हाल की दो घटनाए लाल सागर को लेकर बढ़ती भू–राजनीतिक अहमियत को उजागर करती हैं. इन बातों से पता चलता है कि लाल सागर का इलाक़ा बड़ी ताक़तों की आपसी राजनीति और क्षेत्रीय दुश्मनी का मैदान बन चुका है. अमेरिका ने यमन के इर्द गिर्द के सागरीय इलाक़े में हथियारों और ड्रग्स की तस्करी रोकने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक नई बहुराष्ट्रीय टास्क फोर्स स्थापित करने का फ़ैसला किया है; वहीं ईरान ने लाल सागर में अपनी उपस्थिति और मज़बूत बनाने का फ़ैसला किया है. इन दो फ़ैसलों से ज़ाहिर होता है कि लाल सागर और इसके आस–पास भू–राजनीतिक रस्साकशी और तेज़ होती जा रही है.
अमेरिका ने कंबाइंड टास्क फोर्स (CTF) 153 की स्थापना इसलिए की है, ताकि वो ‘लाल सागर, बाब अल मंदेब और अदन की खाड़ी वाले इलाकों में अंतरराष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा और क्षमता निर्माण की कोशिशों पर और ज़ोर दे सके.’ अमेरिका के इस फ़ैसले की एक वजह इस क्षेत्र में अपने हितों को साधने को लेकर उसका नया नज़रिया भी है.
कंबाइंड टास्क फोर्स की स्थापना
अमेरिका ने कंबाइंड टास्क फोर्स (CTF) 153 की स्थापना इसलिए की है, ताकि वो ‘लाल सागर, बाब अल मंदेब और अदन की खाड़ी वाले इलाकों में अंतरराष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा और क्षमता निर्माण की कोशिशों पर और ज़ोर दे सके.’ अमेरिका के इस फ़ैसले की एक वजह इस क्षेत्र में अपने हितों को साधने को लेकर उसका नया नज़रिया भी है. कंबाइंड टास्क फोर्स-153, बहरीन की राजधानी मनामा में स्थित कंबाइंड मैरीटाइम फोर्सेज़ का ही एक हिस्सा होगी. ये नई टास्क फोर्स पहले से काम कर रही तीन अन्य टास्क फ़ोर्स (CTF 150, 151, 152) की कोशिशों में मददगार होगी. ये तीनों टास्क फोर्स कंबाइंड मैरीटाइम फोर्सेज़ (CMF) के झंडे तले काम कर रही हैं. CTF-153 की स्थापना और CMF के भौगोलिक दायरे का विस्तार, सामरिक रूप से बेहद अहम पश्चिमी हिंद महासागर के इलाक़े में समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने और ज़्यादातर ग़ैर पारंपरिक चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिहाज़ से काफ़ी उपयोगी होगा. I2U2 नाम वाले अमेरिका, भारत, इज़राइल और संयुक्त अरब अमीरात के साझा समूह (क्वाड) की स्थापना से भी इन देशों को लाल सागर क्षेत्र में मिलकर काम करने का नया अवसर मिलेगा. अहम बात ये है कि भारतीय नौसेना ने पिछले साल और इस साल भी लाल सागर इलाक़े में नौसैनिक अभ्यास किया था.
लाल सागर में ईरान की सेना की मौजूदगी, इन अरब देशों को मात देने के मक़सद से है. इसी कारण से इज़राइल की सुरक्षा संबंधी चिंताएं भी बढ़ जाती हैं और ईरान को दुनिया के एक अहम व्यापारिक मार्ग पर उसकी सैन्य मोर्चेबंदी भी सुनिश्चित होती है.
एक और घटना ये हुई कि इज़राइल के रक्षा मंत्री बेनी गैंट्ज़ ने लाल सागर क्षेत्र में ईरान की सेना की मौजूदगी को लेकर चिंता जताई है. गैंट्ज़ ने कहा कि, ‘पिछले कई महीनों के दौरान हमने इस इलाक़े में ईरान की सेना की बेहद अहम मौजूदगी का पता लगाया है, जो पिछले एक दशक में सबसे अधिक है.’ 2015 के बाद जब से यमन में जंग ने रफ़्तार पकड़ी है, तब से लाल सागर के इलाक़े में ईरान की सैन्य उपस्थिति में काफ़ी इज़ाफ़ा हो गया है. ईरान इसके ज़रिए यमन के हूथी बाग़ियों को मदद पहुंचाता है. लेकिन, उसकी मौजूदगी अरब देशों और इज़राइल के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गई है. ईरान के परमाणु कार्यक्रम और पूरे मध्य–पूर्व में उसकी बेहद आक्रामक क्षेत्रीय नीतियों ने सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के साथ उसकी सामरिक प्रतिद्वंदिता को और बढ़ाने का ही काम किया है. लाल सागर में ईरान की सेना की मौजूदगी, इन अरब देशों को मात देने के मक़सद से है. इसी कारण से इज़राइल की सुरक्षा संबंधी चिंताएं भी बढ़ जाती हैं और ईरान को दुनिया के एक अहम व्यापारिक मार्ग पर उसकी सैन्य मोर्चेबंदी भी सुनिश्चित होती है.
लाल सागर में कई देशों की बढ़ती फौजी मौजूदगी
पिछले कुछ वर्षों के दौरान वैश्विक और क्षेत्रीय ताक़तों ने लाल सागर के इर्द गिर्द आबाद देशों में अपने सैनिक अड्डे बनाए हैं. कुल सात देशों की सीमाएं लाल सागर से लगती हैं: पश्चिमी सीमा पर मिस्र, सूडान, इरिट्रिया और जिबूती हैं तो पूरब में सऊदी अरब और यमन हैं. इस सामरिक समुद्री मार्ग के उत्तरी पश्चिमी कोने पर इज़राइल का एइलैट बंदरगाह स्थित है. इनमें से मिस्र, इज़राइल और सऊदी अरब तो अपने आप में बड़ी क्षेत्रीय ताक़त हैं. वहीं, बाक़ी के चार देश कमज़ोर, ग़रीब, उथल–पुथल के शिकार और मुश्किल में फंसे हैं. ऐसे इलाक़े में अगर क्षेत्रीय और वैश्विक सैन्य ताक़तें अपनी गतिविधियां बढ़ा रही हैं, तो इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए.
लाल सागर में अमेरिका, रूस और चीन की मौजूदगी इस इलाक़े में महाशक्तियों के बीच तेज़ी से बढ़ रही भू-सामरिक होड़ की तरफ़ इशारा करती है.
रूस ने सूडान में अपना नौसैनिक अड्डा बनाने की योजना का एलान किया है. वहीं, चीन ने जिबूती में अपना फौजी अड्डा बना रखा है. इन देशों द्वारा लाल सागर इलाक़े में अपने सैनिक अड्डे बनाने की बड़ी वजह अपना प्रभाव बढ़ाना और सैन्य ठिकाना बनाना है. चीन के लिए 2011 में लीबिया और 2015 में यमन से निकासी ने उसे इस इलाक़े में एक सक्रिय सैनिक अड्डा स्थापित करने को प्रेरित किया. अमेरिका ने अपना एक सैनिक अड्डा जिबूती में बना रखा है. वहीं मिस्र, इज़राइल और सऊदी अरब के साथ उसके क़रीबी सामरिक संबंध हैं. इसके अलावा CMF के रूप में बहुराष्ट्रीय कोशिशें, क्षेत्रीय भू–राजनीति में अमेरिका की हैसियत को मज़बूत बनाती हैं. लाल सागर में अमेरिका, रूस और चीन की मौजूदगी इस इलाक़े में महाशक्तियों के बीच तेज़ी से बढ़ रही भू-सामरिक होड़ की तरफ़ इशारा करती है.
यमन में युद्ध के नज़रिए से देखें, तो 2015 से ही संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब, ईरान के समर्थन वाले हूथी बाग़ियों पर क़ाबू पाने और दक्षिणी लाल सागर में ईरान का प्रभाव कम करने की कोशिश कर रहे हैं. दोनों देशों ने इस इलाक़े में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाने के साथ–साथ सूडान, जिबूती और इरिट्रिया के साथ साझेदारी बढ़ाकर ईरान की ताक़त को चुनौती देने की कोशिश की है. वहीं तुर्किये चाहता है कि वो सूडान के सुआकिन बंदरगाह का पुनर्निर्माण करे, जिससे सोमालिया में उसकी मौजूदगी को और बल मिलेगा. मध्य पूर्व के ताक़तवर देश, लाल सागर और इसके आस–पास स्थित अफ्रीकी देशों की घरेलू राजनीति में बड़ी गहराई से जुड़े हुए हैं. मध्य पूर्व के शक्तिशाली देशों के बीच क्षेत्रीय दुश्मनी ने भी लाल सागर की भू–राजनीति को एक नया आयाम दिया है.
लाल सागर में तेज़ होनी ये होड़, कई मामलों में हमें उपनिवेशवादी अतीत की याद दिलाती है. ब्रिटेन, इटली और फ्रांस के बीच लाल सागर पर अपना नियंत्रण स्थापित करने की ज़बरदस्त होड़ ने इन देशों को लाल सागर के तटीय देशों में अपने उपनिवेश स्थापित करने को मजबूर किया था. ब्रिटेन ने मिस्र, सूडान, यमन और ब्रिटिश सोमालीलैंड पर अपना क़ब्ज़ा स्थापित किया था. तो इटली का राज इरिट्रिया और उसके क़ब्ज़े वाले सोमालीलैंड इलाक़े पर था. दक्षिणी लाल सागर में जिबूती के अपने सैन्य अड्डे के ज़रिए फ्रांस ने हमेशा से ही यहां की क्षेत्रीय भू–राजनीति में अपनी मौजूदगी बनाए रखी है. इस इलाक़े में यूरोपीय संघ (EU) और नेटो (NATO) के शामिल होने के पीछे फ्रांस की बड़ी भूमिका रही है. यूरोपीय संघ ने ऑपरेशन अटलांटा के ज़रिए लाल सागर में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई, है तो नेटो ने ऑपरेशन ओशन शील्ड के ज़रिए ये लक्ष्य हासिल किया है. सोमालिया में यूरोपीय संघ ने अपना एक प्रशिक्षण केंद्र भी स्थापित किया हुआ है, जो लाल सागर के काफ़ी क़रीब है.
अमेरिका द्वारा लाल सागर के इलाक़े में अपनी सामरिक मौजूदगी बढ़ाने के पीछे दो मक़सद हैं: पहला तो ये कि इस क्षेत्र में उस सोच को बदलना कि इस इलाक़े में अमेरिका का प्रभाव घट रहा है. वहीं दूसरी वजह सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों को ये भरोसा दिलाना है कि वो उनके हितों के ख़िलाफ़ काम नहीं कर रहा है.
लाल सागर के इलाक़े में तमाम देशों की बढ़ती फौजी ताक़त के बावजूद, लाल सागर इलाक़े से समुद्री यातायात बेरोक–टोक जारी रहा है. लाल सागर के इर्द गिर्द बसे देशों ने इस इलाक़े में बड़ी शक्तियों की दिलचस्पी का अपने हित में बख़ूबी इस्तेमाल किया है. जिबूती का तो ख़र्च ही उन देशों से मिली रक़म से चलता है, जिन्होंने उसके यहां सैनिक अड्डे बना रखते हैं. इरिट्रिया और सूडान ने क्षेत्रीय ताक़तों के साथ संवाद बढ़ाकर वैश्विक स्तर पर ख़ुद को अलग थलग किए जाने की चुनौती से पार पाने की कोशिश की है. हालांकि इस क्षेत्र को बाहरी ताक़तों के शामिल होने की क़ीमत भी चुकानी पड़ी है. यमन लंबे समय से चल रहे गृह युद्ध और क्षेत्रीय शक्तियों की आपसी खींचतान से बदहाल हो चका है. वहीं, जिबूती में अमेरिका और चीन के सैनिक अड्डे बेहद पास–पास होने से भी चिंता बढ़ी है.
सामरिक मौजूदगी बढ़ाने का अमेरिकी मक़सद
अमेरिका द्वारा लाल सागर के इलाक़े में अपनी सामरिक मौजूदगी बढ़ाने के पीछे दो मक़सद हैं: पहला तो ये कि इस क्षेत्र में उस सोच को बदलना कि इस इलाक़े में अमेरिका का प्रभाव घट रहा है. वहीं दूसरी वजह सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों को ये भरोसा दिलाना है कि वो उनके हितों के ख़िलाफ़ काम नहीं कर रहा है. इसके अलावा, अमेरिका इन देशों से तेल का उत्पादन बढ़ाने में भी मदद चाह रहा है, ताकि रूस यूक्रेन युद्ध के चलते तेल की क़ीमतों में आए उछाल से निपटा जा सके. इस इलाक़े में ईरान की बढ़ती फौजी मौजूदगी और परमाणु समझौते (JCPOA) को दोबारा ज़िंदा करने में देरी के साथ साथ रूस और और पश्चिमी ताक़तों के बीच बढ़ती प्रतिद्वंदिता, इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिए मुफ़ीद नहीं है.
इस क्षेत्र में अपनी सामरिक मौजूदगी बढ़ाने का अमेरिका का फ़ैसला, अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेना बुलाने के बाद इस इलाक़े में उसकी गतिविधियां बढ़ाने की कोशिशों से भी मेल खाती हैं. ईरान द्वारा रूस से नज़दीकी बढ़ाने, यमन के हूथी बाग़ियों को लगातार समर्थन देने और परमाणु समझौते (JCPOA) को दोबारा ज़िंदा करने की बातचीत के पटरी से उतरने की आशंका जैसे तमाम कारणों ने मिलकर अमेरिका को इस इलाक़े में अपनी सामरिक स्थिति इस तरह से मज़बूत बनाने को मजबूर किया है, जिससे कि वो पश्चिमी एशिया के तेज़ी से बदल रहे क्षेत्रीय समीकरणों और ख़ास तौर से अब्राहम समझौतों के बाद के हालात में भी मज़बूत बनाए रख सके.
1869 में स्वेज नहर के शुरू हो जाने के बाद से लाल सागर की सामरिक अहमियत कई गुना बढ़ चुकी है. स्वेज़ नहर, लाल सागर को भूमध्य सागर से जोड़ती है और ये दुनिया के व्यापार के बेहद अहम समुद्री मार्गों में से एक है. पिछले साल जब एक विशाल कंटेनर जहाज़ एचएमएस एवर गिवेन, स्वेज़ नहर में फंस गया था तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था सदमे में आ गई थी. अमेरिका के अलावा, लाल सागर चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव का भी बेहद अहम हिस्सा है. लाल सागर में बड़ी शक्तियों की हाल में बढ़ी गतिविधियां इस बात की याद दिलाती हैं कि ये इलाक़ा, व्यापार ही नहीं अन्य मामलों में भी, दुनिया के लिए अहम बना हुआ है.
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