूत बनाना ही एक ऐसी विरासत है, जो शी जिनपिंग अपने नाम पर छोड़कर जाना चाहते हैं. ऐसा करके शी जिनपिंग ख़ुद को चीन के इतिहास में ‘युग बदलने वाले’ और ‘क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले’ ऐसे नेता के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं, जो माओ और देंग की क़तार में खड़ा हो. इस दौर की अहमियत पर और ज़ोर देने के लिए शी जिनपिंग ज़ोर देकर ये कहते हैं कि वैसे तो चीन आज ‘राष्ट्रीय नवजागरण’ के लक्ष्य को पूरा करने के बेहद क़रीब और सक्षम रूप से खड़ा है. लेकिन, इस सफ़र की मंज़िल तक पहुंचने से पहले आधा रास्ता ही तय हुआ है और लक्ष्य तक पहुंचने के लिए ‘शोर मचाने और ताली पीटने से ज़्यादा मज़बूती से कोशिश करनी होगी.’

गहराई से देखें, तो ‘नए युग’ के नाम पर जो माहौल तैयार किया जा रहा है, उसके पीछे असल मक़सद तो शी जिनपिंग को केंद्र में रखकर एक मज़बूत नेतृत्व तैयार करने का है. शी जिनपिंग बार बार इस बात पर ज़ोर देते हैं कि आज चीन के सामने अभूतपूर्व बाहरी और अंदरूनी संकट खड़े हैं.

इसी तरह नए युग के लिए चीन की घोषित निर्देशक नीति- यानी शी जिनपिंग के विचार, असल में शी की हैसियत को पार्टी की केंद्रीय भूमिका के तौर पर स्थापित करने की वैधानिक कोशिश है. जिनपिंग को ये दर्जा 2016 में दिया गया था. 19वीं पार्टी कांग्रेस के छठे महाधिवेशन में अपनाए गए ‘दो मूलभूत सिद्धांतों’ ने शी जिनपिंग और उनके विचारों को पार्टी के केंद्र में मज़बूती से स्थापित कर दिया था और जिनपिंग या उनके विचारों के विरोध को एक क़ानूनी अपराध का दर्जा दे दिया था.

गहराई से देखें, तो ‘नए युग’ के नाम पर जो माहौल तैयार किया जा रहा है, उसके पीछे असल मक़सद तो शी जिनपिंग को केंद्र में रखकर एक मज़बूत नेतृत्व तैयार करने का है. शी जिनपिंग बार बार इस बात पर ज़ोर देते हैं कि आज चीन के सामने अभूतपूर्व बाहरी और अंदरूनी संकट खड़े हैं. जिनपिंग ये इस तर्क के पीछे की नीयत ऐसे असाधारण क़दम उठाने का माहौल बनाना है, जिनके चलते उनके व्यक्तित्व पर आधारित तानाशाही के राज को अनिश्चित दौर तक चलाते रहना है.

आख़िर में पार्टी के निर्माण पर नए सिरे से ज़ोर देने वाली बात को ही देखें, जो 2012 में शी जिनपिंग के महासचिव बनने के बाद से ही पार्टी का मुख्य लक्ष्य रही है. इसके ज़रिए कार्यकर्ताओं का एक मज़बूत सियासी, वैचारिक और संगठन खड़ा करने की कोशिश की जा रही है जो शी जिनपिंग की प्राथमिकताओं और विचारों में यक़ीन रखते हों. ये सुनिश्चित करने के लिए शी जिनपिंग ने पार्टी सदस्यों के ऊपर निगरानी और सियासी समीक्षा व्यवस्था को और मज़बूत बनाया है, और जिनपिंग बार बार आत्म प्रशासन, ख़ुद से आलोचना और अपने भीतर से सुधार करने पर बल देते रहते हैं. इस कोशिश का नतीजा, 2012 के बाद से पार्टी, सरकार और सैन्य बलों के हज़ारों अधिकारियों की तफ़्तीश के तौर पर सामने आया है.

उपरोक्त सभी बातें मिलकर शी जिनपिंग और उनके इर्द गिर्द मौजूद ढांचे को बेहद ताक़तवर बना देती हैं. भले ही लोग ये सोचें कि कोई भी तानाशाही शासन, ज़ोर ज़बरदस्ती और दबाव से ही चलता है. लेकिन, सच ये है कि इसकी बुनियाद हमेशा यक़ीन करने लायक़ माहौल बनाकर रखी जाती है. इस मायने में ‘नए युग’ का विचार बहुत व्यापक है, जो एक नैतिक, बौद्धिक और बुनियादी ज़मीन तैयार करता है. इसके आधार पर शी जिनपिंग अपने तानाशाही शासन के अधिकार को वैधानिक जामा पहनाते हैं.

अब तक हुई तरक़्क़ी की समीक्षा

हालांकि, नए युग के नाम पर जो माहौल बनाया जा रहा है, उसने माओ के बाद शी जिनपिंग के रूप में चीन को सबसे तानाशाही शासक के दर्जे तक पहुंचा दिया है. लेकिन, इसका असरदार और टिकाऊ होना इस बात पर निर्भर करता है कि शी जिनपिंग अपने शासनकाल के दौरान तय किए गए भारी-भरकम लक्ष्य और मक़सद हासिल करने में किस हद तक सफल हो पाते हैं. हालांकि, अगर हम नए युग के तहत चीन द्वारा तय की गई घरेलू और वैश्विक आकांक्षाओं के पैमानों पर शी जिनपिंग की कामयाबी को मापते हैं, तो पता ये चलता है कि उनकी नीतियों के नतीजे उल्टे ही निकले हैं, जो लक्ष्य हासिल करने की राह में बाधा बन रहे हैं.

राष्ट्रीय स्तर पर बात करें, तो निजी कंपनियों और तकनीकी क्षेत्र के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने से इन कंपनियों का बाज़ार मूल्य गिर गया है और ज़ाहिर है कि इसका असर आविष्कार के क्षेत्र पर पड़ रहा है. इसी तरह शी जिनपिंग की ज़ीरो कोविड नीति ने ग़रीबी उन्मूलन की उन उपलब्धियों को ख़त्म कर दिया है, जिसका बखान शी जिनपिंग के 2021 में कम्युनिस्ट पार्टी के शताब्दी समारोह में किया था. ज़ीरो कोविड नीति के चलते शी जिनपिंग के महत्वाकांक्षी ‘साझा समृद्धि’ का लक्ष्य हासिल करने में भी देर हो सकती है.

अंतरराष्ट्रीय मोर्चे की बात करें, तो शी जिनपिंग ने दुनिया की सभी बड़ी ताक़तों को एक साथ अपने खिलाफ़ कर लिया है. फिर चाहे वो अमेरिका हो, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया या फिर कनाडा. प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 19 देशों में चीन विरोधी विचारों के चलते उनका रुख़ चीन के प्रति बेहद सख़्त हो गया है. इस रिसर्च रिपोर्ट में अमेरिका, जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और दक्षिण कोरिया शामिल हैं. चीन को लेकर लोगों की नाराज़गी के पीछे, अपने पड़ोसियों की ज़मीन पर क़ब्ज़े की चीन की कोशिशें, कोविड की शुरुआत की बातों को छुपाना और शिनजियांग और तिब्बत में मानव अधिकारों का उल्लंघन शामिल है. इसके अलावा, बहुत से देशों की जनता चीन से इसलिए भी नाराज़ है कि वो दूसरे देशों के अंदरूनी मामलों में दख़लंदाज़ी करता है. यही वजह है कि यूरोपीय संघ को चीन के साथ रिश्तों के अपने समीकरण नए सिरे से बैठाने पड़े हैं. निश्चित रूप से ये हालात, चीन की बड़ी ताक़त वाली कूटनीति की कामयाबी तो नहीं ही कहे जा सकते हैं.

इसी तरह, चीन द्वारा व्यापार को हथियार की तरह इस्तेमाल करने को हमेशा तैयार रहने और आर्थिक दादागीरी की उसकी नीतियों ने दुनिया को एक ऐसी वैकल्पिक, मज़बूत और लचीली आपूर्ति श्रृंखला के निर्माण के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है, जो चीन पर निर्भर न हो. इस इरादे का असर हम इस रूप में देख रहे हैं कि आज बहुत से देश, महत्वपूर्ण और उभरती हुई तकनीकों और ख़ास तौर से 5G के विकास में सहयोग के मामले में चीन को अलग थलग रखने पर सहमत होते जा रहे हैं. अगर चीन पर निर्भरता कम करने की कोई भी कोशिश कामयाब होती है, तो उसका सीधा असर चीन की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा क्योंकि वो निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर है. वो भी ऐसा तब होगा, जब चीन की अर्थव्यवस्था की विकास दर पहले ही धीमी पड़ती जा रही है. इसी तरह शुरुआती दिनों में कोविड महामारी से निपटने में जिस तरह चीन ने गोपनीयता बनाए रखी और मानव अधिकारों के सम्मान का उसका रिकॉर्ड भी चीन के ख़िलाफ़ ही जाता है.

शी जिनपिंग के क़दम, ख़ास तौर से दूसरे कार्यकाल में उनके फ़ैसलों ने चीन के इर्द गिर्द एक विरोध का माहौल बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है. हो सकता है कि इसके ज़रिए शी जिनपिंग को अपनी तानाशाही वाजिब ठहराने मे सफलता मिल जाए. लेकिन, एक स्थायी सियासी रणनीति के तौर पर हमेशा इसी नीति पर चल पाना नामुमकिन है.

शी जिनपिंग के क़दम, ख़ास तौर से दूसरे कार्यकाल में उनके फ़ैसलों ने चीन के इर्द गिर्द एक विरोध का माहौल बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है. हो सकता है कि इसके ज़रिए शी जिनपिंग को अपनी तानाशाही वाजिब ठहराने मे सफलता मिल जाए. लेकिन, एक स्थायी सियासी रणनीति के तौर पर हमेशा इसी नीति पर चल पाना नामुमकिन है. क्योंकि इससे पहले जैसे नतीजे शायद ही हासिल किए जा सकेंगे. इसके उलट ‘नए युग’ के नज़रिए को कामयाब बनाने के लिए एक समृद्ध अर्थव्यवस्था का होना पहली शर्त है. किसी भी तरह से आज जब शी जिनपिंग, अभूतपूर्व रूप से राष्ट्रपति और पार्टी महासचिव के तौर पर तीसरा कार्यकाल हासिल कर चुके हैं, तो हमें ये उम्मीद ज़रूर करनी चाहिए कि वो ‘नए युग’ के लक्ष्य हासिल करने के लिए नीतियों में ऐसा बदलाव ज़रूर लाएंगे, जो उनके मक़सदों से मेल खाती हों.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.