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Published on Apr 22, 2023 Updated 0 Hours ago

अर्थव्यवस्थाओं के छोटे आकार, सीमित वित्तीय बचत, सीमित राजकोषीय शक्ति और अन्य सामरिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण निवेश की ज़रूरत के मद्देनज़र उन्हें ऐसी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

नवीकरणीय ऊर्जा के लिए 1 खरब अमेरिकी डॉलर: बहुपक्षीय एजेंसियों का कायाकल्प

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक विकासशील देशों को अपने नेट-ज़ीरो लक्ष्य हासिल करने के लिए भारी-भरकम रकम की दरकार है. इन तमाम मुल्कों को केवल नवीकरणीय ऊर्जा (RE) के क्षेत्र में ही 2030 तक सालाना 1 खरब अमेरिकी डॉलर की हरित पूंजी की ज़रूरत है. बहरहाल, 2022 में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में जुटाई गई सकल पूंजी 495 अरब अमेरिकी डॉलर से भी कम थी. जुटाई गई इस पूंजी का भी ज़्यादातर हिस्सा विकसित देशों तक ही सीमित रहा. ये हालात पेरिस कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (COP) 21 में जताई गई प्रतिबद्धताओं के अनुरूप नहीं हैं. 

विकासशील देश कुशल रूप से और अपनी ज़रूरत के मुताबिक तेज़ गति से पूंजी जुटाने में भारी जद्दोजहद करते रहते हैं. अर्थव्यवस्थाओं के छोटे आकार, सीमित वित्तीय बचत, सीमित राजकोषीय शक्ति और अन्य सामरिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण निवेश की ज़रूरत के मद्देनज़र उन्हें ऐसी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा कई विकासशील देश तो भारी कर्ज़ के बोझ तले दबे हुए हैं. नतीजतन जलवायु कार्रवाइयों (राजस्व पैदा करने वाले नवीकरणीय क्षेत्र में निवेश समेत) के लिए और ज़्यादा सार्वजनिक पूंजी उगाहने की उनकी क्षमताएं कुंद पड़ गई हैं. बहुपक्षीय और द्विपक्षीय संस्थाओं द्वारा बड़े पैमाने पर दख़ल के बिना विकासशील देशों द्वारा स्वच्छ ऊर्जा से जुड़ी अपनी आवश्यकताओं के लिए ज़रूरी तादाद में पूंजी जुटाने का काम लगभग असंभव है. दूसरी ओर कई विकासशील देश ऊर्जा उत्पादन से जुड़ी अपनी ज़रूरतों के लिए जीवाश्म ईंधनों पर ज़बरदस्त रूप से निर्भर हैं. इसी के ज़रिए वो आर्थिक वृद्धि से जुड़े अपने एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं. लिहाज़ा स्वच्छ ऊर्जा की ओर परिवर्तनकारी बदलाव में विकासशील देशों की सक्रिय भागीदारी निहायत ज़रूरी है. इससे ऊर्जा क्षेत्र को कार्बन-मुक्त बनाने की वैश्विक क़वायदों को मज़बूती मिलेगी. इस तरह नेट-ज़ीरो लक्ष्यों को हासिल करने के प्रयासों में भी मदद मिलेगी. 

बहुपक्षीय और द्विपक्षीय संस्थाओं द्वारा बड़े पैमाने पर दख़ल के बिना विकासशील देशों द्वारा स्वच्छ ऊर्जा से जुड़ी अपनी आवश्यकताओं के लिए ज़रूरी तादाद में पूंजी जुटाने का काम लगभग असंभव है.

बैंकिंग वित्त: नवीकरणीय क्षेत्र के लिए सबसे कार्यकुशल नहीं

नवीकरणीय क्षेत्र को दीर्घकालिक ऋण वित्त-पोषण की दरकार है. चूंकि ज़्यादातर मामलों में ऋण के वित्त-पोषण की लागत इक्विटी से कम होती है, लिहाज़ा वित्त-पोषण की लागत घट जाती है. इस तरह नवीकरणीय ऊर्जा का शुल्क प्रतिस्पर्धी हो जाता है. बैंकिंग संस्थाएं दीर्घकालिक वित्त-पोषण के हिसाब से नहीं ढली हैं क्योंकि उनकी देनदारी की मियाद स्वीकारने की सीमा सीमित होती है. आम तौर पर बैंक चुनिंदा नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को मध्यम कालखंड में वित्त-पोषित करने को वरीयता देते हैं. परिसंपत्ति गुणवत्ता में भारी गिरावट नहीं आने की सूरत में वो अतिरिक्त मियाद तक ऐसे ऋणों के नवीकरण का रुख़ दिखाते हैं. हालांकि, साख की पुनरीक्षित शर्तें परिसंपत्तियों की साख गुणवत्ता और मौजूदा ब्याज़ दरों पर निर्भर करती है. साख की शर्तों में ऐसा बदलाव (ब्याज़ दर में बढ़ोतरी समेत) कर्ज़दारों (नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना डेवलपर्स) को पुनर्वित्त से जुड़े जोख़िमों में डाल सकते हैं. लिहाज़ा आम तौर पर डेवलपर्स मध्यम-अवधि वाले ऋणों से परहेज़ करना चाहते हैं, और इसकी बजाए जितने लंबे वक़्त के लिए संभव हो ब्याज़ दरों को लॉक-इन करना पसंद करते है. 

बहुपक्षीय और द्विपक्षीय संस्थाओं द्वारा बड़े पैमाने पर दख़ल के बिना विकासशील देशों द्वारा स्वच्छ ऊर्जा से जुड़ी अपनी आवश्यकताओं के लिए ज़रूरी तादाद में पूंजी जुटाने का काम लगभग असंभव है.

वास्तविकता ये है कि विकासशील देशों के बैंक पहले से ही दीर्घकालिक बुनियादी ढांचा परिसंपत्तियों में भारी-भरकम निवेश का बोझ संभाल रहे हैं. लिहाज़ा नवीकरणीय क्षेत्र के दीर्घकालिक वित्त-पोषण की ज़रूरतों को पूरा करने से पहले ही वो अपने संसाधनों को काफ़ी हद तक खपा चुके हैं. इतना ही नहीं BASEL ढांचे की वजह से बैंकों को दीर्घकालिक ऋणों पर ऊंचे ब्याज़ दर वसूलने होते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि अल्प-कालिक परिसंपत्तियों की तुलना में दीर्घकालिक परिसंपत्तियों का जोख़िम भार ऊंचा होता है. इस तरह RE सेक्टर की ऋण वित्त-पोषण से जुड़ी परेशानियों को सुलझाने के लिए पूंजी बाज़ार इकलौते विकल्प के तौर पर बच जाता है.  

पूंजी बाज़ार की पसंद और वरीयता

पूंजी बाज़ार नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को तार्किक दर पर दक्ष दीर्घकालिक ऋण वित्त-पोषण समाधान मुहैया करा सकते हैं. बड़े संस्थागत निवेशक (जैसे पेंशन और बीमा कंपनियां) पूंजी बाज़ारों में प्राथमिक वित्त-पोषक हो सकते हैं. इन संस्थाओं के पास फ़िलहाल 100 खरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा की रकम प्रबंधन के मातहत परिसंपत्तियों के तौर पर मौजूद है. निवेशकों के इन दो समूहों को दीर्घकालिक और निम्न-जोख़िम परिसंपत्तियों (पूर्वानुमान योग्य नक़दी प्रवाह के साथ) की दरकार होती है ताकि वो दीर्घकालिक पूर्वानुमान योग्य देनदारियों को पूरा कर सकें. वो तरल प्रतिभूतियों और व्यापार किए जाने वाले निम्न-जोख़िम स्थिर-आमदनी वाले प्रतिभूतियों में निवेश करना पसंद करते हैं. इससे उनकी दीर्घकालिक देनदारियां पूरी होती हैं. इस मोर्चे पर नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़ा क्षेत्र एक समाधान मुहैया करा सकता है; ये सेक्टर आमतौर पर निर्माण और विकास के चरण में पूंजी-सघन होता है. इसके बाद संविदात्मक राजस्व ढांचे के साथ बहुत निम्न सालाना स्थिर और चर लागतों वाला क्रम आता है. इस प्रक्रिया से अपेक्षाकृत स्थिर, कम जोख़िम वाले और दीर्घकालिक नक़दी प्रवाह मुहैया कराने की सुविधा मिल जाती है. इससे संस्थागत निवेशकों की निवेश विशेषताओं के बीच जोड़ तैयार करने का मौक़ा मिल जाता है. यही वजह है कि फ़िलहाल संस्थागत निवेशकों को लक्षित कर सामने लाए गए हरित बॉन्डों की आधी से भी ज़्यादा रकम नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के वित्त-पोषण में प्रयोग में लाई जा रही है. 

विकासशील देशों में क्रेडिट रेटिंग से जुड़ी चुनौतियों का निपटारा

नवीकरणीय ऊर्जा बॉन्ड्स की क्रेडिट रेटिंग वित्तीय बाज़ारों में नीची साबित हो सकती है. नतीजतन विकसित देशों के ऐसे विशाल संस्थागत निवेशक, जो कम जोख़िम-वाली क़वायदों की ताक में रहते हैं, वो इन ऋण प्रतिभूतियों की ख़रीद के प्रतिकूल रुख़ अपना सकते हैं. इनमें पेंशन फंड्स और बीमा कंपनियां शामिल हैं. ऋण से जुड़ी इन प्रतिभूतियों को विकासशील देशों में RE डेवलपर्स जारी करते हैं. इस कड़ी में बहुपक्षीय विकास बैंक (MDBs), विकास वित्त संस्थाएं (DFIs) और इसी तरह के सार्वजनिक वित्तीय संस्थान अहम भूमिका अदा कर सकते हैं. ये आंशिक साख गारंटियां (PCG) दे सकते हैं ताकि इन बॉन्ड्स की क्रेडिट रेटिंग को उन्नत किया जा सके. AAA रेटिंग वाली वैश्विक सार्वजनिक वित्त संस्थाओं (जिनमें विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक शामिल हैं) की ऐसी गारंटियां ऋण परिसंपत्ति को कम जोख़िम भरा बन सकती हैं. नतीजतन इस पूरी क़वायद की क्रेडिट रेटिंग में सुधार देखने को मिल सकते हैं. साल दर साल गारंटी की मात्रा में बदलाव हो सकते हैं. जैसे-जैसे दीर्घकाल में जोख़िम सामने आने की संभावना बन सकती है, समय के साथ-साथ गारंटी कवरेज में भी बढ़ोतरी हो सकती है. इससे दीर्घकालिक जोख़िम की रोकथाम मुमकिन हो सकेगी. सार्वजनिक वित्तीय संस्थाओं द्वारा साख की गारंटी दिए जाने से परियोजना की विश्वसनीयता को लेकर निजी निवेशकों तक सकारात्मक संदेश जाता है. साथ ही निवेशकों को भी कॉरपोरेट गवर्नेंस से जुड़े मुद्दों को दूर रखे जाने और राजनीतिक जोख़िम पर क़ाबू पा लिए जाने का भरोसा दिलाया जा सकता है. 

ऋण और तकनीकी सहायता से गारंटी का गुणक प्रभाव ज़्यादा बड़ा 

सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों के पास फ़िलहाल मौजूद पूंजीगत रकम वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा के समूचे क्षेत्र के वित्त-पोषण की ज़रूरतों को पूरा करने के लिहाज़ से पर्याप्त नहीं होगी. पूंजी प्रवाहों को बढ़ाने का एक तरीक़ा है बैलेंस शीट की ताक़त का इस्तेमाल कर आंशिक साख गारंटी की पेशकश करना. इस क़वायद के नतीजतन तयशुदा दर पर लिए जाने वाले ऋण (vanilla loan) या इक्विटी की तुलना में गुणक प्रभाव सामने आते हैं. अब सार्वजनिक पूंजी की उचित तैनाती से विशाल पैमाने पर निजी पूंजी एकत्रित कर पाना मुमकिन है. बॉन्ड्स में डिफ़ॉल्ट होने की सूरत में बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDBs) और विकास वित्त संस्थानों (DFIs) को गारंटी हासिल होने पर ही पूंजी का वितरण करने की ज़रूरत होती है. इसके मायने ये हैं कि DFIs और MDBs को अग्रिम रूप से भारी मात्रा में पूंजी तैनात करने की दरकार नहीं होती. गारंटी हासिल होने की सूरत में ही पूंजी लगाने की क़वायद सामने आती है. विकासशील देशों में नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़ी अनेक परियोजनाओं के साथ राजनीतिक और नियामक स्तर के जोख़िम जुड़े हैं. बहुपक्षीय विकास बैंक और विकास वित्त संस्थाओं के साथ एक और फ़ायदा जुड़ा है. ये विकासशील देशों को अपने बॉन्ड्स पर दिवालियेपन की हद तक जाने से रोकते हैं. साथ ही ऐसे फ़ैसलों पर भी अंकुश लगाते हैं जिनसे ऋण चुकाने में नाकामी का ख़तरा पैदा होने की आशंका रहती है. 

प्रासंगिक बने रहने के लिए बहुपक्षीय विकास बैंकों और विकास वित्त संस्थाओं को पूंजी तैनात करने की अपनी रणनीति में नए सिरे से बारीक़ी लानी होगी. इन संस्थाओं को हरित जीवनशैली के हिसाब से ढलने और कार्बन की रोकथाम करने से जुड़ी परियोजनाओं के साथ निजी निवेशकों का तालमेल बिठाने के लिए सेतु की तरह काम करना होगा.

गारंटियों के प्रभाव को भारी मात्रा में बढ़ाना

वित्तीय गारंटियों की तैनाती को आंशिक साख गारंटी से परे उच्चतम स्तर पर ले जाने की क़वायद प्रस्तावित की गई है. जहां तक नवीकरणीय ऊर्जा का सवाल है तो एक बात की अच्छे से तस्दीक़ हो चुकी है. दरअसल ऐसे निवेश परियोजना के जीवन काल में सक्रिय नक़दी प्रवाह के रूप में धन वापसी मुहैया कराते हैं. इसके अलावा धीरे-धीरे ऐसे निवेशों/परिसंपत्तियों की तरलता ऊंची होती जा रही है. आज बाज़ार में परियोजना को आगे बढ़ाने वाले अनेक डेवलपर्स संकटग्रस्त या निष्क्रिय परिसंपत्तियों की कमान संभालने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. ग़ौरतलब है कि कुछ परियोजनाओं में जलवायु कार्रवाई हस्तक्षेपों से नक़दी प्रवाह पैदा होती है या/और उनके साथ अंतर्निहित मूल्य जुड़े होते हैं. लिहाज़ा समझदारी इसी बात में है कि बहुपक्षीय विकास बैंक और विकास वित्त संस्थाएं ऐसी परियोजनाओं को आंशिक साख गारंटी मुहैया करवाएं. हालांकि ये क़वायद केवल ऋण के ब्याज़ घटक के लिए होनी चाहिए. ऐसे रुख़ से निजी क्षेत्र से पहले से ज़्यादा निवेश जुटाने में मदद मिलेगी. साथ ही वैश्विक स्तर पर विविधतापूर्ण जलवायु कार्रवाई की ज़्यादा से ज़्यादा परियोजनाओं के लिए बहुपक्षीय विकास बैंकों/विकास वित्त संस्थाओं की पूंजी को स्वतंत्र करने में भी सहायता मिलेगी. ये इन तमाम संस्थाओं के क्रियाकलापों के अनुरूप भी हैं. दरअसल बहुपक्षीय विकास बैंक और विकास वित्त संस्थाएं, तमाम किरदारों को आकर्षित करने और उनके बीच संवाद को प्रोत्साहित करने वाले चुंबक का काम करती हैं.

निजी निवेश के मुक़ाबले MDBs और DFIs की जोख़िम उठाने की क्षमता ज़्यादा होती है, लिहाज़ा उन्हें परियोजनाओं को जोख़िम-रहित बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. इस क़वायद से जलवायु कार्रवाई की दिशा में निजी पूंजी को आकर्षित करना आसान हो सकेगा. प्रासंगिक बने रहने के लिए बहुपक्षीय विकास बैंकों और विकास वित्त संस्थाओं को पूंजी तैनात करने की अपनी रणनीति में नए सिरे से बारीक़ी लानी होगी. इन संस्थाओं को हरित जीवनशैली के हिसाब से ढलने और कार्बन की रोकथाम करने से जुड़ी परियोजनाओं के साथ निजी निवेशकों का तालमेल बिठाने के लिए सेतु की तरह काम करना होगा. इन संस्थाओं के पास जोख़िम की रोकथाम करने वाले उपकरण मौजूद हैं. ऐसे तमाम औज़ार (आंशिक साख गारंटियों समेत) विकासशील देशों तक जलवायु के मोर्चे पर न्यायोचित विकास पहुंचाने में योगदान दे सकते हैं.

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Authors

Labanya Prakash Jena

Labanya Prakash Jena

Labanya Prakash Jena is working as a sustainable finance specialist at the Institute for Energy Economics and Financial Analysis (IEEFA) and is an advisor at the ...

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Prasad Ashok Thakur

Prasad Ashok Thakur

Prasad Ashok Thakur is a CIMO scholar and has authored a book and several articles published with The World Bank Asian Development Bank Institute United ...

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