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दुनिया की राजनीति एक नए मोड़ पर है. ट्रंप प्रशासन की वापसी के साथ वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था एक बार फिर करवट ले रही है. अमेरिका की "अमेरिका फर्स्ट" नीति ने न सिर्फ़ उसके पुराने गठबंधनों को झकझोरा है, बल्कि इंडो-पैसिफिक जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भी नए तनाव और समीकरण पैदा कर दिए हैं. क्वॉड, ऑकस और स्क्वॉड जैसे समूहों के बदलते स्वरूप इस बात का संकेत हैं कि आने वाले सालों में समुद्री सुरक्षा, रणनीतिक साझेदारियां और शक्ति-संतुलन, सब कुछ नई दिशा में जाने वाला है.
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दक्षिण एशिया की बदलती राजनीति पर चीन नजर बनाए हुए है. कई सालों से वह अपने बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव और कुनमिंग ट्राईलैटरल समिट जैसे मंचों के ज़रिए भारत को पीछे करने की कोशिश कर रहा है. चीन का लक्ष्य इस क्षेत्र में अपने दोस्त देशों का एक अलग समूह बनाना था ताकि भारत के पारंपरिक प्रभाव को चुनौती दी जा सके लेकिन हाल के सालों में अमेरिका की बढ़ती मौजूदगी ने चीन की इन योजनाओं को मुश्किल बना दिया है.
चीन की यह मुश्किल सबसे ज़्यादा पाकिस्तान के मामले में नज़र आ रही है. सब जानते हैं कि दक्षिण एशिया और इंडो पेसिफिक क्षेत्र में पाकिस्तान लंबे समय से चीन का सबसे अहम रणनीतिक साझेदार रहा है. चीन और पाकिस्तान के रिश्ते ही इस क्षेत्र के बाकी देशों के साथ चीन के संबंधों को प्रभावित करते रहे हैं लेकिन पिछले कुछ महीनों में दोनों के बीच रिश्तों में उतार-चढ़ाव आने लगे हैं और इसकी बड़ी वजह है — अमेरिका.
हाल में चीन के मीडिया और सोशल मीडिया पर पाकिस्तान को लेकर नकारात्मक खबरें और टिप्पणियां बढ़ गई हैं. इससे साफ़ पता चलता है कि पाकिस्तान के अमेरिका की ओर झुकाव से चीन के लोगों में नाराज़गी और अविश्वास बढ़ गया है.
ऐसा मई में पाकिस्तान और भारत के सैन्य संघर्ष के बाद से देखा जा रहा है क्योंकि, उसके बाद से ही पाकिस्तान और अमेरिका के शीर्ष नेतृत्व के बीच बातचीत में तेज़ी दिखी है. ज़ाहिर है कि चीन को पाकिस्तान की ये हरकत नागवार ही गुज़रनी थी क्योंकि, भारत के साथ संघर्ष के दौरान पाकिस्तान की सेनाएं चीन के विमान उड़ा रही थीं. भारत के ख़िलाफ़ चीन के हथियार इस्तेमाल कर रही थीं लेकिन, अचानक पाकिस्तान इस संघर्ष में अमेरिका के राष्ट्रपति के रोल की तारीफ़ करने लगा.
चीन की यह मुश्किल सबसे ज़्यादा पाकिस्तान के मामले में नज़र आ रही है. सब जानते हैं कि दक्षिण एशिया और इंडो पेसिफिक क्षेत्र में पाकिस्तान लंबे समय से चीन का सबसे अहम रणनीतिक साझेदार रहा है.
इसके बाद से ही चीन के डिजिटल मीडिया में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ मुहिम सी छिड़ गई. पाकिस्तान पर इल्ज़ामों की बौछार होने लगी.
पहले तो चीन, पाकिस्तान से इस बात से नाख़ुश है कि उसने अपने पसनी बंदरगाह को अमेरिका के हवाले कर दिया. पसनी, ग्वादर बंदरगाह से महज़ कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर है, जिसे चीन मैनेज करता है. चीनियों को डर है कि पसनी बंदरगाह न सिर्फ़ पाकिस्तान से खनिजों के निर्यात का केंद्र बन जाएगा और वहां से अमेरिका को दुर्लभ खनिज एक्सपोर्ट किए जाएंगे. बल्कि, पसनी बंदरगाह से अमेरिका, ग्वादर में चीन की हरकतों की निगरानी करेगा और उसके लॉजिस्टिक्स और औद्योगिक विकास पर भी नज़र बनाकर रखेगा.
दूसरा, चीन के कुछ ऑब्ज़र्वर पाकिस्तान पर ये इल्ज़ाम भी लगा रहे हैं कि उसने चीन के एडवांस्ड फाइटर जेट की तकनीक तुर्की को बेच दी है, ताकि वो अपनी पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान विकसित कर सके. चीनियों का तर्क है कि तेज़ी से बदल रहे भू-राजनीतिक मंज़र में चीन को आगे अपनी सैन्य तकनीक पाकिस्तान से शेयर करने को लेकर सतर्क रहना चाहिए. इसमें J-35 फाइटर जेट को लेकर हुआ समझौता भी शामिल है.
चीन के दूसरे जानकार पाकिस्तान पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं कि वो जानबूझकर अफ़ग़ानिस्तान से लड़ाई कर रहा है, ताकि अमेरिकी सेना को अफ़ग़ानिस्तान में वापस आने में मदद कर सके. चीन के अधिकारी पहले ही पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान की लड़ाई को लेकर चिंताएं ज़ाहिर कर चुके हैं. क्योंकि, दोनों देशों की जंग ऐसे वक़्त में हो रही है, जब चीन दोनों देशों के बीच शांति समझौता कराने के लिए पुरज़ोर कोशिश कर रहा है, जिससे वो चीन- पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का विस्तार काबुल तक कर सके.
यही नहीं, पिछले कुछ हफ़्तों के दौरान चीन के सामरिक हलकों में इस बात को लेकर भी हंगामा मचा हुआ है कि पाकिस्तान, चीन के रेयर अर्थ संसाधनों को चुराकर अमेरिका के हवाले कर रहा है और इस तरह वो अमेरिका के साथ मुक़ाबले में चीन के तुरुप के पत्ते को कमज़ोर कर रहा है. चीन में आम लोगों की राय पाकिस्तान के ख़िलाफ़ होती दिख रही है. चीनी नागरिक इल्ज़ाम लगा रहे हैं कि पाकिस्तान, ‘चीन के दुश्मन देश’ अमेरिका की मदद करके उसके ‘हितों को चोट पहुंचा रहा’ है. चीन की सार्वजनिक परिचर्चाओं में कुछ लोगों ने तो पाकिस्तान के लिए चीनी शब्द “巴铁” (चीन पाकिस्तान फ़ौलादी भाई) को बदलकर “芭比Q” (चीन पाकिस्तान की दोस्ती स्वाहा) कर दिया है.
बल्कि चीन में बहुत से लोग तो ये मानते हैं कि पाकिस्तान ने, 2 अक्टूबर के आस-पास 2025 चीन के उपकरणों और तकनीक का इस्तेमाल करके रेयर अर्थ मिनरल अमेरिका को दिए थे. इसी के बाद चीन ने 9 अक्टूबर को रेयर अर्थ से जुड़ी तकनीक के निर्यात पर पाबंदियां और सख़्त कर दी थीं. पाकिस्तान के ख़िलाफ़ चीन में इस क़दर ग़ुस्सा भड़का हुआ है कि इसमें चीन की सरकार को दख़ल देना पड़ा और ये कहना पड़ा कि पाकिस्तान और चीन सदाबाहर सामरिक साझीदार हैं. उनकी दोस्ती फ़ौलादी है. चीन की सरकार ने सफ़ाई दी कि पाकिस्तान ने अमेरिका को रेयर अर्थ की आपूर्ति को लेकर पहले उससे बातचीत की थी.
चीन में पाकिस्तान विरोधी ख़बरों और बयानों पर कुछ कार्रवाई भी की गई है और इसे अफ़वाहों को बढ़ावा देना बताया गया है. मिसाल के तौर पर ग्लोबल टाइम्स के पूर्व संपादक हू शिजिन ने हाल ही में चीन के रेयर अर्थ चुराने के लिए पाकिस्तान की आलोचना करने वाला जो लेख लिखा था, उसको चीन के प्रमुख डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म्स (Guancha.com) से हटा दिया गया था. हालांकि, शिजिन का ये लेख चीन के इंटरनेट स्पेस में अभी भी काफ़ी चल रहा है. बड़े चीनी विद्वान जैसे कि शंघाई इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के लियु जोंगयी और चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस (CICIR) के वैंग शिडा इस बात का इल्ज़ाम चीन के भीतर बाहर के कुछ स्वार्थी तत्वों (जिनमें भारत और अमेरिका भी शामिल हैं) पर लगा रहे हैं, ताकि पाकिस्तान को लेकर चीनी जनता के ग़ुस्से को शांत कर सकें.
अब चीन के डिजिटल प्लेटफॉर्म पर एक वैकल्पिक तर्क को बढ़ावा दिया जा रहा है कि, चूंकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बर्बादी के कगार पर खड़ी है. ऐसे में पाकिस्तान अगर इस मुसीबत से निकलने के लिए फ़ौरी तौर पर अमेरिका की मदद ले रहा है, तो इसमें कोई हर्ज नहीं है. कहा जा रहा है कि अमेरिका और पाकिस्तान की साझा परियोजनाओं को अमल में लाना आसान नहीं है और ख़ास तौर से भारत से निपटने के मामले में पाकिस्तान, चीन की मदद के बग़ैर कुछ नहीं कर सकता है. पाकिस्तान के साथ रिश्ते बेहतर बनाने के लिए चीन ने बहुत कुछ दांव पर लगाया हुआ है. ऐसे में चीन में ये तर्क दिया जा रहा है कि हमें पाकिस्तान के अमेरिका के प्रति हालिया झुकाव को लेकर बहुत ग़ुस्सा दिखाने की ज़रूरत नहीं. हां, सावधान ज़रूर रहना चाहिए.
चीन में बहुत से लोगों की उम्मीदें भारत पर भी टिकी हैं कि वो पाकिस्तान को अमेरिका के और क़रीब आने से रोकेगा. उनका कहना है कि जिस तरह अमेरिका और पाकिस्तान एक दूसरे से मुहब्बत का इज़हार कर रहे हैं, उससे भारत पहले ही नाख़ुश है.
यही नहीं, चीन में बहुत से लोगों की उम्मीदें भारत पर भी टिकी हैं कि वो पाकिस्तान को अमेरिका के और क़रीब आने से रोकेगा. उनका कहना है कि जिस तरह अमेरिका और पाकिस्तान एक दूसरे से मुहब्बत का इज़हार कर रहे हैं, उससे भारत पहले ही नाख़ुश है. ज़ाहिर है भारत, पाकिस्तान को अमेरिका के और क़रीब आने की कोशिशों पर पानी फेरने की कोशिश ज़रूर करेगा. इस नज़रिए से कुछ जानकार ये तर्क दे रहे हैं कि चीन को इस मामले में दख़ल देकर पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तों को पेचीदा बनाने की ज़रूरत ही नहीं है.
2024 में बांग्लादेश के संकट को लेकर भी चीन का यही रुख़ रहा था. वैसे तो चीन, बांग्लादेश के संकट में अमेरिका की भूमिका लेकर फ़िक्रमंद था. लेकिन, चीन ख़ामोश रहा और उसने बांग्लादेश के मसले पर भारत और अमेरिका के बीच टकराव का अपने हित में इस्तेमाल करने की कोशिश की. शुरुआत में चीन के जानकारों ने यूनुस सरकार को अमेरिका समर्थक (बाइडेन प्रशासन का नज़दीकी) बताया था. बांग्लादेश में चल रही BRI परियोजनाओं को लेकर भी चीन चिंतित था. जब अमेरिका में सरकार बदली, उसके बाद जाकर बांग्लादेश और चीन के शीर्ष नेतृत्व के बीच संवाद शुरू हुआ. हालांकि, हाल के दिनों में ये चर्चाएं तेज़ हुई हैं कि बांग्लादेश, चीन से J-10 फाइटर विमान ख़रीदने की बातचीत कर रहा है. फिर भी चीन की सरकार बांग्लादेश की सियासत और सेना में अमेरिका की बढ़ती पैठ को लेकर आशंकित बना हुआ है.
ऐसे में सवाल ये है कि क्या इस इलाक़े में चीन की मौजूदगी को चुनौती देने के लिए अमेरिका और भारत के बीच सहयोग और बढ़ेगा? (जैसा कि चीन के कुछ जानकार शंका जताते हैं). या फिर, चीन और अमेरिका के बीच बढ़ता मुक़ाबला, चीन और भारत की पारंपरिक प्रतिद्वंदिता पर भारी पड़ेगा और दोनों देश दक्षिण एशिया में आपसी सहयोग बढ़ाएंगे?
इसकी तुलना में जब नेपाल की संसद ने अपने यहां बुनियादी ढांचे के विकास में मदद के लिए 27 फ़रवरी 2022 को अमेरिका के साथ 50 करोड़ डॉलर के मिलेनियम चैलेंज को-ऑपरेशन (MCC) के बहुचर्चित समझौते पर मुहर लगाई थी. तो चीन ने बेहद तीखी प्रतिक्रिया दी थी और उसे शक था कि इस मामले में भारत भी अमेरिका के साथ मिला हुआ है. अभी हाल के दिनों में चीनी समाज के एक तबक़े ने नेपाल में चीन समर्थक केपी शर्मा ओली की सरकार के तख़्तापलट और वहां अस्थिरता फैलाने के पीछे अमेरिका का हाथ होने की आशंका जताई थी. रेयर अर्थ मिनरल को लेकर म्यांमार में भी चीन और अमेरिका की होड़ बढ़ रही है. चीन के बहुत से मीडिया संस्थान आरोप लगाते हैं कि भारत और अमेरिका ने म्यांमार के स्थानीय हथियारबंद संगठनों से हाथ मिला लिया है, ताकि दोनों देश मिलकर रेयर अर्थ के मामले में चीन के दबदबे को चुनौती दे सकें.
कुल मिलाकर चीन का आकलन ये है कि दक्षिण एशिया बहुत बड़े बदलाव के मुहाने पर खड़ा है. यहां के समीकरण जो अब तक चीन और भारत के बीच होड़ से तय हो रहे थे, उनमें अब अमेरिका जैसे नए और ताक़तवर खिलाड़ी की एंट्री हो गई है, जिससे मुक़ाबला तीन तरफ़ा हो गया है. इसलिए अब चीन और अमेरिका के बीच ग्रेट पावर का जो मुक़ाबला बाक़ी दुनिया में चल रहा था, वो दक्षिण एशिया तक पहुंच गया है, जिससे यहां का भविष्य अधिक पेचीदा और अस्थिर हो गया है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या इस इलाक़े में चीन की मौजूदगी को चुनौती देने के लिए अमेरिका और भारत के बीच सहयोग और बढ़ेगा? (जैसा कि चीन के कुछ जानकार शंका जताते हैं). या फिर, चीन और अमेरिका के बीच बढ़ता मुक़ाबला, चीन और भारत की पारंपरिक प्रतिद्वंदिता पर भारी पड़ेगा और दोनों देश दक्षिण एशिया में आपसी सहयोग बढ़ाएंगे? यक़ीनन हमें इस बात पर नज़र बनाए रखनी होगी.
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Antara Ghosal Singh is a Fellow at the Strategic Studies Programme at Observer Research Foundation, New Delhi. Her area of research includes China-India relations, China-India-US ...
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