नवंबर 2023 में, भारत सरकार (जीओआई) की कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई), ने इस्राइली सरकार के साथ एक त्रिवर्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जिसके तहत वो ‘भारतीय श्रमिकों को एक विशिष्ट श्रम बाज़ार के क्षेत्र, विशिष्ट तौर पर निर्माण (कंस्ट्रक्शन) उद्योग में अस्थायी तौर पर रोज़गार मुहैया कराएंगे.’ हमास हमले के बाद, तय किये गये इस समझौते के बाद, प्रवासी श्रमिकों के स्वीकार्य करने पर इस्राइल की नीति में बदलाव हुआ, जहां उन्होंने हजारों फ़लिस्तिनियों द्वारा आवेदिन किये गये वर्क या श्रम वीज़ा को एक सिरे से रद्द कर दिया है. इसके बजाय, उन्होंने श्रमिकों की कमी से जूझ रहे उद्योगों के लिए, अन्य देशों से भारतीय नागरिकों और अन्य श्रमिकों की भर्ती की, जिनमें निर्माण कार्य से जुड़ी योजनाओं को पढ़ पाने की मामूली क्षमता होना ज़रूरी था, इसके अलावा उन्हें शटरिंग, कारपेंट्री, सिरेमिक टाईलिंग, प्लास्टरिंग और आइरन बेंडींग जैसे कामों को करने की की कुशल जानकारी हो.
राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) और ज़िला श्रम अधिकारी, सामाजिक एवं पारंपरिक मीडिया प्रचार माध्यम की मदद से भर्ती की सुविधा प्रदान करते हैं. भारतीय युवाओं को इज़राइल में काम करने के लिए तैयार करने का काम काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे प्रेरित हो कर 18,000 भारतीय पहले ही इज़राइल में काम कर रहे हैं. इनमें खासकर वे लोग केयरगिवर के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. कुछ अन्य देश भी हैं जो भारत को ऐसे निवेदन भेज रहे हैं. ग्रीस ने भी अपने कृषि क्षेत्र में काम करने के 10,000 किसान श्रमिकों की मांग भारत के सामने रखी है और इटली ने अपनी म्युनिसिपल सेवाओं के लिए भारतीय मज़दूरों की सेवा लेने की इच्छा ज़ाहिर की है. विदेशों में भारतीय श्रमिकों की बढ़ती मांग के कारण भारतीय कामगारों को इन देशों में भेज पाने के लिये, सरकारी कागज़ी प्रक्रिया को और सरल बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है. साथ ही इन देशों में कामगारों की कमी से निपटने के लिए भारत से स्किल्ड और सेमी-स्किल्ड मज़दूरों की सेवा ले पाने के लिये कई विकसित देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते पर सहमति बनायी जा रही है.
भारत के गांवों और कस्बों से बड़ी संख्या में युवा प्रवासी नौकरी और रोज़गार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं. इनमें से कुछ लोग ही ऐसे हैं जिन्हें फुलटाइम नौकरी मिली हुई है
इस तरह के स्थापित हो रहे द्विपक्षीय समझौतों से भारतीय शहरी युवाओं को विदेशों में बेहतर श्रेणी के रोज़गार के अवसर मिल रहे हैं. भारत के गांवों और कस्बों से बड़ी संख्या में युवा प्रवासी नौकरी और रोज़गार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं. इनमें से कुछ लोग ही ऐसे हैं जिन्हें फुलटाइम नौकरी मिली हुई है; बाकी सभी आंशिक तौर छोटे-मोटे काम से बंधे हुए हैं. और बाकी काफी सारे लोग ऐसे हैं जो बगैर किसी जॉब अथवा कार्य के हैं. अगर हम अपने इन युवा वर्कफोर्स को कुशल ट्रेनिंग दे पायें और उनके भीतर विदेशों में ज़िम्मेदारियां उठाने की दक्षता विकसित कर सकें तो, इस हालात से बेहतर तरीके से निपटना जा सकता है. क्योंकि ऐसा होने से भारतीय शहरे में बेरोज़गारी की समस्या में कमी आयेगी, जनसांख्यिकी भी छोटा होगा, शहर के बुनियादी ढांचों पर दबाव घटेगा और बेहतर कानून और व्यवस्था की मदद से देश में रोज़गार को लेकर जो दबाव है वो कम होगा.
रोज़गार की तलाश
इस परिप्रेक्ष्य में, आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय (MHUPA), द्वारा राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (DAY-NULM)) के तहत लॉन्च किये गये दीनदयाल अंत्योदय योजना, कौशल विकास के लिए बेहतर अवसर का सृजन करने की प्रक्रिया में भारी भूमिका अदा कर सकती है. जिससे शहरी युवा को अंतरराष्ट्रीय समेत विभिन्न श्रम बाज़ार में नियोजित किये जाने योग्य बना सकेगी. इसके साथ ही, भारत सरकार की राष्ट्रीय कौशल योग्यता रूपरेखा (एनएसक्यूएफ), जो ज्ञान, योग्यता एवं कौशल का विश्लेषण कर योग्य पात्रों को एक जगह आयोजित करती है, वो भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है.
प्रशिक्षण महानिदेशालय (डीजीटी) ने अपने सभी कार्यक्रमों को नेश्नल स्किल्स क्वॉलिफिकेशंस फ्रेमवर्क के साथ एकरूप करने का प्रयास किया है ताकि दोनों कार्यक्रमों की ट्रेनिंग एक जैसी हो और इसके तहत अभ्यास एवं शिक्षा पाकर हम एक स्टैंडर्ड उच्च स्तरीय कामगारों का निर्माण कर सके जो हर पैमाने पर संतुलित हो. डीजीटी, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) और एडोबी इंडिया ने मिलकर कौशल विकास संबंधी एक त्रिपक्षीय समझौते पर सहमति कायम की है. इन प्रयासों के बदौलत अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर लोग गतिशील होने लगे हैं और वो भारतीय कामगारों की योग्यता को अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुसार बना पाने के लिए ज़रूरी जो अतिरिक्त बेंचमार्किंग है उसे भी पूरा कर NSQF को भी संतुष्ट कर पा रहे हैं.
इस संबंध में और बेहतर परिणाम कौशल विकास मंत्रालय जो स्कूलों और यूनिवर्सिटी में अनौपचारिक स्तरीय व्यावसायिक पाठ्यक्रम चलाने का काम करता है उनके और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के बीच तालमेल स्थापित कर पाया जा सकता है. ऐसे प्रयासों का और भी बेहतर परिणाम तब निकल पायेगा अगर एनएसडीसी ने और भी व्यापक स्तर पर व्यावसायिक समूहों में इन कौशल को शामिल कर लिया होता ताकि देश के शहरी युवा अंतरराष्ट्रीय स्तर तक इन क्षेत्रों में कड़ी प्रतिस्पर्धा कर पाने लायक हो जाते.
रोज़गार पानी की इच्छा में, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और पंजाब के युवा जितनी नौकरी मौजूद थी उससे कहीं अधिक संख्या में कौशल परीक्षण के लिए नियोजित भर्ती केंद्रों पर पहुँच रहे हैं.
दुर्भाग्यवश, युवा भारतीयों को युद्ध क्षेत्र में धकेलने के आरोपों की वजह से देशभर में अलग-अलग स्तरों पर भारत-इज़राइल समझौते की आलोचना हो रही है. 15 जनवरी 2024 को, सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन (CITU) ने इन प्रयासों की तीख़ी भर्त्सना की और भारतीय श्रमिकों से इज़राइल में इन नौकरी को स्वीकार न करने की अपील की. इसकी सहयोगी, कंस्ट्रक्शन वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीडब्ल्यूएफआई) ने भारतीय युवाओं का जीवन खतरे में डाले जाने को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की है. उन्होंने इन युवाओं को मौत के जाल में धकेले जाने की चिंता व्यक्त की है. उसी तरह से, विभिन्न दलों नें, देश में बड़े पैमाने पर बढ़ रही बेरोज़गारी की तरफ सरकारों का ध्यान आकर्षित किया है, जो युवाओं को रेड ज़ोन (खतरे के निशान) के ऊपर जाने को विवश कर रहा है और इस वजह से उन्होंने काम करने के लिये इज़राइल जा रहे भारतीय युवाओं को ज़रूरी सुरक्षा एवं उदार इंश्योरेंस की सुविधा दिये जाने की वक़ालत की है.
पर ऐसा लगता है कि इस तरह की आलोचनाओं का देश के युवाओं पर कोई असर नहीं पड़ रहा है. रोज़गार पानी की इच्छा में, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और पंजाब के युवा जितनी नौकरी मौजूद थी उससे कहीं अधिक संख्या में कौशल परीक्षण के लिए नियोजित भर्ती केंद्रों पर पहुँच रहे हैं. इनमें से ज्य़ादातर लोग बेरोज़गार हैं, और जिनके पास रोज़गार है भी तो वो प्रति महीने 10 से 20 हज़ार रुपये की मामूली नौकरी कर रहे हैं. उनके लिए, इज़राइल-हमास के बीच युद्ध का होना कोई खास मायने नहीं रखता है. उन्हें इसका फर्क नहीं पड़ रहा है. एक महीने में 1.37 लाख रूपये कमाने के आकर्षण के सामने, जान का ख़तरा भी कम पड़ रहा है. इज़राइल में रोज़गार पाने के लिये कतार में खड़े कुछ आकांक्षी लोगों का कहना है कि वर्तमान में जहां वो काम करते हैं वो उनके घरों से काफी दूर है, और वे साल में सिर्फ़ एक बार ही अपने घर जा पाते हैं. ऐसे में उनका मानना है कि इज़राइल में नौकरी करने से उनके जीवन में काफी सकारात्मक परिवर्तन आ पाएगा.
दुनिया के कई देशों में भारत भर के कई प्रवासी समुदाय बसे हुए हैं. दिसंबर 2018 में अनुमान लगाया गया कि इनकी संख्या 32.3 मिलियन के करीब है, और 1981 के बाद से अब-तक, इसमें लगभग 20 मिलियन की बढ़त दर्ज की गई है. पश्चिमी देशों और अन्य विकसित देशों में काम करने वाले ये लोग जिनमें महिलायें और पुरुष दोनों ही शामिल हैं, वे सीढ़ी के सबसे उपरी पायदान पर बैठे हैं, ये लोग अपने लिए काफी बेहतर कर पा रहे हैं और अपनी कौशल और सेवाओं के बदौलत अपने देशों की अर्थव्यवस्था में काफी उल्लेखनीय योगदान कर रहे हैं. अन्य देशों में, खासकर के खाड़ी के देशों में, भारतीय कामगार मुख्य रूप से श्रम मुहैया कराते हैं, जो कि इन देशों के विकासशील बुनियादी ढांचे और सेवाओं के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है.
साल दर साल, विदेश में रह रहे भारतीयों द्वारा देश को मिलने वाले धन या प्रेषण (रेमिटेंस) में काफी वृद्धि होते हुए देखी गई है. वर्ष 2017–18 में अमेरिकी डॉलर में कुल विदेशी प्रेषण 69.129 डॉलर था. साल 2021-22 आते-आते ये रेमिटेंस अमेरिकी डॉलर में 127 मिलियन तक पहुँच चुका था. विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार, आगामी 2023 तक भारत को दुसरे देशों से प्राप्त होने वाला रेमिटेंस अमेरिकी डॉलर में 125 बिलियन तक पहुंच जाएगा. इनमें से 20 से 25 प्रतिशत धन का श्रेय, मध्य-पूर्वी खाड़ी देश में कार्यरत कुशल/अर्ध-कुशल ब्लू कॉलर श्रमिकों को जाता है.
प्रवासी श्रमिकों के लिये ये एक बड़ी जीत है, जैसा कि कई लोगों बताया भी है. ये उन्हें कई तरह का फायदेमंद रोज़गार उपलब्ध कराता है जो उन्हें अपने देश में मिलना मुश्किल है, और जिसकी मदद से वे अपने परिवारों की देखभाल कर सकते हैं, अपनी आर्थिक स्थिती मज़बूत कर सकते हैं और अंत में ग़रीबी से बाहर निकल सकते हैं. विदेश में काम करते हुए, एक आम भारतीय मज़दूर कम से कम पांच साल तक वहां रहता है, जहां वे अपना कौशल बेहतर भी करते हैं, जो वापिस घर आने पर यहां नौकरी ढूंढने में उनकी मदद कर सकता है.
देखा गया है कि, अपनी विशाल आबादी की बदौलत भारत, कई दशकों से अपने युवा पुरुष एवं महिला श्रम शक्ति के लिए उनके लायक रोज़गार को ढूंढ पाने में असफल एवं संघर्षरत रहा है.
भारत से होने वाले श्रम आयात को कई विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है. देखा गया है कि, अपनी विशाल आबादी की बदौलत भारत, कई दशकों से अपने युवा पुरुष एवं महिला श्रम शक्ति के लिए उनके लायक रोज़गार को ढूंढ पाने में असफल एवं संघर्षरत रहा है. इस संदर्भ में, देश के बाहर रोज़गार की वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध होने की स्थिति में, शहरी युवाओं को बेरोज़गार अथवा अल्प-बेरोज़गार रखने का कोई औचित्य नहीं है. देश के भीतर की बेरोज़गारी को कम करने का ये काफी सार्थक तरीका है. बढ़ती उम्र वाले देशों में, उद्योगों को चलायमान रखने के लिये प्रवासी श्रमिक, उनके लिये जीवन रेखा बनने का काम करते हैं. जिन देशों को ये सुविधा मिलती है वे भी अपने औद्योगिक एवं आर्थिक गतिविधियों में और सुधार ला पाते हैं, जो प्रवासी श्रमिकों की उपलब्धता के बग़ैर संभव नहीं हो पाता.
प्रवासी मजदूरों द्वारा भेजे जाने वाले प्रेषित धन से, श्रम उपलब्ध कराने वाले देशों को भी काफी फायदा होता है. भारत में, GCC (गल्फ़ कोऑपरेशन काउंसिल) देशों (बहरीन, कुवैत, ओमान, कतार, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात) जहां मुख्य तौर पर भारतीय प्रवासी मज़दूर के तौर पर अपनी सेवा दे रहे हैं, वहां से भी वर्ष 2021-2022 के दौरान 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर की रकम भारत आ रही है. आर्थिक रूप से कमज़ोर एवं कम समृद्ध उत्तर प्रदेश, और बिहार जैसे राज्यों से वहां जाने वाले श्रमिकों की संख्या, देश के अन्य समृद्ध राज्यों की तुलना में काफी तेज़ी से बढ़ा है, और इस वजह से उनके ज़रिये जो आय इन राज्यों को हासिल हुई उससे इन राज्यों को एक अतिरिक्त सुरक्षा कवच उपलब्ध मिला, क्योंकि इन राज्यों के पास अपनी युवा आबादी को देने के लिये न तो उचित रोज़गार के अवसर थे और न ही ज़रूरी आर्थिक शक्ति थी.
समाधान
इस पृष्ठभूमि के विपरीत, यह सही है कि नौकरी देने वाला देश पूरे विश्व को मजदूरों के पलायन की सुविधा दे रहा है. जिस प्रकार से भारत के पश्चिमी प्रवासियों की गुणवत्ता एवं उनकी भूमिका को वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई है, ठीक उसी तरह से कामगार के कामों के लिए, भारत से विदेश यात्रा कर रहे प्रशिक्षित, कुशल श्रमिकों की भी इन देशों के निर्माण में अपने प्रतिबद्ध एवं शांतिप्रिय योगदान के लिए सराहना की जाती है. इसी संदर्भ में, पश्चिमी देश भी अब भारतीय श्रम को विकल्प के तौर पर अपनाने के लिये तैयार होते दिख रहे हैं.
दाता देशों की ओर से, ये महत्वपूर्ण होगा कि वो उस देश की उन प्रक्रियाओं के सुदृढ़ीकरण में भी हिस्सा लें, जहां के मज़दूर उनके देशों में आकर श्रमदान कर रहे हैं. ये ज़रूरी है कि इन मज़दूरों के देशों में उनके लिये सुविधा हो. इसके लिये इन मज़दूरों के कल्याण को लागू करने एवं उसे प्राथमिकता देने के लिये समुचित नीतियां और कानून लाया जाये. इसके लिये प्रवासी श्रमिकों के कल्याण एवं उनके अधिकारों का संज्ञान लेने वाली सामंजस्यपूर्ण नीतियां एवं कानून बनाए जाने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए. इसके लिये भारत को चाहिए कि प्रवासी श्रमिकों से संबंधित सवालों के तत्काल जवाब के लिए देश भर से होने वाले मज़दूरों के पलायन पर विस्तृत आँकड़े तैयार किए जायें.
Ramanath Jha is a Distinguished Fellow at the Observer Research Foundation
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