Author : Kabir Taneja

Published on Feb 09, 2017 Updated 0 Hours ago
शांति समझौते की इंतजार में सीरिया

मध्य एशियाई देेश कजाकिस्तान की बेहद ठंडी राजधानी अस्ताना का तापमान 23 जनवरी को शून्य से 17 डिग्री सेल्सियस कम दर्ज किया जा रहा था, जब सीरियाई आंतरिक संघर्ष से जुड़े विभिन्न पक्ष एक और संघर्ष विराम पर चर्चा के लिए यहां जुटे थे। सीरियाई संघर्ष को अब आधे दशक से ज्यादा समय बीत चुका है। इस दौरान लाखों लोग मारे जा चुके हैं और उससे कई गुुना ज्यादा बेघर हुए हैं। लेकिन आज के समय में इस क्रूरता का कोई अंत भी नहीं दिख रहा। मास्को और तेहरान के समर्थन वाली राष्ट्रपति बशर अलग-असद की सत्ता पश्चिम केे हथियारों और प्रशिक्षण की मदद से चल रहे विरोधी समूहों के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है।

सीरिया की समस्या का हल तलाशने के लिहाज से अस्ताना वार्ता भी संयुक्त राष्ट्र की ओर से चलाई जा रही जेनेवा वार्ता के समांतर आ चुकी है। कुछ लोगों का मानना है कि कजाकिस्तान की मेजबानी में हो रही यह वार्ता दरअसल, मास्को की उस कोशिश का हिस्सा है जिसके तहत वह चाहता है कि वह इस पहल में अग्रणी भूमिका हासिल कर ले और अमेरिका के नेतृत्व वाली जेनेवा प्रक्रिया से इसे दूर कर दे। यह लिखे जाने के दौरान क्रेमलिन से खबर आ रही हैं कि तीसरी जेनीवा वार्ता, जिसे आठ फरवरी को होना था, वह महीने के बाद के दिनों की किसी तारीख के लिए टाल दी गई है।

रूसियों ने जेनीवा को महज बातचीत के मौके के रूप में देखा है जिसमें नातो कुछ ठोस है और नाही सशक्त राजनीतिक प्रक्रिया की इच्छाशक्ति है।

मास्को के लिए यह नया मंच ना सिर्फ मध्य-पूर्व के क्षेत्रीय भौगोलिक-राजनीतिक मसलों में बल्कि अंतरराष्ट्रीय मसलों में अपनी अहमियत दिखाने का मौका है, जो उसके लिए पूरी तरह से नया तो नहीं है, लेकिन हाल में इसको ले कर उसकी आत्म मुग्धता बढ़ी है।

यह दो दिवसीय बातचीत कई मायने में जेनेवा के पिछले दो संस्करणों के मुकाबले ज्यादा विश्वसनीय थी। यहां सीरियाई विपक्ष का सीधा प्रतिनिधित्व था, जबकि जेनेवा की वार्ताओं में विपक्ष का मोटे तौर पर उन राजनेताओं की ओर से प्रतिनिधित्व किया जा रहा था, जो उनके मुद्दों को ले कर संवेदनशील तो हैं, लेकिन सीधे उनकी गतिविधियों में शामिल नहीं हैं। अस्ताना में विपक्षी दल का प्रतिनिधित्व जैश अल-इस्लाम के मोहम्मद अलोश कर रहे थे। उनके अलावा इसमें फ्री इडलिब आर्मी के फारिस अलबोयश, सीरियन नेशनल कोएलीशन अॉफ सीरियन रिवोल्यूशन एंड अपोजीशन फोर्सेज (एतिलाफ) के नसीर अल-फरीरी और सदर्न फ्रंट के अबू ओसामा जोलानी शामिल थे।

पिछले दिसंबर में संघर्ष विराम लागू करने की तमाम कोशिशों के नाकाम हो जाने और खास तौर पर अलप्पो शहर पर हुए क्रूर हमले के बाद सीरियाई विपक्ष को व्यक्तिगत तौर पर मौजूद रहने के तमाम प्रयास हुए। मगर शांति वार्ता में ना सिर्फ विरोधियों के बीच, बल्कि शांति प्रक्रिया में जुटे पक्षों के बीच भी कई तरह की खींच-तान मौजूद है। इन परिस्थितियों के रहते हुए भी बड़ी बाहरी ताकतों रूस, तुर्की और ईरान ने एक साझा त्रिपक्षीय घोषणापत्र समझौता जारी कर दिया, जिसके जरिए वे सीरियाई सरकार और विपक्ष के बीच संघर्ष विराम के गारंटी प्रदाता बन गए हैं।

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हालांकि यह वार्ता रूस, तुर्की और ईरान के साझा प्रयासों से ही मुमकिन हुई है, लेकिन इन सभी देशों के हित अधिकांश मौकों पर आपस में मेल नहीं खाते। संयुक्त राष्ट्र के सीरिया के लिए विशेष दूत स्टेफन डे मिस्तूरा ने महासचिव कार्यालय का प्रतिनिधित्व किया, लेकिन अमेरिका अपने कजाकिस्तान राजदूत के जरिए सिर्फ एक ऑब्जर्वर के तौर पर मौजूद था। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि रूस ने असद की सत्ता को उस देश में अपनी सैन्य मौजूदगी के जरिए जम कर समर्थन किया है और तुर्की के राष्ट्रपति रीसेप एर्डोगन को भी यह कहने में कोई झिझक नहीं थी कि असद को आखिरकार अपनी सत्ता और राष्ट्रपति का पद छोड़ना होगा। कुछ महीने पहले तक रूस और तुर्की दोनों ही सीरिया के मुद्दे पर आपस में सीधे भिड़े हुए थे, लेकिन आज अलप्पो के उत्तर-पूर्व में अल-बाब क्षेत्र के आस-पास आईएसआईएस के खिलाफ साझा हवाई हमले कर रहे हैं। जहां अंकारा भी जमीनी हमले कर ना सिर्फ आईएसआईएस को निशाना बना रहा है, बल्कि फ्री सीरियन आर्मी (एफएसए) से जुड़े समूहों सहित विभिन्न गुटों को भी सबक सिखा रहा है। खबरों के मुताबिक पिछले दो महीनों में तुर्की के 47 सैनिकों की हत्या हो चुकी है और 11 सैन्य टैंक नष्ट किए जा चुके हैं। तुर्की के कुछ सैनिकों को आईएसआईएस ने बंदी भी बना लिया जो आईएसआईएस के प्रचार वीडियो में पिजड़े में बंद दिखे (सीरिया के संबंध में रूस और तुर्की के संबंधों के विभिन्न आयामों को समझने के लिए मेरा पिछला लेख पढ़ें)।

अस्ताना वार्ता के होने के कारण कई हैं। इस संघर्ष में मुख्य राजनीतिक और सैन्यपक्ष के तौर पर मौजूद मास्को की ओर से दृष्य संघर्ष विराम के लिए ईमानदार कोशिश हो रही थी।

रूसी प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख अलेक्जेंडर लावरेंटिव ने वार्ता का यह कह कर स्वागत किया कि यह समझौते के नए तरीके का ‘जन्म’ है और साथ ही कहा कि यहां जो कामयाबी मिलेगी, उससे संयुक्त राष्ट्र की ओर से चलाई जा रही जेनेवा वार्ता को मजबूती मिलेगी। यह सीरियाई वार्ता प्रक्रिया को नए सिरे से पेश करने की कोशिश थी, जिसमें क्रेमलिन कूटनीतिक मोर्चे में सबसे आगे हो और अमेरिका बिल्कुल किनारे हो। हालांकि मास्को और अंकारा को तेहरान को इस बात के लिए राजी करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी कि वह अमेरिकी राजदूत को इस प्रक्रिया में मौजूद रहने दे, क्योंकि वह अमेरिकी मौजूदगी के बेहद खिलाफ रहा है।

अस्ताना में ईरान एक वाइल्ड कार्ड की तरह रहा। सीरिया के विपक्षियों को उसकी मौजूदगी को ले कर गंभीर एतराज रहा है, क्योंकि तेहरान इस देश में अपने आधुनिक रिवोल्यूशनरी गार्ड (आईआरजीसी) और हिजबुल्ला दोनों के जरिए सीरियाई आंतरिक संघर्ष में सीधी भूमिका निभा रहा है। यह विरोध इतना ज्यादा है कि विद्रोहियों ने त्रिपक्षीय संघर्ष विराम समझौते को ईरान की वजह से मानने से इंकार कर दिया, साथ ही अपना संघर्ष विराम का अलग से प्रस्ताव पेश किया, जिसमें उन्होंने तेहरान की संघर्ष विराम के गारंटी प्रदाता के तौर पर भूमिका पर सवाल उठाए हैं।

वार्ता के दौरान सीरियाई विपक्ष ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि किनके साथ वे सहज महसूस करते हैं और किनको ले कर वे आशंकित रहते हैं क्योंकि वे तुर्की के प्रतिनिधि मंडल और अमेरिकी राजदूत व उसके ऑब्जर्वर दल के बीच बैठे जबकि सीरियाई सरकार के प्रतिनिधि, जिनका नेतृत्व सीरिया के संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि बशर जफारी कर रहे थे, वह ईरानी दल के साथ था जिसका नेतृत्व अरब और विदेश मामलों के उप मंत्री होसैन जबेरी अंसारी कर रहे थे। ईरान की मौजूदगी को ले कर सीरिया के विपक्ष की असहजता अकारण नहीं थी, ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड ने असद की स्थिति को मजबूत बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई थी। बदले में पुरस्कार के तौर पर ईरानी सरकार और आईआरजीसी जिसके पूरे क्षेत्र में गहरे आर्थिक हित जुड़े हैं, को खबरों के मुताबिक सीरिया में आर्थिक फायदे दिए गए। जिसमें एक हजार हेक्टेयर जमीन तेल और गैस निकालने के लिए और पांच हजार हेक्टेयर खेती और टेलीकॉम ठेकों के लिए मिली। ईरान में टेलीकॉम का अधिकांश काम आईआरजीसी के पास ही है।

लेकिन सबकुछ असद के पक्ष में भी नहीं था।

अपनी पेशबंदी के तौर पर रूस ने भी अप्रत्याशित कदम उठाते हुए असद सरकार की संघर्ष विराम के समझौते का पूरी तरह से पालन नहीं करने के लिए आलोचना की और साथ ही कहा कि वह इस बात की परवाह नहीं करेगा कि संघर्ष विराम का उल्लंघन किसने पहले किया। रूस ने यहां तक कह दिया कि अगर असद की सेना को उल्लंघन करते पाया गया तो इसके खिलाफ जरूरी कदम उठाए जाएंगे। गुटबंदी की तमाम उथल-पुथल के बीच रूस की इस मजबूती का नतीजा यह हुआ कि इसके अपने साझेदार ईरान और तुर्की विद्रोहियों से ज्यादा शंकालु हो गए और विद्रोही रूस की ओर ज्यादा उम्मीद से देखने लगे। मास्को को सटे हुए पड़ोसी के तौर पर नहीं देखा जाता, इसलिए इसका दखल दशकों लंबा नहीं रहने वाला (हालांकि रूस ने असद के साथ देश के सैन्य अड्डों के दीर्घकालिक उपयोग के लिए समझौता किया है)। विद्रोहियों को लगता है कि रूस के साथ करीबी बढ़ाने से तुर्की और ईरान के रूप में गहरे क्षेत्रीय हितों के असर को कम किया जा सकेगा।

उधर, सीरिया में विद्रोही गुटों के बीच स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी क्योंकि इस शांति प्रक्रिया को ले कर विचारों में काफी मतभेद था। वैसे भी इसमें आईएसआईएस, जबात फतेह अल-शाम (जो पहले जबात अल-नूसरा से संबद्ध अल कायदा के रूप में जाना जाता था) और कुर्द विद्रोही गुट शामिल नहीं थे। कुर्द विर्दोहियों ने तो वार्ता में तुर्की की मौजूदगी की वजह से ही शामिल होने से इंकार कर दिया था। जब विपक्षी गुट और अन्य पक्ष चर्चा कर रहे थे, जबात अतह अल-शाम (जेएफएस) ने इदलिब और अलप्पो के विभिन्न हिस्सों पर हथियारबंद हमले जारी रखे। बदले में अलवायत सकूर अल-शाम, कतैब तवार अल-शाम, जैश अल-मुजाहिदीन और ताजमो फस्ताकिम कामा अमीरत ने जेएफएस से भिड़ रहे देश के सबसे बड़े विद्रोही गुट अहरार अल-शाम के साथ हाथ मिला लिया (ध्यान देने की बात है कि जेएफएस और अहरार दोनों सैद्धांतिक रूप से ज्यादा अलग नहीं हैं)। जमीन पर मौजूद जटिलताओं को सही परिदृष्य में देखा जाए तो अल-बाब से आईएसआईएस को बाहर करने के लिए तुर्की कथित तौर पर जेएफएस को मदद कर रहा है, रूस असद सरकार की मदद कर रहा है, पश्चिम के सहयोग से कुर्द और सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज (एसडीएफ), कुर्दिश डेमोक्रेटिक यूनियन पार्टी (पीवाईडी) और कुर्दिश पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट्स (वाईपीजी) जैसे मल्टी (बहुजातीय) समूहों को अक्सर सीरियाई सरकारी सैनिकों और तुर्की समर्थित जेएफएस लड़ाकों से भी लड़ना होता है जबकि उधर, इन सभी को आईएसआईएस से भी निपटना होता है।

अस्ताना वार्ता के समाप्त होने के एक दिन बाद ही जेएफएस के खिलाफ सरगर्मी बढ़ गई। सीरियाई इस्लामी काउंसिल, जिसका सीरिया में इस समय सक्रिय बहुत से गुटों पर काफी प्रभाव माना जाता है, ने सभी सीरियाई लोगों को जेफएस के खिलाफ जीत मिलने तक लड़ने की अपील की। एसआईसी ने यह अपील तब की जब जेएफएस ने इडलिब की एक जेल पर हमला कर आईएसआईएस और जेएफएस के लड़ाकों को आजाद करवा लिया, जबकि अस्ताना में बातचीत जारी थी। जेएफएस ने हाल के दिनों में सशस्त्र घरेलू निर्मित ड्रोन का इस्तेमाल शुरू किया है, जिससे इस समूह की क्षमता में काफी अहम बढ़ोतरी हो गई है। हालांकि अल कायदा अपने संसाधनों के मामले में जितना आगे था, उसे देखते हुए इसको ले कर ज्यादा हैरानी नहीं होनी चाहिए।

अधिकांश पिछले संघर्ष विराम हाल की वास्तविक राजनीतिक परीक्षा में फेल पाए गए हैं। मौजूदा हालात को देखते हुए अंकारा में हुई ताजा वार्ता को ले कर भी सीरियाई सरकार और विपक्षी गुटों के बीच मतभेद पर लंबे विराम की ज्यादा उम्मीद नहीं लगाई जा सकती, भले ही इसमें तेहरान और मास्को साझा गारंटी प्रदाता के तौर पर सामने आए हैं। इसका कारण इरादे नहीं, बल्कि गारंटी प्रदाताओं और विपक्षी गुटों के बीच इतनी बड़ी संख्या में हितों के टकराव का मौजूद रहना है। अस्ताना वार्ता जहां जेनेवा वार्ता की अहमियत को कम कर रही थी और सार्वजनिक तौर पर इसे मजबूत करने की बात कर रही थी, कजाक वार्ता लगता है उल्टा नुकसानदेह साबित हुई है। यह लिखे जाने के दौरान संयुक्त राष्ट्र यह कह रहा था कि मास्को की ओर से जेनेवा वार्ता स्थगित कर दी गई है या नहीं, इसको ले कर कोई पुष्टि नहीं की जा रही है।

यह संभव है कि रूस, जेनेवा वार्ता को टालने की कोशिश करेगा ताकि नव निर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अपने नए प्रशासन के सीरियाई गतिरोध पर रुख पेश करने का मौका मिल सके। हालांकि रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ट्रंप के नेतृत्व वाले अमेरिका के साथ बेहतर रिश्ते की उम्मीद रखता है, लेकिन अगर दोनों पक्ष वार्ता, संघर्ष के भविष्य और असद के राष्ट्रपति पद की वैधता आदि मुद्दों पर सहमत हो जाते हैं तो यह बहुत हैरान करने वाला होगा। सीरिया के लोगों के लिए इस सब के बीच संभवतः एकमात्र अच्छी खबर यही है कि इस भ्रामक राष्ट्रीय संघर्ष विराम को ले कर प्रयासों की कमी नहीं हो रही, भले ही ये अब तक किसी मुकाम पर नहीं पहुंच पाए।

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