घेराबंद समुदाय, नियंत्रित पहुँच की विशेषतायुक्त आवासीय यूनिट के ग्रुप या बंगले को कहते हैं, जहां गैर-आवासीय व्यक्ति का प्रवेश घेराबंद समुदायों द्वारा अपनाए गए शर्तों की पूर्ति के उपरांत ही होता है. साधारणतया उपलब्ध आवास के विपरीत, ये आवासीय कॉम्प्लेक्स ऊंची दीवारों से घिरी होती हैं और इसके प्रवेशद्वार पर सुरक्षाकर्मी तैनात होते हैं. यही वो प्रतिबंधात्मक विशेषताएं हैं जिसने उन्हें ‘घेराबंद समुदाय’ की उपाधि दी है. इन विशेष एन्क्लेव का डिज़ाइन बेहतर सुरक्षा के मद्देनज़र किया गया है और ये उच्च गुणवत्ता वाली सुविधाओं जैसे स्विमिंग पूल, जिम, क्लब हाउस, कम्यूनिटी हॉल, रेस्टोरेंट और अन्य मनोरंजन, सामाजिक और क्रीडा सेवाओं आदि से युक्त होती हैं जिसका इस्तेमाल करके इस घेराबंद समुदाय के सदस्य लाभान्वित हो सकते हैं. क्रीडा स्थल और टहलने की जगह ये सुनिश्चित करने के लिए हैं, ताकि बच्चों और वयस्कों के पास मनोरंजन और कसरत आदि करने की सभी व्यवस्था हो और उन्हें इन सब चीजों के लिए किसी अन्य खुले शहर में जाने की ज़रूरत न हो. इसके साथ ही, ये एन्क्लेव, पॉवर बैक-अप, पूर्णकालीन सिक्योरिटी उपकरण, और चौबीसों घंटे की निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरा आदि से लैस होती हैं. किन्हीं-किन्हीं कैंपसों में, व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स, और स्कूल और मेडिकल केयर आदि भी उपलब्ध रही हैं. ऐसे एन्क्लेव, पाबंदियों के तहत, कई दफ़ा अपने क्षेत्र में रहने वाले निवासियों को अधिक निजता अथवा प्राइवेसी भी मुहैया कराती हैं.
साधारणतया उपलब्ध आवास के विपरीत, ये आवासीय कॉम्प्लेक्स ऊंची दीवारों से घिरी होती हैं और इसके प्रवेशद्वार पर सुरक्षाकर्मी तैनात होते हैं. यही वो प्रतिबंधात्मक विशेषताएं हैं जिसने उन्हें ‘घेराबंद समुदाय’ की उपाधि दी है.
जैसा की पहले सुझाव दिया गया हैं, घेराबंद समुदाय में सिर्फ़ बंगला या ऊंची-ऊंची इमारतें ही शामिल हो सकते हैं. हालांकि, वे दोनों का संयोजन भी हो सकता हैं. सिर्फ़ बंगला युक्त आवासीय एन्क्लेव, साइज़, डिज़ाइन और दिखने में समान हो सकते हैं. इसके विपरीत, वे साइज़ और आकार में भिन्न भी हो सकते हैं. कुछ मामलों में, विक्रेताओं को प्लॉट भी आवंटित की जा सकती हैं, और फिर उसपर प्लॉट के मालिक अपने मनमाफिक बंगला बना सकते हैं. इन गगनचुंबी इमारतों में, जिसमें बहु-आवासीय ईकाईयां हैं, प्रत्येक परिवार विशेष के विभिन्न जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से समान अथवा विभिन्न आकार के फ्लैट्स बना सकते हैं. ये घेराबंद समुदाय कुछ विशेष स्थलों के निजीकरण का प्रयास करते हैं, जो कि सभी नागरिकों के लिए समान तौर पर उपलब्ध रहेगा. इसलिए, अंदरूनी सड़क जो कि अन्यथा पूरे शहर की परिक्रमा कर उसे आपस में जोड़ती है, वो इसके प्रतिबंधित पहुँच को सिर्फ़ आंतरिक निवासियों को मुहैया कराती है.
घेराबंद समुदाय में सुविधाएँ
घेराबंद समुदाय अक्सर उनके द्वारा बनायी गई आचार संहिता को मानती हैं और अपने सदस्यों से इन नियमावली का अनुसरण करने की अपेक्षा रखती हैं. उदाहरणार्थ, ये कोड निर्धारित कर सकता है कि इन समुदाय द्वारा दोपहर दो बजे से 4 बजे तक या फिर सायं 7 से 8 बजे सुबह तक किसी भी प्रकार का मरम्मत का कार्य नहीं कर सकते हैं. ऐसी पाबंदियाँ इन मरम्मती कार्यों से होने वाले शोर को रोकने के लिए है, ताकि आराम के वक्त पर यहाँ के निवासियों को किसी प्रकार की ख़लल ना पड़े. उसी तरह से, पालतू जानवरों को रखने से संबंधी नियामक हो सकते हैं, और उनके मालिकों को इन्हें लेकर समुदाय के अन्य सदस्यों के मध्य पैदल चलने को लेकर, बरते जाने वाले एहतियात का पालन ज़रूरी हैं. ये घेराबंद समुदाय ज्य़ादातर आवासीय वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्लूए) द्वारा शासित होती हैं, जो कि सामुदायिक जीवन और सेवाओं संबंधी दिन प्रतिदिन की गतिविधियों के लिए ज़िम्मेदार हैं और इसके सामुदायिक अनुपालन हेतु बनाए गए कोड ऑफ कंडक्ट को अमल में लाया जाता है. गैर-आवासीय, घरेलू नौकर, ड्राईवर, रसोईये, डिलीवरी बॉय, और अन्य ऐसे सर्विस प्रोवाइडर की एंट्री और निकासी को कई कंपनियों द्वारा प्रदान किए जाने वाले मोबाईल आधारित इंटेलिजेंट सिक्योरिटी एप्लीकेशन की मदद से अमल में लाया जाता है.
अतिरिक्त सेवाओं के इस्तेमाल हेतु, घेराबंद समूह को कीमत अदा करनी पड़ती है. ये कीमत, आवास के प्रकार (फ्लैट या बंगला) और पेशकश किए गए विशिष्ट लाभों के स्तर के अनुपात पर आधारित होती हैं. इसके अलावे, वहाँ के मेन्टेनेंस चार्ज काफी ज्य़ादा हैं, जो कि वहाँ के निवासियों को अदा करनी पड़ेगी.
अतिरिक्त सेवाओं के इस्तेमाल हेतु, घेराबंद समूह को कीमत अदा करनी पड़ती है. ये कीमत, आवास के प्रकार (फ्लैट या बंगला) और पेशकश किए गए विशिष्ट लाभों के स्तर के अनुपात पर आधारित होती हैं. इसके अलावे, वहाँ के मेन्टेनेंस चार्ज काफी ज्य़ादा हैं, जो कि वहाँ के निवासियों को अदा करनी पड़ेगी. जैसा दृष्टव्य है, ऐसी आवासीय व्यवस्था शहरी गरीब वर्ग और उच्च-माध्यम वर्ग के लोगों की पहुँच से काफी दूर हैं. घेराबंद समुदाय, इसलि- शहरी अमीर और उच्च-माध्यम वर्ग, जिनके पास कैश एवं इन विशिष्ट सुविधाओं के लिए शुल्क अदा करने की इच्छाशक्ति हैं, उनके लिए ही हैं. गैर-आवासीय भारतीय (अप्रवासी) और उच्च नेट वर्थ शक्ति वाले शख्स़ (एचएनआई) आदि, इनमें निवेश को सेवानिवृत्ति के उपरांत, इसे एक बेहतर रिटर्न या फिर वापिस लौट कर आने वाले काफी आकर्षक स्थान के तौर पर देखते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, अप्रवासी भारतीयों का 82 प्रतिशत निवेश ऐसे ही घेराबंद समुदायों की रेडी टू मूव आवासों में निर्देशित है.
भारतीय शहर, खासकर मेगा और मेट्रोपॉलिटन शहरों के भीतर, गेटेड समुदायों में पर्याप्त वृद्धि देखी जा रही है. एक अग्रणी प्रबंधन परामर्श फर्म ने भविष्यवाणी करते हुए कहा की अगले पाँच वर्षों में, लगभग 24 मिलियन गृहस्थ इन गेटेड समुदायों में रह रहे होंगे एवं इनमें किए जा रहे निवेश 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक चली जाएगी. हालांकि, ये घटना सिर्फ़ भारत तक सीमित नहीं है. विश्वभर के सभी शहरों में, इसे एक वैश्विक अनुभव के तौर पर देखा गया हैं. शहरी अमीर एवं उच्च-माध्यम वर्ग में बेहतर उच्च क्वॉलिटी जीवन जीने की इच्छा, उत्कृष्ट सेवाओं का उपभोग, बढ़ी हुई सुरक्षा, और सामाजिक- आर्थिक रूप से समान लोगों के बीच बातचीत की विशिष्ठता, एक मानक है जिससे वैश्विक स्तर पर परहेज़ हैं. चूंकि उनकी जेब काफी भारी होती हैं और चूंकि ज्य़ादातर शहरी आवासों का निजीकरण हो चुका है, डेवलपर उनके लिए एक आदर्श ग्राहक ग्रुप मुहैया करवा देते हैं, जिन्हें वे अपना प्रीमियम हाउज़िंग प्रोडक्ट बेच सके. डेवलपर खुद को इस प्रकार से तैनात करके रखते थे, ताकि वे आवास के प्रकार को अपनी मनमाफिक कीमत पर बेच कर बेहतर मुनाफा कमा सके, चूंकि भारत के प्रीमियम शहरों में ज्य़ादातर जमीन उनके खुद के ही होते हैं. इसलिए उदाहरण के तौर पर, अनुमानित है कि मुंबई की हर पाँचवी ज़मीन नौ निजी भू-स्वामी और निजी ट्रस्टों के अधीन है.
जबकि व्यक्तिगत लेवल पर, गेटेड समुदाय के प्रति अर्बन धनाढ्य और उच्च-माध्यम वर्गों में काफी रुचि हैं, वे शहरों पर गंभीर प्रतिकूल प्रभावों से भरे हुए हैं. सामाजिक संपर्क और एकीकरण, जो कि एक स्वस्थ सामाजिक और नागरिक वातावरण का मुकाबला करता हैं, उसे वे हतोत्साहित करते हैं. वे एक समावेशी शहर के निर्माण और समावेश का सिद्धांत जो कि एक प्रजातान्त्रिक देश को बढ़ावा देने की आकांक्षा रखता है, और जो संधारणीय विकास लक्ष्य के उद्देश्य के बिल्कुल विपरीत है. वे शहर की असमानताओं की दृश्यता को बिगाड़ता हैं और एन्क्लेव विशेष के ज़रिए खुद को प्रमोट करते हैं. इसके साथ ही, कई गेटेड समुदायों की ज़मीन का इस्तेमाल भी बहुत कम घनत्व की वजह से काफी अक्षम हैं, जिसकी वजह से शहरी शिथिलता को बढ़ावा मिलता है. सार्वभौमिक पहुँच के लिए दीवारें खड़ी करके, वे शहर में गतिशीलता और संचालन को प्रतिकूल तौर पर प्रभावित करते हैं.
समुदाय संबंधित कानून व्यवस्था
दुर्भाग्यवश, ज्य़ादातर देशों और शहरों में, ऐसी आवासीय व्यवस्था के विकास को रोकने के लिए कोई कानून नहीं हैं. सारे विश्व में, ज़मीन का इस्तेमाल शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) द्वारा विनियमित हो जाता है, और ऐसी किसी हाउज़िंग व्यवस्था को प्रतिबंधित करना या अनुमति नहीं देना, किसी विकास कंट्रोल नियामक का अंग नहीं हैं. हालांकि, अमेरिका में चंद यूएलबी, ऐसे किसी नए एन्क्लेव के निर्माण को अनुमति नहीं देने की दिशा में आगे आए हैं. अमेरिका, अर्जेन्टीना, और इंडोनेशिया में उन्हें शहरी आवास के संदर्भ में उन्हें साफ़तौर पर किसी अन्य प्रकार के आवास के तौर पर चिन्हित किया गया है. हालांकि, इनके प्रसार पर अंकुश लगाने के लिये किसी भी प्रकार का प्रतिबंध ओझल है. 2016 में चीन ने, उनके शहरों में इस तरह के निर्माण को रोकने के लिये नीति की सिफारिशों की घोषणा की, हालांकि इसका चीनी शहरों पर पड़े प्रभाव से संबंधित कोई विवरण उपलब्ध नहीं नहीं. व्यापक तौर पर ऐसा माना जाता है कि चीनी अधिकारियों, शिक्षाविद और जागरूक नागरिक, जो कि स्वयं इस घेराबंद समुदाय के बीच रह रहे थे, और काफी मजबूत ‘गेटेड मानसिकता’ से वशीभूत थे, उनके दृढ़ विरोध की वजह से चीन अपने यहां शहरों की ‘घेराबंदी’ को रोक पाने में असफल रहा है. भारत में, जहां, कानून इन गेटेड समुदायों को कानूनी तौर पर मान्यता नहीं देता है, उन्हें अवैध भी करार नहीं दिया जा सकता हैं. वे आमतौर पर इस ले-आउट के निवासियों द्वारा ले-आउट को प्रदत्त विशेष सुविधाओं की तरह हैं. हालांकि, वृहत पैमानों पर इस्तेमाल किए जाने के उपरांत, इस क्षेत्र को घेरना और पहुँच को प्रतिबंधित करना कानूनी रूप से मान्य नहीं हो सकता है.
भारत में, जहां, कानून इन गेटेड समुदायों को कानूनी तौर पर मान्यता नहीं देता है, उन्हें अवैध भी करार नहीं दिया जा सकता हैं. वे आमतौर पर इस ले-आउट के निवासियों द्वारा ले-आउट को प्रदत्त विशेष सुविधाओं की तरह हैं. हालांकि, वृहत पैमानों पर इस्तेमाल किए जाने के उपरांत, इस क्षेत्र को घेरना और पहुँच को प्रतिबंधित करना कानूनी रूप से मान्य नहीं हो सकता है.
लोगों को ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि अपने सभी नागरिकों को उच्च श्रेणी की जीवनशैली प्रदान कर पाने में शहरी विफलता, घेराबंद समुदायों के जन्म के लिए ज़िम्मेदार हैं. ये साफ़ तौर पर दिखता है कि ऐसे गेटेड कम्यूनिटी जो शहरी सामाजिक ताने-बाने, को अगर पूरी तरह से ख़त्म नहीं पर उनपर विपरीत असर डालते हैं, उनको कम से कम हतोत्साहित तो किया ही जाना चाहिए. ऐसे सभी एकांतिक ईकाईयों को छोटे-छोटे टुकड़ों में निर्धारित ज़मीन दी जानी चाहिये. सभी गेटेड समुदायों के अंतर्गत न्यूनतम घनत्व निर्धारण, और इस्तेमाल में लिए जाने वाले अक्षम जमीनों के ऊपर लगने वाले ऊंची प्रीमियम और स्थानीय टैक्स को लेवी की मदद से हतोत्साहित करना चाहिये. इसके ऊपर, शहरों को भी सभी नागरिकों को दिए जाने वाले सुविधाओं की गुणवत्ता को और भी बेहतर करना चाहिए ताकि गेटेड समुदाय और समस्त शहर के बीच की भौगोलिक और सामाजिक बुनियादी ढांचे की खाई को कम किया जा सके.
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