परिचय
अगस्त 2018 में, भारत के 72वें स्वाधीनता दिवस के अवसर पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 सितम्बर, 2018 से स्वास्थ्य बीमा योजना—प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई)का आरंभ होने की घोषणा की। पीएमजेएवाई, मोदी सरकार की व्यापक पहल ‘आयुष्मान भारत’ के बीमा वाले भाग से संबंधित है, जो गरीबों तक स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने की दिशा में भारत सरकार का एक कदम और आगे बढ़ाती है। [1] 2018 के केंद्रीय बजट [2] में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के रूप में वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा पहली बार प्रस्तुत, पीएमजेएवाई में तब से न केवल शब्दावली, बल्कि उसकी रूपरेखा में भी बदलाव आया है। उद्देश्य हालांकि वही रहे हैं : 100 मिलियन और असहाय परिवारों या 500 मिलियन वैयक्तिक लाभार्थियों [3] को दूसरी और तीसरी श्रेणी की स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए 500,000 रुपये का स्वास्थ्य कवर उपलब्ध कराना। यह सरकारी अस्पतालों और निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के मिश्रण के जरिए गुणवत्तापूर्ण दूसरी और तीसरी श्रेणी की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और वहनीयता में सुधार लाते हुए सम्पूर्ण स्वास्थ्य कवरेज(यूएचसी)प्राप्त करने के सरकार के विशाल एजेंडे का अंग है। [4] आखिर में 29अगस्त तक राज्य और संघ शासित प्रदेश इस योजना के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ जुड़ गए हैं। [5]
पीएमजेएवाई की पात्रताओं में अस्पताल में भर्ती होने से पहले और बाद के खर्चे और अस्पताल में दाखिल होने के प्रत्येक अवसर पर निर्धारित परिवहन भत्त्ता शामिल है। [6] यह केंद्र द्वारा प्रायोजित दो मौजूदा योजनाओं — राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना [7] (आरएसबीवाई)और वरिष्ठ नागरिक स्वास्थ्य बीमा योजना (एससीएचआईएस), [8] और राज्य सरकार वित्त पोषित कई अन्य स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रमों को सम्मिलित कर लेगी। कवरेज देश भर में वहनीय है और लाभार्थी पैनल में शामिल भारत के किसी भी सरकारी या निजी अस्पताल से कैशलैस बीमा के माध्यम से दूसरे या तीसरे स्तर की स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने के पात्र हैं। वित्त पोषण की व्यवस्था बीमा या ट्रस्ट के माध्यम से या दोनों के मिले-जुले स्वरूप से की जाती है। सरकार इसे दुनिया का सबसे बड़ा सरकार की वित्तीय सहायता से चलने वाले स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम करार देती है। [9] दरअसल, यह शहरी और ग्रामीण लोगों के लिए चीन के बाद, दूसरी विशाल एकीकृत मूलभूत स्वास्थ्य बीमा व्यवस्था है, जो एक बिलियन से ज्यादा नामांकित व्यक्तियों को कवर प्रदान करती है। [10] केंद्र और राज्य के बीच पीएमजेएवाई का वित्तीय विभाजन ज्यादातर राज्यों के लिए 60:40 का है, जबकि आठ पूर्वोत्तर राज्यों और तीन हिमालयी राज्यों के लिए यह अनुपात 90:10 का है। [11] (देखें तालिका 1.)
तालिका — 1 : केंद्र और राज्यों के बीच पीएमजेएवाई का वित्तीय विभाजन
केंद्र-राज्य प्रीमियम विभाजन का अनुपात |
किस्त — 1 का विवरण (पॉलिसी कवर की अवधि शुरु होने पर या उससे पहले) |
किस्त — 2 का विवरण (पॉलिसी कवर अवधि की दूसरी तिमाही पूरी होने के बाद) |
किस्त — 3 का विवरण (पॉलिसी कवर अवधि के 10 माह पूरे होने के बाद) |
8 पूर्वोत्तर राज्यों और 3 हिमालयी राज्यों के लिए: 90:10 |
केंद्र: 45%
राज्य: 45%
|
केंद्र: 45%
राज्य: 45%
|
केंद्र: 10%
राज्य: 10%
|
अन्य राज्यों के लिए: 60:40 |
केंद्र: 45%
राज्य: 45%
|
केंद्र: 45%
राज्य: 45%
|
केंद्र: 10%
राज्य: 10%
|
विधानसभा वाले संघ शासित प्रदेशों के लिए:[12] 60:40 |
केंद्र: 45%
राज्य: 45%
|
केंद्र: 45%
राज्य: 45%
|
केंद्र: 10%
राज्य: 10%
|
बिना विधानसभा वाले संघ शासित प्रदेशों के लिए: 100:0 |
केंद्र: 45% |
केंद्र: 45% |
केंद्र: 10% |
स्रोत: https://pmrssm.gov.in
स्वास्थ्य सेवाएं कम लागत पर उपलब्ध कराने की दृष्टि से पीएमजेएवाई की सफलता के लिए, पांच रुकावटों को सामर्थ्य में परिवर्तित करने की जरूरत है। पहला, स्वास्थ्य बीमे का प्रीमियम: प्रीमियम की रकम में पर्याप्त कटौती करने के लिए अधिक संख्या का नियम उपयोग में लाना। [13] दसूरा, स्वास्थ्य सेवा की लागत: बड़े पैमाने पर उत्पादन करके लागत में कमी लाना और एक बार फिर से बड़ी संख्या के नियम का उपयोग स्वास्थ्य सेवाओं की लागत में कमी लाने तथा अंतर के स्थान पर मात्रा में लाभ प्राप्त करना। लोगों तथा मौजूदा स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को मिले शुरुआती लाभ का उपयोग स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रति निजी निवेश और/या सामाजिक उद्यमियों को आकर्षित करने में किए जाने की जरूरत है। इसका आशय है कि एक तरफ तो सरकार द्वारा अधिदेशित अच्छी गुणवत्ता लेकिन कम मूल्य वाले निष्कर्ष का उपयोग, लेकिन दूसरी तरफ पूंजी और प्रशासनिक दक्षता में कमी। तीसरा, पहले और दूसरे सामर्थ्यों से आंतरिक तौर पर सम्बद्ध : लाभार्थियों का आकलन करने, बीमा करने वालों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का पता लगाने तथा योजना की संरचना में प्रदान की जाने योग्य जवाबदेही को शामिल करने में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना शामिल है। वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) एक सफल मॉडल है, जिसे अपनाया और दोहराया जा सकता है। स्वास्थ्य सेवाओं के ज्यादातर कदम केंद्र के नेतृत्व वाले हैं, इसके मद्देनजर अब समय आ गया है कि समवर्ती सूची का जनसंख्या नियंत्रण, संक्रामक रोगों के प्रसार की रोकथाम और भोजन तथा औषधियों के नियंत्रण से परे जाकर विस्तार करने पर बहस की जाए। अंत में, पांचवां: चार अक्षरों — एम.ओ.डी.आई — को मिशन की शब्दावली के दायरे से बाहर रखना ताकि यह राज्यों के कार्यान्वयन की राह में न आए, क्योंकि प्रत्येक राज्य इस योजना पर अपनी राजनीतिक छाप देखना चाहेगा। 2019 में होने जा रहे आम चुनावों को देखते हुए यह और भी ज्यादा प्रासांगिक है।
रुकावटों को सामर्थ्य में बदलना
- बीमा प्रीमियम
बड़ी संख्या के नियम के तहत, विशेषकर भारत जैसे देश के लिए, जहां युवाओं की तादाद अधिक है, बीमित व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि करते हुए बीमाकर्ता के लिए जोखिम में कमी लाई जानी चाहिए। इसके परिणामस्वरूप, उस जोखिम से सीधे तौर पर सम्बद्ध प्रीमियम (चाहे जीवन और स्वास्थ्य हों या अग्नि और आपदा हों) में कमी आएगी। मिसाल के तौर पर, यदि पॉलिसी के दायरे में दो लोग हैं और उनमें से एक को दूसरी श्रेणी की स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता है, तो सिस्टम के लिए जोखिम ज्यादा होगा, क्योंकि दूसरे व्यक्ति को भी वित्तीय जोखिम का कम से कम 50 फीसदी जमा कराने की जरूरत होगी। यदि सिस्टम में संख्या बढ़कर 10 हो जाती है, तो वही जोखिम 10 लोगों के बीच बंट जाएगा और यदि उनमें से किसी एक को स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत होगी, तो हर व्यक्ति पर बोझ की मात्रा दसवां भाग होगी। भारत चूंकि दुनिया का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है, ऐसे में इसके बीमा प्रीमियम किसी भी अन्य देश के नहीं बल्कि चीन के लिए मापदंड हो सकते हैं। जब भारतीय बीमाकर्ता अपने प्रीमियम तथाकथित ”वैश्विक” मापदंडों के आधार पर निर्धारित करते हैं, तो वे बड़ी संख्या के नियम का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रहे होते हैं।
पीएमजेएवाई जैसी योजना में, बीमे के मूल्य निर्धारण संबंधी मॉडलों पर बड़ी संख्या वाले कानून के प्रभाव को बढ़ाने की जरूरत है। वह यह है कि पहले जैसे, स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम में कमी होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि कोई कॉर्पोरेशन अपने 1000 कर्मचारियों और उनके आश्रितों (कुल 5,000 लोगों)का सामूहिक बीमा कराता है, ऐसे बीमा कवर की लागत, सरकार द्वारा लाखों नागरिकों को कवर करने के लिए की जा रहे पेशकश से ज्यादा होगी। पीएमजेएवाई के मामले में, अच्छे निष्कर्षों का लक्ष्य कर रहे नीति निर्धारकों को आवश्यक तौर पर संख्या का नियम विभिन्न राज्यों की विशाल जनसंख्या के साथ जोड़ना होगा। आदर्श रूप से देखा जाए तो व्यक्तिगत पॉलिसी का मूल्य किसी कम्पनी के सामूहिक बीमा कवर से ज्यादा होता है, जो पीएमजेएवाई जैसी विशाल सरकारी योजना से महंगी होगी।
राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (2014) में पाया गया कि 86 फीसदी ग्रामीण आबादी और 82 फीसदी शहरी आबादी स्वास्थ्य खर्च में सहायता के लिए किसी भी योजना के तहत कवर नहीं हो रही थी। [14] उनमें से अधिकांश आरएसबीवाई जैसी सरकार की वित्तीय सहायता से चलने वाली बीमा योजनाओं के कवर में आते हैं, जो प्रति परिवार 30,000 रुपये सालाना राशि की दर पर कम सुरक्षा की पेशकश करती है। पीएमजेएवाई में स्वास्थ्य बीमा के तहत कवर होने वाली भारतीय आबादी के अनुपात में 200 प्रतिशत की वृद्धि करने का सामर्थ्य है। [15] प्रति परिवार 500,000 लाख रुपये के सालाना कवर के साथ यह योजना आमूलचूल बदलाव लाने वाली साबित हो सकती है।
अब तक सरकार का रुख प्रभावी जान पड़ता है। जून 2018 में, खबर थी कि निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की लॉबी के जबरदस्त दबाव के बावजूद, पीएमजेएवाई पैकेज की दरें नियंत्रित कर के केन्द्र सरकार स्वास्थ्य योजना सीजेएचएस की तुलना में 15-20 फीसदी सस्ती रखेगी। [16] भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रदाता संघ एएचपीआई भी पीएमजेएवाई की दरें बढ़ाने के लिए सरकार पर दबाव बना रहा है। इसके बावजूद एएचपीआई के अपोलो अस्पताल जैसे प्रमुख सदस्य तमिलनाडु में उस से भी कम दरों पर ऑपरेट कर रहे हैं। [17] भारतीय चिकित्सा परिषद (आईएमए) अपनी ओर से ऊंची पैकेज दरें चाहती है और मांग कर रही है कि पीएमजेएवाई बीमा कम्पनियों की परत को समाप्त कर दे तथा उसके सदस्यों को सीधे तौर पर दावों का पुनर्भुगतान करने दे। [18] इसके साथ आईएमए पीएमजेएवाई के अंतर्गत “ट्रस्ट” मॉडल का उपयोग करना चाहती है तथा अधिकतम लाभ कमाना चाहती है। वह यह मांग संभवत: इसलिए कर रही है, क्योंकि बीमा कंपनियां स्वास्थ्य बीमा मॉडल में एजेंट तथा अस्पतालों के र्दुव्यवहार की निरीक्षक हैं, जबकि अस्पतालों की निगरानी करने की कमजोर क्षमता वाला सरकार का ट्रस्ट [19] अस्पताल उद्योग के लिए लाभकारी होगा। [20]
आरएसबीवाई के अनुभव कुछ चेतावनी का संकेत देते हैं जो पीएमजेएवाई के कार्यान्वयन की दिशा में सबक साबित हो सकते हैं। 15 राज्यों के 278 जिलों के 36,332,075 परिवारों को कवर करने वाले, जिनके लिए आंकड़े उपलब्ध हैं, औसत भुगतान किया जाने वाला प्रीमियम 379 रुपये हैं।हालांकि, तीखे अंतर-राज्यीय भेद हैं (देखिए तालिका — 2) जिनकी आंशिक व्याख्या दावों के अनुपात के द्वारा आंशिक तौर पर की जा सकती है। आरएसबीवाई की कमजोरियों को समझने और उनसे सीखने के लिए गहराई से अध्ययन किए जाने की जरूरत है।हालांकि आरएसबीवाई योजना के आंकड़े को उसके कार्यान्यन के लिए उत्तरदायी एजेंसियों — शुरुआत में श्रम और रोजगार मंत्रालय और बाद के वर्षों में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय — द्वारा गोपीनीय रखा गया है —इसलिए वे आंकड़े शोधकर्ताओं के पास उपलब्ध नहीं हैं। [21] मौजूदा आरएसबीवाई से पीएमजेएवाई में दोषरहित रूपांतरण के लिए जरूरी है कि आरएसबीवाई योजना संबंधी पिछले दशक भर के आंकड़ों का विश्लेषण किया जाए, विशेषकर प्रीमियम तथा निजी और सरकारी अस्पतालों के पुनर्भुगतान के संबंध में। सरकार को आवश्यक तौर पर व्यापक पारदर्शिता लानी होगी तथा आरएसबीवाई योजना के स्वतंत्र विश्लेषण की इजाजत देनी होगी। [22]
तालिका — 2 : समस्त राज्यों में आरएसबीवाई के लिए प्रीमियम*
राज्य |
प्रीमियम |
जिले |
नामांकित परिवार |
मिजोरम |
799 |
8 |
194,886 |
केरल |
738 |
14 |
2,060,802 |
मणिपुर |
499 |
6 |
70,925 |
गुजरात |
433 |
26 |
2,691,497 |
छत्तीसगढ़ |
432 |
27 |
4,146,227 |
मेघालय |
432 |
11 |
256,138 |
उत्तराखंड |
335 |
13 |
285,229 |
ओडिशा |
321 |
30 |
4,462,959 |
असम |
320 |
23 |
1,421,104 |
हिमाचल प्रदेश |
275 |
12 |
480,588 |
पश्चिम बंगाल |
254 |
21 |
6,290,046 |
त्रिपुरा |
229 |
8 |
481,331 |
नगालैंड |
225 |
11 |
255,314 |
बिहार |
217 |
38 |
7,028,409 |
कर्नाटक |
182 |
30 |
6,206,620 |
* वसूले गए औसत प्रीमियम घटते क्रम में
स्रोत: राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की राज्यवार स्थिति,श्रम एवं रोजगार मंत्रालय
आरएसबीवाई के समग्र मूल्यांकन से इस सवाल का जवाब मिल सकेगा कि क्या बोली प्रक्रियाएं मनमानी रही हैं। जैसा कि तालिका —3 से पता चलता है , प्रीमियम की दरों में अंतर, केवल राज्यों के संदर्भ में ही नहीं है, बल्कि अंतर-जिला स्तर पर भी है। पीएमजेएवाई, आरएसबीवाई के कार्यान्वयन की असंगतियों का पता लगाना चाहती है और उन्हें दूर करना चाहती है। राज्य पीएमजेएवाई के कार्यान्वयन मॉडल के पसंदीदा ट्रस्ट मालूम पड़ते हैं — क्योंकि 18 राज्य इसे स्वीकार कर रहे है — आरबीएसवाई आंकड़े जिला स्तर पर कम आमदनी वाले परिवारों की स्वास्थ्य संबंधी मांग के बारे में जानकारी उपलब्ध कराते हैं, जो लागत की गणना में मददगार साबित हो सकते हैं। [23]
तालिका — 3: विभिन्न राज्यों में प्रीमियमों की संख्या
राज्य |
जिले |
प्रीमियमों की संख्या |
असम |
23 |
2 |
बिहार |
38 |
25 |
छत्तीसगढ़ |
27 |
1 |
गुजरात |
26 |
7 |
हिमाचल प्रदेश |
12 |
1 |
कर्नाटक |
30 |
3 |
केरल |
14 |
1 |
मणिपुर |
6 |
2 |
मेघालय |
11 |
1 |
मिजोरम |
8 |
1 |
नगालैंड |
11 |
1 |
ओडिशा |
30 |
5 |
त्रिपुरा |
8 |
1 |
उत्तराखंड |
13 |
1 |
पश्चिम बंगाल |
21 |
17 |
स्रोत: राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की राज्यवार स्थिति, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय
2.स्वास्थ्य सेवाओं की लागत
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण, 2014 के नवीनतम स्वास्थ्य संबंधी चरण के अनुसार, ग्रामीण परिवारों की अस्पताल संबंधी लगभग आधी जरूरतों की वजह संक्रमण (25 फीसदी),चोट (12 फीसदी), और गैस्ट्रोइन्टेस्टनल समस्याएं (11 फीसदी ) थी। [24] इसके बाद हृदय-वाहिनी (8 फीसदी) का स्थान था और उसके बाद मनोरोग और तंत्रिका संबंधी रोग, जेनिटोयुरनेरी और प्रसूति और नवजात संबधी रोगों(प्रत्येक 6 फीसदी)का स्थान आता है। इनमें से ज्यादातर रोगों की पहचान समय पर हो जाए और अच्छी तरह से संभाल लिया जाए, तो उनका उपचार प्राथमिक स्तर पर संभव है, स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र यही प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। जहां तक स्वामित्व के आधार पर अस्पतालों के विवरण का सवाल है, तो भारत की स्वास्थ्य सेवाओं पर निजी अस्पतालों का वर्चस्व है। एनएसएस के पिछले तीन चरणों (1995-96, 2004 और 2014) में, निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले ग्रामीण परिवारों का अनुपात 56, 58 और 58 फीसदी रहा, जबकि शहरी परिवारों के संदर्भ में यह 57, 62 और 68फीसदी रहा। [25] निजी अस्पतालों में इलाज के इच्छुक ग्रामीण परिवार सर्वाधिक 81 फीसदी महाराष्ट्र में रहे, जबकि आंध्र प्रदेश में ऐसे परिवारों की संख्या (78 फीसदी) और गुजरात में (77 फीसदी)रही। असम में सबसे अधिक 89 फीसदी परिवारों ने सरकारी अस्पताल में इलाज कराना पसंद किया, जबकि उसके बाद ओडिशा (81 फीसदी) और पश्चिम बंगाल (77 फीसदी) का स्थान रहा। [26]
इतना ही नहीं, बीमा योजनाओं के दायरे से बाहर अस्पताल में दाखिल होने की लागत को भी व्यापक जांच किए जाने की जरूरत है। ग्रामीण परिवारों के लिए एक बार अस्पताल में दाखिल होने पर इलाज पर आने वाला औसत खर्च सरकारी अस्पताल में 5,636 रुपये आता है (6,473 रुपये पुरुषों के लिए और 4,843 रुपये महिलाओं के लिए)बैठता है। ये आंकड़े निजी अस्पतालों की तुलना में लगभग चार गुणा अधिक 21,726 रुपये है। [27] राज्यों के बीच अस्पताल में भर्ती होने की लागत असम में सबसे कम 8,520 रुपये हैं, जबकि पंजाब में सर्वाधिक (29,779 रुपये) है।। वैसे तो यह दलील जा सकती है कि यह मांग और पूर्ति के बीच संतुलन का काम हो सकता है, जब एक राज्य में लागत अन्य से 3.5 गुणा अधिक है, यहां संसाधनों में असंतुलन या बाहरीपन हो सकता है, जिसे नीतिगत प्रयासों के जरिए सुधारने की जरूरत है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में निजी निवेश और/या सोशल उद्यमियों के निवेश को आकर्षित करने के लिए पीएमजेएवाई को शुरुआती लाभ का इस्तेमाल लोगों तथा स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं पर करना होगा। इसका आशय यह है कि पेशेवर निजी अस्पतालों को बाजार में दाखिल होने और लाभ कमाने के लिए लचीलापन और अवसर उपलब्ध कराते हुए मूल्य निर्धारण के बारे में मजबूत विनियामक प्रारूप सुनिश्चित करने की जरूरत है। भारत में अधिक संख्या होने के बारे में, जैसा कि पहले चर्चा की जा चुकी है, ऐसे लाभ , अंतर की बजाए मात्रा पर आधारित होने चाहिए। जहां एक ओर कुछ विशेष प्रकार की सर्जरी के लिए मूल्य निर्धारित किया जा सकता है, जैसा कि आरएसबीवाई में किया गया था, इसके निष्कर्षों पर नजर रखने और कार्य-निष्पादन पर आधारित प्रोत्साहनों को सृजित किए जाने की जरूरत है। ऐसा स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, बीमाकर्ताओं और सरकारों के बीच बातचीत के जरिए किया जा सकता है। उपचार से संबंधित सभी प्रकार की लागत युक्त ‘पैकेज रेट’ [28] तय करने का विचार(सरकार द्वारा पहले से परिभाषित किया जाना) सही दिशा में उठाया गया कदम है — लेकिन इस बारे में सचेत रहने की जरूरत है, जहां निर्धारित मूल्य नियंत्रित रखे जाएं, वहीं निवेश के लिए भी पर्याप्त प्रोत्साहन होने चाहिए।
मौद्रिक पूंजी या जमीन संबंधी रुकावटों से बढ़कर, सबसे बड़ी रुकावट श्रम शक्ति या ह्यूमन कैपिटल की कमी है। अध्ययनों में पाया गया है कि ग्रामीण डॉक्टरों का अपनी ड्यूटी से बेतहाशा गैरहाजिर रहना देश की स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में से है। गैरहाजिरी के कारणों [29] में बच्चों के लिए स्कूलों का अभाव, बिजली और पानी की अनियमित आपूर्ति और गांव तथा स्वास्थ्य केंद्रों में साफ-सफाई की खराब स्थितियां शामिल हैं।कुछ दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की सुरक्षा भी एक प्रमुख चिंता है। सरकारी कर्मचारियों को इस बात की आत्मसंतुष्टि भी होनी चाहिए थी कि वे नियमित और आजीवन रोजगार में हैं। इससे कोई मदद नहीं मिली है जैसा कि एक अध्ययन में कहा गया है “राज्य स्वास्थ्य वरीयता क्रम की ओर से निगरानी का नितांत अभाव है।” [30]
एक सामान्य धारणा है कि राज्य सरकारें पर्याप्त संख्या में डॉक्टर, नर्से और संबंधित पेशेवर उपलब्ध कराने के लिए समुचित प्रयास नहीं कर रही हैं। हालांकि सभी मामलों में ऐसा नहीं है। अक्टूबर 2017 के एक लेक्चर [31] में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और पूर्व वित्त सचिव राजीव महर्षि ने राजस्थान के धौलपुर जिले का उदाहरण दिया था। वहां स्वास्थ्य सेवा से जुड़े पेशेवरों की संख्या राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत संख्या से बहुत कम थी, और सरकार द्वारा स्वीकृत संख्या भी वास्तविक आवश्यकता की दृष्टि से बहुत कम थी। वहां 81 डॉक्टरों की आवश्यकता थी जबकि महज 62 फीसदी डॉक्टर ही स्वीकृत किए गए थे, जिनमें से 42 फीसदी को नियुक्त किया गया था। दूसरे शब्दों में कहें तो केवल धौलपुर में कुल आवश्यक डॉक्टरों में से केवल 26 फीसदी ही वास्तव में स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रहे थे। उनमें अधिक संख्या मेडिकल ऑॅफिसर्स (27 में 18 या 67 फीसदी)की थी, उनमें से एक भी अत्यंत कुशल बालरोग विशेषज्ञ, अनेस्थिटिस्ट और दंत चिकित्सक नहीं था। आवश्यक नर्सिंग और पैरामेडिक्स में से केवल 30 फीसदी ही वहां सेवाएं दे रहे थे।
श्रम शक्ति के अभाव को तीन तरह से समझाया जा सकता है। पहला,स्वास्थ्य सेवा व्यवसायियों में ज्ञान और विशेषज्ञता का स्तर अधिक है तथा जमीनी स्तर पर उनकी संख्या उतनी ही कम है, दूसरा, जो व्यवसायी विशेषज्ञताप्राप्त नहीं हैं, वे भी अपने घरेलू क्षेत्रों के अवसरों को प्राथमिकता देते हैं। कोई भी नर्स लम्बा फासला तय करके किसी छोटे से जिला अस्पताल में नौकरी क्यों करना चाहेगी/चाहेगा, जब उसे अपने घर के नजदीक किसी शहर या कस्बे में ज्यादा बेहतर तनख्वाह पर नौकरी मिल सकती है? तीसरा, बच्चों के लिए स्कूल के अवसर जैसे अप्रत्यक्ष कारण, गांवों में नियुक्ति से बचने और शहरों में काम करने की ओर आकर्षित करते हैं। वास्तव में भारत को मानव शक्ति को दूर-दराज के हिस्सों और ग्रामीण इलाकों में काम करने के लिए आकर्षित करना है, तो उसे प्रोत्साहन की व्यवस्था पर नए सिरे से विचार करना चाहिए और उसे बेहतर ढंग से तैयार करना चाहिए। शुरूआत में, इन क्षेत्रों में बेहतर बुनियादी सुविधाओं की जरूरत है। स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इस दिशा में किए जा सकने वाले नीतिगत उपायों में इन व्यवसायियों को जल्दी प्रोन्नति देना या उनकी सेवा और कार्य निष्पादन से संबंधित आगे की पढ़ाई के लिए धन उपलब्ध कराना शामिल है।
इससे जुड़ा एक मसला परिवारों द्वारा खुद वहन किये जाने वाला खर्च अधिक होना है। ऐसे स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में जो समुचित रूप से नियंत्रित न हो, वहां ‘सबके लिए निशुल्क’ सहज निष्कर्ष हो सकता है। पीएमजेएवाई का मकसद 500,000 रुपये की कवरेज के साथ देश के 100 मिलियन गरीब परिवारों की क्रय शक्ति को बढ़ाना है। यह मिशन ‘पैकेज रेट’ सिस्टम के माध्यम से स्वास्थ्य क्षेत्र में वास्तविक मूल्य नियंत्रण लाने की संभावना पर गौर कर रहा है। जिस तरह इस योजना का विस्तार हो रहा है और पीएमजेएवाई उन परिवारों के लिए भी समान दरों पर उपलब्ध है, जो गरीब नहीं है(नीचे चर्चा की गई है),ऐसे में अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त अस्पतालों के लिए भी ज्यादा अंतर रखने की संभावना नहीं रहेगी। पीएमजेएवाई के तहत जब ग्रामीण परिवारों को ज्यादा क्रय शक्ति प्राप्त होगी, ऐसे में ग्रामीण इलाके में बिना ताम-झाम वाले, उच्च गुणवत्ता वाले निजी अस्पताल खुल सकेंगे। आवश्यकता इस बात की है कि सरकार ग्रामीण और अर्ध—शहरी इलाकों में छोटे और मझोले आकार के अस्पतालों की प्रवेश संबंधी रुकावटों का अध्ययन करे और पहचान की गई रुकावटों पर काबू पाने के लिए विविध क्षेत्रों में कदम उठाए।
सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र को नियंत्रित करने साथ ही साथ अस्पतालों को ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सोच-समझकर पीएमजेएवाई के आरंभ का इस्तेमाल कर रही है। [32] इसके अलावा, पीएमजेएवाई की पैकेज दरें सीजीएचएस से भी 15-20 प्रतिशत कम रखकर सरकार कार्यनिष्पादन से संबंधित भुगतान प्रणाली के जरिए अस्पतालों के लिए दरों के संशोधन का विकल्प खुला रख रही है, साथ ही मील का पत्थर तय करने के आधार पर गुणवत्ता और मरीज की सुरक्षा में सुधार भी करना चाहती है। [33] (देखिए चित्र — 1.) अस्पताल निश्चित मापदंड पूरे करने पर 30-35 प्रतिशत का दावा कर सकते हैं, इसके अलावा राज्यों को उनकी दरें 10 प्रतिशत बढ़ाने या स्थानीय बाजार की स्थितियों के मुताबिक घटाने की छूट है। आखिरकार, निर्धारित 10 प्रतिशत लचीलेपन के स्तर से अधिक होने के बावजूद राज्य अपनी मौजूदा पैकेज दरें भी बरकरार रख सकते हैं। [34]
चित्र — 1: योजना में अस्पतालों के लिए प्रोत्साहन
- प्रौद्योगिकी
ट्रस्ट, बीमा या मिश्रित मॉडल उपयोग में लाए जाने के बावजूद, ऐसी सूचना प्रौद्योगिकी व्यवस्था तैयार किया जाना आवश्यक है, जो अपनी संरचना के जरिए डेटा का मुक्त और सुदृढ़ प्रवाह सुगम बना सके। इस मिशन में करदाताओं का काफी अधिक धन शामिल होने और सेवा प्रदान करने, शुल्क, निपटारे और दावे के स्तरों पर भ्रष्टाचार की आशंका के मद्देनजर यह महत्वपूर्ण है। दुर्भाग्यवश, स्वास्थ्य बीमा के क्षेत्र के पिछले प्रयोगों के मामले में, सूचना का अभाव वित्तीय प्रवाह और पात्रता निष्कर्षों के बीच की गुमशुदा कड़ी रहा है।
आज यह कमी प्रौद्योगिकी से पूरी की जा सकती है, जो लाभार्थियों का पता लगा सकती है, बीमाकर्ताओं और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं पर नजर रख सकती है तथा योजना के ढांचे में जवाबदेही को शामिल कर सकती है। यहां, सरकारों (केंद्र और राज्य सरकारें दोनों)को जुलाई 2017 को लागू जीएसटी के स्तम्भ जीएसटीएन(वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क) के जरिए प्राप्त अनुभव से यह साबित हो चुका है। [35] प्रत्येक लेनदेन से संबंधित प्रत्येक बिल डिजिटली रिकॉर्ड किया जाता है और उस पर नजर रखी जा सकती है, उसकी निगरानी की जा सकती है और जांच की जा सकती है। कर चोरी की संभावनाएं बहुत कम है। इनपुट टैक्स क्रेडिट्स का दावा करने के लिए कम्पनियों को जीएसटीएन पर होना जरूरी है। इस प्रणाली ने अप्रत्यक्ष कर वंचना की लागत बढ़ा दी है और यह कर चोरी करने वालों को वैध अर्थव्यवस्था का अंग बनाने के लिए प्रेरित कर रही है।
एक विशेष उद्देश्य वाले माध्यम के जरिए जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों दोंनों में से प्रत्येक का 24.5, एचडीएफसी, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और एनएसई स्ट्रेटेजिक इन्वेस्टमेंट कंपनी में से प्रत्येक का 10 प्रतिशत और एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस का 11 प्रतिशत है — जीएसटीएन सरकारों (केंद्र और राज्य सरकारों दोंनों)साथ ही साथ करदाताओं को साझा आईटी अवसंरचना और सेवाएं उपलब्ध कराता है। करदाताओं के लिए, जीएसटीएन रिटर्न की फाइलिंग और भुगतान में मदद करता है। सरकार के लिए यह पोर्टल केंद्र और राज्य सरकारों के सभी कर विभागों के आईटी सिस्टम्स की मेजबानी करता है। तकनीकी रूप से, इससे कारोबार करने की लागत में कमी आएगी और लेन-देन पर भी समय कम लगेगा। उद्यमी को केवल अपने बिल की सूचना अपलोड करनी होगी, इनपुट टैक्स क्रेडिट के दावों का मिलान करना होगा, रिटर्न अपलोड करनी होगी, कर का भुगतान करना होगा और डिजिटल सिग्नेचर के साथ साइन ऑफ करना होगा। प्रत्येक बिल को ऑनलाइन प्रस्तुत करने से अधिकारियों की निजी धारणाओं को सीमित करता है।
लेन-देन के क्रम पर जीएसटीएन के जरिए नजर रखने से एक रुपये की भी कर चोरी तक पहुंचा जा सकेगा और अप्रत्यक्ष तथा प्रत्यक्ष हर एक तरह के कर की चोरी का पता लगाया जा सकेगा। [36] जहां तक प्रत्यक्ष करों की चोरी का प्रश्न है, चोरी किए गए अप्रत्यक्ष करों की डिजिटल ट्रेल पैन (स्थायी लेखा संख्या)और/या आधार तथा बैंकिंग क्षेत्र से उसके लिंक के जरिए व्यक्तियों की जेब तक पहुंचा देगी। बड़ी कर चोरी से शुरुआत करते हुए, डिजिटल लिंक्ड ट्रेल के जरिए ऐसी प्रत्यक्ष कर चोरी को रोका जा सकेगा, जो अप्रत्यक्ष करों के सिस्टम में होगी और व्यक्तियों के प्रत्यक्ष व्यय के जरिए व्यक्त होगी।
इस मॉडल को स्वीकार करते हुए, इस प्रौद्योगिकी एसपीवी में जिस महत्वपूर्ण विचार को लागू करने की जरूरत है, वह मेडिकल प्रोटोकॉल्स में से एक है। यह इमरजेंसी रूम में प्रवेश से लेकर निदान और परीक्षणों तक, उपचार से लेकर अस्पताल से छुट्टी मिलने तक एक पूरी प्रक्रिया है, जिसका विश्व की बेहतरीन पद्धतियों का अनुसरण करने वाली प्रणालियों के जरिए आकलन करने की जरूरत है। यह पद्धतियां किसी रोग-विशेष से संबंधित हो सकती हैं, ऐसे में यह डॉक्टरों और पैरामेडिक्स को अधिकार के जरिए समस्या का समाधान करने की छूट देती है, यह सब कुछ टेक्नोलॉजिकल प्लेटफॉर्म के जरिए किया जाता है। स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों सहित प्राथमिक स्तर की देखरेख से जुड़े बुनियादी ढांचे, जिन्हें पीएमजेएवाई व्यवस्था के जरिए प्रांरभ किया जा रहा है तथा बीमा योजना की प्रौद्योगिकी में दक्ष गेटकीपर के रूप में कार्य करने वाली प्राइमरी केयर यूनिट को एकीकृत करने से दक्षता में सुधार होगा। ड्राफ्ट डिजिटल इफॉर्मेशन सिक्योरिटी इन हैल्थकेयर एक्ट (डीआईएसएचए) जिसका लक्ष्य भंडारण की रक्षा करना, मरीज के स्वास्थ्य संबंधी डेटा तैयार होते ही उसका उपयोग और ट्रांसमिशन करना है,उसे इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड्स की नैतिक जटिल स्थिति का मार्गनिर्देशन करने में स्वास्थ्य क्षेत्र को समर्थ बनाना चाहिए। [37]
. उदाहरण के लिए, न्यूयॉर्क में होने वाली किसी सर्जरी के लिए निम्नलिखित प्रोटोकॉल्स: प्रोसीजर शुरू करने से पहले शेड्यूल बनाने, रजामंदी लेने, प्री-प्रोसीजर वैरिफिकेशन, प्रोसीजर का स्थान निर्धारित करने और ”टाइम आउट” तय करने की जरूरत होगी। [38] ऐसी किसी प्रणाली को अपने देश में लाने और उसे पीएमजेएवाई अवसंरचना में शामिल करने से मरीज की देखरेख में चिकित्सकीय सटीकता ला पाना संभव हो सकेगा। इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि मरीज को बेवजह अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन कराने के लिए बाध्य न किया जाए तथा अस्पताल ओपीडी की जरूरत वाले मरीजों को जबरदस्ती भर्ती न करें, जैसा कि आरएसबीवाई में देखा गया था। [39] इन सभी बातों पर अस्पताल से लेकर बीमाकर्ता, डॉक्टर और मरीज तक के स्तर पर टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म से नजर रखी जा सकेगी। ऐसे प्रोटोकॉल्स को किसी एक सिस्टम में जोड़ने से डेटा की रक्षा, मरीज की स्वायत्तता और निजता उपलब्ध होती है, जिससे सरकार के धन का इस्तेमाल दक्षता करने, अस्पतालों, डॉक्टरों और बीमाकर्ताओं की धोखाधड़ी रोकने में मदद मिलेगी साथ ही यह भी सुनिश्चित हो सकेगा कि उपचार की कम लागत प्रीमियम की कम दरों में परिवर्तित हो जाएगी।
इस प्रकार की अवसंचरना की बौद्धिक सम्पदा, प्रक्रिया और अनुभव पहले ही मौजूद है और इसमें सुधार की आवश्यकता है ताकि इस को स्वास्थ्य क्षेत्र में अपनाया जा सके। विशेष उद्देश्य वाला माध्यम जीएसटीएन की तरह ढाला जा सकता है। करों के स्थान पर, नेटवर्क दावों पर नजर रख सकता है, बिल के स्थान पर वह प्रोसीजर पर नजर रख सकता है, उद्यमी के व्यवहार की जगह यह डॉक्टरों की पद्धतियों पर नजर रख सकता है और लेनदेन की बजाए यह प्रोटोकॉल्स पर नजर रख सकता है। पीएमजेएवाई को प्रत्येक राज्य में लागू किये जाने की अपेक्षा है, इसलिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसी (एनएचए) की ओर से लचीले मॉडल की पेशकश की जा सकती है, भारतीय राष्ट्रीय इलैक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनईएचए)के साथ काम करने से डेटा प्वाइंट्स का सबसे कम सेट सुनिश्चित हो सकेगा जिससे इस पहल पर विविधि स्तरों से नजर रखी जा सकेगी। राज्य अपनी-अपनी डेटा से संबंधित आवश्यकताओं के अनुसार बेस मॉड्यूल तैयार कर सकते हैं। प्रस्तावित नेशनल हैल्थ स्टैक के बारे में रणनीति और दृष्टिकोण पत्र इस मामले पर समस्त हितधारकों को शामिल करते हुए राष्ट्रीय विमर्श का बुनियादी दस्तावेज हो सकता है। [40]
ऐसा अस्पतालों,डॉक्टरों, बीमाकर्ताओं, परिवारों और व्यक्तियों के स्तरों पर किया जा सकता है। बैक — एंड पर 100 मिलियन परिवारों की ओर से उभर रहे रुझानों को बिग डेटा द्वारा समाहित किए जाने की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि: 1) हकदारी लाभार्थियों तक पहुंचे, 2) गरीब परिवारों द्वारा खुद वहन किये जाने वाला खर्च — जिसमें ज्यादातर स्वास्थ्य संबंधी खर्च शामिल है, जिसमें उनकी बचत की रकम खर्च हो जाती है — कम हो सके, 3) लाभार्थियों को संतोषजनक स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त हों, 4) सिस्टम में बिचौलियों की कोई जगह न हो, 5) अनुचित लाभों को पहले ही रोका जा सके तथा 6) डेटा की सुरक्षा की व्यवस्था पुख्ता ढंग से लागू हो सके।
- संघवाद
संघीय ढांचे में स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सेवा के विभिन्न पहलुओं के प्रति सरकार के विविध स्तरों के विशिष्ट उत्तरदायित्व, भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में सूचीबद्ध हैं, जिन्हें संघ सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची में विभाजित किया गया है। [41] ज्यादातर हिस्से के लिए, भारत में स्वास्थ्य से संबंधित मामले राज्य सूची में शामिल किए गए हैं। हालांकि केंद्र ने संशोधनों के जरिए जनसंख्या नियंत्रण, संक्रामक रोगों को फैलने से रोकना तथा खाद्य और औषधियों का नियंत्रण जैसे क्षेत्रों को समवर्ती सूची में शामिल करते हुए इनके लिए संयुक्त जिम्मेदारी प्रदान की है। [42] पोर्ट क्वॉरन्टीन, मछुआरों और मरीन अस्पतालों सहित क्वॉरन्टीन अस्पताल संघ सूची का भाग हैं। [43] तालिका—4 स्वास्थ्य सेवाओं में संवैधानिक विभाजन के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करती है।
तालिका — 4 : स्वास्थ्य सेवाओं में संवैधानिक विभाजन
श्रेणी |
मद |
प्रावधान |
संघ सूची |
मद 28 |
पोर्ट क्वॉरन्टीन, मछुआरों और मरीन अस्पतालों सहित क्वॉरन्टीन अस्पताल |
समवर्ती सूची
समवर्ती सूची
|
मद 19
मद 20-ए
|
औषधियां और जहर
जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन
|
समवर्ती सूची |
मद 25 |
तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा और विश्वविद्यालयों सहित शिक्षा |
समवर्ती सूची |
मद 26 |
कानूनी, चिकित्सा और अन्य व्यवसाय |
समवर्ती सूची |
मद 29 |
संचारी या संक्रामक रोगों या पुरुषों, पशुओं और पौधों को प्रभावित करने वाले हानिककारक कीटों को एक राज्य से दूसरे राज्य तक फैलने से रोकना |
समवर्ती सूची |
मद 30 |
जन्म और मृत्यु के पंजीकरण सहित महत्वपूर्ण आंकड़े |
राज्य सूची |
मद 6 |
सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, अस्पताल और दवाखाने |
स्रोत: भारतीय संविधान, विधि एवं न्याय मंत्रालय, भारत सरकार,
सूचियों में दिए गए विषय अस्पष्ट हैं, क्योंकि संविधान के अंतर्गत स्वास्थ्य को सामान्यत:’राज्य का विषय’ माना जाता है और इसलिए इसे राज्य सरकारों का उत्तरदायित्व समझा जाता है। राज्य सूची में मद — 6 शामिल करते हुए राज्यों को सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, अस्पतालों और दवाखानों पर अधिकार दिए गए हैं। हालांकि 1976 में किये गए 42वें संविधान संशोधन में समवर्ती सूची में संशोधन करते हुए दो महत्वपूर्ण बदलाव किए गए: इसमें मद संख्या 20 ए और मद संख्या 25 के रूप में क्रमश: “जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन” तथा “चिकित्सा शिक्षा” को शामिल किया गया। [44] राज्यों द्वारा स्वास्थ्य में काफी अनुपात में धन संबंधी योगदान दिए जाने के बावजूद, समवर्ती सूची में स्वास्थ्य संबंधी मामलों विशेषकर जनसंख्या नियंत्रण के मामले का समावेशन करते हुए केंद्रीय स्तर पर पहल की गई। पिछले दशक से हालांकि केंद्र के नेतृत्व वाली पहलों पर फोकस इस सीमित उद्देश्य से कहीं ज्यादा बढ़ गया है और स्वास्थ्य सेवा से मामलों की व्यापक रेंज इसके तहत कवर हो रही है।
(देखिए तालिका — 5)
तालिका — 5: पिछले 10 वर्षों में केंद्र के नेतृत्व वाली स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित 13 प्रमुख कदम
वर्ष |
योजनाएं |
2008 |
आरएसबीवाई — राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना |
2008 |
प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना |
2009 |
राष्ट्रीय (ड्राफ्ट) स्वास्थ्य विधेयक |
2010 |
नैदानिक प्रतिष्ठान (पंजीकरण एवं नियमन) अधिनियम |
2016 |
इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड्स मानक |
2016 |
संक्रामक रोगों में ऐन्टीमाइक्रोबीअल उपयोग के लिए राष्ट्रीय उपचार दिशानिर्देश |
2017 |
चिकित्सा उपकरण नियम |
2017 |
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) विधेयक |
2017 |
सार्वजनिक स्वास्थ्य (महामारी, जैव आतंकवाद और आपदाओं की रोकथाम, नियंत्रण और प्रबंधन) विधेयक |
2017 |
ऐन्टीमाइक्रोबीअल प्रतिरोध की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना का मसौदा |
2018 |
ड्राफ्ट डिजिटल इफॉर्मेशन सिक्योरिटी इन हैल्थकेयर एक्ट (डीआईएसएचए) |
2018 |
प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना |
2018 |
स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र |
42वें संशोधन के तहत शिक्षा को ‘चिकित्सा शिक्षा’ और ‘जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन’ के साथ समवर्ती सूची में डाल दिए जाने से शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत शिक्षा,पूरे देश में न्यायोचित अधिकार बन गई है। यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसा कानून किस तरह पारित किया गया, जब शिक्षा अभी तक राज्य का ही विषय है। शिक्षा को राज्य सूची से समवर्ती सूची में डालना 42वें संशोधन का व्यापक स्वरूप का छोटा सा अंश था और कुछ मामलों में जटिल भी था, लेकिन उसे अब तक लौटाया नहीं गया है, क्योंकि इसने एक पूर्ववर्ती वास्तविकता की पुष्टि की है। [45] स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी ऐसा ही हुआ है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 ने स्वास्थ्य सेवा के नियंत्रण को तर्कसंगत बनाते हुए ”अधिकारों पर आधारित दृष्टिकोण की दिशा में बढ़ने की आवश्यकता” का स्पष्ट रूप से समर्थन किया। हालांकि स्वास्थ्य को राज्य का विषय बताने वाली व्यवस्था में नैदानिक संस्थानिक अधिनियम जैसी केंद्र के नेतृत्व वाली पहलों के पिछले दशक के अनुभव यह सुझाते हैं कि स्वास्थ्य को समवर्ती सूची में डालने से केंद्र के नेतृत्व वाली पीएमजेएवाई जैसी पहलों की सफलता बेहतर ढंग से सुनिश्चित की जा सकती है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में केंद्र का हस्तक्षेप आवश्यक है, क्योंकि राज्य स्तर पर तकनीकी क्षमता का अभाव इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि ज्यादा कड़े केंद्र-राज्य सम्पर्क में केंद्र का व्यापक नीतिगत मार्गदर्शन स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए लाभदायक हो सकता है।
प्रसंग के आधार पर देखा जाए, तो भारतीय संविधान की मसौदा समिति की बैठक में डॉ. बी आर अम्बेडकर और जवाहरलाल नेहरू दोनों ने स्वास्थ्य को राज्य की सूची से निकाल कर समवर्ती सूची में डालने का समर्थन किया था। इस बारे में संशोधन का सुझाव स्वास्थ्य और गृह मंत्रालयों की ओर से दिया गया था, लेकिन उत्तर प्रदेश, असम, बम्बई और बिहार के कड़े विरोध के कारण शीर्ष नेताओं के समर्थन के बावजूद यह सफल नहीं हो सका था। शुरूआत में”स्वास्थ्य बीमा” को श्रम कल्याण, श्रम की स्थितियों, भविष्य निधि, नियोक्ता का उत्तरदायित्व और कामगार का मुआवजा तथा वृद्धावस्था पेन्शन के साथ मद संख्या — 26 के अंग के रूप में समवर्ती सूची का भाग बनाया गया था। [46]
शोधकर्ता लम्बे अर्से से सुझाव देते रहे कि राज्यों को स्वास्थ्य क्षेत्र के तहत संवर्धित वित्तीय अधिकार और संसाधन देने के साथ,यदि इस विषय को समवर्ती सूची में डाल दिया जाए, तो केंद्र और राज्यों के बीच राजनीतिक मतभेद संभाले जा सकेंगे। [47] स्वास्थ्य क्षेत्र में केंद्र के नेतृत्व वाली पहलों की संख्या को देखते हुए संभवत: इस चर्चा को नए सिरे से शुरु करने का समय अब आन पहुंचा है। अब, जबकि 19 राज्यों में प्रत्यक्ष रूप से या गठबंधन के जरिए भाजपा शासित सरकारें हैं [48] और पार्टी केंद्र में भी सत्ता में है, ऐसे में भारत के स्वास्थ्य सेवा संबंधी नीति निर्धारण को सरल और कारगर बनाने का यह राजनीतिक अवसर है। केंद्र, जल को समवर्ती सूची में शामिल करने के बारे में पहले से ही सभी राज्यों के साथ चर्चा कर रहा है, [49] स्वास्थ्य को इस एजेंडा में जोड़ने से देश में सामाजिक क्षेत्र के नीति निर्धारण को दक्ष लाभ प्राप्त होंगे। समानांतर रूप से चीन के अनुभव से सबक लेते हुए, स्थानीय सरकारें—राज्य, नगर निगम या पंचायतों— को स्पष्ट रूप से परिभाषित लक्ष्यों के साथ कवरेज का दायरा गैर-निर्धन परिवारों तक बढ़ाने के राजनीतिक उत्तरदायित्व सौंपे जा सकते हैं, और इस प्रकार सही मायनों में एक अखिल—भारतीय जोखिम समूह बनाया जा सकता है। [50]
- शब्दावली की राजनीति
चार अक्षरों — एम.ओ.डी.आई — को आवश्यक रूप से पीएमजेएवाई की शब्दावली के दायरे से बाहर रखना होगा, ताकि यह राज्यों के कार्यान्वयन की राह में न आए।आखिरकार राज्य भले ही इस योजना में 10 प्रतिशत का योगदान दे रहे हों या 40 प्रतिशत का,वह इस पर अपनी राजनीतिक छाप देखना चाहेंगे। उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राजनीतिक लाभ के बीज बोने की संभावना नहीं है, वह भी तब जब उनका गठबंधन टूट चुका है। [51] न्यायोचित बात यह है कि सरकार ने इस योजना का नाम ”मोदीकेयर” नहीं रखा,संभवत: याद रखने के लिए सम्पादकीय प्रयास के तौर पर मीडिया ने ऐसा किया है। इसी तरह मोदी जी के मंत्रिमंडलीय सहयोगियों को इससे मिलती-जुलती शब्दावली का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए। [52] खतरा शायद इस बात का है कि इस तरह के शब्द उन सात राज्यों में मिशन की कामयाबी में बाधक बन सकते हैं, जहां भाजपा सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा नहीं है। दूसरी ओर, यदि ”ब्रान्ड मोदी” उन अधिकांश राज्यों की प्रमुख विशेषता बन चुका है, जहां गठबंधन की कमान भाजपा के हाथ है, तो यह शायद राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंडा तय करने में भी मददगार साबित हो सकता है।
पिछले कुछ महीनों से, स्वास्थ्य नीति के शोधकर्ताओं साथ ही साथ जनता को पहल की शब्दावली में बार-बार होने वाले बदलावों का ध्यान रखना पड़ रहा है। जैसा कि तालिका — 6 में दर्शाया गया है कि संकल्पना के बाद से योजना का नाम कम से कम पांच बार बदला जा चुका है। दुविधा बढ़ाते हुए सरकारी दिशा-निर्देशों में अब तक प्रधानमंत्री राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन (पीएमआरएसएसएम)का नाम चल रहा है। [53]आखिरकार, 15 अगस्त 2018 को लागू होने पर प्रधानमंत्री ने वर्तमान नाम प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई)का उपयोग किया। [54]
तालिका — 6 : प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई)का विकास
फरवरी 2018 |
राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना |
मार्च 2018 |
राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन |
जून 2018 |
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन |
जुलाई 2018 |
आयुष्मान भारत – राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन |
अगस्त 2018 |
प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना |
इसके बावजूद, पीएमजेएवाई को ”मोदीकेयर” या ”नमोकेयर” के नाम से पुकारने को लेकर समस्या किसी राज्य विशेष में इस मिशन की कामयाबी या विफलता से नहीं है, बल्कि इस समस्या का आधार नैतिक है। इस समस्या की जड़ें 2014 के चुनावों के बाद से मोदी द्वारा योजनाओं के नामों पर नेहरू-गांधी एकाधिकार को ध्वस्त किए जाने में हैं। उदाहरण के लिए योजना के नामों के बारे में सूचना के अधिकार के तहत पूछे एक प्रश्न में दर्शाया गया है कि 58 केंद्रीय योजनाओं और संस्थाओं में से 27 के नाम नेहरू-गांधी परिवार पर हैं [55] जिनमें केवल चार महात्मा गांधी के नाम पर हैं। किसी भी राजनीतिक पार्टी के बुरी बात यह है कि उसने केंद्र और राज्य, दोनों स्थानों पर प्रत्येक प्रमुख योजना, सड़क, यूनिवर्सिटी, अस्पताल या स्कूल के नाम में उपसर्ग के तौर पर लगे नेहरू-गांधी के नाम को, लगभग उसी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए ”नेहरू-गांधी” को ”मोदी” शब्द से बदलकर बहुत बड़ा और शायद स्थायी नुकसान कर दिया है, जो न सिर्फ कल्पना के अभाव को दर्शाता है, बल्कि विडम्बना के तौर पर विरोधी पर पूरी तरह नियंत्रण पाने की ओर्वेलियन प्रवृत्ति की ओर भी इशारा करता है।
पीएमजेएवाई को सफलता के लिए राज्यों के समर्थन की जरूरत है। चुनावी वर्ष में, मोदी का नाम आगे बढ़ाना, यहां तक कि उन 19राज्यों में भी, जहां भाजपा या गठबंधन बहुमत है,[56] राजनीतिक दलों, भाजपा के गठबंधन सहयोगियों तथा मतदाताओं सभी के लिए समान रूप से थकाऊ होगा। मिसाल के तौर पर, पंजाब और पश्चिम बंगाल के राज्य नेताओं ने आरोप लगाया कि केंद्र चाहता है कि राज्य पीएमजेएवाई का वित्तीय बोझ उठाएं, जबकि वह आगामी लोकसभा चुनावों के राजनीतिक लाभ प्राप्त कर रही है। [57] इस तरह की कहासुनी बदलाव लाने में समर्थ योजना को संदेह में डाल सकती है।
वास्तव में, यदि स्वास्थ्य की सुव्यवस्थित जानकारी और निगरानी प्रणालियां आवश्यकता से अधिक प्रावधानों और लागत बढ़ने की आशंका पर अंकुश लगा सकें तो पीएमजेएवाई राजकोष पर ज्यादा बोझ डाले बिना देश की स्वास्थ्य सेवा और स्वास्थ्य बीमा प्रणालियों में सुधार ला सकती है। सरकार की वित्तीय सहायता से चलने वाले अस्पतालों की खराब हो रही प्रणालियों से दूर हटकर समान सिद्धांतों द्वारा प्रशासित और कम लागत वाली स्वास्थ्य बीमा से वित्त पोषित निजी और सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के मिश्रित स्वरूप का रुख करना सही दिशा में उठा कदम है। सरकार दरों में वृद्धि करने के लिए निजी क्षेत्र की ओर से पड़ रहे दबाव का सामना कर रही है और वह इन निधियों के कुछ हिस्से का इस्तेमाल दावों का भुगतान करने में मौजूदा सार्वजनिक क्षेत्र का समर्थन भी कर रही है और पुनर्भुगतान का इस्तेमाल सरकारी अस्पतालों की गुणवत्ता में सुधार लाने तथा बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाने में कर रही है।
इसके कार्यान्वयन का रास्ता हालांकि चुनौतियों से भरपूर होने वाला है। चुनावों से ऐन एक साल पहले पीएमजेएवाई 2019 के चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का सामाजिक क्षेत्र का जवाब हो सकती है, वैसा ही जवाब जैसे 2009 के चुनावों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के लिए था। इसलिए राजनीतिक हित अधिक हैं। स्वास्थ्य सेवा और स्वास्थ्य बीमा के माध्यम से राजनीतिक और नागरिक हितों का यह मेल सुपुर्दगी सुनिश्चित करेगा। इसमें कठिनाइयां होंगी, लेकिन यह व्यापक अभियान भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्थ बनाने का आवश्यक विकल्प है। इसके लिए, इसे मौजूदा राज्य बीमा योजनाओं के साथ तालमेल बैठाने के लिए लचीलापन तलाशना होगा और राज्य स्तरीय नेतृत्व के बीच चिंता का कारण नहीं बनना होगा।
निष्कर्ष
इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत की स्वास्थ्य सेवाओं ने हाल के वर्षों में उपलब्धियां हासिल की हैं। इस बात पर तर्क किया जा सकता है कि क्या ये उपलब्धियां पर्याप्त और प्रभावी रही हैं, लेकिन यह निर्विवाद है कि भारत ने स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने की दिशा में लम्बी छलांग लगाई है। जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 1960 में 41 से बढ़कर 2015 में बढ़कर 68 हो गई है, और 1960 की विश्व औसत 72 बनाम 53 का फासला कम हो चुका है। [58] विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2000 में, भारत में प्रत्येक 1000 लोगों पर 0.527 फिजीशियन्स,1.169 दाइयां और 0.037 दंत चिकित्सक थे। वर्ष 2016 तक, इस संख्या में क्रमश: 43 प्रतिशत, 79 प्रतिशत और 302 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। [59] 1994 और 2015 के दौरान, शिशु मृत्यु दर 1000 प्रति जन्म पर घटकर 37 रह गई, जो पहले 74 थी। [60] इस बीच, मातृ मृत्यु दर का अनुपात 2007-09 के 100,000 प्रति जीवित जन्म के 212 से घटकर 2011-13 में 167 रह गया। [61] खुद वहन किये जाने वाला खर्च हालांकि 68 प्रतिशत से मामूली रूप से घटकर 62 प्रतिशत रह गया,जबकि इसके मुकाबले विश्व औसत मात्र 18 प्रतिशत है।[62] यह भारत में सीधे तौर पर खुद वहन किये जाने वाले भुगतान को विश्व में सर्वाधिक बनाता है। [63]
पर्याप्त सावधानी की बात यह है कि स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता। कई ऐसी परिस्थितियां हैं, जो स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं, जिनमें परिवारों का आर्थिक कल्याण और सुरक्षित पेय जल तथा राज्य की ओर से स्वच्छता की स्थितियों, जिनके बिना ग्रामीण क्षेत्र ”बीमारियों की फैक्टरियां बने रहेंगे” शामिल हैं, जिनका उल्लेख 1945 में जोसेफ भोरे समिति ने किया था। [64] इसके अलावा, इस बात की सराहना किए जाने की जरूरत है कि बीमा कवर और मौजूदा स्वास्थ्य सेवा अवसंचना ही इस हद तक आगे बढ़ सकते थे, भारत को नए मेडिकल कॉलेजों और नर्सिंग संस्थाओं पर निवेश करने की जरूरत है, जिसकी पहचान राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में की गई है। [65] साथ ही, स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र संबंधी पहल संभवत: आयुष्मान भारत का सबसे कम चर्चित संघटक है, जो इस बात का संकेत है कि चुनिंदा स्वास्थ्य सेवाओं से समग्र प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में बदलाव काफी देर हो चुकी है, जो लोगों को दूसरे और तीसरे स्तर के अस्पतालों में जाने की जरूरत को कम करेगा।
स्वास्थ्य बीमा के मामले में, वर्तमान में चार योजनाओं का संचालन किया जा रहा है : आरएसबीवाई, रोजगार राज्य बीमा योजना, [66] केंद्र सरकार की स्वास्थ्य योजना [67] और आम आदमी बीमा योजना। [68] पीएमजेएवाई को इन सभी से सबक लेने और प्रशासन की दक्षता तथा उपलब्धियों की कारगरता पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। नहीं तो, इस बात का खतरा है कि यह विचार महज राजनीतिक बैंड-ऐज से कुछ ही ज्यादा साबित होगा और इसे दरकिनार कर दिया जाएगा, ताकि कोई अन्य सरकार इस पर नए सिरे से काम करे। आखिरकार पीएमजेएवाई को सम्पूर्ण स्वास्थ्य कवरेज के प्रति भारत की प्रगति का प्रमुख साधन बनना चाहिए। स्वयंसेवी दृष्टिकोण अख्तिायार करते हुए तथा सब्सीडी रहित प्रीमियम की पेशकश का इस्तेमाल करते हुए इसका विस्तार किया जाना चाहिए, ताकि ऐसे लोग भी इसके दायरे में आ सकें, जो गरीब नहीं हैं। यदि शुरुआती वर्षों में इसका कार्यान्वयन सुचारु रहा, तो प्रीमियम की दरें बाजार की दरों से कम होेने के कारण ज्यादातर ऐसे लोग भी इसका चयन करेंगे, जो गरीब नहीं हैं। जैसा कि पहले चर्चा की जा चुकी है, इस योजना का विस्तार चरणबद्ध रूप से संपन्न लोगों तक करने का उत्तरदायित्व स्थानीय स्तर की सरकारों को सौंपा गया है, यह स्वास्थ्य सेवा को राज्य की सूची से समवर्ती सूची में ले जाने की कथित केंद्रीयकरण प्रवृत्ति में संतुलन कायम कर सकेगा।
स्वास्थ्य सेवाओं साथ ही साथ स्वास्थ्य बीमा तक पहुंच के अभाव को जल्द से जल्द सुधारे जाने की जरूरत है। दोनों क्षेत्रों को सुधार की आवश्यकता है, क्योंकि वे कुशासन और खराब नियंत्रण के कारण दबाव में रहे हैं। जब 86 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 82 प्रतिशत शहरी आबादी को अब तक कवर नहीं किया जा सका है, तो ऐसे में पीएमजेएवाई इस प्रक्रिया में तेजी लाने और स्वास्थ्य सेवाओं साथ ही साथ स्वास्थ्य बीमा तक पहुंच में सुधार का एक माध्यम साबित हो सकती है। ठीक वैसे ही जैसे जन धन योजना ने वित्तीय समावेशन और भारत को एकल-जोखिम समूह की ओर ले जाने के लिए किया है, जहां सरकार द्वारा समर्थित सभी बीमा योजनाओं को आपस में जोड़ दिया गया है। इन पात्रताओं को आपस में मिलाना कुंजी है। दोनों, कवरेज साथ ही साथ उन्हें मिलाने को लक्षित स्वास्थ्य सेवा और स्वास्थ्य बीमा प्रदान करने का लक्षित बिंदु मानते हुए आधार का इस्तेमाल करते हुए सुलझाया जा सकता है। पांच रुकावटें: स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम, स्वास्थ्य सेवाओं की लागत, टेक्नोलॉजी, संघवाद और राजनीति दुनिया के दूसरे सबसे बड़े सरकार की वित्तीय सहायता से चलने वाले कार्यक्रम को ज्यादा प्रभावी बनाने में समर्थ बनाया जा सकता है और उस पर बल दिया जा सकता है।
ऐंडनॉट्स
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[25] Ibid, Statement 3.16: Percentage distribution of hospitalised cases by type of hospital (public and private) during 1995-96, 2004 and 2014: rural, urban, p. 38
[26] Ibid, Statement 3.17: Percentage distribution of cases of hospitalised treatment received from public sector and private sector hospitals for rural and urban areas, p. 39
[27] Ibid, Statement 3.24:Average medical expenditure (`) per hospitalisation at public and private hospital for each gender, p. 45
[28] ‘Government of India, Cabinet approves the largest government funded Health Program–Ayushman Bharat National Health Protection Mission (NHPM)’, Press information Bureau, 22 March 2018, accessed on 1 September 2018.
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