Image Source: Getty
डॉनल्ड ट्रंप की जीत अमेरिका में टैरिफ़ से लेकर इमिग्रेशन और यूक्रेन युद्ध तक - लगभग हर नीतिगत क्षेत्र में बड़े बदलाव की ओर ले जाएगी. ये एक अलग मामला है कि उन्हें कैसे प्राथमिकता दी जाएगी. स्वभाव के मुताबिक ट्रंप भी व्यक्तिगत चुनौतियों से जूझते दिख रहे हैं. इनमें कथित या वास्तविक छोटी-छोटी बातों और कथित अत्याचार की घटनाओं का समाधान करने की मज़बूत इच्छा शामिल है. ट्रंप का आने वाला युग हमारे समय का सबसे अप्रत्याशित और विघटनकारी हो सकता है. उनके द्वारा की गई नियुक्ति संकेत देती है कि वो अपने चुनावी वादों को पूरा करने का इरादा रखते हैं, विशेष रूप से इमिग्रेशन को लेकर.
अभी तक राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप का पहला कार्यकाल अक्सर असामान्य स्थिति के रूप में देखा जाता है और बाइडेन के कार्यकाल को आदर्श माना जाता है. लेकिन अब बाइडेन का कार्यकाल ही अलग लग रहा है.
नीतिगत और व्यक्तिगत कमज़ोरियों से आगे अमेरिका का चुनाव बहुत ज़्यादा महत्व रखता है. अभी तक राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप का पहला कार्यकाल अक्सर असामान्य स्थिति के रूप में देखा जाता है और बाइडेन के कार्यकाल को आदर्श माना जाता है. लेकिन अब बाइडेन का कार्यकाल ही अलग लग रहा है. ट्रंप का दूसरा कार्यकाल, जो “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” (MAGA) का नारा लगाने वाली ताकतों के लिए चौतरफा जीत रही है, अब निकट भविष्य में अमेरिका के लिए आदर्श होगा.
ट्रंप की जीत उदारवाद की हार नहीं थी जिसमें व्यक्तिगत अधिकारों, कानून के राज और सरकार पर संवैधानिक नियंत्रण पर ज़ोर दिया गया है. ये नव-उदारवाद की हार थी जिसने भू-मंडलीकरण को बढ़ावा दिया, कामकाजी वर्ग को त्याग दिया और बाकी सभी चीजों के मुकाबले पैसा कमाने पर ज़ोर दिया. अमेरिका का कामकाजी वर्ग ख़त्म हो गया क्योंकि उत्पादन का काम एशिया में चला गया. उनकी दुर्दशा को दूर करने के बदले नव-उदारवादी डेमोक्रैट्स ने वंचितों-नस्लीयों, अल्पसंख्यकों, LGBTQ समुदाय, प्रवासियों, इत्यादि के संकीर्ण मोर्चों पर ध्यान दिया. वंचित लोगों के रूप में अक्सर उन्हें प्राथमिकता दी गई जबकि वास्तविक कामकाजी वर्ग डूब गया और MAGA राजनीति की अपील के प्रति लगातार संवेदनशील होता गया. वैसे तो MAGA राजनीति ने मूल रूप से श्वेत कामकाजी वर्ग को आकर्षित किया लेकिन ट्रंप अश्वेत और लैटिन कामकाजी वर्ग का समर्थन हासिल करने में भी सफल रहे हैं.
ट्रंपवाद पर लोगों का नज़रिया
कई लोग सोचते हैं कि ट्रंपवाद ख़ुद को सीमित करने की एक बीमारी होगी. इसने परस्पर विरोधी उद्देश्यों को हासिल करने का जो लक्ष्य निर्धारित कर रखा है, उसका संभव नहीं होना ट्रंप के असर को कम करेगा.
उदाहरण के लिए, टैरिफ़ के मुद्दे को ले लीजिए. ट्रंप ने अक्टूबर में कहा, "डिक्शनरी में टैरिफ़ सबसे सुंदर शब्द है." ज़्यादातर अर्थशास्त्री इस बात से सहमत थे कि सभी आयातों पर 10-20 प्रतिशत टैरिफ़ और चीन से आयात पर 60 प्रतिशत टैरिफ़ से अमेरिका में दाम बढ़ेंगे. एक विचारधारा है जो इस बात पर भरोसा करती है कि टैरिफ़ को लागू करना एक बातचीत की रणनीति होगी, उससे ज़्यादा कुछ नहीं. अगर ऐसा है तो इसके दो संभावित नतीजे हैं- दूसरे देश अपने व्यापार की बाधाओं को कम करेंगे या फिर ज़्यादा उम्मीद इस बात की है कि वो अपने टैरिफ़ के साथ जवाबी कार्रवाई करेंगे. ऐसा होने से महंगाई के हालात बनेंगे जिसके बारे में ट्रंप को पता होना चाहिए कि ये इस चुनाव में डेमोक्रैट्स के लिए ज़हर साबित हुआ.
सबसे ज़्यादा निशाने पर मेक्सिको है. ट्रंप ने एलान किया है कि वो सीमा शुल्क में 200 या 500 प्रतिशत की बढ़ोतरी करेंगे. उन्होंने कहा, "मैं परवाह नहीं करता. मैं एक नंबर डालूंगा जहां वो (अमेरिका में) एक कार भी नहीं बेच सकते.” वर्तमान समय में मेक्सिको अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और उसने 2023 में अमेरिका में 25.50 लाख कार बेचे हैं. टैरिफ़ से होंडा, टोयोटा और फॉक्सवैगन जैसी कंपनियों को नुकसान होगा लेकिन ये फोर्ड, जनरल मोटर्स (GM) और स्टेलांटिस जैसी अमेरिकी कंपनियों को भी प्रभावित करेगा जिनकी सप्लाई चेन का विस्तार मेक्सिको तक है और जो उत्पादन के ठिकाने के रूप में भी मेक्सिको का उपयोग करते हैं. मेक्सिको के लिए ये दोहरी मार होगी क्योंकि बिना दस्तावेज़ वाले जिन प्रवासियों को निर्वासित किया जाना है, उनमें सबसे ज़्यादा लोग मेक्सिको के हैं.
जहां तक बात इमिग्रेशन की है तो ट्रंप सीमा को बंद और बिना दस्तावेज़ वाले 1.10 करोड़ तक लोगों को निर्वासित करने की प्रक्रिया शुरू करना चाहते हैं. उन्होंने ये काम पूरा करने के लिए उग्र विचार रखने वाले स्टीफन मिलर और थॉमस होमान को नियुक्त किया है. इस तरह उन्होंने चुनाव अभियान के दौरान किए गए वादे को पूरा करने के इरादे का संकेत दिया है.
जहां तक बात इमिग्रेशन की है तो ट्रंप सीमा को बंद और बिना दस्तावेज़ वाले 1.10 करोड़ तक लोगों को निर्वासित करने की प्रक्रिया शुरू करना चाहते हैं. उन्होंने ये काम पूरा करने के लिए उग्र विचार रखने वाले स्टीफन मिलर और थॉमस होमान को नियुक्त किया है.
हालांकि, ये कोई मामूली काम नहीं है क्योंकि प्रवासियों का ये समुदाय अब अमेरिका के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने में घुल-मिल चुका है. उप राष्ट्रपति जे.डी.वांस ने कहा है कि लक्ष्य हर साल 10 लाख अवैध प्रवासियों को अमेरिका से निकालने का है. उन्हें बाहर निकालने, डिटेंशन सेंटर तैयार करने, कानूनी चुनौतियों से पार पाने और अपने देश लौटने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करने में वर्षों लग सकते हैं. ये अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेगा क्योंकि प्रवासी कृषि और निर्माण उद्योग की रीढ़ की हड्डी हैं और उनकी मौजूदगी ने मज़दूरी को काबू में रखने में मदद की है. निर्वासन की प्रक्रिया से महंगाई बढ़ने की आशंका है.
इनमें से कई क्षेत्रों में असली सवाल ये है कि ट्रंप किस पर ध्यान देने का फैसला करते हैं. स्पष्ट रूप से 40 से कम एजेंडा नहीं हैं जिन पर राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले दिन से ही ध्यान देने का उन्होंने वादा किया है. निश्चित तौर पर बाइडेन प्रशासन के दौरान जिन लोगों पर उन्होंने अत्याचार के आरोप लगाए थे, उनसे बदला लेना उनकी प्राथमिकता होगी. जो लोग निशाने पर होंगे उनमें न्याय विभाग के स्पेशल काउंसल जैक स्मिथ, पूर्व अटॉर्नी जनरल मेरिक गारलैंड के साथ-साथ ट्रंप के दोस्त से दुश्मन बने लोग जैसे कि पूर्व ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ जॉन केली, चेयरमैन जनरल मार्क मिले और रिप्रेजेंटेटिव लिज़ चेनी शामिल हैं. उनकी नीति का एक और पहलू होगा किसी भी संघीय अधिकारी को पद से बर्खास्त करने की अनुमति देने के लिए नियमों में बदलाव. बड़े पैमाने पर अधिकारियों को बर्खास्त किया जा सकता है और उनकी जगह पर MAGA समर्थकों को नियुक्त किया जा सकता है.
विदेश नीति एक ऐसा क्षेत्र हैं जिसमें बहुत ज़्यादा बदलाव का अनुभव होगा. विदेश मंत्री के रूप में सीनेटर मार्को रुबियो की संभावित नियुक्ति उग्र दृष्टिकोण का इशारा करती है. रुबियो ईरान, चीन, और वेनेज़ुएला को लेकर अपने उग्र रवैये के लिए जाने जाते हैं. इसके साथ-साथ गज़ा में इज़रायल के अभियान का समर्थन भी करते हैं.
इस बात की पूरी संभावना है कि यूक्रेन को भारी नुकसान होगा. वहीं उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) भी ख़ुद को सवालों से घिरा महसूस कर सकता है. पिछले दो वर्षों में अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU)- दोनों ने अपनी हथियारों की आपूर्ति की अस्पष्ट नीतियों के ज़रिए यूक्रेन को धोखा दिया है. अब शांति स्थापित करने के लिए यूक्रेन को मजबूर होकर अपना क्षेत्र छोड़ना पड़ सकता है जबकि NATO की स्थिति अनिश्चित है. जे.डी.वांस ने सुझाया है कि लक्ष्य वर्तमान सीमा पर रूस और यूक्रेन को युद्धविराम के लिए तैयार करना होगा. लेकिन इसका मतलब है कि यूक्रेन को लगभग 18 प्रतिशत क्षेत्र का नुकसान होगा जिस पर रूस ने 2022 से कब्ज़ा कर रखा है. वांस की योजना रूस को लेकर यूक्रेन की तटस्थता की भी गारंटी देगी.
जहां तक इज़रायल की बात है तो ट्रंप इज़रायल की सैन्य गतिविधियों के ज़्यादा समर्थक होंगे और बाइडेन प्रशासन के विपरीत अमेरिकी सैन्य सहायता का उपयोग इज़रायल की नीति को किसी ख़ास दिशा की ओर ले जाने के लिए नहीं करेंगे.
जहां तक इज़रायल की बात है तो ट्रंप इज़रायल की सैन्य गतिविधियों के ज़्यादा समर्थक होंगे और बाइडेन प्रशासन के विपरीत अमेरिकी सैन्य सहायता का उपयोग इज़रायल की नीति को किसी ख़ास दिशा की ओर ले जाने के लिए नहीं करेंगे. टाइम्स ऑफ इज़रायल के अनुसार, ट्रंप ने नेतन्याहू से कहा है कि वो 20 जनवरी 2025 को राष्ट्रपति के रूप में अपना कार्यकाल शुरू करने से पहले गज़ा युद्ध की समाप्ति चाहते हैं.
लेकिन कुछ दूसरे मुद्दे हैं जहां अमेरिका का रवैया इज़रायल को भी लाभ पहुंचाएगा- विशेष रूप से लेबनान में हिज़्बुल्लाह को ध्वस्त करने और ईरान से निपटने में. ईरान के साथ परमाणु समझौते पर ट्रंप पीछे हट गए थे और उन्होंने ईरान को अपना परमाणु कार्यक्रम और हिज़्बुल्लाह एवं हमास जैसे क्षेत्रीय सहयोगियों को हथियार मुहैया कराने की उसकी नीति को ख़त्म करने के लिए कठोर प्रतिबंधों के साथ “अधिकतम दबाव” का अभियान शुरू किया था. चीन को लेकर ट्रंप के उग्र विचारों की बहुत अधिक चर्चा है. लेकिन लोग अक्सर ये भूल जाते हैं कि जनवरी 2020 में उन्होंने अपनी इच्छा से चीन के साथ व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. ये मानने का कोई कारण नहीं है कि ऐसा ही एक और समझौता नहीं होगा और इसमें ताइवान का दर्जा भी शामिल है. अमेरिका मुश्किल हालात में है. इस चुनाव के साथ वहां का ध्रुवीकरण और गहरा हुआ है और सरकार पर ट्रंप के हमलों ने अमेरिकी सत्ता के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को कमज़ोर किया है.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनाई गई पश्चिमी देशों की अगुवाई वाली बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था बदलाव की ओर बढ़ रही है. पिछले कुछ वर्षों से ये व्यवस्था दबाव में दिख रही है लेकिन MAGA की जीत इसके लिए ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकती है.
रूस, चीन और पश्चिमी देश
रूस, चीन और पश्चिमी देशों के बीच बंटवारे के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) कमोबेश स्थिर है. जहां तक बात विश्व व्यापार संगठन (WTO) की है तो ट्रंप ने 2016 में इसमें अपील का कामकाज ख़त्म करने को सुनिश्चित किया. अब चारों ओर टैरिफ़ युद्ध होने के साथ इस बात की बहुत कम संभावना है कि विश्व व्यापार संगठन इसको लेकर कुछ भी करने में सक्षम होगा.
बाइडेन प्रशासन ने मज़बूती से NATO और अमेरिका के पूर्वी एशियाई सहयोगियों- जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस- एवं ऑस्ट्रेलिया का समर्थन किया है. NATO के मामले में ट्रंप ने सवाल किया है कि क्या अमेरिका गठबंधन के पारस्परिक रक्षा अनुच्छेद का सम्मान करेगा और उन्होंने वास्तव में सुझाव दिया है कि वो रूस को इस बात के लिए प्रोत्साहित करेंगे कि वो पर्याप्त भुगतान नहीं करने वाले किसी भी NATO देश के साथ “जो मर्ज़ी हो करे.”
ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) के देशों को दुनिया के मामलों में वर्चस्व की भूमिका से अमेरिका के पीछे हटने से लाभ मिल सकता है.
ज़रूरी नही कि ये सभी बातें ख़राब हों. ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) के देशों को दुनिया के मामलों में वर्चस्व की भूमिका से अमेरिका के पीछे हटने से लाभ मिल सकता है. ब्रिक्स जैसे संगठनों के द्वारा जिस बहुपक्षवाद को बढ़ावा दिया गया है, वो भारतीय हितों के लिए बेहतर ढंग से काम करने में दुनिया को नया रूप दे सकता है. लेकिन ये कोई साधारण काम नहीं है. इस नए बहुपक्षवाद को घोषणाओं की अपनी प्रवृत्ति से आगे बढ़ना होगा और ज़मीनी स्तर पर नतीजे देने होंगे.
मनोज जोशी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डिस्टिंग्विश्ड फेलो हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.