भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। दुनिया भर के युवाओं का पांचवां हिस्सा यहीं बसता है। 1 अरब 30 करोड़ की आबादी का आधा हिस्सा 25 साल के नीचे का है, और एक चौथाई हिस्सा 14 साल से नीचे का है। भारत की युवा आबादी इसकी सबसे बेशक़ीमती संपत्ति है और सबसे ज़्यादा चुनौतीपूर्ण चुनौती भी है। यह भारत को एक अद्वितीय जनसांख्यिकीय लाभ प्रदान करता है। लेकिन पूंजीगत विकास में बिना उचित निवेश के यह मौक़ा लुप्त हो जाएगा। साथ ही, आज की दुनिया पहले से कहीं ज़्यादा गतिशील और अनिश्चित है। चूंकि भारत तेज़ और एक समान आर्थिक, जनसांख्यिकीय, सामाजिक और तकनीकी बदलावों से गुज़रता है, इसलिए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसका विकास समावेशी हो और समाज के सभी वर्गों तक पहुंचता हो। भारत अपनी वास्तविक विकास क्षमता को महसूस करने में तब तक सक्षम नहीं हो पाएगा, जब तक यहां के युवा अपनी अर्थव्यवस्था में पर्याप्त रूप में और उत्पादक तरीक़े से भाग लेने में सक्षम नहीं होंगे।
ये समझने के लिए कि भारत के युवा कौन से स्किल और रोज़गार चाहते हैं और ये आंकलन करने के लिए कि मौजूदा शिक्षा व्यवस्था इन उम्मीदों को पूरा करती है या नहीं, वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम और ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन ने साझा तौर पर भारत में 5,000 से अधिक युवाओं पर सर्वे किया।
नतीजे बताते हैं कि युवा भारतीय महत्वाकांक्षी हैं और अपने करियर के फ़ैसलों में अधिक स्वायत्तता दिखाते हैं। वे बदलती स्किल ज़रूरतों को समझते हैं और उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए उत्सुक हैं, अतिरिक्त प्रशिक्षण लेते हैं और स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम में शामिल होते हैं। ठीक उसी समय पर, कई फ़ैक्टर उनकी महत्वकांक्षाओं की राह में रोड़ा बन रहे हैं और उन्हें काम की बदलती प्रकृति के साथ प्रभावी रूप से तालमेल बिठाने से रोक रहे हैं। सर्वे के नतीजे सरकारी नीतियों के लिए ये संदेश हो सकता है कि भारतीय युवाओं के लिए शिक्षा से आर्थिक गतिविधियों की ओर जाने का आसान रास्ता सुनिश्चित किया जाए।
यहां सर्वे के कुछ अहम निष्कर्ष हैं:
1. भारतीय युवा स्वतंत्र हैं, आशावादी हैं और बदलते श्रम बाज़ार के लिए खुले हैं
भारत के युवाओं के करियर और शैक्षणिक पसंद पर परिवार और दोस्तों का प्रभाव घट रहा है। युवा तेज़ी से उत्पादक रोज़गार के अवसरों और करियर की तलाश में हैं जो उनके व्यक्तिगत आकांक्षाओं को दिखाता है। सर्वे में जिन लोगों से सवाल पूछे गए उनमें से क़रीब आधे लोगों ने अध्ययन के क्षेत्र में अपनी रुचि के पीछे अपनी पसंद का हवाला दिया है, जबकि 19 फ़ीसदी लोगों ने इसके पीछे अपने परिवार का हाथ बताया है। इसके अलावा, एक तिहाई लोगों की रुचि आन्ट्रप्रनर्शिप में है, और 63 फ़ीसदी लोग गिग वर्क के ज़रिए अपनी आमदनी को बढ़ाने में दिलचस्पी रखते हैं। यह रोज़गार के अलग-अलग तरीक़ों के प्रति लोगों के खुलपेन को दिखाता है।
2. भारतीय युवाओं को अधिक मार्गदर्शन और करियर काउंसलिंग की ज़रूरत है
कई युवाओं को मनचाही और उपयुक्त नौकरी के मौक़े तलाशने के लिए कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। रोज़गार और स्किल पर जानकारी की असमानता जैसे फ़ैक्टर और उचित करियर लक्ष्यों को निर्धारित करने और रोज़गार के विकल्प चुनने में मार्गदर्शन की कमी भारतीय युवाओं को पीछे धकेल रही है। 51 फ़ीसदी लोगों ने बताया कि उनके स्किल से मेल खानेवाली नौकरी के अवसरों के बारे में जानकारी की कमी एक महत्वपूर्ण बाधा है। क़रीब 30 फ़ीसदी लोग मानते हैं कि वो किसी तरह के सलाह-परामर्श के अवसरों से दूर हैं। 44 फ़ीसदी लोग मांग और आपूर्ति की विसंगति में इसे सबसे महत्वपूर्ण फ़ैक्टर मानते हैं। करियर काउंसलिंग और मेंटरिंग के ज़रिए दक्षता और महत्वाकांक्षा के बीच की असामनता को समझने में मदद मिल सकती है और ये युवा भारतीयों के करियर विकल्पों में सुधार करने में मददगार हो सकते हैं।
3. उच्च शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट में युवा भारतीयों की दिलचस्पी
सर्वे में 84 फ़ीसदी लोग पोस्ट ग्रैजुएट डिग्री को अपनी आदर्श नौकरी के लिए ज़रूरी मानते हैं, जबकि 97 फ़ीसदी लोग उच्च शिक्षा में डिग्री के इच्छुक हैं। वे शिक्षा के चलते आ रहे दूसरे प्रारूपों के प्रति भी उत्सुक हैं। 76 फ़ीसदी युवाओं ने स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम में हिस्सा लेने में दिलचस्पी जताई है। मुख्य तौर पर रोज़गार के बढ़े अवसर और मोटी तनख़्वाह इस लक्ष्य के लिए प्रेरित करते हैं। यह इस तथ्य से विरोधाभास करता है कि विकसित देशों में 60-70 फ़ीसदी की तुलना में हमारे देश की कुल कामकाजी आबादी का 3 फ़ीसदी से भी कम व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित है। भारत को अपने युवाओं के आशावाद का लाभ उठाना चाहिए और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा और प्रशिक्षण के अवसरों के प्रसार का समर्थन करना चाहिए। मौजूदा समय में, सरकार द्वारा संचालित स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम के बारे में जागरुकता की बड़ी कमी है। उनकी गुणवत्ता और प्रासंगिकता को लेकर भी अर्थपूर्ण संदेह है। मौजूदा कार्यक्रमों के उत्थान को आगे बढ़ाने के लिए इसे प्रासंगिक, क़िफ़ायती और सुलभ बनाना महत्वपूर्ण है।
4. स्किल गैप पाटने के लिए प्राइवेट सेक्टर को और काम करने की ज़रूरत
भारत के युवाओं की क्षमता और दक्षता को बढ़ाने में प्राइवेट सेक्टर को ज़्यादा सक्रिय भूमिका निभाने की ज़रूरत है। भारत को विरोधाभास का सामना करना पड़ रहा है: एक ओर युवा बेरोज़गारी बड़ी समस्या है, फिर भी प्राइवेट सेक्टर पर्याप्त रूप से कुशल और बाज़ार के लिए तैयार श्रमिकों की कमी का विलाप कर रहा है। बुनियादी शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करने में सरकार की भूमिका के बावजूद, प्राइवेट सेक्टर की बड़ी भागीदारी की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करेगा कि प्रशिक्षण की पहल समय की ज़रूरत के अनुसार और इंडस्ट्री की ज़रूरतों के हिसाब से स्किल प्रदान करने के लिए है। इन प्रोग्राम्स को इंडस्ट्री प्रोफ़ेशनल्स के साथ बातचीत, सेमिनार और वर्कप्लेस का दौरा करने जैसी गतिविधियों के साथ जोड़ा जा सकता है।
5. भारत के सामाजिक–सांस्कृतिक मानदंडों की जटिलता
सर्वे में 34 फ़ीसदी युवाओं ने बताया कि नौकरी की तलाश करते समय उनकी वैवाहिक स्थिति, लिंग, उम्र या पारिवारिक पृष्ठभूमि से संबंधित भेदभावपूर्ण व्यवहार और व्यक्तिगत पूर्वाग्रह एक प्रमुख बाधा है। सर्वे में 82 फ़ीसदी महिलाओं ने फ़ुल टाइम रोज़गार को अपनी पसंद बता कर इस रूढ़िवादी धारणा को ग़लत साबित कर दिया कि महिलाएं पार्ट टाइम रोज़गार चाहती हैं। इसी प्रकार, निरंतर इस मत के बावजूद कि घरेलू काम और अवैतनिक काम महिलाओं के लिए उपयुक्त और वांछनीय हैं, सिर्फ़ एक फ़ीसदी युवा महिलाओं ने माना कि ये उनके लिए वांछनीय, उपयुक्त विकल्प है।
चूंकि चौथी औद्योगिक क्रांति के साथ काम की प्रकृति में बदलाव हुआ, इसलिए मौजूदा लिंग आधारित पूर्वाग्रहों के बढ़ने की संभावना है, यदि उन्हें दूर करने के लिए समर्पित नीतियां और पहल लागू नहीं की जातीं हैं। भविष्य के कार्यक्षेत्र में आज की पूर्वाग्रहों को दोहराने के बजाय इसे कम करने की कोशिशों की ज़रूरत है।
6. रोज़गार की तलाश में सोशल मीडिया और इंटरनेट बड़ी भूमिका निभा सकते हैं
जिन लोगों पर सर्वे किया गया उनमें 81 फ़ीसदी लोग रोज़गार के अवसरों की जानकारी हासिल करने के लिए मीडिया और इंटरनेट स्रोतों पर भरोसा करते हैं। फ़्यूचर ऑफ़ वर्क, एजुकेशन एंड स्किल्स सर्वे बताता है कि जिन कंपनियों का सर्वे किया गया उनमें सिर्फ़ 14 फ़ीसदी ने ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिए भर्ती की बात मानी।
भारत के युवाओं के बीच सोशल मीडिया और इंटरनेट इस्तेमाल के प्रसार से शिक्षा मार्ग, रोज़गार के अवसर, स्किल की ज़रूरतों और उपलब्ध स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम के बारे में जागरूकता बढ़ाने का अवसर मिलता है।
63 फ़ीसदी लोगों के लिए, एक अच्छी तनख़्वाह नौकरी का सबसे महत्वपूर्ण मानदंड है। पब्लिक सेक्टर में काम करने को तवज्जो देनेवाले और गिग वर्क और स्व-रोज़गार जैसे अपरंपरागत रोज़गार के विकल्पों में अविश्वास दिखाने वाले अधिकांश भारतीय युवाओं में मोटी तनख़्वाह और जॉब सिक्योरिटी की धारणा है। बदलते श्रम बाज़ार और इंटरनेट के माध्यम से उभरती नौकरी की भूमिकाओं के बारे में अधिक जानकारी इन रूढ़िवादों को तोड़ने और विविध पेशेवर और शैक्षिक गतिविधियों के लिए भारतीयों की भूख बढ़ाने में मदद कर सकती है।
सही दिशा में कई क़दम उठाए जा रहे हैं, जैसे-उद्यमिता (आन्ट्रप्रनर्शिप) को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार की स्टार्ट अप इंडिया पहल; कौशल भारत मिशन की शुरुआत; कौशल विकास और उद्यमिता के लिए अलग समर्पित मंत्रालय बनाना; उद्योगोन्मुख कौशल परिषदों की स्थापना और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों का कायाकल्प।
हालांकि ऐसी शुरुआत इस बात के संकेत देते हैं कि भारत सरकार कुशलता को लेकर वचनबद्ध है , ये नीति ख़ास तौर पर पसंद या विरासत से जुड़ी है ताक़ि रोज़गार को लेकर नौजवानों की पसंद और बाज़ार की असलियत को समझा जा सके। चौथी औद्योगिक क्रांति के साथ नौकरियों और काम की प्रकृति में बदलाव के साथ इस खाई (अंतर) के बढ़ने की संभावना सकती है। आगे बढ़ते हुए, विभिन्न सरकारी एजेंसियों और मंत्रालयों, निजी क्षेत्र, अकादमिक विशेषज्ञों, प्रशिक्षण संगठन, सिविल सोसाइटी और युवाओं के बीच सहयोग युवा भारत की क्षमता को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण होगा। अगली पीढ़ी की आकांक्षाओं को पूरा करने की हमारी क्षमता श्रम उत्पादकता को बढ़ावा देने और समावेशी विकास के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण है।
सूची केडिया वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम में भारत और दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय एजेंडे की कम्यूनिटी स्पेशिएलिस्ट।
श्रीराम गुट्टा वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम में भारत और दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय एजेंडे के कम्यूनिटी लीड।
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