Author : Debosmita Sarkar

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Published on Mar 28, 2023 Updated 1 Days ago

वास्तविक समावेशी परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए वॉटर एक्शन एजेंडा को लैंगिक रूप से संवेदनशील बनाना बेहद महत्त्वपूर्ण होगा. 

पानी की कमी और समय की बर्बादी: वॉटर एक्शन एजेंडा में जेंडर!

व्यक्तिगत स्वास्थ्य, खुशहाली और समृद्धि के लिए पानी सबसे ज़रूरी संसाधनों में से एक है और यह जीवन-यापन के लिए एक सार्वभौमिक आवश्यकता है. सभी अवसरों और प्रयोजनों के लिए स्वच्छ एवं सुरक्षित पानी तक सभी की पहुंच न केवल एक मौलिक अधिकार है, बल्कि सभी के लिए सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए भी पानी बेहद अहम है. एजेंडा 2030 के अंतर्गत SDG 6 (स्वच्छ जल और स्वच्छता) का मकसद "सभी के लिए जल और स्वच्छता की उपलब्धता एवं सतत प्रबंधन सुनिश्चित करना" है. हालांकि, इस लक्ष्य के तहत निर्धारित किए गए टार्गेट्स को पूरा करने के लिए स्वच्छ पेयजल, साफ-सफाई और स्वास्थ्य को लेकर जो कुछ भी क़दम उठाए गए हैं, उनकी गति में 4 गुना बढ़ोतरी की ज़रूरत होगी.

वर्ल्ड वॉटर डे 2023 (22 मार्च) का ध्यान मुख्य रूप से यूनाइटेड नेशन्स एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन (UNESCO) पर केंद्रित है, जो जल संकट को दूर करने में तेज़ी लाने के लिए प्रमुख हितधारकों के साथ मिलकर काम कर रहा है.

वर्ल्ड वॉटर डे 2023 (22 मार्च) का ध्यान मुख्य रूप से यूनाइटेड नेशन्स एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन (UNESCO) पर केंद्रित है, जो जल संकट को दूर करने में तेज़ी लाने के लिए प्रमुख हितधारकों के साथ मिलकर काम कर रहा है. पारस्परिक सहयोग और सामूहिक कार्रवाई के ज़रिए स्वास्थ्य, विकास और जलवायु लचीलेपन के लिए पानी सुनिश्चित करने हेतु संयुक्त राष्ट्र 2023 वॉटर कॉन्फ्रेंस में वॉटर एक्शन एजेंडा लॉन्च किया जाएगा. हालांकि, वास्तविक समावेशी परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए वॉटर एक्शन एजेंडा को लैंगिक रूप से संवेदनशील बनाना अति महत्त्वपूर्ण है. SDG 6 के अंतर्गत टार्गेट 6.2 का उद्देश्य वर्ष 2030 तक "सभी के लिए पर्याप्त एवं एक समान स्वच्छता व स्वास्थ्य तक पहुंच हासिल करना और खुले में शौच को समाप्त करना, महिलाओं एवं लड़कियों की ज़रूरतों और ऐसे लोगों की आवश्यकताओं पर विशेष ध्यान देना है, जो विपरीत हालातों में रहने को मज़बूर हैं." हालांकि, यह एक सच्चाई है कि कोई भी लैंगिंक विशिष्ट लक्ष्य सभी उद्देश्यों के लिए पानी की उपलब्धता में आने वाली बाधाओं को संबोधित नहीं करता है. यह लेख पानी तक सीमित पहुंच वाली महिलाओं के समक्ष आने वाली आर्थिक चुनौतियों और उन्हें दूर करने के लिए अमल में लाई जाने वाली रणनीतियों पर प्रकाश डालने के लिए 'जेंडर-वॉटर एक्सेस-टाइम पॉवर्टी' यानी पानी तक पहुंच में लैंगिक असमानता, ख़ास तौर पर महिलाओं के पास समय की कमी से जुड़े मुद्दों की विस्तार से पड़ताल करेगा.

लैंगिक लिहाज़ से पानी और समय की कमी का संबंध

दुनिया भर के समुदाय, विशेष रूप से निम्न और निम्न-मध्यम-आय वाले देशों के समुदाय पानी की उपलब्धता, गुणवत्ता और पहुंच से जुड़ी बाधाओं का सामना करते हैं. इतना ही नहीं इन देशों में देखा जाए तो महिलाओं और लड़कियों को विशेष रूप से पुरुषों की तुलना में पानी से जुड़ी इन दिक़्क़तों से जूझना पड़ता है. पानी और स्वच्छता तक सीमित पहुंच सीधे तौर पर पोषण सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण पर असर डालती है और महिलाओं एवं लड़कियों को विशेष रूप से सार्वजनिक स्थानों पर हिंसा व उत्पीड़न में धकेलने का काम करती है. इसके सामाजिक निहितार्थों के अलावा पानी तक सीमित पहुंच की वजह से महिलाओं की आर्थिक स्थिति पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है. पानी तक सीमित पहुंच से महिलाओं को कुछ अन्य कार्य करने के लिए बहुत कम समय मिलता है, यानी उनके विकल्प सीमित हो जाते है. कहने का तात्पर्य यह है कि जब महिलाएं पानी लाने में अपना महत्त्वपूर्ण समय ख़र्च कर देती हैं, तो उनके पास शिक्षा या वैतनिक कार्य जैसी अन्य गतिविधियों के लिए कम समय बचता है. इसके फलस्वरूप, महिलाओं को अक्सर उन अवसरों से हाथ धोना पड़ता है, जो उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार कर सकते हैं.

शिक्षा या आर्थिक गतिविधियों में सीमित भागीदारी पुरुषों और महिलाओं के बीच आर्थिक व सामाजिक असमानताओं को न सिर्फ़ स्थाई बना सकती है, बल्कि यह समग्र तौर पर समाज की खुशहाली और समृद्धि को भी बुरी तरह से प्रभावित कर रही है.

यूनाइटेड नेशन वुमन के मुताबिक़, ऐसे 80 प्रतिशत परिवारों में, जिनकी पानी तक पहुंच बहुत मुश्किल है, वहां पानी एकत्र करने की ज़िम्मेदारी महिलाओं और लड़कियां पर होती है. पानी एकत्र करने का कार्य न केवल महिलाओं एवं लड़कियों को शारीरिक रूप से थका देने वाला होता है, बल्कि इसमें काफ़ी समय भी लगता है और यह उनकी शिक्षा या आजीविका के अन्य अवसरों तक पहुंच में बाधा उत्पन्न करता है. सामाजिक मानदंड और पारंपरिक तौर पर निर्धारित की गई लैंगिक भूमिकाएं इसमें अहम होती हैं. चूंकि पारंपिक तौर पर पुरुषों के ऊपर रोजी-रोटी कमाने का भार होता है, ऐसे में पानी लाने की ज़िम्मेदारी अक्सर महिलाओं और लड़कियों के कंधों पर आ जाती है क्योंकि माना जाता है कि घर में रोज़मर्रा की गतिविधियों और अन्य घरेलू कर्तव्यों को निभाने का काम प्राथमिक तौर पर उन्हीं का होता है. नतीज़तन, महिलाओं और लड़कियों को अक्सर पानी लाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है और संभवतः उन्हें इस कार्य को दिन में कई बार करना पड़ता है. शारीरिक रूप से थका देने के अलावा, पानी एकत्र करना महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक अवसरों पर सीधा प्रभाव डालता है, क्योंकि कुछ और कार्य करने के लिए उनके पास वक़्त ही नहीं बचता है.

शिक्षा या आर्थिक गतिविधियों में सीमित भागीदारी पुरुषों और महिलाओं के बीच आर्थिक व सामाजिक असमानताओं को न सिर्फ़ स्थाई बना सकती है, बल्कि यह समग्र तौर पर समाज की खुशहाली और समृद्धि को भी बुरी तरह से प्रभावित कर रही है. अनुमानों के मुताबिक़ पूरी दुनिया में महिलाएं और लड़कियां हर दिन औसतन पानी एकत्र करने में लगभग 200 मिलियन घंटे ख़र्च करती हैं, जिससे उनकी आर्थिक भागीदारी सीमित हो जाती है और उनके अत्यधिक ग़रीबी में गुजर-बसर करने की संभावना 25 प्रतिशत अधिक हो जाती है.

एक लिहाज़ से देखा जाए तो परिवार की देखभाल करना एवं दूसरे अन्य अवैतनिक घरेलू कार्यों समेत तमाम वजहों से महिलाओं के पास कुछ और करने के लिए बहुत कम समय बचता है. लेकिन समय की इस कमी में प्राथमिक तौर पर सबसे बड़ी चुनौती पानी तक सीमित पहुंच है. वॉटर एक्शन एजेंडा में लैंगिक विचार-विमर्श को मुख्यधारा में लाना महिलाओं के अपने लिए समय की कमी को दूर करने और उनकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति को सुरक्षित करने के उपायों में से एक हो सकता है. महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का परिवारों, समुदायों और समग्र रूप से समाज पर महत्त्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. महिलाएं जब आर्थिक तौर पर सशक्त होती हैं, तो इसकी संभावना बहुत ज़्यादा होती है कि वे बच्चों के पोषण, शिक्षा और उनकी स्वास्थ्य देखभाल पर अधिक ख़र्च करें. महिलाओं के आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने पर इसकी संभावना भी बहुत अधिक होती है कि वे सामाजिक, राजनीतिक और नागरिक प्रक्रियाओं में निर्णय लेने वाली भूमिकाओं में अपनी भागीदारी निभाएं और इसके माध्यम से वे अधिक समावेशी और समानता वाले सामाजिक नतीज़ों को सुनिश्चित करें.

लैंगिक समावेशिता को आगे बढ़ाना 

महिलाओं और लड़कियों द्वारा झेली जाने वाली पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य तक पहुंच से संबंधित विभिन्न चुनौतियों का समाधान करने में लैंगिक-अनुकूल नीतियां एवं कार्यक्रम मददगार साबित हो सकते हैं और यूएन वॉटर एक्शन एजेंडा के माध्यम से इनमें लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है. इथोपिया में वॉटर, सैनिटेशन एंड हाइजीन फॉर हेल्थ (WASH) प्रोग्राम, नेपाल में महिलाओं की अगुवाई वाला जल आपूर्ति स्वच्छता एवं हाइजीन कार्यक्रम, मलावी में समुदाय के नेतृत्व वाला संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम, भारत में WASH एकीकृत पहल, पश्चिम अफ्रीका में GIZ रीजनल WASH प्रोग्राम और पैसिफिक रीजन में वॉटर फॉर वुमन फंड जैसे कुछ विशेष कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. ये विभिन्न कार्यक्रम जहां तमाम देशों और क्षेत्रों में महिलाओं की WASH सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करते हैं, वहीं उनके आर्थिक सशक्तिकरण और लैंगिक समानता में योगदान देने वाली वॉटर पॉलिसी को बनाने में उनकी भागीदारी को भी सक्षम बनाते हैं.

अलग-अलग लैंगिक समूहों के आंकड़ों को एकत्र करने और उनका विश्लेषण करने से पानी की उपलब्धता से जुड़ी महिलाओं की ज़रूरतों और प्राथमिकताओं की पहचान करने में मदद मिल सकती है, साथ ही इससे संबंधित नीतियां बनाने और शुरू करने के लिए मार्गदर्शन मिल सकता है.

इन सारे कार्यक्रमों से सीख लेते हुए संयुक्त राष्ट्र 2023 वॉटर कॉन्फ्रेंस में लॉन्च होने वाले वॉटर एक्शन एजेंडा में ऐसी कई रणनीतियों को शामिल किया जा सकता है, जो जेंडर या लैंगिक मुद्दे, पानी तक पहुंच और समय की बर्बादी जैसे मुद्दों को संबोधित करने वाली हों. इसके लिए सबसे पहले, लैंगिक-अनुकूल यानी महिलाओं की ज़रूरतों के मुताबिक़ WASH इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए निवेश जुटाने की तत्काल आवश्यकता है. यानी एक ऐसा WASH बुनियादी ढांचा, जो घरों के नज़दीक स्थित हो और महिलाओं से जुड़ी विशेष ज़रूरतों को पूरा करने वाला हो. दूसरा, परिवारिक या फिर सामुदायिक स्तर पर कुशल जल प्रबंधन प्रशिक्षण की अवश्यकता है, इससे दूर-दराज के स्रोतों से पानी एकत्र करने के लिए लगने वाले चक्करों की संख्या घट सकती है, साथ ही यह महिलाओं और लड़कियों का समय भी बचा सकता है. तीसरा, पानी की पहुंच से जुड़े फैसले लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि समाज में उनकी अहमियत सुनिश्चित की जा सके और एक ऐसी उपयुक्त रणनीति तैयार की जा सके, जो संबंधित मुद्दों का समाधान कर सके. चौथा, समुदाय-आधारित शिक्षा और जागरूकता के अभियानों के ज़रिए सामाजिक कुरीतियों और लैंगिक रूढ़िवादिता यानी महिलाओं से जुड़े रूढ़िवादी विचारों को दूर किया जा सकता है. इन अभियानों में परिवार के सभी सदस्यों की ज़्यादा से ज़्यादा भागीदारी सुनिश्चित करने और घर की ज़िम्मेदारियों को आपस में बांटने से महिलाओं की अपने लिए समय नहीं मिल पाने की समस्या से निपटा जा सकता है. पांचवां, अलग-अलग लैंगिक समूहों के आंकड़ों को एकत्र करने और उनका विश्लेषण करने से पानी की उपलब्धता से जुड़ी महिलाओं की ज़रूरतों और प्राथमिकताओं की पहचान करने में मदद मिल सकती है, साथ ही इससे संबंधित नीतियां बनाने और शुरू करने के लिए मार्गदर्शन मिल सकता है. आख़िर में, सरकारों, नागरिक समाज संगठनों और निजी सेक्टर के बीच व्यापक साझेदारी भी इसमें काफ़ी लाभदायक साबित हो सकती है. इससे जहां वॉटर एक्शन एजेंडा के भीतर लैंगिक समावेशिता को मज़बूती मिल सकती है, वहीं जानकारी व विशेषज्ञता साझा कर और सुव्यवस्थित एवं सक्षम संसाधन जुटा कर व्यापक स्तर पर परिवर्तनकारी नतीज़ों को हासिल करने में मदद मिल सकती है.

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