जहां भी मेडिकल कला प्रिय है, वहां मानवता का प्रेम भी है – हिप्पोक्रेट्स
दुनिया भर में महामारी से जुड़े सार्स-कोविड-2 (SARS-CoV-2) वैरिएंट के ख़िलाफ़ जारी संघर्ष और टीके की आपूर्ति में असमानता के बावजूद वैश्विक स्तर पर टीकाकरण में तेज़ी आई है. इस बीच सरकारें और संगठन वैश्विक स्तर पर टीके की आपूर्ति में आ रही चुनौतियों को लेकर लगातार गंभीरता से चर्चा कर रहे हैं. ऐसे में दक्षिण कोरिया (आरओके) कोई अपवाद नहीं है. मई में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जाए-इन्स के अमेरिका दौरे का एजेंडा स्पष्ट था. दोनों देश एक वैश्विक वैक्सीन साझेदारी स्थापित करने पर सहमत हुए. इसमें कोरिया की निर्माण इकाइयों में तेज़ी से उत्पादन क्षमता बढ़ाने और वैश्विक स्तर पर वैक्सीन उत्पादन के लिए जरूरी कच्चे माल की अमेरिका द्वारा आपूर्ति बढ़ाने जैसी बातें शामिल थीं. इसके साथ दोनों देश वैश्विक स्तर पर जन स्वास्थ्य को लेकर पैदा आपात स्थिति के ख़िलाफ़ संक्रामक रोग प्रतिक्रिया क्षमता को बेहतर बनाने के लिए वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सक्रिय सहयोग भी बढ़ाएंगे. इस साझेदारी के तहत एक सहमति पत्र (Memorandums of Understanding) यानी एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए. दोनों देशों के स्वास्थ्य क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों दक्षिण कोरिया की तरफ से एसके (SK) और सैम्संग (Samsung) और अमेरिका की ओर से नोवावैक्स (Novavax) और मॉडर्ना (Moderna) के बीच वैक्सीन निर्माण के लिए समझौता हुआ. कई लोगों का यह मानना है कि अमेरिका की विशेषज्ञता और दक्षिण कोरिया की उत्पादन क्षमता के एक साथ आने से वैश्विक स्तर पर वैक्सीन की आपूर्ति में तेज़ी आएगी.
17 जुलाई तक दक्षिण कोरिया के 1.6 करोड़ लोगों, जो कुल आबादी के करीब 31.3 फीसदी हैं, को कोविड वैक्सीन की पहली खुराक दी जा चुकी थी जबकि 12.7 फीसदी आबादी को दोनों डोज़ लगाया जा चुका था. इस रिपोर्ट को लिखे जाने तक देश के पास वैक्सीन के 19.2 करोड़ डोज़ उपलब्ध थे. इसका लक्ष्य सितंबर के अंत तक 70 फीसदी जनता तो वैक्सीन की पहली ख़ुराक लगा देने की है. ऐसी उम्मीद की जा रही है कि देश की वैक्सीन उत्पादन की बढ़ी हुई क्षमता से वैश्विक स्तर पर वैक्सीन उत्पादन में परेशानी को कम करने में मदद मिलेगी और दक्षिण कोरिया अन्य देशों विशेषकर एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों को अपने यहां बनी वैक्सीन निर्यात कर सकेगा. इस साझेदारी से दोनों देशों के बीच स्वास्थ्य सहयोग को लेकर किए गए एमओयू को भी विस्तार मिलता है. इससे नए संक्रामक रोगों, डिजिटल स्वास्थ्य देखभाल और जैव स्वास्थ्य उद्योग में सहयोग बढ़ाया जा सकेगा. यह साझेदारी पिछले 10 वर्षों से दक्षिण कोरिया द्वारा अपने स्वास्थ्य देखभाल उद्योग में किए गए निवेश के अनुरूप है. मौजूदा महामारी ने देश के इस योजना को मजबूती प्रदान की है कि स्वास्थ्य देखभाल सेक्टर विशेषकर दवा उत्पादन क्षमता को भविष्य को ध्यान में रखते हुए बढ़ाने की ज़रूरत है ताकि कोविड-19 महामारी से इतर कोई अन्य महामारी आए तो उससे निपटा जा सके.
संकट के समय ‘संपूर्ण समुदाय के लिए’ (‘Res Communis Omnium’) और ‘सभी की भलाई’ (‘Erga Omnes’)
दक्षिण कोरिया और अमेरिका के बीच हुई वैश्विक वैक्सीन साझेदारी की तरह अन्य राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नीतियां वैश्विक जन स्वास्थ्य प्रशासन, जहां मेडिकल और दवाइयों की सप्लाई चेन आपस में जुड़ी हुई हैं और आपूर्ती को ज़्यादा मज़बूत बनाने में सहयोग करती हैं. इसके बावजूद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और अन्य वैश्विक संगठनों की भूमिका बरकरार ही नहीं बल्कि और अहम हो जाती है. वैश्विक समुदाय की चेचक (smallpox) से जंग और अंततः उस पर मिली जीत से हमें यह पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर जब स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार की बात आती है तो डब्ल्यूएचओ की भूमिका कितनी अहम है. दशकों तक चले चेचक उन्मूलन कार्यक्रम (Smallpox Eradication Programme, SEP) यानी एसईपी के बाद शीत युद्ध के दबाव और कुछ सरकारों की इस कार्यक्रम में शामिल होने की अनिच्छा के ख़िलाफ़ जाते हुए डब्ल्यूएचओ ने चेचक के सफ़लतापूर्वक ख़ात्मे की घोषणा की.
संपूर्ण वैक्सीन उत्पादन और वितरण प्रक्रियाओं को सुसंगत और व्यवस्थित करने की बढ़ती समझ ने वैश्विक समुदाय को मौजूदा सीमा पार वैश्विक वैक्सीन सप्लाई चेन को लेकर ठोस योजना तैयार करने के लिए वार्ता पर आगे बढ़ने को प्रेरित किया है.
एसईपी से एक कदम आगे बढ़ते हुए डब्ल्यूएचओ और वैश्विक समुदाय इस महामारी के दौरान और बाद में अधिक कठोर कानूनी समीक्षाओं के साथ दवाओं को मानव जाति की एक साझा विरासत घोषित करने की मांग कर सकता है. इस मांग को ऐसे वक्त में और बल मिल सकता है जब वैक्सीन उत्पादन और वितरण के लिए अहम सामग्रियों पर निर्यात प्रतिबंध के कारण कोविड-19 महामारी के दौरान दुनिया के अन्य हिस्सों में गंभीर जन स्वास्थ्य संकट पैदा हो गया है. हालांकि, पौधों और पौधों से मिलने वाली चीजों की अवधारणा के प्रयोग पर पहले ही 1990 के दशक में चर्चा की जा चुकी है. इसी के परिणाम स्वरूप जैविक विविधता पर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए गए. खाद्यान्न और कृषि के लिए प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज़ (Plant Genetic Resources) को लेकर अंतरराष्ट्रीय संधि की गई. इन कदमों की वजह से ये संसाधन राष्ट्रीय संप्रभुता के विषय बन गए. शोध से पता चलता है कि पौधे के जेनेटिक रिसोर्सेज़ के बारे में डाटा साझा करने से जीव विज्ञान, मेडिसीन और कृषि क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है. संकट के समय में मेडिसीन को मानव जाति की साझा विरासत बनाने की अवधारण जरूरी नहीं है कि केवल पौधों या पौधों से मिलने वाली चीजों तक सीमित रहे, बल्कि यह रसायनों या सहायक संसाधनों खासकर वैक्सीन या अन्य दवा उत्पादों और वितरण पर लागू हो सकता है. निर्यात प्रतिबंधों पर रोक लगाकर वैक्सीन के उत्पादन और वितरण के लिए जरूरी सामग्रियों के मुक्त प्रवाह की गारंटी देने के बारे में चर्चा करना ‘सभी की भलाई’ (erga omnes) में होगा. खासकर वैश्विक महामारी जैसे संकट के समय में ऐसा करना और भी मायने रखता है.
17 जुलाई तक दक्षिण कोरिया के 1.6 करोड़ लोगों, जो कुल आबादी के करीब 31.3 फीसदी हैं, को कोविड वैक्सीन की पहली खुराक दी जा चुकी थी जबकि 12.7 फीसदी आबादी को दोनों डोज़ लगाया जा चुका था. इस रिपोर्ट को लिखे जाने तक देश के पास वैक्सीन के 19.2 करोड़ डोज़ उपलब्ध थे. इसका लक्ष्य सितंबर के अंत तक 70 फीसदी जनता तो वैक्सीन की पहली ख़ुराक लगा देने की है.
यद्यपि, इस वक्त यह बहुत ही काल्पनिक लगता है. डब्ल्यूएचओ के नेतृत्व में वैक्सीन या अन्य चिकित्सा ज्ञान या संसाधनों के उत्पादन और उसके आरक्षण को भी भविष्य में खोजा जा सकता है ताकि वे वास्तव में ‘संपूर्ण समुदाय के लिए’ (res communis omnium) हो. जब भौतिक विज्ञान (material science) में वर्षों तक किए गए शोध के परिणाम स्वरूप लिपिड नैनो कणों (lipid nanoparticles) की खोज की जा सकी और इन्हीं नैनो कणों से कोविड-19 टीके का तेज़ी से विकास संभव हो पाया. ऐसे में वैश्विक समुदाय भी भौतिक या चिकित्सा विज्ञान में डब्ल्यूएचओ के नेतृत्व में शोध पहल की उम्मीद कर सकता है, जिसका फल आने वाली पीढ़ियों के ‘संपूर्ण समुदाय’ (res communis omnium) को मिल सकेगा.
आने वाली पीढ़ियों के लिए कोविड महामारी से मिली सबक
दक्षिण कोरिया-अमेरिका वैश्विक वैक्सीन साझेदारी काफी अहम है. इसके जरिए वैश्विक स्तर पर वैक्सीन आपूर्ति चेन के भीतर की चुनौतियों के समाधान में इन दोनों देशों ने बड़ा योगदान दिया है. इसके साथ ही यह निश्चित तौर पर वैक्सीन सप्लाई चेन की बाधाओं को दूर करने वाला एक कदम भी साबित होगा. हालांकि, वैक्सीन के उत्पादन और वितरण के लिए अहम चिकित्सा संसाधनों और नियामक चुनौतियों के सह-प्रबंधन में डब्ल्यूएचओ या अन्य वैश्विक संगठनों के मजबूत पहल के बिना वैश्विक स्तर पर वैक्सीन की आपूर्ति में कई गंभीर बाधाएं (जैसे- जरूरी कच्चे माल पर निर्यात प्रतिबंध) पैदा हो जाएंगी. इससे वैश्विक स्तर पर वैक्सीन की आपूर्ति में गंभीर जोख़िम बना रहेगा. संपूर्ण वैक्सीन उत्पादन और वितरण प्रक्रियाओं को सुसंगत और व्यवस्थित करने की बढ़ती समझ ने वैश्विक समुदाय को मौजूदा सीमा पार वैश्विक वैक्सीन सप्लाई चेन को लेकर ठोस योजना तैयार करने के लिए वार्ता पर आगे बढ़ने को प्रेरित किया है.
.भविष्य की महामारियों के मामले में पर्याप्त वैश्विक वैक्सीन आपूर्ति के लिए वास्तव में तैयार रहने जैसी स्थिति के लिए यह तैयारी पर्याप्त नहीं हो सकती. इसके लिए दवाओं को मानव जाति के लिए साझा विरासत मानने के साथ-साथ बहुस्तरीय दृष्टिकोण की ज़रूरत पड़ेगी.
कोविड-19 वैक्सीन सप्लाई चेन और नियामक पारदर्शिता पर विश्व व्यापार संगठन की ओर से हाल में आयोजित संगोष्ठी कोविड-19 वैक्सीन उत्पादन और वितरण के तकनीकी और नियामक दोनों क्षेत्रों को जोड़ने के प्रयास का हिस्सा थी. इसी के साथ डब्ल्यूएचओ ने वैक्सीन सप्लाई और लॉजिस्टिक गाइडलाइंस प्रकाशित की है. व्यापार संबंधित पहलुओं पर बौद्धिक संपदा अधिकार (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights, TRIPs) यानी ट्रिप्स समझौते की समीक्षा भी वर्षों से एक महत्वपूर्ण एजेंडा रहा है. हालांकि, भविष्य की महामारियों के मामले में पर्याप्त वैश्विक वैक्सीन आपूर्ति के लिए वास्तव में तैयार रहने जैसी स्थिति के लिए यह तैयारी पर्याप्त नहीं हो सकती. इसके लिए दवाओं को मानव जाति के लिए साझा विरासत मानने के साथ-साथ बहुस्तरीय दृष्टिकोण की ज़रूरत पड़ेगी. बहुस्तरीय दृष्टिकोण में बहुपक्षीय (multilateral) या बहुहितधारक (multistakeholder) शामिल हैं. इन्हें डब्ल्यूएचओ के मजबूत] नेतृत्व में वैक्सीन की आपूर्ति को लेकर उन फासलों को पाटना होगा जिन्हें केवल एकपक्षीय दृष्टिकोण या सरकारों के बीच द्विपक्षीय समझौतों से नहीं भरा जा सकता. कुछ ऐसी ही बातें रोम घोषणापत्र में दोहराई गई हैं.
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