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बाइडेन और शी के बीच डिजिटल शिखर-वार्ता हाल ही में संपन्न हुई है. यह बैठक नीति में उस नये बदलाव को परिभाषित कर सकती है, जिससे आनेवाले दिनों में अमेरिका- चीन संबंध संचालित होंगे.
शी जिनपिंग और राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच 15 नवंबर 2021 को हुई डिजिटल शिखर वार्ता एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम था, क्योंकि यह दो साल से अधिक वक्त में अमेरिकी और चीनी नेताओं के बीच पहली द्विपक्षीय बैठक थी. 9 सितंबर को दोनों के बीच फोन पर बातचीत के बाद हुई यह बैठक, उनके बीच की हाल की सबसे लंबी बैठक थी.
कोई साझा बयान जारी किया गया तो नहीं लगता, लेकिन बातचीत के बाद अमेरिकी आधिकारिक ब्योरे में जिक्र किया गया कि दोनों पक्षों ने ‘दोनों देशों के बीच के जटिल किस्म के रिश्तों और आपसी प्रतिस्पर्धा को जिम्मेदारी के साथ प्रबंधित करने की अहमियत पर चर्चा की.’
शिखर वार्ता के एजेंडे में ढेरों चीजें थीं, जिनमें व्यापार, साइबर मुद्दे, जलवायु, ताइवान और शिनजियांग जैसे पहले से चले आ रहे मामले भी शामिल थे. ज्यादा अहम यह है कि यह शिखर वार्ता आनेवाले दिनों में अमेरिका-चीन रिश्ते के सुर तय करेगी. विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक, शिखर वार्ता की दोस्ताना लहजे में शुरुआत करते हुए बाइडेन ने शी से कहा कि बीते सालों के दौरान वे पहले ही काफ़ी वक्त साथ बिता चुके हैं, और ‘हमेशा एक-दूसरे से बहुत ईमानदारी से और बिना लाग-लपेट के बात करते रहे हैं.’ शी ने यह कहकर जवाब दिया कि वह ‘अपने पुराने दोस्त से मिलकर बहुत खुश हैं.’
बाइडेन और शी एक-दूसरे को अच्छे से जानते-समझते हैं. उनके रिश्ते 2011 में बने, जब दोनों ही अपने यहां के सिस्टम में नंबर दो की हैसियत में थे. अगस्त 2011 में बाइडेन जब चीन की छह दिन की लंबी यात्रा पर थे, तो शी उनके साथ रहे.
अपने आरंभिक वक्तव्य में, बाइडेन ‘सामान्य समझ-बूझ की कुछ दुर्घटना-रोधी बाड़ें’ स्थापित करने की जरूरत के बारे में बोले और शी से कहा कि हम पर ‘दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा को टकराव में बदलने से रोकना सुनिश्चित करने’ की विशेष जिम्मेदारी है और इसकी खूबी होनी चाहिए ‘सीधी-सच्ची प्रतिस्पर्धा.’
बदले में, शी ने ‘एक मजबूत और स्थिर चीन-अमेरिका संबंध’ विकसित करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि चीन और अमेरिका को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए. साथ ही उन्होंने ‘चीन-अमेरिका संबंधों को सकारात्मक दिशा में आगे ले जाने के लिए सक्रिय कदम उठाने’ के लिए अपनी रज़ामंदी का इज़हार किया.
बाइडेन के कार्यभार संभालने के समय से ही, बीते 10 महीनों से, ऐसी उम्मीदें रही हैं कि हमें अमेरिका की ओर से एक सुसंगत चीनी नीति मिलेगी. फ़िलहाल, प्रशासन की ओर से चीन नीति की समीक्षा की जो अपेक्षा थी, उसके कोई संकेत नहीं दिखे हैं. याद रहे कि ट्रंप प्रशासन की नीति बेहद अव्यवस्थित और भ्रामक थी, जो राष्ट्रपति के लेनदेन-वाद (transactionalism) से लेकर उनके विदेश मंत्री जॉन पोम्पियो के वैचारिक हमलों के बीच तीखे मोड़ लेती रही.
चीन ने वस्तुत: विश्व व्यापार व्यवस्था के साथ खेल किया, तकनीक की चोरी की, और शी जिनपिंग के राज में, उसने खुलेपन व लोकतंत्र से दूर जाना शुरू किया और दक्षिण चीन सागर में ‘समुद्र के क़ाननू को लेकर संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन’ (UNCLOS) का मज़ाक बना दिया.
इसमें कोई ज्यादा संदेह नहीं कि दोनों नेता इस शिखर वार्ता में अपने घरेलू मुद्दों को दिमाग में रखकर शामिल हुए. चीन के लिए, यह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) की 2022 में होने वाली आगामी कांग्रेस है, जिसमें शी महासचिव, और फिर उसके बाद राष्ट्रपति निर्वाचित होने की उम्मीद कर रहे हैं. तीसरी बार राष्ट्रपति बनकर वह एक नयी नज़ीर पेश करेंगे. बाइडेन के लिए, यह अगले साल होने वाले ऑफ-इयर इलेक्शन (उस साल होनेवाला चुनाव जब राष्ट्रपति चुनाव न हो रहा हो) का सामना करने के वास्ते अपने घर में राजनीतिक ज़मीन को दोबारा हासिल करने की ज़रूरत है. जहां ऐसा लगता है कि डेमोक्रेट प्रतिनिधि सदन और सीनेट में अपना बहुमत गंवा सकते हैं.
हालांकि, दोनों नेता इस बैठक में अपनी-अपनी घरेलू कामयाबी के साथ पहुंचे थे. शी उस कामयाब सीपीसी प्लेनम से बस निकले ही थे, जिसने पार्टी और देश की सरकार पर उनकी पकड़ और गहरी कर दी है. वहीं, बाइडेन एक हज़ार अरब अमेरिकी डॉलर के उस इंफ्रास्ट्रक्चर बिल पर दस्तख़त करके पहुंचे थे, जो अमेरिका के नवीनीकरण की चुनौतियों को पूरा करने और चीन को प्रतिस्पर्धा में पछाड़ने की क्षमता हासिल करने में किसी हद तक मदद करेगा.
हालिया प्लेनम के नतीजों के नतीजों का दायरा कहीं ज्यादा बड़ा है. इसने उस औपचारिक प्रस्ताव को पारित किया है जो शी के दर्जे को माओ और देंग की बराबरी में करार देता है. जैसा कि केविन रड ने उल्लेख किया है, यह पूरी कवायद ‘चीनी राज्य के पेशेवर शासन-तंत्र पर पार्टी की एक ज्यादा ताक़तवर भूमिका स्थापित कर चीनी राजनीति को वामपंथी’ दिशा में ले गयी है. शी चीन पर अमेरिकी राष्ट्रपतियों के पांच कार्यकाल के बराबर राज कर सकते हैं, इसलिए ‘2035 तक और उसके बाद के लिए भी एक दीर्घकालिक, द्विदलीय राष्ट्रीय चीन रणनीति’ की जरूरत है.
चार दशकों तक, चीन को लेकर अमेरिकी नीति इस यक़ीन पर आधारित थी कि चीनी अर्थव्यवस्था अपनी बाज़ार-उन्मुखी नीतियों और वैश्विक बाजार से जुड़ाव की वजह से आयी समृद्धि के साथ बदलेगी. वैश्विक आर्थिक मानदंडों के मुताबिक़ चीन भी ढल जायेगा. इसके अलावा, चीन जैसे-जैसे ज्यादा धनी और वैश्विक अर्थव्यवस्था से ज्यादा जुड़ता जायेगा, वह ज्यादा खुला, ज्यादा लोकतांत्रिक, और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों को मानने के प्रति ज्यादा झुकाव रखने लगेगा.
जैसा कि भली भांति ज्ञात है, ऐसा नहीं हुआ है; चीन ने वस्तुत: विश्व व्यापार व्यवस्था के साथ खेल किया, तकनीक की चोरी की, और शी जिनपिंग के राज में, उसने खुलेपन व लोकतंत्र से दूर जाना शुरू किया और दक्षिण चीन सागर में ‘समुद्र के क़ाननू को लेकर संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन’ (UNCLOS) का मज़ाक बना दिया.
अमेरिकी नीति में बड़ा बदलाव आना शुरू केवल ट्रंप प्रशासन के साथ. ट्रंप ने इस प्रक्रिया की शुरुआत कमोबेश सभी चीनी आयातों पर शुल्क लगाकर की, लेकिन जल्द ही यह बढ़कर तकनीकी मनाही की नीति तक पहुंच गयी, जिसका आरंभ हुआवे (Huawei) की 5जी तकनीक पर प्रतिबंध के साथ हुआ. तब से, अमेरिका ने ऐसे क़ानून पारित किये जिन्होंने उसकी तकनीक निर्यात प्रणालियों को और सुदृढ़ किया, और चीन को ख़याल में रखकर उसने अपने निर्यात नियंत्रण अधिनियम में तकनीकों की फ़ेहरिस्त और लंबी की.
लेकिन ट्रंप ने हांगकांग पर चीनी दमन की निंदा करने से इनकार भी किया. वह उम्मीद लगाये हुए थे कि इससे चीन के साथ व्यापार को लेकर मोलतोल दोबारा शुरू करने में मदद मिलेगी. उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों में से एक जॉन बोल्टन ने लिखा है कि कैसे ट्रंप को शिनजियांग में चीनी डिटेन्शन सेंटरों से कोई समस्या नहीं थी, बल्कि उन्होंने इस विचार का समर्थन किया.
ट्रंप की नीति की एक और ख़ासियत थी उनके विदेश मंत्री माइकल पोम्पियो द्वारा सीपीसी और उसकी भूमिका पर बार-बार हमला, जिससे चीन को लगा कि अमेरिका उसकी शासन-प्रणाली में परिवर्तन की नीति पर ठीकठाक ढंग से अमल कर सकता है. जैसे ही व्यापार समझौते के पहले चरण पर कोविड की मार पड़ी, अमेरिका और चीन के बीच रिश्ते तेजी से ख़राब हुए. महामारी से ख़राब ढंग से निपटे जाने की ओर से ध्यान भटकाने के लिए, ट्रंप प्रशासन ने इसे ‘वुहान वायरस’ कहना शुरू किया और वायरस की तीव्रता और उसकी उत्पत्ति को जान-बूझ कर छिपाने के लिए चीन पर हमला किया.
बाइडेन प्रशासन से यह सब बदल देने की अपेक्षा थी, लेकिन जमीन पर ज्यादा कुछ हुआ नहीं दिखता. शुरू से ही बाइडेन की टीम ने यह साफ़ कर दिया कि, उसकी नज़र में, चीन के साथ रिश्ते सभी क्षेत्रों ख़ासकर तकनीक में ‘अत्यधिक प्रतिस्पर्धा’ और टकराव टालने के प्रयास के मानदंडों पर आधारित होंगे. उन्होंने यह स्वीकार किया कि अमेरिका को भी इस चुनौती को पूरा करने के लिए सुधार और पुनर्गठन करना पड़ेगा.
शुरू से ही उनकी यह लाइन रही है कि अमेरिका परमाणु प्रसार, जलवायु परिवर्तन और अफगानिस्तान जैसे मसलों पर चीन के साथ सहयोग करने को इच्छुक है. लेकिन वह शिनजियांग, हांगकांग और ताइवान में चीन की कार्रवाइयों पर अपनी सख्त नीति को बरकरार रखेगा. अब भी, चीनी कंपनियों पर लगाये गये प्रतिबंधों या शुल्क-व्यवस्था में कोई ढील नहीं दी गयी है. शिनजियांग और हांगकांग से जुड़ी कार्रवाइयों को लेकर कुछ चीनी व्यक्तियों, साथ ही चीनी छात्रों के एक ख़ास तबक़े पर लगायी गयी पाबंदियों में भी ढील नहीं दी गयी है.
अमेरिकी अधिकारियों और उनके चीनी समकक्षों के बीच संवाद चिड़चिड़ाहट भरे या फिर ठंडे रहे हैं. अलास्का में हुई बातचीत में तू-तू मैं-मैं देखने को मिली जहां मानवाधिकार उल्लंघन, साइबर हमलों और ताइवान पर दबाव जैसे कई मुद्दों पर चर्चा के लिए अमेरिका ने जोर दिया; चीन ने इसके बदले में, अमेरिका पर देशों को दबाने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया और अमेरिका के मानवाधिकार के रिकॉर्ड की आलोचना करते हुए वहां काले लोगों की हत्या किये जाने का मामला उठाया.
हालांकि, अलास्का वार्ता जलवायु परिवर्तन पर एक साझा कार्य-समूह हासिल करने में सफल रही. इसके अलावा, ट्रंप प्रशासन ने ह्यूस्टन वाणिज्य दूतावास बंद करने, मीडिया पर बंदिशें लगाने, और वीजा पाबंदियों जैसे जो कठोर कदम उठाये थे, उनकी संभावित वापसी पर कुछ वादे हासिल हुए.
शुरू से ही उनकी यह लाइन रही है कि अमेरिका परमाणु प्रसार, जलवायु परिवर्तन और अफगानिस्तान जैसे मसलों पर चीन के साथ सहयोग करने को इच्छुक है. लेकिन वह शिनजियांग, हांगकांग और ताइवान में चीन की कार्रवाइयों पर अपनी सख्त नीति को बरकरार रखेगा.
कुछ महीनों बाद, विशेष अमेरिकी दूत जॉन केरी जलवायु परिवर्तन को लेकर चीन की यात्रा पर थे. चीन में अमेरिकी दूत के साथ जिस तरह का व्यवहार किया गया, उसे कुछ लोगों ने अमेरिका के लिए एक कूटनीतिक शर्मिंदगी करार दिया. चीनियों ने केरी से कहा कि भले ही अमेरिका का ऐसा दृष्टिकोण हो, पर अमेरिका-चीन संबंधों की व्यापक विषय-वस्तु से जलवायु परिवर्तन को अलग करने को चीनी तैयार नहीं हैं.
इसके अलावा, कोविड-19 की उत्पत्ति और उससे निपटने को लेकर चला लंबा विवाद था, जो बाइडेन प्रशासन तक भी जारी रहा. मई 2021 में, बाइडेन ने कोविड की उत्पत्ति के बारे में अमिरकी ख़ुफ़िया बिरादरी से जांच कराने का एक आदेश दिया. इस साल अगस्त में जो रिपोर्ट जारी की गयी वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी और यह बता पाने में अक्षम थी कि महामारी की शुरुआत ठीक-ठीक कहां से हुई.
सितंबर में, एक और घटनाक्रम सामने आया जो शायद डिजिटल शिखर वार्ता के लिए रास्ता साफ़ करने की तैयारी में था. यह था हुआवे (Huawei) के संस्थापक की बेटी मेंग वानझोऊ की रिहाई. मेंग 2018 से ही कनाडा में नजरबंदी में थीं, और उन्हें अमेरिका को प्रत्यर्पित किये जाने की प्रक्रिया लंबित थी. बदले में चीन ने दो कनाडाई नागरिकों माइकल कोवरिग और माइकल स्पैवर को रिहा किया, जिन्हें मेंग की रिहाई के लिए कनाडा पर दबाव बनाने के वास्ते खुल्लमखुल्ला ढंग से बीजिंग द्वारा बंधक बना लिया गया था.
शी जिनपिंग नवंबर की शुरुआत में हुए COP26 में शामिल नहीं हुए, जिसकी राष्ट्रपति बाइडेन ने आलोचना की. लेकिन चीन सबको चौंकाते हुए 2020 के दशक में जलवायु को लेकर कार्रवाई पर अमेरिका के साथ साझा घोषणा पर राज़ी हो गया. इसके जरिये दोनों देशों ने जलवायु को लेकर कार्रवाई बढ़ाने के लिए, कई सारे क्षेत्रों में सहयोग करने और एक कार्य-समूह बनाने का इरादा ज़ाहिर किया.
वॉल स्ट्रीट जर्नल के एक हालिया लेख ने इस ओर ध्यान खींचा है कि बीते तीन सालों की तमाम पाबंदियों के बावजूद, अमेरिकी कंपनियों ने चिप के क्षेत्र में चीनी वर्चस्व की कोशिशों में सहयोग करना जारी रखा हुआ है.
इस बीच, अमेरिका और चीन दोनों अपने मौजूदा ताल्लुक़ात की अहमियत का भी एहसास कर रहे हैं. महामारी और शुल्कों के बावजूद व्यापार फल-फूल रहा है. अमेरिका को यह भी लग रहा है कि तकनीक के निर्यात को प्रतिबंधित करने की बात करना ज्यादा आसान है, बनिस्बत ऐसा करने के. वॉल स्ट्रीट जर्नल के एक हालिया लेख ने इस ओर ध्यान खींचा है कि बीते तीन सालों की तमाम पाबंदियों के बावजूद, अमेरिकी कंपनियों ने चिप के क्षेत्र में चीनी वर्चस्व की कोशिशों में सहयोग करना जारी रखा हुआ है.
आने वाले दिनों में, दोनों पक्ष बैठक से निकली बातों का शायद और ब्योरा मुहैया करायेंगे. अभी हम जो देख सकते हैं, वो अमेरिका और चीन के बीच कामकाज को लेकर बनती दिख रही एक नयी रज़ामंदी है. ‘सतर्क रहकर साथ काम करने’ की रणनीति के साथ ही ‘तीखी प्रतिस्पर्धा’ देखने को मिल सकती है, जैसा कि बाइडेन कुछ समय से कहते रहे हैं. दोनों पक्ष ऐसी चीजें होने देने को लेकर एहतियात बरत रहे हैं जो टकराव के बिंदु की ओर ले जा सकती हों. लिहाजा, इस शिखर वार्ता की एक अहम ख़ासियत ताइवान और दक्षिण चीन सागर के संबंध में इसे सुनिश्चित करने के लिए कुछ प्रक्रियाओं का संस्थानीकरण हो सकता है.
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Manoj Joshi is a Distinguished Fellow at the ORF. He has been a journalist specialising on national and international politics and is a commentator and ...
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