Published on Jul 27, 2022 Updated 29 Days ago

ब्रिक्स का विस्तार करने के पीछे चीन का मक़सद ब्रिक्स के तंत्र और मंच के ज़रिए अपने एज़ेंडे और भव्य रणनीति को अधिक मज़बूती से बढ़ावा देना है और कूटनीतिक रूप से अमेरिका के बढ़ते प्रभाव को रोकना है.

BRICS के विस्तार के पीछे, आख़िर चीन की मंशा क्या है?

हाल ही में बीजिंग में संपन्न हुए 14 वीं ब्रिक्स (BRICS ) नेताओं की बैठक ने ब्रिक्स के विस्तार के मुद्दे को एक बार फिर सुर्ख़ियों में ला दिया है. साल 2017 के शियामेन शिखर सम्मेलन के बाद यह दूसरा मौक़ा है जब चीन ने तेज़ी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के समूह के विस्तार में अपनी दिलचस्पी दिखाई है. ऐसी रिपोर्ट है कि ईरान और अर्जेंटीना ने भी औपचारिक रूप से ब्रिक्स में शामिल होने में अपनी दिलचस्पी दिखाई है. ऐसे समय में जब चीन और भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गतिरोध में फंसे हुए हैं, ब्रिक्स के विस्तार के चीनी प्रस्ताव ने नई दिल्ली की सत्ता के गलियारे में चिंता पैदा कर दी है. अब जबकि भारत इस विवादास्पद मुद्दे पर अपना रुख़ तय करने में लगा है, चीन की ब्रिक्स रणनीति को आगे बढ़ाने वाले कारणों पर गौर करना बेहद ज़रूरी है.

ब्रिक्स के विस्तार के चीनी प्रस्ताव ने नई दिल्ली की सत्ता के गलियारे में चिंता पैदा कर दी है. अब जबकि भारत इस विवादास्पद मुद्दे पर अपना रुख़ तय करने में लगा है, चीन की ब्रिक्स रणनीति को आगे बढ़ाने वाले कारणों पर गौर करना बेहद ज़रूरी है.

देर से ही सही लेकिन चीन में यह विचार तेज़ी से अपनी जगह बनाता जा रहा है कि ब्रिक्स अब कमज़ोर संस्था बनती जा रही है ,ये पटरी से उतर गई है और इसके एक्शन में किसी तरह का कोई सामंजस्य नहीं रह गया है. और यही वज़ह है कि चीन इस संस्था के कमज़ोर होते शरीर में नई ताक़त भरकर – नए सदस्यों को अपनी ओर आकर्षित कर – चीन अपने विकास को रफ़्तार देने में नई योजनाओं को आगे बढ़ा रहा है. चीनी आकलन के मुताबिक़, पिछले सात या आठ सालों में चीन सहित ब्रिक्स सदस्य देशों में आर्थिक विकास की गति धीमी हुई है. दूसरे शब्दों में, “गोल्डन ब्रिक्स” “स्टोन ब्रिक्स”(金砖变成石砖) में तब्दील हो गया है. ऐसा लगता है कि ब्रिक्स देशों के तेज़ी से तरक्की करने का समय बीत गया है और यह ख़ास तौर पर ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और रूस जैसे सदस्य देशों के लिए ज़्यादा प्रासंगिक है. ब्राजील की अर्थव्यवस्था साल 2017 में 1 प्रतिशत की औसत वार्षिक दर से बढ़ी, दक्षिण अफ्रीका की औसत वार्षिक जीडीपी बढ़ोतरी उसी समय के दौरान लगभग 1.2 प्रतिशत रही है. इस बीच रूस की जीडीपी साल 2014 में 0.7 प्रतिशत, 2015 में -2 प्रतिशत, 2016 में 0.2 प्रतिशत और 2017 में 1.8 प्रतिशत ही बढ़ी.


ब्रिक्स के विस्तार की वजह

चीनी विश्लेषकों का मानना है कि इन देशों में आर्थिक संकट घरेलू राजनीतिक परिवर्तनों का कारण बन रहा है, जो बदले में ब्रिक्स देशों की साझा पहचान, स्थिति और सहयोग तंत्र को बढ़ावा देने के लिए ज़रूरी उत्साह को कम कर रहा है. उदाहरण के लिए ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका, जहां की आर्थिक रफ्तार सुस्त है और घरेलू स्तर पर राजनीतिक स्थितियां भी अस्थिर हैं, वो ब्रिक्स एज़ेंडे को प्राथमिकता देने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इससे उनकी विदेश नीति का लचीलापन कमज़ोर होगा और यह बदले में उनके राष्ट्रीय हितों को जोख़िम में डाल देगा.

चीन इस बात का पक्षधर है कि ब्रिक्स को अपने मूल पांच सदस्यों तक सीमित करने से इसके वैश्विक प्रभाव और दुनिया भर के मंचों पर बोलने के अधिकार में और कमी आएगी. लिहाज़ा चीन की दिलचस्पी ब्रिक्स के दायरे को और बढ़ाने में है.


अब कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन जंग के साथ, ब्रिक्स देशों के बीच मूल अंतरराष्ट्रीय  प्रतिस्पर्द्धा को लेकर भी स्थितियां ज़्यादा गंभीर दिखती हैं, जो साफ तौर पर अपनी गतिशीलता खो रही हैं. इसके विपरीत अमेरिका और पश्चिमी देशों के नेतृत्व वाली विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं में धीरे-धीरे सुधार के संकेत दिख रहे हैं. अभी भी तकनीकी क्रांति और औद्योगिक बदलाव के नए दौर में अमेरिका दुनिया भर में अगुआ बना हुआ है और अमेरिका ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के अपने नेतृत्व को फिर से हासिल करने की कोशिश को अंजाम देना शुरू कर दिया है. ऐसे समय में जब ब्रिक्स देशों की समग्र शक्ति में गिरावट आ रही है और संस्था के सदस्य देशों को पारंपरिक विकसित देशों के नेतृत्व वाले सहयोग व्यवस्था से बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है, तब चीन इस बात का पक्षधर है कि ब्रिक्स को अपने मूल पांच सदस्यों तक सीमित करने से इसके वैश्विक प्रभाव और दुनिया भर के मंचों पर बोलने के अधिकार में और कमी आएगी. लिहाज़ा चीन की दिलचस्पी ब्रिक्स के दायरे को और बढ़ाने में है.

इसका दूसरा कारण चीन-अमेरिका के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा है. चीनी पर्यवेक्षकों ने इस बात की तरफ ध्यान दिया कि ओबामा युग में, जी2 प्रस्ताव ने चीनी विदेश नीति के लिए ब्रिक्स के महत्व को कमजोर कर दिया था. हालांकि, ट्रम्प के राष्ट्रपति शासनकाल में जी2 का अर्थ बहुत जल्द ही उच्च-स्तरीय सहयोग से बड़े स्तर के टकराव में बदल गया, इससे चीन की प्राथमकिता एक बड़े और बेहतर समन्वय वाला ब्रिक्स बन गया. यह साल 2017 में भी था जब चीन ने पहली बार एक विस्तृत ब्रिक्स की अवधारणा का प्रस्ताव रखा था. अब जबकि अमेरिका की सत्ता जो बाइडेन के हाथों में है तो चीन के पर्यवेक्षकों का मानना है कि ट्रम्प युग के दौरान शुरू किए गए ‘नए शीत युद्ध’ को और ऊंचाइयों पर ले जाया गया है.

रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोप को एक नए शीत युद्ध के माहौल में खींच लिया गया है, जिसके तहत एक दूसरे को जोड़ने वाले पश्चिमी ब्लॉक का गठन किया गया है, जिसमें पुराने शीत युद्ध युग की तरह ही अमेरिका और यूरोप के देश शामिल हैं.

उदाहरण के लिए, रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोप को एक नए शीत युद्ध के माहौल में खींच लिया गया है, जिसके तहत एक दूसरे को जोड़ने वाले पश्चिमी ब्लॉक का गठन किया गया है, जिसमें पुराने शीत युद्ध युग की तरह ही अमेरिका और यूरोप के देश शामिल हैं. रूस-यूक्रेन जंग को लेकर उनका मानना है कि अमेरिका और यूरोप के बीच सहयोग का नया युग प्रारंभ करने जा रहा है. जबकि दूसरी ओर यह तर्क दिया जाता है कि एशिया में, अमेरिका अधिक से अधिक देशों – जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया को क्वार्डिलैटरल सिक्युरिटी डायलॉग, इंडो-पैसिफ़िक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क ( हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचा), ऑकस और यहां तक कि उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) के ज़रिए अपने साथ जोड़ने में लगा है. चीन के लिए विशेष चिंता की बात यह है कि कैसे बढ़ती भू-राजनीति, कारोबारी प्रतिस्पर्द्धा, कोरोना महामारी के प्रभाव और औद्योगिक बदलाव के बीच, वैश्विक औद्योगिक श्रृंखला को फिर जल्द से जल्द पुनर्गठित किया जा रहा है और मौज़ूदा ‘यूएस + वेस्ट + चीन‘ औद्योगिक मॉडल को नए मॉडलों, विशेष रूप से ‘यूएस + वेस्ट + इंडिया’ मॉडल द्वारा बदलने की कोशिश हो रही है. उनका तर्क है कि ऐसा करने का मक़सद चीन को अलग-थलग करने के अलावा औद्योगीकरण की आने वाली चौथी लहर में चीन की मौज़ूदा ताक़त और स्थिति पर चोट करना है. इसी पृष्ठभूमि के विपरीत कि चीन ब्रिक्स का विस्तार करना चाहता है, “आपूर्ति श्रृंखला के हितों के समुदाय” को बढ़ावा देना चाहता है, और ब्रिक्स (चीन की आपूर्ति श्रृंखला पढ़ें) के साथ दुनिया भर के ज़्यादा से ज़्यादा उभरती अर्थव्यवस्थाओं को जोड़ना चाहता है. 

निष्कर्ष

चीन के नेतृत्व वाली आपूर्ति श्रृंखला के साथ इन देशों को जोड़कर, भारत जैसे संभावित प्रतिस्पर्द्धियों को बेअसर किया जा सकता है और आपूर्ति श्रृंखलाओं के पुनर्गठन के मौज़ूदा दौर में चीन को अलग थलग करने की किसी भी कोशिश को नाकाम किया जा सकता है. संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि चीन के लिए ब्रिक्स के विस्तार का मक़सद कूटनीतिक रूप से अमेरिका के वर्चस्व को रोकना है और ब्रिक्स तंत्र और मंच के ज़रिए चीन के एज़ेंडे और भव्य रणनीति को और अधिक मज़बूती से बढ़ावा देना है, और मौज़ूदा ब्रिक्स सदस्य देशों को, ख़ास तौर पर भारत को अमेरिका / पश्चिमी देशों के बेहद क़रीब जाने से रोकना है.

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