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Published on Feb 06, 2025 Updated 0 Hours ago

इस वर्ष स्वास्थ्य सेवा के लिए किए गए बजटीय प्रावधानों पर नज़र डालने से पता चलता है कि इस क्षेत्र में निवेश की निरंतरता बरकरार है. इसके बावजूद यह सार्वजिनक स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचे में संसाधनों की कमी को लेकर लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने की दिशा में ज़्यादा कुछ करता नहीं दिखता. 

केंद्रीय बजट 2025: स्वास्थ्य क्षेत्र को राहत या फिर चुनौतियों का सामना?

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश को याद दिलाया कि गुड गवर्नेंस यानी बेहतर प्रशासन का मतलब उत्तरदायी सरकार अर्थात एक ऐसी सरकार जो ज़मीनी हकीकत का ध्यान रखते हुए लोगों की नब्ज़ को पहचानने वाली सरकार होना होता है. नेतृत्व से जनता को यह उम्मीद होती है कि वह ऐसी नीतियां बनाएगा जो जन कल्याण की नींव को मजबूती प्रदान करेंगी. यह उम्मीद स्वास्थ्य सेवा के मामले में और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि यह क्षेत्र लाखों लोगों की कल्याण तक पहुंच और सामर्थ्य को आकार देती है.

 

स्वास्थ्य बजट प्रावधान एवं निवेश

पिछले एक दशक में भारत में स्वास्थ्य सेवा पर होने वाले ख़र्च में लगातार क्रमानुगत वृद्धि हुई है. इसके बावजूद यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017) के तहत की गई सिफ़ारिश से कम ही है कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में से सार्वजनिक स्वास्थ्य पर 2.5 प्रतिशत ख़र्च किया जाना चाहिए. 2025 के बजट में इस लक्ष्य को प्राथमिकता दिए जाने की उम्मीद थी. विशेषज्ञों ने बढ़ती मांग को देखते हुए वर्तमान में स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले ख़र्च में संतोषजनक इज़ाफ़ा करने की मांग की थी. सार्वजनिक स्वास्थ्य की पैरवी करने वालों ने तंबाकू एवं शुगर/मीठे पदार्थों पर 35 प्रतिशत GST (वस्तु एवं सेवा कर) एक डेडिकेटेड सेस यानी समर्पित सेस लगाने पर भी बल दिया था. लेकिन इस वर्ष के बजट में ऐसा नहीं किया गया है. 

2017 से 2023 के बीच स्वास्थ्य सेवा के लिए किया जाने वाला प्रावधान हमेशा ही कुल बजट के 2 प्रतिशत से ऊपर रहा है. इस अवधि में केवल COVID-19 के वर्षों में अपवाद देखा गया जब आपात ख़र्च की वजह से कुल बजट में स्वास्थ्य सेवा की हिस्सेदारी बढ़ गई थी.

सरकार ने FY26 (फिस्कल इयर/वित्तीय वर्ष) में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लिए 95,957.87 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है. यह FY25 के बजटीय अनुमानों से 9.46 प्रतिशत अधिक है. यह आंकड़ा जहां इस क्षेत्र में निवेश की निरंतरता को दर्शाता है, वहीं यह सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे में संसाधनों की कमियों को दूर करने की दिशा में ज़्यादा कुछ करता नहीं दिखता. इस वर्ष स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की कुल बजट में हिस्सेदारी 1.94 प्रतिशत है. यह आंकड़ा पिछले वर्षों के मुकाबले गिरावट के रुझान को दर्शाता है. 2017 से 2023 के बीच स्वास्थ्य सेवा के लिए किया जाने वाला प्रावधान हमेशा ही कुल बजट के 2 प्रतिशत से ऊपर रहा है. इस अवधि में केवल COVID-19 के वर्षों में अपवाद देखा गया जब आपात ख़र्च की वजह से कुल बजट में स्वास्थ्य सेवा की हिस्सेदारी बढ़ गई थी. हालांकि पिछले दो वर्षों से इस अनुपात में देखी जा रही गिरावट चिंता का विषय बन गई है.

इतना ही नहीं प्रावधानों का ढांचा भी NHP 2017 के उस दृष्टिकोण से दूर होता जा रहा है जिसमें स्वास्थ्य बजट के दो-तिहाई हिस्से को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के लिए रखने की बात कही गई थी. इसके विपरीत यह अनुपात 40 प्रतिशत* पर टिका हुआ है. इतना ही नहीं पिछले पांच वर्षों के दौरान स्वास्थ्य के लिए किए गए बजटीय प्रावधान में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) की हिस्सेदारी में गिरावट देखी गई है. यह बदलाव इस बात को दर्शाता है कि रोग निरोधक एवं प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को मजबूती प्रदान करने के मुकाबले AIIMS जैसी टर्शरी केयर यानी तृतीयक चिकित्सा को प्राथमिकता दी जा रही है. यह प्रवृत्ति ग्लोबल बेस्ट प्रैक्टिसेज यानी वैश्विक सर्वोत्तम पद्धतियों के विपरीत है.

आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB PM-JAY) को भी पिछले वर्ष के बजट के मुकाबले 29 प्रतिशत अधिक 9,406 करोड़ रुपयों का प्रावधान मिला है. इसके अलावा प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन (PMABHIM) के लिए 4,200 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है. यह PMABHIM को पिछले वर्ष मिली राशि से 40 प्रतिशत अधिक है. इन प्रावधानों के पीछे PMJAY में हाल में किए गए विस्तार की झलक दिखाई देती है, जिसमें आबादी के सभी 70+ लोगों को शामिल किया गया है. इसके अलावा यह भी साफ़ होता है कि सरकार टर्शीएरी इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान केंद्रीत कर रही है.

टेबल 1 : स्वास्थ्य विभाग के बजट में PMJAY तथा PMABHIM के लिए किए गए प्रावधान का प्रतिशत. इन आंकड़ों को बजट दस्तावेज़ों से लिया गया है. (1), (2), (3) and (4)

वर्ष

PMJAY बजट (करोड़ रू)

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग का कुल बजट (करोड़ रु.)

आनुपातिक प्रतिशत PMJAY

PMABHIM बजट (करोड़ रु.)

आनुपातिक प्रतिशत 

PMABHIM

2021-22

6400

71,268.77

8.98

-

 

2022-23

6412

83,000

7.72

4176.84

5.03

2023-24

7200

86,175

8.35

4200

4.87

2024-25

7300

87,656.90

8.32

3200

3.65

2025-26

9406

95,957.87

14.26

4200

4.37

इसके अलावा इस बजट में एक महत्वपूर्ण मौके को गंवा दिया गया है. यह मांग जोर-शोर से उठ रही थी कि स्वास्थ्य सेवा वस्तुओं एवं सेवाओं पर एकीकृत रूप से 5 प्रतिशत GST लगाया जाना चाहिए. विशेषज्ञों का तर्क था कि ऐसा होने से अस्पताल एवं चिकित्सा आपूर्तिकर्ताओं के निवेश ख़र्च में कमी आएगी. इसके बजाय खंडित कर ढांचों एवं आवश्यक मेडिकल उत्पादों की ऊंची GST दरों की वजह से पेश आने वाली चुनौती लगातार बनी रहेगी.

स्वास्थ्य बीमा एवं वित्तीय प्रोत्साहन

बढ़ती हुई कीमतों के बावजूद भारत के ‘मिसिंग-मिडिल’ (मध्यम-वर्गीय परिवारों) तथा अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों के बीच बीमे की पैठ कम है. बजट से एक उम्मीद की जा रही थी कि स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर लगाए जाने वाले 18 प्रतिशत GST को घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया जाएगा. ऐसा कदम उठाए जाने से स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी तक लोगों की पहुंच बढ़ती और बीमा के तहत आने वाली आबादी की संख्या में विस्तार हो सकता था. इसके साथ ही सेक्शन 80D के तहत कर कटौती की सीमा को 25,000 से बढ़ाकर 50,000 रुपए करने से लोगों को अपने स्वास्थ्य पर ख़र्च करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता था. लेकिन बजट में इन दोनों ही मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया है. 

फिगर 1 : स्वास्थ्य बीमा एवं वित्तीय प्रोत्साहन, लेखक द्वारा (1), (2), (3) and (4) से संकलित.

 

Union Budget 2025 A Pulse Check On Healthcare

 

केंद्रीय बजट 2025 में आय कर मुक्त आय की सीमा को 7,00,000 से बढ़ाकर 12 लाख सालाना कर दिया गया है. इस वजह से लोगों को ख़र्च करने के लिए अतिरिक्त राशि मिलने वाली है. उम्मीद है कि इस राशि का उपयोग स्वास्थ्य बीमा की पैठ को बढ़ाने में सहायता करेगा. हालांकि स्वास्थ्य बीमा को लेकर बजट में यथास्थिति बनी हुई है, लेकिन इसकी वजह से इस क्षेत्र में सुधार करने का एक ऐसा अवसर गंवा दिया गया है जो लोगों के सामर्थ्य में काफ़ी वृद्धि कर सकता था.

केंद्रीय बजट 2025 में आय कर मुक्त आय की सीमा को 7,00,000 से बढ़ाकर 12 लाख सालाना कर दिया गया है. इस वजह से लोगों को ख़र्च करने के लिए अतिरिक्त राशि मिलने वाली है.

फिगर 1 पर बारीकी से नज़र डाले जाने पर इस वर्ष के बजट से की गई उम्मीदें, जिसमें GST छूट शामिल है, साफ़ हो जाती है. इसमें ESIC फंड्स को पुन: निर्दिष्ट करना, पेंशन योजना एकीकरण और जीवन बीमा एनूइटी यानी वार्षिकियां पर कर कटौती का भी समावेश था. लेकिन ये सारी बातें बजट से नदारद ही रहीं.

स्वास्थ्य ढांचा मजबूतीकरण, वैद्यकीय शिक्षा एवं डिजिटल स्वास्थ्य 

COVID-19 महामारी ने स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे में लंबे समय से चल आ रही कमियों की ओर ध्यानाकर्षण किया था. इसमें अस्पतालों की क्षमता, बिस्तरों, बीमारी सर्विलांस एवं कार्यबल विस्तार में तत्काल निवेश की आवश्यकता उजागर हो गई थी. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) को 37,226.92 करोड़ रुपए मिले है. यह राशि बीमारी सर्विलांस, परीक्षण सुविधाओं एवं आपात तैयारियों में वृद्धि करने पर ख़र्च की जानी है. इसके बावजूद सरकार के महत्वाकांक्षी प्रमुख कार्यक्रम NHM में कमोबेश यथास्थिति बनी हुई है और इसके लिए बजट में कोई उल्लेखनीय प्रावधान नहीं किया गया है.

टेबल 2 : स्वास्थ्य विभाग के बजट में NHM को आवंटित राशि प्रतिशत के रूप में, बजट दस्तावेज़ों (1), (2) and (3) से संकलित.

वर्ष 

NHM बजट (करोड़ रु.)

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग का कुल बजट (करोड़ रु.)

आनुपातिक प्रतिशत

2021-22

36,575.50

71,268.77

51.32

2022-23

28,859.73

83,000

34.77

2023-24

29,085.26

86,175

33.75

2024-25

36,000

87,656.90

41.06

2025-26

37,226.37

95,957.87

38.79

इसके अलावा एक और बड़ी घोषणा FY26 में 200 कैंसर केंद्रों की स्थापना को लेकर की गई. इसके साथ ही अगले तीन वर्षों में जिला अस्पतालों में डे-केयर कैंसर सेंटर की सुविधा उपलब्ध कराने की बात कही गई है. यह कदम ऑन्कोलॉजी/कर्करोग केयर में मौजूद एक बड़ी कमी को दूर करने में अहम साबित होगा. 

वैद्यकीय शिक्षा पर भी बजट में बल दिया गया है. इस वर्ष ही 10,000 अतिरिक्त मेडिकल सीट्स जोड़ने की योजना है. इसके चलते अगले पांच वर्षों के दौरान 75,000 सीटें उपलब्ध कराने की दीर्घावधि के लक्ष्य को हासिल करने में सहायता होगी. इस बजट में ज़्यादा चिकित्सकों एवं विशेषज्ञों की ज़रूरत को स्वीकार किया गया है. बजट में उल्लेख किया गया है कि पिछले एक दशक में 1.1 अंडरग्रेजुएट तथा पोस्ट ग्रेज्युएट/ सीटें जोड़ी गई हैं. यह 130 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाती है. हालांकि उम्मीद के बाजवूद टियर-2 एवं टियर-3 शहरों में मेडिकल शिक्षा में वृद्धि के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPPs) यानी सार्वजनिक-निजी साझेदारियों को लेकर कोई घोषणा नहीं की गई. इसके अलावा विद्यार्थियों को वित्त पोषण उपलब्ध करवाने के लिए पर्यायी व्यवस्था या वैद्यकीय शिक्षकों की बढ़ती मांग के लिए एक समर्पित फैकल्टी/संकाय पुल बनाने को लेकर भी कोई घोषणा नहीं हुई है.

इस बजट में ‘हील इन इंडिया’ प्रोग्राम के तहत पहलों की रूपरेखा को भी शामिल किया गया है. पर्यटन के लिए 20,000 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है. इसमें अंतरराष्ट्रीय मरीजों को जल्द पहुंच उपलब्ध करवाने के लिए वीजा प्रक्रियाओं को सुचारु करने तथा निजी क्षेत्र के साथ साझेदारियां स्थापित करना शामिल है. विशेषज्ञों ने स्पेशल इकोनॉमिक जोन (SEZ) की तर्ज़ पर विशेष मेडिकल पर्यटन जोन स्थापित करने का सुझाव दिया है. इस विशेष मेडिकल पर्यटन जोन में कर प्रोत्साहन भी उपलब्ध करवाने का सुझाव दिया गया है. हालांकि फिलहाल इस दिशा में कोई ठोस कदम स्पष्ट नहीं किया गया है, लेकिन उम्मीद है कि भविष्य में तैयार होने वाली नीतियों में इन बातों का ध्यान रखा जाएगा.

फार्मास्यूटिकल एवं मेडटेक इंडस्ट्री : एक मिश्रित व्यवस्था

केंद्रीय बजट 2025 में सामर्थ्य एवं पहुंच संबंधी समस्या को हल करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है. बजट में 36 लाइफ-सेविंग औषधियों को बेसिक कस्टम ड्यूटी (BCD) से मुक्त कर दिया गया है, जबकि 37 नई औषधियों एवं 13 पेशंट असिस्टेंस प्रोग्राम जोड़े गए हैं. घरेलू उत्पादकों को मजबूती प्रदान करने के लिए फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्र के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना को 2,445 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं. यह बात इस बात का संकेत है कि सरकार API (एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट) तथा मेडटेक प्रोडक्शन में आत्मनिर्भरता हासिल करने को लेकर बेहद गंभीर है. हालांकि उद्योग के हितधारकों ने व्यापक वित्तीय पहल की आवश्यकता पर जोर दिया था. इसमें ड्रग डिस्कवरी यानी औषधि ख़ोज के लिए R&D को गति प्रदान करने के लिए वेटेड टैक्स डिडक्शंस का समावेश था. लेकिन बजट में इस पर ध्यान नहीं दिया गया है. फिगर 2 पर नज़र डालने से यह साफ़ हो जाता है कि R&D को बढ़ावा देने तथा विनियमन संबंधी सुधारों को लेकर की गई उम्मीदों पर बजट ख़रा नहीं उतरा है. उद्योग के नेताओं ने ऊंचे RoDTEP (रेमिशन ऑफ ड्यूटीज एंड टैक्सेस ऑन एक्सपोर्टेड प्रोडक्ट) यानी निर्यात किए जाने वाले उत्पादों पर कर एवं शुल्कों में छूट की भी मांग की थी. इस दिशा में की जाने वाली पहल से भारत के फार्मास्यूटिकल निर्यात को बढ़ावा मिलेगा.

फिगर 2 : फार्मास्यूटिकल एवं मेडटेक, (a), (b), (c), (d) तथा (e) से संकलित.

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रोग निवारक स्वास्थ्य सेवा

बजट में आमतौर पर उपचारात्मक स्वास्थ्य सेवा पर ही बल दिया जाता है. लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के लिए रोग निवारक स्वास्थ्य सेवा ही सबसे लागत-प्रभावी रणनीति है. 2025 के बजट में रोग निवारक स्वास्थ्य सेवा, विशेषत: कैंसर उपचार बुनियादी ढांचे, को लेकर कुछ प्रतिबद्धताएं देखी गई हैं. हालांकि वैक्सीनेशन कार्यक्रम जैसे क्षेत्रों में अब भी महत्वपूर्ण कमियां दिखाई देती हैं. फिगर 3 में रोग निवारक स्वास्थ्य सेवा उपायों को लेकर उम्मीदों एवं कमियों पर नज़र डाली गई है.

फिगर 3 : रोग निवारक स्वास्थ्य सेवा, (i), (ii) तथा (iii) से संकलित.

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GST तथा स्वास्थ्य सेवा के लिए कर सुधार

उद्योग के हितधारकों ने स्वास्थ्य सेवा निवेश को प्रोत्साहित करने, R&D को बढ़ावा देने, सुव्यवस्थित GST ढांचे तथा विस्तारित वित्तीय समर्थन के लिए लक्षित पहलों की ज़रूरत पर बल दिया था. उद्योग हितधारकों की मांग थी कि इस दिशा में कुछ बड़े बदलाव किए जाने चाहिए. इसके अलावा एक प्रमुख मांग थी कि मेडिकल उपकरणों एवं आवश्यक स्वास्थ्य सेवा वस्तुओं के लिए GST दरों को सुसंगत किया जाए. ऐसा होने पर यह स्वास्थ्य सेवा प्रदाता एवं मरीज दोनों की ही पहुंच में आएगा या दोनों के सामर्थ्य में इज़ाफ़ाकरेगा. फिगर 4 में उद्योग जगत की इन महत्वपूर्ण मांगों को दर्शाया गया है और इसके लिए उठाए जाने वाले वित्तीय कदमों की आवश्यकता को उजागर किया गया है.

फिगर 4 : GST एवं कर सुधार, (I), (II) और (III) से संकलित

 

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आगे क्या?

केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य सेवा को क्रमागत फ़ायदा हुआ है. यह बात विशेष रूप से करों में छूट, अनौपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों के कवरेज एवं कैंसर सेवा के मामले में लागू होती है. इसके बावजूद बजट में अनेक ख़ामियां रह गई है. आश्चर्यजनक रूप से बजट में आसन्न जनसांख्यिकीय संकट पर कोई बात नहीं की गई है. इसी प्रकार बजट में आवासीय चिकित्सक, एंबुलेटरी यानी अस्पताल देखभाल तथा बुजुर्गों की देखभाल को लेकर तत्काल उठाए जाने वाले कदमों की बात नहीं की गई है. ये बातें बढ़ती आबादी के साथ बढ़ते बीमारी के बोझ से निपटने के लिए बेहद आवश्यक हैं. वित्तपोषण, कराधान एवं विनियामक प्रोत्साहनों में गहरे ढांचागत सुधारों के बगैर भविष्य में बनने वाली नीतियों को इन्हें हासिल करने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे.


के. एस. उपलब्ध गोपाल, ऑर्ब्जवर रिसर्च फाउंडेशन के हेल्थ इनिशिएटिव में एसोसिएट फेलो हैं.

*लेखक द्वारा बजट दस्तावेज़ों से की गई गणना.

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Author

K. S. Uplabdh Gopal

K. S. Uplabdh Gopal

Dr. K. S. Uplabdh Gopal is an Associate Fellow within the Health Initiative at ORF. His focus lies in researching and advocating for policies that ...

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