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भारत की तेज़ी से बढ़ती डिजिटल भुगतान प्रणाली को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. बार-बार आ रही बाधाओं के कारण UPI में बैकअप सिस्टम, पारदर्शिता और आर्थिक स्थिरता की सख़्त ज़रूरत है.
Image Source: Getty
पिछले कुछ महीनों में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) में काफ़ी दिक्क़तें आईं, जिनसे लाखों लेन-देन प्रभावित हुए और पूरे देश में इसके उपयोगकर्ताओं को कई घंटों तक असुविधा का सामना करना पड़ा. भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम, यानी नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) ने माना कि ‘बार-बार हो रही तकनीकी समस्याओं’ के कारण लेन-देन में कुछ दिक्क़तें आईं, पर उसने तुरंत समाधान भी कर दिया. मगर हाल के महीनों में बार-बार पैदा हो रही ऐसी मुश्किलों ने चिंता बढ़ा दी है, खासकर यह देखते हुए कि UPI के माध्यम से हर महीने 16 अरब से अधिक लेन-देन होते हैं. ऐसे मामले UPI की अंदरूनी कमज़ोरियों को उजागर करते हैं और भारत के डिजिटल भुगतान बुनियादी ढांचे को मज़बूत बनाने के लिए व्यावहारिक सुधारों को लागू करने की ज़रूरत पर बल देते हैं.
डिजिटल इंडिया अभियान, जिसका उद्देश्य डिजिटल रूप से एक सशक्त समाज बनाना है, उसकी सफलता में UPI एक प्रमुख प्रेरक रहा है. हालांकि, इस अभियान की निरंतर सफलता सिर्फ़ इसकी तकनीकी क्षमता पर निर्भर नहीं करती, बल्कि उपयोगकर्ताओं के उस विश्वास पर भी निर्भर करती है, जो भरोसेमंद सिस्टम और सुरक्षा के कारण बनता है. असल में, यही विश्वास डिजिटल भुगतान को अपनाने और निरंतर उपयोग में लाने का आधार बनता है. इसीलिए, डिजिटल इंडिया को अपने लक्ष्यों को पाने के लिए, जनता के विश्वास को बनाए रखना और बढ़ाना कोई मामूली नहीं, बल्कि एक बुनियादी आवश्यकता है.
वास्तव में, UPI ने भारत की आर्थिक तस्वीर को काफ़ी हद तक बदल दिया है. इसने मुख्य रूप से नकदी आधारित अर्थव्यवस्था को डिजिटल लेन-देन वाली व्यवस्था बना दिया है. स्मार्टफोन के प्रसार और अन्य सहायक नीतिगत उपायों के कारण UPI ने वित्तीय समावेशन, यानी समाज के सभी वर्गों तक वित्तीय सेवाओं को पहुंचाने और उनमें डिजिटल भुगतान की सुविधा अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. PwC की एक रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर में जितना डिजिटल लेन-देन होता है, उसका करीब 46 प्रतिशत भारत में ही होता है. यहां पिछले 12 वर्षों में खुदरा डिजिटल भुगतान में 90 गुना बढ़ोतरी हुई है, जो बताता है कि यह बदलाव कितने बड़े पैमाने पर और कितनी व्यापकता में हुआ है. मासिक UPI लेन-देन में भी तेज़ वृद्धि हुई है, जो 2024 में प्रतिमाह 14 अरब को पार कर गया था. मार्च 2025 तक यह संख्या 18.3 अरब तक पहुंच गई थी. हालांकि, अप्रैल 2025 में इसमें थोड़ी गिरावट देखी गई और यह घटकर 17.89 अरब हो गई. मगर इसकी वज़ह UPI ट्रांजैक्शन में बार-बार पैदा होने वाली रुकावटें हो सकती हैं.
नीचे वे आंकड़े दिए गए हैं, जब जनवरी 2022 से मई 2025 के बीच UPI की सेवाओं में बाधाएं पैदा हुईं.
चित्र 1- 2022 से 2025 के बीच UPI लेन-देन की दिक्क़तों की समय-रेखा, ये प्रणालीगत कमज़ोरियों को उजागर करती हैं.
Source: Author’s own from data available at https://www.npci.org.in/what-we-do/upi/uptime-upi-month-wise
उल्लेखनीय है कि NPCI के अपटाइम डैशबोर्ड को मार्च 2025 के बाद अपडेट नहीं किया गया है, जिससे उस समय के आंकड़ों की जानकारी अभी नहीं मिलती, जब इसकी सेवाओं में काफ़ी दिक्कतें आई थीं. ये मुश्किलें ऐसे समय में हो रही हैं, जब डिजिटल भुगतान भारत की अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग बन गया है. कुछ हफ्ते पहले, भारत सरकार ने 1,500 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन योजना की घोषणा भी की है, ताकि छोटे विक्रेता भीम ऐप के ज़रिये UPI अपनाने के लिए प्रेरित हो सके. जैसे-जैसे ज़्यादा से ज़्यादा लोग और व्यवसाय कैशलेस भुगतान की ओर बढ़ रहे हैं, UPI का एक मिनट भी ठप हो जाना ख़ासा प्रभाव डाल रहा है.
इन घटनाओं ने एक गंभीर समस्या को उजागर किया है, जो है- भारत के इस मुख्य डिजिटल भुगतान प्रणाली में तत्काल बैकअप विकल्पों का न होना. भले ही, UPI बड़े पैमाने पर इस्तेमाल की जाने वाली डिजिटल भुगतान प्रणाली है, लेकिन इन मामलों ने बताया है कि दिन-प्रतिदिन के लेन-देन के लिए एक ही तंत्र पर अत्यधिक निर्भरता के कितने ख़तरे हो सकते हैं. निश्चय ही, कार्ड या तत्काल भुगतान सेवा (IMPS) या नेट बैंकिंग जैसे विकल्प मौजूद हैं, लेकिन इनका हर जगह इस्तेमाल नहीं होता, खासकर छोटे व्यापारियों के बीच, जिनके पास पॉइंट ऑफ़ सेल (POS) मशीनें नहीं होतीं या वे UPI की तरह सरलता से उनका उपयोग करने में सक्षम नहीं हैं.
अप्रैल और मई 2025 में UPI में आई दिक्क़तों के समय, उपयोगकर्ताओं के पास इस सेवा के ठीक होने तक इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था. यह बताता है कि हमें अन्य सरल विकल्पों की काफ़ी ज़रूरत है. हालांकि, नकद लेन-देन का रास्ता हमेशा खुला रहता है, लेकिन आज कई लोग नकद पैसे जेब में रखने से बचते हैं और तेज़ व सरल होने के कारण डिजिटल भुगतान को ही प्राथमिकता देते हैं.
NPCI निश्चय ही प्रशंसा की हकदार है, जिसने इस सिस्टम में कुछ बैकअप बनाया है. उदाहरण के लिए, UPI लाइट, जो उपयोगकर्ताओं को इंटरनेट के बिना भी छोटे भुगतान करने की सुविधा देता है.
NPCI निश्चय ही प्रशंसा की हकदार है, जिसने इस सिस्टम में कुछ बैकअप बनाया है. उदाहरण के लिए, UPI लाइट, जो उपयोगकर्ताओं को इंटरनेट के बिना भी छोटे भुगतान करने की सुविधा देता है. इसमें नजदीक के डिवाइस कम्युनिकेशन का उपयोग होता है. नेटवर्क में आने वाली रुकावटों के दौरान यह सुविधा काफ़ी उपयोगी साबित हो सकती है, लेकिन इसकी भी अपनी सीमाएं हैं. दरअसल, इसके माध्यम से सिर्फ़ छोटी राशियों का ही लेन-देन हो सकता है और इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल संभव नहीं है. एक प्रमुख UPI ऐप के संस्थापक के मुताबिक, वैकल्पिक साधन के रूप में UPI लाइट को बढ़ावा देने के बावजूद, ग्राहक सीधे बैंक खाते से लेन-देन को ही प्राथमिकता देते हैं.
अन्य समाधान, जैसे कि UPI 123Pay और अनस्ट्रक्चर्ड सप्लीमेंट्री सर्विस डेटा (USSD) आधारित बैंकिंग सेवाओं को NPCI ने स्मार्टफोन की कमी या कनेक्टिविटी दिक्क़तों के मद्देनज़र बैकअप के रूप में शुरू किया था, लेकिन उपयोगकर्ताओं के बीच जागरूकता की कमी, इनके इस्तेमाल से जुड़े मसले, सीमित बैंक सहायता, दूरसंचार संबंधी चुनौतियों और शुल्क-संबंधी प्रतिबंधों के कारण इनको व्यावहारिक रूप से लागू करना काफ़ी मुश्किल रहा है. यानी, यह भी कह सकते हैं कि बैकअप सिस्टम विकसित करने के प्रयास किए गए हैं, लेकिन उन पर लोगों का विश्वास नहीं जम सका है या उनका आसानी से उपयोग करना संभव नहीं हो पाया है.
NPCI भारतीय रिजर्व बैंक की निगरानी में काम करने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था है. यह भारत की भुगतान प्रणाली- UPI की रीढ़ की हड्डी जैसी है. इसका डिजाइन और कामकाज भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, और यह हर महीने वास्तविक समय में अरबों लेन-देन का प्रबंधन करती है.
इसका मॉडल एक सहयोगी दृष्टिकोण पर आधारित है, जहां बैंक, ऐप और नियामक तंत्र आपस में मिलकर डिजिटल लेन-देन को सुविधाजनक बनाने के लिए सहयोग देते हैं. विभिन्न स्तरीय ज़िम्मेदारी भरा यह ढांचा UPI के लिए साझेदारी वाला एक ऐसा बुनियादी ढांचा बनाता है, जहां सिर्फ़ NPCI की तकनीकी व्यवस्थाओं के कारण सुगम लेन-देन संभव नहीं होता, बल्कि इसमें साझेदारी करने वाले बैकों और थर्ड-पार्टी प्रोवाइडर्स की मज़बूती व अनुशासन के कारण भी लेन-देन होता है.
NPCI के मुताबिक, 12 अप्रैल 2025 को पैदा हुई समस्या हाल-फिलहाल में UPI की सबसे लंबी रुकावटों में एक थी. उसने इसका कारण ‘चेक ट्रांजेक्शन स्टेटस’ एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफ़ेस (API) के इस्तेमाल में अप्रत्याशित रूप से आई तेज़ी को माना. इस इंटरफ़ेस का उपयोग लेन-देन की स्थिति जानने के लिए किया जाता है. साफ़ है, इसने इस भुगतान व्यवस्था की भीतर की कमज़ोरियों को उजागर किया है. हालांकि, NPCI ने अपडेटेड इंटीग्रेशन गाइडलाइंस जारी करके और बेहतर API प्रबंधन को प्रोत्साहित करके इस समस्या के तीव्र समाधान का प्रयास किया, लेकिन इस घटना से पता चलता है कि पूरे सिस्टम को सरल व लचीला बनाने के लिए लगातार सावधानी बरतने और सभी प्रतिभागियों में तालमेल बनाने की ज़रूरत है.
जहां अप्रैल 2025 के व्यवधान का कारण सबको पता चल सका और उसका समाधान भी किया गया, वहीं NPCI ने मार्च, अप्रैल और मई 2025 में हुई अन्य रुकावटों के कारणों का सार्वजनिक रूप से खुलासा नहीं किया. पारदर्शिता की यह कमी तंत्र की जवाबदेही और समस्या के समाधान के बारे में चिंताएं पैदा करती हैं, जिस कारण उपयोगकर्ता सिस्टम की क्षमता और सरलता पर सवाल उठाते हैं. UPI लेन-देन के प्रभावित होने की वज़ह या समस्या के समाधान के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं देने से इस भुगतान प्रणाली में जनता का विश्वास धीरे-धीरे कम हो सकता है. कई विशेषज्ञों ने बताया भी है कि UPI में लोगों का भरोसा केवल सिस्टम के कारण नहीं, बल्कि इस बात पर भी निर्भर करता है कि जब कुछ गलत होता है, तो NPCI और उसकी सहायक एजेंसियां कितने खुले तौर पर और ज़िम्मेदारी से लोगों से संवाद करती हैं.
यह सही है कि हाल की घटनाओं से सिस्टम की विश्वसनीयता को लेकर चिंताएं पैदा हुई हैं, लेकिन यह भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि UPI भारत में डिजिटल भुगतान की कोई अकेली व्यवस्था नहीं है, और न ही तकनीकी विफलताओं से सिर्फ़ इसे ही जूझना पड़ रहा है. भुगतान के अन्य चैनलों को भी पूर्व में सेवाओं में बार-बार व्यवधानों से जूझना पड़ा है, जिनमें तत्काल भुगतान सेवा (IMPS), राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि हस्तांतरण, यानी नेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स फंड्स ट्रांसफर (NEFT), रियल-टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) और आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS) शामिल हैं.
यहां चुनौती लेन-देन की बढ़ती संख्या और उपयोग की विविधता से मेल खाने वाले सिस्टम के अनुसार व्यवस्था बनाने की है. UPI लाइट को बढ़ावा देने, USSD जैसे ऑफ़लाइन लेन-देन के विकल्प को विकसित करने और भागीदार संस्थानों के बीच बेहतर व्यवस्था बनाने के लिए NPCI द्वारा किए जा रहे सभी प्रयास यही बता रहे हैं कि बुनियादी ढांचे को विफलताओं से बचाने और लंबे समय तक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी उपायों के प्रति वह ख़ासा गंभीर है.
इन हालिया घटनाओं के बाद न्यू अम्ब्रेला इनटिटी (NUE) ढांचा नए सिरे से सुर्ख़ियों में है. NUE योजना का प्रस्ताव साल 2019 में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने दिया था, जो विनायमक, यानी निगरानी और नियमन से जुड़ा था. इसका उद्देश्य ऐसी संस्थाओं की स्थापना करना था, जो NPCI की तरह खुदरा भुगतान प्रणाली संचालित करेंगी, ताकि भारत में एकल डिजिटल भुगतान ऑपरेटर होने के कारण NPCI के सामने आने वाली संकेंद्रण संबंधी चुनौतियों से लड़ा जा सके. रिजर्व बैंक ने 2020 में उन संस्थाओं से आवेदन मंगवाना शुरू किया, जो NUE के पक्ष में थी. हालांकि, कई संस्थाओं द्वारा प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद भी अगले साल यह प्रक्रिया रुक गई। वैसे, रिजर्व बैंक ने NUE के लिए दरवाजा पूरी तरह से बंद नहीं किया है, इसलिए प्रणालीगत स्थिरता को बढ़ाने और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए इस ढांचे की नए सिरे से समीक्षा करना सार्थक साबित हो सकता है.
जैसे-जैसे ज़्यादा से ज़्यादा लोग और व्यवसाय कैशलेस भुगतान की ओर बढ़ रहे हैं, आशंका यही है कि अप्रैल 2025 जैसी मुश्किलें UPI के बुनियादी ढांचे और भरोसे के साथ मज़बूती से आगे बढ़ने की इसकी क्षमता की बार-बार परीक्षा लेती रहेगी.
आज एक बड़ी चुनौती यह है कि UPI शून्य-व्यापारी-छूट-दर (शून्य MDR) व्यवस्था पर काम करता है. इसका अर्थ है कि भुगतान सेवा प्रदाता किसी भी डिजिटल लेन-देन में व्यापारियों से शुल्क नहीं वसूलते. इस कारण इसकी तरफ लोगों का आकर्षण बढ़ा है, लेकिन इसने भुगतान सेवा प्रदाताओं, बैंकों और फिनटेक के लिए व्यावसायिक व्यवहार्यता, यानी कारोबारी फायदा की संभावनाओं को सीमित कर दिया है, जबकि वे चौबीसों घंटे सिस्टम का समर्थन और सुरक्षा करते हैं. इससे उपयोगकर्ताओं की निर्भरता एक ऐसी व्यवस्था पर बन सकती है, जिसके रखरखाव और नवाचार में सीमित वाणिज्यिक प्रोत्साहनों के कारण सेंध लग सकता है. इसमें नुकसान उपयोगकर्ताओं को ही होगा.
ऐसे में, इस मॉडल पर फिर से विचार करना एक व्यावहारिक कदम हो सकता है. लेन-देन पर मामूली शुल्क लगाने या एक स्तरीय MDR संरचना बनाने से इसमें शामिल खिलाड़ियों को बेहतर बैकअप तैयार करने और ग्राहक सहायता में सुधार के लिए निवेश करने को प्रोत्साहित कर सकता है. अभी, इनमें से कई ज़िम्मेदारियां बिना किसी उचित प्रोत्साहन के NPCI और उसके भागीदारों को उठानी पड़ती हैं. सतत राजस्व प्रवाह, यानी आमदनी का एक टिकाऊ रास्ता बनाने से इस बोझ को अधिक समान रूप से बांटने और सभी हितधारकों को सिस्टम के कामकाज व प्रदर्शन मानकों को ऊंचा बनाए रखने को प्रोत्साहित करेगा.
UPI और भारत के व्यापक डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में जनता के भरोसे को बनाए रखने के लिए सिर्फ़ तकनीकी उन्नति काफ़ी नहीं है, बल्कि इससे अधिक की ज़रूरत है. इसके लिए आर्थिक स्थिरता की आवश्यकता होगी.
UPI ने अपनी लोकप्रियता और समावेशन की क्षमता साबित की है, अब इसे अपनी विश्वसनीयता साबित करनी होगी. वैश्विक साथियों से सबक लेना और किसी एक घटक के कारण पूरे सिस्टम के ठप हो जाने जैसी घटनाओं को रोकना महत्वपूर्ण होगा. NUE द्वारा उठाए गए कदमों या भुगतान प्रदाताओं की विविधता से प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने देने और अनिवार्य बैकअप व ऑफ़लाइन मोड जैसी आकस्मिक योजना को लागू करने से, भारत सभी दबावों के बावजूद अपने डिजिटल भुगतान आधार को मज़बूत बनाए रख सकता है.
UPI और भारत के व्यापक डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में जनता के भरोसे को बनाए रखने के लिए सिर्फ़ तकनीकी उन्नति काफ़ी नहीं है, बल्कि इससे अधिक की ज़रूरत है. इसके लिए आर्थिक स्थिरता की आवश्यकता होगी. इस प्रयास में एक नपा-तुला शुल्क मॉडल रीढ़ का काम कर सकता है, क्योंकि वह यही सुनिश्चित करेगा कि सिस्टम को बनाए रखने वाले लोग पर्याप्त रूप से सुसज्जित, प्रेरित और पुरस्कृत हो रहे हैं.
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Tanusha Tyagi is a research assistant with the Centre for Digital Societies at ORF. Her research focuses on issues of emerging technologies, data protection and ...
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