Author : Soumya Awasthi

Expert Speak Raisina Debates
Published on May 15, 2025 Updated 1 Days ago

पहलगाम हमले से पता चलता है कि कैसे डिजिटल युग में सूचना युद्ध लड़ाई के मैदान की कार्रवाई की तरह बन गया है जहां लोगों की राय के लिए सच्चाई और नैरेटिव के बीच युद्ध होता है.

पहलगाम हमले के बाद सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार: हथियार के रूप में ‘नैरेटिव’ का इस्तेमाल

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यह लेख "ऑपरेशन सिंदूर - अनावृत" नामक सीरीज़ का हिस्सा है.


22 अप्रैल 2025 का पहलगाम हमला, जिसने जम्मू-कश्मीर में 26 आम लोगों की जान ले ली, हिंसा का एक निर्मम कृत्य और सोशल मीडिया पर सूचना युद्ध का प्रेरक था. जैसे ही परिस्थितियां सामान्य हुईं, वैसे ही पहलगाम हमले को लेकर ऑनलाइन युद्ध शुरू हो गया. पाकिस्तान के प्रायोजित आतंकी समर्थकों और डिजिटल दुष्प्रचार करने वालों ने सच्चाई को तोड़ना-मरोड़ना और भारत की सुरक्षा को अस्थिर करना शुरू कर दिया. ये लेख इस बात का पता लगाता है कि किस तरह पहलगाम हमले को लेकर सोशल मीडिया प्रोपेगैंडा का इस्तेमाल विरोधी किरदारों के द्वारा हथियार के रूप में किया गया, उन्होंने क्या चालबाज़ी अपनाई और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर इसके क्या गंभीर प्रभाव हो रहे हैं.   

डिजिटल युद्ध का मैदान: आतंकी दुष्प्रचार के लिए औज़ार के रूप में सोशल मीडिया

पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तानी सोशल मीडिया हैंडल, विशेष रूप से X (जिसका नाम पहले ट्विटर था), के ज़रिए मिल-जुलकर भारत की सरकार को बदनाम करने और इस त्रासदी का मज़ाक उड़ाने का प्रयास किया गया. #IndianFalseFlag, #PahalgamDramaExposed और #ModiExposed जैसे हैशटैग तेज़ी से ट्रेंड हुए. हज़ारों ऐसे पोस्ट के ज़रिए उनको शेयर किया गया जिनमें हमले को भारत के द्वारा ख़ुद रची गई साज़िश के रूप में पेश करने की कोशिश की गई. 

पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तानी सोशल मीडिया हैंडल, विशेष रूप से X, के ज़रिए मिल-जुलकर भारत की सरकार को बदनाम करने और इस त्रासदी का मज़ाक उड़ाने का प्रयास किया गया. #IndianFalseFlag, #PahalgamDramaExposed और #ModiExposed जैसे हैशटैग तेज़ी से ट्रेंड हुए. 

ये अभियान आकस्मिक नहीं था; ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) के विश्लेषण ने उजागर किया कि इन हैशटैग के तहत 75 प्रतिशत से ज़्यादा पोस्ट पाकिस्तानी अकाउंट से पैदा हुए जिनमें से कई सरकार समर्थक या सेना समर्थिक नैरेटिव से जुड़े हुए थे. इन पोस्ट का समय और उनकी संख्या इस बात की तरफ इशारा करती हैं कि ये नैरेटिव को प्रभावित करने और पाकिस्तान से काम करने वाले आतंकी समूह लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और उसके प्रॉक्सी द रेज़िस्टेंस फ्रंट (TRF), जिसने कथित तौर पर पहले पहलगाम हमले की ज़िम्मेदारी ली लेकिन बाद में मुकर गया, से दोष हटाने का एक बेहद नियंत्रित प्रयास था. 

AI का उपयोग करके दुष्प्रचार और मज़ाक 

सबसे ख़तरनाक ट्रेंड में से एक था आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करके गुमराह करने वाला और घिनौना कंटेंट पैदा करना. AI का सहारा लेकर कई एडिटेड वीडियो को ऑनलाइन फैलाया गया. इनमें हमले के दौरान मारे गए एक पीड़ित के बगल में रोती महिला के वीडियो को अजीब डांस सीक्वेंस में बदल दिया गया. वहीं X पर डाले गए एक और वीडियो में भारतीय थल सेना की उत्तरी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल सुचिंद्र कुमार और दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों को ये बात करते हुए दिखाया गया कि पहलगाम हमला भारत ने कराया था. 

इस तरह के डिजिटल हेरफेर से कई दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य पूरे होते हैं. ये पीड़ितों के दुख का मज़ाक उड़ाता है, और अधिक नफरत को बढ़ाता है और भारतीय सरकार एवं संस्थानों का मज़ाक उड़ाने का प्रयास करता है. इन पोस्ट का वायरल होना, कई पोस्ट को तो कुछ घंटों के भीतर हज़ारों लोगों ने देखा, लोगों की सोच बनाने और संघर्ष के बीज बोने में AI से प्रेरित दुष्प्रचार की क्षमता की पुष्टि करता है.  

भारतीय सशस्त्र बलों और उनके नेतृत्व को निशाना बनाकर दुष्प्रचार

इस दुष्प्रचार अभियान ने भारत की सुरक्षा व्यवस्था की सच्चाई पर निशाना साधा. इस अभियान का मुख्य विषय भारतीय थल सेना के भीतर आंतरिक कलह की झूठी कहानियों को गढ़ना था जिसमें विशेष रूप से सिख सैनिकों पर ध्यान दिया गया था. पोस्ट और वीडियो, जिनमें से कई AI से उत्पन्न या बहुत ज़्यादा छेड़छाड़ करके बनाए गए थे, में दावा किया गया कि सिख सैन्यकर्मी भारतीय सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर रहे हैं और कश्मीर में सेना के आगामी अभियानों में शामिल होने से इनकार कर रहे हैं. कथित तौर पर कुछ वायरल कंटेंट में ये भी दिखाया गया कि भारतीय सैनिक खालिस्तान को लेकर जनमत संग्रह की मांग कर रहे हैं. इस नैरेटिव को खालिस्तान समर्थक अकाउंट और पाकिस्तान के ट्रोल नेटवर्क के द्वारा और बढ़ाया गया. इन्होंने अपने दावों को विश्वसनीयता प्रदान करने के लिए पुरानी फुटेज और हेरफेर करके तैयार तस्वीरों का सहारा लिया. AI से उत्पन्न डीपफेक और मनगढ़ंत सैन्य सलाह ने इन झूठी बातों को प्रामाणिकता का आवरण मुहैया कराया. इस वजह से उन पर भरोसा करने और यूज़र के द्वारा बिना सोचे-समझे उन्हें शेयर करने की संभावना बढ़ गई.  

इस दुष्प्रचार अभियान ने भारत की सुरक्षा व्यवस्था की सच्चाई पर निशाना साधा. इस अभियान का मुख्य विषय भारतीय थल सेना के भीतर आंतरिक कलह की झूठी कहानियों को गढ़ना था जिसमें विशेष रूप से सिख सैनिकों पर ध्यान दिया गया था.

पाकिस्तानी अकाउंट ने भारत के सैन्य नेतृत्व को लेकर अफवाह फैलाई और दावा किया कि पहलगाम हमले के दौरान नाकामी के लिए या तो उन्हें बर्खास्त कर दिया गया है या सेना से बाहर कर दिया गया है. वास्तविकता ये है कि इन अधिकारियों को या तो पदोन्नत कर दिया गया या वो पूरे सम्मान के साथ रिटायर हुए थे लेकिन जब तक आधिकारिक स्पष्टीकरण आता तब तक ये दुष्प्रचार बहुत लोगों तक पहुंच चुका था. पाकिस्तान के मुख्य धारा के मीडिया संगठनों, जिनमें समा टीवी और दुनिया न्यूज़ टीवी शामिल हैं, ने सोशल मीडिया की इन अफवाहों को उठाया और उन्हें सच्ची ख़बर के रूप में पेश किया जिससे झूठे नैरेटिव को और बढ़ावा मिला और भारतीय सेना में अराजकता और विद्रोह की एक छवि पेश हुई. 

भारत के ख़िलाफ़ अभियान में एक और परत जोड़ते हुए पाकिस्तान के साइबर किरदारों ने दावा किया कि उन्होंने भारतीय रक्षा नेटवर्क में सेंध लगाई है और संवेदनशील डेटा उनको मिल गया है. उन्होंने और अधिक साइबर हमलों की धमकी भी दी. वैसे तो भारत के अधिकारियों ने पुष्टि की है कि किसी भी तरह की गुप्त सूचना से छेड़छाड़ नहीं की गई है लेकिन इस तरह के दावों के मनोवैज्ञानिक असर ने कमज़ोरी और असमंजस की भावना को बढ़ावा दिया. 

पहलगाम प्रकरण डिजिटल युग में सूचना युद्ध की ताकत की साफ तौर पर याद दिलाता है जहां तथ्य और झूठ वास्तविक समय में एक-दूसरे से मुकाबला करते हैं और लोगों की राय के लिए लड़ाई उतनी ही महत्वपूर्ण हो जाती है जितनी ज़मीनी स्तर की घटनाएं.

इस दुष्प्रचार अभियान के दौरान हैशटैग का रणनीतिक उपयोग किया गया, तालमेल बनाकर एक साथ पोस्ट किए गए और इसमें मुख्यधारा और हाशिये की आवाज़ शामिल थी. इसके विरुद्ध भारत ने तुरंत और बहुआयामी जवाब दिया. प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) और स्वतंत्र फैक्ट चेकर्स ने वायरल झूठों को खारिज करने के लिए लगातार काम किया. वो सफाई जारी करते रहे और फर्ज़ी दस्तावेज़ों की पोल खोलते रहे. सरकार ने लोगों और मीडिया के लिए एडवाइज़री भी जारी की जिसमें ऐहतियात बरतने और संवेदनशील जानकारी को साझा करने से पहले सत्यता की पुष्टि का अनुरोध किया गया. कई पाकिस्तानी और उनसे जुड़े सोशल मीडिया हैंडल्स को भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया. हालांकि वो अपने नैरेटिव के ज़रिए दुनिया भर के लोगों का ध्यान खींचते रहे.

पहलगाम प्रकरण डिजिटल युग में सूचना युद्ध की ताकत की साफ तौर पर याद दिलाता है जहां तथ्य और झूठ वास्तविक समय में एक-दूसरे से मुकाबला करते हैं और लोगों की राय के लिए लड़ाई उतनी ही महत्वपूर्ण हो जाती है जितनी ज़मीनी स्तर की घटनाएं.

व्यापक दुष्प्रचार का इकोसिस्टम: सरकार, प्रॉक्सी और मीडिया

ये प्रकरण दुष्प्रचार की चाल की बढ़ती जटिलता को दर्शाता है. भारतीय साइबर कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) की छानबीन से पता चला कि AI से उत्पन्न डीपफेक टूल का इस्तेमाल पहलगाम हमले का शुरुआती वीडियो बनाने के लिए किया गया था. फॉरेंसिक इमेज के विश्लेषण से पता चला कि धमाके की जगह पर पिक्सेलेशन की विसंगतियां हैं जो जेनरेटिव एडवर्सेरियल नेटवर्क (GAN) के अनुरूप है. ये सिंथेटिक इमेज क्रिएशन की एक पहचान है. इसके अलावा, वीडियो के मेटाडेटा से 30 अप्रैल के टाइमस्टैंप का खुलासा हुआ जो कथित “लाइव” घटना से काफी पहले का है.

भारत की सुरक्षा और सामाजिक एकजुटता पर असर 

पहलगाम नरसंहार का भारत की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और समाज पर बहुत व्यापक असर हुआ है. इस हमले से जम्मू-कश्मीर की पर्यटन पर आधारित अर्थव्यवस्था में खलबली मच गई है. पहलगाम और अनंतनाग में होटल बुकिंग में 60 प्रतिशत कमी आई है और अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या में लगभग 35 प्रतिशत की गिरावट आई है क्योंकि सुरक्षा को लेकर ख़तरे में बढ़ोतरी हुई है. स्थानीय व्यवसाय, विशेष रूप से परिवहन, हस्तशिल्प और अतिथि सत्कार (हॉस्पिटैलिटी) से जुड़े कारोबार, 40 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक राजस्व का नुकसान बता रहे हैं. अनौपचारिक पर्यटन के क्षेत्र में काम कर रहे कई हज़ार लोगों को बेरोज़गारी का सामना करना पड़ रहा है. ये अप्रत्याशित आर्थिक मंदी आतंकवाद के कारण जम्मू-कश्मीर की व्यापक कमज़ोरी को दर्शाती है जिससे लोगों के विश्वास, निवेश और क्षेत्रीय स्थिरता को ख़तरा है.

भारत सरकार की कार्रवाई का उद्देश्य एक मुश्किल ख़तरे की स्थिति के सामने इस क्षेत्र और दुनिया को भारत के दृढ़ निश्चय के बारे में स्पष्ट संकेत देते हुए लोगों के विश्वास को बहाल करना, आर्थिक नुकसान को सीमित करना और सांप्रदायिक तनाव को रोकना था. 

पहलगाम हमले के इर्द-गिर्द दुष्प्रचार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में बढ़ोतरी कर सकती है. इस दुष्प्रचार का उद्देश्य भारत में धार्मिक बंटवारे को गहरा करना है. इस तरह के नैरेटिव आतंकी समूहों और उनके प्रायोजकों के हितों को साधते हैं और इस तरह सामाजिक ताने-बाने को और अस्थिर करते हैं. सेना, पुलिस और सरकार को निशाना बनाकर चलाए जाने वाले लगातार दुष्प्रचार के अभियान इन संस्थानों में लोगों के विश्वास को ख़त्म कर देते हैं और इस तरह समाज भविष्य के हमलों के प्रति कम सशक्त हो जाता है.

इसके अलावा, भारत की आंतरिक सुरक्षा को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की धारणा ऑनलाइन स्पेस में दबदबे वाले नैरेटिव से तय हो सकती है. अगर हमलों के तथ्यों या भारत के जवाब को लेकर सवाल खड़ा करने में प्रोपगैंडा सफल हो जाता है तो ये गुनहगारों और उनके प्रायोजकों को ज़िम्मेदार ठहराने में कूटनीतिक प्रयासों को मुश्किल बना सकता है. इन बातों का बढ़ता असर (स्नोबॉलिंग इफेक्ट) भारत की आर्थिक और सामाजिक स्थिरता के लिए एक बड़ा झटका है. 

भारत के जवाबी कदम 

सूचना युद्ध की गंभीरता को स्वीकार करते हुए भारतीय अधिकारियों ने महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. सरकार के जवाबी उपायों में डिजिटल सतर्कता शामिल है जिसकी सहायता शत्रुतापूर्ण नैरेटिव के ख़िलाफ़ कार्रवाई के ज़रिए की गई. भारत ने पाकिस्तान से चलने वाले कई यूट्यूब न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया हैंडल पर प्रतिबंध लगाकर अपने डिजिटल क्षेत्र में प्रसारण करने से रोका. इस तरह दुष्प्रचार की पहुंच पर महत्वपूर्ण रोक लगाई गई. सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने भारतीय मीडिया के लिए भी कड़ी सलाह जारी की जिसके तहत कवरेज में संयम का अनुरोध किया गया और अप्रमाणित या संवेदनशील सूचना को बढ़ावा देने के ख़िलाफ़ सतर्क किया गया. 

सूचना पर नियंत्रण का ये उपाय व्यापक कूटनीतिक और सुरक्षा कदमों के साथ-साथ किया गया. भारत ने सिंधु जल संधि (IWT) को निलंबित किया, अटारी-वाघा सीमा को बंद किया और प्रमुख अंतरराष्ट्रीय साझेदारों को हालात की जानकारी देते हुए पाकिस्तान के कूटनीतिकों को वापस भेजा. 

डिजिटल सतर्कता, मीडिया रेगुलेशन, कूटनीतिक पहल और सैन्य तैयारी समेत इस व्यापक दृष्टिकोण ने प्रत्यक्ष आतंकी हिंसा, दुष्प्रचार या गलत सूचना के घातक प्रभावों से अपनी सुरक्षा और सामाजिक सौहार्द को बचाने के भारत के दृढ़ निश्चय को रेखांकित किया. भारत सरकार की कार्रवाई का उद्देश्य एक मुश्किल ख़तरे की स्थिति के सामने इस क्षेत्र और दुनिया को भारत के दृढ़ निश्चय के बारे में स्पष्ट संकेत देते हुए लोगों के विश्वास को बहाल करना, आर्थिक नुकसान को सीमित करना और सांप्रदायिक तनाव को रोकना था. 

निष्कर्ष: आतंकवाद के विरुद्ध नया मोर्चा 

पाकिस्तान का इतिहास छद्म (प्रॉक्सी) किरदारों, गलत नैरेटिव और हाइब्रिड युद्ध के उपयोग का रहा है ताकि भारत के आंतरिक मामलों, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर, को लेकर अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को प्रभावित किया जा सके. अतीत में ये अगस्त 2019 (जब अनुच्छेद 370 को हटाया गया था) में भी देखा जा चुका है जब जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को हटाया गया था और उसका विभाजन दो केंद्र शासित प्रदेशों (UT) में किया गया था. हालांकि AI से प्रेरित दुष्प्रचार को लेकर दुनिया की बढ़ती जागरूकता और भारत की कूटनीतिक पहुंच के साथ नैरेटिव बदल रहा है. पहलगाम की घटना एक केस स्टडी बन गई है कि सैन्य तैयारी, नैरेटिव की संप्रभुता, साइबर सामर्थ्य और प्रोपगैंडा को खारिज करने में भारतीय नागरिकों की भागीदारी के माध्यम से डिजिटल युग के आतंकवाद में स्वतंत्र देशों को अपने आप को कैसे बदलना चाहिए.

पहलगाम की घटना एक केस स्टडी बन गई है कि सैन्य तैयारी, नैरेटिव की संप्रभुता, साइबर सामर्थ्य और प्रोपगैंडा को खारिज करने में भारतीय नागरिकों की भागीदारी के माध्यम से डिजिटल युग के आतंकवाद में स्वतंत्र देशों को अपने आप को कैसे बदलना चाहिए.

असली ख़तरा ख़ुद डीपफेक नहीं बल्कि भू-राजनीतिक किरदार हैं जो इसका इस्तेमाल हथियार के रूप में करते हैं. पहलगाम में पाकिस्तान की आतंकी कार्रवाई ने भारत को शर्मिंदा नहीं किया है बल्कि उसने केवल पाकिस्तान की हताशा और कूटनीतिक नाकामी को उजागर किया है. ये युद्ध केवल क्षेत्र या सत्ता के लिए नहीं बल्कि सच के लिए है. दुष्प्रचार और घातक इरादों वाले इस युद्ध में भारत पूरी ताकत से खड़ा है- वो जानकारी से लैस, एकजुट और निडर है. 


सौम्या अवस्थी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्युरिटी, स्ट्रैटजी एंड टेक्नोलॉजी में फेलो हैं.

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